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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान संबंधित 35,36 वीं ‎विधियों (देखने की सात विधियां)का क्या विवेचन है?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Jan 24, 2022
  • 8 min read

विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 35;- 07 FACTS;- 1-भगवान शिव कहते है:-

‘’किसी गहरे कुएं के किनारे खड़े होकर उसकी गहराइयों में निरंतर देखते रहो—जब तक विस्‍मय-विमुग्‍ध न हो जाओ।‘’

2-किसी गहरे कुएं में देखो; कुआं तुममें प्रतिबिंबित हो जाएगा। सोचना बिलकुल भूल जाओ; सोचना बिलकुल बंद कर दो; सिर्फ गहराई में देखते रहो क्योकि कुएं की भांति मन की भी गहराई है। मनोविज्ञान करता है कि मन कोई सतह पर ही नहीं

है। वह उसका आरंभ भर है। उसकी अनेक छिपी गहराइयां है। किसी कुएं में निर्विचार होकर झांको; गहराई तुममें प्रतिबिंबित हो जाएगी। कुआं भीतर गहराई का बाह्य प्रतीक है। और निरंतर झाँकते जाओ ..जब तक कि तुम विस्‍मय विमुग्‍ध न हो जाओ। जब तक ऐसा क्षण न आए झाँकते चले जाओ, झाँकते ही चले जाओ। दिनों हफ्तों, महीनों झाँकते रहो। किसी कुएं पर चले जाओ। उसमे गहरे देखो। लेकिन ध्‍यान रहे कि मन में सोच-विचार न चले। बस गहराई में ध्‍यान करो और गहराई के साथ एक हो जाओ।

3-ध्‍यान जारी रखो। किसी दिन तुम्‍हारे विचार विसर्जित हो जाएंगे।यह किसी क्षण भी हो सकता है। अचानक तुम्‍हें प्रतीत होगा। कि तुम्‍हारे भीतर भी वही कुआं है। वही गहराई है। और तब एक अजीब बहुत अजीब भाव का उदय होगा, तुम विस्‍मय विमुग्‍ध

अनुभव करोगे। चीनी परम्परा के ताओ धर्म के अनुसार लाओ-सू का जन्म भगवान बुद्ध के समकालीन माना जाता है।लाओ-सू एक सम्मान जतलाने वाली उपाधि है, जिसमें 'लाओ' का अर्थ 'आदरणीय वृद्ध' और 'सू' का अर्थ 'गुरु' है। लाओ-सू को लाओत्से भी कहा जाता है। 'लाओत्से' का अर्थ होता है 'बूढ़ा दार्शनिक', इसके अलावा एक और अर्थ होता है 'बूढ़ा बच्चा'। वह कहते थे कि, 'जो मूर्तिमान धर्म बन गया, वह छोटे बच्चे जैसा होता है। बिच्छू उसे नहीं डसता, जंगली पशु उस पर नहीं झपटता और हिंस्र पक्षी उसे चोंच नहीं मारता।

4-एक दिन लाओ-सू अपने शिष्य के साथ एक पुल पर से गुजर रहा था। उसने अपने शिष्य से कहा कि यहां रुको और यहां से नीचे देखो ...और तब तक देखते रहो जब तक कि नदी रूक न जाये और पुल न बहने लगे। शिष्य को यह 'ध्‍यान' दिया गया कि इस पुल पर रहकर नदी को देखते रहो।वास्तव में, नदी बहती है,लेकिन पुल कभी नहीं बहता।

कहते है कि शिष्य ने पुल पर झोपड़ी बना ली और वहीं रहने लगा।महीनों गुजर गये और वह पुल पर बैठकर

नीचे नदी में झाँकता रहा, और उस क्षण की प्रतीक्षा करने लगा जब नदी रूक जाए और पुल बहने लगे।क्योंकि ऐसा होने पर

ही उसे गुरु के पास जाना था। और एक दिन ऐसा ही हुआ। नदी ठहर गई और पुल बहने लगा।

5-यदि विचार पूरी तरह ठहर जाये तो कुछ भी संभव है। क्‍योंकि हमारी बंधी बंधाई मान्‍यता के कारण‍ ही नदी बहती हुई मालूम पड़ती है और पुल ठहरा हुआ।लेकिन यह महज सापेक्ष है।विज्ञान के अनुसार सब कुछ सापेक्ष है।उदाहरण के लिए तुम एक तेज चलने वाली रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे हो।तो क्‍या होता है, पेड़ भागे जा रहे है। और अगर रेलगाड़ी में हलचल न हो, जिससे रेल चलने का एहसास होता है। तो तुम खिड़की से बाहर देखो तो गाड़ी नहीं, पेड़ भागते हुए

नजर आयेंगे।आइन्सटीन ने कहा है कि अगर दो रेलगाड़ियाँ या दो अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में अगल-बगल एक ही गति से चले तो तुम्‍हें पता भी नहीं चलेगा कि वे चल रहे है। तुम्‍हें चलती गाड़ी का पता इसलिए चलता है क्‍योंकि उसके बगल में ठहरी हुई चीजें है। यदि वे न हों, या समझो कि पेड़ भी उसी गति से चलने लगे, तो तुम्‍हें गति का पता नहीं चलेगा। तुम्‍हें लगेगा कि सब कुछ ठहरा हुआ है। या दो गाड़ियाँ अगल-बगल विपरीत दिशा में भार रही हो तो प्रत्‍येक की गति दुगुनी हो जाएगी। तुम्‍हें लगेगा कि वह बहुत तेज भाग रही है।वास्तव में, वे तेज नहीं भाग रही है। गाड़ियाँ वही है, गति वहीं है। लेकिन विपरीत दिशाओं में गति करने के कारण तुम्‍हें दुगुनी गति का अनुभव होता है।

NOTE;-

1-Theory of Relativity/सापेक्षवाद की थ्योरी अल्बर्ट आइंस्टीन की देन है और इस थ्योरी में आइंस्टीन ने टाइम और स्पेस के व्याख्या की थी जिसके अनुसार टाइम और स्पेस एक दूसरे से जुड़े हुए है और ब्रह्मांड में समय की गति हर जगह अलग अलग है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने ऊर्जा का समीकरण भी दिया था जो E = MC2 (MC Square) है ।इस विश्व प्रसिद्ध फार्मूले में E = Energy ...ऊर्जा को दर्शाता है, M = Mass / पदार्थ के द्रव्यमान को और C = Velocity /प्रकाश के वेग (3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड) को बताता है।इस फॉर्मूला से साबित किया गया कि यदि C2 स्थिरांक हो तो पदार्थ का द्रव्यमान और ऊर्जा बराबर हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पदार्थ को ऊर्जा में और ऊर्जा को पदार्थ में बदला जा सकता है। इससे यह भी साबित होता है कि दुनिया में किसी भी वस्तु का वेग प्रकाश के वेग से ज्यादा नहीं हो सकता। आइंस्टीन की इसी ऊर्जा

समीकरण से अमेरिका ने परमाणु बम बनाया था। अल्बर्ट आइंस्टीन को जीवन भर अपने आविष्कार पर दुख और पछतावा रहा। आइंस्टीन ने ही प्रकाश की व्याख्या भी की थी की प्रकाश छोटे कणों से मिलकर बना होता है जिन्हें Tinny Particles भी कहते है।आइंस्टीन के अनुसार जब हम light speed /प्रकाश की गति से यात्रा करते है तो समय धीमा हो जाता है। इसके अनुसार TimeTravel करके टाइम में आगे जाया जा सकता है लेकिन हमारी गति light speed /प्रकाश की गति से अधिक होनी चाहिए। समय किसी एक नदी की तरह है बहता है और ऐसा लगता है कि हम सब समय की धारा के साथ बहे चले जा रहे हैं। लेकिन समय एक दूसरी तरीके से भी नदी जैसा है जिसका अलग-अलग जगह पर अलग-अलग प्रवाह होता है । प्रेजेंट, पास्ट, फ्यूचर ..ये तीनों ही तीन प्रकार के डाइमेंशंस हैं।लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि यह तीनों ही डाइमेंशंस एक साथ चलते हैं।उदाहरण के लिए तुम पृथ्वी लोक में हो और तुम्हारी उम्र 30 वर्ष की है।तो तुम्हारे पास अगर तुम्हारी मां खड़ी हुई है तो उससे तुम्हारी उम्र 30 वर्ष के दिख रही है।लेकिन बृहस्पति ग्रह में अगर कोई खड़ा हैऔर तुमको देख रहा है

तो उसे तुम्हारी उम्र 12 वर्ष से ज्यादा नहीं दिखेगी।कारण यह है कि बृहस्पति ग्रह की दूरी पृथ्वी से बहुत ज्यादा है।जब तुम्हारी दृष्टि लाइट स्पीड से 300000 किलो मीटर पर सेकंड चलेगी तो बृहस्पति ग्रह तक पहुंचते-पहुंचते तुम्हारी उम्र

केवल 12 वर्ष की ही दिखेगी।




2-उदाहरण के लिए आप अपनी कार से कहीं जा रहे हैं बगल से एक ट्रेन गुजर रही है आप अपनी कार से देखते हैं कि उस ट्रेन की चाल 40 किलोमीटर प्रति घंटा है जमीन पर उतर कर देखा तो मालूम हुआ कि ट्रेन की स्पीड 80 किलोमीटर प्रति घंटा है यानी आपकी कार खुद 40 किलोमीटर प्रति घंटे की हिसाब से चल रही थी । क्या ट्रेन की स्पीड 80 किलोमीटर प्रति घंटा स्वतंत्र गति है तो जवाब होगा... नहीं क्योंकि पृथ्वी खुद अपनी धुरी और सूर्य के गिर्द चक्कर लगा रही है यानी सूर्य पर से देखने से ट्रेन की गति कुछ और ही होगी । अब अगर इस ट्रेन की गति हम मिल्की वे से देखें तो गति कुछ और आएगी क्योंकि सूर्य भी मिल्की वे का चक्कर लगा रहा है और सूर्य ही क्यों मिल्की वे भी तो घूम रहा है। इस प्रकार से ब्रह्मांड के सभी पिंड एक दूसरे के प्रति सापेक्ष गति रखते हैं जबकि हमारा ब्रह्मांड भी घूम ही रहा है . . यानी कोई भी चीज स्थिर है ही नहीं तो किसी भी वस्तु की गति स्वतंत्र नहीं हो सकती । दोनों ही चीजें सापेक्ष होंगी ।

6-और अगर गति सापेक्ष है तो यह मन का कोई ठहराव है जो सोचता है कि नदी बहती है और

पुल ठहरा हुआ है।निरंतर ध्‍यान करते-करते शिष्य को बोध हुआ कि सब कुछ सापेक्ष है। नदी बह रही है; क्‍योंकि तुम पुल को स्थिर समझते हो। बहुत गहरे में पुल भी बह रहा है। इस जगत में कुछ भी स्थिर नहीं है। परमाणु घूम रहे है; इलेक्ट्रॉन घूम रहे है। पुल भी अपने भीतर निरंतर घूम रहा है। सब कुछ बह रहा है। पुल भी बह रहा है। तभी तो शिष्य को पुल की आणविक संरचना की झलक मिल गई होगी।यह जो दीवार स्थिर दिखाई देती है । वह भी सच में स्थिर नहीं है।उसमे भी गति है।

प्रत्‍येक इलेक्ट्रॉन भाग रहा है। लेकिन गति इतनी तीव्र है कि दिखाई नहीं देती। इसी वजह से तुम्‍हें स्थिर मालूम पड़ती है।

यदि एक पंखा अत्‍यंत तेजी से चलने लगे तो तुम्‍हें उसके पंख या उनके बीच के स्‍थान नहीं दिखाई देंगे। और अगर वह प्रकाश की गति से चलने लगा तो तुम्‍हें लगेगा की वह कोई स्थिर गोला है। क्‍योंकि इतनी तेज गति को आंखें पकड़ नहीं पाती।

7- शिष्य ने इतनी प्रतीक्षा की कि उसकी बंधी बंधाई मान्‍यता विलीन हो गई। तब उसने देखा कि पुल बह रहा है और पुल का बहाव इतना तीव्र है कि उसकी तुलना में नदी ठहरी हुई मालूम हुई। तब शिष्य भागा हुआ लाओ-सू के पास गया। उसने कहा कि ठीक है, अब पूछने की भी जरूरत नहीं है ...घटना घट गई। वास्तव में, अ-मन घटित हुआ है।यह विधि कहती है

कि ‘’किसी गहरे कुएं के किनारे खड़े होकर उसकी गहराईयों में निरंतर देखते रहो ...जब तक विस्‍मय विमुग्‍ध न हो जाओ।‘’

जब तुम विस्‍मय-विमुग्‍ध हो जाओगे। जब तुम्‍हारे ऊपर रहस्‍य का अवतरण होगा।तब मन नहीं बचेगा। केवल रहस्‍य और रहस्‍य का माहौल बचेगा। तब तुम स्‍वयं को जानने में समर्थ हो जाओगे।

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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 36;- 05 FACTS;- 1-भगवान शिव कहते है:-

‘’किसी विषय को देखो, फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्‍टि हटा लो, और फिर धीरे-धीरे उससे अपने विचार हटा लो। तब।‘’

2-‘’किसी विषय को देखो… ''।उदाहरण के लिए किसी फूल को देखो। लेकिन इस देखने का अर्थ है कि केवल देखो, विचार मत करो।तुम सदा स्‍मरण रखो कि देखना भर है; विचार मत करो। अगर तुम सोचते हो तो वह देखना नहीं है; तब तुमने सब कुछ दूषित कर दिया। यह महज शुद्ध देखना है ।’फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्‍टि हटा लो।‘’ पहले फूल को देखा

, विचार हटाकर देखो। और जब तुम्‍हें लगे कि मन में कोई विचार नहीं बचा ..सिर्फ फूल बचा है। तब हल्‍के-हल्‍के अपनी आंखों को फूल से अलग करो। धीरे-धीर फूल तुम्‍हारी दृष्‍टि से ओझल हो जाएगा। पर उसका विंब तुम्‍हारे साथ रहेगा। विषय तुम्‍हारी दृष्‍टि से ओझल हो जाएगा। तुम दृष्‍टि हटा लोगे। अब बाहरी फूल तो नहीं रहा; लेकिन उसका प्रतिबिंब तुम्‍हारी चेतना के दर्पण में बना रहेगा।

3-‘’किसी विषय को देखा, फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्‍टि हटा लो, और फिर धीरे-धीरे उससे अपने विचार हटा लो। अब

पहले बाहरी विषय से अपने को अलग करो। तब भीतरी छवि बची रहेगी; वह गुलाब का विचार होगा। अब उस विचार को भी अलग करो। यह कठिन होगा। यह दूसरा हिस्‍सा कठिन है। लेकिन अगर पहले हिस्‍से को ठीक ढंग से प्रयोग में ला सको जिस ढंग से वह कहा गया है, तो यह दूसरा हिस्‍सा उतना कठिन नहीं होगा। पहले विषय से अपनी दृष्‍टि को हटाओं। और तब आंखें बद कर लो। और जैसे तुमने विषय से अपनी दृष्‍टि अलग की वैसे ही अब उसकी छवि से अपने विचार को, अपने को अलग कर लो। अपने को अलग करो; उदासीन हो जाओ।भीतर भी उसे मत देखो; भाव करो कि तुम उससे दूर हो। जल्‍दी ही छवि भी विलीन हो जाएगी।

4-पहले विषय विलीन होता है, फिर छवि विलीन होती है। और जब छवि विलीन होती है, तो भगवान शिव कहते है, ‘’तब, तब तुम एकाकी रह जाते हो। उस एकाकीपन में उस एकांत में व्‍यक्‍ति स्‍वयं को उपलब्‍ध होता है, वह अपने केंद्र पर आता है, वह

अपने मूल स्‍त्रोत पर पहुंच जाता है।यह एक बहुत बढ़िया ध्‍यान है। तुम इसे प्रयोग में ला सकते हो। किसी विषय को चुन लो। लेकिन ध्‍यान रहे कि रोज-रोज वही विषय रहे। ताकि भीतर एक ही प्रतिबिंब बने और एक ही प्रतिबिंब से तुम्‍हें अपने को अलग करना पड़े। इसी विधि के प्रयोग के लिए मंदिरों में मूर्तियां रखी गई थी।परन्तु मूर्तियां बची है, विधि खो गई है।

5-तुम किसी मंदिर में जाओ और इस विधि का प्रयोग करो। वहां महावीर या गौतम बुद्ध या श्रीराम या श्रीकृष्‍ण किसी की भी मूर्ति को देखो। मूर्ति को निहारो। मूर्ति पर अपने को एकाग्र करो। अपने संपूर्ण मन को ,मूर्ति पर इस भांति केंद्रित करो कि उसकी छवि तुम्‍हारे भीतर साफ-साफ अंकित हो जाए। फिर अपनी आंखों को मूर्ति से अलग करो और आंखों को बंद करो। उसके बाद छवि को भी अलग करो, मन से उसे बिलकुल पोंछ दो। तब वहां तुम अपने In Overall isolation/समग्र एकाकीपन में, In overall purity/अपनी समग्र शुद्धता में, In total innocence/अपनी समग्र निर्दोषता में प्रकट हो जाओगे।

उसे पा लेना ही मुक्ति है ... सत्‍य है।

...SHIVOHAM.....



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