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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान संबंधित 90,91 वीं विधियां(तीसरी आँख के जागरण संबंधी छह विधियां ) क्या


NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन...…

विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 90 ;-

13 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है:-

'‘आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है। और वहां ब्रह्मांड व्‍याप जाता है।’'

2-विधि में प्रवेश के पहले कुछ बातें समझ लेनी जरूरी है।पहली बात यह है कि बाहर तुम जो भी हो या जो दिखाई पड़ते हो वह झूठ हो सकता है। लेकिन तुम अपनी आंखों को नहीं झुठला सकते। तुम झूठा चेहरा बना सकते हो। लेकिन झूठी आंखें नहीं बना सकते ..वह असंभव है। जब तक तुम अपनी सारी शक्‍तियों के मालिक न हो जाओ। तुम अपनी आंखों को नहीं झुठला सकते।आंखों को झुठलाना असंभव है; सामान्‍य व्यक्ति यह नहीं कर सकता है।यहीं कारण है कि जब कोई व्यक्ति तुम्‍हारी आंखों में झाँकता है या आंखों में आंखें डालकर देखता है तो तुम्‍हें बहुत बुरा लगाता है। क्‍योंकि वह तुम्‍हारी असलियत में झांकने की चेष्‍टा कर रहा है। और वहां तुम कुछ भी नहीं कर सकते क्‍योंकि तुम्‍हारी आंखें असलियत को प्रकट कर देंगी। इसीलिए किसी की आंखों में झांकना शिष्‍टाचार के विरूद्ध माना जाता है। किसी से बातचीत करते समय भी तुम उसकी आंखों में झांकने से बचते हो। जब तक तुम किसी के प्रेम में नहीं हो या जब तक कोई तुम्‍हारे साथ प्रामाणिक होने को राज़ी नहीं है । तब तक तुम उसकी आँख में नहीं देख सकते ..यह एक सीमा है।

3-मनोवैज्ञानिको के अनुसार किसी अजनबी की आंखों में तुम तीस सेकेंड तक देख सकते हो ...उससे अधिक नहीं। अगर उससे ज्‍यादा देर तक देखेंगे तो तुम आक्रामक हो रहे हो और दूसरा व्‍यक्‍ति तुरंत बुरा मानेगा। बहुत दूर से तुम किसी की आँख में देख सकते हो; क्‍योंकि तब दूसरे को उसका बोध नहीं होता। लेकिन निकट से तुम व्यक्ति की असलियत में प्रवेश कर जाओगे।वास्तव में, आंखें शुद्ध प्रकृति है ...आंखों पर मुखौटा नहीं है। और दूसरी बात तुम्‍हारी अस्‍सी प्रतिशत जीवन यात्रा आँख के सहारे होती है। संसार के साथ तुम्‍हारा अस्‍सी प्रतिशत संपर्क आंखों के द्वारा ही होता है। यही कारण है कि जब तुम किसी अंधे व्‍यक्‍ति को देखते हो तो तुम्‍हें दया आती है।तुम्‍हें उतनी दया और सहानुभूति तब नहीं होती जब कि बहरे व्‍यक्‍ति को देखते हो।क्योकि अंधा व्‍यक्‍ति अस्‍सी प्रतिशत मुर्दा है। वह केवल बीस प्रतिशत जीवित है।

4-तुम्‍हारी अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा तुम्‍हारी आंखों से बाहर जाती है। तुम संसार में आंखों के द्वारा गति करते हो। इसलिए जब तुम थकते हो तो सबसे पहले आंखें थकती है। और फिर शरीर के दूसरे अंग थकते है। सबसे पहले तुम्‍हारी आंखें ही ऊर्जा से रिक्त होती है।अगर तुम अपनी आंखों को,जो तुम्‍हारी अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा है;पुनर्जीवित कर लो तो तुमने अपने को पुनर्जीवन दे दिया।तुम किसी प्राकृतिक परिवेश में कभी उतना नहीं थकते हो जितना किसी अप्राकृतिक शहर में थकते हो। कारण यह है कि प्राकृतिक परिवेश में तुम्‍हारी आंखों को निरंतर पोषण मिलता है। वहां की हरियाली, वहां की ताजी हवा,वहां की हर चीज तुम्‍हारी आंखों को आराम देती है ,पोषण देती है। एक आधुनिक शहर में बात उलटी है; वहां सब कुछ तुम्‍हारी आंखों को शोषण करता है; वहां उन्‍हें पोषण नहीं मिलता।तुम किसी पहाड़ पर चले जाओ जहां के माहौल में कुछ भी कृत्रिम नहीं है ..सब कुछ प्राकृतिक है, और वहां तुम्‍हें भिन्‍न ही ढंग की आंखें देखने को मिलेंगी। उनकी झलक उनकी गुणवता और होगी। गहरी होंगी, जीवंत और नाचती हुई होंगी। आधुनिक शहर में आंखें मृत होती है ..बुझी-बुझी होती है। उन्‍हें उत्‍सव का पता नहीं है।वहां आंखों में जीवन का प्रवाह नहीं है। बस उनका शोषण होता है।

5-भारत में हम अंधे व्‍यक्‍तियों को प्रज्ञाचक्षु कहते है। उसका विशेष कारण है। प्रत्‍येक दुर्भाग्य को महान अवसर में रूपांतरित किया जा सकता है। आंखों से होकर अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा काम करती है; और अंधा व्‍यक्‍ति का संसार के साथ अस्‍सी प्रतिशत संपर्क टूटा होता है। जहां तक बाहरी दुनिया का संबंध है, वह व्‍यक्‍ति बहुत दीन है। लेकिन अगर वह इस अवसर का उपयोग करना चाहे तो वह इस अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर सकता है। यदि वह उसकी कला नहीं जानता है तो अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा, जिसके बहने के द्वार बंद है ;बिना उपयोग के रह जाती है। उसके पास अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा का भंडार पडा है।और जो ऊर्जा सामान्‍यत: बहिर्यात्रा में लगती है वही ऊर्जा अंतर्यात्रा में लग सकती है। अगर वह उसे अंतर्यात्रा में संलग्‍न करना जान ले तो वह प्रज्ञाचक्षु ,विवेकवान हो जाएगा।अंधा होने से कही कोई प्रज्ञाचक्षु नहीं होता है लेकिन वह हो सकता है। उसके पास सामान्‍य आंखें तो नहीं है। लेकिन उसे प्रज्ञा की आंखें मिल सकती है ...इसकी संभावना है। हमने उसे प्रज्ञाचक्षु नाम यह बोध देने के इरादे से दिया कि वह इसके लिए दुःख न माने कि उसे आंखें नही है। वह अंतर्चक्षु निर्मित कर सकता है। उसके पास अस्‍सी प्रतिशत उर्जा का भंडार अछूता पडा है। जो आँख वालों के पास नहीं है और वह उसका उपयोग कर सकता है।

6-यदि अंधा व्‍यक्‍ति बोधपूर्ण नहीं है तो भी वह तुमसे ज्‍यादा शांत ,ज्‍यादा विश्रामपूर्ण होता है। वह अपने आप में संतुष्‍ट है, उसमें अंसतोष नहीं है। यह बात बहरे व्‍यक्‍ति के साथ नहीं होती है। बहरा व्‍यक्‍ति तुमसे ज्‍यादा अशांत होगा और चालाक होगा। लेकिन अंधा व्‍यक्‍ति न अशांत होता है और न चालाक । यह बुनियादी तौर से अस्‍तित्‍व के प्रति श्रद्धावान होता है।ऐसा इसीलिए होता है क्‍योंकि उसकी अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा,हालांकि वह उसके बारे में कुछ नहीं जानता है ;भीतर की और प्रवाहित हो रही है। उसे इसका बोध नहीं है। लेकिन यह ऊर्जा उसके ह्रदय पर बरसती रहती है। वही ऊर्जा जो बाहर जाती है, उसके ह्रदय में जा रही है और यह चीज उसके जीवन का गुणधर्म बदल देती है। प्राचीन भारत में अंधे व्‍यक्‍ति को बहुत आदर मिलता था । इसीलिए हमने उसे प्रज्ञाचक्षु कहा है।तुम यही अपनी आंखों के साथ कर सकते हो। यह विधि तुम्‍हारी बाहर जाने वाली ऊर्जा को वापस लाने, तुम्‍हारे ह्रदय केंद्र पर उतारने की विधि है। अगर वह ऊर्जा तुम्‍हारे ह्रदय में उतर जाए तो तुम बहुत हलके हो जाओगे। तुम्‍हें ऐसा लगेगा कि सारा शरीर एक पंख बन गया है, कि तुम पर अब गुरूत्‍वाकर्षण का कोई प्रभाव न रहा। और तुम तब तुरंत अपने अस्‍तित्‍व के गहनत्‍म स्‍त्रोत से जुड़ जाते हो। और वह तुम्‍हें पुनरुज्जीवित कर देता है।

7-तंत्र के अनुसार गाढ़ी नींद के बाद तुम्‍हें जो नव जीवन , जो ताजगी मिलती है उसका कारण नींद नहीं है। उसका कारण है कि जो ऊर्जा बाहर जा रही थी, वही ऊर्जा भीतर आ जाती है। अगर तुम यह राज जान लो तो जो नींद सामान्‍य व्‍यक्‍ति छह या आठ घंटों में पूरी करता है। तुम कुछ मिनटों में पूरी कर सकते हो। छह या आठ घंटे की नींद में तुम खुद कुछ नहीं करते हो, प्रकृति ही कुछ करती है। और इसका तुम्हें बोध नहीं है कि यह क्‍या करती है। तुम्‍हारी नींद में एक रहस्‍यपूर्ण प्रक्रिया घटती है। उसकी एक बुनियादी बात यह है कि तुम्‍हारी ऊर्जा बाहर नहीं जाती है। वह तुम्‍हारी ह्रदय पर बरसती रहती है। और वहीं चीज तुम्‍हें नया जीवन देती है। तुम अपनी ही ऊर्जा में गहन स्‍नान कर लेते हो।इस गतिशील ऊर्जा के संबंध में कुछ और बातें समझने की है। तुमने गौर किया होगा कि अगर कोई व्‍यक्‍ति तुमसे ऊपर है तो वह तुम्‍हारी आंखों में सीधे देखता है। और अगर वह तुमसे कमजोर है तो वह नीचे की तरफ देखता है। नौकर गुलाम या कोई भी कम महत्‍व का व्‍यक्‍ति अपने से बड़े व्‍यक्‍ति की आंखों में नहीं देखेगा। लेकिन सम्राट घूर सकता है। लेकिन सम्राट के सामने खड़े होकर तुम उसकी आंखे से आँख मिलाकर नहीं देख सकते हो। वह गुनाह समझा जाएगा। तुम्‍हें अपनी आंखों को झुकाएं रहना है।

8-असल में तुम्‍हारी ऊर्जा तुम्‍हारी आंखों से गति करती है। और वह सूक्ष्‍म हिंसा बन सकती है। यह बात मनुष्‍यों के लिए ही नहीं, पशुओं के लिए भी सही है। जब दो दो जानवर मिलते है तो एक ने दूसरे से आँख नीची कर ली तो मामला तय हो गया; फिर वे लड़ते नहीं। बात खत्‍म हो गई। निशचित हो गया कि उनमें कौन श्रेष्‍ठ है।बच्चे भी एक दूसरे की आँख में घूरने का खेल खेलते है; और जो भी आँख पहले हटा लेता है।वह हार गया माना जाता है। और बच्‍चे सही है।जब दो बच्‍चे एक दूसरे की आंखों में घूरते है तो उनमें जो भी पहले बेचैनी अनुभव करता है ,इधर-उधर देखने लगता है या दूसरे की आँख से बचता है। वह पराजित माना जाता है। और जो घूरता ही रहता है वह शक्‍तिशाली माना जाता है।अगर तुम्‍हारी आंखें दूसरे की आंखों को हरा दे तो वह इस बात का सूक्ष्‍म लक्षण है कि तुम दूसरे से शक्‍तिशाली हो।जब कोई व्‍यक्‍ति भाषण देने या अभिनय करने के लिए मंच पर खड़ा होता है तो वह बहुत भयभीत होता है। वह कांपने लगता है। जो लोग पुराने अभिनेता है, वे भी जब मंच पर आते है तो उन्‍हें भय पकड़ लेता है। कारण यह है कि उन्‍हें इतनी आंखें देख रही है। उनकी ओर हजारों लोगों से इतनी आक्रामक ऊर्जा प्रवाहित होती है कि वे अचानक अपने भीतर कांपने लगते है।


9- एक अत्‍यंत सूक्ष्‍म ऊर्जा, अत्‍यंत परिष्‍कृत शक्‍ति आंखों से प्रवाहित होती है। और व्‍यक्‍ति-व्‍यक्‍ति के साथ इस ऊर्जा का गुण धर्म बदल जाता है।श्रीकृष्ण की ऊर्जा एक तरह की आंखों से प्रवाहित होती है, हिटलर की आंखों से सर्वथा भिन्‍न तरह की ऊर्जा प्रवाहित होती है। अगर तुम श्रीकृष्ण की आंखों को देखो तो पाओगे कि वह आंखें तुम्‍हें बुला रही है ;तुम्‍हारा स्‍वागत कर रही है।श्रीकृष्ण की आंखें तुम्‍हारे लिए द्वार बन जाती है। और अगर तुम हिटलर की आंखों से देखो तो पाओगे कि वे तुम्‍हें अस्‍वीकार कर रही है ,निंदा कर रही है या तुम्‍हें दूर हटा रही है। हिटलर की आंखें तलवार जैसी है और श्रीकृष्ण की आंखें कमल जैसी है। हिटलर कि आंखों में हिंसा है और श्रीकृष्ण की आंखों में प्रेम- करूणा।आंखों का गुणधर्म अलग-अलग है। सिर्फ आँख की ऊर्जा आँख का गुणधर्म बता देती है कि उसके पीछे किस किस्‍म का व्‍यक्‍ति छिपा है। यह विधि इस प्रकार है:

‘आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है और वहां ब्रह्मांड व्‍याप जाता है।’

दोनों हथेलियों का उपयोग करो, उन्‍हें अपनी आंखों पर रखो और हथेलियों से पुतलियों को स्‍पर्श करो—जैसे पंख से उन्‍हें छू रहे हो। पुतलियों पर जरा भी दबाव मत डालों। अगर दबाव डालते हो तो तुम पूरी बात से चूक जाते हो। तब पूरी विधि ही व्‍यर्थ हो गई। कोई दबाव मत डालों; बस पंख की तरह छुओ।ऐसा पंखवत स्‍पर्श धीरे-धीरे आएगा।

10-आरंभ में तुम दबाव दोगे। इस दबाव को कम से कम करते जाओ—जब तक कि दबाव बिलकुल न मालूम हो, तुम्‍हारी हथैलियां पुतलियों को मात्र स्‍पर्श भर करें। यदि जरा भी दबाव रह गया तो विधि काम न करेगी। इसलिए इसे पंख-स्‍पर्श कहा गया है।क्‍योंकि जहां सुई से काम चले वहां तलवार चलाने से क्‍या होगा। कुछ काम है जिन्‍हें सुई ही कर सकती है। उन्‍हें तलवार नहीं कर सकती। अगर तुम पुतलियों पर दबाव देते हो तो स्‍पर्श का गुण बदल गया; तब तुम आक्रामक हो गए। और जो ऊर्जा आंखों से बहती है वह बहुत सूक्ष्‍म ,बहुत बारीक है। जरा सा दबाव, और स्‍पर्श, एक संघर्ष, एक प्रतिरोध पैदा कर देता है। दबाव पड़ने से आंखों से बहने वाली ऊर्जा लड़ेंगी, प्रतिरोध करेगी। एक संघर्ष चलेगा।तो बिलकुल दबाव मत डालों; आँख की ऊर्जा को हलके से दबाव का भी पता चल जाता है। वह बहुत सूक्ष्‍म है, कोमल है। तो तुम्‍हारी हथैलियां पंख की तरह पुतलियों को ऐसे छुएँ जैसे न छू रही हो। आंखों को ऐसे स्‍पर्श करो कि वह स्‍पर्श पता भी न चले ;बस हलका सा अहसास हो कि हथेली पुतली को छू रही है।

11-वास्तव में,जब तुम किसी दबाव के बिना स्‍पर्श करते हो तो ऊर्जा भीतर की और गति करने लगती है। और अगर दबाव पड़ता है तो ऊर्जा हाथ से लड़ने लगाती है और वह बाहर चली जाती है। लेकिन अगर हलका सा पंख-स्‍पर्श हो, तो ऊर्जा भीतर की और बहने लगती है।एक द्वार बंद है और ऊर्जा पीछे की तरफ लौट पड़ती है। और जिस क्षण ऊर्जा पीछे की तरफ बहने लगेगी, तुम अनुभव करोगे कि तुम्‍हारे पूरे चेहरे पर और तुम्‍हारे सिर में एक हलकापन फैल गया। यह प्रतिक्रमण करती हुई ऊर्जा ही, पीछे लौटती है।और इन दो आंखों में मध्‍य में तीसरी आँख है... प्रज्ञाचक्षु है। इन्‍हें दो आंखों के मध्‍य में शिवनेत्र कहते है। आंखों से पीछे की और बहने वाली ऊर्जा तीसरी आँख पर चोट करती है। और उसके कारण ही हल्‍का पन महसूस करते हो। जमीन से ऊपर उठते मालूम पड़ते हो। मानों गुरूत्‍वाकर्षण समाप्‍त हो गया। और यही ऊर्जा तीसरी आँख से चलकर ह्रदय पर बरसती है।यह एक शारीरिक प्रक्रिया है। बूंद-बूंद ऊर्जा नीचे गिरती है। ह्रदय पर बरसती है। और तुम्‍हारे ह्रदय में बहुत हलकापन अनुभव होगा। ह्रदय की धड़कन बहुत धीमी हो जाएगी और श्‍वास की गति धीमी हो जाएगी और तुम्‍हारा शरीर विश्राम अनुभव करेगा।यदि तुम इसे ध्‍यान की तरह नहीं भी करते हो तो भी यह प्रयोग तुम्‍हें शारीरिक रूप से सहयोगी होगा। दिन में कभी भी कुर्सी पर बैठे हुए, या यदि कुर्सी न हो तो कहीं भी बैठे हुए, आंखें बंद कर लो, पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दो और अपनी हथेलियों को आंखों पर रखो। लेकिन आंखों पर दबाव मत डोलो ..यही बात बहुत महत्‍व पूर्ण है ..पंख की भांति छुओ भर।

12-जब तुम बिना दबाव के छूते हो तो तुम्‍हारे विचार तत्‍क्षण बंद हो जाते है। शांत मन में विचार नहीं चल सकते है।विचारों को गति करने के लिए तनाव जरूरी है क्योकि विचार तनाव के सहारे जीते है। जब आंखें मौन, शिथिल और शांत है और ऊर्जा पीछे की तरफ गति करने लगती है तो विचार ठहर जाते है। तुम्‍हें एक सूक्ष्म सुख का अनुभव होगा जो रोज प्रगाढ़ होता जाता है।दिन में यह प्रयोग कई बार करो।एक क्षण के लिए भी यह छूना अच्‍छा रहेगा। जब भी तुम्‍हारी आंखें थक जाएं, जब भी उनकी ऊर्जा चुक जाए। वे बोझिल अनुभव करें ...जैसा पढ़ने, फिल्‍म देखने या टी वी शो देखने से होता है ..तो आंखें बंद कर लो और उन्‍हें स्‍पर्श करो। उसका असर तत्‍क्षण होगा।लेकिन अगर तुम इसे ध्‍यान बनाना चाहते हो तो कम से कम चालीस मिनट तक इसे करना चाहिए। और कुल बात इतनी है कि दबाव मत डालों, सिर्फ छुओ। क्‍योंकि एक क्षण के लिए तो पंख जैसा स्‍पर्श आसान है। लेकिन ऐसा स्‍पर्श चालीस मिनट तक यह कठिन है। अनेक बार तुम भूल जाते हो, और दबाव शुरू हो जाता है।दबाव मत डालों। चालीस मिनट तक यह बोध बना रहे कि तुम्‍हारे हाथों में कोई वजन नहीं है। वे सिर्फ स्‍पर्श कर रहे है। इसका सतत होश बना रहे कि तुम आंखों को दबाते नहीं, केवल छूते हो। फिर वह श्‍वास की भांति गहरा बोध बन जाएगा।जैसे पूरे होश से श्‍वास लेते हो , वैसे ही स्‍पर्श भी पूरे होश से करो। तुम्‍हारा अवधान एकाग्र होकर वहां रहेगा। और ऊर्जा निरंतर बहती रहेगी।आरंभ में ऊर्जा बूंद-बूंद आएगी। फिर कुछ ही महीनों में तुम देखोगें कि वह प्रवाह बन गया है। और वर्ष भर के भीतर वह सुनामी बन जाएगी।

13-तुम इसे अभी ही अनुभव कर सकते हो। जैसे ही तुम छूते हो, तत्‍काल एक हलकापन पैदा हो जाता है। और वह उनके बीच का हलकापन गहरे उतरता है और ह्रदय में खुलता है ।ह्रदय में केवल हल्‍कापन प्रवेश कर सकता है। कुछ भी जो भारी है वह ह्रदय में नहीं प्रवेश कर सकता है। दो आंखों के बीच का यह हलकापन ह्रदय में गिरने लगेगा और ह्रदय उसे ग्रहण करने को खुल जाएगा।‘और वहां ब्रह्मांड व्‍याप जाता है।’और जैसे-जैसे यह ऊर्जा की वर्षा पहले झरना बनती है, फिर नदी बनती है और फिर सुनामी बनती है। तुम उसमें खो जाओगे ...बह जाओगे। तुम्‍हें अनुभव होगा कि तुम नहीं हो .. सिर्फ ब्रह्मांड है। श्‍वास लेते हुए, श्‍वास छोड़ते हुए ...तुम ब्रह्मांड ही हो जाओगे। तब श्‍वास के साथ-साथ ब्रह्मांड ही भीतर आएगा और ब्रह्मांड ही बाहर जायेगा। तब अहंकार, जो सदा रहे हो, नहीं रहेगा ..गया।यह विधि बहुत सरल है; इसमें खतरा नहीं है। तुम जैसे चाहो इसके साथ प्रयोग कर सकते हो। लेकिन इसके सरल होने के कारण ही तुम इसे करने से भूल भी सकते हो। पूरी बात इस पर निर्भर है कि दबाव के बिना छूना है।तुम्‍हें यह सीखना पड़ेगा। प्रयोग करते रहो।एक सप्‍ताह के भीतर यह सध जायेगा। अचानक किसी दिन जब तुम दबाव दिए बिना छूओगे, तुम्‍हें तत्‍क्षण वह अनुभव होगा जिसकी बात की जा रही है।एक हलकापन, ह्रदय का खुलना और किसी चीज का सिर से ह्रदय में उतरना अनुभव होगा।

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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 91 ;-

(दूसरी विधि)

10 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है:-

‘’हे दयामयी, अपने रूप के बहुत ऊपर और बहुत नीचे, आकाशीय उपस्‍थिति में प्रवेश करो।‘’

2-यह दूसरी विधि तभी प्रयोग की जा सकती है, जब तुमने पहली विधि पूरी कर ली है। यह प्रयोग अलग से भी किया जा सकता है। लेकिन तब यह बहुत कठिन होगा। इसलिए पहली विधि पूरी करके ही इसे करना अच्‍छा है। और तब यह विधि बहुत सरल भी हो जायेगी।जब भी ऐसा होता है ...कि तुम हलके-फुलके अनुभव करते हो, जमीन से उठते हुए अनुभव करते हो,मानों तुम उड़ सकते हो ..तभी अचानक तुम्‍हें बोध होगा कि तुम्‍हारा शरीर को ..चारों और एक नीली आभा मंडल घेरे है।लेकिन यह अनुभव तभी होगा जब तुम्‍हें लगे कि मैं जमीन से ऊपर उठ सकता हूं, कि मेरा शरीर आकाश में उड़ सकता है। कि यह बिलकुल हलका और निर्भार हो गया है। कि वह पृथ्‍वी के गुरूत्‍वाकर्षण से बिलकुल मुक्‍त हो गया है।ऐसा नहीं है कि तुम उड़ सकते हो; हालांकि कभी-कभी यह भी होता है। कभी-कभी ऐसा संतुलन बैठ जाता है कि तुम्‍हारा शरीर ऊपर उठ जाता है। लेकिन उसकी सोचो ही मत। बंद आंखों से इतना महसूस करना काफी है कि तुम्‍हारा शरीर ऊपर उठ गया है।

3-जब तुम आँख खोलोगे तो पाओगे कि तुम जमीन पर ही बैठे हो। उसकी चिंता मत करो। अगर तुम बंद आंखों से महसूस कर सके कि शरीर ऊपर उठ गया है, कि उसमें कोई वज़न रहा, तो ध्‍यान के लिए इतना काफी है।लेकिन अगर आकाश में उड़ना सीखने की चेष्‍टा कर रहे हो तो यह काफी नहीं है।इतना पर्याप्‍त है कि तुम्‍हें महसूस हो कि तुम्‍हारे शरीर पर कोई भार नहीं है, वह निर्भार हो गया है।और जब भी यह हलकापन महसूस हो तो आंखें बंद रखे हुए ही अपने शरीर के आकार के प्रति बोधपूर्ण होओ। आंखों को बंद रखते हुए अँगूठों को और उनके आकार को महसूस करो, पैरों को और उनके आकार को महसूस करो। अगर तुम भगवान शिव की भांति सिद्धासन में बैठे हो तो बैठे ही बैठे अपने शरीर के आकार को अनुभव करो। तुम्‍हें स्‍पष्‍ट अनुभव होगा। और उसके साथ ही साथ तुम्‍हें बोध होगा कि उस आकार के चारों और नीला सा प्रकाश फैला है।

आरंभ में यह प्रयोग आंखों को बंद रख कर करो। और जब यह प्रकाश फैलता जाए और तुम्‍हें आकार के चारों और नीला प्रकाश मंडल महसूस हो, तब कभी यह प्रयोग रात में, अंधेरे कमरे में करते समय आंखें खोल लो, और तुम अपने शरीर के चारों और एक नीला प्रकाश, एक नीला आभा मंडल देखोगें। अगर तुम इसे बंद आंखों से नहीं, खुली आंखों से इसे सचमुच देखना चाहते हो तो यह प्रयोग अंधेरे कमरे में करो जहां कोई रोशनी न हो।

4-यह नीला प्रकाश, यह नीला आभा मंडल तुम्‍हारे आकाश शरीर की उपस्‍थिति है। यह विधि आकाश-शरीर से संबंध रखती है। और तुम आकाश शरीर के द्वारा ऊंची से ऊंची समाधि में प्रवेश कर सकते हो।सात शरीर है और परमसत्ता में प्रवेश के लिए प्रत्‍येक शरीर का उपयोग हो सकता है। प्रत्‍येक शरीर एक द्वार है। यह विधि आकाश शरीर का उपयोग करती है और आकाश शरीर को प्राप्‍त करना सबसे सरल है। शरीर के तल पर जितनी ज्‍यादा गहराई होगी उतनी ही उसकी उपलब्‍धि कठिन होगी। लेकिन आकाश शरीर तुम्‍हारे स्‍थूल शरीर के बहुत निकट है। आकाश शरीर तुम्‍हारा दूसरा शरीर है। जो तुम्‍हारे चारों और है ...तुम्‍हारे स्‍थूल शरीर के चारों और। यह तुम्‍हारे शरीर के भीतर भी है और यह शरीर को चारों और से एक धुँधली आभा की तरह, नीले प्रकाश को तरह ढीले परिधार की तरह घेर हुए है।‘हे दयामयी, अपने रूप के बहुत ऊपर और बहुत नीचे, आकाशीय उपस्‍थिति में प्रवेश करो।’बहुत ऊपर, बहुत नीचे ...तुम्‍हारे चारों और सर्वत्र। यदि तुम अपने सब और उस नीले प्रकाश को देख सको तो विचार तुरंत ठहर जाएगा। क्‍योंकि आकाश शरीर के लिए विचार करने की जरूरत नही है। और यह नीला प्रकाश बहुत शांति दायी है। क्‍योंकि वह तुम्‍हारे आकाश शरीर का प्रकाश है। नीला आकाश इतना विश्रामपूर्ण है क्‍योंकि वह तुम्‍हारे आकाश शरीर का रंग है। और आकाश-शरीर स्‍वयं बहुत विश्रामपूर्ण है।

5-जब भी कोई व्‍यक्‍ति तुम्‍हें प्रेम से स्‍पर्श करता है, तब वह तुम्‍हारे आकाश शरीर को स्‍पर्श करता है। इसीलिए तुम्‍हें वह इतना सुखदायी मालूम पड़ता है। इसका तो फोटोग्राफ भी लिया जा चुका है।और कभी-कभी तो बहुत अजीब घटनाएं घटती है। क्‍योंकि यह प्रकाश बहुत ही सूक्ष्‍म विद्युत शक्‍ति है। सारे संसार में बहुत सी ऐसी अजीब घटनाएं घटी है।उन पर खोजबीन की गई है और पाया गया है कि दो व्‍यक्‍ति ऐसी विद्युत शक्‍ति का सृजन कर सकते है कि उससे उनके आस-पास की चीजें प्रभावित हो सकती है।मेज पर एक मूर्ति रखी है। वह जमीन पर गिर जाती है। मेज का शीशा अचानक टूट जाता है। वहां कोई तीसरा व्‍यक्‍ति नही है।उन्‍होंने मेज या शीशे को स्‍पर्श भी नहीं किया और ऐसा भी हुआ है कि अचानक कुछ जलने लगता है। दुनियाभर में ऐसे मामलों की खबरें पुलिस चौकियों में दर्ज हुई है।वह शक्‍ति भी आकाश शरीर से आती है। तुम्‍हारा आकाश शरीर तुम्‍हारा विद्युत शरीर है। जब भी तुम ऊर्जा से भरे होते हो तब तुम्‍हारा आकाश-शरीर बड़ा हो जाता है। और जब तुम उदास,बुझे-बुझे होते हो तो तुम्‍हारा आकाश शरीर सिकुड़कर शरीर के भीतर सिमट जाता है। इसीलिए उदास और दुःखी व्‍यक्‍ति के पास तुम भी उदास और दुःखी हो जाते हो। अगर कोई दुःखी व्‍यक्‍ति कमरे में प्रवेश करे तो तुम्‍हें लगेगा कि कुछ गड़बड़ हो रही है, क्‍योंकि उसका आकाश शरीर तुम्‍हें तुंरत प्रभावित करता है। वह शक्‍ति चूसता है; क्‍योंकि उसकी अपनी शक्‍ति इतनी बुझी-बुझी है कि वह दूसरों की शक्‍ति चूसने लगता है।

6-उदास व्‍यक्‍ति तुम्‍हें उदास बना देता है और दुःखी व्‍यक्‍ति तुम्‍हें दुःखी कर देता है। बीमार व्‍यक्‍ति तुम्‍हें बीमार कर देता है क्‍योंकि वह उतना ही नहीं है जितना तुम देखते हो, उसके भीतर कुछ छिपा है जो काम कर रहा है। हालांकि वह बाहर से मुस्‍कुरा रहा है;उसने कुछ नहीं कहा है तो भी यदि वह दुःखी है तो वह तुम्‍हारा शोषण करेगा। तुम्‍हारे आकाश शरीर की ऊर्जा क्षीण हो जाएगी। वह तुम्‍हारी उतनी शक्‍ति खींच लेगा और जब कोई सुखी व्‍यक्‍ति कमरे में प्रवेश करता है तो तुम भी तत्‍क्षण सुख महसूस करने लगते हो। सुखी व्‍यक्‍ति इतनी आकाशीय शक्‍ति बिखेरता है कि वह तुम्‍हारे लिए भोजन बन जाता है। वह तुम्‍हारा पोषण बन जाता है। उसके पास अतिशय ऊर्जा उससे बह रही है।जब कोई बुद्ध, कोई क्राइस्‍ट, कोई श्रीकृष्‍ण तुम्‍हारे पास से गुजरते है तो वह तुम्‍हें निरंतर एक सूक्ष्‍म भोजन दे रहे है। और तुम निरंतर उनके मेहमान हो। और जब तुम किसी बुद्ध के दर्शन करके लौटते हो तो तुम अत्‍यंत पुन जीवित, अत्‍यंत ताजा,अत्‍यंत जीवंत अनुभव करते हो।वह कुछ बोले भी न हों; मात्र दर्शन से तुम्‍हें लगता है कि मेरे भीतर कुछ बदल गया है ,कुछ प्रविष्‍ट हो गया है। वास्तव में, वह इतने आप्‍तकाम है, इतने लबालब भरे है कि वे ऊर्जा का सागर बन गए है। और उनकी ऊर्जा बाढ़ की भांति बहा रही है।

7-जो भी व्‍यक्‍ति स्‍वस्‍थ होता है, शांत होता है, वह सदा बाढ़ बन जाता है। क्‍योंकि अब उसकी ऊर्जा उन व्‍यर्थ की बातों में, उन ना समझियों में व्‍यय नहीं होती जिनमें तुम अपनी ऊर्जा गंवा रहे हो। उसके साथ उसके चारों और सदा ऊर्जा की बाढ़ चलती है। और जो भी उसके संपर्क में आता है। वह उसका लाभ ले सकता है।जीसस कहते है: ‘ अगर तुम बहुत बोझिल हो तो मेरे पास आओ। मैं तुम्‍हें निर्बोझ कर दूँगा।’असल में जीसस कुछ नहीं करते है, बस उनकी उपस्‍थिति में कुछ होता है। कहते है कि जब कोई कोई तीर्थंकर, कोई अवतार, कोई क्राइस्‍ट पृथ्‍वी पर चलता है तो उसके चारो और एक विशेष वातावरण, एक प्रभाव-क्षेत्र निर्मित होता है। जैन योगियों ने तो इसका माप भी लिया है। वे कहते है कि यह प्रभाव-क्षेत्र चौबीस मील होता है। तीर्थंकर के चारों और चौबीस मील की परिधि होती है। चाहे उसे इसका बोध हो या न हो, चाहे वह मित्र हो या शत्रु हो, अनुयायी हो या विरोधी हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।हां,यदि तुम अनुयायी हो तो तुम खूब भर जाते हो क्‍योंकि तुम खुले हुए हो। विरोधी भी भरता है, लेकिन उतना नहीं क्‍योंकि विरोधी बंद होता है। लेकिन ऊर्जा तो सब पर बरसती है।

8-एक अकेला व्‍यक्‍ति यदि अनुद्विग्‍न है, शांत है, मौन है, आनंदित है, तो वह शक्‍ति का पुंज बन जाता है ...ऐसा पुंज कि उसके चारों और चौबीस मील में एक विशेष वातावरण बन जाता है। और उस वातावरण में तुम्‍हें एक सूक्ष्‍म पोषण मिलता है।यह घटना आकाश-शरीर के द्वारा घटती है। तुम्‍हारा आकाश शरीर विद्युत शरीर है। जो शरीर हमें दिखाई पड़ता है। वह भौतिक है, पार्थिव है। यह सच्‍चा जीवन नहीं है। इस शरीर में विद्युत शरीर आकाश शरीर के कारण जीवन आता है। वहीं तुम्‍हारा प्राण है।

तो भगवान शिव कहते है: ‘हे दयामयी, आकाशीय उपस्‍थिति में प्रवेश करो।’पहले तुम्‍हें अपने भौतिक शरीर को घेरने वाले आकाश शरीर के प्रति बोधपूर्ण होना होगा। और जब तुम्‍हें उसका बोध होने लगे तो उसे बढ़ाओं। बड़ा करो, फैलाओ। इसके लिए बस चुपचाप बैठना है और उसे देखना है। कुछ करना नहीं है; बस अपने चारो ओर फैले इस नीले आकार को देखते रहना है। और देखते-देखते तुम पाओगे कि वह बढ़ रहा है ..बड़ा हो रहा है। सिर्फ देखने से वह बड़ा हो रहा है। क्‍योंकि जब तुम कुछ नहीं करते हो तो पूरी ऊर्जा आकाश शरीर को मिलती है। इसे स्‍मरण रखो। और जब तुम कुछ करते हो तो आकाश शरीर से ऊर्जा बाहर जाती है।

9-संत लाओत्से कहते है कि मैं कभी कुछ नहीं करता और कोई मुझसे शक्‍तिशाली नहीं है। जो कुछ करने के कारण शक्‍ति शाली है, उन्‍हें हराया जा सकता है। ‘मुझे हराया नहीं जा सकता क्‍योंकि मेरी शक्‍ति कुछ न करने से आती है। तो असली बात कुछ न करना है।’’बोधिवृक्ष के नीचे बैठे गौतम बुद्ध उस क्षण कुछ भी नहीं कर रहे थे। वे शून्‍य हो गया थे और मात्र बैठे-बैठे उन्‍होंने परम को पा लिया। यह बात बेबूझ ,बहुत हैरानी की लगती है। हम इतना प्रयत्‍न करते है और कुछ नहीं होता है। और बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बैठे-बैठे बिना कुछ किये परम को उपलब्‍ध हो जाते है।जब तुम कुछ नहीं करते हो तब तुम्‍हारी ऊर्जा बाहर गति नहीं करती है। तब वह ऊर्जा आकाश-शरीर को मिलती है और वहां इकट्ठी होती है। फिर तुम्‍हारा आकाश-शरीर विद्युत शक्‍ति का भंडार बन जाता है। और वह भंडार जितना बढ़ता है। फिर तुम्‍हारी शक्‍ति उतनी ही बढ़ती है। और तुम जितना ज्‍यादा शांत होते हो उतनी ही ऊर्जा का भंडार भी बढ़ता है। और जिस क्षण तुम जान लेते हो कि आकाश शरीर को ऊर्जा कैसे दी जाए और कैसे ऊर्जा को व्‍यर्थ नष्‍ट न किया जाए, उसी क्षण गुप्‍त कुंजी तुम्‍हारे हाथ लग गई।

10-और वास्तव में, तभी तुम आनंदित हो सकते हो ,उत्‍सव मना सकते हो। अभी तुम जैसे हो ऊर्जा से रिक्‍त, तुम उत्‍सवपूर्ण नहीं हो सकते हो । वृक्ष ऊर्जा से लबालब होते हो तो उसमें फूल खिलते है। फूल तो अतिरिक्‍त ऊर्जा का वैभव है। वृक्ष यदि भूखा हो तो उसमे फूल नहीं आएँगे। क्‍योंकि पत्‍तों के लिए , जड़ों के लिए भी पर्याप्‍त भोजन नहीं है।उनमें भी एक क्रम है।पहले जड़ों को भोजन मिलेगा क्‍योंकि वे बुनियादी है। तो पहले जड़ों को भोजन दिया जाएगा ,फिर शाखाओं को। अगर सब ठीक-ठाक चले और फिर भी ऊर्जा शेष रह जाए, तब पत्‍तों को पोषण दिया जाएगा। और उसके बाद भी भोजन बचे और वृक्ष समग्रत: संतुष्‍ट हो, जीने के लिए और भोजन की जरूरत न रहे, तब अचानक उसमें फूल लगते है। ऊर्जा का अतिरेक ही फूल बन जाता है। फूल दूसरों के लिए दान है , भेंट है। फूल वृक्ष की तरफ से तुम्‍हें भेंट है।और यही घटना मनुष्‍य में भी घटती है। Enlightened One वह वृक्ष है जिसमें फूल लगे। अब उनकी ऊर्जा इतनी अतिशय है कि उन्‍होंने सबको पूरे अस्‍तित्‍व को उसमे सहभागी होने के लिए आमंत्रित किया है।पहले पहली विधि को प्रयोग करो और फिर दूसरी विधि को। तुम दोनों को अलग-अलग भी प्रयोग कर सकते हो। लेकिन तब आकाश-शरीर के नीले आभा मंडल को प्राप्‍त करना थोड़ा कठिन होगा।

....SHIVOHAM...


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