विज्ञान भैरव तंत्र की श्वास-क्रिया से संबंधित,ध्यान की महत्वपूर्ण नौ विधियां क्या है? PART-03..
भैरव तंत्र श्वास-क्रिया से संबांधित विधियां;-
ध्यान की छठी श्वास विधि;-
06 FACTS;-
1-भगवान शिव कहते है: -
''सांसरिक कामों में लगे हुए, अवधान/ Attention को दो श्वासों के बीच टिकाओ। इस अभ्यास से थोड़े ही दिन में नया जन्म होगा''।
2-“सांसारिक कामों में लगे हुए।” यह छठी विधि निरंतर करने की है। इसलिए कहा गया है, “सांसारिक कामों में लगे हुए….” जो भी तुम कर रहे हो, उसमे अवधान को दो श्वासों के अंतराल में स्थिर रखो। लेकिन काम-काज में लगे हुए ही इसे साधना है।“सांसरिक कामों में लगे हुए, अवधान को दो श्वासों के बीच टिकाओ…।”श्वासों को भूल जाओं और उनके बीच में अवधान को लगाओ। एक श्वास भीतर आती है। इसके पहले कि वह लौट जाए, उसे बाहर छोड़ा जाए, वहां एक अंतराल होता है।
इसे सांसारिक कामों में लगे हुए ही करना है ;उससे अलग होकर इसे मत करो। यह साधना ही तब करो जब तुम कुछ और
काम कर रहे हो।उदाहरण के लिए तुम भोजन कर रहे हो, भोजन करते जाओ और अंतराल पर अवधान रखो। तुम चल रहे हो, चलते जाओ और अवधान को अंतराल पर टिकाओ। तुम सोने जा रहे हो, लेटो और नींद को आने दो। लेकिन तुम अंतराल के प्रति सजग रहो।
3-वास्तव में,काम-काज मन को डांवाडोल करता है;तुम्हारे अवधान को बार-बार भुलाना पड़ता है।तो काम-काज में
डांवाडोल न हों और अंतराल में स्थिर रहें। तब तुम्हारे अस्तित्व के दो तल हो जाएंगे ...करना ओर होना अथार्त एक करने का जगत और दूसरा होने का जगत। एक परिधि है और दूसरा केंद्र। परिधि पर काम करते रहो, रूको नहीं; लेकिन केंद्र पर भी सावधानी से काम करते रहो।तब तुम्हारा काम-काज अभिनय हो जाएगा। मानों तुम कोई पार्ट अदा कर रहे हो। उदाहरण के लिए, तुम किसी नाटक में पार्ट कर रहे हो और तुम श्रीराम बने हो। यद्यपि तुम श्रीराम का अभिनय करते हो, तो भी तुम स्वयं बने रहते हो। केंद्र पर तुम जानते हो कि तुम कौन हो और परिधि पर तुम श्रीराम या किसी का पार्ट अदा करते हो। तुम जानते हो कि तुम श्रीराम नहीं हो, श्रीराम का अभिनय भर कर रहे हो। तुम कौन हो तुमको मालूम है। तुम्हारा अवधान तुममें केंद्रित है और तुम्हारा काम परिधि पर जारी है।
4-यदि इस विधि का अभ्यास हो तो पूरा जीवन एक लंबा नाटक बन जाएगा। तुम एक अभिनेता होगें। अभिनय भी करोगे और सदा अंतराल में केंद्रित रहोगे। जब तुम अंतराल को भूल जाओगे, तब तुम अभिनेता नहीं रहोगे, तब तुम कर्ता हो जाओगे। तब वह नाटक नहीं रहेगा। उसे तुम भूल से जीवन समझ लोगे और यही हम सबने किया है।हर मनुष्य सोचता है कि वह जीवन जी
रहा है लेकिन यह जीवन नहीं बल्कि एक रोल , एक पार्ट है, जो समाज ने, परिस्थितियों ने, संस्कृति ने, देश की परंपरा ने तुमको थमा दिया है। तुम अभिनय कर रहे हो और तुम इस अभिनय के साथ तादात्म्य /Identify भी कर बैठे हो। उसी तादात्म्य को तोड़ने के लिए यह विधि है।श्रीकृष्ण के अनेक नाम है, वे सबसे कुशल अभिनेताओं में से एक है। वे सदा अपने में स्थिर है और लीला कर रहे है, बिलकुल गैर-गंभीर है। गंभीरता तादात्म्य से पैदा होती है।यदि नाटक में तुम सच ही श्रीराम हो जाओ तो
अवश्य समस्याएं खड़ी होगी। जब-जब माता सीता का हरण होगा , तो तुमको दिल का दौरा पड़ सकता है और पूरा नाटक बंद हो जाना भी निश्चित है। लेकिन अगर तुम बस अभिनय कर रहे हो तो माता सीता के हरण से तुमको समस्याएं नहीं होगी । तुम अपने घर लौटोगे और चैन से सो जाओगे।
5-कहते है कि वाल्मीकि ने श्रीराम के जन्म से पहले ही रामायण लिख दी। श्रीराम को केवल उसका अनुगमन करना था। इसलिए वास्तव में श्रीराम का पहला कृत्य भी अभिनय ही था। उनके जन्म के पहले ही कथा लिख दी गई थी, उन्हें तो केवल उसका अनुगमन करना था । एक तरह से माता सीता का हरण होना था और युद्ध का लड़ा जाना था...सब कुछ नियम था।
यदि तुम यह समझ सकते हो तो भाग्य के सिद्धांत को भी समझ सकते हो। इसका बड़ा गहरा अर्थ है, और अर्थ यह है कि यदि तुम समझ जाते हो कि तुम्हारे लिए यह सब कुछ नियम है तो जीवन नाटक हो जाता है। यदि जीवन नियत है, तो तुम उसे
बदल नहीं सकते। उदाहरण के लिए, एक विशेष दिन को तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। यह नियत है। और तुम जब मरोगे तब रो रहे होगें; यह भी निश्चित है। और फलां-फलां लोग तुम्हारे पास होंगे। यह भी तय है। और यदि सब कुछ नीयत है, तय है, तब सब कुछ नाटक हो जाता है।
6- यदि सब कुछ निश्चित है तो उसका अर्थ हुआ कि तुम केवल उसे अंजाम देने वाले हो। तुमको उसे जीना नहीं है। उसका अभिनय करना है।यह विधि, छठी विधि , तुमको एक साइकोड्रामा, एक खेल बना देती है। तुम दो श्वासों के अंतराल में स्थिर हो और जीवन परिधि/ The circumference of a circle, पर चल रहा है। यदि तुम्हारा अवधान केंद्र पर है, तो तुम्हारा अवधान परिधि पर नहीं है। परिधि पर जो है वह उपावधान / Sub Attention है, वह कहीं तुम्हारे अवधान के पास घटित होता
है। तुम उसे अनुभव कर सकते हो, उसे जान सकते हो, पर वह महत्वपूर्ण नहीं है। यह ऐसा है जैसे तुमको नहीं घटित हो रहा है।इस छठी विधि की साधना से तुम्हारा समूचा जीवन ऐसा हो जाएगा जैसे वह तुमको न घटित होकर किसी दूसरे व्यक्ति को घटित हो रहा है।
ध्यान की सातवीं श्वास विधि:-
11 FACTS;-
1-भगवान शिव कहते है: -
''ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास (प्राण) को टिकाओ। जब वह सोने के क्षण में ह्रदय तक पहुंचेगा तब स्वप्न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।''
2-तुम अधिकारिक गहरी पर्तों में प्रवेश कर रहे हो।“ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास (प्राण) को टिकाओ।”अगर तुम तीसरी आँख
को जान गए हो तो तुम ललाट के मध्य में स्थिर सूक्ष्म श्वास को, अदृश्य प्राण को जान गए, और तुम यह भी जान गए कि वह उर्जा, वह प्रकाश बरसता है।“जब वह सोने के क्षण में ह्रदय तक पहुंचेगा..जब वह वर्षा तुम्हारे ह्रदय तक पहुँचेगी ...”तब स्वप्न
और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।”इस विधि को तीन हिस्सों में डिवाइड कर सकते है..ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास प्राण को टिकाना ,उसका सूक्ष्म, अदृष्य, अपार्थिव अंश को अनुभव करना और अदृश्य प्राण को ह्रदय तक जाते देखना और नींद ,सपनों और स्वयं मृत्यु के प्रति भी सजग होना। श्वास के भीतर जो प्राण है, जो उसका सूक्ष्म, अदृष्य, अपार्थिव अंश है, तुमको उसे अनुभव करना होगा। यह तब होता है, जब तुम भृकुटियों के बीच अवधान को स्थिर रखते हो। तब यह आसानी से घटित होता है। अगर तुम अवधान को अंतराल में टिकाते हो, तो भी घटित होता है, मगर उतनी आसानी से नहीं। यदि तुम नाभि केंद्र के प्रति सजग हो, जहां श्वास आती है और छूकर चली जाती है। तो भी यह घटित होता है, पर कम आसानी से। उस सूक्ष्म प्राण को जानने का सबसे सुगम मार्ग है, तीसरी आँख में स्थिर होना। वैसे तुम जहां भी केंद्रित होगें ,वह घटित होगा। तुम प्राण को प्रभावित होते अनुभव करोगे।
3-यदि तुम प्राण को अपने भीतर प्रवाहित होता अनुभव कर सको तो तुम यह भी जान सकते हो कि कब तुम्हारी मृत्यु होगी। यदि तुम सूक्ष्म श्वास को, प्राण को महसूस करने लगे। तो मरने के छह महीने पहले से तुम अपनी आसन्न मृत्यु को जानने लगते हो। कैसे इतने संत अपनी मृत्यु की तिथि बना देते है? यह आसान है। क्योंकि यदि तुम प्राण के प्रवाह को जानते हो तो जब उसकी गति उलट जाएगी। तब उसको भी तुम जान लोगे। मृत्यु के छह महीने पहले प्रक्रिया उलट जाती है। तुम्हारी प्राण ऊर्जा बाहर जाने लगती है। तब श्वास इसे भीतर नहीं ले जाती, बल्कि उलटे बाहर ले जाने लगती है ।तुम इसे जान पाते हो,
क्योंकि तुम उसके अदृश्य भाग को नहीं देखते, केवल वाहन को ही देखते हो। और वाहन तो एक ही रहेगा। अभी श्वास प्राण को भीतर ले जाती है और वहां छोड़ देती है। फिर वाहन बाहर खाली वापस जाता है। और प्राण से पुन: भरकर भीतर जाता है। इसलिए याद रखो कि भीतर आने वाली श्वास और बाहर जाने वाली श्वास, दोनों एक नहीं है। वाहन के रूप में तो पूरक श्वास/ Inhaleऔर रेचक श्वास / Exhale एक ही है, लेकिन जहां पूरक प्राण से भरा होता है। वहीं रेचक उससे रिक्त रहता है।तुमने प्राण को पी लिया और श्वास खाली हो गई।
4-जब तुम मृत्यु के करीब होते हो,तब उलटी प्रक्रिया चालू होती है। भीतर आने वाली श्वास प्राण विहीन ,रिक्त आती है। क्योंकि तुम्हारा शरीर अस्तित्व से प्राण को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है। तुम मरने वाले हो, तुम्हारी जरूरत न रही। पूरी प्रक्रिया उलट जाती है। अब जब श्वास बाहर जाती है, जब प्राण को साथ लिए बाहर जाती है।इसलिए जिसने सूक्ष्म प्राण को
जान लिए वह अपनीमृत्यु का दिन भी तुरंत जान सकता है। छह महीने पहले प्रक्रिया उलटी हो जाती है।यह सूत्र बहुत
महत्वपूर्ण है।जब तुम नींद में उतर रहे हो, तभी इस विधि को साधना है, अन्य समय में नहीं। ठीक सोने का समय इस विधि के अभ्यास के लिए उपयुक्त समय है।तुम नींद में उतर रहे हो,धीरे-धीरे नींद तुम पर हावी हो रही है।कुछ ही क्षणों के भीतर
तुम्हारी चेतना लुप्त होगी। तुम अचेत हो जाओगे। उस क्षण के आने के पहले तुम अपनी श्वास और उसके सूक्ष्म अंश प्राण के प्रति सजग हो जाओ। और उसे ह्रदय तक जाते हुए अनुभव करो। अनुभव करते जाओ कि वह ह्रदय तक आ रहा है... ह्रदय तक आ रहा है। प्राण ह्रदय से होकर तुम्हारे शरीर में प्रवेश करता है, इसलिए यह अनुभव करते ही जाओ कि प्राण ह्रदय तक आ रहा है। और इस निरंतर अनुभव के बीच ही नींद को आने दो। तुम अनुभव करते जाओ और नींद को आने दो; नींद को तुमको अपने में समेट लेने दो।
5-यदि यह संभव हो जाए कि तुम अदृश्य प्राण को ह्रदय तक जाते देखो और नींद को भी, तो तुम अपने सपनों के प्रति भी सजग हो जाओगे। तब तुमको बोध रहेगा कि तुम सपना देखते हो तो तुम समझते हो कि यह यथार्थ ही है। वह भी तीसरी आँख के कारण ही संभव होता है। क्या तुमने किसी को नींद में देखा है। उसकी आंखे ऊपर चली जाती है, और तीसरी आँख में स्थिर
हो जाती है। यदि नहीं देखा तो देखो।तुम्हारा बच्चा सोया है, उसकी आंखे खोलकर देखो कि उसकी आंखे कहां है। उसकी आँख की पुतलियाँ ऊपर को चढ़ी है और त्रिनेत्र पर केंद्रित है। बच्चों को देखो, व्यस्को को नहीं क्योंकि वे भरोसे योग्य नहीं है। वे सोचते भर है कि सोये है लेकिन उनकी नींद गहरी नहीं है।इसी तीसरी आँख में स्थिरता के कारण तुम अपने सपनों को
सच मानते हो। तुम यह नहीं समझ सकते की वे सपने है। वह तुम तब जानोंगे, जब सुबह जागोगे। तब तुम जानोंगे कि यह स्वप्न है। यदि समझ जाओ तो दो तल हो गए..स्वप्न है और तुम सजग हो, जागरूक हो। जो नींद में स्वप्न के प्रति जाग सके, उसके लिए यह सूत्र चमत्कारिक है।
6-यह सूत्र कहता है: ‘’स्वप्न पर और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।‘’यदि तुम स्वप्न के प्रति जागरूक हो जाओ तो तुम
दो काम कर सकते हो।पहला कि तुम स्वप्न पैदा कर सकते हो और दूसरा तुम अपने स्वप्नों के मालिक हो सकते हो। आमतौर से तुम स्वप्न नहीं पैदा कर सकते। अगर तुम कोई खास स्वप्न देखना चाहो तो नहीं देख सकते; यह तुम्हारे हाथ में नहीं है। मनुष्य कितना शक्तिहीन है। स्वप्न भी उससे नहीं निर्मित किए जा सकते। तुम स्वप्नों के शिकार भर हो ,सृष्टा नहीं। स्वप्न तुम में घटित होता है परन्तु तुम कुछ नहीं कर सकते हो। न तुम उसे रोक सकते हो, न उसे पैदा कर सकते हो।
लेकिन अगर तुम यह देखते हुए नींद में उतरो कि ह्रदय प्राण से भर रहा है। निरंतर हर श्वास में प्राण से स्पर्शित हो रहा है तो तुम अपने स्वप्नों के मालिक हो जाओगे। और यह मलकियत बहुत अनूठी है, दुर्लभ है। तब तुम जो भी स्वप्न देखना चाहते हो, तुम वह स्वप्न देख सकते हो और सोते समय कहो कि मैं फलां स्वप्न देखना चाहता हूं और वह स्वप्न कभी तुम्हारे मन में प्रवेश नहीं कर सकेगा।
7-लेकिन अपने स्वप्नों के मालिक बनने का क्या प्रयोजन है। क्या यह व्यर्थ नहीं है? नहीं, यह व्यर्थ नहीं है। एक बार तुम स्वप्न के मालिक हो गए तो दुबारा तुम कभी स्वप्न नहीं देखोगें क्योंकि जरूरत नहीं रही। जैसे ही तुम अपने स्वप्नों के मालिक होते हो, स्वप्न बंद हो जाते है क्योंकि उनकी जरूरत नहीं रहती। और जब स्वप्न बंद हो जाते है, तब तुम्हारी नींद का गुण धर्म ही और होता है। वह गुणधर्म वही है, जो मृत्यु का है।वास्तव में,मृत्यु गहन नींद है। अगर तुम्हारी नींद मृत्यु की तरह गहरी हो
जाए तो उसका अर्थ है कि सपने विदा हो गए। सपने नींद को उथला करते है। सपनों के चलते तुम सतह पर ही घूमते रहते हो। सपनों में उलझे रहने के कारण तुम्हारी नींद उथली हो जाती है। और जब सपने नहीं रहते, तब तुम नींद के सागर में उतर जाते हो। उसकी गहराई छू लेते है और वही मृत्यु है।नींद छोटी मृत्यु है और मृत्यु लंबी नींद है। गुणात्मक रूप से दोनों समान है। नींद दिन है-दिन की मृत्यु है, मृत्यु जीवन है-जीवन की नींद है।
8-प्रतिदिन जब तुम थक जाते हो, तुम सो जाते हो, और दूसरी सुबह तुम फिर अपनी शक्ति और अपनी जीवंतता को वापस पा लेते हो। तुम मानो फिर से जन्म लेते हो। वैसे ही सत्तर या अस्सी वर्ष के जीवन के बाद तुम पूरी तरह थक जाते हो। अब छोटी अविधि की मृत्यु से काम नहीं चलेगा, अब तुमको बड़ी मृत्यु की जरूरत है। उस बड़ी मृत्यु या नींद के बाद तुम बिलकुल
नए शरीर के साथ पुनर्जन्म लेते हो। यदि एक बार तुम स्वप्न- शून्य नींद को जान जाओ और उसमे बोध पूर्वक रहो तो फिर मृत्यु का भय जाता रहता है।मृत्यु असंभव है।न कभी कोई मरा है और न कभी कोई मर सकता है । संसार में यदि कुछ असंभव है तो वह मृत्यु है क्योंकि अस्तित्व जीवन है। तुम फिर और फिर जन्मते हो। लेकिन नींद ऐसी गहरी है कि पुरानी पहचान भूल जाते हो। तुम्हारे मन से स्मृतियां पोंछ दी जाती है।
9-जब तुम मरते हो ओर फिर जन्म लेते हो तब तुमको याद नहीं रहता है कि कौन मरा। तुम फिर से शुरू करते हो।
इस विधि के द्वारा पहले तो तुम स्वप्नों के मालिक हो जाओगे। उसका अर्थ हुआ कि सपने आना बंद हो जाएंगे। या यदि तुम खुद सपने देखना चाहोगे तो सपना देख भी सकते हो। लेकिन तब वह ऐच्छिक सपना होगा। वह अनिवार्य नहीं रहेगा। वह तुम पर लादा नहीं जाएगा। तुम उसके शिकार नहीं होंगे। और तब तुम्हारी नींद का गुणधर्म ठीक मृत्यु जैसा हो जाएगा। तब तुम
जानोगे कि मृत्यु भी नींद है।इसलिए यह सूत्र कहता है: “स्वप्न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।” और तब तुम जानोंगे
कि मृत्यु एक लंबी नींद है और सहयोगी है, और सुंदर है। क्योंकि वह तुमको नव जीवन देती है ,सब कुछ नया देती है, फिर तो मृत्यु भी समाप्त हो जाती है। स्वप्न के शेष होते ही मृत्यु समाप्त हो जाती है।
10-मृत्यु पर नियंत्रण पाने, अधिकार पाने का दूसरा अर्थ भी है।अगर तुम समझ लो कि मृत्यु नींद है तो तुम उसको दिशा दे सकते हो। अगर तुम अपने सपनों को दिशा दे सकते हो। तो मृत्यु को भी दे सकते हो। तब तुम चुनाव कर सकते हो, कि कहां पैदा हो? कब पैदा हो, किससे पैदा हो, और किस रूप में पैदा हो, तब तुम अपने जीवन के मालिक होते हो।
अंतिम जन्म के पूर्व के जन्म में जब बुद्ध की मृत्यु हुई,(जब वे बुद्ध नहीं थे) तब मरने के पूर्व उन्होंने कहा: ‘’मैं अमुक मां पिता से पैदा होऊंगा, ऐसी मेरी मां होगी, ऐसे मेरे पिता होंगे, और मेरी मां मेरे जन्म के बाद ही मर जायेगी। और जब मैं जनम लूगां तो मेरी मां ऐसे-ऐसे सपने देखेगी। न तुमको सिर्फ अपने सपनों पर अधिकार होगा बल्कि दूसरे के स्वप्नों पर भी अधिकार हो जायेगा। सो बुद्ध ने उदाहरण के तौर पर बताया कि जब मैं मां के पेट में होऊंगा, तब मेरी मां ये-ये स्वप्न देखेगी। और जब कोई इस क्रम से इन स्वप्नों को देखे, तब तुम समझ जाना की मैं जन्म लेने वाला हूं और ऐसा ही हुआ।
11-बुद्ध की माता ने उसी क्रम से सपने देखे।और यह केवल गौतम बुद्ध के लिए ही सही नहीं है ;कई अन्यों के लिए भी सही है। प्रत्येक जैन तीर्थंकर ने अपने पिछले जन्म में भविष्यवाणी की थी कि उनका जन्म किस तरह होगा। उन्होंने भी स्वप्नों के क्रम , प्रतीक बताए थे, और कहा था कि किस तरह सब कुछ घटित होने वाला है।एक बार तुम अपने स्वप्नों को दिशा देने लगो तो सब कुछ को दिशा दे सकते हो। क्योंकि यह संसार स्वप्नों का ही बना हुआ है। और स्वप्नों का ही यह जीवन बना है। इसलिए जब तुम्हारा अधिकार सपने पर हुआ तब सब कुछ पर हो गया।अभी तो हम लोग शिकार है।हम नहीं जानते है कि क्यों जन्मते है, क्यों मरते है। कौन हमें चलाता है और क्यों? कोई कारण नहीं दिखाई देता है। सब कुछ अराजकता, संयोग जैसा दिख है। ऐसा इसलिए है कि हम मालिक नहीं है।एक बार मालिक हो जाएं तो फिर ऐसा नहीं रहेगा।
... SHIVOHAM...