रावण के दस सिर किस बात का प्रतीक हैं?
पौराणिक कथाये और रावण ;- 10 FACTS;- 1-भारतीय पौराणिक कथाओं को समझना काफी मुश्किल हैं, ये कथाएँ एक और कहानी को दर्शाती है और दूसरी तरफ उन कहानियों के पीछे गहरा अर्थ छिपा होता हैं l रामायण और महाभारत के लेखन का उद्देश्य वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल करना था। भाव यह था कि आम लोगों को ये बातें कथाओं के रूप में सरल भाषा में समझाई जाएं ताकि उन्हें उनके कर्तव्यों की शिक्षा दी जा सके। 2-इनमें वर्णित घटनाएं हर युग में घटित होती हैं, बस उनके नाम एवं रूप बदल जाते हैं। सीता हरण एवं द्रोपदी चीर हरण, असत्य, छल, कपट, घोटाले जैसी घटनाएं आज भी हो रही हैं। जब ऐसा होता है, तब समाज का विनाश होता है। 3- 'भारतीय धर्म के गूढ़ ज्ञानियों, विशेषकर हिंदुओं ने ज्ञान को कहानियों, अलंकारों एवं प्रतीकों की भाषा में लिखा है। उन्होंने अपनी श्रेष्ठ कल्पना शक्ति से अनेकों देवी-देवताओं की कल्पना की, जो इन कहानियों के पात्र बने और इन्हें इन दो महाकाव्यों में संग्रह किया।' 4-वेद की मुख्य शिक्षा है कि इन दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के कारण ही जीवात्मा को मृत्यु के बाद चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुए अनेक प्रकार की यातनाएं झेलनी पड़ती हैं और जीवन-मृत्यु के अनंत चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसलिए इसी मानव योनि में पूरा प्रयास करके मोक्ष पा लेना चाहिए। 5-ऋषि जन यह समझा-समझा कर थक गए, तब उन्हें भगवान राम और भगवान विष्णु की कहानी का सहारा लेना पड़ा। जो बात ऋषि कह रहे थे, उसी को दोनों भगवानों के मुख से कहलवा दिया। वेद हिंदुओं का आधारभूत ग्रंथ है। उसमें कहीं भी राम और कृष्ण का जिक्र नहीं है। 6-इस प्रकार के लेखन का उद्देश्य था कि समाज में पापाचार कम से कम हों और जनमानस एक पीढ़ी में न सही, तो धीरे-धीरे प्रयास करते संस्कारित हो। इसलिए उन्होंने प्रतीकों का जाल तैयार किया तथा मूर्ति पूजा का विधान बनाकर सनातन धर्म की स्थापना की। पूरे समाज को आस्था एवं विश्वास के बल पर श्रीराम एवं श्रीकृष्ण की भक्ति का संदेश देकर मोक्ष के स्थान पर मुक्ति पाने का सुगम मार्ग बतलाया। : 7-रावण महर्षि विश्रवा और कैकसी नामक राक्षसी जो कि राक्षस के राजा महाराज सुमाली की बेटी थी| रावण को अपने पिता महर्षि विश्रवा से वेद-शास्त्रों का ज्ञान मिला था और अपनी माता कैकसी से राक्षसी प्रवृति मिली थी | रावण का एक दूसरा रूप भी है जिसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं | 8-रावण ब्राह्मण कुल से था और उससे प्रकांड विद्वान् सारे संसार में नहीं था | रावण एक कुशल वीणा वादक भी था | कहा जाता है की रावण से शास्त्रार्थ करने का साहस उस समय के बड़े से बड़े पंडित में भी नहीं था | और रावण जब वीणा बजाता था तो क्या मनुष्य क्या राक्षस यहाँ तक की देव लोक की अप्सराएं भी स्वयं को रोक नहीं पाती थी | और रावण की वीणा की तान सुन कर मंत्रमुग्ध हो कर नृत्य करने लगती थी | रावण बहुत ही बड़ा शिवभक्त था |रावण में अद्भुत बल था और जब तक किष्किन्धा नरेश बाली से रावण का सामना नहीं हुआ तब तक रावण अपराजित था | 9-रावण को राक्षस के राजा के रूप में दर्शाया गया है जिसके 10 सिर और 20 भुजाएँ थी और इसी कारण उनको "दशमुखा" (दस मुख वाला ), दशग्रीव (दस सिर वाला ) नाम दिया गया था। रावण मुनि विश्वेश्रवा और कैकसी के चार सन्तानो में सबसे बड़ा पुत्र था l रावण के दस सिर 6 शास्त्रों और 4 वेदों के प्रतिक हैं, जो उन्हें एक महान विद्वान और अपने समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति बनाते हैं। वह 65 प्रकार के ज्ञान और हथियारों की सभी कलाओं का मालिक था l रावण को लेकर अलग-अलग कथाएँ प्रचलित हैं l 10-लोग रावण को आज भी बुराई का प्रतीक के रूप में जानते है | रावण दहन इसका ज्वलंत उदाहरण है | रावण लंका का राजा था जिसे दशानन यानी दस सिरों वाले के नाम से भी जाना जाता था. रावण रामायण का एक केंद्रीय पात्र है| उसमें अनेक गुण भी थे जैसे अनेकों शास्त्रों का ज्ञान होना, अत्यंत बलशाली, राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी इत्यादि|विजयादशमी के दिन जब लोग रावण दहन होते देखते है तो निश्चय ही सभी के मन में ये विचार जरूर आता है की क्या ये संभव है की किसी के दस सर भी हो सकते हैं | रावण के दस सिर किस बात का प्रतीक हैं?- 11 FACTS;- 1-रावण के दस सिर को दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक के रूप में भी माना गया हैं lहालाँकि रावण के दस सर दस बुराईयों के प्रतीक हैं | काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा, , अहंकार, व्यभिचार, धोखा ये सभी रावण के दस सरों के रूप में दर्शाए गए हैं | 2-ये 10 प्रवृत्तियां हैं ;- 2-1-काम, 2-2-क्रोध, 2-3-लोभ, 2-4-मद, 2-5-मोह, 2-6-मत्सर(ईर्ष्या) 2-7-घृणा, 2-8-भय 2-9-असंवेदनशीलता 2-10-पक्षपात 3-कैसे इन प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता हैं ; 3-1- अपने पदनाम, अपने पद या योग्यता को प्यार करना – अहंकार को बढ़ावा देना l 3-2 - अपने परिवार और दोस्तों को हीं प्यार करना - अनुराग, लगाव या मोह l 3-3 -अपने आदर्श स्वभाव को प्यार करना - जो पक्षपात की ओर जाता है l 3-4 -दूसरों में पूर्णता की अपेक्षा करना - क्रोध या क्रोध की ओर अग्रसर होना 3-5 -अतीत को प्यार करना - नफरत या घृणा के लिए अग्रणी होना l 3-6 - भविष्य को प्यार करना - डर या भय के लिए अग्रणी l 3-7 -हर क्षेत्र में नंबर 1 होना चाहते हैं - यह ईर्ष्या को बढ़ावा देती है l 3-8 -प्यार करने वाली चीजें - जो लालच या लोभ को जगाती है l 3-9- विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होना - वासना है l 3-10 -प्रसिद्धि, पैसा, और बच्चों को प्यार - असंवेदनशीलता भी लाता है l 4-ये सभी नकारात्मक भावनाएं या फिर "प्रेम के विकृत रूप" हैं l देखा जाए तो हर क्रिया, हर भावना प्यार का ही एक रूप है। रावण भी इन नकारात्मक भावनाओं से ग्रस्त था और इसी कारण ज्ञान व श्री संपन्न होने के बावजूद उनका विनाश हो गया। 5-रावण के पुतले के दहन के साथ हम यह कल्पना करते हैं कि आज सत्य की असत्य पर जीत हो गई और अच्छाई ने बुराई को समाप्त कर दिया। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो पाता है! सनातन धर्म की यह परम्पराएं केवल आंख मूंद कर इनकी पुनुरुक्ति करने के लिए नहीं हैं। बल्कि यह परम्पराएं तो हमें इनके पीछे छिपे गूढ़ उद्देश्यों को स्मरण रखने एवं उनका अनुपालन करने के लिए बनाई गई हैं। 6-आज हम ऐसी अनेक सनातनधर्मी परम्पराओं का पालन तो करते हैं किन्तु उनके पीछे छिपी देशना एवं शिक्षा को विस्मृत कर देते हैं। हमारे द्वारा इन सनातनी परम्पराओं का अनुपालन बिल्कुल यन्त्रवत् होता है। विजयादशमी भी ऐसी एक परम्परा है। जिसमें रावण का पुतला दहन किया जाता है। रावण प्रतीक है अहंकार का, रावण प्रतीक है अनैतिकता का, रावण प्रतीक है सामर्थ्य के दुरुपयोग का एवं इन सबसे कहीं अधिक रावण प्रतीक है- ईश्वर से विमुख होने का। 7-रावण के बारे में कहा जाता है कि वह प्रकाण्ड विद्वान था। अरुण संहिता , संस्कृत के इस मूल ग्रंथ को अकसर ‘लाल-किताब’ के नाम से जाना जाता है। इस का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है। मान्यता है कि इस का ज्ञान सूर्य के सार्थी अरुण ने लंकाधिपति रावण को दिया था। यह ग्रंथ जन्म कुण्डली, हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र का मिश्रण है।किन्तु उसकी यह विद्वत्ता भी उसके स्वयं के अन्दर स्थित अवगुण रूपी रावण का वध नहीं कर पाई। तब वह ईश्वर अर्थात् प्रभु श्रीराम के सम्मुख आया। 8-हम मनुष्यों में और रावण में बहुत अधिक समानता है। यह बात स्वीकारने में असहज लगती है, किन्तु है यह पूर्ण सत्य। हमारी इस पंचमहाभूतों से निर्मित देह में मन रूपी रावण विराजमान है। इस मन रूपी रावण के काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर,वासना,भ्रष्टाचार,अनैतिकता इत्यादि दस सिर हैं। यह मन रूपी रावण भी ईश्वर से विमुख है। जब इस मन रूपी रावण का एक सिर कटता है तो तत्काल उसके स्थान पर दूसरा सिर निर्मित हो जाता है। 9-रावण का शव ...अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था। 10-भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सेवानिवृत्त पुरातत्वविद् डॉ. एलएम बहल कहते हैं कि रामायण में वर्णित श्लोकों के आधार पर इस गणना का मिलान किया जाए तो राम-रावण के युद्ध की भी पुष्टि होती है। इसके अलावा इन घटनाओं का खगोलीय अध्ययन करने वाले विद्वान भी हैं। भौतिकशास्त्री डॉ. पुष्कर भटनागर ने रामायण की तिथियों का खगोलीय अध्ययन किया है।ईसा पूर्व 5076 साल से पहले से आज तक रावण का शव श्रीलंका की रानागिल की गुफा में सुरक्षित रखा है यानी आज उसे 7 हजार 89 वर्ष हो चुके हैं। 11-ठीक इसी प्रकार हमारी भी एक वासना समाप्त होते ही तत्क्षण दूसरी वासना तैयार हो जाती है। हमारे मन रूपी रावण के वध हेतु हमें भी राम अर्थात् ईश्वर की शरण में जाना ही होगा। जब हम ईश्वर के सम्मुख होंगे तभी हमारे इस मनरूपी रूपी रावण का वध होगा। विजयादशमी हमें इसी सँकल्प के स्मरण कराने का दिन है। आइए हम प्रार्थना करें कि प्रभु श्रीराम हमारे मन स्थित रावण का वध कर हमें अपने श्रीचरणों में स्थान दें। जिस दिन यह होगा उसी दिन हमारे लिए विजयादशमी का पर्व सार्थक होगा।
....SHIVOHAM.....