हाथ की पांच अंगुलियां शरीर में महत्वपूर्ण तत्वों से जुड़ी हुई हैं।क्या इन मुद्राओं का अभ्यास करके
हस्त मुद्रा का क्या अर्थहै ?-
03 FACTS;-
1-हाथों की 10 अँगुलियों से विशेष प्रकार की आकृतियाँ बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है। हाथों की सारी अँगुलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी अँगुली में वायु तत्व, मध्यमा अँगुली में आकाश तत्व, अनामिका अँगुली में पृथ्वी तत्व और कनिष्का अँगुली में जल तत्व।
2-अँगुलियों के पाँचों वर्ग से अलग–अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब अँगुलियों का योगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जगा देती है और हमारा शरीर निरोग होने लगता है।
3-ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं।इनके अतिरिक्त पूजन और साधना में विशेष प्रकार की मुद्राओं का उपयोग होता है |साधना के दौरान विशिष्ट मुद्राएँ बनाने पर सम्बंधित शक्ति की ऊर्जा बढती है ,उससे सम्बंधित चक्र क्रियाशील होता है और साधना में सफलता बढती है और जल्दी पूर्ण होती है|
पांच उंगलियां और ब्रह्मांड के पांच तत्व ;-
03 FACTS;-
1-आपके हाथों में एक सहज चिकित्सा शक्ति है जिसका उपयोग सदियों से विभिन्न बीमारियों को उपचार करने के लिए किया गया है।योग विज्ञान के अनुसार, मानव शरीर में पांच बुनियादी तत्व शामिल हैं – पंच तत्व ।
2-हाथ की पांच अंगुलियां शरीर में इन महत्वपूर्ण तत्वों से जुड़ी हुई हैं और इन मुद्राओं का अभ्यास करके आप अपने शरीर में इन 5 तत्वों को नियंत्रित
कर सकते हैं।इन मुद्राओं को आपके शरीर के विभिन्न भागों में ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
3-पांच उंगलियां ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं;-
3-1-तर्जनी ऊँगली :- यह उंगली हवा के तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । ये उंगली आंतों (Gastro intestinal tract )से जुडी होती है । अगर आप के पेट में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा रगड़े , दर्द गयब हो जायेगा।
3-2-छोटी उंगली ( कनिष्ठ ) :- यह जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है ।
3-3-अंगूठा :- यह अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है ।
3-4-अनामिका :- यह पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है ।
3-5-बीच की उंगली (मध्यमा ) :- यह आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । यह हमारे शरीर में भक्ति और धैर्य से भावनाओं के रूपांतरण को नियंत्रित करती है।
महत्वपूर्ण हस्त मुद्राओं के नाम :-
11 FACTS;-
1- अग्नि मुद्रा
2- अपान मुद्रा
3- अपान वायु मुद्रा
4- शून्य मुद्रा
5- लिंग मुद्रा
6- वायु मुद्रा
7- वरुण मुद्रा
8- सूर्य मुद्रा
9- प्राण मुद्रा
10- ज्ञान मुद्रा
11- पृथ्वी मुद्रा
हस्त मुद्रायों के लाभ :-
12 FACTS;-
1- शरीर की सकारात्मक सोच का विकास करती है ।
2- मस्तिष्क, हृदय और फेंफड़े स्वस्थ बनते हैं।
3- ब्रेन की शक्ति में बहुत विकास होता है।
4- इससे त्वचा चमकदार बनती है|
5- इसके नियमित अभ्यास से वात-पित्त एवं कफ की समस्या दूर हो जाती है।
6- सभी मानसिक रोगों जैसे पागलपन, चिड़चिड़ापन , क्रोध, चंचलता, चिंता, भय, घबराहट, अनिद्रा रोग, डिप्रेशन में बहुत लाभ पहुंचता है ।
7- वायु संबन्धी समस्त रोगों में लाभ होता है ।
8- मोटापा घटाने में बहुत सहायक होता है ।
9- ह्रदय रोग और आँख की रोशनी में फायदा करता है।
10- साथ ही यह प्राण शक्ति बढ़ाने वाला होता है।
11- कब्ज आदि समस्याओ में फायदा है।
12- इसको निरंतर अभ्यास करने से नींद अच्छी तरह से आने लगती है और साथ में आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
विशेष निर्देश;-
12 FACTS;-
1. कुछ मुद्राएँ ऐसी हैं जिन्हें सामान्यत पूरे दिन भर में कम से कम 45 मिनट तक ही लगाने से लाभ मिलता है | इनको आवश्यकतानुसार अधिक समय के लिए भी किया जा सकता है | कोई भी मुद्रा लगातार 45 मिनट तक की जाए तो तत्व परिवर्तन हो जाता है |
2. कुछ मुद्राएँ ऐसी हैं जिन्हें कम समय के लिए करना होता है|
3. कुछ मुद्राओं की समय सीमा 5-7 मिनट तक दी गयी है | इस समय सीमा में एक दो मिनट बढ़ जाने पर भी कोई हानि नहीं है | परन्तु ध्यान रहे की यदि किसी भी मुद्रा को अधिक समय तक लगाने से कोई कष्ट हो तो मुद्रा को तुरंत खोल दें |
4. ज्ञान मुद्रा, प्राण मुद्रा, अपान मुद्रा काफी लम्बे समय तक की जा सकती है|
5. कुछ मुद्राएँ तुरंत प्रभाव डालती है जैसे- कान दर्द में शून्य मुद्रा, पेट दर्द में अपान मुद्रा/अपान वायु मुद्रा, एन्जायना में वायु मुद्रा/अपान वायु मुद्रा/ऐसी मुद्रा करते समय जब दर्द समाप्त हो जाए तो मुद्रा तुरंत खोल दें |
6. लम्बी अविधि तक की जाने वाली मुद्राओं का अभ्यास रात्रि को करना आसन हो जाता है | रात सोते समय मुद्रा बनाकर टेप बांध दें, और रात्रि में जब कभी उठें तो टेप हटा दें | दिन में भी टेप लगाई जा सकती है क्यूंकि लगातार मुद्रा करने से जल्दी आराम मिलता है |
7. वैसे तो अधिकतर मुद्राएँ चलते-फिरते, उठते-बैठते, बातें करते कभी भी कर सकते हैं, परन्तु यदि मुद्राओं का अभ्यास बैठकर, गहरे लम्बे स्वासों अथवा अनुलोम-विलोम के साथ किया जाए तो लाभ बहुत जल्दी हो जाता है |
8. छोटे बच्चों, कमजोर व्यक्तियों व्आपात स्थिति उदहारण के लिए अस्थमा, अटैक, लकवा आदि में टेप लगाना ही अच्छा है |
9. दायें हाथ की मुद्रा शरीर के बायें भाग को और बाएं हाथ की मुद्रा शरीर के दायें भाग को प्रभावित करती है | जब शरीर के एक भाग का ही रोग हो तो एक हाथ से वांछित मुद्रा बनायें और दुसरे हाथ से प्राण मुद्रा बना लें | प्राण मुद्रा हमारी जीवन शक्ति बढ़ाती है, और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है | परन्तु सामान्यत कोई भी मुद्रा दोनों हाथों से एक साथ बनानी चाहिए |
10. भोजन करने के तुरंत बाद सामान्यतः कोई भी मुद्रा न लगाएं | परन्तु भोजन करने के बाद सूर्य मुद्रा लगा सकते हैं | केवल आपात स्थिति में ही भोजन के तुरंत बाद मुद्रा बना सकते हैं जैसे-कान दर्द, पेट दर्द, उल्टी आना, अस्थमा अटैक होना इत्यादि |
11. यदि एक साथ दो तीन मुद्रायों की आवश्यकता हो और समय का आभाव हो तो एक साथ दो मुद्राएँ भी लगाई सकती हैं | जैसे- सूर्य मुद्रा और वायु मुद्रा एक साथ लागएं अन्यथा एक हाथ से सूर्य मुद्रा और दुसरे हाथ से वायु मुद्रा भी बना सकते हैं | ऐसी परिस्थिति में 15-15 मिनट बाद हाथ की मुद्राएँ बदल लें |
12. एक मुद्रा करने के बाद दूसरी मुद्रा तुरंत लगा सकते हैं, परन्तु विपरीत मुद्रा न हो |
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पृथ्वी मुद्रा क्या है ?-
03 FACTS;-
1-पृथ्वी मुद्रा को अंग्रेजी में Gesture of the Earth कहा जाता है । इसका दूसरा नाम अग्नि शामक मुद्रा है । इसके द्वारा मनुष्य अपने भौतिक अंतरत्व में पृथ्वी तत्व को जाग्रत करता है और शरीर में बढ़ने वाले अग्नि तत्व को घटाने में मदद करता है । जब इस मुद्रा को किया जाता है तब पृथ्वी तत्व बढ़कर सम हो जाते हैं ।
2-इस मुद्रा के अभ्यास से नए घटक बनते है। मनुष्य शरीर में दो नाड़ियाँ होती है सूर्य नाड़ी और चन्द्र नाड़ी। जब पृथ्वी मुद्रा की जाती है तो अनामिका अर्थात सूर्य अंगुली पर दबाव पड़ता है जिससे सूर्य नाड़ी और स्वर को सक्रिय होने में सहयोग मिलता है ।
3-सगाई वाली उंगुली पृथ्वी तत्व का प्रतीक है । पृथ्वी तत्व हमें स्थूलता , स्थायित्व देता है । इससे पृथ्वी तत्व बढ़ता है । सगाई वाली उंगुली सभी विटामिनों एवं प्राण शक्ति का केंद्र मानी जाती है । सगाई वाली उंगुली हर समय तेजस्वी विद्दुत प्रवाह करती है और साथ ही अंगूठा भी । सगाई वाली उंगुली द्वारा ही हम तिलक लगाते हैं । पूजा अर्चना करते हैं और शादी में अंगूठी पहनते हैं ।
पृथ्वी मुद्रा करने की विधि :-
05 FACTS;-
1- सबसे पहले आप पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं।
2- अब अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख लें ।
3- अब अपनी दोनों हाथों की अनामिका उंगली को अंगूठे के आधार पर रखें।बाकी अपनी तीनो उंगलियों को ऊपर की ओर सीधा तान कर रखें।
4- 10-15 मिनट के लिए इसी मुद्रा में बैठें, और धीरे-धीरे श्वास लेते रहें।
5- मन से सारे विचार निकालकर मन को केवल ॐ पर केन्द्रित करना हैं।
मुद्रा करने का समय :-
इसे हर रोज़ 30-40 मिनट तक करें। इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं|
पृथ्वी मुद्रा के लाभ :-
26 FACTS;-
1- शरीर के अस्थि संस्थान एवं मांसपेशियों को यह मजबूत बनाती है । अत: दुर्बल कमजोर बच्चों , स्त्रियों और व्यक्तियों के लिए पृथ्वी मुद्रा बहुत ही लाभकारी है । कमजोर लोगों का वजन बढाती है ।
2- शरीर में विटामिनों की कमी को दूर करती है , जिसमें हमारी ऊर्जा बढती है और चेहरे पर चमक आती है ।
3- पृथ्वी मुद्रा से जीवन शक्ति का विस्तार होता है । काया सुडोल होती है ।कद व वजन बढ़ाने में सहायक है । बढ़ते हुए कमजोर बच्चों के लिए तो अत्यन्त लाभदायक है ।
4- शरीर में स्फूर्ति , कान्ति और तेजस्व बढ़ता है ।
5- इस मुद्रा से आंतरिक प्रसन्नता का आभास होता है । उदारता, विचारशीलता, लक्ष्य को विशाल बनाकर प्रसन्नता प्रदान करती है ।
6- आंतरिक सूक्ष्म तत्वों में सार्थक प्रवाह लाती है । संकीर्णता गिराकर हमें उदार बनाती है । अत: आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है ।
7- इस मुद्रा से पाचन शक्ति ठीक होती है। जिन लोगों की पाचन शक्ति कमजोर होती है, वे सदैव कमजोर व् थके हुए लगते हैं। कई बच्चे भोजन तो खूब करते हैं फिर भी दुबले-पतले ही रहते हैं-ऐसे बच्चों यह मुद्रा लगाएं तो बहुत लाभ होगा।
8- शरीर की उर्जा शक्ति के बढ़ने से मस्तिष्क भी अधिक क्रियाशील होता है-कार्य क्षमता बढती है।
9 -पृथ्वी मुद्रा सर्दी जुकाम से भी बचाती है।
10 -अंगूठे की भांति अनामिका उंगली में भी विशेष विद्युत् प्रवाह होता है, इसलिए इस उंगली से माथे पर तिलक किया जाता है।
11-इस मुद्रा के निरंतर प्रयोग से आपके संकुचित विचारों में महत्वपूर्ण परिवर्तन आने लगेगा । आपके विचारों के साथ-साथ प्रखरता और तत्व गुणों का भी विस्तार होगा ।
12- इस मुद्रा का दीर्घ काल तक अभ्यास करने में शरीर में चमत्कारी प्रभाव होगा । नया जोश , नयी स्फूर्ति, आनन्द का उदय और रोम-रोम में ओज-तेज का संचार होगा ।
13- पृथ्वी तत्व का संबंध मूलाधार चक्र से है । अत: पृथ्वी मुद्रा से मूलाधार चक्र सक्रिय होता है और इससे जुड़े अंग सबल होते हैं । प्रोस्टेट ग्रन्थि का शोथ समाप्त होता है । हर्निया ठीक होता है तथा यह मुद्रा बालों, नाखुनों के लिए भी लाभकारी है ।
14- जो बच्चे Hyperactive होते हैं,उनमें पृथ्वी तत्व की कमी होती है,और आकाश तत्व ज्यादा। उन्हें एक साथ शुन्य मुद्रा और पृथ्वी मुद्रा करनी चाहिए ।
15- विटामिनों / खनिजों की आपूर्ति से बाल स्वस्थ होते हैं । बालों का झड़ना बंद होता है और बाल सफ़ेद नहीं होते हैं ।
16- हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए यह मुद्रा बहुत लाभकारी है ।
17- आत्मविश्वास की कमी को दूर करता है ।
18- यह मुद्रा शरीर में घटकों के अनुपात को बनाये रखती है।
19- यह मुद्रा तनाव मुक्त करती है।
20- चेहरे की त्वचा साफ और चमकदार बनती है।
21- पृथ्वी मुद्रा शरीर को आंतरिक मजबूत और स्मरण शक्ति को बढाता है।
22- यह एक फायदेमंद मुद्रा है।जिसकी मदद से वजन कम किया जा सकता है।
23- यह मुद्रा शरीर को स्वस्थ्य बनाए रखने में मदद करती है।
24- पृथ्वी मुद्रा करने से कंठ सुरीला हो जाता है ।
25 -यह एकाग्रता बढाने में सहायक है।
26 -मुंह और पेट में अल्सर आदि से निजात मिलती है ।
पृथ्वी मुद्रा करते समय रखे सावधानियाँ;-
पृथ्वी मुद्रा करते समय पद्मासन में बैठकर अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें । पहले प्रतिदिन 10-15 मिनट इस मुद्रा को करें, कुछ दिन पश्चात् समयावधि बढ़ा दें । अगर आपको कफ़ दोष है तो इस मुद्रा को अधिक समय के लिए न करें। यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए ।
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वायु मुद्रा क्या है ?-
03 FACTS;-
1-वायु मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में वायु का संतुलन बना रहता है । आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर के अंदर चौरासी तरह की वायु होती है और वायु चंचलता की निशानी है वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है इसलिए मन को एक ही जगह स्थिर रखने के लिए वायु-मुद्रा का अभ्यास किया जाता है माना जाता है की जब तक शुद्ध वायु शरीर को प्राप्त नहीं हो जाती तब तक हमारा शरीर रोगी रहता है ।
2-शरीर को रोगों से बचाने के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाता है । सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है।
3-इस मुद्रा से बढ़ी हुई वायु पर नियंत्रण किया जाता है। तर्जनी वायु तत्व की प्रतीक है। उसको मोड़कर दबाने से वायु तत्व कम होना शुरु हो जाता है। वायु मुद्रा से हाथ के मणिबंध
के बीचों बीच स्थित वात नाड़ी में बन्ध लग जाता है। अत: इससे समस्त वात रोगों को ठीक किया जा सकता है।
वायु मुद्रा को करने से विधि :-
05 FACTS;-
1- सबसे पहले आप जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ , ध्यान रहे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो ।
2- अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख लें और हथेलियाँ आकाश की तरफ होनी चाहिये ।
3- अब आप अपने अंगूठे के बगल वाली (तर्जनी) अंगुली को हथेली की तरफ मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा दें और बाकी बची उँगलियों को सीधी रखें ।
4- अपना ध्यान श्वास पर लगाकर अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास के दौरान श्वास को सामान्य रखना है।
5- इस अवस्था में कम से कम 8-10 मिनट तक रहना चाहिये ।
वायु मुद्रा करने का समय व अवधि :-
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं।वायु मुद्रा का अभ्यास प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल को 8-8-9-9 मिनट के लिए किया जा सकता है ।
वायु मुद्रा से होने वाले लाभ :-
21 FACTS;-
1. सभी वात रोगों में बहुत ही लाभकारी । वायु के बढ़ जाने से शरीर में पीड़ा होने लगती है , जैसे कि कमर दर्द , सरवाईकल पीड़ा , गठिया , घुटनों का दर्द , जोड़ों का दर्द , एड़ी का दर्द इत्यादि । इन सभी पीड़ाओं में वायु मुद्रा लगाने से कुपित वायु शान्त होती है और फलस्वरूप दर्द में आराम मिलता है । इसका अभ्यास रोज 45 मिनट तक लगातार कई दिन करें ।
2. अधिक वायु जोड़ों में द्रव्य को सुखा देती है । जब वायु घुटनों के जोड़ों में घुस जाती है तो दर्द होता है । इसके लिए वायु मुद्रा जोड़ों की पीड़ा में लाभदायक है ।
3. दोनों हाथों की कलाई के मध्य में स्थित वात नाडी में इस मुद्रा में बन्ध लग जाता है । गर्दन के बाएं भाग में दर्द व जकदन होने से बायें हाथ की कलाई इसी मुद्रा में क्लाक वाईज व एंटी क्लाक वाईज घुमाने से शीघ्र ही चमत्कारी लाभ होता है । इसी प्रकार गर्दन के दाएं भाग की पीड़ा में दाएं हाथ की कलाई घुमाने से लाभ होता है ।
4. गैस के रोगों में भी यह मुद्रा लाभकारी है । पेट में जब गैस बढ़ जाती है , खाने के बाद बेचैनी होती है । उल्टी करने का मन होता है, अपच की समस्या , तो इस मुद्रा का प्रयोग करें । बस में यात्रा करते समय यह मुद्रा करें तो उल्टी की शिकायत नहीं रहती ।
5. इस मुद्रा में रक्त संचार ठीक होता है , रक्त संचार की गड़बड़ी से होने वाले सभी रोग दूर होते हैं । यहाँ पर आपको यह जानकारी देना आवश्यक है कि रक्त संचार के ठीक न होने से शरीर में पीड़ा होती है । शरीर के जिस अंग में रक्त की पूर्ति ठीक से नहीं होती , वहन पर पीड़ा होती है, जैसे की हाथों और पैरों का कंपन , अंगों का सुन्न होना , लकवा । ये सभी रोग वायु मुद्रा से बिना दवाई के ठीक हो सकते हैं ।
6. ह्रदय की पीड़ा भी रक्त संचार का दोष है । अत: वायु मुद्रा से ह्रदय की पीड़ा भी शांत होती है , और ह्रदय रोग भी ठीक होता है ।
7. वायु के किसी भी आकस्मिक रोग में 24 घंटे के भीतर ही इस मुद्रा के प्रयोग से लाभ मिलना आरम्भ हो जाता है ।
8. आयुर्वेद के अनुसार 80 प्रकार के वायु रोग होते हैं , जो सभी वायु मुद्रा से ठीक होते हैं ।
9. असाध्य और चिरकालिक वायु रोगों में वायु मुद्रा के साथ प्राण मुद्रा का भी प्रयोग करना चाहिए । प्राण मुद्रा से प्राणशक्ति बढती है – आत्मबल एवं आत्म विश्वास बढ़ता है ।
10. वायु की अधिकता के कारण ह्रदय की रक्तवाहिनियाँ सिकुड़ जाती हैं । वायु मिदरा करने से यह रक्तवाहिनियाँ लचीली होती हैं , उनकी सिकुडन दूर होती है , जिससे रक्त संचार ठीक होकर ह्रदय रोग दूर होता है ।
11. पोलियो में भी इस मुद्रा के उपयोग में लाभ होता है ।
12. आँखों के अकारण झपकने में भी यह मुद्रा लाभ करती है ।
13. रुक रुक कर डकार आने पर भी यह मुद्रा लाभ करती है ।
14. इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से सुषुम्ना नाड़ी में प्राण वायु का संचार होने लगता है जिससे चक्रों का जागरण होता है ।
15. इसको करने से मन की चंचलता समाप्त होकर मन एकाग्रत होता है ।
16. इसे रोज़ करने से हिचकी कम हो जाती है।
17. त्वचा में रुखापन और खुजली दूर हो जाती है ।
18. वायु मुद्रा के साथ – साथ दिन में तीन लीटर पानी पीने से वात रोग , गठिया शीघ्र दूर होता है। पानी को उबालकर हल्का गर्म होने पर पीएं ।
19. हाथों में सुन्नपन हो तो वायु मुद्रा के साथ ही हाथों के सूक्ष्म व्यायाम करने से चमत्कारी लाभ होगा।
20. वज्रासन में बैठकर वायु मुद्रा करने से जल्दी लाभ मिलता है।
21. शरीर में कहीं भी रोग होता है तो सबसे पहले पीड़ा अथवा सुन्नपन आता है – इन दोनों में वायु मुद्रा अत्यन्त लाभकारी है। अत: वायु मुद्रा से सभी रोगों को आरम्भ में ही समाप्त करने की शक्ति है।
वायु मुद्रा में सावधानियां :-
02 FACTS;-
1-किसी भी प्रकार का शरीर में दर्द होने पर वायु मुद्रा करने से शरीर का दर्द तुरंत बंद हो जाता है लेकिन इसे आप अधिक लाभ की लालसा में अनावश्यक रूप से अधिक समय तक नही करें अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है । पीड़ा के शान्त होते ही इस मुद्रा को खोल दें।
2-वायु रोगों को दूर करने के लिए गैस व यूरिक एसिड उत्पन्न करने वाले भोज्य पदार्थों का प्रयोग कुछ दिनों के लिए छोड़ दें जैसे राजमा , दालें , मटर , गोभी , पनीर , सोया इत्यादि। दालों का उपयोग करना भी हो तो मूंग साबुत का उपयोग केवल दिन में ही करें।
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अग्नि मुद्रा क्या है ?-
यह एक ऐसी मुद्रा है जो शरीर के भीतर लॉक ऊर्जा की रिहाई में मदद करता है और मस्तिष्क के प्रवाह और सजगता को निर्देशित करता है। जब किसी विशेष कॉन्फ़िगरेशन में हाथों को जानबूझ कर रखा जाता है, तो न्यूरोनल सर्किट को लंबे समय तक प्रेरित किया जाता है जो मस्तिष्क पर मुद्रा के विशिष्ट प्रभाव को मजबूत करता है।
अग्नि मुद्रा करने की विधि :-
05 FACTS;-
1- सबसे पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर दरी / चटाई बिछा दे। अब सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाये।
2- अब अपने दोनों हाथों के अंगूठे को बाहर कर अंगूलियों की मुट्ठी बना लें।
3- फिर अपने दोनों हाथों के अंगूठे के शीर्ष आपस में मिला लें। और अपनी हथेलियाँ नीचे की ओर रखें।
4- आँखे बंद रखते हुए श्वास सामान्य बनाएँगे और अपने मन को अपनी श्वास गति पर व मुद्रा पर केंद्रित रखिए |
5- अब इसी अवस्था में 15-45 मिनट तक रहें ।
अग्नि मुद्रा करने की समय और अविधि :-
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। अग्नि मुद्रा 15 से 45 मिनट तक लगाई जा सकती है।
अग्नि मुद्रा से होने वाले लाभ :-
07 FACTS;-
1- यह मुद्रा सिर दर्द व माईग्रेन में बहुत ही लाभदायक है।
2- निम्न रक्त चाप से जुड़ी सभी समस्याओं के लिए लाभदायक है ।
3- भूख की समस्या के लिए लाभदायक है ।
4- मोटापे को कम करने में मदद करती है ।
5- इसको करने से बलगम , खांसी जैसी समस्याओं से निजात दिलाती है ।
6- निमोनिया की शिकायत दूर हो जाती है ।
7- इसको करने से शरीर में अग्नि की मात्रा तेज हो जाती है ।
अग्नि मुद्रा में सावधानिया :-
यह अग्नि मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए । इस मुद्रा को करते समय आपका ध्यान भटकना नहीं चाहिए ।
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04 FACTS;-
1-प्राण वायु शरीर के विभिन्न अवयवों एवं स्थानों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार से कार्य करती है। इस दृष्टि से उनको अलग-अलग नाम भी दिये गये हैं जैसे प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। यह वायु समुदाय पांच प्रमुख केन्द्रों में अलग-अलग तरह से कार्य करता है। प्राण स्थान मुख्य रूप से हृदय में आंनद केंद्र में है।
2-प्राण नाभि से लेकर गले तक फैला हुआ है। प्राण का कार्य सांस लेने, छोड़ने, खाया हुआ भोजन पचाने, भोजन के रस को अलग-अलग इकाइयों में विभाजित करना, भोजन से रस बनाना और रस से अन्य धातुओं का निर्माण करना है।जबकि अपान का स्थान स्वास्थ्य और शक्ति केन्द्र है, योग इसे मूलाधर चक्र कहा जाता है।
3-अपान का कार्य मल, मूत्र, वीर्य, गर्भ और रज को बाहर निकालना है। यह सोना, बैठना, उठना, चलना आदि गतिशील स्थितियों में सहयोग करता है। जैसे अर्जन जीवन के लिए जरूरी है, वैसे ही विसर्जन भी जीवन के लिए अनिवार्य है। शरीर में केवल अर्जन की ही प्रणाली हो, विर्सजन न हो तो व्यक्ति का एक दिन भी जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है। विर्सजन के माध्यम से शरीर अपना शोधन करता है।
4-शरीर विर्सजन की क्रिया यदि एक, दो या तीन दिन बंद कर दे तो पूरा शरीर मलागार हो जाए। ऐसी अवस्था में मनुष्य का स्वस्थ रहना मुश्किल हो जाता है। मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अपान मुद्रा बहुत महत्वपूर्ण क्रिया है। क्योंकि यह स्वस्थ शरीर की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता-विसर्जन क्रिया को नियमित करती है और शरीर को निर्मल बनाती है। यानी अपान मुद्रा अशुचि और गंदगी का शोधन करती है।
अपान मुद्रा को करने की विधि :-
यह मुद्रा दो तरीकों से की जाती है।अंगूठे के पास वाली पहली उंगली अर्थात तर्जनी को अंगूठे के मूल में लगाकर मध्यमा और अनामिका को मिलाकर उनके शीर्ष भाग को अंगूठे के शीर्ष भाग से स्पर्श कराएं। सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठिका) को अलग से सीधी रखें।इस स्थिति को अपान वायु मुद्रा कहते हैं।अंगूठे, मध्यमा और अनामिका के शीर्ष को मिलाएं।तर्जनी और कनिष्ठा उंगलियां सीधी रहें।इस स्थिति को अपान मुद्रा कहते हैं।
05 FACTS;-
1- सबसे पहले आप जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ , ध्यान रहे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो ।
2- अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख लें और हथेलियाँ आकाश की तरफ होनी चाहिये ।
3- अब अपने हाथ की तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के अग्रभाग में लगा दें तथा मध्यमा व अनामिका अंगुली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श कर हल्का दबाएं और कनिष्ठिका अंगुली को सीधा रखें ।
4- अपना ध्यान साँसों पर लगाकर अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास के दौरान साँसें को सामान्य रखना है।
5- इस अवस्था में कम से कम 48 मिनट तक रहना चाहिये ।
मुद्रा करने का समय व अवधि :-
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। मुद्रा का अभ्यास प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल को 16-16 मिनट के लिए किया जा सकता है
अपान मुद्रा के स्वास्थ्य लाभ:-
13 FACTS;-
1- यह मुद्रा ह्रदय के सभी रोगों से मुक्त कराती है ।
2- इसका नियमित अभ्यास करने से श्वास सम्बन्धित रोग नष्ट हो जाते हैं ।
3- अपच, गैस, एसिडिटी, कब्ज इत्यादि रोगों में लाभ मिलता है ।
4- पेट से संबंध सभी रोगों को दूर करती है ।
5- इसको करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं ।
6- इसका नियमित अभ्यास करने से शरीर की नलियाँ शुद्ध होती है ।
7- मल और दोष विसर्जित होते है तथा निर्मलता प्राप्त होती है।
8- यह यूरीन संबंधी दोषों को दूर करती है।
9-शुगर की बीमारी को ठीक करती है ।
10- शरीर के सभी विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
11- गर्भवती महिलाओं को इससे लाभ होता हैं।
12- शरीर में से वजन को कम करती है ।
13- यह मुद्रा पसीना लाकर शरीर के ताप को दूर करती है।
अपान मुद्रा के दौरान सावधानी :-
यह अपान मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए।इस मुद्रा को करते समय अपना ध्यान भटकना नहीं चाहिए ।अपान मुद्रा एक शक्तिशाली मुद्रा है इसमें एक साथ तीन तत्वों का मिलन अग्नि तत्व से होता है, इसलिए इसे निश्चित समय से अधिक नही करना चाहिए। इसको करने से यूरिन अधिक आने की सम्भावना रहती है । इससे कोई नुकसान नहीं होता इसलिए इससे डरे नहीं ।
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अपान मुद्रा क्या है ?--
02 POINTS;-
1-गर्भाशय और पीरियड्स संबंधी रोग पृथ्वी, आकाश और अग्नि तत्वों के असंतुलन का परिणाम होते हैं। इन समस्याओं में अपान मुद्रा बहुत ही उपयोगी है। अपान मुद्रा मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित करती है। इससे पेट के सभी अंग सक्रिय होते हैं। शरीर से विजातीय तत्व बाहर निकलता है और नस-नाड़ियों का शोधन होता है। वहीं अपान मुद्रा से मासिक धर्म संबंधी पीड़ा, ऐंठन, मेनोपॉज के दौरान होने वाली समस्याएं भी दूर होती हैं।
2-अगर यह मुद्रा मूलबंध और उड्डियान बंध के साथ की जाए, तो लाभ बढ़ जाता है।
अपान मुद्रा के लाभ :-
हृदय रोगियों के लिए यह मुद्रा बहुत ही लाभदायक बताई गई है। इससे रक्तचाप को ठीक रखने में सहायता मिलती है। पेट की गैस एवं शरीर की बेचैनी इस मुद्रा के अभ्यास से दूर होती है। आवश्यकतानुसार हर रोज 20 से 30 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।
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प्राण मुद्रा क्या है ?-
03 POINTS;-
1-प्राण मुद्रा को प्राणशक्ति का केंद्र माना जाता है और इसको करने से प्राणशक्ति बढ़ती है । इस मुद्रा में छोटी अँगुली (कनिष्ठा) और अनामिका (सूर्य अँगुली) दोनों को अँगूठे से स्पर्श कराना होता है । और बाकी छूट गई अँगुलियों को सीधा रखने से अंग्रेजी का ‘वी’बन जाता है ।
पृथ्वी तत्व ,आकाश तत्व व अग्नि तत्वों का मिलान ।
2-अपान वायु नाभि से नीचे पैरों तक विचरण करती है-पेट ,नाभि , गुदा , लिंग , घुटना , पिंडली , जंघाएं , पैर सभी प्रभावित होते हैं । अत: अपान मुद्रा द्वारा नाभि से पैरों तक के सभी रोग ठीक होते हैं । अपान वायु की गति नीचे की ओर होती है । अपान मुद्रा अपान वायु को सकिय कर देती है |
3-इस मुद्रा से आकाश और पृथ्वी तत्व बढ़ते हैं । अपच का कारण है ठूंस-ठूंस कर खाना जिससे आकाश तत्व की कमी हो जाती है और शक्तिहीनता हो जाती है । यह मुद्रा इन दोनों कमियों को दूर करती है।
प्राण मुद्रा कैसे करे :-
07 POINTS;-
1- सबसे पहले आप जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ ।
2- ध्यान रहे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो ।
3- अब अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख लें और हथेलियाँ आकाश की तरफ होनी चाहिये ।
4- अब अपने हाथ की सबसे छोटी अंगुली (कनिष्ठा) एवं इसके बगल वाली अंगुली(अनामिका)के पोर को अंगूठे के पोर से लगा दें ।
5- ध्यान रहे की इन दोनों उँगलियों के बीच अधिक दवाव न बने ।
6- अपना ध्यान श्वास पर लगाकर अभ्यास करना चाहिए।अभ्यास के दौरान श्वास मान्य रखना है।
7-इस स्थिति में आपको 48 मिनट तक रहना चाहिये।
मुद्रा करने का समय :-
02 FACTS;-
1-यह मुद्रा कम से कम 48 मिनिट तक करें । सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। यदि एक बार में 48 मिनट तक करना संभव न हो तो प्रातः,दोपहर एवं सायं 16-16 मिनट कर सकते है ।
प्राण मुद्रा के लाभ :-
2-प्राण मुद्रा हमारी प्राण शक्ति को शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करती है। इसके कारण व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है। यह मुद्रा नेत्र और फेंफड़े के रोग में लाभदायक सिद्ध होती है। इससे विटामिनों की कमी दूर होती है। इस मुद्रा को प्रतिदिन नियमित रूप से करने से कई तरह के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
प्राण मुद्रा में सावधानियां :-
प्रसव के पहले आठ महीनों में इस मुद्रा का प्रयोग न करें । प्राण मुद्रा से बढ़ने वाली प्राणशक्ति का संतुलन बनाकर रखना चाहिए और यह मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए । मुद्रा में ध्यान नहीं भटकाना चाहिए।
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