क्या है शिवलिंग के अद्भुत रहस्य और प्रकार..?
क्या है शिवलिंग के अद्भुत रहस्य और प्रकार..? क्या है शिवलिंग ?- 1-भगवान शिव की पूजा या आराधना एक गोलाकार पत्थर के रूप में की जाती है जिसे पूजा स्थल के गर्भगृह में रखा जाता है। सिर्फ भारत और श्रीलंका में ही नहीं, भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में भगवान शिव की पूजा की जाती रही है। शिव का अर्थ 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदांत में 'लिंग' शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। 1. मन, 2. बुद्धि, 3. पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4. पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु। भृकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह हैं... बिंदु रूप।स्कंदपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी (axis) ही लिंग है। शिवलिंग का अर्थ ;- 03 FACTS;- 1-त्रिपुण्ड्र लगाया हुआ शिवलिंग का अर्थ है 'शिव का प्रतीक जो मन्दिरों एवं छोटे पूजस्थलों में पूजा जाता है। इसे केवल ' शिव लिंगम' भी कहते हैं। भारतीय समाज में शिवलिंगम को शिव की ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। लिंग को प्रायः 'योनि' (शाब्दिक अर्थ= 'घर' या 'मूल' ) के ऊपर आधारित दर्शाया जाता है। लिंग' का अर्थ है 'चिन्ह'। जैसे 'स्त्रीलिंग' का अर्थ है कोई ऐसी वस्तु जो स्त्रीरूप में कल्पित की जा सके। अब वह एक वास्तविक महिला भी हो सकती है या कोई ऐसी वस्तु जो स्त्री रूप में सोची जा सके। उदाहरण के लिए, नदी, लता आदि। इसी तरह पुल्लिंग उसे कहते हैं जो पुरुष के प्रतीक रूप में माना जा सके, जैसे आदमी, पहाड़, वृक्ष आदि।इसी प्रकार जो शिव के प्रतीक रूप में माना जा सके, वही शिवलिंग है अर्थात कुछ ऐसा जिसके प्रति हम सभी के कल्याण की हमारी शुभभावनाओं को जोड़ सकें। 2-वेदों में अनेक जगह परमात्मा को एक ऐसे 'स्तम्भ' के रूप में देखा गया है जो समस्त सात्विक गुणों, शुभ वृत्तियों का आधार है। वही मृत्यु और अमरता, साधारण और महानता के बीच की कड़ी है। यही कारण है कि हिंदू मंदिरों और हिन्दू स्थापत्य कला में स्तम्भ या खंभे प्रचुर मात्रा में देखे जाते हैं।इसके अतिरिक्त, योग साधना भी अग्नि की लौ पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करने को कहती है, जो स्वयं शिवलिंगाकार है। इसका भी स्पष्ट आधार वेदों में मिलता है। शिवलिंग और कुछ नहीं ऐसा लौकिक स्तंभ ही है जिस पर हम (अग्नि की लौ की तरह) ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और हमारी कल्याणकारी भावनाओं को उससे जोड़ सकते हैं। 3- यही कारण है कि शिवलिंग को 'ज्योतिर्लिंग' भी कहा जाता है। ज्योति वह है जो आपके अंदर के अंधकार को दूर करके प्रकाश फैला दे। आत्मज्ञान का वह पथ जो अलौकिक दिव्य प्रतिभा की ओर ले जाता है। (आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् – प्रकाश से पूर्ण, अज्ञान अंधकार तम से हीन) शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग। शिवलिंग का दुष्प्रचार और गुमराह करने वाली परिभाषा क्या है?- 04 FACTS;- 1-शिवलिंग भगवान शिव की रचनात्मक और विनाशकारी दोनों ही तरह की पवित्र शक्तियों को प्रदर्शित करता है। हालांकि कुछ लोग दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से इसका गलत अर्थ निकालते हैं। उनके अनुसार यह स्त्री और पुरुष के गुप्तांगों का प्रतीक है, जबकि शिवपुराण के अनुसार यह ज्योति का प्रतीक है।शिवलिंग के बारे में लोगों को इतनी ज्यादा भ्रांतियां हैं और वो भी उसके नाम को लेकर ।सबसे पहली बात संस्कृत में "लिंग" का अर्थ होता है प्रतीक। Penis या जननेंद्रि के लिए संस्कृत में एक दूसरा शब्द है- "शिश्न"। 2-लिंग' का अर्थ ज्योति और शिव का अर्थ शुभ। 'शिवलिंग' का अर्थ है- भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरूप। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे 'लिंग' कहा गया है।शिवलिंग को शिश्न के रूप में भगवान शिव का प्रतिनिधित्व मानना या प्रचलित करना हास्यापद है।स्वामी विवेकानंद ने भी इसे अनंत ब्रह्म रूप में जाना। शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है। 3-वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में इसे ज्योतिर्बिंदु कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है, जैसे प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि। लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा, जो कि आज तक प्रचलन में है 4-शिवलिंग भगवान् के निर्गुण-निराकाररूप /ओंकार का प्रतीक है।भगवान् का वह रूप जिसका कोई आकार नहीं जिसमे कोई गुण ( सात्विक,राजसिकऔर तामसिक ) नहीं है ,जो पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतीक है और जो शून्य- अवस्था का प्रतीक है। ध्यान में योगी जिस शांत शून्यभाव को प्राप्त करते हैं, जो ईश्वर के शांत और परम-आनंद स्वरुप का प्रतीक है उसे ही शिवलिंग कहते हैं।शिवलिंग को भगवान्शंकर का निर्गुण प्रतीक माना जाता हैऔर भगवान् के सगुण रूप का वास कैलाश पर्वत पर माना गया है।शिवलिंग में दूध अथवा जल की धारा चढ़ाने से अपने आप मन शांत हो जाता है ये हम सबका अनुभव है, और इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। शिवलिंग का विन्यास :- 03 FACTS;- 1-शिवलिंग के 3 हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है। मध्य भाग में आठों ओर एक समान बैठक बनी होती है। अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी पूजा की जाती है। 2-इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है। ये 3 भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) का प्रतीक हैं। शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए गए एक मार्ग से निकल जाता है। 3-शिव के माथे पर 3 रेखाएं (त्रिपुंड) और 1 बिन्दु होती हैं, ये रेखाएं शिवलिंग पर भी समान रूप से अंकित होती हैं। शिवलिंग ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य का प्रतीक ;- 06 FACTS;- 1-सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग के रूप में नजर आता है। प्राचीन ऋषि और मुनियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इस सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूप में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है।शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है | 2-सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते है जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा गणितीय सूत्र,कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि |जैसे:सम्पति का मतलब (मीनिंग) अर्थ है, उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है। लिंग का यही अर्थ वैशेषिक शास्त्र में कणाद मुनि ने भी प्रयोग किया।ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं। ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है।वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। 3-अब जरा आईंसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते हैं।e / c = m c {e=mc²}इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो होकर स्रष्टि का निर्माण करता है।हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था |हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान परअकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि । 4-स्रष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट (bigbang) के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते हैं। जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके।पुराणो में कहा गया है कि प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है।यह सिद्धांत कहता है कि कैसे आज से लगभग 13.7 खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्मऔर घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। 5-इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु से हुई थी जिसकी उर्जा अनंत थी।उस समय मानव, समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी अर्थातकुछ नही था ! इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि इसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जारहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोटसिद्धांत कहा जाता है।महाविस्फोट नामक इस धमाके के मात्र 1.43 सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्षकी वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं।भौतिकी के नियम लागू होने लग गयेथे। 1.34वें सेकेंड में ब्रह्मांड 1030 गुणा फैल चुका था हाइड्रोजन, हीलियम आदि केअस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) बनने लगे थे। 6-शिवलिंग के महत्ता पीछे कई धार्मिक कहानियां भी हैं,जो प्रतीकात्मक तरीके सेयही बातें कहती हैं।आधुनिक विज्ञान कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद आज एक ऐसे बिंदु पर पहुँचा हैजहाँ वे यह सिद्ध कर रहे हैं कि हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं,वहसिर्फ ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों करोड़ों रूप में व्यक्त करती है। शिवलिंग और परमाणु रिएक्टर का सम्बन्ध (शिवलिंग के पीछे छुपा है विज्ञानं/साइंस;-) 12 FACTS;- 1-अगर आप गौर से भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर(मुंबई)के न्यूक्लियर रिएक्टर की संरचना को देखें तो आप पाएंगे की शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर में काफी समानताएं हैं। दोनों की संरचनाएं भी एक सी हैं। अगर,दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ही कहीं न कहीं उर्जा से संबंधित हैं। 2-शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने का नियम है। देश में,ज्यादातर शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं जहां जल का भंडार हो,जैसे नदी,तालाब,झील इत्यादि। विश्व के सारे न्यूक्लियर प्लांट भी पानी(समुद्र)के पास ही हैं। 3-शिवलिंग की संरचना बेलनाकार होती है और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर(मुंबई)की रिएक्टर की संरचना भी बेलनाकार ही है। न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जो जल का इस्तेमाल किया जाता है उस जल को किसी और प्रयोग में नहीं लाया जाता। उसी तरह शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है उसको भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं किया जाता है। 4-शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है। जहां से जल निष्कासित हो रहा है,उसको लांघा भी नहीं जाता है। ऐसी मान्यता है की वह जल आवेशित(चार्ज)होता है। उसी तरह से जिस तरह से न्यूक्लियर रिएक्टर से निकले हुए जल को भी दूर ऱखा जाता है। 5- भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा कीजिये तो आप हैरान हो जाओगे की भारत सरकार के नुक्लिएर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योत्रिलिंगो के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं तभी उनपर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे। 6-महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं। क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिव लिंग की तरह है। 7-शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिल कर औषधि का रूप ले लेता है। तभी हमारे बुजुर्ग हम लोगों से कहते कि महादेव शिव शंकर अगर नराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी। 8-जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है वो सनातन है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें। 9-वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की ही आकृति है। जिस तरीके से लगातार उर्जा देते रहने से न्यूक्लियर रिएक्टर गर्म हो जाता हैतथा उसको ठंडा रखने के लिये जल की जरूरत है उसी तरह शिवलिंग को भी जल की जरूरत होती है।ऐसा माना जाता है की शिवलिंग (ब्रह्मांड) भी एक उर्जा का स्रोत है जिससेलगातार उर्जा निकलती रहती है। लोग श्रद्धा से बेल का पत्ता शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। 10-वैज्ञानिक शोध से ये ज्ञात हुआ है की बेल के पत्तों में रेडियो विकिरणरोकने की क्षमता है। दरअसल शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं तभी उनपर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं। 11-इससे लगता है प्राचीन कल में लोगशिवलिंग को उर्जा अथवा विकिरण का स्रोतमानकर उस पर जल एवं बेल पत्तों को चढ़ाते थे।ऐसा भी माना जाता है की सोमनाथ के मंदिर के शिवलिंग में “स्यामन्तक” नामक एक पत्थर को हमारे पूर्वजों ने छुपा के रखा था।इसके बारे में धारणा है की ये रेडियोएक्टिव भी था। 12-यह भी माना जाता हैं गजनी ने इस पत्थर को प्राप्त करने के लिये सोमनाथ के मंदिर पर कई बार हमला किया था।एक कथा यह भी प्रचलित थी कि इस पत्थर से किसी भी धातु को सोना में बदलाजा सकता था।शायद इसी कारण से लोग सोमनाथ के शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते थे ताकि विकिरण का प्रभाव कम हो सके।प्रथा आज भी प्रचलित है। विश्व की प्राचीन सभ्यताएं में शिवलिंग : 07 FACTS;- 1-सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे। सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं। इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है। 2-ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबीलोनिया, 2000-250 ईसापूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। इसका मतलब कि 3500 ईसापूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी। 3-प्राचीन सभ्यता में शिवलिंग :- पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं। इसके अलावा मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। 4-रोम में शिवलिंग :- योरपीय देशों में भी शिवलिंग की पूजा शुरू की गई थी। इटली के शहर रोम की गणना दुनिया के प्राचीन शहरों में की जाती है। रोमनों द्वारा शिवलिंग की पूजा 'प्रयापस' के रूप में की जाती थी।रोम के वेटिकन शहर में खुदाई के दौरान भी एक शिवलिंग प्राप्त हुआ था जिसे ग्रिगोरीअन एट्रुस्कैन म्यूजियम में रखा गया है। इटली के रोम में स्थित वेटिकन सिटी का आकार भगवान शिव के आदि-अनादि स्वरूप शिवलिंग की तरह ही है, जो कि एक आश्चर्य ही है। 5-आयरलैंड में प्राचीन शिवलिंग :- आयरलैंड के तारा हिल में स्थित एक लंबा अंडाकार रहस्यमय पत्थर रखा हुआ है, जो शिवलिंग की तरह ही है। इसे भाग्यशाली (lia fail stone of destiny) पत्थर कहा जाता है।एक प्राचीन दस्तावेज के अनुसार इस पत्थर को 4 अलौकिक लोगों द्वारा स्थापित किया गया था। 6-काबा में शिव :- ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। 6-1-उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग। शिवपुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी आकाश से गिरा था। 7-अफ्रीका में शिवलिंग :- साउथ अफ्रीका की सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव की 6,000 वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति मिली जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता हैरान हैं कि यह शिवलिंग यहां अभी तक सुरक्षित कैसे रहा? शिवलिंग का प्रकार :- 02 FACTS;- 1-शिवलिंग ब्रह्मांड और ब्रह्मांड की समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है। ब्रह्मांड अंडाकार ही है, जो एक अंडाकार शिवलिंग की तरह नजर आता है। शिवलिंग 'ब्रह्मांड' या ब्रह्मांडीय अंडे के आकार का प्रतिनिधित्व करता है।प्रमुख रूप से शिवलिंग 2 प्रकार के होते हैं- पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग। 2-पहला उल्कापिंड की तरह काला अंडाकार लिए हुए। इस तरह का एक शिवलिंग मक्का के काबा में स्थापित है, जो आसमान से गिरा था। ऐसे शिवलिंग को ही भारत में ज्योतिर्लिंग कहते हैं। दूसरा मानव द्वारा निर्मित पारे से बना शिवलिंग होता है। इसे 'पारद शिवलिंग' कहा जाता है। पारद विज्ञान प्राचीन वैदिक विज्ञान है। इसके अलावा पुराणों के अनुसार शिवलिंग के प्रमुख 6 प्रकार होते हैं .... 1. देव लिंग :- जिस शिवलिंग को देवताओं या अन्य प्राणियों द्वारा स्थापित किया गया हो, उसे देवलिंग कहते हैं। वर्तमान समय में धरती पर मूल पारंपरिक रूप से यह देवताओं के लिए पूजित है। 2. असुर लिंग :- असुरों द्वारा जिसकी पूजा की जाए, वह असुर लिंग। रावण ने एक शिवलिंग स्थापित किया था, जो असुर लिंग था। देवताओं से द्वेष रखने वाले रावण की तरह शिव के असुर या दैत्य परम भक्त रहे हैं। 3. अर्श लिंग :- प्राचीनकाल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित इस तरह के लिंग की पूजा की जाती थी। 4. पुराण लिंग :- पौराणिक काल के व्यक्तियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है। इस लिंग की पूजा पुराणिकों द्वारा की जाती है। 5. मनुष्य लिंग : - प्राचीनकाल या मध्यकाल में ऐतिहासिक महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किए गए लिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है। 6. स्वयंभू लिंग :- भगवान शिव किसी कारणवश स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं। इस तरह के शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। भारत में स्वयंभू शिवलिंग कई जगहों पर हैं। वरदानस्वरूप जहां शिव स्वयं प्रकट हुए थे। शास्त्रों में शिवलिंग का महात्म्य;- 04 FACTS;- 1-शिवलिंग प्रत्येक जीव में, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, सूक्ष्म रूप से आदि शक्ति(उर्जा) का प्रतीक शिवलिंग सबमें स्थित होता है |इस कारण हिन्दू मान्यताओं में प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर विद्यमान होने की मान्यता है इसी कारण दुसरो को हाथ जोडकर उनका अभिनन्दन किया जाता है । यही मानवीय जीवन का मूल सिदांत है । 2-शिवलिंग के महात्म्यका वर्णन करते हुए शास्त्रों ने कहा है कि जो मनुष्य किसी तीर्थ की मृत्तिका से शिवलिंग बना कर उनका विधि-विधान के साथ पूजा करता है, वह शिवस्वरूप हो जाता है। शिवलिंग का सविधि पूजन करने से मनुष्य सन्तान, धन, धन्य, विद्या, ज्ञान, सद्बुद्धि, दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति करता है। 3-जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा होती है, वह तीर्थ न होने पर भी तीर्थ बन जाता है। जिस स्थान पर सर्वदा शिवलिंग का पूजन होता है, उस स्थान पर मृत्यु होने पर मनुष्य शिवलोक जाता है। शिव शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसका बाह्य और अंतकरण शुद्ध हो जाता है। दो अक्षरों का मंत्र शिव परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है। इससे अलग दूसरा कोई तारक ब्रह्म नहीं है। तारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्। नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥ 4-सम्पूर्ण भारतवर्ष में शिवलिंग पूजन परम श्रद्धा से किया जाता है.अनादि, अनंत, देवाधिदेव, महादेव शिव परब्रह्म हैं। भारत में भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंग हैं। 1-सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, 2-श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, 3-उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, 4-ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, 5-परली में वैद्यनाथ, 6-डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, 7-सेतुबंध परश्री रामेश्वर, 8-दारुकावन में श्रीनागेश्वर, 9-वाराणसी (काशी) में श्रीविश्वनाथ, 10-गौतमी (गोदावरी) के तट परश्री त्र्यम्बकेश्वर, 11-हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ 12-शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्।। केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशङ्करम्।वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।। वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने।सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।। द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।सर्वपापविनिर्मुक्तः सर्वसिद्धिफलो भवेत्।।जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,जयतिपुण्य भूमि भारत,,कष्ट हरो,,,काल हरो,,,दुःख हरो,दारिद्र्यहरो,हर,हर,महादेव,,,
ओम का रहस्य;-
हिन्दू धर्म में ओम एक 'विशेष ध्वनि' का शब्द है। तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।
अनहद नाद;-
इस ध्वनि को अनाहत कहते हैं। अनाहत अर्थात जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं होती बल्कि स्वयंभू है। इसे ही नाद कहा गया है। ओम की ध्वनि एक शाश्वत ध्वनि है जिससे ब्रह्मांड का जन्म हुआ है। ॐ एक ध्वनि है, जो किसी ने बनाई नहीं है। यह वह ध्वनि है जो पूरे कण-कण में, पूरे अंतरिक्ष में हो रही है और मनुष्य के भीतर भी यह ध्वनि जारी है। सूर्य सहित ब्रह्मांड के प्रत्येक गृह से यह ध्वनि बाहर निकल रही है।
ब्रह्मांड का जन्मदाता;-
शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात शुद्ध प्रकाश। यह ध्वनि आज भी सतत जारी है। ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। परमेश्वर का प्रकाश। इसे ही शुद्ध प्रकाश कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड और कुछ नहीं सिर्फ कंपन, ध्वनि और प्रकाश की उपस्थिति ही है। जहां जितनी ऊर्जा होगी वहां उतनी देर तक जीवन होगा। यह जो हमें सूर्य दिखाई दे रहा है एक दिन इसकी भी ऊर्जा खत्म हो जाने वाली है। धीरे-धीरे सबकुछ विलिन हो जाने वाला है। बस नाद और बिंदु ही बचेगा।
ओम शब्द का अर्थ;-
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म...। इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। अ मतलब अकार, उ मतलब ऊंकार और म मतलब मकार। 'अ' ब्रह्मा का वाचक है जिसका उच्चारण द्वारा हृदय में उसका त्याग होता है। 'उ' विष्णु का वाचक हैं जिसाक त्याग कंठ में होता है तथा 'म' रुद्र का वाचक है और जिसका त्याग तालुमध्य में होता है।
ओम का आध्यात्मिक अर्थ;-
ओ, उ और म- उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अपरम्पार है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं।
मोक्ष का साधन;-
ओम ही है एकमात्र ऐसा प्रणव मंत्र जो आपको अनहद या मोक्ष की ओर ले जा सकता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मूल मंत्र या जप तो मात्र ओम ही है। ओम के आगे या पीछे लिखे जाने वाले शब्द गोण होते हैं। प्रणव ही महामंत्र और जप योग्य है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण, कैवल्य ज्ञान या मोक्ष की अवस्था का प्रतीक है। जब व्यक्ति निर्विचार और शून्य में चला जाता है तब यह ध्वनि ही उसे निरंतर सुनाई देती रहती है।
प्रणव की महत्ता;-
शिव पुराण में प्रणव के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ और भाव बताए गए हैं- 'प्र' यानी प्रपंच, 'ण' यानी नहीं और 'व:' यानी तुम लोगों के लिए। सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है। यही कारण है ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है। दूसरे अर्थों में प्रणव को 'प्र' यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली 'ण' यानी नाव बताया गया है। इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से 'प्र' अर्थात प्रकर्षेण, 'ण' अर्थात नयेत् और 'व:' अर्थात युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव: है।
स्वत: ही उत्पन्न होता है जाप;-
ॐ के उच्चारण का अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आता है जबकि उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं होती आप सिर्फ आंखों और कानों को बंद करके भीतर उसे सुनें और वह ध्वनि सुनाई देने लगेगी। भीतर प्रारंभ में वह बहुत ही सूक्ष्म सुनाई देगी फिर बढ़ती जाएगी। साधु-संत कहते हैं कि यह ध्वनि प्रारंभ में झींगुर की आवाज जैसी सुनाई देगी। फिर धीरे-धीरे जैसे बीन बज रही हो, फिर धीरे-धीरे ढोल जैसी थाप सुनाई देने लग जाएगी, फिर यह ध्वनि शंख जैसी हो जाएगी और अंत में यह शुद्ध ब्रह्मांडीय ध्वनि हो जाएगी।
शारीरिक रोग और मानसिक शांति हेतु;-
इस मंत्र के लगातार जप करने से शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होता है। इससे शारीरिक रोग के साथ ही मानसिक बीमारियां दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं।
सृष्टि विनाश की क्षमता;-
ओम की ध्वनि में यह शक्ति है कि यह इस ब्रहमांड के किसी भी गृह को फोड़ने या इस संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखता है। यह ध्वनि सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और विराट से भी विराट होने की क्षमता रखती है।
शिव के स्थानों पर होता रहता है ओम का उच्चारण ;-
सभी ज्योतिर्लिंगों के पास स्वत: ही ओम का उच्चारण होता रहता है। यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे, तो आपको निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज 'डमरू' या 'ॐ' की ध्वनि जैसी होती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो। यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहां से 'ॐ' की आवाजें सुनाई देती हैं।
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