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क्या है शरीर के 112 चक्रों का महत्व?चक्रों का हमारे अस्तित्व के कई स्तरों पर क्या प्रभाव होता है?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • May 2, 2018
  • 19 min read

हमारी ऊर्जा प्रणाली में 112 चक्र हैं। इनमें से कुछ चक्र शरीर में एक ही जगह होते हैं, जबकि कुछ अन्य चक्र गतिशील होते हैं। कैसे प्रभावित करते हैं हमें ये चक्र ? जानते हैं कि इनका हमारे विचारों, भावनाओं पर क्या असर पड़ता है।

भौतिक अस्तित्व और ऊर्जा–अस्तित्व की एक खास ज्यामिति है। परमाणु से लेकर ब्रह्मांड तक, दुनिया की हर चीज जिस तरह काम करती है, उसके पीछे ज्यामिति की सटीकता है। ज्यामिति के सबसे मूलभूत और सबसे स्थायी आकारों में से एक है – त्रिकोण। मानव की ऊर्जा-प्रणाली में, दो समबाहु त्रिकोण होते हैं – एक नीचे है जिसका मुख ऊपर की तरफ है और ऊपर है जिसका मुख नीचे की ओर है। आम तौर पर ये दोनों त्रिकोण अनाहत से ठीक ऊपर मिलते हैं। अपने मन और कल्पना के साथ काम करने के लिए जरूरी है कि इन दोनों त्रिकोणों का तालमेल ठीक रहे – कम से कम कुछ सीमा तक तो ठीक रहना जरूरी है। आदर्श तालमेल यह होगा कि दोनों त्रिकोण एक-दूसरे को इस तरह काटें कि छह बिंदुओं वाला एक तारा बने जिसके बाहरी हिस्से में छह समबाहु त्रिकोण हों।

विशुद्धि चक्र कल्पना का आधार है

जरूरी तालमेल होने पर आप अपनी कल्पना को साकार करने में सक्षम होंगे। अपनी कल्पना की शक्ति को बढ़ाने के लिए आपको ऊपर की ओर मुख वाले त्रिकोण को, जो शरीर की ज्यामिति के अर्थों में बुनियाद है, को ऊपर की तरफ इस तरह उठाना होगा कि इसमें विशुद्धि भी शामिल हो जाए।

अगर आपके पास ऐसी कोई साधना नहीं है, तो आप एक आसान तरीका आजमा सकते हैं – एक खास समय तक भूखे रहने से भी यह लाभ मिलता है। विशुद्धि चक्र आपकी कल्पना का आधार है। इस त्रिकोण को ऊपर उठाने और उसे वहां थामे रखने के लिए खास तरह की साधना होती है। अगर आपके पास ऐसी कोई साधना नहीं है, तो आप एक आसान तरीका आजमा सकते हैं – एक खास समय तक भूखे रहने से भी यह लाभ मिलता है। आम तौर पर जब पेट खाली होता है, तो नीचे वाला त्रिकोण अपने आप ऊपर उठ जाता है। भोजन कर लेने के बाद, वह फिर से नीचे चला जाता है।

चक्रों को सक्रिय रखने का महत्व

शरीर में एक सौ चौदह चक्र होते हैं। ऊर्जा शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियां होती हैं जिनसे ऊर्जा प्रवाहित होती है, और एक सौ चौदह महत्वपूर्ण मिलन बिंदु होते हैं, जहां काफी संख्या में नाड़ियां मिलती हैं और फिर बंट जाती हैं।

इन बिंदुओं को आम तौर पर चक्र कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है पहिया या वृत्त। हालांकि वास्तव में वे त्रिकोण होते हैं। इन बिंदुओं को आम तौर पर चक्र कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है पहिया या वृत्त। हालांकि वास्तव में वे त्रिकोण होते हैं। हम उन्हें ‘चक्र’ इसलिए कहते हैं क्योंकि यह गति – आगे बढ़ने की ओर संकेत करता है। इन एक सौ चौदह चक्रों में से दो भौतिक क्षेत्र के बाहर हैं। ज्यादातर इंसानों के लिए ये दोनों बहुत अस्पष्ट होते हैं, जब तक कि वे इसके लिए जरूरी साधना न करें। बाकी एक सौ बारह चक्रों में से कुछ दैहिक स्तर पर शरीर के कुछ खास हिस्सों में स्थित हैं। बाकी चक्र कुछ हद तक गतिशील हो सकते हैं।

सभी कार्यों में प्रभावशाली होने के लिए चक्र लचीले होने चाहिए

आपके शरीर में चक्र किस तरह गतिशील हैं कि यह इस पर निर्भर करता है कि आप खुद के साथ क्या करते हैं। अगर आप अलग-अलग तरह की गतिविधियों और विभिन्न स्थितियों में सामंजस्य बिठाने में खुद को समर्थ बनाना चाहते हैं, तो शरीर की प्राण संबंधी प्रक्रिया या चक्र प्रणाली को उसी के अनुसार व्यवस्थित करने की जरूरत है।

आपके शरीर में चक्र किस तरह गतिशील हैं कि यह इस पर निर्भर करता है कि आप खुद के साथ क्या करते हैं। चक्रों को गतिशील रखने के लिए कुछ करना जरूरी है क्योंकि चक्रों की गतिशीलता यह तय करती है कि अलग-अलग तरह की जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न परिस्थितियों में आप कितने लचीले और प्रभावी हैं। ज्यादातर इंसानों के साथ समस्या यह होती है कि एक स्थिति में वे अच्छी तरह काम कर पाते हैं मगर दूसरी स्थिति में वे पूरी तरह असफल हो जाते हैं। इसकी वजह यह है कि वे सिर्फ एक खास तरीके से सोच सकते हैं, महसूस कर सकते हैं और काम कर सकते हैं।

आपको हर काम अच्छी तरह करने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन अगर आपकी ऊर्जा प्रणाली अकड़ी हुई है और उसमें लचीलापन नहीं है, तो यह नहीं होगा। इसलिए अपने सिस्टम को गतिशील रखना महत्वपूर्ण है। सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि हम दुनिया में अलग-अलग तरह के क्रियाकलाप करना चाहते हैं। यह आपके अनुभव को भी एक खास लचीलापन देता है जिससे आप किसी भी तरह की परिस्थिति में सहज होते हैं। सहज होने के लिए, आपकी ऊर्जा को लचीला होना चाहिए। इन एक सौ बारह चक्रों का इस्तेमाल आपकी परम प्रकृति तक पहुंचने के एक सौ बारह मार्गों के रूप में किया जा सकता है। इसी वजह से आदियोगी ने परम तत्व की प्राप्ति के एक सौ बारह तरीके बताए।

ऊर्जा के दो त्रिकोण परस्पर मिलने चाहिएं

आपके शरीर विज्ञान के इस जटिल त्रिकोणीय ढांचे को अपने मन मुताबिक चलाने में सक्षम होने के लिए एक अलग स्तर की साधना चाहिए। मगर सबसे मूलभूत चीज यह है कि इन दोनों त्रिकोणों को परस्पर काटना चाहिए।

मेरे शब्दों से आपको ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। मैं सिर्फ आपको भ्रमित करने के लिए कुछ कहता हूं। आप बातचीत से किसी को ज्ञान नहीं दे सकते। जैसा मैंने कहा अगर आप दोनों समबाहु त्रिकोणों को ऐसे बिंदु तक ले आएं, जहां वे एक-दूसरे को इस तरह काटते हों कि छह समबाहु त्रिकोणों वाला एक तारा बन जाए, तो आपका सिस्टम संतुलित और बहुत ग्रहणशील हो जाता है। मेरा काम आप तक कुछ संप्रेषित करना यानी पहुंचाना है, जिसके लिए आपमें ग्रहणशीलता की जरूरत है। मेरे शब्दों से आपको ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। मैं सिर्फ आपको भ्रमित करने के लिए कुछ कहता हूं। आप बातचीत से किसी को ज्ञान नहीं दे सकते। रूपांतरण की शक्ति तो उपस्थिति में होती है।

निष्कर्ष से भ्रम और फिर चेतनता तक

बातचीत से सिर्फ लोगों के मूर्खतापूर्ण निष्कर्षों को नष्ट किया जा सकता है। निष्कर्षों के नष्ट होने पर भ्रम पैदा होता है। दुनिया में हर चीज के बारे में खुशी-खुशी भ्रमित होना एक अच्छी स्थिति है। इसका मतलब है कि आप लगातार हर चीज पर ध्यान दे रहे हैं।

आपके पास जितने निष्कर्ष होते हैं, आपके दिमाग और शरीर में उतनी ही अकड़न होती है। जब आपको एहसास होता है कि आप कुछ नहीं जानते, तो आप ग्रहणशील हो जाते हैं। अगर आपके पास हर चीज के बारे में निष्कर्ष हो, तो फिर कोई ग्रहणशीलता नहीं होती। अगर आप हर चीज को लेकर निष्कर्ष रखते हैं, तो आपको किसी चीज पर ध्यान देने की जरूरत नहीं होती – आप किसी मरे हुए इंसान की तरह जीवन जी सकते हैं। आपके पास जितने निष्कर्ष होते हैं, आपके दिमाग और शरीर में उतनी ही अकड़न होती है।

हठ योग भी मन से जुड़ा है

अगर आप रोज हठ योग करते हैं, तो आप ध्यान देते होंगे कि जिस दिन आपका रवैया अकड़ा हुआ होता है, उस दिन आपका शरीर भी नहीं मुड़ता। जिस दिन आप खुश और दिमागी तौर पर लचीले होते हैं, आपका शरीर भी बेहतर तरीके से मुड़ता है।

वास्तव में लोगों के पास जितने विकल्प होते हैं, वे उतने ही ज्यादा बीमार पड़ते हैं।आपकी चेतनता की प्रकृति आपके जीवन के हर पल, आपके शरीर की हर कोशिका में अभिव्यक्त होती है। यही वजह है कि आजकल दुनिया में बहुत सी बीमारियां हैं, जिन्हें इंसान खुद पैदा करता है। पहले कभी इंसानों के पास भोजन के इतने विकल्प नहीं थे, जितने आज हैं। पहले के समय में, लोग वह खाते थे, जो स्थानीय तौर पर उपलब्ध होता था। आजकल इतनी विविधता के बावजूद, बहुत सी बीमारियां हैं। वास्तव में लोगों के पास जितने विकल्प होते हैं, वे उतने ही ज्यादा बीमार पड़ते हैं।

चेतना की प्रकृति स्वास्थ्य तय करती है

अमेरिका शायद उन देशों में से एक है जहां भोजन के विकल्पों की सबसे अधिक विविधता है, लेकिन वे स्वास्थ्य सेवाओं पर भी बड़े पैमाने पर खर्च कर रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर उनका खर्च तीन ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष है।

अगर आप अपनी चेतना की प्रकृति को ठीक रखना नहीं जानते, तो आप नहीं जान पाएंगे कि अपने शरीर को स्वस्थ कैसे रखें। यह मानवता के खिलाफ एक अपराध है। जिन लोगों को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता, उनका बीमार होना समझ में आता है। मगर अच्छी तरह खाने वाले लोग अगर बीमार पड़ें, तो इसका मतलब है कि कहीं कोई बुनियादी गलती है। हम यह समझ नहीं पाए हैं कि हमारे शरीर की हर कोशिका हमारी चेतना की प्रकृति से बनी है। अगर आप अपनी चेतना की प्रकृति को ठीक रखना नहीं जानते, तो आप नहीं जान पाएंगे कि अपने शरीर को स्वस्थ कैसे रखें। फिर आपका शरीर संयोग से काम करेगा, जो कि होना जरुरी नहीं है।

चेतनता ही हमें सभी जीवों अलग बनाती है

हम इंसान वह सब कुछ करते हैं, जो बाकी जीव करते हैं – हम खाते हैं, सोते हैं, बच्चे पैदा करते हैं और मर जाते हैं। उनसे हमें अलग करने वाली एक चीज यह है कि हम इन सब को लेकर बहुत हंगामा करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि हम इन सारी चीजों को पूरी चेतनता में कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप पूरी चेतनता में खा सकते हैं। मान लीजिए, आपको बहुत भूख लगी है।

अगर आप सिर्फ क्रिया में नहीं, बल्कि विचार, भावना और ऊर्जा में, जीवन के हर पहलू को चेतन बना देंगे – तो आप दुनिया के शिखर पर हो सकते हैं।अगर आप कोई और जीव होते, तो आप खाने लायक कोई भी चीज लेकर उसे झटपट खा लेते। मगर एक इंसान के रूप में आप भोजन के समय का इंतजार करते हैं, मेज पर बैठते हैं, मंत्र पढ़ते हैं और दोनों हाथों से अपने मुंह में ठूंसने की बजाय, दाहिने हाथ से खाते हैं। इसी को चेतनता कहते हैं। अगर आप सिर्फ शरीर की बात सुनेंगे, तो आप तुरंत खाना चाहेंगे। मगर चूंकि आपके पास शरीर की बाध्यता को रोकने के लिए जरूरी बुद्धि और जागरूकता है, आप चेतन तरीके से प्रतिक्रिया कर सकते हैं। अगर कोई बहुत बाध्यकारी तरीके से बर्ताव करता है, तो कहा जाता है कि वह जानवर की तरह है। इसलिए यह बाध्यता से चेतनता तक की यात्रा है।

चेतनता आपको अपनी प्रवृत्तियों से मुक्त होने की संभावना प्रदान करती है। चाहे अभी तक आप हर तरह की प्रवृत्तियों के वश में रहे हों, अगर अब आप पूरी चेतना में प्रतिक्रिया करते हैं, तो आपके और आपकी जमा की हुई प्रवृत्तियों के बीच एक दूरी होगी। अगर आप सिर्फ क्रिया में नहीं, बल्कि विचार, भावना और ऊर्जा में, जीवन के हर पहलू को चेतन बना देंगे – तो आप दुनिया के शिखर पर हो सकते हैं।

चक्र वे ऊर्जा केन्द्र हैं, जिसके माध्यम से अंतरिक्ष ब्रह्माण्ड की ऊर्जा मानव शरीर में प्रवाहित होती है। "दैनिक जीवन में योग” का अभ्यास इन केन्द्रों को जाग्रत कर सकता है जो सभी में और हर एक व्यक्ति में विद्यमान है।

ये ८ प्रमुख चक्र हैं और सभी हमारे अस्तित्व के खास पक्ष से संबद्ध हैं।* [1].

1-मूलाधार चक्र - मूल केन्द्र

2-स्वाधिष्ठान चक्र - निचले पेट का केन्द्र

3-मणिपुर चक्र - नाभि केन्द्र

4-अनाहत चक्र - हृदय केन्द्र

5-विशुद्धि चक्र - कंठ केन्द्र

6-आज्ञा चक्र - भोंहों के मध्य केन्द्र

7-बिन्दु चक्र - चंद्र केन्द्र

8-सहस्रार चक्र - मुकुट केन्द्र

पूरे शरीर में कई अन्य केन्द्र भी समाहित हैं और उनकी स्थिति और गुणों से उनकी ऊर्जा और स्पंदन को पहचाना जाता है।

चक्रों का हमारे अस्तित्व के कई स्तरों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है।

पहला स्तर शारीरिक है। शरीर में जिस स्थान पर चक्र स्थित है वहां ग्रन्थियां, अवयव और नाडिय़ां हैं, जिनको श्वास व्यायामों, ध्यान, आसनों और मंत्रों से सक्रिय किया जा सकता है।

दूसरा स्तर नक्षत्रीय स्तर है। चक्रों का स्पंदन और ऊर्जा प्रवाह हमारी चेतना और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं। गलत भोजन, बुरी संगत और नकारात्मक विचार चक्रों की ऊर्जा को कम या बाधित कर देते हैं, जिससे चेतना अव्यवस्थित और शरीर बीमार हो सकता है।

अपनी स्वाभाविक अवस्था में, चक्रों की ऊर्जा एक घड़ी की दिशा में चलती है। थोड़े से अभ्यास से हम चक्रों की प्रभा को अपने हाथ की हथेली से अनुभव कर सकते हैं और घूमने की दिशा तय कर सकते हैं। हम चक्रों के घुमाव को शरीर के उस हिस्से पर 1 सेंटीमीटर ऊपर हाथ रखकर,जहां वह चक्र स्थित है, प्रभावित कर सकते हैं और हाथ को घड़ी की दिशा में कुछ मिनटों के लिए घुमा सकते हैं।

तीसरा महत्वपूर्ण स्तर आध्यात्मिक स्तर है जिससे नैसर्गिक ज्ञान, बुद्धि और जानकारी प्राप्त होती है। वह ऊर्जा जो सभी चक्रों को जाग्रत करती है कुंडलिनी कहलाती है। "कुंडल" का अर्थ है सांप, इसीलिए यह ऊर्जा 'सर्पशक्ति' के नाम से भी जानी जाती है। कुंडलिनी का जाग्रत होना चेतना जाग्रति की ही एक प्रक्रिया है। चेतना का फैलाव होता है, जागरूकता और स्पष्टता उच्चकोटिक होती है और जीवन ऊर्जा बढ़ जाती है। कुंडलिनी जाग्रत होने का अर्थ अज्ञान, भ्रम एवं अस्थिर विचारों से मुक्ति और बुद्धि, आत्मसंयम और आत्म अनुशासन का विकास है।

सामान्य मानव-अस्तित्व से संबद्ध पांच चक्र रीढ़ के साथ स्थित हैं। तीन दिव्य चक्र सिर में स्थित हैं। इनका स्पंदन और ऊर्जा हमें आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर ले जाती है। पशुओं की चेतना से संबद्ध चक्र पंजों से अनुत्रिक (Coccyx) तक में स्थित है, जहां रीढ़ शुरू होती है। हमारी अधोप्रकृति को न तो प्रोत्साहित करने और न ही जाग्रत करने के लिए (जिसे हम मानव के रूप में पहले ही समाप्त कर चुके हैं) हमें कभी भी इन चक्रों पर ध्यान एकाग्र नहीं करना चाहिए।

इस आध्यात्मिक पथ पर हमारा सामना हमारे आंतरिक गुणों और विशिष्टताओं से होता है, जब तक कि ये पूर्णरूप से शुद्ध और परिष्कृत नहीं होते। आज्ञा चक्र में हम आत्मज्ञान को प्राप्त होते हैं। बिन्दुचक्र में हम आत्मा की अमरता का अनुभव करते हैं और सहस्रार चक्र में परमचेतना का प्रगटीकरण और व्यक्ति का परमात्मा से मिलन, अपने आप घटित होता है। मानव रूप में, हमें भी यह अद्वितीय अवसर जीवन में मिलता है कि हम परम चेतना जाग्रत कर सकें और दिव्यात्मा का ज्ञान प्राप्त कर सकें। "दैनिक जीवन में योग" और "आत्म-मनन ध्यान” हमें यह मार्ग दिखाता है।

आठ प्रमुख चक्रों के प्रतीक चिह्न और गुण

मानव शरीर के भीतर हर चक्र का एक समानुरूप चिह्न, मंत्र और रंग और उसी के अनुसार तत्त्व, प्रफुल्ल कमल, पशु और दिव्य रूप है। ये प्रतीक छवियां हर चक्र के गुणों को दर्शाती है। ऐसे चिह्न हमें चक्र के विभिन्न गुणों के खोजने और ध्यान में आंतरिक अनुभूति में सहायता करते हैं। चक्र मंत्र के बारंबार जपने से उस चक्र की ऊर्जा जाग्रत और सुदृढ़ होती है।

सहस्रार =हजार, अनंत, असंख्य

सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे "हजार पंखुडिय़ों वाले कमल”, "ब्रह्म रन्ध्र” (ईश्वर का द्वार) या "लक्ष किरणों का केन्द्र” भी कहा जाता है, क्योंकि यह सूर्य की भांति प्रकाश का विकिरण करता है। अन्य कोई प्रकाश सूर्य की चमक के निकट नहीं पहुंच सकता। इसी प्रकार, अन्य सभी चक्रों की ऊर्जा और विकिरण सहस्रार चक्र के विकिरण में धूमिल हो जाते हैं।

सहस्रार चक्र में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति - मेधा शक्ति है। मेधा शक्ति एक हार्मोन है, जो मस्तिष्क की प्रक्रियाओं जैसे स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करता है। योग अभ्यासों से मेधा शक्ति को सक्रिय और मजबूत किया जा सकता है।

सहस्रार चक्र का कोई विशेष रंग या गुण नहीं है। यह विशुद्ध प्रकाश है, जिसमें सभी रंग हैं। सभी नाडिय़ों की ऊर्जा इस केन्द्र में एक हो जाती है, जैसे हजारों नदियों का पानी सागर में गिरता है। यहां अन्तरात्मा शिव की पीठ है। सहस्रार चक्र के जाग्रत होने का अर्थ दैवी चमत्कार और सर्वोच्च चेतना का दर्शन है। जिस प्रकार सूर्योदय के साथ ही रात्रि ओझल हो जाती है, उसी प्रकार सहस्रार चक्र के जागरण से अज्ञान धूमिल (नष्ट) हो जाता है।

यह चक्र योग के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता है- आत्म अनुभूति और ईश्वर की अनुभूति, जहां व्यक्ति की आत्मा ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है। जिसे यह उपलब्धि मिल जाती है, वह सभी कर्मों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है - पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से पूरी तरह स्वतंत्र। ध्यान में योगी निर्विकल्प समाधि (समाधि का उच्चतम स्तर) सहस्रार चक्र पर पहुंचता है, यहां मन पूरी तरह निश्चल हो जाता है और ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय एक में ही समाविष्ट होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं।

सहस्रार चक्र में हजारों पंखुडिय़ों वाले कमल का खिलना संपूर्ण, विस्तृत चेतना का प्रतीक है। इस चक्र के देवता विशुद्ध, सर्वोच्च चेतना के रूप में भगवान शिव है। इसका समान रूप तत्त्व आदितत्त्व, सर्वोच्च, आध्यात्मिक तत्त्व है। मंत्र वही है जैसा आज्ञा चक्र के लिए है-मूल जप ॐ।

बिंदु = नोंक, बूँद

बिन्दु चक्र सिर के शीर्ष भाग पर केशों के गुच्छे के नीचे स्थित है। बिन्दु चक्र के चित्र में २३ पंखुडिय़ों वाला कमल होता है। इसका प्रतीक चिह्न चन्द्रमा है, जो वनस्पति की वृद्धि का पोषक है। भगवान कृष्ण ने कहा है : ''मैं मकरंद कोष चंद्रमा होने के कारण सभी वनस्पतियों का पोषण करता हूं" (भगवद्गीता १५/१३)। इसके देवता भगवान शिव हैं, जिनके केशों में सदैव अर्धचन्द्र विद्यमान रहता है। मंत्र है शिवोहम्(शिव हूं मैं)। यह चक्र रंगविहीन और पारदर्शी है।

बिन्दु चक्र स्वास्थ्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है, हमें स्वास्थ्य और मानसिक पुनर्लाभ प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है। यह चक्र नेत्र दृष्टि को लाभ पहुंचाता है, भावनाओं को शांत करता है और आंतरिक सुव्यवस्था, स्पष्टता और संतुलन को बढ़ाता है। इस चक्र की सहायता से हम भूख और प्यास पर नियंत्रण रखने में सक्षम हो जाते हैं, और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाने की आदतों से दूर रहने की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। बिन्दु पर एकाग्रचित्तता से चिन्ता एवं हताशा और अत्याचार की भावना तथा हृदय दमन से भी छुटकारा मिलता है।

बिन्दु चक्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, स्फूर्ति और यौवन प्रदान करता है, क्योंकि यह "अमरता का मधुरस" (अमृत) उत्पन्न करता है। यह अमृतरस साधारण रूप से मणिपुर चक्र में गिरता है, जहां यह शरीर द्वारा पूरी तरह से उपयोग में लाए बिना ही जठराग्नि से जल जाता है। इसी कारण प्राचीन काल में ऋषियों ने इस मूल्यवान अमृतरस को संग्रह करने का उपाय सोचा और ज्ञात हुआ कि इस अमृतरस के प्रवाह को जिह्वा और विशुद्धि चक्र की सहायता से रोका जा सकता है। जिह्वा में सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्र होते हैं, इनमें से हरेक का शरीर के अंग या क्षेत्र से संबंध होता है। उज्जाई प्राणायाम और खेचरी मुद्रा योग विधियों में जिह्वा अमृतरस के प्रवाह को मोड़ देती है और इसे विशुद्धि चक्र में जमा कर देती है। एक होम्योपैथिक दवा की तरह सूक्ष्म ऊर्जा माध्यमों द्वारा यह संपूर्ण शरीर में पुन: वितरित कर दी जाती है, जहां इसका आरोग्यकारी प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।

आज्ञा =आदेश, ज्ञान

आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे "तीसरा नेत्र” भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह ३ प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है।

इसका मंत्र है ॐ। आज्ञा चक्र का रंग सफेद है। इसका तत्व मन का तत्व, अनुपद तत्त्व है। इसका चिह्न एक श्वेत शिवलिंगम्, सृजनात्मक चेतना का प्रतीक है। इसमें और बाद के सभी चक्रों में कोई पशु चिह्न नहीं है। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं।

आज्ञा चक्र के प्रतीक चित्र में दो पंखुडिय़ों वाला एक कमल है जो इस बात का द्योतक है कि चेतना के इस स्तर पर 'केवल दो', आत्मा और परमात्मा (स्व और ईश्वर) ही हैं। आज्ञा चक्र की देव मूर्तियों में शिव और शक्ति एक ही रूप में संयुक्त हैं। इसका अर्थ है कि आज्ञा चक्र में चेतना और प्रकृति पहले ही संयुक्त है, किन्तु अभी भी वे पूर्ण ऐक्य में समाए नहीं हैं।

इस चक्र के गुण हैं - एकता, शून्य, सत, चित्त और आनंद। 'ज्ञान नेत्र' भीतर खुलता है और हम आत्मा की वास्तविकता देखते हैं - इसलिए 'तीसरा नेत्र' का प्रयोग किया गया है जो भगवान शिव का द्योतक है। आज्ञा चक्र 'आंतरिक गुरू' की पीठ (स्थान) है। यह द्योतक है बुद्धि और ज्ञान का, जो सभी कार्यों में अनुभव किया जा सकता है। उच्चतर, नैतिक विवेक के तर्कयुक्त शक्ति के समक्ष अहंकार आधारित प्रतिभा समर्पण कर चुकी है। तथापि, इस चक्र में एक रुकावट का उल्टा प्रभाव है जो व्यक्ति की परिकल्पना और विवेक की शक्ति को कम करता है, जिसका परिणाम भ्रम होता है।

विष = जहर, अशुद्धता

शुद्धि = अवशिष्ट निकालना

विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित है। इसका मंत्र हम है। विशुद्धि का रंग बैंगनी है। इस चक्र में हमारी चेतना पांचवें स्तर पर पहुंच जाती है। इसका समानरूप तत्त्व आकाश (अंतरिक्ष) है। हम इसका अनुवाद 'ईश्वर' (लोकोत्तर) भी कर सकते हैं, इसका अभिप्राय यह है कि यह स्थान ऊर्जा से भरा रहना चाहिए। विशुद्धि चक्र उदान प्राण का प्रारंभिक बिन्दु है। श्वसन के समय शरीर के विषैले पदार्थों को शुद्ध करना इस प्राण की प्रक्रिया है। इस मुख्य कार्य के कारण ही इस चक्र का नाम व्युत्पन्न है। शुद्धिकरण न केवल शारीरिक स्तर पर ही होता है अपितु मनोभाव और मन के स्तर पर भी होता है। जीवन में हमने जिन समस्याओं और दुखद अनुभवों को 'निगल लिया' और भीतर दबा लिया, वे तब तक हमारे अवचेतन मन में बने रहते हैं, जब तक कि हम उनका सामना नहीं करते और बुद्धि से उनका समाधान नहीं कर देते।

विशुद्धि चक्र का देवता सृष्टिकर्ता, ब्रह्मा है, जो चेतना का प्रतीक है। ध्यान में जब व्यक्ति की चेतना आकाश में समाहित हो जाती है, हमें ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है। विशुद्धि चक्र का प्रतीक पशु एक सफेद हाथी है। हमें इसके चित्र में एक चन्द्रमा की छवि भी दिखती है जो मन का प्रतीक है।

विशुद्धि चक्र प्रसन्नता की अनगिनत भावनाओं और स्वतंत्रता को दर्शाता है जो हमारी योग्यता और कुशलता को प्रफुल्लित करता है। विकास के इस स्तर के साथ, एक स्पष्ट वाणी, गायन और भाषण की प्रतिभा के साथ-साथ एक संतुलित और शांत विचार भी होते हैं।

जब तक यह चक्र पूर्ण विकसित नहीं हो जाता, कुछ खास कठिनाइयां अनुभव की जा सकती हैं। विशुद्धि चक्र में रुकावट चिन्ता की भावनाएं, स्वतंत्रता का अभाव, बंधन, टेंटुए और कंठ की समस्याएं उत्पन्न करता है। कुछ शारीरिक कठिनाइयों, जैसे सूजन और वाणी में रुकावट, का भी सामना करना पड़ सकता है।

विशुद्धि चक्र के प्रतीक चित्र में सोलह पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये उन सोलह शक्तिशाली कलाओं (योग्यताओं) का प्रतीक है, जिनसे एक मानव विकास कर सकता है। चूंकि विशुद्धि चक्र ध्वनि का केन्द्र है, संख्या सोलह संस्कृत के सोलह स्वरों की भी प्रतीक है। इस केन्द्र में वाक्सिद्धि अनुभव की जा सकती है, जो एक ऐसी असाधारण योग्यता है कि व्यक्ति जो भी बोले वह सत्य सिद्ध हो जाए।

अनाहत नाद = शाश्वत ध्वनि ॐ ध्वनि

अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थित है। इसका मंत्र यम(YAM)है। अनाहत चक्र का रंग हलका नीला, आकाश का रंग है। इसका समान रूप तत्त्व वायु है। वायु प्रतीक है-स्वतंत्रता और फैलाव का। इसका अर्थ है कि इस चक्र में हमारी चेतना अनंत तक फैल सकती है।

अनाहत चक्र आत्मा की पीठ (स्थान) है। अनाहत चक्र के प्रतीक चित्र में बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का प्रतीक है। तथापि, हृदय केन्द्र भावनाओं और मनोभावों का केन्द्र भी है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से ढाले गए त्रिकोण हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर। जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती है। तथापि यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है, तब हमारी भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं। तब होता यह है कि इच्छा, द्वेष-जलन, उदासीनता और हताशा भाव हमारे ऊपर छा जाते हैं।

अनाहत, ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है। अनाहत चक्र से उदय होने वाली दूसरी शक्ति संकल्प शक्ति है जो इच्छा पूर्ति की शक्ति है। जब आप किसी इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, तब अपने हृदय में इसे एकाग्रचित्त करें। आपका अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से आपकी इच्छा पूरी होगी।

अनाहत चक्र का प्रतीक पशु कुरंग (हिरण) है जो अत्यधिक ध्यान देने और चौकन्नेपन का हमें स्मरण कराता है। इस चक्र के देवता शिव और पार्वती हैं, जो चेतना और प्रकृति के प्रतीक हैं। इस चक्र में दोनों को सुव्यवस्था में एक हो जाना चाहिए।

मणि = गहना

पुर = स्थान, शहर

मणिपुर चक्र नाभि के पीछे स्थित है। इसका मंत्र है रम। जब हमारी चेतना मणिपुर चक्र में पहुंच जाती है तब हम स्वाधिष्ठान के निषेधात्मक पक्षों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। मणिपुर चक्र में अनेक बहुमूल्य मणियां हैं जैसे स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे गुण।

मणिपुर चक्र का रंग पीला है। मणिपुर का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु मेढ़ा (मेष)है। इसका अनुरूप तत्त्व अग्नि है, इसलिए यह 'अग्नि' या 'सूर्य केन्द्र' के नाम से भी जाना जाता है। शरीर में अग्नि तत्त्व सौर मंडल में गर्मी के समान ही प्रकट होता है। मणिपुर चक्र स्फूर्ति का केन्द्र है। यह हमारे स्वास्थ्य को सुदृढ़ और पुष्ट करने के लिए हमारी ऊर्जा नियंत्रित करता है। इस चक्र का प्रभाव एक चुंबक की भांति होता है, जो ब्रह्माण्ड से प्राण को अपनी ओर आकर्षित करता है।

पाचक अग्नि के स्थान के रूप में, यह चक्र अग्न्याशय और पाचक अवयवों की प्रक्रिया को विनियमित करता है। इस केन्द्र में अवरोध कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे पाचन में खराबियां, परिसंचारी रोग, मधुमेह और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव। तथापि, एक दृढ़ और सक्रिय मणिपुर चक्र अच्छे स्वास्थ्य में बहुत सहायक होता है और बहुत सी बीमारियों को रोकने में हमारी मदद करता है। जब इस चक्र की ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित होती है तो प्रभाव एक शक्तिपुंज के समान, निरन्तर स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है - संतुलन और शक्ति बनाए रखता है।

मणिपुर चक्र के प्रतीक चित्र में दस पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। यह दस प्राणों, प्रमुख शक्तियों का प्रतीक है जो मानव शरीर की सभी प्रक्रियाओं का नियंत्रण और पोषण करती है। मणिपुर का एक अतिरिक्त प्रतीक त्रिभुज है, जिसका शीर्ष बिन्दु नीचे की ओर है। यह ऊर्जा के फैलाव, उद्गम और विकास का द्योतक है। मणिपुर चक्र के सक्रिय होने से मनुष्य नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त होता है और उसकी स्फूर्ति में शुद्धता और शक्ति आती है।

इस चक्र के देवता विष्णु और लक्ष्मी हैं। भगवान विष्णु उदीयमान मानव चेतना के प्रतीक हैं, जिनमें पशु चारित्रता बिल्कुल नहीं है। देवी लक्ष्मी प्रतीक है-भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि की, जो भगवान की कृपा और आशीर्वाद से फलती-फूलती है।

स्व = आत्मा

स्थान=जगह

स्वाधिष्ठान चक्र त्रिकास्थि (पेडू के पिछले भाग की पसली) के निचले छोर में स्थित है। इसका मंत्र वम (ङ्क्ररू) है।

स्वाधिष्ठान चक्र हमारे विकास के एक-दूसरे स्तर का संकेतक है। चेतना की शुद्ध, मानव चेतना की ओर उत्क्रांति का प्रारंभ स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। यह अवचेतन मन का वह स्थान है जहां हमारे अस्तित्व के प्रारंभ में गर्भ से सभी जीवन अनुभव और परछाइयां संग्रहीत रहती हैं। मूलाधार चक्र हमारे कर्मों का भंडारग्रह है तथापि इसको स्वाधिष्ठान चक्र में सक्रिय किया जाता है।

स्वाधिष्ठान चक्र की जाग्रति स्पष्टता और व्यक्तित्व में विकास लाती है। किन्तु ऐसा हो, इससे पहले हमें अपनी चेतना को नकारात्मक गुणों से शुद्ध कर लेना चाहिए। स्वाधिष्ठान चक्र के प्रतीकात्मक चित्र ६ पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये हमारे उन नकारात्मक गुणों को प्रकट करते हैं, जिन पर विजय प्राप्त करनी है - क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रूरता, अभिलाषा और गर्व। अन्य प्रमुख गुण जो हमारे विकास को रोकते हैं, वे हैं आलस्य, भय, संदेह, बदला, ईर्ष्या और लोभ।

स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीक पशु मगर (मगरमच्छ) है। यह सुस्ती, भावहीनता और खतरे का प्रतीक है जो इस चक्र में छिपे हैं। स्वाधिष्ठान चक्र का तत्त्व है जल, यह भी छुपे हुए खतरे का प्रतीक है। जल कोमल और लचीला है, किन्तु यह जब नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो भयंकर शक्तिशाली भी है। स्वाधिष्ठान चक्र के साथ यही विचित्रता है। जब अवचेतन से चेतनावस्था की ओर नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती हैं, तब हम पूर्णरूप से संतुलन खो सकते हैं।

इस चक्र का देवता ब्रह्मा सृष्टिकर्ता और उनकी पुत्री सरस्वती बुद्धि और ललितकलाओं की देवी है। स्वाधिष्ठान का रंग संतरी, सूर्योदय का रंग है जो उदीयमान चेतना का प्रतीक है। संतरी रंग सक्रियता और शुद्धता का रंग है। यह सकारात्मक गुणों का प्रतीक है और इस चक्र में प्रसन्नता, निष्ठा, आत्मविश्वास और ऊर्जा जैसे गुण पैदा होते हैं।

मूल=जड़

आधार = नींव

मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है, यह मानव चक्रों में सबसे पहला है। इसका समान रूप मंत्र लम (LAM) है। मूलाधार चक्र पशु और मानव चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जहां पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संग्रहीत होते हैं। अत: कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र हमारे भावी प्रारब्ध का मार्ग निर्धारित करता है। यह चक्र हमारे व्यक्तित्व के विकास की नींव भी है।

मूलाधार चक्र की सकारात्मक उपलब्धियां स्फूर्ति, उत्साह और विकास हैं। नकारात्मक गुण हैं सुस्ती, निष्क्रियता, आत्म-केन्द्रित (स्वार्थी) और अपनी शारीरिक इच्छाओं द्वारा प्रभावित होना है।

इस चक्र का देवता भगवान शिव है जो पशुपति महादेव के रूप में ध्यानावस्थित है - जिसका अर्थ है कि निम्नस्तरीय गुणों पर नियंत्रण कर लिया गया है।

मूलाधार चक्र के सांकेतिक चित्र में चार पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये चारों मन के चार कार्यों : मानस, बुद्धि, चित्त और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं -यह सभी इस चक्र में उत्पन्न होते हैं।

जीवन चेतना है और चेतना उत्क्रांति का प्रयास करती है। मूलाधार चक्र के चिह्न की ऊर्जा और ऊपर उठने की गति दोनों ही विशेषता होती हैं। चक्र का रंग लाल है जो शक्ति का रंग है। शक्ति का अर्थ है ऊर्जा, गति, जाग्रति और विकास। लाल सुप्त चेतना को जाग्रत कर सक्रिय, सतर्क चेतना का प्रतीक है। मूलाधार चक्र का एक दूसरा प्रतीक चिह्न उल्टा त्रिकोण है, जिसके दो अर्थ हैं। एक अर्थ बताता है कि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा खिंच रही है और नीचे की ओर इस तरह आ रही जैसे चिमनी में जा रही हो। अन्य अर्थ चेतना के ऊर्ध्व प्रसार का द्योतक है। त्रिकोण का नीचे कीओर इंगित करने वाला बिन्दु प्रारंभिक बिन्दु है, बीज है, और त्रिकोण के ऊपर की ओर जाने वाली भुजाएं मानव चेतना की ओर चेतना के प्रगटीकरण के द्योतक हैं।

मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु ७ सूंडों वाला एक हाथी है। हाथी बुद्धि का प्रतीक है। ७ सूंडें पृथ्वी के ७ खजानों (सप्तधातु) की प्रतीक हैं। मूलाधार चक्र का तत्त्व पृथ्वी है, हमारी आधार और 'माता', जो हमें ऊर्जा और भोजन उपलब्ध कराती है।

....... SHIVOHAM...


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