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प्राचीन उज्जैन की महिमा ...मुख्य मंदिर और 84 महादेव


''हे प्रयलंकर,हर अभयंकर,तेरे तांडव में भी सृष्टि है।

जीवन की संरचना में,साश्वत प्रेम की सदादृष्टि है।

अभयंकर है,घोर भी है तू, प्रत्यंचा है शोर भी है ।

तू महा निशा है भोर भी है, तू विनाश ध्वनि घनघोर भी है।

तू हृदय कोण अनुकोण में ,तू है रक्त श्वेद प्रतिशोण में ।

तू है संघर्षमय प्रतिपल,जीवन मरु सम कठोर है।

हर दर्शन में तेरे,आशीर्वाद की महावृष्टि है।।''

शिव स्व भी है संसार भी

सृजन भी है संहार भी

शिव शाश्वत है और सत्य भी

शिव शांत है और रौद्र भी

शिव सीमित भी है अनंत भी

शरुआत है और अंत भी

शिव मोह है और माया भी

शिव धूप है और छाया भी

शिव प्रेम भी है वैराग भी

संगीत है और राग भी

शिव वर्तमान है और अतीत भी

शिव से ही है सबका भविष्य भी

शिव शिवाप्रिय भी है और योगी भी

गंभीरता के साथ शिव के नेत्रों में है ज्वाला भी

शिव गले में पहने सर्प और रुद्राक्ष की माला भी

बस ऐसे ही है हमारे शिव

////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////// उज्जैन एक पौराणिक शहर है। इसके वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। यहां 12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर विराजमान हैं। महाकाल को उज्जैन का राजा भी कहा जाता है।महाकाल मंदिर के दर्शन के बाद जूना महाकाल के दर्शन जरूर करना चाहिए। यह महाकाल प्रांगण में ही स्थित है।उज्जैन में साढे तीन महाकाल विराजमान है। महाकाल ,काल भैरव, गढ़ कालिका और अर्ध काल भैरव ।वर्तमान में महाकाल मंदिर तीन खंडों में विभाजित है।निचले खंड में महाकालेश्वर मध्य खंड में ओंकारेश्वर और ऊपरी खंड में नागचंद्रेश्वर मंदिर है । नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही संभव है।पौराणिक तथा सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है। वर्तमान में भी कोई भी राजा, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि यहां नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों में फँस जाता है। यहां..... 1-कालभैरव;- ये हैं भगवान कालभैरव। यहां की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां स्थापित भगवान कालभैरव की मूर्ति शराब पीती है। जब किसी पात्र में शराब लेकर मूर्ति के मुख से लगाया जाता है तो शराब स्वत: ही पात्र में से मूर्ति के मुख में चली जाती है 2-विक्रांत भैरव;- ये हैं विक्रांत भैरव। तंत्र साधना के लिए ये स्थान बहुत प्रसिद्ध है। दूर-दूर से तांत्रिक यहां तंत्र क्रिया के लिए आते हैं। 3-चौबीस खंबा माता;- शहर के मध्य स्थित ये है चौबीस खंबा माता। यहां देवी महालया व महामाया की मूर्ति स्थापित हैं। शारदीय नवरात्रि में यहां शासकीय पूजा की जाती है जिसमें देवी को शराब का भोग लगाया जाता है। 4-भूखी माता;- शिप्रा नदी के दूसरी ओर स्थित ये है भूखी माता। ये स्थान तंत्र क्रिया तथा पशु बलि के लिए जाना जाता है। 5-गढ़कालिका माता;- माँ के 51 शक्तिपीठों में से एक उज्जैन का गढकालिका शक्तिपीठ सारे भारत उपमहाद्वीप में प्रसिद्ध है। कालजयी कवि गढ़ कालिदास कालिका देवी के उपासक थे। कालिदास के संबंध में मान्यता है कि जब से वे इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा। कालिदास रचित 'श्यामला दंडक' महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है। ऐसा कहा जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। यहाँ प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व माँ कालिका की आराधना की जाती है।पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में ‍शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर माँ भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। जिस कारण यहाँ शक्तिपीठ की स्थापना हुई। 6-भर्तहरी गुफा;- भर्तहरि गुफा नाथ संप्रदाय का साधना स्थल है। ऐसी किवदंती है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तहरि ने इसी स्थान पर साधना की थी। यहां पर दो गुफाएं है। इनमें से एक गुफा भूमिगत है। भूमिगत गुफा में जाने के लिए बहुत संकरा रास्ता है और नीचे जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है। आप गुफा के नीचे जाएंगे तो नीचे एक बड़ा सा हॉल है और भगवान शिव का शिवलिंग विराजमान है। यहां पर आप आकर बहुत अच्छा लगेगा और बहुत शांति वाला माहौल रहता है। दूसरी गुफा में भी शिवलिंग विराजमान है। इस शिवलिंग को नीलकंठेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। भर्तृहरि गुफा के पास मंदिर भी बना हुआ है और यहां पर बहुत सारे देवी देवता विराजमान है। यहां पर शिप्रा नदी पर सुंदर घाट बना हुआ है। जिसे भर्तृहरि घाट कहते हैं। यहां पर गौशाला बनी हुई है, जहां पर उच्च कोटि की गायों को रखा गया है।

7- ऋणमुक्तेश्वर महादेव ;-

अगर आपके उपर कर्ज है व हर प्रकार के उपाय के बाद भी ये नहीं उतर रहा है तो भगवान ऋणमुक्तेश्वर की शरण में शनिवार को जाने से लाभ मिलता है।मान्यता है कि ऋणमुक्तेश्वर महादेव के पूजन से किसी भी प्रकार का ऋण भार, पितृ ऋण व अन्य ऋण का जल्द निराकरण हो जाता है।प्रचलित दन्त कथानुसार शिप्रा नदी के तट पर स्थित वट वृक्ष के नीचे सत्यवादी राजा हरीशचंद्र ने कुछ समय तक तप किया था। उन्हें एक गेंडे के भार इतना सोना ऋषि विश्वामित्र को दान करना था, वह भी तब जब अपना राजपाट पहले ही दान कर चुके थे। इसके बाद विश्वामित्र ने यह दान मांगा था। राजा हरीशचंद्र के स्त्री-बच्चे बिकने के बाद भी यह दान पूर्ण नहीं हो रहा था। यहां वटवृक्ष के नीचे ऋणमुक्तेश्वर महादेव स्थित है। राजा ने इनकी पूजा कर वर प्राप्त कर ऋण मुक्त हो गए थे। बाद में इन्हें सुख-वैभव और राजपाट मिल गया था। उज्जैन अवंतिका तीर्थ धाम होने से इस मंदिर में दर्शन कर ही मनुष्य ऋण से मुक्त हो जाता है।यहां प्रति शनिवार को पीली पूजा का बड़ा महत्व है। पीला पूजा से तात्पर्य पीले वस्त्र में चने की दाल, पीला पुष्प, हल्दी की गांठ और थोड़ा सा गु़ड़ बांधकर जलाधारी पर अपनी मनोकामना के साथ अर्पित करना है। 8-श्री विक्रांत महाभैरव मंदिर;- 03 FACTS;- 1-यहां शिप्रा नदी के तट पर स्थित चक्रतीर्थ (शमशान घाट) पर दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र क्रिया के लिए आते हैं। उज्जैन नगर से पांच किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन बस्ती भैरवगढ़ या भैरूगढ़ में श्री कालभैरव मंदिर के सामने कुछ कदम चलने पर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है प्राचीन श्री विक्रांत महाभैरव मंदिर।जनश्रुति है कि यह मंदिर तीन-चार सहस्राब्दियों पूर्व एक विशाल भैरव मंदिर था। इसकी प्राचीनता स्वत: सिद्ध है। प्राचीन मन्दिर के भग्रावशेष, कंगूरेदार शिखर, टूटे हुए स्तम्भ व पाषाण पर नक्काशीदार खंडित मूत्तियाँ शिप्रा से प्राप्त हुई हैं जो इसके प्रमाण हैं।कहते हैं यह अतीत में तंत्र साधकों की तपस्थली रहा है। मन्दिर के आसपास विद्यमान अति प्राचीन मूत्तियां स्वयं अपनी कहानी कहती हैं। स्कन्दपुराण में उल्लेख है कि एक बार पार्वतीजी ने भगवान् शिव से अवन्ती क्षेत्र के प्रमुख देवताओं व तीर्थों का वर्णन करने का निवेदन किया। सनत्कुमारजी के अनुसार तब महादेवजी ने कहा कि यहां शिप्रा सहित मेरी चार प्रिय नदियां हैं। यहाँ चौरासी लिंगों के रूप में उतने ही शिव निवास करते हैं, आठ भैरव रहते हैं, ग्यारह रुद्र, बाहर आदित्य और छ: गणेश हैं तथा चौबीस देवियां हैं। 2-महादेवजी ने जिन आठ भैरवों के नाम बताएं वे हैं— 1. दण्डपाणि, 2 विक्रांत 3. महाभैरव 4. बटुक 5. बालक 6. बन्दी 7. षट्पंचाशतक व 8. अपरकालभैरव। 3-विक्रांत का अर्थ है जिनकी अंगकांति तपाये हुए स्वर्ण के समान है और नाम के अनुरूप ही तेजस्विता और आलोक विक्रान्त भैरवजी की सिन्दूरचर्चित मूर्ति पर दर्शनीय है। यह स्थल नीरव, एकांत व प्रकृति की मनोहारी नैसर्गिक छटा से युक्त है। यहां दक्षिणवर्ती भैरव की चैतन्य मूर्ति है, जाग्रत श्मशान भूमि है। शिप्रा पूर्ववाहिनी है, प्राचीन शिव मन्दिर है, सती माता के पूज्य चरण हैं, कृत्याओं और मातृकाओं की खंडित पाषाण प्रतिमाएं हैं। ऊँचे घने वृक्ष हैं और सूर्यास्त के उपरांत अंधकार की चादर से ढंका विस्मयकारी वातावरण।ओखरेश्वर शमशान भूमि से चमत्कारों की अनेक गाथाएं जुड़ी हुई हैं। स्कन्दपुराण के अनुसार इस भैरवतीर्थ में एक उत्तम स्वभाववाली काली नामक योगिनी रहा करती थी जिसने भैरवजी को अपने पुत्र की भांति पाला था। वे भैरवजी शिप्रा नदी के उत्तरी तट पर सदा स्थित रहते हैं। इसी पुराण में आगे लिखा है—सुंदर चंद्रमा और सूर्य जिनके नेत्र हैं, जिन्होंने मस्तक पर मुकुट और गले में मोतियों की माला धारण कर रखी है तथा जो मनुष्य मात्र के लिए कल्याणस्वरूप हैं, उन विशालकाय भगवान् भूतनाथ भैरव का है मन, तू भजन कर— भज जन शिवरूपम् भैरवं भूतनाथम्। ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; 9-हरसिद्धि माता;- 03 FACTS;- 1-उज्जैन स्थित भव्य श्री हरसिद्धि मंदिर भारत के प्राचीन स्थानों में से एक है जो कि माता सती के ५१ शक्तिपीठों में १३वा शक्तिपीठ है ।हरसिद्धि मंदिर में उज्जैन के राजा रहे विक्रमादित्य की आराध्य देवी का वास है।शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में माता के सती हो जाने के बाद भगवान भोलेनाथ सती को उठाकर ब्रह्मांड में ले गए थे। इस दौरान माता सती के अंग जिन स्थानों पर गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। कहा जाता है इस स्थान पर माता के दाहिने हाथ की कोहनी गिरी थी और इसी कारण से यह स्थान भी एक शक्तिपीठ बन गया है।स्कंद पुराण के अनुसार, देवी को चंड एवं मुंड नामक राक्षस के वध के लिए भगवान शिव से सिद्धि मिली थी, इसीलिए वह हरसिद्धि कहलाईं। गर्भगृह में एक शिला पर श्रीयंत्र उत्कीर्ण है, जो शक्ति का प्रतीक है। यहां माता लक्ष्मी, महासरस्वती के साथ ही अन्नपूर्णा माता विराजमान हैं। यह स्थान उज्जैन के प्राचीन देवी स्थानों में अपना विशेष महत्व रखता है।श्री हरसिद्धि मंदिर के गर्भगृह के सामने सभाग्रह में श्री यन्त्र निर्मित है । कहा जाता है कि यह सिद्ध श्री यन्त्र है और इस महान यन्त्र के दर्शन मात्र से ही पुण्य का लाभ होता है । 2-कर्कोटकेश्वर महादेव -कालसर्प दोष;- शुभफल प्रदायिनी इस मंदिर के प्रांगण में शिवजी का कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर भी है जो कि चौरासी महादेव में से एक है जहां कालसर्प दोष का निवारण होता है ऐसा लोगों का विश्वास है ।मंदिर प्रांगण के बीचोंबीच दो अखंड ज्योति प्रज्वलित रहती है जिनका दर्शन भक्तों के लिए शांतिदायक रहता है।प्रांगण के चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार है एवं मुख्य प्रवेश द्वार के भीतर हरसिद्धि सभाग्रह के सामने दो दीपमालाएँ बनी हुई है जिनके आकाश की और मुख किये हुए काले स्तम्भ प्रांगण के भीतर रहस्यमयी वैभव का वातावरण स्थापित करते हैं । यह दीपमालिकाएं मराठाकालीन हैं ।ज्योतिषियों के अनुसार इसका शक्तिपीठ नामकरण किया गया है । ये नामकरण इस प्रकार है- स्थान का नाम 13 उज्जैन, शक्ति का नाम मांगलचाण्डिकी और भैरव का नाम कपिलाम्बर है । इस प्राचीन मंदिर के केंद्र में हल्दी और सिन्दूर कि परत चढ़ा हुआ पवित्र पत्थर है जो कि लोगों कि आस्था का केंद्र है । 3-गर्भगृह में सबसे ऊपर विराजमान हैं मां अन्नपूर्णा, जिनकी वजह से उज्जैनी में हमेशा भंडारे चलते रहते हैं। कहा जाता है कि उनकी कृपा से उज्जैन में कोई भूखा नहीं सोता है। बीच में मां लक्ष्मी के स्वरुप में है, जिनकी वजह से किसी को भी लक्ष्मी की कमी नहीं आती। सबसे नीचे विराजित हैं महाकाली।इस मंदिर में माँ काली की मूरत के दाये बांये माँ लक्ष्मी और देवी सरस्वती की मुर्तिया है | महा काली की मूरत गहरे लाल रंग में रंगी हुई है |माँ का श्री यन्त्र भी मंदिर परिसर में लगा हुआ है | कहा जाता है है सती माँ का बांया हाथ या उपरी होठ या दोनों इस जगह गिरे थे और इस शक्ति पीठ की स्थापना हुई थी | इसी जगह महान कवी कालीदास ने माँ के प्रशंसा में काव्य रचना की थी यह माता राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी |ये वो देवी हैं जो राजा विक्रमादित्य की पूजनीय थीं और राजा अमावस की रात को विशेष पूजा अनुष्ठान कर अपना सिर अलग करके चढ़ाते थे। लेकिन, हर बार देवी उनके सिर को जोड़ देती थीं। कहा जाता है की राजा विक्रमादित्य ने अपना 11 बार शीश दान माँ के सामने किया और हर बार माँ ने फिर से उनके शीश को जोड़ दिया।किवदंती है कि माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं और रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं। इसी कारण यहां की संध्या आरती का विशेष महत्व है। माता हरसिद्धि की साधना से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं, इसलिए नवरात्रि में यहां साधक साधना करने आते हैं।उज्जैन में हरसिद्धि देवी की आराधना करने से शिव और शक्ति दोनों की पूजा हो जाती है। ऐसा इसलिए कि ये ऐसा स्थान है, जहां महाकाल और मां हरसिद्धि के दरबार हैं। 10-भूखी माता और चौबीस खंभा दोनों मंदिरों की स्थापना का रहस्य ;-

02 POINTS;- भूखी माता मंदिर :- 1-भूखी माता और चौबीस खंभा देवी का महत्व इसलिए है क्योंकि इससे जुड़ी है राजा विक्रमादित्य के राजा बनने और सिंहासन बत्तीसी की कहानी।इस मंदिर से राजा विक्रमादित्य के राजा बनने की किंवदंती जुड़ी हुई है। मान्यता है कि भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी।तब जवान लड़के को उज्जैन का राजा घोषित किया जाता था, उसके बाद भूखी माता उसे खा जाती थी। एक दुखी मां का विलाप देख नौजवान विक्रमादित्य ने उसे वचन दिया कि उसके बेटे की जगह वह नगर का राजा और भूखी माता का भोग बनेगा।राजा बनते ही विक्रमादित्य ने पूरे शहर को सुगंधित भोजन से सजाने का आदेश दिया। जगह-जगह छप्पन भोज सजा दिए गए। भूखी माता की भूख विक्रमादित्य को अपना आहार बनाने से पहले ही खत्म हो गई और उन्होंने विक्रमादित्य को प्रजापालक चक्रवर्ती सम्राट होने का आशीर्वाद दिया। तब विक्रमादित्य ने उनके सम्मान में इस मंदिर का निर्माण करवाया।यह स्थान दत्त अखाडे के पास है। 2-चौबीस खंभा देवी : - यह है उज्जैन नगर में प्रवेश करने का प्राचीन द्वार। पहले इसके आसपास परकोटा या नगर दीवाल हुआ करती थी। अब वे सभी लुप्त हो गई हैं, सिर्फ प्रवेश द्वार और उसका मंदिर ही बचा है। यहां पर दो देवियां विराजमान हैं- एक महामाया और महानाया। इसके अलावा विराजमान हैं बत्तीस पु‍तलियां। यहां पर रोज एक राजा बनता था और उससे ये प्रश्न पूछती थीं। राजा इतना घबरा जाता था कि डर के मारे मर जाता था।जब राजा विक्रमादित्य का नंबर आया तो उन्होंने अष्टमी के दिन नगर पूजा चढ़ाई। नगर पूजा में राजा को वरदान मिला था कि बत्तीस पुतली जब तुमसे जवाब मांगेंगी तो तुम उन्हें जवाब दे पाओगे। जब राजा ने सभी पुतलियों को जवाब दे दिया तो पुतलियों ने भी वरदान दिया कि राजा जब भी तू न्याय करेगा तब तेरा न्याय डिगने नहीं दिया जाएगा।अवंतिका नगरी के प्राचीन द्वार पर विराजमान हैं दो देवियां जिन्हें नगर की सुरक्षा करने वाली देवियां कहा जाता है। इस प्राचीन मंदिर में सिंहासनारूढ राजा विक्रमादित्य की मूर्ति के अलावा बत्तीस पुतलियों की मूर्तियां भी विराजमान हैं। पुजारी के अनुसार '' ये सब परियां हैं जो आकाश-पाताल की खबर लाकर देती हैं। इंद्र के नाती गंधर्व सेन गंधर्वपुरी से आए थे, जो विक्रमादित्य के पिता थे''।

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11-'सिद्धवट';-

02 POINTS;-

1-उज्जैन के भैरवगढ़ के पूर्व में शिप्रा के तट पर प्रचीन सिद्धवट का स्थान है।इसे शक्तिभेद तीर्थ के नाम से जाना जाता है।हिंदू पुराणों में इस स्थान की महिमा का वर्णन किया गया है। इस सिद्धवट को पार्वती माता द्वारा लगाया गया था, जिसकी शिव के रूप में पूजा होती है।माता पार्वती के पुत्र कार्तिक स्वामी को यहीं पर सेनापति नियुक्त किया गया था। यहीं उन्होंने तारकासुर का वध किया था।संसार में केवल पांच ही पवित्र वट वृक्ष हैं। प्रयाग (इलाहाबाद) में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, नासिक में पंचवट ,गया में गयावट जिसे बौधवट भी कहा जाता है और यहां उज्जैन में पवित्र सिद्धवट हैं।यहां सिद्धवट पर तीन तरह की सिद्धि होती है संतति, संपत्ति और सद्‍गति। तीनों की प्राप्ति के लिए यहां पूजन किया जाता है।नागबलि, नारायण बलि-विधान प्राय: यहाँ होता रहता है।सद्‍गति अर्थात पितरों के लिए अनुष्ठान किया जाता है। संपत्ति अर्थात लक्ष्मी कार्य के लिए वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है और संतति अर्थात पुत्र की प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया (स्वस्विक) बनाया जाता है।

2-यह वृक्ष तीनों प्रकार की सिद्धि देता है इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है।यहाँ पर कालसर्प शांति का विशेष महत्व है, इसीलिए कालसर्प दोष की भी पूजा होती है।ऐसा माना जाता है कि पवित्र नदी शिप्रा के तट पर स्थित सिध्दवट घाट पर अन्त्येष्टि-संस्कार सम्पन्न किया जाता है। स्कन्द पुराण में इस स्थान को प्रेत-शिला-तीर्थ कहा गया है। इसके अलावा नाथ संप्रदाय में भी इसे पूजा का स्थान माना गया है। मुगल शासन काल में इस सिद्धवट को नष्ट करने के कई बार प्रयास किए गए थे। वट वृक्ष के मूल पर मुगल बादशाहों ने धार्मिक महत्व जानकर कुठार चलाया था, वृक्ष नष्ट कर उस पर लोहे के बहुत मोटे पतरे-तवे जड़ा दिए थे। कहते हैं कि उस पर भी अंकुर फूट निकले, आज भी वृक्ष हरा-भरा है। मंदिर में फर्श लगी हुई है।वर्तमान में इस सिद्धवट को कर्मकांड, मोक्षकर्म, पिंडदान, कालसर्प दोष पूजा एवं अंत्येष्टि के लिए प्रमुख स्थान माना जाता है।यहाँ शिप्राजी की विस्तृत धारा बहती है। इस स्थान पर शिवलिंग भी स्थित है, जिसे पातालेश्वर के नाम से पुकारा जाता है। यहां पर एक शिला है जिसको प्रेत- शिला के नाम से जाना जाता है।

12-शिप्रा नदी ;-

02 POINTS;-

1-ब्रह्मपुराण में भी शिप्रा नदी का उल्लेख मिलता है। संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथ 'मेघदूत' में शिप्रा का प्रयोग किया है, जिसमें इसे अवंति राज्य की प्रधान नदी कहा गया है। महाकाल की नगरी उज्जैन, शिप्रा के तट पर बसी है। स्कंद पुराण में शिप्रा नदी की महिमा लिखी है। पुराण के अनुसार यह नदी अपने उद्गम स्थल बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है। प्राचीन मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम शिप्रा प्रचलित हुआ।शिप्रा नदी का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश के महू छावनी से लगभग 17 किलोमीटर दूर जानापाव की पहाडिय़ों से माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्म स्थान भी माना गया है।शिप्रा नदी की उत्तपत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा का उल्लेख, हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। बहुत समय पहले भगवान शिव ने ब्रह्म कपाल लेकर, भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने उन्हें अंगुली दिखाते हुए भिक्षा प्रदान की। इस अशिष्टता से भगवान भोलेनाथ नाराज हो गए और उन्होंने तुरंत अपने त्रिशूल से विष्णु जी की उस अंगुली पर प्रहार कर दिया।

2-अंगुली से रक्त की धारा बह निकली।जो विष्णुलोक से धरती पर आ पहुंची।और इस तरह यह रक्त की यह धार, शिप्रा नदी में परिवर्तित हो गई। शिप्रा नदी के किनारे स्थित घाटों का भी पौराणिक महत्व है। जिनमें रामघाट मुख्य घाट माना जाता है। कहते हैं भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ का श्राद्धकर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था। इसके अलावा नृसिंह घाट, गंगा घाट, पिशाचमोचन तीर्थ, गंधर्व तीर्थ भी प्रमुख घाट हैं।शिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनके प्रिय मित्र सुदामा ने विद्या अध्ययन किया था। हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है कि राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस पवित्र नदी के तट पर तपस्या से सिद्धि प्राप्त की।शिप्रा, गंगा, सरस्वती और नर्मदा आदि ऐसी अनेक नदियां हैं, जो पवित्र मानी जाती हैं। ये नदियां ना तो मैली होती हैं और ना ही इनका जल अशुद्ध होता है। उज्जैन में मां शिप्रा का काफी पौराणिक महत्व है।

13-महाकालेश्‍वर मंदिर;-

04 POINTS;-

1-मध्‍यप्रदेश राज्‍य के उज्जैन शहर में महाकालेश्‍वर मंदिर स्थित है। इसे भारत के 12 प्रमुख ज्‍योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। पुण्यसलिला क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन प्राचीनकाल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था, इसे अवंतिकापुरी भी कहते थे। यह स्थान हिंदू धर्म की 7 पवित्र पुरियों में से एक है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है।1235 ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया।

2-महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है। यहां कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से गर्भगृह तक की दूरी तय करनी पड़ती है। इस मार्ग में कई सारे पक्के चढ़ाव उतरने पड़ते हैं परंतु चौड़ा मार्ग होने से यात्रियों को अधिक ‍परेशानियां नहीं आती है। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए पक्की सीढ़ियां बनी हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है।वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है वह तीन खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य के खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। ज्योतिष में जिसका विशेष महत्व है। इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्ज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है। इस कक्ष में बैठकर हजारों श्रद्धालु शिव आराधना का पुण्य लाभ लेते हैं। 3-महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबंधित भारतीय पुराणों में अलग-अलग कथाओं का वर्णन मिलता है। एक कथा के अनुसार अवंतिका नाम के राज्य में वृषभसेन नाम के राजा राज्य करते थे। वे अपना अधिकतर समय शिव पूजा में लगाते रहते थे। एक बार पड़ोसी राजा ने वृषभसेन के राज्य पर हमला बोल दिया। वृषभसेन ने पूरे साहस के साथ इस युद्ध का सामना किया और जीत हासिल की। अपनी हार का बदला लेने के लिए पड़ोसी राजा ने कोई और उपाय सोचा। इसके लिए उसने एक असुर की सहायता ली। उस दैत्य को अदृश्य होने का वर प्रदान था।पड़ोसी राजा ने उस दैत्य की मदद से अवंतिका राज्य पर हमला बोल दिया। राजा वृषभसेन ने इन हमलों से बचने के लिए भगवान शिव की शरण ली। भक्त की पुकार सुन कर भगवान साक्षात अवंतिका राज्य मं प्रकट हुए। उन्होंने असुरों और पड़ोसी राजाओ से प्रजा की रक्षा की। इस पर राजा वृषभसेन और प्रजा ने भगवान शिव से अवंतिका राज्य में ही रहने का आग्रह किया।जिससे भविष्य में अन्य आक्रमण से बचा जा सके। भक्तों के आग्रह के कारण भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रुप में वहां पर प्रकट हुए।

4-कहा जाता है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है । यह एक दक्षिणमुखी ज्‍योतिर्लिंग है। शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज जी है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में आकर सच्चे मन से भगवान शिव की प्रार्थना करता है उसे मृत्यु के बाद मिलने वाली यातनाओ से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि यहां आकर भगवान शिव के दर्शन करने से अकाल मृत्यु टल जाती है और व्यक्ति को सीधा मोक्ष प्राप्त होता है।यहां आने से भगवान शिव धन, धान्य, निरोगी काया, लंबी आयु, संतान आदि इच्छाें पूर्ण करते हैं।यहां पहले महाकाल की भस्म आरती में ताजा मुर्दे की भस्म का ही प्रयोग होता था परंतु महात्मा गांधी के आग्रह के उपरांत शास्त्रीय विधि से निर्मित उपल-भस्म से भस्मार्ती होने लगी।

14-उज्जैन मे 84 महादेव;-

उज्जैन मे 84 महादेव है इनमे से 4 श्री महाकाल के द्वारपाल हैं। यह उज्जैन की चार दिशाओ मे हैं

1-श्री पिंगलेश्वर महादेव ( पूर्व )

2-श्री कायावरोहणेश्वर महादेव (दक्षिण)

3-श्री बिल्बकेश्वर महादेव (उत्तर )

4-श्री दुर्दरेश्वर महादेव (पश्चिम)

14-1-उज्जैन मे 84 महादेव का महत्व ;- महाकाल की नगरी उज्जैन स्थित 84 महादेवों की अर्चना श्रावण माह में विशेष रूप से की जाती है जब पुरुषोत्तम मास (अधिक मास ) आता है, तब भी दर्शन यात्रा की जाती हैं । स्कन्द पुराण के अनुसार 84 लाख योनियों का भ्रमण करते हुए, मानव योनि में आते है, तो मानव योनि में आने के बाद में 84 लाख योनियों के भ्रमण में , हम से जो भी दोष हुआ हो , तो इन 84 महादेव के दर्शन करने से सारे दोषो का निराकरण होता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रलय होने पर 84 महादेव ही अचल रहेंगे।शिव महापुराण के अनुसार दूषण नाम का राक्षस था उसको वर था , कि जहां उसका रक्त गिरेगा वहां पर 84 रूप धारण कर लेगा ।जैसे ही शंकर भगवान ने दूषण राक्षस को मारा तो शिप्रा को आने में ,देरी हो गई तो राक्षस ने 84 रूप धारण कर लिए ।चारो और हाहाकार हो गया इसे देखकर बहन शिप्रा ने अपने भाई शंकर पर जल की वर्षा कर दी , जैसे ही जल बहा , तो शंकर जी के 84 टुकड़े हो गए और दूषण राक्षस के 84 रूप , का संहार कर दिया यह टुकड़े पूरी उज्जैनी में , महादेव के रूप में है ।पूरे विश्व में एक ही जगह है उज्जैन जहां पर , 84 महादेव हैं।उज्जैन के 84 महादेव इस प्रकार है -

1-श्री अगस्तेश्वर महादेव : हरसिध्दि मंदिर के पीछे संतोषी माता के मंदिर मे यात्रा यही से प्रारंभ होती है , तथा अन्त मे पुनः श्री अगस्तेश्वर महादेव के दर्शन -पूजन के उपरांत संपूर्ण होती है ।

2-श्री गुहेश्वर महादेव : शिप्रा किनारे रामघाट पर बिना शिखर का मंदिर , श्री धर्मराजजी मंदिर के पास नदी किनारे ।

3-श्री ढूंढेश्वर महादेव : शिप्रा किनारे रामघाट के सामने सीढी पर बाए हाथ पर ।

4-श्री डमरूकेश्वर महादेव : रामघाट पर राम सीढी पर ।

5-श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव : महाकाल मंदिर क्षेत्र के जूना महाकाल मंदिर के पास ।

6-श्री स्वर्णज्वालेश्वर महादेव : राम सीढी पर श्री ढूंढेश्वर महादेव के ऊपर ।

7-श्री त्रिविष्टेश्वर महादेव : महाकाल मंदिर क्षेत्र मे ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे महाकाल के सभा मंडप की सीढी के पास ।

8-श्री कपालेश्वर महादेव : श्री अवन्तिपाश्वनाथ तीर्थ के चौराहा से बड़े पुल जाने पर घाटी पर बाए हाथ पर ।

9-श्री स्वर्णद्वारपालेश्वर महादेव : महाकाल के चौराहा से हरिफाटक ब्रिज जाने पर बाए हाथ पर पुलिया के नीचे।

10-श्री कर्कोटेश्वर महादेव : हरसिध्दि मंदिर के परिसर मे ।

11-श्री सिद्धेश्वर महादेव : सिद्धनाथ मंदिर मे सिद्धनाथ घाट के नये दरवाज़े के पास ।

12-श्री लोकपालेश्वर महादेव : कार्तिक चौक से रघुवंशी मार्ग से दाए हाथ के तरफ की गली मे सीधे चौक मे।

13-श्री मनकामेश्वर महादेव : शिप्रा नदी के छोटे पुल से रामघाट जाने के मार्ग , गधर्व घाट पर उदासीन अखाड़े के पास ।

14-श्री कुटुम्बकेश्वर महादेव : कार्तिक चौक सिंहपुरी मे श्री गोवर्धन नाथजी की हवेली (पुष्टिमार्गीय ) से आगे ।

15-श्री इंददयुम्नेश्वर महादेव : पटनी बाजार से मोदीजी के गली मे खोखो माता मंदिर से पहले ।

16-श्री ईशानेश्वर महादेव : श्री इंददयुम्नेश्वर महादेव से पहले ।

17-श्री अप्सरेश्वर महादेव : पटनी बाजार के पास सुगंधी गली मे ।

-18श्री कलकलेशश्वर महादेव : श्री ईशानेश्वर महादेव से आगे की पहली गली मे दाए हाथ तरफ ।

19-श्री नागचंद्रेश्वर महादेव : पटनी बाजार के पास नागनाथ की गली मे ।

20-श्री प्रतिहारेश्वर महादेव : श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर के परिसर मे ।

21-श्री कुक्कुटेश्वर महादेव : शिप्रा नदी के छोटे पुल से रामघाट जाने के मार्ग पर उदासीन अखाड़े के पास

22--श्री कर्कटेश्वर महादेव : ढाबा रोड से दानी गेट पर श्री पोरवाल धर्मशाला के पास गली से सीधे अंदर सीधे हाथ पर ।

23-श्री मेघनादेश्वर महादेव: सतीगेट से गोपाल मंदिर मार्ग पर पहली गली, छोटा सराफा में नरसिंग मंदिर के पीछे ।

24-श्री महालयेश्वर महादेव : श्री सिद्धेश्वर महादेव के पीछे लेफ्ट साइड की गली में चौक में ।

25-श्री मुकक्तेश्वर महादेव : श्री सिद्धेश्वर महादेव के पीछे राइट साइड की गली में लेफ्ट साइड की पहली गली में अंदर ।

26-श्री सोमेश्वर महादेव : श्री अवन्तिपाश्वनाथ तीर्थ के चौराहा से बड़े पुल जाने पर घाटी पर राइट साइड में रोड पर ।

27-श्री अनकेश्वर महादेव: आगर रोड पर मकोडियाम चौराहे से अंकपात जाने के मार्ग पर बिजली घर से आगे लेफ्ट साइड की पहली गली इनिदरा नगर में पानी की टंकी से पहले की गली में अंदर ।

28-श्री जटेशश्वर महादेव : अंकपात चौक से मकोडियाम जाने की सड़क पर मंदिर के आँगन में नया मंदिर ।

29-श्री रामेश्वर महादेव: सती दरवाजे के पास रामेश्वर गली में ।

30-श्री च्यवनेश्वर महादेव : अंकपात से इंदिरा नगर जाने के मार्ग में ईद गहा के पास ।

31-श्री खंडेश्वर महादेव: आगर रोड मकोडियाम से आगे आर डी गार डी कॉलेज के रोड पर ही खिलची पर गाँव में टीले पर ।

32-श्री पत्तेश्वर महादेव :आगर रोड मकोडियाम से आगे आर डी गार डी कॉलेज के रोड पर पुलिया से पहले ।

33-श्री आनंदेश्वर महादेव : चक्क्रतीर्थ के गेट से आगे राइट साइड में ऊपर ।

34-श्री कन्थडेश्वर महादेव : सिद्धनाथ मंदिर के सामने की गली में भैरवगढ़ गाँव के अंदर , ऊपर घाटी पर ।

35-श्री इन्द्रेश्वर महादेव: श्री अवन्तिपाश्वनाथ तीर्थ के चौराहा से बड़े पुल जाने पर घाटी के ठीक ऊपर रोड पर लेफ्ट साइड में रोड पर ।

36-श्री मार्कण्डेश्वर महादेव: अंकपात मार्ग में राम लक्ष्मण मंदिर के पास विष्णुसागर पर ।

37-श्री शिवेश्वर महादेव : राम लक्ष्मण मंदिर की सीढ़ी पर ।

38-श्री कुसुमेश्वर महादेव : राम लक्ष्मण मंदिर परिसर में द्वारकाधीश मंदिर की सीडी के नीचे ।

39-श्री अक्रूरेश्वर महादेव : राम लक्ष्मण मंदिर के बाहर ठीक सामने ।

40-श्री कुण्डेश्वर महादेव : अंकपात में अंकपात चुरहे से आगे बैठक जी के परिसर में ।

41-श्री लुम्पेश्वर महादेव :भैरव गढ़ पुल के पार सीधे हाट की तरफ पुलिस लाइन में अंदर ।

42-श्री गंगेश्वर महादेव : मंगल नाथ चौक में नदी के किनारे ।

43-श्री अंगारेश्वर महादेव : मंगल नाथ के पीछे कामड़ गाँव में ।

44-श्री उत्तरारेश्वर महादेव :मंगलनाथ चौक में श्री गंगेश्वर महादेव के आगे ।

45-श्री त्रिलोचनेश्वर महादेव : मंगलनाथ रोड से लालबई फुलबई मार्ग में लेफ्ट साइड की गली में राईट साइड की गली में ।

46-श्री वीरेश्वर महादेव :ढाबा रोड सत्यनारायण मंदिर के पास ।

47-श्री नुपूरेश्वर महादेव : डाबरीपीठा मे सुतरगली मे ।

48-श्री अभयेश्वर महादेव : ढाबा रोड से दानी गेट पर श्री पोरवाल धर्मशाला से आगे नदी मार्ग पर लेफ्ट साइड की पहली गली मे अंदर ।

49-श्री प्रथुकेश्वर महादेव :शिप्रा नदी के छोटे पुल से राम बाग़ जाने के मार्ग पर नदी की रपट के पास श्री कैदारेशश्वर महादेव मे ।

50-श्री स्थावरेश्वर महादेव : श्री कालिदास मोन्टेसरी स्कूल बाम्बाखाना के सामने , नईपेठ मे शनि मंदिर में अंदर ।

51-श्री सुलेश्वर महादेव :ढाबा रोड से दानी गेट पर श्री पोरवाल धर्मशाला के पास मे गली से आगे श्री कर्कटेश्वर महादेव से आगे लेफ्ट साइड की गली में अंदर ।

52-श्री ओंकारेश्वर महादेव :गोपाल मंदिर से कमरी मार्ग जाते समय लेफ्ट साइड की पहली गली से सीधे अंदर ।

53-श्री विश्वेश्वर महादेव : श्री ओंकारेश्वर महादेव से आगे राइट साइड की गली के कोने पर ।

54-श्री नीलकण्ठेश्वर महादेव: पीपलीनाका चौराहा से बी पास रोड पर राइट साइड में रोड पर ।

55-श्री सिंहेश्वर महादेव: गढकालिका मे गणपति मंदिर से आगे ।

56-श्री रेवन्तेवर महादेव : खाती मंदिर से कार्तिक चौक मार्ग पर मंदिर मे ।

57-श्री घण्टेश्वर महादेव: कार्तिक चौक के तिराहे पर ।

58--श्री प्रयागेश्वर महादेव : शिप्रा के बडेपुल से पीपलीनाका जाने के मार्ग मे ऋणमुक्तेश्वर मंदिर से पहले ।

59-श्री सिद्धेश्वर महादेव : गोपाल मंदिर के पीछे गली मे ।

60-श्री मातंगेश्वर महादेव : टंकी चौराहा के पास पिजारवाड़ी मे ।

61-श्री सौभाग्येश्वर महादेव : पटनी बाजार के पास सौभाग्येश्वर की गली मे ।

62-श्री रुपेशश्वर महादेव : सिंहपुरी मे आताल -पाताल भैरव से श्री गोवर्धन नाथजी के हवेली जाने के मार्ग मे लेफ्ट साइड की गली मे अंदर ।

63-श्री धनुसहस्त्रेश्वर महादेव : पिपलीनाका से तिलकेश्वर मंदिर के पास की गली मे अंदर , महाजन बस्ती मे ।

64-श्री पशुपत्तेश्वर महादेव : सब्जी मंडी से चक्रतीर्थ के बीच बाय पास मे पहली , गली मे घाटी ऊपर ।

65-श्री ब्रह्मेश्वर महादेव : ढाबा रोड़ से दानी गेट मार्ग , पोरवाल धर्मशाला के पास को गली में अंदर बाये हाथ की पहली गली में ।

66-श्री जल्पेश्वर महादेव : बड़े पुल से गांधी उद्यान से पहले राइट साइड के रास्ते मे नदी के पास ।

67-श्री केदारेश्वर महादेव : शिप्रा नदी के छोटी पुलिया से राम बाघ मार्ग पर पुलिया के राइट साइड में मंदिर ।

68-श्री पिशाचमुक्तेश्वर महादेव : रामघाट पर नदी के किनारे ।

69-श्री संगमेश्वर महादेव :श्री अगस्तेश्वर महादेव मंदिर के बाजू मे गेट से सीधे , नीचे सीढ़ी से नीचे ।

70-श्री दुर्घटेश्वर महादेव : शिप्रा नदी के गंधर्व घाट पर श्री मनकामनेश्वर महादेव के पास श्री कुक्कुटेश्वर महादेव के पास ।

71-श्री प्रयागेश्वर महादेव : कार्तिक चौक से रघुवंशी मार्ग से दाए हाथ के तरफ की गली मे सीधे चौक मे। श्री लोकपालेश्वर महादेव के पास ।

72-श्री चन्द्रादित्येश्वर महादेव : श्री महाकाल मंदिर के सभामंडप ,कुण्ड के पास मंदिर के अंदर , शंकराचार्या के मूर्ति के पास ।

73-श्री करभरेश्वर महादेव :भैरवगढ में कालभैरव मंदिर के सामने ,पुलिया के पास ।

74-श्री राजस्थलेश्वर महादेव : भागसीपुरा मे आनन्दभैरव के पास के गली मे , कोने पर ।

75-श्री बड़ेलेश्वर महादेव : श्री सिद्धनाथ मंदिर (भैरवगढ ) , पर सिद्धवट के सामने ।

76-श्री अरुणेश्वर महादेव : रामघाट पर राम सीढी के किनारे , श्री धर्मराज महाराज के बाजू मे , राम सीढी से पहले ।

77--श्री पुष्पदन्तेश्वर महादेव : कार्तिक चौक के तिराहे , से रघुवंशी मार्ग जाने पर लेफ्ट साइड की गली मे घाटी के ऊपर ।

78--श्री अभिमुक्तेश्वर महादेव: सिंहपुरी मार्ग में मंगल नाथ से आगे ।

79--श्री हनुमंतेश्वर महादेव : गढकालिका क्षेत्र मे श्री सिंहेश्वर महादेव , से आगे ।

80-श्री स्वप्नेश्वर महादेव : श्री महाकाल मंदिर परिसर मे ।

81-श्री पिंगलेश्वर महादेव : फ्रीगंज से मक्सीरोड पर श्री सिंथेटिक फैक्ट्री के पास के रास्ते मे बहुत अंदर , रेलवे के पुलिया के नीचे होते हुए ।

82-श्री कायावरोहणेश्वर महादेव : त्रिवेणी से तपोभूमि के पास के रास्ते , से बहुत अंदर करोहण गावँ मे ।

83-श्री बिल्बकेश्वर महादेव : गंभीर डेम मार्ग पर , ग्राम अम्बोदिया में श्री सेवाधाम आश्रम के ठीक सामने ।

84-श्री दुर्दरेश्वर महादेव : आर. डी गार्डी मेडिकल कॉलेज से आगे , सीधे जैथल गावँ में बहुत अंदर ।

उज्जैन के 84 महादेव यात्रा क्षेत्र के अनुसार इस प्रकार है - (1). हरसिध्दि मंदिर और शिप्रा नदी : -

श्री अगस्तेश्वर महादेव, श्री संगमेश्वर महादेव,श्री कर्कोटेश्वर महादेव :(हरसिध्दि मंदिर के परिसर मे )

, श्री स्वर्णज्वालेश्वर महादेव ,श्री ढूंढेश्वर महादेव, श्री अरुणेश्वर महादेव , श्री गुहेश्वर महादेव, श्री पिशाचमुक्तेश्वर महादेव,श्री डमरूकेश्वर महादे,श्री मनकामेश्वर महादेव,श्रीकुक्कुटेश्वर महादेव,श्रीदुर्घटेश्वर महादेव,श्री केदारेश्वर महादेव,

श्री प्रथुकेश्वर महादेव महाकाल मंदिर क्षेत्र :-

श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव : महाकाल मंदिर क्षेत्र के जूना महाकाल मंदिर के पास ।

श्री त्रिविष्टेश्वर महादेव : महाकाल मंदिर क्षेत्र मे ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे महाकाल के सभा मंडप की सीढी के पास

श्री चन्द्रादित्येश्वर महादेव : श्री महाकाल मंदिर के सभामंडप ,कुण्ड के पास मंदिर के अंदर , शंकराचार्या के मूर्ति के पास,श्री स्वप्नेश्वर महादेव : श्री महाकाल मंदिर परिसर मे ।श्री स्वर्णद्वारपालेश्वर महादेव : महाकाल के चौराहा से हरिफाटक ब्रिज जाने पर बाए हाथ पर पुलिया के नीचे।

चक्क्रतीर्थ :-

श्री आनंदेश्वर महादेव : चक्क्रतीर्थ के गेट से आगे राइट साइड में ऊपर । (2 ). कार्तिक चौक :-

श्री घण्टेश्वर महादेव, श्री रेवन्तेवर महादेव, श्री कुटुम्बकेश्वरमहादेव, श्री पुष्पदन्तेश्वर महादेव, श्री रुपेशश्वर महादेव, श्री अभिमुक्तेश्वर महादेव,श्रीलोकपालेश्वर महादेव, श्री प्रयागेश्वर महादेव

(3 ) ढाबा रोड, दानी गेट , खटीकवाङा , अनंत पेठ , चक्रतीर्थ , बड़े पुल

श्री ब्रह्मेश्वर महादेव,श्री कर्कटेश्वर महादेव, श्री सुलेश्वर महादेव,श्री विश्वेश्वर महादेव,

श्रीओंकारेश्वर महादेव , श्री अभयेश्वर महादेव,श्री सोमेश्वर महादेव,

श्री कपालेश्वर महादेव,श्री इन्द्रेश्वर महादेव,श्री जल्पेश्वर महादेव ,

श्री वीरेश्वर महादेव (ढाबा रोड सत्यनारायण मंदिर के पास ।)

(4 )पिपलीनाका, गढकालिका क्षेत्र

श्री पशुपत्तेश्वर महादेव,श्री धनुसहस्त्रेश्वर महादेव,श्री प्रयागेश्वर महादेव,श्री नीलकण्ठेश्वर महादेव,

श्री सिंहेश्वर महादेव,श्री हनुमंतेश्वर महादेव

(5)नयापुरा ,अंकपात मार्ग, मंगल नाथ , कालभैरव, श्री सिद्धनाथ मंदिर

श्री त्रिलोचनेश्वर महादेव, श्री मार्कण्डेश्वर महादेव,श्री शिवेश्वर महादेव,श्री कुसुमेश्वर महादेव,

श्री अक्रूरेश्वर महादेव,श्री कुण्डेश्वर महादेव,श्री च्यवनेश्वर महादेव,श्री जटेशश्वर महादेव,

श्री अनकेश्वर महादेव, श्री गंगेश्वर महादेव, , श्री उत्तरारेश्वर महादेव, ,श्री अंगारेश्वर महादेव

श्री बड़ेलेश्वर महादेव, श्री सिद्धेश्वर महादेव, श्री कन्थडेश्वर महादेव ,श्री लुम्पेश्वर महादेव,

श्री करभरेश्वर महादेव

(6 )आगर रोड ,मकोडिया आम , जैथल गावँ

श्री खंडेश्वर महादेव,श्री पत्तेश्वर महादेव, श्री दुर्दरेश्वर महादेव

(7 )सती गेट , छत्री चौक (टंकी चौराहा), छोटा सराफा , नई पेठ , भागसीपुरा ,पटनी बाजार

श्री रामेश्वर महादेव,श्री नुपूरेश्वर महादेव ( डाबरीपीठा मे सुतरगली मे ) ,श्री मातंगेश्वर महादेव,

श्री मेघनादेश्वर महादेव, श्री स्थावरेश्वर महादेव,

श्री राजस्थलेश्वर महादेव,श्री नागचंद्रेश्वर महादेव, श्री प्रतिहारेश्वर महादेव, श्री ईशानेश्वर महादेव,

श्री इंददयुम्नेश्वर महादेव, श्री कलकलेशश्वर महादेव,श्री अप्सरेश्वर महादेव, श्री सिद्धेश्वर महादेव

श्री मुकक्तेश्वर महादेव,श्री महालयेश्वर महादेव,श्री सौभाग्येश्वर महादेव

(8 ) गंभीर डेम मार्ग ग्राम अम्बोदिया

श्री बिल्बकेश्वर महादेव

(9 )त्रिवेणी से तपोभूमि के पास के रास्ते , से करोहण गावँ

श्री कायावरोहणेश्वर महादेव

(10 ) फ्रीगंज पुल से मक्सीरोड पर श्री सिंथेटिक फैक्ट्री के पास के रास्ते मे , पिंगलेश्वर गावँ

श्री पिंगलेश्वर महादेव


...SHIVOHAM....


.....SHIVOHAM....


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