आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कैसे करती है ?PART-02
क्या है जन्म-मृत्यु का चक्र ?-
10 FACTS;-
1-हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जन्म-मृत्यु एक ऐसा चक्र है, जो अनवरत चलता रहता है। कहते हैं जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना भी एक अटल सच्चाई है, लेकिन कई ऋषि- मुनियों ने इस सच्चाई को झूठला दिया है। वे मरना सीखकर हमेशा जिंदा रहने का राज जान गए और वे सैकड़ों वर्ष और कुछ तो हजारों वर्ष जीकर चले गए और कुछ तो आज तक जिंदा हैं। कहते हैं कि ऋषि वशिष्ठ सशरीर अंतरिक्ष में चले गए थे और उसके बाद आज तक नहीं लौटे। परशुराम, हनुमानजी, कृपाचार्य और अश्वत्थामा के आज भी जीवित होने की बात कही जाती है।
2-जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सोम या सुरा एक ऐसा रस था जिसके माध्यम से हर तरह की मृत्यु से बचा जा सकता था। इस पर अभी शोध होना बाकी है कि कौन से भोजन से किस तरह का भविष्य निकलता है।
3-धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों ने अपने ग्रंथों में 100 प्रकार की मृत्यु का वर्णन किया है जिसमें 18 प्रमुख प्रकार हैं। उक्त सभी में एक ही काल मृत्यु है और शेष अकाल मृत्यु मानी गई है। काल मृत्यु का अर्थ कि जब शरीर अपनी आयु पूर्ण कर लेता है और अकाल मृत्यु का अर्थ कि किसी बीमारी,दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मर जाना।
4-अकाल मृत्यु को रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।आयुर्वेदानुसार इसके भी 3 भेद हैं-
4-1. आदिदैविक
4-2.आदिभौतिक
4-3. आध्यात्मिक
5-आदिदैविक और आदिभौतिक मृत्यु योगों को तंत्र और ज्योतिष उपयोग द्वारा टाला जा सकता है,परंतु आध्यात्मिक मृत्यु के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। अत: मृत्यु के लक्षण चिन्हों के प्रकट होने पर ज्योतिषीय आकलन के पश्चात उचित निदान करना चाहिए।
6-मृत्यु के बारे में वेद, योग, पुराण और आयुर्वेद में विस्तार से लिखा हुआ है।
पुराणों में गरूड़ पुराण,शिव पुराण और ब्रह्म पुराण में मृत्यु के स्वभाव का उल्लेख मिलेगा। मृत्यु के बाद के जीवन का उल्लेख मिलेगा। परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु के बाद घर में गीता और गरूड़ पुराण सुनने की प्रथा है, इससे मृतक आत्मा को शांति और सही ज्ञान मिलता है जिससे उसके आगे की गति में कोई रुकावट नहीं आती है।स्थूल शरीर को छोड़ने
के बाद सच्चा ज्ञान ही लंबे सफर का रास्ता दिखाता है।
7-जब व्यक्ति की समयपूर्व मौत होने वाली होती है तो उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। लक्षण जानकर मौत से बचने के उपाय खोजे जा सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार बहुत गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज बहुत ही छोटा, सरल और सुलभ होता है बशर्ते कि उसकी हमें जानकारी हो और समयपूर्व हम सतर्क हो जाएं।
शिव पुराण के अनुसार मृत्यु के पूर्वाभास ;-
वास्तव में, मृत्यु के पूर्वाभास से जुड़े लक्षणों को किसी भी लैब टेस्ट या क्लिनिकल परीक्षण से सिद्ध नहीं किया जा सकता बल्कि ये लक्षण केवल उस व्यक्ति को महसूस होते हैं जिसकी मृत्यु होने वाली होती है। मृत्यु के पूर्वाभास से जुड़े निम्नलिखित संकेत व्यक्ति को अपना अंत समय नजदीक होने का आभास करवाते हैं।
21 POINTS;-
1-अत्यधिक कार्य से भीतर के सभी स्नायु, नाड़ियां आदि कमजोर हो जाते हैं। यह उसी तरह है कि हम किसी इमारत के सबसे नीचे की मंजिल को खोद दें। ऐसे व्यक्ति की आंखों के सामने बार-बार अंधेरा छा जाता है। उठते समय, बैठते समय या सफर करते समय अचानक आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। यदि यह लक्षण दो-तीन सप्ताह तक बना रहे तो तुरंत ही योग, आयुर्वेद और ध्यान की शरण में जाना चाहिए या किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लें।
2-माना यह भी जाता है कि इस अंधेरा छा जाने वाले रोग के कारण उस चांद में भी दरार जैसा नजर आता है। यह उस लगता है कि चांद दो टुकड़ों में है, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता।
3-आंखों की कमजोरी से संबंधित ही एक लक्षण यह भी है कि व्यक्ति को दर्पण में अपना चेहरा न दिखकर किसी और का चेहरा होने का भ्रम होने लगता है।
4-जब कोई व्यक्ति चंद्र, सूर्य या आग से उत्पन्न होने वाली रोशनी को
भी नहीं देख पाता है तो ऐसा इंसान भी कुछ माह और जीवित रहेगा,
ऐसी संभावनाएं रहती हैं।
5-जब कोई व्यक्ति पानी में, तेल में, दर्पण में अपनी परछाई न देख पाए या परछाई विकृत दिखाई देने लगे तो ऐसा इंसान मात्र छह माह का जीवन और जीता है।
6-जिन लोगों की मृत्यु एक माह शेष रहती है वे अपनी छाया को भी स्वयं से अलग देखने लगते हैं।कुछ लोगों को तो अपनी छाया का सिर भी दिखाई नहीं देता है।
7-मौत से कुछ समय पहले व्यक्ति को सब चीज काली नजर आने लगती है। वह रंगों के बीच अंतर करना बंद कर देता है, उसे सब कुछ काला ही नजर आने लगता है।
8-आयुर्वेदानुसार मृत्यु से पहले मानव शरीर से अजीब-सी गंध आने लगती है। इसे मृत्यु गंध कहा जाता है। यह किसी रोगादि, हृदयाघात,मस्तिष्काघात आदि के कारण उत्पन्न होती
है।यह गंध किसी मुर्दे की गंध की तरह ही होती है।बहुत समय तक किसी अंदरुनी रोग को
टालते रहने का परिणाम यह होता है कि भीतर से शरीर लगभग मर चुका होता है।
9-जिस व्यक्ति का श्वास अत्यंत लघु चल रहा हो तथा उसे कैसे भी शांति न मिल रही हो तो उसका बचना मुश्किल है। नासिका के स्वर अव्यवस्थित हो जाने का लक्षण अमूमन मृत्यु के
2-3 दिनों पूर्व प्रकट होता है।कहते हैं कि जो व्यक्ति की सिर्फ दाहिनी नासिका से ही एक दिन और रात निरंतर श्वास ले रहा है (सर्दी-जुकाम को छोड़कर) तो यह किसी गंभीर रोग के घर करने की सूचना है। यदि इस पर वह ध्यान नहीं देता है तो तीन वर्ष में उसकी मौत तय है।
10-जिसकी दक्षिण श्वास लगातार दो-तीन दिन चलती रहे तो ऐसे व्यक्ति को संसार में एक वर्ष का मेहमान मानना चाहिए। यदि दोनों नासिका छिद्र 10 दिन तक निरंतर ऊर्ध्व श्वास के साथ चलते रहें तो मनुष्य तीन दिन तक ही जीवित रहता है। यदि श्वास वायु नासिका के दोनों छिद्रों को छोड़कर मुख से चलने लगे तो दो दिन के पहले ही उसकी मृत्यु जानना चाहिए।
11-जिसके मल, मूत्र और वीर्य एवं छींक एक साथ ही गिरते हैं उसकी आयु केवल एक वर्ष ही शेष है, ऐसा समझना चाहिए।
12-जिसके वीर्य, नख और नेत्रों का कोना यह सब यदि नीले या काले रंग के हो जाएं तो मनुष्य का जीवन छह से एक वर्ष के बीच समाप्त हो जाता है।
13-जब किसी व्यक्ति का शरीर अचानक पीला या सफेद पड़ जाए और ऊपर से कुछ लाल दिखाई देने लगे तो समझ लेना चाहिए कि उस इंसान की मृत्यु छह माह में होने वाली है।
14-जो व्यक्ति अकस्मात ही नीले-पीले आदि रंगों को तथा कड़वे-खट्टे आदि रसों को विपरीत रूप में देखने-चखने का अनुभव करने लगता हैं वह छह माह में ही मौत के मुंह में समा जाएगा।
15-जब किसी व्यक्ति का मुंह, जीभ, कान, आंखें,नाक स्तब्ध हो जाएं यानी पथरा जाए तो ऐसे माना जाता है कि ऐसे इंसान की मौत का समय भी लगभग छह माह बाद आने वाला है।
16-जिस इंसान की जीभ अचानक से फूल जाए,दांतों से मवाद निकलने लगे और सेहत बहुत ज्यादा खराब होने लगे तो मान लीजिए कि उस व्यक्ति का जीवन मात्र छह माह शेष है।
17-यदि रोगी के उदर पर सांवली, तांबे के रंग की,लाल, नीली, हल्दी के तरह की रेखाएं उभर जाएं तो रोगी का जीवन खतरे में है, ऐसा बताया गया है।
18-यदि व्यक्ति अपने केश एवं रोम को पकड़कर खींचे और वे उखड़ जाएं तथा उसे वेदना न हो तो रोगी की आयु पूर्ण हो गई है, ऐसा मानना चाहिए।
19-हाथ से कान बंद करने पर किसी भी प्रकार की आवाज सुनाई न दे और अचानक ही मोटा शरीर दुबला और दुबला शरीर मोटा हो जाए तो एक माह में मृत्यु हो जाती है। सामान्य तौर पर व्यक्ति जब आप अपने कान पर हाथ रखते हैं तो उन्हें कुछ आवाज सुनाई देती है लेकिन जिस व्यक्ति का अंत समय निकट होता है उसे किसी भी प्रकार की आवाजें सुनाई देनी बंद हो जाती हैं।
20-मौत के ठीक तीन-चार दिन पहले से ही व्यक्ति को हर समय ऐसा लगता है कि उसके आसपास कोई है। उसे अपने साथ किसी साए के रहने का आभास होता रहता है। यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को अपने मृत पूर्वजों के साथ रहने का अहसास होता हो। यह अहसास ही मौत की सूचना है।
21-समय बीतने के साथ अगर कोई व्यक्ति अपनी नाक की नोक देखने में असमर्थ हो जाता है तो इसका अर्थ यही है कि जल्द ही उसकी मृत्यु होने वाली है, क्योंकि उसकी आंखें धीरे-धीरे ऊपर की ओर मुड़ने लगती हैं और मृत्यु के समय आंखें पूरी तरह ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
यदि किसी व्यक्ति को नीले रंग की मक्खियां घेरने लगे और अधिकांश समय ये मक्खियां व्यक्ति के आसपास ही रहने लगें तो समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति की आयु मात्र एक माह शेष है।
NOTE;-
1-इटली के वैज्ञानिकों के अनुसार मरते वक्त मानव शरीर से एक खास किस्म की बू निकलती है। इसे' मौत की बू' कहा जा सकता है। मगर मौत की इस बू का अहसास दूसरे लोगों को नहीं होता। इसे सूंघने वाली खास किस्म की कृत्रिम नाक यानी उपकरण को विकसित करने के लिए इटली के वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। शरीर विज्ञानी गियोबन्नी क्रिस्टली का कहना है कि मौत की गंध का अस्तित्व तो निश्चित रूप से है। जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसका भावनात्मक शरीर कुछ क्षणों तक जीवित रहता है, जो खास तरह की गंध को उत्सर्जित करता है।
2-वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ जानवर,खासकर कुत्ते और बिल्लियां अपनी प्रबल घ्राण शक्ति के बल पर मौत की इस गंध को सूंघने में समर्थ होते हैं, लेकिन सामान्य मनुष्यों को
इसका पता नहीं चल पाता।मृत्यु गंध का आभास होने पर ये जानवर अलग तरह की आवाज निकालते हैं। भारत में यूं ही नहीं.. कुत्ते या बिल्ली के रोने को मौत से जोड़ा जाता है।
विज्ञान के अनुसार शरीर में आत्मा;-
09 FACTS;-
1-आत्मा के बारे में साधारणतया माना जाता है कि वह शरीर के हर हिस्से एवं रेशे रेशे में रहती है। यानी जहां भी संवेदना होता है, वहीं उसकी उपस्थिति महसूस की जीती है।इस मान्यता केअनुसार बाल और नाखून जैसे हिस्सों में उसका वास नहीं होना चाहिए। लेकिन शास्त्रों की मानें तो आत्मा मूलत: मस्तिष्क में निवास करती है।
2-योग की भाषा में उस केंद्र को सहस्रार चक्र या ब्रह्मरंध्र कहते हैं। अब विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करने लगा हैं। उसके अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा या चेतना शरीर के उस भाग से निकल कर बाहरी जगत में फैल जाती है।शास्त्र की भाषा में दूसरे लोकों की यात्रा पर निकल जाती है। मृत्यु का करीब से अनुभव करने वाले या क्लिनिकलि तौर पर मृत करार दिए गए किंतु फिर जी उठे लोगों के अनुभवों के आधार पर यह सिद्धांत काफी चर्चा में है।
3-शरीर की तंत्रिका प्रणाली से व्याप्त क्वांटम जब अपनी जगह छोड़ने लगता है तो मृत्यु जैसा अनुभव होता है। इस सिद्धांत या निष्कर्ष का आधार यह है कि मस्तिष्क में क्वांटम कंप्यूटर के लिए चेतना एक प्रोग्राम की तरह काम करती है। 4-यह चेतना मृत्यु के बाद भी ब्रह्मांड में परिव्याप्त रहती है। योग और शोध अध्ययनों के अनुसार आत्मा का मूल स्थान मस्तिष्क की कोशिकाओं के अंदर बने ढांचों में होता है जिसे माइक्रोटयूबुल्स कहते हैं। वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को Orchestrated objective reduction (Orch OR) का नाम दिया है। इस सिद्धांत के अनुसार हमारी आत्मा मस्तिष्क में न्यूरॉन के बीच होने वाले संबंध से कहीं व्यापक है।
5-दरअसल, इसका निर्माण उन्हीं तंतुओं से हुआ जिससे ब्रह्मांड बना था। यह आत्मा काल के जन्म से ही व्याप्त थी। इस निष्कर्ष के बाद भारतीय दर्शन या योग अध्यात्म की इस मान्यता को काफी बल मिला है कि चेतना या आत्मा विश्व ब्रह्मांड का ही एक अभिन्न अंग है। 6-शरीर में उसकी एक किरण या स्फुल्लिंग मात्र रहता है। मृत्यु जैसे पट परिवर्तन में माइक्रोटयूबुल्स अपनी क्वांटम अवस्था गंवा देते हैं, लेकिन इसके अंदर के अनुभव नष्ट नहीं होते। आत्मा केवल शरीर छोड़ती है और ब्रह्मांड में विलीन हो जाती है। 7- यह परिकल्पना बौद्ध एवं हिन्दुओं की इस मान्यता से काफी कुछ मिलती-जुलती है कि चेतनता ब्रह्मांडका अभिन्न अंग है। इन परिकल्पना के साथ हेमराफ कहते हैं कि मृत्यु जैसे अनुभव में माइक्रोटयूबुल्स अपनी क्वांटम अवस्था गंवा देते हैं, लेकिन इसके अंदर के अनुभव नष्ट नहीं होते। आत्मा केवल शरीर छोड़ती है और ब्रह्मांड में विलीन हो जाती है।
8-हेमराफ का कहना है कि हम कह सकते हैं कि दिल धड़कना बंद हो जाता है, रक्त का प्रवाह रुक जाता है, माइक्रोटयूबुल्स अपनी क्वांटम अवस्था गंवा देते हैं, माइक्रोटयूबुल्स में क्वांटम सूचनाएं नष्ट नहीं होतीं। ये नष्ट नहीं हो सकतीं। यह महज व्यापक ब्रह्मांड में वितरित एवं विलीन हो जाती हैं।उन्होंने कहा कि यदि रोगी बच जाता है तो यह क्वांटम सूचना माइक्रोटयूबुल्स में वापस चली जाती है तथा रोगी कहता है कि उसे मृत्यु जैसा अनुभव हुआ है। 9-धर्म परंपरा इस अऩुभव को स्मृति और संस्कार के साथ शरीर के बाहर रहने और उपयुक्त स्थितियों का इंतजार करना बताते हैं। दूसरे शब्दों में आत्मा पुनर्जन्म की तैयारी करने लगती है।
आत्मा जब शरीर छोड़ती है;-
08 FACTS;-
1-आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है । वो स्वयं भी हथियार डाल देता है अन्यथा उसने आत्मा को शरीर में बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया होता है और इस चक्कर में कष्ट को झेला होता है ।
2-अब उसके सामने उसके सारे जीवन की यात्रा चल-चित्र की तरह चल रही होती है । उधर आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है।इसलिये शरीर के पाँच प्राण एक 'धनंजय प्राण' को छोड़कर शरीर से बाहर निकलना आरम्भ कर देते हैं ।
3-हमारे शरीर का दूसरा सूक्ष्म भाग प्राणमय कोश कहा जाता है।'प्राण' हमारे शरीर के समस्त क्रियाशीलता को बनाये रखने और आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने के महत्वपूर्ण कार्य को संपादित किया करता है जो स्थान तथा कार्य के भेद से 10 प्रकार का माना जाता है। उनमें व्यान, उदान, प्राण, समान और अपान मुख्य प्राण हैं तथा धनंजय, नाग, कूर्म, कृंकल और देवदत्त उपप्राण कहे जाते हैं।
3-ये प्राण, आत्मा से पहले बाहर निकलकर आत्मा के लिये सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं । जो कि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का वाहन होता है । धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म-शरीर में प्रवेश कर जाती है ।
4-बहरहाल अभी आत्मा शरीर में ही होती है और दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते है कि व्यक्ति को पता चल जाता है । उसे बेचैनी होने लगती है, घबराहट होने लगती है । सारा शरीर फटने लगता है, खून की गति धीमी होने लगती है । सांस उखड़ने लगती है । बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं । अर्थात अब चेतना लुप्त होने लगती है और मूर्च्छा आने लगती है । फिर मूर्च्छा आ जाती है और आत्मा एक झटके से किसी भी खुली हुई इंद्री से बाहर निकल जाती है । इसी समय चेहरा विकृत हो जाता है । यही आत्मा के शरीर छोड़ देने का मुख्य चिन्ह होता है ।
5-इससे पहले घर के आसपास कुत्ते-बिल्ली के रोने की आवाजें आती हैं । इन पशुओं की आँखे अत्याधिक चमकीली होती है । जिससे ये रात के अँधेरे में तो क्या सूक्ष्म-शरीर धारी आत्माओं को भी देख लेते हैं । जब किसी व्यक्ति की आत्मा शरीर छोड़ने को तैयार होती है तो उसके अपने सगे-संबंधी जो मृतात्माओं के तौर पर होते है ...उसे लेने आते है और व्यक्ति उन्हें यमदूत समझता है और कुत्ते-बिल्ली उन्हें साधारण जीवित मनुष्य ही समझते है और अन्जान होने की वजह से उन्हें देखकर रोते है और कभी-कभी भौंकते भी हैं ।
6-शरीर के पाँच प्रकार के प्राण बाहर निकलकर उसी तरह सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं । जैसे गर्भ में स्थूल-शरीर का निर्माण क्रम से होता है ।
सूक्ष्म-शरीर का निर्माण होते ही आत्मा अपने मूल वाहक धनंजय प्राण के द्वारा बड़े वेग से निकलकर सूक्ष्म-शरीर में प्रवेश कर जाती है।आत्मा शरीर के जिस अंग से निकलती है उसे खोलती, तोड़ती हुई निकलती है । 7-जो लोग भयंकर पापी होते है उनकी आत्मा मूत्र या मल-मार्ग से निकलती है । जो पापी भी है और पुण्यात्मा भी है उनकी आत्मा मुख से निकलती है । जो पापी कम और पुण्यात्मा अधिक है उनकी आत्मा नेत्रों से निकलती है और जो पूर्ण धर्मनिष्ठ हैं, पुण्यात्मा और योगी पुरुष है उनकी आत्मा ब्रह्मरंध्र से निकलती है ।
8-अब शरीर से बाहर सूक्ष्म-शरीर का निर्माण हुआ रहता है।लेकिन ये सभी का नहीं हुआ रहता । जो लोग अपने जीवन में ही मोहमाया से मुक्त हो चुके योगी पुरुष है । उन्ही के लिये तुरंत सूक्ष्म-शरीर का निर्माण हो पाता है ।अन्यथा जो लोग मोहमाया से ग्रस्त है परंतु बुद्धिमान है ज्ञान-विज्ञान से अथवा पांडित्य से युक्त है । ऐसे लोगों के लिये दस दिनों में सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है ।
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Let’s understand the aspects of spirits living the body on death. There are five levels of ‘life’ leaving the body. they are called as samana, prana, udana, apana and vyana, in the same sequence. When a person is declared dead by the doctor, the sequence of the life leaving the body is given as under: 1-Samana;-
21 to 24 minutes. Samaana is responsible for maintaining the temperature of the body. 2-Praana;-
48 to 68 minutes. 3-Udana ;-
6 to 12 hours. A life can be revived by some Tantrik process before the Udaana leaves the body. once Udaana leaves the body, revival is extremely difficult. 4-Apana ;-
8 to 18 hours. 5-Vyana ;-
11 to 14 days for a normal person and 45 to 90 days for an extremely spiritual powerful being. Vyaana is the preservative element of the Praana. NOTE;-
1-When a body is brought to the cremation ground, generally it’s the time when Udaana is in the process of leaving. When the body is cremated Udaana also is released. This is the time the soul is in an extremely confused state. Obviously, the area surrounding a cremation ground would be crowded by many such ‘lives’ or ‘entities’ and they would certainly cause interference in the lives of the people staying there.Such entities can be dealt by many techniques.
2-One of the easiest ways to remove such entities is by the use of aromas by burning a few herbs or camphor.Take a normal copper plate and buy good quality camphor. Daily, at the dusk.. keep the copper plate at the Brahmasthana and burn three – four flakes of camphor on the copper plate. Burning camphor purifies the homes and drive away evil spirits and negative energy. Burning Camphor can also bring prosperity and abundance of wealth to our family. ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
हिन्दू धर्मशास्त्रों का विधान;-
09 FACTS;-
1-हिंदु धर्म-शास्त्र में - दस गात्र का श्राद्ध और अंतिम दिन मृतक का श्राद्ध करने का विधान इसीलिये है कि - दस दिनों में शरीर के दस अंगों का निर्माण इस विधान से पूर्ण हो जाये और आत्मा को सूक्ष्म-शरीर मिल जाये । ऐसे में, जब तक दस गात्र का श्राद्ध पूर्ण नहीं होता और सूक्ष्म-शरीर तैयार नहीं हो जाता आत्मा, प्रेत-शरीर में निवास करती है । अगर किसी कारण वश ऐसा नहीं हो पाता है तो आत्मा प्रेत-योनि में भटकती रहती है ।
2- आत्मा के शरीर छोड़ते समय व्यक्ति को पानी की बहुत प्यास लगती है । शरीर से प्राण निकलते समय कण्ठ सूखने लगता है । ह्रदय सूखता जाता है और इससे नाभि जलने लगती है । लेकिन कण्ठ अवरूद्ध होने से पानी पिया नहीं जाता और ऐसी ही स्थिति में आत्मा शरीर छोड़ देती है । प्यास अधूरी रह जाती है । इसलिये अंतिम समय में मुख में 'गंगा-जल' डालने का विधान है ।
3-इसके बाद आत्मा का अगला पड़ाव होता है शमशान का 'पीपल' । यहाँ आत्मा के लिये 'यमघंट' बंधा होता है । जिसमे पानी होता है । यहाँ प्यासी आत्मा यमघंट से पानी पीती है जो उसके लिये अमृत तुल्य होता है । इस पानी से आत्मा तृप्ति का अनुभव करती है ।
4-ये सब हिन्दू धर्म शास्त्रों में विधान है कि - मृतक के लिये ये सब करना होता है ताकि उसकी आत्मा को शान्ति मिले ।अगर किसी कारण वश मृतक का दस गात्र का श्राद्ध ना हो सके और उसके लिये पीपल पर यमघंट भी ना बाँधा जा सके तो उसकी आत्मा प्रेत-योनि में चली जायेगी और फिर कब वहां से उसकी मुक्ति होगी कहना कठिन होगा ।
5-गरूड़ पुराण जो मरने के पश्चात आत्मा के साथ होने वाले व्यवहार की व्याख्या करता है। उसके अनुसार जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो उसे दो यमदूत लेने आते हैं। मानव अपने जीवन में जो कर्म करता है यमदूत उसे उसके अनुसार अपने साथ ले जाते हैं।
अगर मरने वाला सज्जन है, पुण्यात्मा है तो उसके प्राण निकलने में कोई पीड़ा नहीं होती है लेकिन अगर वो दुराचारी या पापी हो तो उसे पीड़ा सहनी पड़ती है।
6-गरूड़ पुराण में यह उल्लेख भी मिलता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए ही ले जाते हैं और इन 24 घंटों के दौरान आत्मा को दिखाया जाता है कि उसने कितने पाप और कितने पुण्य किए हैं।इसके बाद आत्मा को फिर उसी घर में छोड़ दिया जाता है जहां उसने शरीर का त्याग किया था। इसके बाद 13 दिन के उत्तर कार्यों तक वह वहीं रहता है।13 दिन बाद वह फिर यमलोक की यात्रा करता है।
7-पुराणों के अनुसार जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्याग कर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं।
उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है।
ये तीन मार्ग हैं —
7-1-अर्चि मार्ग.
7-2- धूम मार्ग
7-3- उत्पत्ति-विनाश मार्ग.
8-अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग,पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।
मृत्यु कैसी भी हो काल या अकाल, उसकी प्रक्रिया छह माह पूर्व ही शुरू हो जाती है। छह माह पहले ही मृत्यु को टाला जा सकता है,अंतिम तीन दिन पूर्व सिर्फ देवता या मनुष्य के पुण्य ही मृत्यु को टाल सकते हैं।
9-यह याद रखना चाहिए कि मौत का अहसास व्यक्ति को छह माह पूर्व ही हो जाता है। विकसित होने में 9 माह, लेकिन मिटने में 6 माह। 3 माह कम।भारतीय योग तो हजारों
साल से कहता आया है कि मनुष्य के स्थूल शरीर में कोई भी बीमारी आने से पहले आपके सूक्ष्म शरीर में छ: माह पहले आ जाती है यानी छ: माह पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाए तो बहुत-सी बीमारियों पर विजय पाई जा सकती है।
क्या अर्थ है प्रेत-योनि का?
कुछ लोगों के अपने-अपने अनुभव...
1- अभी कुछ ही दिन हुए थे कि मेरी माँ का देहान्त हुआ था ।कृष्ण-पक्ष की रात्रि थी, बाहर ज्यादा उजाला नहीं था । रात्रि के दो बज रहे थे । मैं अपने घर में सो रहा था । घर के पिछले हिस्से में किचन से लगा हुआ रूम था कि - मेरी नींद टूटी । मैं चौंककर जाग उठा था । तभी सर्र.... से कोई मेरे पास से गुजरा । लेकिन कोई था नहीं । वो हवा का झोका नहीं था । वो कोई आहट नहीं थी । लेकिन फिर भी कोई मेरे पास से गुजरा था - ऐसा मुझे महसूस हुआ था । बस, एक सर्र....की आवाज हुई थी । मैंने वॉल-क्लॉक में देखा - दो बज रहे थे । खैर, मैं फिर सो गया । बात आई-गयी हो गयी । दो तीन दिन में ही मेरे छोटे भाई-भाभी उस रूम में सोये और सुबह मेरी भाभी शिकायत करने लगी कि - रात को फ्रिज के पास उसने कोई साया देखा था । किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन मैंने दिमाग में बात रख ली । लेकिन फिर अभी दो तीन - दिन ही नहीं गुजरे कि - मेरी बेटी कहने लगी कि - पप्पा, किचन में ऐसा लगता है कि - जैसे कोई मेरे पीछे खड़ा है । 2- मैं अभी भी जुहू में रहता हूँ, - कोई आधी रात को उसे ऊँगली चुभा के जगाता है और जब वो उठकर देखता है तो कोई पुरुष की आकृति जैसा धीरे-धीरे घर से बाहर की तरफ जाता दिखता है । बाहर जाते हुये उस आकृति की दृष्टी बराबर मुझ पर बनी रहती है । मानो - कुछ संकेत देना चाहती है । फिर धीरे-धीरे वो आकृति हवा में विलीन हो जाती है । ऐसा अब भी कभी-कभी होता रहता है । एक दूसरे ने बताया कि - उसे रात को किसी के रोने की आवाजें आती है ।
06 FACTS;-
1-कोई माने यां ना माने, लेकिन इस दुनियां में हर जीव और वस्तु जोड़े के साथ है । जैसे - स्त्री-पुरुष, जीवन-मृत्यु, हवा-पानी, रात-दिन । वैसे ही दृश्य-अदृश्य । ये दुनियां दृश्य है, दृश्य जगत है । वैसे ही इसका जोड़ा अदृश्य है, अदृश्य जगत है । उस अदृश्य जगत का क्या रहस्य है, वो कैसे संचालित होता है । हम नहीं जानते ।दृश्य से अदृश्य का संबंध तो है.. 2-किसी मृतक का अंतिम-संस्कार ना हो, दस-गात्र ना हो, यमघंट ना बांधा गया हो, श्राद्ध ना हो, उसके लिये पूजा-पाठ इत्यादि पुण्य ना हो, उसे कोई याद करने वाला ना हो, उसकी मृत्यु से किसी को दुःख ना हो, उसने स्वयं के जीवन में कोई पुण्य का काम न किया हो और उसका जीवन व्यर्थ गया हो तो ऐसे में मृतक की आत्मा प्रेत-योनि में चली जाती है ।
3-उसके वंशज भी अपनी आयु पूर्ण करके मर-खप गये हो और इसकी मुक्ति का कोई प्रयास ना किया हो तो प्रेत-योनि में गई आत्मा अनंत काल के लिये प्रेतात्मा बनकर भटकती रहती है।इसलिये सन्यासी और वैरागी अपने जीवन काल में ही अपना स्वयं का श्राद्ध अपने हाथ से कर लेते हैं । ताकि इसका पुण्य उन्हें मृत्यु के बाद मिले और उनकी आत्मा प्रेत-योनि में ना भटके । 4-कुछ वयोवृद्ध और बुजुर्ग जिन्हें अपनी संतान से मृत्यु के बाद श्राद्ध की आशा नहीं होती, वे भी ऐसा ही करते हैं ।लेकिन फिर भी जो आत्मायें, प्रेतात्माओं के रूप में भटक रही हैं । वे मुक्ति की चाहत में दृश्य-जगत की ओर ही देखती हैं ।और फिर इन्हें देख लेते हैं - गूढ़ विद्याओं के जानकार, जो अपनी विद्या से इन्हें अपने वश में कर लेते हैं । बहरहाल, ऐसी आत्मायें चौथे आयाम में भटकती रहती है - ये अपने अन्तिम संस्कार से चुकी हुई आत्मायें होती है । जो शून्य में, अंतरिक्ष मे अथवा चौथे आयाम में भटकती है ।
5-जीवन-मृत्यु के चक्र में कर्मयोग का बड़ा महत्व है । आप अपने कर्म को पूर्ण कर चुके है तो मृत्यु के बाद आपका अन्तिम संस्कार अथवा पुण्य अवश्य होगा जो आपको नैमित्तिक आत्माओं के पास पितृलोक ले जायेगा । क्योंकि आपके पुण्यकर्म से ऐसे बहुत लोग लाभान्वित हुये होंगे जो आपकी मृत्यु के बाद आपकी मुक्ति के लिये प्रयास अवश्य करेंगे । इसके अलावा - आपका पुण्य कर्म मृत्यु के समय आपको सन्तुष्ट रखता है और आप चौथे आयाम को सहज ही स्वीकार लेते है ।फलस्वरूप भटकन नही होती और आप पितृलोक के पाँचवे आयाम की ओर चल देते है ।
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मृत्यु की तैयारी करो...
16 FACTS;-.. 1-अगर इस भौतिक जगत में सत्य है तो वह है मृत्यु। तथा भौतिक इन्द्रियों द्वारा जानने योग्य व मन बुद्धि द्वारा समझने योग्य अगर सत्य नाम की चीज है तो है मृत्यु ।मनुष्य सब कुछ अस्वीकार कर सकता है पर मृत्यु को अस्वीकार नही कर सकता।
2-मनुष्य धर्म को नकार सकता है ,भगवान को नकार सकता है, देश समाज को नकार सकता है;पर एक मृत्यु को नकारना असम्भव है ।क्योकि यह एक अटल सत्य घटना है।इस घटना को कोई नही टाल सकता, कोई रोक नही सकता।सब जन समुदाय को पता है कि एक दिन तो मरना ही है ; सब लोग यही मानते है कि आखिरी यह शरीर तो यहाँ छोड़ना ही है।पर बस इतना ही बोलते है.. इसके आगे कुछ नही बोलते है।
3-मरने की तैयारी में कोई गिने सुने लोग ही है।वो भी चुपके –चुपके से प्रयास कर रहे है।क्योंकि अगर दुनिया को पता चले तो हंसी उड़ायेगे कि.. क्या मरने की कोई तैयारी होती है..। अगर समय रहते कोई मरने की तैयारी करले तो वो इस संसार को जीत जायेगा ।साथ –साथ अपने जीवन को भी जीत जायेगा।
4-आज की दुनिया अपने आराम से रहने और ठाट –बाट से चलने पर बहुत धन खर्च करती है।जीवन की छोटी से छोटी यात्रा पर अपने धन का बहुत बड़ा हिस्सा खर्च कर डालती है।और मृत्यु इतनी बड़ी यात्रा है जीवन की... परन्तु कोई इस पर ध्यान ही नही देता है।अगर कोई हिम्मत जुटाकर कह भी दे तो बोलते है अभी थोड़े ही मरना है ; जब मौत आयेगी तब देखा जायेगा ।
5-यहाँ पर हम बड़ी भूल कर रहे है। हमें सब के साथ –साथ मृत्यु की भी तैयारी करनी चाहिए ; क्योकि मृत्यु एक बड़ा विश्राम है। मृत्यु के बाद नया जीवन होगा और मृत्यु एक नया सवेरा है ,नई सुबह है और नई ताजगी है । जैसे हम शाम को सोते है वैसे ही यह मृत्यु है। कई लोग मृत्यु से कतराते है और बहुत घबराते भी है। उनके आगे मृत्यु का नाम भी ले लो तो चिल्लाने लगते है। क्योकि मृत्यु उनको अच्छी नही लगती। पर यह किसी को छोडती भी नही है। क्या कोई मृत्यु के आगे बचा भी है? अगर कोई बचा भी है तो आगे भागने से नही ..उसने डटकर सामना किया होगा... साधना की होगी ..मृत्यु का प्रशिक्षण लिया होगा।
6-हमारे शास्त्रों ने तथा संत व गुरुओ ने कहा है कि अगर कोई मृत्यु की तैयारी कर ले या मरना सीख ले ;तो मृत्यु आएगी ही नही । इसका अर्थ यह नही है कि यह शरीर छोड़ना नही पड़ेगा। अगर तुम मृत्यु की तैयारी कर लोगें ; मृत्यु आने का इंतजार करोगें ; मृत्यु का स्वागत करोगें ; मृत्यु आने के समय बिलकुल तैयार रहोगें.. जैसे एक बस का इंतजार कर रहे यात्री की तरह.. तो मृत्यु आपको आनन्द देगी.. कष्ट नही।
7-जैसे ही बस आ गयी तो बड़ी खुशी होती है बस में सवार होने के लिए; और यात्री होश हवाश में, बस में, अपनी सीट पर बैठता है तथा बस पर आये परिजनों का हाथ हिलाकर धन्यवाद करता है। ऐसे शरीर छोड़ने वाले को हमारे धर्म में मृत्यु नही कहते ;उसको परलोक गमन कहते है। इसलिए संत कबीर कहते है कि.. ''मरने से सब जग डरे, मोरे मन आनन्द | कब मरियो कब पाईयो, पूर्ण परमानन्द ''|| एक संत नारायण दास कहते है कि.. ''दो बातो को भूलो मती जो चाहो कल्याण | नारायण एक मौत को दूजा श्री भगवान ''|| 8-इसलिए मृत्यु और परमात्मा को कभी नही भूलना चाहिए। इसका अर्थ है साधना करना ; आराधना करना ; अपने को ईश्वर की शरण करना। हमारे धर्म का सिद्धांत है कि 'इस शरीर में रहते हुए मृत्यु से पूर्ण साक्षात्कार करो ' और यही तो मृत्यु की तैयारी है। 9-हमारे धर्म की जितनी भी साधना पद्धतिया है वो पूरी तरह मृत्यु सीखना ही है ,मृत्यु की तैयारी है।और हमारा योग विज्ञानं तो पूरी तरह मृत्यु विज्ञान ही है।हमारे प्राचीन ऋषियों ने ,योगी ,महायोगियों ने मृत्यु पर गहरा अध्ययन व खोज अन्वेषण कर समाधि विकसित की। इसलिए हमारे धर्म में समाधि को 'बड़ी मृत्यु' और निंद्रा को' छोटी मृत्यु' मानते है तथा सामान्य मृत्यु को तो शरीर बदलना कहते है । इसलिए मृत्यु से घबराना नही चाहिए ।
10-मृत्यु तो प्रकृति की सहज प्रक्रिया है। अगर मृत्यु नही आये तो आत्मा को विश्राम कैसे मिल सकता है।जैसे हमारे जीवन में रात्रि व दिन है वैसे ही आत्मा के जीवन में मृत्यु और जन्म है । हम दिन भर काम धन्धा कर थक जाते है और रात्रि में नींद लेकर विश्राम करते है; अपनी थकावट दूर करते है; उसी प्रकार यह आत्मा एक शरीर में रह कर थक जाती है ; सारा जीवन कुछ न कुछ करती ही रहती है; और उस शरीर से उब जाती है; वह शरीर वृद्ध हो जाता है;बूढा हो जाता है। इसलिए वह शरीर त्याग देती है और कुछ समय शून्य में विश्राम कर वापस नया शरीर धारण करती है।
11- इसलिए मुत्यु से डरना नही चाहिए ।मुत्यु को तो सहज धारण करना चाहिए। तब मुत्यु इतनी डरावनी नही होगी; मुत्यु सहज हो जाएगी। हिमालय की कंदराओं में ऐसे योगी महायोगी है जो हजारो सालो से एक ही शरीर में निवास कर रहे है।इसका कारण यही है कि वह समाधि में रह कर आत्मा को विश्राम दे देते है।ज्यादा समाधि में रहने से शरीर पर काल का या समय का प्रभाव नही पड़ता; और शरीर सदा जवान रहता है।
इसलिए बार – बार जन्म लेना और शरीर नही छोड़ना पड़ता ।
12-अगर नया शरीर धारण भी करना पड़े तो वह प्रकृति के अधीन होकर नही.. स्वतंन्त्र रूप से, नया शरीर धारण करते है। वह भी जन कल्याण हेतु और अपनी स्व: इच्छा से शरीर छोड़ जाते है।साधारण आत्माओ की तरह प्रकृति का कोई भी बन्धन या अधिकार उन पर काम नही करता; केवल प्रकृति की मर्यादा बनाए रखते है। हमारे धर्म में उन आत्माओं को मुक्त आत्मा ,विशुद्ध आत्मा या दिव्य आत्मा भी कहते है । 13-इसलिए मुत्यु एक आत्मा और शरीर को विच्छेद्ध करने की एक साधारण प्रक्रिया है ।प्राकृतिक नियम या धर्म के नियम पालन करने वालो को तो समय आने पर ही शरीर छोड़ना होता है। और प्रकृति के नियम व् धर्म के नियम उल्लंघन करने वालो को घटना या दुर्घटना द्वारा शरीर छोड़ना पड़ता है और बाकी बचा समय प्रेत शरीर में भोगना पड़ता है। उसे नर्क यातना कहते है।
14-इसलिए सदा मुत्यु को याद रखने वाला ,कभी भी प्रकृति के नियमो का उल्लंघन नही कर सकता क्योकि वह मानव जीवन का मूल्य जानता है; और सदा आत्माराम में रमण करता रहता है।उसमे कोई अवगुण नही होते ;काम ,क्रोध ,लोभ, मोह आदि व्याप्त नही होते है।वो सदा संयमी व निर्मल रहता है। ऐसे मृत्यु का स्मरण करने वाले ही मृत्यु की पूर्ण तैयारी कर सकते है और पूर्ण विजय भी प्राप्त कर सकते है। 15-हमारे प्राचीन ऋषियों के मृत्यु पर गहरा अध्ययन व खोज अन्वेषण के कारण ही तो हमारा धर्म पूर्ण है ; और मानव के पूर्ण विकास की बात करता है।क्योकि यह सिर्फ जन्म या स्वर्ग-नर्क तक की ही बात नहीं करता है। भगवान बुध को भी वैराग्य 'मुत्यु भय' से हुआ था क्योकि भगवान बुध का नाम सिद्धार्थ था।और वे एक राज पुत्र थे और अपने पिता की एक मात्र संतान भी थे ।
16-उनकी जन्म कुण्डली में वैराग्य अर्थात सन्यास लिखा था।उनके वैराग्य के तीन कारण थे। एक तो बूढ़े को देखना, दूसरा रोगी को देखना और तीसरा मृतक को देखना। अंत में उन्होंने खोज ही लिया मृत्यु को ..गया में बोद्धि वृक्ष के नीचे .. हो गये बुद्धत्व को प्राप्त। यानि शरीर में ही मृत्यु को खोज लिया और विजय भी पा लिया ..मृत्यु पर। इसलिए जिस किसी ने भी मृत्यु की तैयारी की है और मृत्यु को खोजा है तो उसको अध्यात्मिक क्षेत्र के अनुभव अवश्य हुए है।
....SHIVOHAM...