क्या है भगवान श्री कृष्ण के 16,108 पत्नियां होने का रहस्य है?PART-02
- Chida nanda
- Aug 19, 2022
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प्रकृति रूप शरीर के नौ द्वार तथा नौ चक्र;-
04 FACTS;-
1-अस्तित्व में सभी कुछ जोड़ों में मौजूद है - स्त्री-पुरुष, दिन-रात, तर्क-भावना आदि। इस दोहरेपन को द्वैत भी कहा जाता है। हमारे अंदर इस द्वैत का अनुभव हमारी रीढ़ में बायीं और दायीं तरफ मौजूद नाड़ियों से पैदा होता है।त्रिदेव अर्धनारीश्वर है क्योंकि उनकी बायीं तरफ इड़ा नाड़ी तथा दायीं तरफ पिंगला नाड़ी हैं जो पुरुष और स्त्री ऊर्जा के संश्लेष्ण का प्रतिनिधित्व करता है।इड़ा और पिंगला जीवन की बुनियादी द्वैतता की प्रतीक हैं।
2-अर्धनारीश्वर शब्द का अर्थ है ..
अर्ध – आधा, नारी – महिला, ईश्वर ..यानी की भगवान अपने आधे हिस्से मे स्त्री रूप मे है. इड़ा और पिंगला अर्थात स्त्रीऔर पुरुष ऊर्जा का संश्लेष्ण सभी सृजन का आधार है। इसलिए शिव और शक्ति एक साथ मिलकर इस ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं. अर्धनारी रूप से यह भी पता चलता है कि शक्ति का महिला सिद्धांत भगवान, शिव के पुरुष सिद्धांत से अविभाज्य है।
3-इस शरीर में नौ द्वार हैं, दो आँख, दो कान, दो नाभि का छिद्र, एक मुख इस प्रकार सिर में सात द्वार हुये (आठवाँ) गुद्दा द्वारा और नौवाँ मूत्र द्वार । सात द्वार देवताओं या दिव्य गुण युक्त, आत्माओं के ठहरने का स्थान है। इससे रहने वाले समस्त जड़ और चेतन देवता परस्पर एक दूसरे की भलाई के लिये अपने-अपने स्थान पर हर समय सतर्क व जागरुक हैं। अग्निदेव, नेत्र और जठराग्नि के रूप में; पवनदेव श्वाँस-प्रश्वाँस व दस प्राणों के रूप में; वरुण देव जिह्वा और रक्त आदि के रूप में रहते हैं। इसी प्रकार अन्य देव भी शरीर के भिन्न-2 स्थानों में निवास करते है।
4-चैतन्य देवों में आत्मा और परमात्मा का यही निवास स्थान है। ये समस्त देव इस शरीर में सद्भाव और सहयोग से प्रीतिपूर्वक वर्तते हैं। इनमें परस्पर प्रेम की गंगा बहती है, किसी को किसी से द्वेष नहीं, सबके काम बंटे हुये हैं। अपने-अपने कार्यों को सम्पादन करने में सभी सचेष्ट एवं दक्ष हैं।
क्या प्रकृति का अंतिम नवम द्वार(बिंदु चक्र) श्रीराधा (आत्मा का प्रतीक) हीं है?-
नौ द्वार अर्थात नौ चक्र प्रकृति के है।तीन द्वार अधोमुखी तथा छह ऊर्ध्वमुखी हैं । मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा सत्य हैं। मृत्यु के समय हमारे कर्मों के फल केअनुसार ,किसी एक द्वार से हमारे प्राण निकलते हैं।दशम/दसवाँ द्वार जिसे शून्य चक्र भी कहते हैं; परमात्मा का स्थान, ब्रह्मरंध्र है। योगी जन इसी से होकर प्राण त्यागते हैं मरणोपरान्त कपाल क्रिया करने का उद्देश्य यही है कि प्राण का कोई अंश शेष रह गया हो तो वह उसी में होकर निकले और ऊर्ध्वगामी प्राप्त करे। योगशास्त्रों के अनुसार ब्रह्मसत्ता का मानव शरीर में प्रवेश सहस्रार स्थित इसी मार्ग से होता है। क्या रहस्य है आज्ञाचक्र में ?- 02 FACTS;- 1-114 चक्र में से .. 7 मुख्य चक्र, 21 माइनर चक्र और 86 सूक्ष्म (MICRO)चक्र है।114 चक्र में से दो चक्र हमारे भौतिक शरीर से बाहर रहते हैं। मुख्य 7 चक्र में से एक.. सहस्रार चक्र भौतिक शरीर से बाहर होता हैं। माइनर 21चक्र आंखें,नाक, कान,कन्धा,हाथ,घुटना ,पैर आदि में होते है।सभी चक्र हर समय कार्यशील नहीं रहते हैं ; बाकी कुछ निष्क्रिय भी रहते है अर्थात उन चार चक्रो की गुप्त शक्तियाँ प्रकट नहीं होती हैं।छठवा आज्ञाचक्र को,युक्त त्रिवेणी कहते हैं। 108 कार्यशील रहते हैं बाकी चार इनके सक्रिय होने पर फलीभूत होने लगते हैं।कुंडलिनी जब चक्रों का भेदन करती है तो बाकी चार में शक्ति का संचार हो उठता है।
2-अष्ट प्रकृति अर्थात आठ चक्र ;जो पांच तत्वों 1. पृथ्वी, 2.जल , आप, 3. अग्नि, 4 वायु 5. आकाश तथा 6. मन, 7. बुद्धि, 8. अहंकार का प्रतीक है।आज्ञाचक्र में ऊर्जा के तीन स्तर है.. ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना या त्रिमूर्ति ब्रह्मा विष्णु और महेश की ऊर्जा।पहला तीन गुणों का प्रतीक है ,दूसरा उच्चतर शक्ति का प्रतीक है और तीसरी जो तीनो गुणों से परे जाती है।उन्हें विभिन्न नाम से जाना जाता है।जैसे... 2-1-आज्ञा चक्र/भृकुटि चक्र( मन का प्रतीक);- मेरुदण्ड(SPINAL CORD) पोला है । उससे अस्थि खण्डों के बीच में होता हुआ यह छिद्र नीचे से ऊपर तक चला गया है । इसी के भीतर सुषुम्ना नाड़ी विद्यमान है । मेरुदण्ड के उर्पयुक्त पाँच प्रदेश सुषुम्ना में अवस्थित पाँच चक्रों से सम्बन्धित हैं परन्तु छठे आज्ञा चक्र का स्थान मेरुदण्ड में नहीं आता । यह दोनों भवों के बीच होता है।आज्ञा चक्र को भ्रूमध्य मान लिया जाता है जो कि एक सहज भूल है।भ्रूमध्य वस्तुतः आज्ञा चक्र का आंतरिक परिक्षेत्र है;हाई टेंशन विद्युत क्षेत्र,अर्थात भ्रूमध्य पर एकाग्र होना आज्ञा चक्र पर एकाग्र होने के समरूप ही है। इसे ही Pineal gland तथा तृतीय नेत्र कहते हैं।यह मस्तक में Medulla के ऊपर भ्रूमध्य की ओर अवस्थित है।अतः भ्रूमध्य को ही आज्ञा चक्र मान लेने में भूल है भी और नही भी,क्योंकि तृतीय नेत्र की दिव्य ज्योति के दर्शन भ्रूमध्य के परिक्षेत्र में ही होते हैं।लेकिन इस तृतीय नेत्र का दर्शन सूक्ष्म है।जब हम चेतना को अंतर्मुखी कर मेडुला पर एकाग्र होते हैं तब आज्ञा चक्र एवम् कूटस्थ की दिव्य ज्योति के दर्शन होते हैं।Medulla oblongata और Kutastha (भौंहों के बीच का बिंदु) आज्ञा से संबंधित हैं और इन्हें अलग-अलग संस्थाओं के रूप में नहीं माना जा सकता है।Medulla को आज्ञा चक्र का भौतिक प्रतिरूप माना जाता है।इस प्रकार आज्ञा चक्र का आसन दो रेखाओं का प्रतिच्छेदन बिंदु/Intersecting Point है । 2-2-ललाट चक्र/कैलाश चक्र/कूटस्थ( बुद्धि का प्रतीक);- यह चक्र ललाट यानि माथे के बीच स्थित होता है।ललाट अथवा 'मस्तक' मानव शरीर में भौंहों के स्थान से लेकर सिर के केश तक तथा दाएँ कनपटी से लेकर बाएँ कनपटी तक के स्थान को कहा जाता है।कूटस्थ सूक्ष्म आध्यात्मिक अस्तित्व है जो देश-काल से परे है।कूट का अर्थ होता है "घन" -लोहार का घन।इसका गूढ़ अर्थ है "वह जो अपरिवर्तनीय है"।आत्मा के जैसे कूटस्थ भी अनश्वर है।योगी को यह विशुद्ध श्वेत तारे के रूप में दीखता है जो नीले एवम् सुनहरे मंडल के घेरे में है।स्पष्ट करने वाली बात यह है कि आज्ञा चक्र एवम् कूटस्थ का मूल स्त्रोत मेडुला है।यह पीनियल ग्रन्थि और तन्त्रिका तन्त्र को नियन्त्रित करता है।पीनियल ग्रंथि मस्तिष्क में एक और छोटी अंतःस्रावी ग्रंथि है। यह एक छोटे पाइनकोन के आकार का है प्रतीकात्मक रूप से, कई आध्यात्मिक संगठनों ने पाइन शंकु को एक आइकन के रूप में उपयोग किया है। यह पिट्यूटरी ग्रंथि के पीछे, मस्तिष्क के तीसरे Ventricle के पीछे स्थित होता है। पिट्यूटरी ग्रंथि, या हाइपोफिसिस, एक मटर के आकार की एक अंतःस्रावी ग्रंथि है।आध्यात्मिक नेत्र का अनुभव प्राप्त करने के लिए इस ग्रंथि पर ध्यान देना सार्थक है।पीनियल ग्रंथि पर लंबे समय तक एकाग्रता के बाद सफेद आध्यात्मिक प्रकाश का पूरा अनुभव होने के बाद, यह अंतिम क्रिया मानी जाती है जो आप समाधि में खो जाने से पहले अपने ध्यान को पूर्ण करने के लिए करते हैं। 2-3-रोहिणी चक्र/बिन्दु चक्र /Medulla oblongata ( अहंकार का प्रतीक);-
रोहिणी चक्र के अंदर छिपा होता है ... सातवां द्वार ;जहाँ पर शून्य चक्र तक पहुंचने का सरलतम मार्ग हैं ..जिसका नाम है बिन्दु चक्र । बिंदु Occipital region में स्थित है और इसे अपने आप में एक चक्र नहीं माना जाता है। हालाँकि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है क्योंकि यह एक दरवाजे के रूप में काम करता है जो जागरूकता को सहस्रार तक ले जाता है बिंदु विसर्ग को संक्षेप में ‘बिंदु’ कहा जाता है।बिन्दु का अर्थ ‘बूँद’ है। विर्ग माने ‘गिरना’। इस प्रकार बिंदु विसर्ग का तात्पर्य ‘बूँद का गिरना’ हुआ। यहाँ बिंदु का मतलब अमृत है। उच्चस्तरीय साधनाओं के दौरान जब मस्तिष्क से यह झरता है, तो ऐसी दिव्य मादकता का आभास होता है, जिसे साधारण नहीं, असाधारण कहना चाहिए। बिन्दु वह स्थान है जहाँ केश रेखा एक प्रकार के भंवर में मुड़ जाती है (यह वह बिंदु है जहाँ हिंदू अपना सिर मुंडवाने के बाद बालों को छोड़ देते हैं।) संपूर्ण मानव प्रगति काल के इतिहास में बिंदु की शक्ति अभी तक रहस्यात्मक ही बनी हुई है। इसे सृष्टि का मूल माना गया है।तंत्र में प्रत्येक बिन्दु शक्ति का केन्द्र है। यह शक्ति स्थायी चेतना के आधार की अभिव्यक्ति है। शास्त्रों में बिन्दु को वह आदिस्रोत माना गया है, जहाँ से सभी पदार्थों का प्रकटीकरण और अंततः जिसमें अभी का लय हो जाता है। आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी आदि सभी उसी की निष्पत्तियाँ हैं। NOTE;- ललाट चक्र( कूटस्थ) और रोहिणी चक्र( बिन्दु चक्र- Medulla)की गुप्त शक्तियाँ प्रकट नहीं होती है बल्कि आज्ञाचक्र में ही छिपी रहती है ; इसीलिए आज्ञाचक्र को युक्त त्रिवेणी कहते हैं।रोहिणी चक्र ..तक प्रकृतिलय ही हैं।सातवां द्वार ,ब्रह्मरंध्र /Fontanelle आत्मा का स्थान हैं ।इस द्वैत को हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति या श्रीकृष्ण एवं राधा का नाम देते हैं।यह सृजन से पहले की अवस्था हैं,अर्थात ब्रह्मा की ऊर्जा।श्रीराधा से मिलकर श्रीकृष्ण आत्माराम हो जाते हैं अर्थात इड़ा और पिंगला का मिलन और सुषुम्ना में ऊर्जा का प्रवेश।इसके अलावा आठवां चक्र उच्चतम केंद्र है 'विष्णुरन्ध्रा'।यह Fontanelle से लगभग 30 सेंटीमीटर ऊपर स्थित है।नौवां चक्र हैं शिवरन्ध्रा... निर्वाण चक्र।दो चक्र हमारे भौतिक शरीर से बाहर रहते हैं। क्या हैं सहस्रार चक्र?- 03 FACTS;- 1-सहस्रार चक्र ( आत्मा का प्रतीक) भौतिक शरीर से साढे 3 इंच ऊपर 1 हजार पंखुड़ियों का कमल है ,और अद्वैत, निर्गुण,निराकार ब्रह्म: का आसन हैं ।यह वास्तव में चक्र नहीं है बल्कि साक्षात तथा सम्पूर्ण परमात्मा और आत्मा है। सहस्रार चक्र मस्तिष्क के ऊपर ब्रह्मरंध में अपस्थित 6 सेंटीमीटर व्यास के एक अध खुले हुए कमल के फूल के समान होता है। ऊपर से देखने पर इसमें कुल 972 पंखुड़ियां दिखाई देता है। इसमें नीचे 960 छोटी-छोटी पंखुड़ियां और उनके ऊपर मध्य में 12 सुनहरी पंखुड़ियां सुशोभित रहती हैं।इसे हजार पंखुड़ियों वाला कमल कहते हैं। इसका चिन्ह खुला हुआ कमल का फूल है जो असीम आनन्द के केन्द्र होता है। इसमें इंद्रधनुष के सारे रंग दिखाई देते हैं लेकिन प्रमुख रंग बैंगनी होता है। इस चक्र में अ से क्ष तक की सभी स्वर और वर्ण ध्वनि उत्पन्न होती है। 2- पिट्यूट्री और पिनियल ग्रंथि का आंशिक भाग इससे सम्बंधित है। यह मस्तिष्क का ऊपरी हिस्सा और दाई आंख को नियंत्रित करता है।यह आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, एकीकरण,स्वर्गीय अनुभूति के विकास का मनोवैज्ञानिक केन्द्र है।यह आत्मा का उच्चतम स्थान है।सहस्रार का सम्बन्ध भी रीढ़ की हड्डी से सीधा नहीं है।इतने पर भी सूक्ष्म शरीर का सुषुम्ना मेरुदण्ड पाँच रीढ़ वाले और दो बिना रीढ़ वाले सभी सातों चक्रों को श्रृंखला में बाँधे हुए है।सूक्ष्म शरीर की सुषुम्ना में यह सातों चक्र जंजीर की कड़ियों की तरह परस्पर पूरी तरह सम्बन्ध हैं ।सहस्रार चक्र मस्तिष्क के मध्य भाग में है । 3-शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है । वहाँ से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है । वे धाराएँ मस्तिष्क के अगणित केन्द्रों की ओर दौड़ती हैं । इसमें से छोटी-छोटी चिनगारियाँ तरंगों के रूप में उड़ती रहती हैं।उनकी संख्या की सही गणना तो नहीं हो सकती, पर वे हैं हजारों । इसलिए हजार या हजारों का उद्बोधक 'सहस्रार' शब्द प्रयोग में लाया जाता है।सहस्रार चक्र का नामकरण इसी आधार पर हुआ है सहस्र फन वाले शेषनाग की परिकल्पना का यही आधार है।यह संस्थान ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ सम्पर्क साधने में अग्रणी है इसलिए उसे ब्रह्मरन्ध्र या ब्रह्मलोक भी कहते हैं।आज्ञाचक्र को सहस्रार का उत्पादन केन्द्र कह सकते हैं । क्या हैं निर्वाण चक्र?- 02 FACTS;- 1-सहस्रार चक्र के भीतर विद्यमान है निर्वाण चक्र जिसके भीतर निर्गुण, निराकार ब्रह्म: विराजमान है ।निर्वाण का सटीक अर्थ है- ज्ञान की प्राप्ति- जो मन (चित्त) की पहचान को खत्म करके मूल तथ्य से जुड़ाव पैदा करता है। सैद्धांतिक तौर पर निर्वाण एक ऐसे मन को कहा जाता है जो "न आ रहा है (भाव) और न जा रहा है (विभाव)" और उसने शाश्वतता की स्थिति को प्राप्त कर लिया है, जिससे "मुक्ति" (विमुक्ति) मिलती है।निर्वाण शरीर (बाडीलेस बाडी)-सहस्रार सामान्य मृत्यु में केवल हमारा स्थूल शरीर ही नष्ट होता है।शेष छः शरीर बचे रहते हैं जिनसे जीवात्मा अपनी वासनानुसार अगला जन्म प्राप्त करती है किंतु महामृत्यु में सभी छः शरीर नष्ट हो जाते हैं फ़िर पुनरागमन संभव नहीं होता।इसे ही अलग-अलग पंथों में मोक्ष,निर्वाण,कैवल्य कहा जाता है।माना जाता है की मृत्यु के समय जिसका सहत्रार खुल गया उसकी मोक्ष हो जाती है |अंतिम क्रिया की कपाल क्रिया इसी केंद्र पर आधारित होती है .. 2-स्थिरता, शीतलता और शांति भी इसके अर्थ हैं। निर्वाण की प्राप्ति की तुलना अविद्या (अज्ञानता) के अंत से की जाती है। जिससे उस मन:स्थिति की इच्छा (चेतना) जागृत होती है जो जीवन चक्र (संसार) से मुक्ति दिलाती है। एक स्तर का ज्ञान प्राप्त करने के बाद व्यक्ति निर्वाण को मानसिक चेतना की तरह अनुभव करता है।संसार मूलत: तृष्णा और अज्ञानता की उपज है । व्यक्ति बिना मृत्यु के भी निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है। जब निर्वाण प्राप्त कर चुके व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उस मृत्यु को मोक्ष कहते हैं, क्योंकि वह जीवन-मरण और पुनर्जन्म (संसार) के आखिरी जुड़ाव से पूर्ण रूप से छूट जाता है और उसका फिर से जन्म नहीं होता ।पुराण कथा के अनुसार राजा बलि का राज्य तीनों लोकों में था । भगवान् ने वामन रूप में उससे साढ़े तीन कदम भूमि की भीक्षा माँगी । बलि तैयार हो गये । तीन कदम में तीन लोक और आधे कदम में बलि का शरीर नाप कर विराट् ब्रह्म ने उस सबको अपना लिया।हमारा शरीर साढ़े तीन हाथ लम्बा है ।चक्रों के जागरण में यदि उसे लघु से महान्-अण्ड से विभु कर लिया जाय तो उसकी साढ़े तीन हाथ की लम्बाई-साढ़े तीन एकड़ जमीन न रहकर लोक-लोकान्तरों तक विस्तृत हो सकती है और उस उपलब्धि की याचना करने के लिए भगवान् वामन रूप धारण करके हमारे दरवाजे पर हाथ पसारे हुए उपस्थित हो सकते हैं ।
श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा के रहस्य;-
09 POINTS;-
NOTE;-
प्रत्येक आत्मा श्रीकृष्ण हैं ।यह महत्वपूर्ण है कि लिंग के आधार पर भ्रमित न हों। तथ्य-प्रारूप को सुविधाजनक बनाने के लिए जेंडर संदर्भ आवश्यक हैं।लिंग संदर्भ है ..यदि आप पुरुष हैं - यदि आप महिला हैं - अपने साथी का लिंग तदनुसार बदलें। श्रीकृष्ण आपकी आत्मा का आधा पुरुष है; 'श्रीराधा' आपकी आत्मा की आधी नारी है। वे दोनों तुम्हारे 'अंदर' मौजूद हैं। चूंकि जीवन-पाठ श्रीकृष्ण द्वारा पढ़ाया जाएगा,न कि श्रीराधा द्वारा...Serpentine ऊर्जा के श्रीकृष्ण-पहलू पर केंद्रित रहना महत्वपूर्ण है। 1-भगवान विष्णु खुद को श्रीकृष्ण की नर और मादा ऊर्जा में विभाजित करते हैंऔर श्रीराधा क्रमशः, कुंडलिनी शक्ति की दो विभाजित ऊर्जाओं में। इस कुंडलिनी को सक्रिय करने वाली ऊर्जा 'प्रेम' है।
2-श्रीराधा नरम, निष्क्रिय ऊर्जाओं का प्रतीक है; श्रीकृष्णा डी 'विपरीत; राधा की उच्चतर यात्रा तेज है; श्रीकृष्ण की यात्रा अधिक कठिन है।
3- कुंडलिनी ऊर्जा के आधे भाग, 16'100 माध्यमिक चैनलों के माध्यम से यात्रा करते हैं; 8 मुख्य चैनल; 2 प्राथमिक चैनल; फिर 1 में विलय करें।
4- 16'100 माध्यमिक चैनल पार करना आसान हैं ; लेकिन 8 प्राथमिक चैनल Sticky हैं; उनका उद्देश्य कुंडलिनी ऊर्जा को पकड़ना / रोकना है।
5-प्राथमिक 8 चैनलों में से प्रत्येक कुंडलिनी ऊर्जा को अपने में धारण करना चाहता है; ये वे स्थान हैं जहाँ कुंडलिनी "अटक" जाएगी।
6-प्रत्येक 'पत्नी' एक विशिष्ट प्रेम-ऊर्जा को दर्शाती है जिसका हम इस दुनिया में सामना कर सकते हैं; अक्सर हम 8 में से 1 के लिए विवाहित/प्रतिबद्ध भी हो सकते हैं।
7-श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों में से 4 दूसरों की तुलना में अधिक महत्व रखती हैं, क्योंकि वे अधिक Sticky , पेचीदा और नेविगेट करने में अधिक कठिन हैं।
8-श्रीकृष्ण और श्रीराधा दो जुड़वां डीएनए जैसे चैनल के रूप में उभरेंगे; श्रीकृष्ण द्वारा 16'100 + 8 चैनलों के माध्यम से अपनी सफल यात्रा पूरी करने के बाद....।
9- कुंडलिनी ऊर्जा के आधा भाग कुंडलिनी (राधा और कृष्ण), 16'100 माध्यमिक और 8 प्राथमिक चैनलों के माध्यम से यात्रा करते हैं; जैसे 2 जुड़वां डीएनए चैनल; फिर 1 में विलय करते हैं। श्री कृष्ण रासलीला का अर्थ ;- 03 FACTS;- 1-गुजरात राज्य का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है डांडिया रास।इसकी शुरुआत श्रीकृष्ण की लीला और श्रीराधा तथा गोपियों के साथ उनके रास से मानी जाती है।‘रस शब्द से मतलब जूस या अर्क है, लेकिन वह जुनून को भी दर्शाता है।गुजरात की अधिकांश लोक संस्कृति और लोकगीत हिन्दू धार्मिक साहित्य पुराण में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी किंवदंतियों की पुष्टि करती है।श्रीकृष्ण के सम्मान में किया जाने वाला रास नृत्य और रासलीला प्रसिद्ध लोकनृत्य गरबा के रूप में अब भी प्रचलित है। गरबी और गरबा;- 2-गरबा लोकनृत्य गरबी व गरबा इन दो प्रकार का है। जब पुरुष गोला बनाकर तथा खड़े होकर सामूहिक रूप से तालियां बजाकर गाते हुए नृत्य करते हैं तो उस नृत्य को गरबी कहा जाता है और जब स्त्रियां परंपरागत परिधान तथा आभूषण पहनकर नृत्य करती हैं, तो उसे गरबा कहा जाता है। कहा जाता है कि बाणासुर की पुत्री उषा ने माता पार्वती से सीखा हुआ लास्य नृत्य गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र की गोपियों को सिखाया था।रासलीला के पात्रों में राधा-कृष्ण तथा गोपिकाएँ रहती है। बीच-बीच में हास्य का प्रसंग भी रहता है। विदूषक के रूप में ‘मनसुखा’ रहता है, जो विभिन्न गोपिकाओं के साथ प्रेम एंव हँसी की बातें करके श्रीकृष्ण के प्रति उनके अनुराग को व्यंजित करता है; 3- रासलीला में श्रीकृष्ण का गोपियों, सखियों के साथ अनुरागपूर्ण वृताकार नृत्य होता है। कभी श्रीकृष्ण गोपियों के कार्यों एवं चेष्टाओं का अनुकरण करते है और कभी गोपियाँ श्रीकृष्ण की रूप चेष्टादि का अनुकरण करती है और कभी श्रीराधा सखियों के, श्रीकृष्ण की रूपचेष्टाओं का अनुकरण करती है। यही लीला है। कभी श्रीकृष्ण गोपियों के हाथ में हाथ बाँधकर नाचते है इन लीलाओं की कथावस्तु प्रायः श्रीराधा-कृष्ण की प्रेम क्रीड़ाएँ होती है,जिनमें सूरदास आदि श्रीकृष्ण भक्त कवियों के भजन गाये जाते हैं। रासलीला का तात्विक अर्थ;- 06 FACTS;- 1-रासलीला में गोपियों, के साथ ,वृताकार नृत्य में श्रीकृष्ण मुख्य रूप से बीच की ,भीतरी परत में स्थिति वृत की ओर बढ़ते जाते हैं।16,100 गोपियों प्रतीकात्मक शक्ति वाहिनी नारिया(नाडिया/नसे )है जो श्रीकृष्णको सहयोग करती हैं। 8 नाडिया अष्ट प्रकृति का प्रतीक है जो श्रीकृष्ण को फँसाने का प्रयत्न करती हैं।श्री कृष्ण उनको सहयोग करते हुए,आगे बढ़ते जाते हैं । 2- श्रीराधा जो श्रीकृष्ण की आत्मा हैं, वृत के केंद्र में विराजमान रहती हैं तथा अपनी आत्मा में रमण करने के कारण ही श्रीकृष्ण आत्माराम हैं। जैसे ही श्री कृष्ण आगे बढ़ते हुए श्रीराधा के पास पहुंचते हैं तो यह ईड़ा और पिंगला का मिलन है ..सुष्म्ना की अवस्था है।श्रीराधा कृष्ण का नित्य मिलन ही श्री राधा का रहस्य है। यही बिन्दु चक्र है जहां दोनों अदृश्य हो जाते हैं ,अद्वैत, निर्गुण,निराकार ब्रह्म: के रूप में प्रवेश कर जाते हैं । 3- हमारे शरीर के मेरुदंड पर 16,108 नाड़ी हैं जिसमे सात चक्र अवस्थित हैं । इन सात उर्पयुक्त शक्तियों का उल्लेख साधना ग्रंथों में अलंकारिक रूप में हुआ है । उन्हें सात लोक, सात समुद्र, सात द्वीप, सात पर्वत, सात ऋषि आदि नामों से चित्रित किया गया है।सामान्य शक्ति धाराओं में प्रधान गिनी जाने वाली (1) गति (2) शब्द (3) ऊष्मा (4) प्रकाश (5) (Electric Fluid) संयोग (6) विद्युत (7) चुम्बक यह सात हैं । इन्हें सात चक्रों का प्रतीक ही मानना चाहिए । 4-चक्र' शक्ति संचरण के एक व्यवस्थित, सुनिश्चित क्रम को कहते हैं । वैज्ञानिक क्षेत्र में विद्युत, ध्वनि, प्रकाश सभी रूपों में शक्ति के संचार क्रम की व्याख्या चक्रों (साइकिल्स) के माध्यम से ही की जाती है । इन सभी रूपों में शक्ति का संचार, तरंगों के माध्यम से होता है । एक पूरी तरंग बनने के क्रम को एक चक्र (साइकिल) कहते हैं ।एक के बाद एक तरंग, एक के बाद एक चक्र (साइकिल) बनने का क्रम चलता रहता है और शक्ति का संचरण होता रहता है। 5-शक्ति की प्रकृति (नेचर) का निर्धारण इन्हीं चक्रों के क्रम के आधार पर किया जाता है । औद्यौगिक क्षेत्र में प्रयुक्त विद्युत के लिए अंतराष्ट्रीय नियम है कि वह 50 साइकिल्स प्रति सेकेन्ड के चक्र क्रम की होनी चाहिए । विद्युत की मोटरों एवं अन्य यंत्रों को उसी प्रकृति की बिजली के अनुरूप बनाया जाता है । इसीलिए उन पर हार्सपावर, वोल्टेज आदि के साथ 50 साइकिल्स भी लिखा रहता है । शक्ति संचरण के साथ 'चक्र' प्रक्रिया जुड़ी ही रहती है । वह चाहे स्थूल विद्युत शक्ति हो अथवा सूक्ष्म जैवीय विद्युत शक्ति । 6-नदी प्रवाह में कभी-कभी कहीं भँवर पड़ जाते हैं । उनकी शक्ति अद्भूत खो बैठती है । उनमें फँसकर नौकाएँ अपना संतुलन खो बैठती हैं और एक ही झटके में उल्टी डूबती दृष्टिगोचर होती हैं । सामान्य नदी प्रवाह की तुलना में इन भँवरों की प्रचण्डता सैकड़ों गुनी अधिक होती है । शरीरगत विद्युत प्रवाह को एक बहती हुई नदी के सदृश माना जा सकता है और उसमें जहाँ-तहाँ पाये जाने वाले चक्रों की 'भँवरों' से तुलना की जा सकती है ।सात चक्र ,सात भँवर के सदृश माना जा सकता है जो भगवान कृष्ण की सात अष्ट (देह) प्रकृति रूप सात पटरानियां है।उनकी शक्ति अद्भूत है परंतु श्री कृष्ण उनसे उलझते नहीं बल्कि उनको सहयोग करते हुए,आगे बढ़ते जाते हैं । प्रमुख पटरानी रुक्मिनणी अष्ट (देह) प्रकृतिरूप अंतिम भँवर हैं ,ललाट चक्र हैं; जो श्रीराधा रूप आत्मा ,अर्थात बिन्दु चक्र तक पहुंचने में सहयोग करती है ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
रासलीला विधि;-
04 FACTS;-
1-रास लीला' में संकेंद्रित वृत्तों का निर्माण होता है जिसमें आंतरिक घेरे में महिलाएं और बाहरी घेरे में पुरुष एक-दूसरे का सामना करते हैं। वृत्ताकार वलयों की संख्या नृत्य में भाग लेने वाले व्यक्तियों की संख्या पर निर्भर करेगी;पुरुष और महिला विपरीत दिशाओं में चलते हैं। हर निर्णायक डांस बीट के साथ, आप पार्टनर बदलते हैं; तो वास्तव में, विपरीत दिशाओं से प्रत्येक पुरुष प्रत्येक महिला के साथ नृत्य करता है।
2- श्रीकृष्ण अपने नृत्य (रास लीला) की शुरुआत रिंग ऑफ सर्कल्स की परिधि में करते हैं; कुशलता से नृत्य करते हुए, वह 16'100 गोपियों (लड़कियों) के माध्यम से 8 के अंतरतम चक्र तक पहुँचने के लिए अपना काम करते है; यहाँ यह स्थिति मुश्किल हो जाती है ।
3-लड़कियां बहुत सतर्क होती हैं और उन्हें नजरों से ओझल नहीं होने देतीं। श्रीकृष्ण किसी को नाराज नहीं कर सकते; सब श्रीकृष्ण की चतुराई में है; उन्हें अपने भीतर के-8 को खुश करना है, फिर भी बचने के लिए पर्याप्त सतर्क रहना है।
4-केंद्र में प्रतीक्षारत हैं - श्रीराधा; यहाँ वे (श्रीराधा और श्रीकृष्ण) अन्य सभी से बेखबर सुबह तक नृत्य करते हैं; फिर अचानक गायब हो जाते हैं। चक्र के केंद्र से श्रीराधा और श्रीकृष्ण का अचानक गायब होना उनका एक में 'मिलन/विलय' है। श्री कृष्ण और कुण्डलिनी का रहस्य ..दुनिया की भाषा में(In world parlance):-
10 FACTS;-
1-कुंडलिनी शक्ति (आत्मा ऊर्जा) आप स्वयं हैं।
2-आपको (कुंडलिनी शक्ति/आत्मा ऊर्जा) को अपने जुड़वां आधे हिस्से तक पहुंचने से पहले 16'100 माध्यमिक और 8 प्राथमिक चैनलों को सफलतापूर्वक नेविगेट करना होगा।
3-यहाँ, 16'100 माध्यमिक चैनल = 16'100 लोग जो आपके जीवन में, कई जन्मों में महत्वपूर्ण बदलाव लाएंगे।
4-यहां, 8 प्राथमिक चैनल = 8 महत्वपूर्ण रूप से मजबूत प्रेम-ऊर्जा जिन्हें आपको जीवन भर सफलतापूर्वक नेविगेट करना होगा।
5-आप (कुंडलिनी शक्ति/आत्मा ऊर्जा) को उस चैनल (प्रेम-ऊर्जा) से बाहर निकलने से पहले हर चैनल को 'खुश और संतुष्ट' छोड़ना होगा।
6-अपने 8 प्राथमिक ( Sticky और मुश्किल के रूप में चित्रित) चैनलों को नेविगेट करने के लिए आपके द्वारा लिए गए जीवनकाल की संख्या, आपकी 'जागरूकता' पर निर्भर करती है।
7-बस 'जागरूक होना' और 'पहचानने में सक्षम होना' इन 8 (विशेष रूप से 4/8) का मतलब है कि आप आत्मज्ञान के लिए एक बड़ी बाधा से दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं।
8-असली यात्रा तब शुरू होती है जब आप अपने जुड़वां से मिलते हैं; अपने जुड़वां के साथ कई जन्मों को पृथ्वी-कारणों के लिए समर्पित करना होगा।
9-एक बार जब आप अपनी जुड़वां-आत्मा के साथ धरती माता में महत्वपूर्ण बदलाव कर लेते हैं, तो आप MERGER का विकल्प चुन सकते हैं।
10-अपने 8 प्राथमिक चैनलों को पहचानने और समझने का उत्तर - भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों को समझने में निहित है।
भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां;-
11 FACTS;- 1-श्रीकृष्ण की "अष्ट-भर्या", 8 पत्नियाँ, भारतीय शास्त्रीय नृत्य में कई बार "अष्ट-नायक" के रूप में चित्रित की जाती हैं - प्रेम के 8 रूप।
2-इन प्राथमिक 8 पत्नियों में से 4 की ऊर्जाएँ Sticky और विघटनकारी/कारक हैं; 4 की ऊर्जाएँ Sticky होती हैं लेकिन विघटनकारी नहीं होती हैं।
3-विघटनकारी ऊर्जाओं को ज्योतिषियों द्वारा सलाह दी जाती है, क्योंकि वे विशिष्ट भारतीय बड़े परिवार के सेट-अप के लिए अनुकूल नहीं हैं।
4-विघटनकारी ऊर्जाएं बहुत साझा नहीं कर रही हैं; वे अपने श्रीकृष्ण को अपने लिए चाहती हैं; गैर-विघटनकारी ऊर्जाओं को नेविगेट करना/काबू पाना आसान होता है।
5-आत्मा के विकास के उच्च चरणों में, निश्चित रूप से, लगभग सभी 8 ऊर्जाएँ आपके रास्ते में आ गई होंगी, और आपने एक को चुना होगा।
6-यहाँ, 'सही विकल्प' या 'गलत विकल्प' जैसा कुछ नहीं है। प्रत्येक विकल्प अपनी चुनौतियों को प्रस्तुत करता है और आपको विकास में आगे ले जाता है।
7-हर उस 'ऊर्जा' से जुड़े रहना महत्वपूर्ण है जिसे आप पहचानते हैं; साथी के रूप में नहीं तो मित्र के रूप में, गुरु के रूप में, या मार्गदर्शक के रूप में।कभी-कभी, विकास के उच्च चरणों में आत्माएं सचेत रूप से बच सकती हैं, अगर उन्हें अच्छी तरह से नेविगेट करने में उनकी अक्षमता का एहसास होता है। एक व्यक्ति जो भी विकल्प चुनता है, अगर वे एक ऊर्जा के 'सार' को सीखते हैं, तो वे बिना अटके सफलतापूर्वक नेविगेट कर सकते हैं।
8- श्रीकृष्ण की जुड़वां-आत्मा राधा कृष्ण की सभी 8 पत्नियों के लक्षणों का एक समामेलन (मिश्रण) है - लेकिन यहाँ, ज्ञान (सुझाव), समझ (समझ) और जागरूकता / (जागरूकता) है। राधा को 8-पत्नियों के लक्षणों से परिभाषित नहीं किया गया है; वह उन्हें केवल रास-लीला ( श्रीकृष्ण के साथ उनका नृत्य) में हमारे जैसे नश्वर आत्माओं के लिए एक कोमल अनुस्मारक के रूप में लागू करती है।
9-उद्देश्य दुनिया को प्यार के विभिन्न पहलुओं को सिखाना है; प्रेम कैसे खिल सकता है; और श्रीकृष्ण के रूप में आप इसे कैसे संभालते हैं। श्रीकृष्ण की 8-पत्नियों में, यह अनुभव अधिक विस्तृत है और स्त्री-दृष्टिकोण से वर्णित है कि प्यार के बारे में वह क्या महसूस करती है।
10-श्रीकृष्ण की 8 पत्नियाँ प्रेम के 8 रूपों का चित्रण करती हैं जो आपके मानव विकास के अधिक उन्नत चरणों में आपके सामने आएंगे। जैसे-जैसे आप अपने 'राधा/कृष्ण' के करीब आते जाएंगे, आप प्रेम के 'प्रकारों' के बारे में 'जागरूक' होंगे जो आपके रास्ते को पार कर चुके हैं। निरपवाद रूप से, वे श्रीकृष्ण की पत्नियों के रूप में वर्णित 8 'प्रकारों' में से होंगे।
11-आत्म-विकास का सबसे तेज़ रूप होगा, प्रेम के सभी 8 रूपों को 'सही ढंग से पहचानना' जो आपके रास्ते को पार कर गए हों। प्यार के हर 'प्रकार' को समझने और स्वीकार करने के लिए; और उन्हें उनके जीवन के उतार-चढ़ाव के माध्यम से लें: संरक्षक, परामर्शदाता, मित्र, दार्शनिक, मार्गदर्शक।उन्हें अपने जीवन में आपकी उपस्थिति को महसूस करने दें। ऐसा करके, आप उन्हें उनके कठिन कर्म से निपटने में मदद करते हैं। आप जितनी कुशलता से 'इस स्थिति में नृत्य' करेंगे, आप अपने 'राधा/कृष्ण' यानी अपने देवता के करीब पहुंचेंगे।
भगवान कृष्ण की अष्ट (देह) प्रकृति आठ पटरानियां अर्थात अष्ट ऊर्जा चक्र(their specific energies);-
11 FACTS;-
प्रत्येक मनुष्य को जीवन में अष्ट ऊर्जाओ के प्रतीक; आठ प्रकार की प्रवृत्तियो वाले व्यक्तियो से सामना करना पड़ता है।ये परिवार के सदस्य ,मित्र,पति-पत्नी आदि लोग हो सकते है।इसके लिए उनसे उलझने के स्थान पर सामंजस्य बिठाना ही श्रेष्ठ होता है ।उच्च स्तरीय साधना में प्रवेश करने वाले साधकों को भगवान कृष्ण की इसी विधि का प्रयोग करना
पड़ता है ... 1-श्रीरुक्मणी;- यूं तो तमाम प्रेम कहानियों में से सबसे पहले श्रीकृष्ण एवं राधाजी का नाम लिया जाता है, लेकिन श्रीकृष्ण की प्रमुख पटरानी के रूप में सबसे पहले रुक्मिनणी का नाम लिया जाता है। रुक्मिणी विदर्भ देश की राजकुमारी थीं जो कि मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थीं।वह श्रीकृष्ण की दोस्त, दार्शनिक, मार्गदर्शक और शांतिदूत बनकर 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है। वह सरल, सुंदर, विनम्र, अच्छी श्रोता है; श्रीकृष्ण के सभी गठबंधनों, साझेदारी और रिश्तों का सम्मान करती है।उन्हें काउंसलर और शांति-निर्माता की भूमिका निभाने में आनंद आता है। श्रीकृष्ण उन्हें सलाह देने और अपनी अन्य पत्नियों के बीच शांति बनाए रखने के लिए उपयोग करते हैं।उन्हें अक्सर श्रीकृष्ण के पक्ष द्वारा उनके बात करने वाले साथी के रूप में चित्रित किया जाता है। दक्षिण-भारत में मुख्य-पत्नी के रूप में पूजा की जाती है। वह सांसारिक साझेदारी के लिए एक अत्यधिक अनुशंसित ऊर्जा है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण के कारणों के लिए सबसे अधिक समर्थन प्रदान करती है।
रुक्मिणी का प्रतिज्ञान/Affirmation.... "प्यार शांति है" 2- सत्यभामा;- सत्यभामा राजा सत्राजित की पुत्री हैं। पौराणिक तथ्यों के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने सत्रजित द्वारा लगाए गए प्रसेन की हत्या और स्यमंतक मणि को चुराने का आरोप गलत साबित कर दिया और स्यमंतक मणि लौटा दिंया तब सत्राजिेत ने सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।वह अपने tantrums/नखरे के साथ श्रीकृष्ण को 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है; अगर वह नहीं मानते है, तो वह चली जाएगी। वह अभिमानी, दबंग, आत्मकेन्द्रित है; उसके साथ, श्रीकृष्ण को एक सहायक भूमिका निभानी चाहिए। वह मानती है कि उसने श्रीकृष्ण को विवाह का प्रस्ताव देकर उस पर उपकार किया है। श्रीकृष्ण कोअपने इशारे पर नाचने वाला बनाना चाहती है और हर समय बुलाती है।उसकी ऊर्जा की चंचलता में उसके नखरे को संशोधित करके नेविगेट किया जा सकता है, फिर भी उसके आगे झुकना नहीं है। उसकी ऊर्जा को चापलूसी के साथ नेविगेट किया जा सकता है, क्योंकि उसका अभिमान आसानी से इसके आगे झुक जाता है। सत्यभामा का प्रतिज्ञान/Affirmation.... "प्यार मैं हूँ"। 3- जाम्बवंती;-- ऋक्षराज जाम्बवंत का नाम पुराणों में श्रीकृष्ण के संदर्भ से काफी बार सुना गया है, पटरानी जामवती उन्हीं की पुत्री थीं। कहते हैं कि स्यमंतक नामक एक मणि को लेकर श्रीकृष्णी तथा जामवंत के बीच युद्ध हुआ था।युद्ध के दौरान जब श्रीकृष्ण जामवंत पर भारी पड़ रहे थे तो कुछ ध्यान देने पर जामवंत ने जाना किे श्रीकृष्ण तो उनके आराध्य श्रीराम हैं और वह अपने ही आराध्य से युद्ध कैसे कर सकते हैं। इसके बाद जामवंत ने जामवती का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।वह अपनी सुंदरता से श्रीकृष्ण को 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है; विश्वास है कि सौंदर्य श्रीकृष्ण में राज कर सकता है। वह व्यर्थ प्रशंसा की इच्छा रखती है; उसकी सुंदरता की शक्ति के बारे में आश्वस्त; श्रीकृष्ण को दूसरों के साथ साझा करने के लिए तैयार। वह हर समय अति सुंदर, अच्छी तरह से तैयार, अच्छी तरह से सुशोभित है; उनका मानना है कि श्रीकृष्ण उनके लुक्स के लिए उनकी ओर आकर्षित हैं।वह अपनी सुंदरता दिखाने के लिए विशेष प्रयास करती है ताकि वह दूसरो पर भारी दिखाई दे। उसकी ऊर्जा को उसकी प्रशंसा की पेशकश करते हुए नेविगेट किया जा सकता है ..जिसकी वह सही हकदार है; जिम्मेदारी के साथ लाइमलाइट भी दें। उसकी आंतरिक सुंदरता को धीरे-धीरे उजागर करके और उसकी बाहरी सुंदरता को कम करने की अनुमति देकर उसकी ऊर्जा को नेविगेट किया जा सकता है। जाम्बवंती का प्रतिज्ञान/Affirmation.... "प्यार सौंदर्य है"। 4 -कालिंदी;- पौराणिक तथ्यों के अनुसार देवी कालिंदी ने श्रीकृष्ण को एक वरदान हेतु अपने पति के रूप में पाया था। कहते हैं कि उन्होंने कठोर तपस्या की थी जिसके पश्चात उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने सूर्य से कालिंदी का हाथ मांगा था।वह अपने खेल, जाल, लालच के साथ श्रीकृष्ण को 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है; निषिद्ध-प्रेम और अपराधबोध को हथियार के रूप में उपयोग करती है। वह यमुना है; श्रीकृष्ण के साथ अपने भाई की निकटता का उपयोग करती है, उनके जीवन में प्रवेश पाने के लिए वह जाल बिछाती है; फिर भी पीड़ित दिखाई देती है। श्रीकृष्ण को अपने साथ फँसाने का उत्साह, श्रीकृष्ण के साथ होने के उत्साह से कहीं अधिक है।उसे प्रतियोगिता का आनंद मिलता है; प्रतिस्पर्धा पैदा करता है; प्रतियोगिता पर जीत का आनंद लेती है। अन्य महिलाओं के साथ श्रीकृष्ण की वांछनीयता उसे उत्तेजित करती है। वह श्रीकृष्ण को पकड़ने का आनंद लेती है; श्रीकृष्ण को गुप्त इकबालिया बयानों में फंसाती है; दूसरों के रहस्यों से सशक्त महसूस करती है।सांसारिक जीवन में उसकी ऊर्जा का मतलब उसे समायोजित करने के लिए प्रियजनों से अलगाव हो सकता है। श्रीकृष्ण को उसे 'पसंद' करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। उसे नकारात्मक रूप से सशक्त न करके उसकी ऊर्जाओं को नेविगेट किया जा सकता है ..उसके खेल को 'चंचलता' से देखकर अपराध बोध के आगे न झुकना ।उसकी ऊर्जा को धीरे से/प्यार से पकड़कर नेविगेट किया जा सकता है; कालिंदी को हमेशा आपकी जरूरत से ज्यादा जरूरत होगी। कालिंदी का प्रतिज्ञान/Affirmation.... "प्यार एक प्रतियोगिता है"। 5-मित्रवृंदा:- भगवान श्रीकृष्णथ की तीसरी पटरानी मिूत्रवृंदा हैं जो कि उज्जैन की राजकुमारी थीं। कहते हैं कि वे अत्यंत खूबसूरत थीं जिन्हें श्रीकृष्ण ने स्वयंवर में भाग लेकर अपनी पत्नी बनाया था।वह अपने मिलनसार, शरारती स्वभाव के साथ श्रीकृष्ण को 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है। श्रीकृष्ण जो कुछ भी कहते या करते हैं, उससे वह शायद ही कभी नाराज होती हैं; श्रीकृष्ण के रिश्तों को प्रबंधित और सामंजस्य बनाने के लिए कड़ी मेहनत करती है। वह श्रीकृष्ण की सबसे करीबी विश्वासपात्र हैं। उसकी सलाह आमतौर पर निस्वार्थ होती है। श्रीकृष्ण के सामाजिक दायरे के लिए एक आदर्श परिचारिका है।वह श्रीकृष्ण की पत्नियों के भी सबसे करीबी विश्वासपात्र हैं; वे उसे अपनी शिकायतों को साझा करने के लिए एक सुरक्षित आश्रय पाती हैं। वह मिलनसार, संवादी और शरारती है। आमतौर पर उसकी नटखटता संघर्ष को हल्का करती है।उसकी ऊर्जा को नेविगेट किया जा सकता है ..उसे जिम्मेदारी देकर और बिना शर्त दोस्ती की पेशकश करके। मित्रवृंदा का प्रतिज्ञान/Affirmation...."प्यार दोस्ती है"। 6-रोहिणी;- पौराणिक कथा के अनुसार देवी रोहिणी गय देश के राजा ऋतुसुकृत की पुत्री थीं।रोहिणी के अलावा कुछ पौराणिक दस्तावेजों में इनका नाम भद्रा भी पाया गया है। लेकिन इनसे विवाह करने के लिए श्रीकृष्ण ने कोई संघर्ष नहीं किया था, अपितु रोहिणी ने स्वयं ही स्वयंवर के दौरान श्रीकृष्ण को अपना पति चुना था।वह अपने खुलेपन, अपनी सच्चाई के साथ श्रीकृष्ण को 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है; उसके नाम का अर्थ ही "स्पष्ट सत्य" है। उसके लिए प्यार एक खुली किताब होना चाहिए; कूटनीति उसके साथ बर्फ नहीं काटती; उसका संघर्ष श्रीकृष्ण की चतुराई के इर्द-गिर्द केंद्रित है। उसके लिए जो कुछ खुला है वह सत्य है; जो छिपा है वह झूठा है; -वह अपनी आत्मा को उजागर करती है और आपको भी ऐसा करने की हिम्मत देती है। श्रीकृष्ण आमतौर पर उसका उपयोग अपनी अन्य पत्नियों को कठोर सत्य बताने के लिए करते हैं, जबकि वे स्वयं पृष्ठभूमि में रहते हैं। वह अपने एक्सप्रेशन में बेहद बिंदास हैं।सांसारिक अर्थों में, यह सामाजिक और पारिवारिक हलकों में संघर्ष पैदा कर सकता है। उसकी सच्ची आत्मा को न मारकर उसकी ऊर्जा को नेविगेट किया जा सकता है उसकी ईमानदारी की सराहना करके; लेकिन साथ ही उसे यह देखने की अनुमति देना कि लोगों को आहत करने वाली सच्चाई उनकी ज्यादा मदद नहीं कर सकती है। उसकी सच्चाइयों को नरम/सौम्य अभिव्यक्तियों में चैनलाइज़ करें। उसे प्यार के प्रति एक सीधा और ईमानदार दृष्टिकोण प्रदान करके उसकी ऊर्जा को नेविगेट किया जा सकता है। रोहिणी का प्रतिज्ञान/Affirmation... "प्यार सच है" 7 -सत्या:- भगवान श्री कृष्ण की चौथी पटरानी का नाम सत्या है, इन्हें भी श्रीकृष्ण ने स्वयंवर में जीतकर अपनी पत्नी बनाया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार सत्या काशी के राजा नग्नजिपत् की पुत्री थीं, जिनके विवाह की शर्त थी कि जो सात बैलों को एक साथ नाथेगा वही सत्या का पति होगा। श्रीकृष्ण ने स्वयंवर की इस शर्त को पूरा करके सत्या से विवाह किया था।वह श्री कृष्ण में मिश्रित होकर 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है; वह खुश है कि श्री कृष्ण उसे चाहते हैं। वह एक परिभाषित व्यक्तित्व नहीं रखने का विकल्प चुनती है। वह मानती है कि व्यक्तित्व अर्थात श्री कृष्ण से विभाजन। वह कोमल, अधीन, नम्र, निस्वार्थ है; वह खुद को प्राथमिकता में अंतिम स्थान देती है। वह मानती है कि यह प्यार है।उसकी एक मातृ, पोषण, पौष्टिक, क्षमा करने वाली है; वह न केवल श्रीकृष्ण बल्कि श्री कृष्ण के सभी रिश्तों की कर्तव्यपूर्वक सेवा करती है। सांसारिक अर्थों में, सत्य की अच्छाई का लाभ उठाना बहुत आसान है; वह आमतौर पर आधारशिला है जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। उसकी ऊर्जाओं को सावधानी और संवेदनशीलता के साथ संचालित किया जाना चाहिए। उसके श्री कृष्ण के रूप में, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि उसे उसका हक मिले।उसे खुद के लिए खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करके उसकी ऊर्जा को नेविगेट किया जा सकता है; रुचियों और शौक के माध्यम से आत्म-विकास को प्रोत्साहित करके।
सत्या का प्रतिज्ञान/Affirmation..."प्यार अधीनता है"। 8-लक्ष्मणा :- लक्ष्मणा, जिन्होंने स्वयं अपने स्वयंवर के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के गले में वरमाला पहनाकर उन्हें अपना पति, चुना था।वह एक केंद्रित दृष्टिकोण के साथ श्रीकृष्ण को 'चैनलाइज' करने की कोशिश करती है; उसके प्यार के साथ शतरंज के खेल की तरह है; चाल-उलटना। वह केंद्रित है; लक्ष्य उन्मुखी। अपनी सभी चालों की योजना बनाती है और उसका पूर्वाभ्यास करती है। उसके पास हमेशा "प्लान-बी" होगा। उसके अनुसार, उसे श्रीकृष्णा की जाँच करनी है और अपना सही ताज जीतना है; अन्य पत्नियां मोहरे का विरोध कर रही हैं।उसकी विशेषता है; एक रणनीतिक, व्यवस्थित दिमाग ,अत्यंत तार्किक; प्रत्येक क्रिया का एक उद्देश्य होना चाहिए। सांसारिक अर्थों में, लक्षना विघटनकारी कम और अरुचिकर अधिक होगी ।उसकी भविष्यवाणी उसकी रचनात्मकता से आगे निकल जाती है। वह एक अत्यंत कुशल भागीदार हो सकती है; लेकिन उसका बाध्यकारी व्यवहार आकर्षण को खत्म कर सकता है। उसे जिम्मेदारी देकर, रचनात्मकता और सहजता को प्रोत्साहित करके उसकी ऊर्जा को नेविगेट किया जा सकता है।उसे कोमलता से उसकी असफलताओं, अक्षमताओं और गलतियों के मज़ेदार पक्ष को धीरे-धीरे दिखाकर उसकी ऊर्जा को नेविगेट किया जा सकता है। लक्ष्मणा का प्रतिज्ञान/Affirmation... "प्यार एक लक्ष्य है"। 9-श्रीकृष्ण एवं श्रीराधाजी;-
श्रीराधा सभी 8 पत्नियों का समामेलन / विलय है। उस संगम से, उस विलय से, प्रेम की अपनी अनूठी पुष्टि उभरती है। श्रीराधा में, श्रीकृष्ण प्रेम के सभी 8 रूपों को आसानी और विशेषज्ञता के साथ नेविगेट कर सकते हैं। वह हर उच्च, निम्न, मोड़, वक्र, पतन और भ्रम जानता है। श्रीराधा का प्रतिज्ञान/Affirmation... "प्यार श्रीकृष्ण है"। ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; क्या है कैड्यूजस ?
04 FACTS;-
1-रहस्यमय छड़ी को कैड्यूजस कहा जाता है।कैड्यूसियस ग्रीक पौराणिक कथाओं में हर्मीस का पारंपरिक प्रतीक है और इसमें दो सांप हैं जो कैडियस (हेराल्ड की छड़ी, या कर्मचारी ) के चारों ओर घूमते हैं। सांप की, पंखों के साथ, सोने की छड़ी ,लटकी हुई एक गेंद के रूप में.. एक प्रतीक जो प्राचीन काल से आया था। वह पौराणिक कथाओं और दुनिया के सबसे विविध लोगों के धर्म की अपरिवर्तनीय वास्तविकता है, चाहे रोम हो, भारतीय या मिस्र के लोग।एक प्रतीकात्मक वस्तु के रूप में, यह हर्मीस (या रोमन बुध) का प्रतिनिधित्व करता है, और विस्तार व्यापार, व्यवसाय, या भगवान से जुड़े उपक्रमों का प्रतिनिधित्व करता है। बाद की पुरातनता में, कैडियस ने बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करने वाले ज्योतिषीय प्रतीक के लिए आधार प्रदान किया। इस प्रकार, ज्योतिष, कीमिया और खगोल विज्ञान में इसके उपयोग के माध्यम से यह एक ही नाम के ग्रह और तात्विक धातु को निरूपित करने आया है। ऐसा कहा जाता है कि छड़ी सोने वाले को जगाती है और जागे हुए को सोने के लिए भेजती है। यदि मरने पर लागू किया जाए, तो उनकी मृत्यु कोमल थी; यदि मृतकों पर लागू किया जाता है, तो वे जीवित हो जाते हैं। वास्तव में,
बौद्ध धर्म में, यह प्रतीक योग और ध्यान के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है और इसका विशेष अर्थ है। साँप की पहचान मानवीय रीढ़ के आधार पर केंद्रित ऊर्जा के साथ की जाती है।अधिकांश लोग कैड्यूजस को चिकित्सा प्रतीक के रूप में जानते हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों को यह पता नहीं होता है कि इस चिन्ह का इस्तेमाल दवा के लिए क्यों किया जाता है।यह प्रतीक हमारे शरीर में तीन मुख्य नाड़ियों (चैनलों) का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके माध्यम से हमारी जीवन-शक्ति ऊर्जा प्रवाहित होती है। इस ऊर्जा को ची, या प्राण के रूप में जाना जाता है, या जब यह अपनी पूरी क्षमता तक जाग्रत हो जाती है, तो इसे कुंडलिनी कहा जाता है।
2-इस बल का संतुलन और कार्यक्षमता हमारे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, यही कारण है कि यह स्वास्थ्य और चिकित्सा के साथ शुरू से ही जुड़ा हुआ था। विडंबना यह है कि आज अधिकांश चिकित्सा डॉक्टरों को पता नहीं है कि यह प्रतीक वास्तव में क्या दर्शाता है, और इस महत्वपूर्ण ऊर्जा का कोई सुराग भी नहीं है।इस प्रतीक में दो सर्प दो ध्रुवीय चैनलों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके माध्यम से जीवन शक्ति खुद को स्त्री ऊर्जा और मर्दाना ऊर्जा, या यिन और यांग के रूप में व्यक्त करती है। नागों को चुना गया, इसका कारण यह है कि इन दो चैनलों का सर्पिल आकार दो घुमावदार नागों जैसा दिखता है।यिन चैनल को इडा के रूप में जाना जाता है, और यह एक चंद्र, स्त्री, सूक्ष्म ऊर्जा है, और शरीर के बाईं ओर और मस्तिष्क के दाहिने हिस्से को नियंत्रित करता है। यांग चैनल को पिंगला के रूप में जाना जाता है, और यह एक सौर, मर्दाना, गतिशील ऊर्जा है, और शरीर के दाहिने हिस्से और मस्तिष्क के बाएं हिस्से को नियंत्रित करती है। ये दो विरोधी ऊर्जाएं सहानुभूति और पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र से भी मेल खाती हैं।दो लटके हुए सांप डीएनए बनाने वाली दोहरी पेचदार संरचना से मिलते जुलते हैं। यह कुंडलिनी योग की संरचनात्मक ऊर्जाओं से भी मेल खाती है। कुंडलिनी में, एक शक्तिशाली शक्ति है जो रीढ़ की हड्डी के आधार पर निष्क्रिय है, जागरूकता, अभ्यास और ध्यान के माध्यम से सक्रियण की प्रतीक्षा कर रही है।
3-इस कुंडलिनी शक्ति को एक सर्प के रूप में दर्शाया गया है, जो रीढ़ के चारों ओर एक कुंडलित आधार में तीन बार आराम करती है। सक्रिय होने पर, यह बल तीन चैनलों, या नाड़ियों के माध्यम से यात्रा करता है; सुषुम्ना, इड़ा और पिंगला। ये नाड़ियाँ कैड्यूसियस के भागों के समान होती हैं। सुषुम्ना, कर्मचारियों की तरह, रीढ़ के साथ समानांतर गति में यात्रा करते हुए लंबवत और सीधी होती है। इड़ा और पिंगला चैनल दो सांपों की तरह एक साथ मुड़ते हैं, एक मुट्ठी बिंदु या चक्र केंद्रों पर प्रतिच्छेद करते हैं।हालांकि बीच में एक तीसरा चैनल है, जिसे सुषुम्ना के नाम से जाना जाता है। यह उस कर्मचारी द्वारा दर्शाया जाता है जिसके चारों ओर दो सर्प हवा करते हैं। यह चैनल स्पाइनल कॉलम के अंदर है, और ज्यादातर लोगों में निष्क्रिय है। अधिकांश लोगों में इसके निष्क्रिय होने का कारण यह है कि अधिकांश लोग इडा/यिन और पिंगला/यांग चैनलों के बीच एक या दूसरी दिशा में थोड़ा असंतुलित होते हैं।लेकिन जब वे दो ध्रुवीकृत शक्तियाँ संतुलित और सामंजस्यपूर्ण होती हैं, तब केंद्रीय सुषुम्ना नाडी सक्रिय होती है। जब जीवन-शक्ति इडा चैनल के माध्यम से बहती है, यह खुद को यिन ऊर्जा के रूप में व्यक्त करती है। जब यह पिंगला चैनल से बहती है, तो यह स्वयं को यांग ऊर्जा के रूप में व्यक्त करती है। हालांकि, जब यह सुषुम्ना चैनल से बहती है, तो यह खुद को कुंडलिनी ऊर्जा के रूप में व्यक्त करती है।
4-कुंडलिनी वह शक्ति है, जो जाग्रत होने पर, वास्तव में हमें पूर्ण अभिव्यक्ति में ले जाती है कि हम कौन हैं। इसमें मस्तिष्क के कई वर्तमान में निष्क्रिय क्षेत्रों को जगाने की क्षमता है, जिससे चेतना और क्षमताओं की उच्च अवस्थाएं होती हैं, जैसे कि मानसिक अंतर्ज्ञान, टेलीकिनेसिस, टेलीपैथी, सूक्ष्म यात्रा, पिछले जीवन और आकाशीय रिकॉर्ड देखना, और बहुत कुछ।
जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है और सुषुम्ना नाडी को मस्तिष्क तक ऊपर उठाती है, तो मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्ध एक हो जाते हैं, पीनियल ग्रंथि/तीसरी आँख सक्रिय हो जाती है, और चेतना की प्राप्ति होती है।यह जानबूझकर रीढ़ के माध्यम से उठने वाली कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है, जिसमें 33 कशेरुक शामिल हैं! इनमें से कुछ भी संयोग नहीं है।कुंडलिनी घटना पुनर्जीवित होने पर हम सभी के भीतर की दिव्य ऊर्जा है। शरीर, मन और आत्मा का उपचार यहीं होता है, चेतना का निम्न त्रि-आयामी वास्तविकता से शाश्वत एकत्व की दिव्य ब्रह्मांडीय चेतना में परिवर्तन भी यहीं होता है। कुंडलिनी में जीवन के वृक्ष पर चढ़ते हुए एक नाग का चिन्ह है, यह हम में से प्रत्येक और हमारे परिवर्तन का प्रतीक है, यह भीतर जागृत परमात्मा का प्रतीक है। नागों/सांपों का पौराणिक और धार्मिक प्रतीकों से पुराना नाता रहा है।कुंडलिनी घटना और कैडियस आपस में जुड़े हुए हैं, विशेष रूप से सर्प प्रतीक के कारण जो इस मामले में सर्प शक्ति को भगवान तक या भगवान में उठाने का प्रतिनिधित्व करता है, मानव रूप में यह साधकों को कुकर्मों और कष्टों को दूर करने के लिए प्रेरित करता है।
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श्रीकृष्ण ,कुण्डलिनी और कैड्यूजस का क्या रहस्य है?-
04 FACTS;-
1-मनुष्य के अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्ति को कुण्डलिनी कहा गया है। कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे जगत मे जीव की उत्पत्ति होती है। कुण्डलिनी सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर मेरूदण्ड के सबसे निचले भाग में मुलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई है। मुलाधार में सुषुप्त पड़ी हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना में प्रवेश करती है तब यह शक्ति अपने स्पर्श से स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र तथा आज्ञा चक्र को जाग्रत करते हुए मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार चक्र में पहुंच कर पूर्णता प्रदान करती है इसी क्रिया को पूर्ण कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है।वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी तथा आकाश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। और इसमे कोई संदेह नही कि जो चीज जिस तत्व से बनी हो उसमे उस तत्व के सारे गुण समाहित होते हैं। इस लिए पंचतत्वों से निर्मित मनुष्यों के शरीर में जल की शीतलता, वायु का तीव्र वेग, अग्नि का तेज, पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति और आकाश की विशालता समाहित होती है।
2-अन्य शास्त्रों तथा विशेषकर तन्त्र ग्रन्थों में कुण्डलिनी के स्वरूप तथा उसके उत्थान का विवेचन करते हुए कहा है कि “कुण्डलिनी शक्ति मूलाधार में शक्ति रूप में स्थित होकर मनुष्य को सब प्रकार की शक्तियाँ, विद्या और अन्त में मुक्ति प्राप्त कराने का साधन होती हैं।”गुदा स्थान से दो अँगुल ऊपर और लिंग मूल से दो अँगुल नीचे की तरफ बहुत छोटे आकार वाला मूलाधार पद्य है। उसके बीच में तेजोमय लाल वर्ण का ‘क्लीं’ बीज रूप से स्थित है। उसके ठीक बीच में ब्रह्म-नाड़ी के मुख पर स्वयम्भूलिंग है। उसके दाहिने और साढ़े तीन फेरा खाकर कुण्डलिनी शक्ति सोई हुई है। इस कुण्डलिनी को ‘परमा-प्रकृति’ कहा गया है। देव, दानव, मानव, पशु-पक्षी, कीट-पतंग सभी प्राणियों के शरीर में कुण्डलिनी शक्ति विराजमान रहती है।कमल-पुष्प में जिस प्रकार भ्रमर अवस्थित होता है, उसी प्रकार यह भी देह में रहती है। इसी कुण्डलिनी में चित्-शक्ति (चैतन्यता) निहित रहती है। इतनी महत्वपूर्ण होने पर भी लोग उसकी तरफ ध्यान नहीं देते, यह आश्चर्य का विषय है। यह अत्यन्त सूक्ष्म शक्ति है। इसकी सूक्ष्मता की कल्पना करके योग-शास्त्र में कहा है-‘योगियों के हृदय देश में वह नृत्य करती रहती है। यही सर्वदा प्रस्फुटित होने वाली विद्युत रूप महाशक्ति सब प्राणियों का आधार है।” इसका आशय यही है कि कुण्डलिनी शक्ति के न्यूनाधिक परिणाम में चैतन्य हुये बिना मनुष्य की प्रतिभा का विकास नहीं होता।-
3-कुण्डलिनी शक्ति विश्व-व्यापी हैऔर कैड्यूजस जागृत कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक है।ए कैडियस" (तलवार पर आपस में जुड़े सांप); यह कृष्ण और राधा की प्रतीकात्मक छवि है।छवि में आप दो सर्पों (कृष्ण-राधा) को देखेंगे, जो खुद को डीएनए सर्पिल में खींच रहे हैं, नीचे से ऊपर की ओर उठ रहे हैं। ये कुंडलिनी शक्ति के इड़ा-पिंगला चैनल हैं।जब कुंडलिनी-शक्ति दो में विभाजित हो जाती है, तो दोनों हिस्सों को एक साथ 16’108 चैनलों को नेविगेट करते हुए, 7 चक्रों से गुजरना पड़ता है।
कृष्ण-राधा लंबी यात्रा के बाद, क्राउन-चक्र से ठीक पहले मिलेंगे; फिर वे एकीकरण में वापस आधार-चक्र में गिर जाते हैं।
'पूर्व-क्राउन-चक्र' से 'आधार-चक्र' तक की 'बूंद', 'तलवार' के माध्यम से होती है जो सभी 7 चक्रों के केंद्र-बिंदुओं के माध्यम से छेदी जाती है।
4-तलवार = सुषुम्ना-चैनल। जब ऊर्जा सुषुम्ना-नाल में प्रवेश करती है, तो उसकी सफाई की प्रक्रिया शुरू होती है। प्रगतिशील सफाई = प्रगतिशील ज्ञानोदय।आधार चक्र से, वे फिर से एकीकरण में (एक डीएनए सर्पिल में), धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। यह यात्रा पृथ्वी पर "जुड़वां-आत्माओं-एक साथ-यात्राओं" का प्रतिनिधित्व है।जब तक सुषुम्ना-नाल पूरी तरह से शुद्ध और पूरी तरह से प्रबुद्ध नहीं हो जाती, तब तक इड़ा और पिंगला अपना "उठना और गिरना" जारी रखेंगे।इन असंख्य यात्राओं के दौरान, इड़ा और पिंगला धरती माता के लिए एक महत्वपूर्ण अंतर और योगदान देंगे।किसी बिंदु पर, वे अंत में इसे क्राउन-चक्र तक पहुंचाएंगे। समय सीमा स्वेच्छा से है, लेकिन जब भी वे करते हैं तो मोक्ष , भगवान के साथ एकता प्राप्त करते हैं।यही प्रत्येक आत्मा और प्रत्येक Soul-Half की कहानी है ।यह यात्रा पूरी तरह से भीतर की ओर (योगिक / पारलौकिक ध्यान) या केवल दुनिया में रहकर, जागरूकता में की जा सकती है।किसी भी तरह, मार्गदर्शन महत्वपूर्ण हो जाता है। कभी-कभी ऊर्जा एक चैनल में फंस जाती है, यह वहां बहुत लंबे समय तक रह सकती है।
साधकों के लिए प्रमुख बिंदु-[THE KEY POINTS ] ;-
04 FACTS;-
1-याद रखें कि आप प्रेम-ऊर्जा से उल्टे क्रम में आगे बढ़ रहे होंगे, जैसा कि चैनल 8 से 1 में होता है।निचले 4 चैनलों में, मित्रवृंदा (चैनल 5) नेविगेट करने में सबसे कठिन है। चैनल 8,7,6 मार्गनिर्देशन करने में अपेक्षाकृत आसान हैं ।मित्रवृंदा इतनी मिलनसार, इतनी सुखद है कि आपके सामाजिक ढांचे में इतनी फिट बैठती है कि आप उसे छोड़ना नहीं चाहेंगे।
उसका वह प्रभाव है और संभावना है कि आप मित्रवृंदा के चैनल को बार-बार नेविगेट करना चुनेंगे; ..मतलब तुम फंस गए हो।
जब आप मित्रवृंदा से आगे बढ़ने का विकल्प चुनते हैं, तो आप ऊपरी चैनलों के सबसे निचले हिस्से में प्रवेश करेंगे।
2-कालिंदी (चैनल 4) ...ऊपरी 4 चैनलों में, कालिंदी (चैनल 4) नेविगेट करने में सबसे कठिन है। चैनल 3,2,1 अपेक्षाकृत आसान हैं।कालिंदी आपको अपने जाल से रोके रखती है; आप अपने आप को अपराधबोध या भय के कारण कई बार उसके चैनल पर घूमते हुए पा सकते हैं।कालिंदी को छोड़ना आसान नहीं है; उसका अपना आकर्षण है; कभी-कभी उसके चैनल में बने रहना सांसारिक जीवन को बहुत आसान बना देता है।जब आप कालिंदी (चैनल 4) से आगे बढ़ना चुनते हैं, तो आप पाएंगे कि जाम्बवती, सत्यभामा, रुक्मिणी (3,2,1) नेविगेट करना काफी आसान होगा।
3-एक बार जब आप रुक्मिणी तक पहुँच जाते हैं, और वह आपकी मुख्य पत्नी / साथी के रूप में उभरती है, तो आप जानते हैं कि आप विकास में एक आरामदायक क्षेत्र में पहुँच गए हैं।आत्मा के विकास के उच्च चरणों में, ऊर्जा 5,6,7,8 आपके भाई-बहनों, दोस्तों, प्रियजनों के रूप में वापस आ सकती है।पिछले जन्मों में आपने जिन ऊर्जाओं को अच्छी तरह से नेविगेट किया है, वे शुद्ध, प्लेटोनिक प्रेम में आपके पास वापस आएंगी।यह बताता है कि गुरु और ज्योतिषी विघटनकारी प्रेम-ऊर्जा / प्रेम-साझेदारी पर क्यों भड़कते हैं, जो मौजूदा पारिवारिक रिश्तों को बिगाड़ते हैं।पहले से ही अच्छी तरह से नेविगेट किए गए चैनल (जैसे परिवार / माता-पिता / भाई-बहन) का अर्थ होगा एक और जीवनकाल में वापस आना और इसे फिर से नेविगेट करने के लिए एक और कठिन प्रयास करना।
4-यात्रा एक विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में तेज हो जाती है, या यदि आप अपनी राधा / कृष्ण की पहचान करने के लिए भाग्यशाली हैं; तब उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है। हालांकि यह असंभव का दूसरा नाम है।जुड़वां आत्माएं एक ही समय में एक दूसरे की पहचान नहीं कर सकती हैं। समझदार आत्मा अधिक लंबी, कठिन पृथ्वी यात्रा के साथ इसे पहले महसूस करेगी। दूसरी आत्मा होगी जो
उचित समय पर स्वचालित रूप से महसूस करें। धैर्य, विश्वास और दृढ़ता आत्मा के विकास की कुंजी है।
....SHIVOHAM....
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