नरक चतुर्दशी / काली चौदस का क्या महत्व है?क्या दीपावली पूजा में शुभ मुहूर्त महत्वपूर्ण है?
नरक चतुर्दशी का महत्व;- 12 FACTS;- 1-नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है।इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।काली चौदस कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। दिवाली के पांच दिनों के उत्सव का यह दूसरा दिन होता है। इस दिन काली मां की पूजा होती है और यह कहा जाता है कि इस दिन उन्होंने नरकासुर को मारा था। इसलिए इसे नरक चतुर्दशी, छोटी दिवाली भी कहा जाता है। 2-पुराणों की कथा के अनुसार राक्षस नरकासुर ने भगवान इंद्र को हराकर, माता अदिति के कान की बालियां छीन ली थी और प्रज्ञज्योतिशपुर (नेपाल के दक्षिण में एक प्रांत) में शासन करने लगा। नरकासुर ने देवताओं और संतों की सोलह हजार कन्यायों को भी अपने कैद में कर लिया था। तब भगवान कृष्णा ने नरकासुर का वध किया और सभी कन्यायों को मुक्ता करवाया तथा माता अदिति की बालियां भी वापस उन्हें ( माता अदिति ) सौंपी। 2-1-भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया।नरकासुर ने 16000 स्त्रियों से जबरदस्ती विवाह किया, उन्हें बंदी बना के रखा और अपना दास बना लिया। नरकासुर को वरदान था की उसे कोई पुरुष नहीं मार् सकता अतः काली मां और सत्यभामा के सहयोग से जब वो श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया तो उन सभी स्त्रियों का उद्धार हो गया।श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कर दिया। 3-इसके बाद उन 16000 स्त्रियों ने कहा कि हम सभी आत्महत्या कर लेंगे। वे सभी सामूहिक आत्महत्या करना चाहती थीं क्योंकि उन दिनों स्त्रियों के लिए वर्जित था कि वे बिना पति के रहें।उन्हें समाज में वो सम्मान नहीं मिलता था, विशेषकर एक आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति के पत्नी को। इसलिए उन सभी ने श्रीकृष्ण से कहा कि ‘इस व्यक्ति के साथ रहने के कारण अब हमारा परिवार हमें नहीं अपनाएगा । इसलिए अच्छा है कि हम सब मर जाएँ ।इन कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा अतः आप ही कोई उपाय करें। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। 4-नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीपदान और पूजा का विधान है। पूजा जब विधि के साथ होती है तभी उसका फल मिलता है। काली चौदस पूजा करने से पहले अभ्यंग स्नान करना होता है। ऐसी मान्यता है कि अभ्यंग स्नान करने से व्यक्ति नरक में जाने से बच जाता है। यह भी कहा जाता है कि अभ्यंग स्नान (अर्थात तिल का तेल लगाकर अपामार्ग अर्थात चिचड़ी की पत्तियां जल में डालकर स्नान ) में अपने शरीर पर परफ्यूम लगाकर पूजा पर बैठना चाहिए।जब आप मां काली को पूजा सामग्री चढ़ा दें उसके बाद मां की पूजा करें और ध्यान लगाएं। 5-14 दिए जलाने की परम्परा... इस दिन रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक जलाने की परम्परा है।सबसे पहले एक थाली में एक चौमुँख दिया जलाते है। इसके बाद थाली में फूल, हल्दी, चावल, गुड़, गुलाल आदि से यम को पूजा जाता है फिर दियों को घर के अलग-अलग जगह पर रखते है और उसके बाद गणेश जी और लक्ष्मी जी के सामने भी एक दिया जलाते है। 6-ऐसा कहा जाता हैं कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय होने से बाद नहाता हैं उसे वर्ष भर में किये गये अच्छे कार्यों का फल नहीं मिलता है।नरक चतुर्दशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठना चहिये फिर शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करके नहाना चहिये कहते है। इस दिन तेल में लक्ष्मी और जल में गंगा का रूप होता है। 7-इस दिन दीपदान के बाद खुले आसमान के नीचे तेल का दीपक लेकर अपने पूर्वजों को याद करके दीपदान करके प्रार्थना करना चहिये कि हमारे पूर्वज हमारे द्वारा किए गए इस दीपदान से प्रसन्न होकर इस दीप के प्रकाश से अपने-अपने लोकों में प्रस्थान करें। 8-भविष्य पुराण के अनुसार इस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का महत्व होता हैं | इस दिन स्नान करते वक्त तिल एवं तेल से नहाया जाता हैं इसके साथ नहाने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं | इस दिन प्रभात के समय नरक के भय को दूर करने के लिए स्नान अवश्य किया जाता है। स्नान के दौरान अपामार्ग (चिचड़ा)/अकबक के पत्ते को सिर के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए घुमाते हैं। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणं पुन: पुन:। आपदं किल्बिषं चापि ममापहर सवर्श:। अपामार्ग नमस्तेस्तु शरीरं मम शोधय॥ मन्त्र अर्थ - हे अपामार्ग! मैं काँटों और पत्तों सहित तुम्हें अपने मस्तक पर बार-बार घुमा रहा हूँ। तुम मेरे पाप हर लो। 9-स्नान के पश्चात् 'यम' के चौदह नामों को तीन-तीन बार उच्चारण करके तर्पण (जल-दान) किया जाता है।जल-अञ्जलि हेतु यमराज के निम्नलिखित 14 नामों का तीन बार उच्चारण करना चाहिये- 1-ॐ यमाय नम: 2-ॐ धर्मराजाय नम: 3-ॐ मृत्यवे नम: 4-ॐ अंतकाय नम: 5-ॐ वैवस्वताय नम: 6-ॐ कालाय नम: 7-ॐ सर्वभुतक्षयाय नम: 8-ॐ औढुम्बराय नम: 9-ॐ दध्नाय नम: 10-ॐ नीलाय नम: 11-ॐ परमेष्ठिने नम: 12-ॐ वृकोदराय नम: 13-ॐ चित्राय नम: 14-ॐ चित्रगुप्ताय नम: 10-इस दिन शाम को घर से बाहर नरक निवृत्ति के लिये सर्वप्रथम यम-देवता के लिए धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-स्वरूप चार बत्तियों का दीपक जलाया जाता है। इसके बाद गो-शाला, देव-वृक्षों के नीचे, रसोई-घर, स्नानागार आदि में दीप जलाये जाते हैं एवं यमराज की पूजा भी की जाती है। 'दीप-दान' के बाद नित्य का पूजन करे।
11-कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को काली चौदस का पर्व मनाया जाता है। दिवाली के पंच दिवस उत्सव का यह दूसरा दिन होता है। काली चौदस का पर्व नरकासुर पर विजय पाने के उपलक्ष में मनाया जाता है तथा इस पर्व का देवी काली के पूजन से गहरा संबंध है। तंत्रशास्त्र के अनुसार महाविद्याओं में देवी कालिका सर्वोपरीय है। काली शब्द हिन्दी के शब्द काल से उत्पन्न हुआ है जिसके अर्थ हैं समय, काला रंग, मृत्यु देव या मृत्यु। तंत्र के साधक महाकाली की साधना को सर्वाधिक प्रभावशाली मानते हैं और यह हर कार्य का तुरंत परिणाम देती है।
12-साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। काली चौदस के दिन कालिका के विशेष पूजन-उपाय से लंबे समय से चल रही बीमारी दूर होती है। काले जादू के बुरे प्रभाव, बुरी आत्माओं से सुरक्षा मिलती है। कर्ज़ मुक्ति मिलती हैं ,परेशानियां दूर होती हैं। यही नहीं काली चौदस के विशेष पूजन उपाय से शनि के प्रकोप से भी मुक्ति मिलती है। रूप चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है?- 06 FACTS;- 1-दीपोत्सव का दूसरा दिन नरक चतुर्दशी अथवा रूपचौदस होता है। कथा ...हिरण्यगर्भ नामक एक राजा थे । उन्होंने राज पाठ छोड़कर तप में अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया । उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की लेकिन उनके शरीर पर कीड़े लग गए । उनका शरीर जैसे सड़ गया । हिरण्यगर्भ को इस बात से बहुत कष्ट हुआ और उन्होंने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही । तब नारद मुनि ने उनसे कहा कि आप योग साधना के दौरान शरीर की स्थिति सही नहीं रखते इसलिए ऐसा परिणाम सामने आया । 2-तब हिरण्यगर्भ ने इसका निवारण पूछा -तो नारद मुनि ने उनसे कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करे साथ ही रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा कर उनकी आरती करे इससे आपको पुन : अपना सौन्दर्य प्राप्त होगा । उन्होने वही किया और अपने शरीर को पूर्व रूप में पा लिया । तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता हैं । इस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का बहुत महत्व हैं । इसके साथ नहाने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं और श्री कृष्णा की उपासना का भी प्रचलन है। 4-इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके ,विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करने से पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। 6-बुरी शक्तियां घर से बाहर...घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं। नरक चतुर्दशी के ही दिन हुआ था महावीर हनुमान का जन्म;- 04 FACTS;- 1-हनुमान जयंती तिथि के विषय में दो मत बहुत प्रचलित हैं. प्रथम यह कि चैत्र शुक्ल पूर्णमा के दिन यह जयंती मनाई जाती है, इस मत का संबंध दक्षिण भारत से रहा है चैत्र पूर्णिमा के दिन दक्षिण भारत में विशेष रूप से हनुमान जयंती पर्व का आयोजन होता है। 2-दूसरे मतानुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन इस जयंती को मानाया जाता है. इस दिन उत्तर भारत में हनुमान जयंती पर विशेष रूप से पूजा अर्जना और दान पूण्य किया जाता है. अत: इन दोनों ही मतों के अनुसार हनुमान जयंती भक्ति भाव के साथ मनाई जाती है। 3-मान्यता है कि भगवान राम के भक्त महावीर हनुमान जी का जन्म दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी के ही दिन हुआ था। हनुमान जी को रूद्र के ग्याहरवें अवतार माना जाता है।चैत्र पूर्णिमा और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता हैं |इसलिए भारत में दो बार हनुमान जयंती मनाया जाता हैं । एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन| 4- इस दिन भगवान अपने भक्तों के ऊपर बहुत जल्द प्रसन्न होते है। इसलिए इस दिन पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए।एक मान्यता हैं कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन हीं हनुमान जी ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था । इस दिन दुखों एवं कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की भक्ति की जाती हैं जिसमे कई लोग हनुमान चालीसा, हनुमानअष्टक जैसे पाठ करते हैं । ऊँ हनुमते नम: मंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिए ।हनुमान जी का जन्म दिवस उनके भक्तों के लिए परम पुण्य दिवस है।इस दिन हनुमान जी की प्रसन्नता हेतु उन्हें तेल और सिन्दुर चढ़ाया जाता है।हनुमान जी को मोदक बहुत पसंद है अत: इन्हें मोदक का भी भोग लगाना चाहिए।
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नरक चतुर्दशी पूजन विधि;- 03 FACTS;- 1-हर दीपावली हमारे घर के बुजुर्ग या माता-पिता सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं। यह एक बहुत ही पुरानीपरंपरा है जिसे अभ्यंग स्नान कहा जाता है।नरक चतुर्दशी (काली चौदस) के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-मालिश (तैलाभ्यंग) करके स्नान करने का विधान है;जो कि रूप सौंदर्य में वृद्धि करने वाला माना जाता है।।'सनत्कुमार संहिता' एवं 'धर्मसिंधु' ग्रंथ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है।नरक चौदस के दिन प्रात: काल सूर्य उदय से पहले शरीर पर तिल्ली का तेल मलकर और अपामार्ग की पत्तियां पानी में डालकर स्नान करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है और मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
2- स्नान के दौरान अपामार्ग के पौधे को शरीर पर स्पर्श करना चाहिये और ऊपर दिये गये मंत्र का जाप को पढ़कर ,अपामार्ग यानि चिरचिरा(चिचड़ी) (औधषीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाए।स्नानोपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर तिलक लगाकर दक्षिण दिशा में मुख कर तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिये। इसे यम तर्पण कहा जाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह तर्पण विशेष रूप से सभी पुरूषों द्वारा किया जाता है। चाहे उनके माता-पिता जीवित हों या गुजर चुके हों।नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की करवा चौथ/अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है। 3-नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं। इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।
NOTE;-
काली चौदस और दीपावली की रात जप-तप के लिए बहुत उत्तम मुहूर्त माना गया है। नरक चतुर्दशी की रात्रि में मंत्रजप करने से मंत्र सिद्ध होता है।इस रात्रि में सरसों के तेल अथवा घी के दीये से काजल बनाना चाहिए। इस काजल को आँखों में आँजने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती तथा आँखों का तेज बढ़ता है।
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मां काली पूजा का क्या महत्व है? 04 FACTS;- 1-भारत के अधिकतर राज्यों में दीपावली की अमावस्या पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस अवसर पर मां काली की पूजा होती है। यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है। पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी पूजा दशहरे के 6 दिन बाद की जाती है जबकि दिवाली के दिन काली पूजा की जाती है।काली चौदस बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है। काली चौदस पूजा को ''भूत पूजा'' के नाम से भी जाना जाता है।क्यों करते हैं काली पूजा?...राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई जबकि इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है। 2-दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था। माना जाता है कि मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है। शत्रुओं का नाश हो जाता है। कहा जाता है कि मां काली का पूजन करने से जन्मकुंडली में बैठे राहू और केतु भी शांत हो जाते हैं। अधिकतर जगह पर तंत्र साधना के लिए मां काली की उपासना की जाती है।चतुर्दशी तिथि के उपलक्ष्य में काली चौदस और भूत चतुर्दशी का पर्व मनाते है। पूर्वी भारत में काली चौदस का पर्व मूल प्रकृति देवी पार्वती के काली स्वरूप अर्थात आद्या काली के प्रकटोत्सव के रूप में मनाया जाता है।काली शब्द काल का प्रतीक है। काल का अर्थ होता है समय या मृत्यु और इसी कारण से उन्हें काली कहा जाता है। तंत्र शास्त्र के साधक महाकाली की साधना को सर्वाधिक प्रभावशाली मानते हैं तथा यह साधना हर कार्य का तुरंत परिणाम देती है। निपुण साधकों को इस शक्तिशाली साधना से अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है। काली चौदस पर्व पर महाकाली के विशेष पूजन और उपाय करने से लंबे समय से चल रही बीमारियां दूर होती है। काले जादू के बुरे प्रभाव से छुटकारा मिलता है, बुरी आत्माओं के छाया से मुक्ति मिलती है। 3-तंत्रशास्त्र के अनुसार महाकाली दस महाविद्याओं में प्रथम व समस्त देवताओं द्वारा पूजनीय व अनंत सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। कालिका पुराण में महामाया को ही काली बताया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मधु व कैटभ के नाश हेतु ब्रह्मदेव के प्रार्थना करने पर महादेवी मोहिनी महामाया शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं। महामाया भगवान श्री हरि के नेत्र, मुख, नासिका व बाजू आदि से निकल कर ब्रह्मदेव के सामने आ जाती हैं।महाकाली दुष्टों के संहार के लिए प्रकट होती हैं व दैत्यों का संहार करती हैं। महाकाल शिव की शक्ति महाकाली ही है तथा प्रलय उनकी प्रतिष्ठा है। शक्ति व शिव अभेद हैं तथा यहीं अर्द्धनारीश्वर उपासना का रहस्य भी है। सृ्ष्टि से पूर्व मात्र काल व काली ही अस्तित्व में थे। आगम शास्त्र में इन्हें ही प्रथमा कहा गया है। महाकाली का मूलरूप अर्द्धरात्रि और प्रलय के समान है।श्मशानवासिनी महादेवी शव पर सवार ,चतुर्भुजी महाकाली को संहार मुद्रा में चित्रित किया गया है। पापियों के नाश करने हेतु इनके एक हाथ में खडग, दूसरे में वर, तीसरे में अभय मुद्रा तथा चौथे हाथ में कटा हुआ मस्तक है। इनके गले में मुण्डमाला है तथा जिह्वा बाहर निकली है। 4-दो तरीके से मां काली की पूजा की जाती है, एक सामान्य और दूसरी तंत्र पूजा।पूजा जब विधि के साथ होती है तभी उसका फल मिलता है। काली चौदस पूजा करने से पहले अभ्यंग स्नान करना होता है।यह भी कहा जाता है कि अभ्यंग स्नान के बाद अपने शरीर पर परफ्यूम लगाकर पूजा पर बैठना चाहिए। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है। माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है। पूजा की इस विधि में सुबह से उपवास रखकर रात्रि में भोग, होम-हवन व पुष्पांजलि आदि का समावेश होता है।जब आप मां काली को पूजा सामग्री चढ़ा दें उसके बाद मां की पूजा करें और ध्यान लगाएं। दीपावली पूजा में शुभ मुहूर्त का क्या महत्व है :-
07 FACTS;- 1-लक्ष्मी पूजन के चार प्रकार के मुहूर्त सर्वमान्य हैं। इनमें एक प्रदोष काल, दूसरा कुंभ लग्न, तीसरा वृषभ लग्न और चौथा सिंह लग्न। दीपावली का पूजन प्रदोष काल और स्थिर लग्न में होता है। वृष और सिंह स्थिर लग्न है।पूजा के लिए स्थिर लग्नों का चयन जरूरी है।व्यापारी वर्ग को कुंभ लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से बचना चाहिए। 2-प्रदोष काल का समय गृहस्थ एवं व्यापारियों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।प्रदोष काल का मतलब होता है दिन और रात्रि का संयोग काल। दिन भगवान विष्णु का प्रतीक है और रात्रि माता लक्ष्मी का प्रतीक है।
3 -गृहस्थ प्रदोष काल में पूजन करें। 4 -व्यापारी प्रदोष और वृष लग्न में दीपावली पूजन करें तो बेहतर है। 5 -छात्र प्रदोष काल में पूजन करें। 6 -आई टी, मीडिया, फ़िल्म, टी वी इंडस्ट्री, मैनेजमेंट और जॉब करने वाले शुक्र प्रधान लग्न वृष में पूजन करें। 7-सरकारी सेवा के लोग अधिकारी और न्यायिक सेवा के लोग भी वृष लग्न में ही पूजन करें। विशेष शुभ मुहुर्त;-
05 FACTS;-
1-नरक चतुर्दशी 2021 अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त;-इस दिन सुबह हस्त नक्षत्र होने से आनंद नाम का शुभ योग बन रहा है। इसके अलावा सर्वार्थसिद्धि नाम का एक अन्य शुभ योग भी इस दिन सुबह-सुबह रहेगा।चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 03, 2021 को 09:02AM चतुर्दशी तिथि समाप्त – नवम्बर 04, 2021 को 06:03 AM
अभ्यंग स्नान मुहूर्त ;-
05:40 AM से 06:03 AM
चौघड़िया मुहूर्त सुबह 06:34 से 07:57 तक- लाभ सुबह 07:57 से 09:19 तक- अमृत सुबह 10:42 से दोपहर 12:04 तक- शुभ दोपहर 02:49 से 04:12 तक- चर शाम 04:12 से 05:34 तक- लाभ
3-दिवाली के दिन पूजा का मुहूर्त;-
अमावस्या तिथि का प्रारम्भ: 4 नवंबर 2021 को प्रात: 06:03 बजे से.
अमावस्या तिथि का समापन: 5 नवंबर 2021 को प्रात: 02:44 बजे तक
दिवाली के दिन पूजा के लिए दो समय का मुहूर्त है। पहला समय फैक्ट्री और कारखानों के लिए तो दूसरा दुकानों और घरों के लिए।फैक्ट्री, कारखानों में पूजन के लिए उपयुक्त समय प्रातःकाल मुहूर्त्त (चल, लाभ, अमृत): 10:42 से 02:49 बजे के बीच होगा।जबकि दूसरा मुहूर्त शाम वृषभ काल : 6:10 से 8:06 बजे के बीच होगा। यह स्थिर लग्न होता है, इसमें आप अपने घर में गणेश-लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर सकते हैं और उनकी मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं ।
दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त : -11:38 से 12:30 तक
महानिशीथ काल : 11:38 से 24:30 तक
सिंह काल : 24:42 से 26:59 तक
दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त
प्रातःकाल मुहूर्त्त (शुभ) :06:34 से 07:57 तक
प्रातःकाल मुहूर्त्त (चल, लाभ, अमृत): 10:42:09 से 14:49:21 तक
सायंकाल मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल): 16:11 से 20:49 तक
रात्रि मुहूर्त्त (लाभ): 24:04:55 से 25:42:37 तक
4-विशेष –
जप-तप पूजा-पाठ आराधना तथा विद्यार्थियों के लिए माँ श्री महासरस्वती की वंदना करने का समय रात्रि 8 बजकर 06 से 10 बजकर 49 तक रहेगा।
5-महानिशा पूजा अतिशुभ मुहूर्त निशीथ काल : -
तंत्र सिद्धि के लिए दिवाली की रात में महानिशा पूजा की जाती है। ईष्ट साधना तथा तांत्रिक पूजा के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त महानिशीथ कालघर की नकारात्मक ऊर्जा दूर करने वाली मां श्री महाकाली, प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाने वाले भगवान श्रीकाल भैरव की पूजा, तथा ईष्ट साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त महानिशीथ काल का आरंभ रात्रि 11 बजकर 38 मिनट से आरंभ होकर मध्य रात्रि पश्चात 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
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गोवर्धन पूजा- 05 नवंबर 2021
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि आरंभ- 05 नवंबर 2021 को प्रातः तड़के 02 बजकर 44 मिनट से
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि समाप्त- 05 नवंबर 2021 को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट पर
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त - 06 बजकर 35 मिनट से 08 बजकर 47 मिनट तक
अवधि- 02 घण्टे 11 मिनट्स
गोवर्धन पूजा सायाह्नकाल मुहूर्त - 03 बजकर 21 मिनट से 05 बजकर 33 मिनट तक
अवधि - 02 घण्टे 11 मिनट्स
भाई दूज का मुहूर्त 2021;-
इस साल द्वितीया तिथि 5 नवंबर को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 6 नवंबर को शाम 07 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस साल भाई दूज पर अपने भाइयों को तिलक करने का सबसे शुभ समय दोपहर 1 बजकर 25 मिनट से लेकर 4 बजकर 05 मिनट तक है। आप अपने भाई को इस शुभ मुहूर्त में तिलक करें तो ये बेहद शुभ होगा, लेकिन किसी कारण ये समय चूक जाता है तो 6 नवंबर को शाम 7 बजे के पहले कभी भी भाई को तिलक लगा सकती हैं।
अशुभ काल
राहू - 9:24 AM – 10:47 AM
यम गण्ड - 1:33 PM – 2:56 PM
कुलिक - 6:38 AM – 8:01 AM
दुर्मुहूर्त - 08:07 AM – 08:51 AM
वर्ज्यम् - 04:39 AM – 06:04 AM
शुभ काल
अभिजीत मुहूर्त - 11:48 AM – 12:32 PM
अमृत काल - 02:26 PM – 03:51 PM
ब्रह्म मुहूर्त - 05:02 AM – 05:50 AM
दिन का चौघड़िया;-
काल 06:41 AM 08:02 AM
शुभ 08:02 AM 09:22 AM
रोग 09:22 AM 10:43 AM
उद्बेग 10:43 AM 12:04 PM
चर 12:04 PM 13:25 PM
लाभ 13:25 PM 14:46 PM
अमृत 14:46 PM 16:07 PM
काल 16:07 PM 17:28 PM
विधि;-
02 FACTS;-
1-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यम और यमुना सूर्यदेव की संतान हैं। यमुना समस्त कष्टों का निवारण करनेवाली देवी स्वरूपा हैं।उनके भाई मृत्यु के देवता यमराज हैं।यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करने और वहीं यमुना और यमराज की पूजा करने का बहुत महत्व है।इस दिन बहन अपने भाई को तिलक लगाकर उसकी लंबी उम्र के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। स्कंद पुराण में लिखा है कि इस दिन यमराज पूजन करनेवालों को मनोवांछित फल मिलता है।धन-धान्य, यश एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
2-यमुना में स्नान न कर सकें तो भाईदूज के दिन भाई और बहन दोनों को मिलकर सुबह के समय यम, चित्रगुप्त, यम के दूतों की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद सूर्यदेव के साथ ही इन सभी को भी अर्घ्य देना चाहिए।यम की पूजा करते हुए बहन प्रार्थना करें कि हे यमराज, श्री मार्कण्डेय, हनुमान, राजा बलि, परशुराम, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य और अश्वत्थामा इन आठ चिरंजीवियों की तरह मेरे भाई को भी चिरंजीवी होने का वरदान दें। प्रार्थना के बाद बहन अपने भाई का टीका करें, अक्षत लगाएं और भाई को भोजन कराएं। भोजन के पश्चात भाई यथाशक्ति बहन को उपहार या दक्षिणा दें।
NOTE;- घर में धनात्मक ऊर्जा की वृद्धि और वास्तु दोष के शमन के लिए धनतेरस से भाई दूज तक पांच दिन तक घर में अखंड दीपक प्रज्ज्वलित करने से पांच तत्व अग्नि, वायु, जल, आकाश और पृथ्वी संतुलित हो जाते हैं। ...SHIVOHAM....