क्या है एक सही पॉस्चर /मुद्रा बैठने का,प्राणायाम का, और सोने का... जिससे बीमारियों से बचाव हो सके ?
क्या है एक सही पॉस्चर का महत्व?-
07 FACTS;-
1-एक सही शारीरिक मुद्रा आपको लंबा, पतला और सबसे महत्वपूर्ण बात, वह आपको आत्मविश्वासी दिखाती है... और फिर भी, साधारणत: आज भी हम में से ज्यादातर में सही मुद्रा में बैठने का अभाव है । आज की आधुनिक जीवन शैली में लंबे समय तक रीढ़ को झुकाकर रखने से यह तनावपूर्ण हो गई है। अभ्रमण्शील नौकरी, लंबे समय तक काम और उपकरणों का अत्यधिक उपयोग हमारे शरीर को क्न्धों से झुका हुआ और कूबडा बनाते हैं।
2-हमारी कार्यप्रणाली इतनी बिगड चुकी है कि हम बैठना, चलना और सोने का तरीका तक भूल जाते हैं! और यही कारण है कि हम शरीर के विभिन्न भागों में दर्द के साथ अंतिम सांस लेते हैं। अपने खडे होने, बैठने और चलने के ढंग के प्रति सजग हो के, तथा नियमित रूप से कुछ आसन और योग मुद्राओं का अभ्यास करके, दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।
3-शरीर का अपना एक अलाइनमेंट होता है, जिसमें बैठते या खड़े होते व़क्त पीठ सीधी रखना, चलते व़क्त सीधे चलना, खड़े होते व़क्त दोनों पैरों पर समान वज़न डालकर सीधे खड़े रहना आदि है. ग़लत बॉडी पोश्चर के कारण स्लिप डिस्क, कमरदर्द, पीठदर्द, ख़राब ब्लड सर्कुलेशन, सीने में दबाव जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जिन्हें आप सही बॉडी पोश्चर से दूर कर सकते हैं.
4-आधुनिक विचारों के मुताबिक, आराम का मतलब पीछे टेक लगाकर या झुककर बैठना होता है। लेकिन इस तरह बैठने से शरीर के अंगों को कभी आराम नहीं मिल पाता। इस स्थिति में, शारीरिक अंग उतने ठीक ढंग से काम नहीं कर पाते जितना उनको करना चाहिए - खासकर जब आप भरपेट खाना खाने के बाद आरामकुर्सी पर बैठ जाएं।
5-आजकल काफी यात्राएं आराम कुर्सी में होती हैं।अगर आप कार की आरामदायक सीट पर बैठकर एक हजार किलोमीटर की यात्रा करते हैं, तो आप अपने जीवन के कम-से-कम तीन से पांच साल खो देते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लगातार ऐसी मुद्रा में बैठे रहने की वजह से आपके अंगों पर इतना बुरा असर होता है कि उनके काम करने की शक्ति में नाटकीय ढंग से कमी आ जाती है या फिर वे बहुत कमजोर हो जाते हैं।
6-रीढ़ सीधी रखने, शरीर को सीधा रखने का मतलब यह कतई नहीं है कि हमें आराम पसंद नहीं है, बल्कि इसकी सीधी सी वजह यह है कि हम आराम को बिल्कुल अलग ढंग से समझते और महसूस करते हैं। आप अपनी रीढ़ को सीधा रखते हुए भी अपनी मांसपेशियों को आराम में रहने की आदत डाल सकते हैं। लेकिन इसके विपरीत, जब आपकी मांसपेशियां झुकीं हों, तो आप अपने अंगों को आराम में नहीं रख सकते। आराम देने का कोई और तरीका नहीं है।
7-इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने शरीर को इस तरह तैयार करें कि रीढ़ को सीधा रखते हुए हमारे शरीर का ढांचा और स्नायुतंत्र आराम की स्थिति में बने रहें।लंबी दूरी तक गाड़ी चलाते वक़्त पूरी तरह झुक जाना थोड़ी देर का आराम तो दे सकता है लेकिन यह पॉश्चर के लिए सही नहीं है। अपनी सीट को स्टीयरिंग व्हील के पास रखें। अपने पीठ के पीछे एक तकिया या टॉवेल को मोड़कर भी रख सकते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान..
04 FACTS;-
1-कंधों को झुकाकर नहीं तनकर खड़े हों, पैर सीधे हों, घुटने मुड़े हुए न हों, सिर, गर्दन, कमर और पैर एक सीध में हों और वज़न दोनों पैरों पर बराबर रहे।
2-ऊंची हील के जूते न पहनें। इससे शारीरिक संतुलन बिगड़ता है तथा यह घुटने, एंकल जॉइंट और एड़ी के लिए हानिकारक है।
3-सामान उठाने के लिए घुटनों को मोड़कर झुकें। पैरों को सीधा रखकर खड़े हों क्योंकि पैरों को बाहर की तरफ़ निकालकर खड़े होने से घुटनों को क्षति पहुंचती है। झुककर खड़े होने या बैठने से छाती व पेट के महत्वपूर्ण अंगों को पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती जिसके कारण वे अपना कार्य ठीक से नहीं कर पाते और शरीर धीरे-धीरे रोगी होने लगता है।
4-कुर्सी पर एक ओर झुककर न बैठे। पेट के बल न सोएं। इससे रीढ़ की हड्डी का प्राकृतिक आकार प्रभावित होता है और कंधे आगे की तरफ़ झुक जाते हैं।
एक सही मुद्रा क्या है?-
आपके शरीर को, सही मुद्रा में तब कहा जाएगा, जब यह इस तरह से गठित किया जाए कि पीठ सीधी हो, कंधे चौकस और आराम से, ठोड़ी सधी हुई, छाती बाहर, और पेट अन्दर हो। बस एक सीधी रेखा की तरह।
क्यों ज़रूरी है सही बॉडी पोश्चर ?-
04 FACTS;-
1– सही बॉडी पोश्चर हमें सही ब्रीदिंग में नेचुरली मदद करता है. इससे ब्रेन में ऑक्सीजन की सप्लाई सही तरी़के से होती है, जिससे हमारा मस्तिष्क बेहतर ढंग से काम करता है और हमारी सोचने-समझने की शक्ति भी बेहतर होती है। 2– जोड़ों पर बेवजह दबाव नहीं पड़ता, जिससे उनमें तनाव नहीं आता। 3– यह रीढ़ की हड्डी कोे एब्नॉर्मल पोज़ीशन में फिक्स होने से बचाता है। 4– सही बॉडी पोश्चर के कारण आप अट्रैक्टिव और स्मार्ट लगते हैं, जिससे आपके आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है।
बैठने का सही तरीका क्या है?-
02 FACTS;-
1-हाल में ही हुई एक स्टडी के अनुसार, पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना एक सामान्य समस्या बन चुकी है। उनेमें से एक सबसे प्रमुख कारण बॉडी पोश्चर भी है ।हममें से ज्यादातर लोग अपने दिन का अधिकांश समय कुर्सी पर बैठकर बिताते हैं. ऐसे में रीढ़ की हड्डी पर काफी दबाव पड़ता है।2-कामकाजी लोग खासकर ऑफिस में जॉब करने वाले लोगों को आमतौर पर कई घंटे एक ही कुर्सी पर बैठकर काम करना होता है। अगर आपका भी काम कुछ इसी तरह का है तो आपको कुर्सी पर सही पोजीशन में बैठने का तरीका जरूर मालूम होना चाहिए।अन्यथा गलत पोजीशन में घंटों बैठे रहने की वजह से स्वास्थ्य संबंधी समस्या आने लगती है ।
3-कुर्सी पर बैठने के गलत अंदाज से भी मांसपेशियों में दर्द और पैर के जोड़ों में दर्द होता है।डॉक्टरों के पास ऐसे लोग पहुंच रहे हैं जो काफी समय तक कुर्सियों में बैठें रहते हैं और दर्द से बेहाल हैं। कई तो ऐसे हैं जो काफी समय से दर्द की दवाएं खाकर काम कर रहे हैं।इस वजह से उनके लिवर पर भी असर हो रहा है।
4-शरीर के अंगों को आराम में होने का खास महत्व है। इसके कई पहलू हैं। शरीर के ज्यादातर महत्वपूर्ण अंग छाती और पेट के हिस्से में होते हैं। ये सारे अंग न तो सख्त या कड़े होते हैं और न ही ये नट या बोल्ट से किसी एक जगह पर स्थिर किए गए हैं। ये सारे अंग ढीले-ढाले और एक जाली के अंदर झूल रहे से होते हैं। इन अंगों को सबसे ज्यादा आराम तभी मिल सकता है, जब आप अपनी रीढ़ को सीधा रखकर बैठने की आदत डालें।
5-आप जब भी कुर्सी पर बैठे हों, कोशिश कीजिए कि आपकी पीठ बिल्कुल सीधी हो. आपके कूल्हे पूरी तरह कुर्सी की बैक को छूते हुए हों। आप चाहें तो संतुलन बनाने के लिए पीछे की ओर एक तौलिया रख सकते हैं।
6-बैठने के दौरान आपके घुटने आपके कूल्हों की तुलना में कुछ ऊंचाई पर होने चाहिए। इसके साथ ही आपकी कुर्सी और मेज के बीच भी समान दूरी होनी चाहिए। आपके टेबल और कुर्सी की ऊंचाई भी बहुत महत्व रखती है।
कुर्सी पर बैठने का सही तरीका;-
06 FACTS;-
1 - कुर्सी पर बैठते समय हमेशा सीधे बैठें और पैरों को जमीन पर ही रखें।कई लोग ऊंची कुर्सी पर बैठते है तब उनके पैर हवा में लटकने लगते है। ये बहुत ही खतरनाक स्थिति है बैठने की ,इससे बचें।हवा में पैर लटकने से कमर की हड्डी पर दबाव पड़ता है जिससे घुटनों और पैरों में दर्द शुरु हो जाता जो कमर और पैर के साथ-साथ रीढ़ की हड्डी को भी प्रभावित करता है। इसलिए कुर्सी पर बैठते समय पैरों को जमीन पर रखें।
2- हमेशा कुर्सी को अपनी हाइट के अनुसार एडजस्ट करके ही बैठे।कुर्सी पर बैठने समय सीधे बैठे, रीढ़ की हड्डी का सीधा करके बैठें।एडजस्टेबल कुर्सी न हो तो पैरों के नीचे बोर्ड रखे और घुटनो को 30 डिग्री एंगल में रखे।दोनों पैरों के बीच उतना ही अंतर होना चाहीये,जितना आपके कंधो के बीच होता है।इसे पावर पॉस्चर भी कहतेहै।
3- कुर्सी पर कभी भी आगे की तरफ झुककर न बैठे।
4- अपना पूरा वजन कुर्सी के पिछले वाले हिस्से पर जोड़कर रखें।
5- कुर्सी पर अपने सिस्टम को सीधे आंखों के सामने रखें, जिससे गर्दन को ज्यादा तकलीफ न हो।
6- काम के वक्त पैरों को क्रॉस करके बैठना भी सही नहीं है, क्योंकि टांगों को क्रॉस करके बैठने से पेरोनोल नसें दब जाने का डर रहता है।
पढ़ाई के लिए अधिक समय तक बैठने का सही पॉस्चर ;-
04 FACTS;-
1-पढ़ाई के लिए अधिक समय तक बैठे रहना जरूरी होता है, लेकिन इसके साथ सही पोश्चर का ध्यान भी रखें। अन्यथा सेहत संबंधी अन्य परेशानियां हो सकती हैं। डेस्क की ऊंचाई इतनी होनी चाहिए कि बच्चा आराम से उस पर अपने हाथ टिका सके। बेहतर होगा कि आप बच्चे की लंबाई को देखकर ही डेस्क का चुनाव करें।
2-डेस्क के नीचे पैर रखने की पर्याप्त जगह होनी चाहिए। डेस्क के साथ कुर्सी की ऊंचाई इतनी हो कि पैर आराम से जमीन को छू सके। एडजस्टेबल कुर्सी बच्चों के लिए सही रहती है।
3- चेयर के साइड में हैंड रेस्ट यानी हत्थे जरूर लगे होने चाहिए, ताकि बच्चा हाथ रखकर आराम कर सके। डेस्क पर किताबों को सामने रखें, न कि बगल में। डेस्क पर कंप्यूटर मॉनिटर बिल्कुल सीधाई में रखें।
4-इसी तरह की-बोर्ड को ऐसे रखें कि बी अक्षर पेट के बीच में रहे। इससे हाथों को ज्यादा तकलीफ नहीं होगी। माउस को बहुत दूर न रखें। मॉनिटर के ठीक बगल में डॉक्यूमेंट होल्डर रखें, ताकि जरूरी पेपर्स के लिए इधर-उधर ना भागना पड़े। टाइपिंग करते समय या आराम करते समय कलाई को डेस्क के नुकीले किनारों पर न रखें।
स्टैंडिंग पोज़ीशन;-
02 FACTS;-
1– ध्यान रखें कि खड़े होने पर आप आगे की तरफ़ झुके हुए नहीं रहें। गर्दन व पीठ सीधी रखें, पर ध्यान रहे कि आपका शरीर स्टिफ नज़र न आए। 2– खड़े रहने पर हमेशा दोनों पैरों पर समान वज़न रखें. कुछ लोग एक पैर पर पूरा वज़न डालते हुए खड़े होते हैं, जिससे उस पैर की मसल्स पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जो सही नहीं है।
लिफ्टिंग पोज़ीशन;-
03 FACTS;-
1-अधिकांश लोग, कुछ भारी वजन उठाने की प्रक्रिया में, अपनी पीठ को चोट पहुंचा लेते हैं क्योंकि वे ऐसा करने में सही प्रक्रिया का पालन नहीं करते। जब आप वजन उठाते हैं, तो हमेशा याद रखें कि सबसे पहले अपने घुटने मोड़ लें और फिर अपनी पीठ को ।
2– वज़न उठाते व़़क्त स़िर्फ कमर से न झुकें, बल्कि घुटनों को भी मोड़ें, ताकि कमर पर पूरा दबाव न पड़े. 3– अगर आपको कोई सामान भारी लग रहा है, तो उसे सीधे ज़मीन से उठाने की बजाय, पहले किसी कुर्सी या मेज़ पर रखें, फिर ऊपर उठाएं. इससे आपके जोड़ों पर बेवजह दबाव नहीं पड़ता.
कम्प्यूटर पर बैठने का सही पॉस्चर ;-
05 FACTS;-
1 -हड्डियां और जोड़ सीधे रहें:-
जब आप बैठें तो ध्यान दें कि आपके हाथ या पैर कहीं से टेड़े-मेढ़े न हों और न ही आप टेड़े होकर बैठे। घुटनों को फोल्ड न करें, कमर को बिलकुल झुकाएं नहीं। कम्प्यूटर और बैठने के बीच सही गैप होना चाहिये ताकि आपको स्पष्ट रूप से दिख सकें। सही तरीके से बैठने से आपके शरीर की हड्डियों और रीढ़ की हड्डी में जोर नहीं पड़ेगा और उनमें दर्द नहीं होगा।
2 -शुरूआत में:-
दिन में काम की शुरूआत करने से पहले कुछ देर तक आप बिल्कुल सीधे होकर बैठें, और कंधों को सीधा रखें। अपनी कुर्सी को सही तरीके से एडजस्ट कर लें।
3 -कुशन या रोल-अप तौलिया :-
आप अपनी कुर्सी पर एक कुशन रखें जो आपको बैक से सपोर्ट देगा और चाहें तो तौलिया को फोल्ड करके रख लें। बीच-बीच में अपनी पीठ को पीछे से सर्पोट देकर सीधा करें। 10 डिग्री की पोजिशन भी बीच-बीच में ट्राई करें। अपने हाथों को ऊपर सीधा ले जाएं और फिर उन्हे फैलाएं, इससे आपको आराम मिलेगा।
4 -एक हाथ की दूरी पर बैठें :-
कम्प्यूटर से एक निश्चित दूरी पर बैठना चाहिये ताकि आपकी निगाह कभी कमजोर न होने पाएं। आप अपने पैरों को सही तरीके से फोल्ड कर सकते हैं अगर तकलीफ लगती हों। आंखों की पीसी स्क्रीन से दूरी बनाएं, एकदम से घुसकर काम न करें।
5 -कम्प्यूटर यूजर्स के लिए आंखों की देखभाल के टिप्स :-
5-1- अगर आप सिर्फ कम्प्यूटर पर बैठकर काम करते है तो हर 30 मिनट के बाद 2 मिनट का ब्रेक लें और आंखें बंद करके बैठ जाएं। इससे आंखों को आराम मिलेगा और स्ट्रेस भी दूर होगा। आप अपने हाथों को भी इस दौरान इधर-उधर करके रिलैक्स हो सकते हैं।
5-2- कंप्यूटर पर काम करते समय पोश्चर सही रखें। काम करने के दौरान पलकों को बीच-बीच में झपकाते रहें। इससे आंखें ड्राई नहीं होती और जलन भी पैदा नहीं होती।
5-3- हर आधे घंटे में दस बार आंखों को इस तरह से धीरे-धीरे झपकाएं जैसे सो रहे हों। अथवा हर आधे घंटे बाद कंप्यूटर स्क्रीन से नजरें हटाएं और दूरी पर रखी हुई किसी चीज पर 5-10 सेकंड के लिए नजरे डालें।
5-4- अपने फोकस को फिर से एडजस्ट करने के लिए पहले दूर रखी चीज पर 10-15 सेकंड तक नजरें टिकाएं और उसके बाद फिर पास की चीज पर 10-15 सेकंड तक फोकस करें।
5-5- इन दोनों व्यायाम से आपकी दृष्टि तनावग्रस्त नहीं होगी और आपकी आंखों की फोकस करने वाली मांसपेशियों में भी फैलाव होगा। इसके अलावा हर बीस मिनट बाद 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर देखें।
क्या आप भी पैरों को क्रॉस करके बैठते हैं ?-
03 FACTS;-
1-महिला हो या पुरूष ज्यादातर लोग पैरों को क्रॉस करके ही बैठते हैं ।इसकी एक वजह यह है कि इस पोस्चर को काफी स्टाइलिश माना जाता है। एक अच्छा पोस्चर वही होता है, जिस पोस्चर में बैठने से आपकी बॉडी को आराम मिलता हो। आप किस तरह का पोस्चर अपनाते हैं? कहीं आप भी पैरों को क्रॉस करके तो नहीं बैठते हैं?
2-दरअसल इस तरह का पोस्चर आपकी सेहत को खराब कर सकता है। भले ही इस पोस्चर से आपको रिलेक्स फील होता हो, लेकिन आपको इस बात का अंदाज़ा नहीं होगा कि, पैरों को क्रॉस करके बैठने से आपकी सेहत पर कितना गंभीर असर पड़ सकता है।कई हैल्थ एक्सपर्ट ने पैरों को
क्रॉस करके बैठने की आदत को सेहत लिए काफी खतरनाक बताया है।
3-दरअसल, आपके बैठने का यह स्टाइल आपको कई तरह की बीमारियों का शिकार बना सकता है। इसलिए बैठते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आप ज्यादा समय तक किसी एक पोस्चर में ना बैठे। हैल्दी रहने के लिए समय-समय पर अपने पोस्चर को बदलते रहें।
पैरों को क्रॉस करके बैठने से होने वाली बीमारियां;-
05 FACTS;-
1- ब्लड प्रेशर का बढ़ना:
कई स्टडीज में यह बात साबित हो चुकी है कि ज्यादा समय तक पैरों को क्रॉस करके बैठने से ब्लड प्रेशर काफी हद तक बढ़ जाता है. इसलिए हैल्थ एक्सपर्ट ब्लड प्रेशर के शिकार लोगों के साथ ऐसे लोगों को भी इस पोस्चर में बैठने से बचने की हिदायत देते हैं जिन्हें ब्लड प्रेशर की परेशानी नहीं है.
2-नर्व पैरालिसिस का खतरा:
अगर आप ज्यादा समय तक पैरों को क्रॉस करके बैठते हो तो इससे आपके पैरों की नसों को नुकसान पहुंच सकता है। क्योंकि ऐसे बैठने पर पैरों की नसों पर प्रेशर बढ़ जाता है जिस वजह से नसों के डेमेज होने का खतरा रहता है। इतना ही नहीं बल्कि इस पोस्चर में बैठने से व्यक्ति पेरोनोल नर्व पैरालिसिस का शिकार भी हो सकता है।
2-1-क्रॉस लेग करके बैठने से ब्लड दिल तक वापस जाने के साथ-साथ आपकी टांगों और पैरों की नसों को नुकसान पंहुचाता है। घुटने से लेग को क्रॉस करने से आपके पेरोनोल नर्व पर दबाव पड़ता है, पेरोनोल आपके पैर में मेन नर्व होती है जो घुटने के नीचे और पैर के बाहर से गुजरती है। ये दबाव टांग और पैर की कुछ मांसपेशियों में अकड़न और अस्थाई पैरालिसिस की वजह बन जाती है।
3- बल्ड सर्क्यूलेशन बिगड़ना:
एक पैर को दूसरे पैर पर रखकर बैठने के कारण दिल में ज्यादा ब्लड पहुंचता है। क्योंकि जब आप पैरों को क्रॉस करके बैठते हैं तो ब्लड ऊपर से नीचे की तरफ आना बंद कर देता है और हार्ट उल्टा पंप करना शुरु कर देता है।जिस वजह से शरीर में ब्लड सर्क्यूलेशन बिगड़ जाता है।
4 -स्पाइडर वेन का खतरा:
ज्यादा समय तक एक पैर को दूसरे पैर पर रखकर बैठने से आप स्पाइडर वेन के शिकार हो सकते हैं। क्योंकि एक पैर को दूसरे पैर पर रखकर बैठने से पैरों में पहुंचने वाला खून रुक कर वापस दिल में ही सर्क्युलेट हो जाता है। जिस कारण आपके पैरों में सूजन आने लगती है। साथ ही आपके पैरों की नसें कमजोर हो जाती हैं।
5-पीठ और गर्दन मेें पेन;-
क्रॉस पैर करके बैठने से बैक और नेक में पेन की प्रॉब्लम भी हो सकती है। जब आप पैरों के क्रॉस पोस्चर में बैठते हैं, तो आपके हिप्स टॉर्क की पोजिशन में आ जाते हैं, जिससे आपकी पेल्विक बोन पर असर पड़ता है और पेल्निक बोन का सीधा जुडाव आपकी बैक बोन यानी रीढ की हड्डी से होता है। जितना आप पेल्विक बोन को घूमाते हैं और अस्थिर रखते हैं, आपकी बॉडी में बैक और नेक पेन की समस्या उतनी ही ज़्यादा होती हैं।
प्राणायाम एवं ध्यान पर बैठने की मुद्राएँ क्या होती हैं?-
05 FACTS;-
योग में पाँच सर्वश्रेष्ठ बैठने की अवस्थाएँ/स्थितियाँ हैं :
1-सुखासन - सुखपूर्वक (आलथी-पालथी मार कर बैठना)।
2-सिद्धासन - निपुण, दक्ष, विशेषज्ञ की भाँति बैठना।
3-वज्रासन - एडियों पर बैठना।
4-अर्ध पद्मासन - आधे कमल की भाँति बैठना।
5-पद्मासन - कमल की भाँति बैठना।
ध्यान लगाने और प्राणायाम के लिये सभी उपयुक्त बैठने की अवस्थाओं के होने पर भी यह निश्चित कर लेना जरूरी है कि ...
06 FACTS;-
1-शरीर का ऊपरी भाग सीधा और तना हुआ है।
2-सिर, गर्दन और पीठ एक सीध में, पंक्ति में हैं।
3-कंधों और पेट की मांसपेशियों में तनाव न हो।
4-हाथ घुटनों पर रखें हैं।
5-आँखें बंद, मुँदी हैं।
6-अभ्यास के समय शरीर निश्चल रहे।
1-सुखासन (सुख पूर्वक बैठना):-
बैठने की इस मुद्रा की सिफारिश उन लोगों के लिए की जाती है जिन्हें लम्बे समय तक सिद्धासन, वज्रासन या पद्मासन में बैठने में कठिनाई होती हो।
अभ्यास :-
02 POINTS;-
1-पैरों को सीधा करके बैठ जाएं। दोनों पैरों को मोड़ें और, दाएं पैर को बाईं जाँघ के नीचे और बाएं पैर को नीचे या दाएं पैर की पिंडली के सामने फर्श पर रखें। यदि यह अधिक सुविधाजनक हो तो दूसरी ओर पैरों को ऐसे ही एक-दूसरी स्थिति में रख लें। यदि शरीर को सीधा रखने में कठिनाई हो, तो सुविधाजनक स्थिति में उपयुक्त उँचाई पर एक कुशन, आराम गद्दी बिछा कर बैठ जाएं।
2-यदि सुखासन में सुविधापूर्वक और बिना दर्द बैठना संभव न हो, तो एक कुर्सी पर बैठ कर श्वास और ध्यान के व्यायामों का अभ्यास करना चाहिए। हर किसी के लिए सर्वाधिक महत्व की बात यह है कि शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहे, शरीर तनाव रहित हो और पूरे अभ्यास के समय निश्चल रहे।
2-सिद्धासन (निपुण की आसन-मुद्रा ):- :
सिद्धासन मन-मस्तिष्क को शांत करता है, नाडिय़ों पर संतुलित प्रभाव रखता है और चक्रों की आध्यात्मिक ऊर्जा को पुनर्संचालित, अधिक सक्रिय कर देता है। अत: बैठने की यह मुद्रा प्राणायाम और ध्यान के लिए सर्वाधिक उपयुक्त (संगत) है।
अभ्यास :-
02 POINTS;-
1-टाँगों को सीधा कर बैठ जाएं। दाएं पैर को मोड़ें और फर्श पर शरीर के अति निकट पैर को रख दें। अब बाएं पैर को मोड़ें और बाएं पंजे को दाईं पिंडली के ऊपर रख दें। पैर को मोड़ें और एडी दाईं जंघा का स्पर्श करेगी। दाएं पैर की अँगुलियों को बाएं पैर की जंघा और पिंडली के बीच से ऊपर खींचें।
2-बाएं पैर की अँगुलियों को दाएं खींचें। यदि शरीर को सीधा रख पाना कठिन हो या घुटने फर्श को न छू पाएं तो एक उपयुक्त ऊँचाई पर एक
आराम गद्दी पर बैठ जाएं।बाएं पैर को पहले मोड़ कर और दाएं पंजे को बाएं पिंडली-भाग के पास लाकर यह व्यायाम संभव है।
3-वज्रासन(एडियों पर बैठना ):-
वज्रासन शरीर और मन-मस्तिष्क में एकात्म, सामंजस्य बनाए रखता है। यह पाचन-क्रिया को भी समृद्ध करता है। अत: भोजन के बाद लगभग 5-10 मिनट तक वज्रासन की स्थिति में बैठने की सिफारिश की जाती है।
अभ्यास :--
02 POINTS;-
1-घुटनों के बल आ जाएं। दोनों टाँगें एक साथ हैं। दोनों अंगूठे एक-दूसरे को छूते हैं, एडियाँ थोड़ी-सी बाहर को निकलती हुई हैं। शरीर के ऊपरी भाग को कुछ आगे की ओर झुकाएं और फिर वापस एडियों पर बैठ जाएं।
2-धड़ सीधा रहता है। हाथों को जाँघों पर रख लें।
4-अर्ध पद्मासन (आधा कमल ):-
जो व्यक्ति पद्मासन में आसानी से न बैठ पाएं उनके लिये इस आसन की सिफारिश की जाती है।
अभ्यास :-
02 POINTS;-
1-टाँगों को सीधा रख कर बैठ जायें। दायीं टाँग को मोड़ें और पंजे को शरीर के अति निकट फर्श पर रख दें। अब बायां पैर मोडें, पैर को शरीर के अति निकट दायीं जंघा पर रख दें।
2-ऊपरी शरीर का भाग बिलकुल सीधा है। दोनों घुटने फर्श पर रहेंगे यदि शरीर को बिलकुल सीधा तना कर न रखा जाये या घुटनों को फर्श पर न लगाया जाये तो उपयुक्त ऊँचाई पर एक आराम गद्दी लगाकर बैठा जाये।
इस अभ्यास को बाईं टाँग पहले मोड़ कर और दायें पैर को बायीं जंघा के ऊपर रखकर भी किया जा सकता है।
5-पद्मासन ( कमल ):-
शीर्षासन सहित पद्मासन को आसनों में सर्वश्रेष्ठ या शाही आसन के रूप में जाना जाता है। कमल अवस्था चक्रों को सक्रिय करती है और उनमें संतुलन बनाती है तथा विचारों को शान्त करती है। प्राणायाम और ध्यान के लिये यह बैठने की आदर्श अवस्था है।
अभ्यास :-
02 POINTS;-
1-फर्श पर टाँगों को सीधा करके बैठ जायें। दायीं टाँग को मोड़ें और पैर को बायीं जंघा के ऊपर शरीर के अति निकट ले आयें। अब बायीं टाँग को मोड़ें और पैर के पंजे को दांयी जंघा के ऊपर शरीर के अति निकट ले आयें।
2-शरीर का ऊपरी भाग बिलकुल सीधा रहना चाहिये और घुटनों को फर्श पर विश्राम देने के लिये उपयुक्त ऊँचाई पर रखी आराम गद्दी पर बैठना
चाहिये।इसी स्थिति का अभ्यास पहले बाईं टाँग फिर दाईं टाँग मोड़कर भी किया जा सकता है।
हाथों की स्थिति;-
श्वास और ध्यान एकाग्र करने के व्यायामों में और ध्यान लगाने के लिये भी विशिष्ट मुद्राओं का उपयोग किया जाता है। मुद्रा या स्थिति वह अवस्था है जिसका अभ्यास एक विशिष्ट उद्देश्य की अभिव्यक्ति के लिये किया जाता है।
प्राणायाम मुद्रा - श्वास अभ्यासों में हाथों की स्थिति का सही
तरीका क्या है?-
04 FACTS;-
1-दायें हाथ की तर्जनी अँगुली और मध्यमा अँगुली को मस्तक के मध्य में भौंहों के बीच रख लें। अगूँठे का उपयोग दायें नथुने को बंद करने और अनामिका का उपयोग बायें नथुने को बंद करने के लिये किया जाता है।
यदि दायां हाथ थक जाये तो बायें हाथ से भी इस अभ्यास को करना संभव
है।
2-प्राणायाम की लम्बी अवधि (ज्यादा समय तक) के लिये सिफारिश की जाती है कि प्राणायाम दंड का उपयोग कर लें।
3-चिबुक (ठोडी) मुद्रा/ज्ञान मुद्रा - ध्यानावस्था में अगुंलियों की स्थिति...
ध्यानावस्था में हाथों को घुटनों पर रखें जिसमें हथेलियाँ ऊपर की ओर होंगी। अंगूठा और तर्जनी अंगुली एक दूसरे का स्पर्श करते हैं और शेष तीन अँगुलियाँ सीधी परन्तु तनाव-रहित रहेंगी।
4-चिबुक मुद्रा व्यक्ति की चेतनता का ब्रह्माण्ड के स्व से मिलन दर्शाता है। तर्जनी अँगुली वैयक्तिक चेतना को और अंगूठा ब्रह्माण्ड की चेतनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। शेष तीन अँगुलियाँ तीन गुणों, विश्व के तीन मूल गुणों की संकेतक हैं ।योगी का लक्ष्य तीन गुणों के परे जाना और ब्रह्माण्ड के स्व से मिल जाना होता है।
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कब,कैसे और कितना सोना चाहिए?-
10 FACTS;-
1-कब सोना चाहिए और कितना सोना चाहिए, ये ऐसे सवाल हैं जिनमें हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी उलझता ही है। महत्वपूर्ण नींद की मात्रा नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता है।अगर रात में आप ठीक तरीके से आराम नहीं कर पाए तो आपकी सुबहें भी कष्टकारी होंगी। जो चीज अंतर पैदा कर रही है, वह नींद नहीं है, बल्कि आराम का स्तर और उसकी गुणवत्ता है।
2-अच्छी सुबह का मतलब अच्छी शुरुआत होता है, लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, आप धीरे-धीरे धैर्य खोने लगते हैं और तनाव में आ जाते हैं।
आपको यह समझने की जरूरत है कि यह तनाव आपके काम की वजह से नहीं है। हर किसी को लगता है कि उसके काम में बहुत तनाव है, लेकिन सच यह है कि तनाव किसी काम में नहीं होता। अपने सिस्टम को संभालने की यह आपकी अक्षमता ही है जो आपको तनावपूर्ण बनाती है।
3-आप अपने सिस्टम को तनावरहित कैसे बनाएं, ताकि सुबह और शाम हर वक्त आपके आराम का स्तर और उत्साह एक जैसा बना रहे?.. मेडिकल आधार पर अगर दोपहर का भोजन करने के ठीक बाद आप एक योगी की नब्ज देखेंगे तो यह 47 से 48 के आसपास होगी। अगर खाली पेट नब्ज देखी जाएगी तो वह 35 से 40 के बीच ही होगी। शारीरिक दृष्टि से इसका मतलब यह है कि योगी गहरी नींद की अवस्था में है।वास्तव में, योगी इतने जागे हुए है कि दुनिया में हर काम कर सकते है , लेकिन शरीर गहरी नींद में है। जब योगी लगातार सो रहे हैं तो तनाव होने का सवाल ही नहीं उठता। जब कोई तनाव नहीं होता तो रात के 9 बजे हों या सुबह के 4, आपको कोई अंतर ही मालूम नहीं देगा।
4-कैसे सोना चाहिए?तो सबसे जरूरी बात यह है कि आप अपने प्रणाली या सिस्टम को इस तरह का बनाएं कि यह अपने आप ही आराम की अवस्था में रहे और कोई भी काम या गतिविधि इस पर दबाव न बना सके।अगर आप योग की कुछ खास क्रियाओं को नियमित रूप से करने लगें तो तीन से चार महीने के अंदर आपकी नब्ज की संख्या में 8 से 20 की कमी हो सकती है। ऐसे में आपका शरीर ज्यादा प्रभावशाली तरीके से काम करने लगेगा और वह भी पूरे आराम के साथ।
5-आपका शरीर अलार्म की घंटी बजने पर नहीं उठना चाहिए। एक बार अगर शरीर आराम कर ले तो उसे खुद ही जाग जाना चाहिए।आप सोने किस वक्त जाते हैं, यह आपके लाइफस्टाइल पर निर्भर करता है। महत्व इस बात का है कि आपको कितने घंटे की नींद की जरूरत है। अकसर कहा जाता है कि दिन में आठ घंटे की नींद लेनी ही चाहिए। आपके शरीर को जिस चीज की जरूरत है, वह नींद नहीं है, वह आराम है। अगर आप पूरे दिन अपने शरीर को आराम दें, अगर आपका काम, आपकी एक्सरसाइज सब कुछ आपके लिए एक आराम की तरह हैं तो अपने आप ही आपकी नींद के घंटे कम हो जाएंगे।
6-लोग हर चीज तनाव में करना चाहते हैं। लोग पार्क में टहलते वक्त भी तनाव में होते हैं। अब इस तरह का व्यायाम तो आपको फायदे की बजाय नुकसान ही करेगा, क्योंकि आप हर चीज को इस तरह से ले रहे हैं जैसे कोई जंग लड़ रहे हों।चाहे टहलना हो या जॉगिंग, उसे पूरी मस्ती और आराम के साथ भी कर सकते है। जीवन के साथ जंग करना छोड़ दीजिए। खुद को स्वस्थ और सेहतमंद रखना कोई जंग नहीं है।
7-कितने घंटे सोना चाहिए ..यह इस बात पर निर्भर है कि आप किस तरह का शारीरिक श्रम करते हैं। आपको न तो भोजन की मात्रा तय करने की जरूरत है और न ही नींद के घंटे। 'मुझे इतनी कैलरी ही लेनी है, मुझे इतने घंटे की नींद ही लेनी है,' जीवन जीने के लिए ये सब बेकार की बातें हैं। आज आप जो शारीरिक श्रम कर रहे हैं, उसका स्तर कम है, तो आप कम खाएं। कल अगर आपको ज्यादा काम करना है तो आप ज्यादा खाएं। नींद के साथ भी ऐसा ही है।
8-जिस वक्त आपके शरीर को पूरा आराम मिल जाएगा, यह उठ जाएगा चाहे सुबह के 3 बजे हों या 8। आपका शरीर अलार्म की घंटी बजने पर नहीं उठना चाहिए। एक बार अगर शरीर आराम कर ले तो उसे खुद ही जाग जाना चाहिए।अगर शरीर बिस्तर को आरामगाह की तरह इस्तेमाल करना चाह रहा है तो वह बिस्तर से बाहर आना ही नहीं चाहेगा। अगर आपकी मानसिक अवस्था ऐसी है कि आप जीवन की घटनाओं से बचना चाहते हैं तो नींद एक अच्छा तरीका है। ऐसे में आप अपने आप ही ज्यादा खाने लगेंगे और ज्यादा सोएंगे भी।
9-नींद और भोजन कुछ लोग ऐसी मानसिक अवस्था में होते हैं कि जब तक वे जमकर खा न लें और अपने शरीर को भारी न कर लें, उन्हें नींद ही नहीं आती। पाचन की प्रक्रिया होनी चाहिए और इसके लिए सोने से पहले आपको भरपूर समय जरूर देना चाहिए। खाना खाने के दो घंटे के भीतर अगर आप सो गए तो जो खाना आपने खाया है, उसका 80 फीसदी हिस्सा बेकार चला जाएगा।
10-अगर आपकी स्थिति ऐसी है कि बिना भरपेट खाए आपको नींद ही नहीं आती, तो आपको इस मामले में ध्यान देने की जरूरत है। यह नींद से जुड़ी बात नहीं है, यह एक खास किस्म की मानसिक अवस्था है।इसलिए, नींद उतनी ही, जितनी शरीर को जरूरत हो। भोजन और नींद, इन दोनों चीजों के बारे में फैसला लेने का हक अपने शरीर को दीजिए, खुद को नहीं, क्योंकि आप खुद इस बारे में सही फैसला ले ही नहीं सकते। भोजन और नींद के मामले में सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप उस हिसाब से चलें, जो आपका शरीर चाहे क्योकि यह शरीर से संबंधित बात है।
10 महत्वपूर्ण सावधानियाँ ;-
1-कहते हैं कि सीधा सोए योगी, डाबा सोए निरोगी, जीमना सोए रोगी। शरीर विज्ञान कहता है कि चित्त सोने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचता है जबकि औंधा सोने से आंखों को नुकसान होता है।
2-सोने से पूर्व प्रतिदिन कर्पूर जलाकर सोएंगे तो आपको बेहद अच्छी नींद आएगी और साथ ही हर तरह का तनाव खत्म हो जाएगा। कर्पूर के और भी कई लाभ होते हैं।
3-सोने से पूर्व आप बिस्तर पर वे बातें सोचें, जो आप जीवन में चाहते हैं। जरा भी नकारात्मक बातों का खयाल न करें, क्योंकि सोने के पूर्व के 10 मिनट तक का समय बहुत संवेदनशील होता है जबकि आपका अवचेतन मन जाग्रत होने लगता है और उठने के बाद का कम से कम 15 मिनट का समय भी बहुत ही संवेदनशील होता है। इस दौरान आप जो भी सोचते हैं वह वास्तविक रूप में घटित होने लगता है।
4-आप सोने जा रहे हैं तो यह भी तय करें कि आपके पैर किस दिशा में हैं। दक्षिण और पूर्व में कभी पैर न रखें। इससे सेहत और समृद्धि का नुकसान होता है। पूर्व दिशा में सिर रखकर सोने से ज्ञान में बढ़ोतरी होती है। दक्षिण में सिर रखकर सोने से शांति, सेहत और समृद्धि मिलती है।
5- झूठे मुंह और बगैर पैर धोए नहीं सोना चाहिए। अधोमुख होकर,
टूटे हुए पलंग पर तथा गंदे घर में नहीं सोना चाहिए।
6-जिस बिस्तर पर हम 6 से 7 घंटे रहते हैं यदि वह हमारी मनमर्जी का है तो शरीर के सारे संताप मिट जाते हैं। दिनभर की थकान उतर जाएगी। अत: बिस्तर सुंदर, मुलायम और आरामदायक तो होना ही चाहिए, साथ ही वह मजबूत भी होना चाहिए। चादर और तकिये का रंग भी ऐसा होना चाहिए, जो हमारी आंखों और मन को सुकून दें।
7- अच्छी नींद के लिए खाने के बाद वज्रासन करें, फिर भ्रामरी प्राणायाम करें और अंत में शवासन करते हुए सो जाएं।
सोने का सही तरीका क्या है?-
10 FACTS;-
1-भरपूर नींद और अच्छी नींद ...सेहतमंद रहने के लिए बहुत जरूरी है, इससे कई बीमारियों से बचाव होता है और आप पूरे दिन एनर्जेटिक रहते हैं। लेकिन भरपूर नींद लेने के लिए सोने के सही तरीके की जानकारी होना बहुत जरूरी है। अगर आप सही से नहीं सोयेंगे तो शरीर में दर्द होना स्वाभाविक है खासकर गर्दन का दर्द।
2-इसके लिए आरामदायक बिस्तर होना बहुत जरूरी है, सोने से पहले ध्यान रखें कि बिस्तर अधिक धंसा न हो। तकिया न अधिक मोटा हो और न ही अधिक पतला हो, अगर तकिया अधिक पतला होगा तो गर्दन झुक जायेगी और दर्द होगा। इसका दर्द लंबे समय के लिए भी हो सकता है। तकिये का शेप सही नहीं है तो रात में करवट बदलते समय मांसपेशियों में खिंचाव हो सकता है।
3-कितने घंटे जरूरी है नींद..सामान्य व्यक्ति के लिए कितने घंटे की नींद जरूरी है इस पर कई तरह के शोध हो चुके हैं। चूंकि अलग-अलग व्यक्ति की नींद की जरूरतें कम या ज्यादा हो सकती हैं इसलिए कम से कम 6 घंटे और ज्यादा से ज्यादा 9 घंटे तक की नींद सही मानी जाती है।
4-हो सकती हैं ये समस्याएं ..नींद कम लेते हैं या फिर जरूरत से ज्यादा, नींद का बैलेंस गड़बड़ाया तो इसके कई नुकसान हो सकते हैं। कम नींद लेने से अक्सर लोगों का ध्यान किसी एक जगह नहीं टिक पाता है जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है।वहीं आवश्यकता से अधिक नींद से
बेचैनी, सिरदर्द, आलस शरीर में घर कर जाता है जो आपके काम करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
5-आपकी जीवन शैली में ये बदलाव यकीनन आपकी नींद संतुलन ठीक रखेंगे और आपको कार्यक्षेत्र में सफल बनाने में मदद करेंगे ...नींद का
टाइम-टेबल सही रहे और आपकी कार्यक्षमता पर इसका गलत असर न पड़े इसके लिए जरूरी है कि आप अपने रुटीन में इन सावधानियों को तरजीह दें...
5-1- सोने और टीवी देखने के बीच में 45 मिनट का गैप रखें।
5-2- बहुत देर तक टीवी देखने या कंप्यूटर पर काम करने की आदत पर नियंत्रण करें।
5-3- सोने से पहले किताब पढ़ने या संगीत सुनने की आदत डालें।
5-4- चाय-कॉफी का सेवन कम करें।
5-5- एल्कोहल से दूरी रखें।
5-6- सोने से पहले बैलेंस डाइट लें।
आपकी जीवनशैली में ये बदलाव यकीनन आपकी नींद संतुलन ठीक रखेंगे और आपको कार्यक्षेत्र में सफल बनाने में मदद करेंगे।
6-शास्त्रों में सोने का सही समय ...शास्त्रों के अनुसार सही समय के अलावा अन्य किसी भी समय पर यदि व्यक्ति सो जाता है तो इसका उस व्यक्ति पर
बुरा प्रभाव होता है।केवल शास्त्र ही नहीं, वरन् विज्ञान के अनुसार भी सोने का सही समय केवल रात का ही है। इसके अलावा दिन में सोना सही नहीं माना जाता, क्योंकि ऐसे लोगों को रोग चिपक जाते हैं।
6-1-चिकित्सकों के अनुसार भी रात को पूरी नींद ना लेने का परिणाम होता
है कि व्यक्ति हर पल बीमार महसूस करता है।ऐसे में सिर दर्द, आंखों में जलन, दिनभर नींद आना और नींद ना मिलने की वजह से व्यवहार में भी चिड़चिड़ापन आना आम हो जाता है। इसलिए कुछ भी करके रात की ही नींद लेना जरूरी है।
7-दिन में ही सोने वाले लोग...लेकिन आजकल ऐसे कई लोग हैं जिन्हें रात की बजाय केवल दिन में ही सोने का समय मिलता है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो शाम के समय सोना पसंद करते हैं। यदि आप इन लोगों की कैटिगरी में आते हैं तो कृपया ऐसा करना बंद कर दीजिए। क्योंकि यह ना केवल आपके स्वास्थ्य के लिहाज से बल्कि शास्त्रीय नियमों के लिहाज से भी गलत
है।
7-1-यदि चिकित्सकों की राय के अनुसार चलें तो दिन में सोने वालों को अक्सर कब्ज़, अपच और एसिडिटी रहती है। यदि उनकी यह आदत रोजाना की बन जाए तो यह उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। क्योंकि ऐसे में वे हमेशा ही बीमार रहेंगे और बीमारियां बढ़ती-बढ़ती उनकी आयु को कम करने का काम करती हैं।
8-लेकिन जो लोग शाम को सोते हैं ...शास्त्रों के अनुसार ऐसे लोगों की उम्र घटती जाती है और अंत में वे अपनी उम्र से काफी जल्दी मौत को प्राप्त होते हैं। इसका कारण भी शास्त्रों में काफी विस्तार से समझाया गया है।
शास्त्रों के अनुसार शाम का समय केवल पवित्र कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि शाम के समय देवी-देवता पृथ्वी के भ्रमण के लिए निकलते हैं। ऐसे में यदि शाम के समय व्यक्ति सो रहा होगा तो उसे देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता।
8-1-इतना ही नहीं, यदि देवता किसी को शाम के पवित्र समय में सोता हुआ देखते हैं तो वह व्यक्ति उनके कोप का शिकार हो जाता है।और यदि
देवी-देवता की कृपा किसी पर ना हो तो ऐसे घर में बरकत नहीं बनी रहती। तभी तो ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति अपने कर्मों से चाहे तो अपनी आयु बढ़ा भी सकता है और अपनी किस्मत के सितारे चमका भी सकता है।
9-सोने का तरीका...इसके अलावा आप किस प्रकार से सोते हैं, इसका भी आपकी आयु पर असर होता है। इस तथ्य पर एक पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। कहते हैं कि शनि के देखने से गणेशजी का सिर कट जाने के बाद माता पार्वती प्रलय मचाने लगती हैं। माता को इतना परेशान देखकर भगवान विष्णु ने कुछ समाधान निकालना चाहा। उन्होंने अपने चक्र के प्रयोग से एक हाथी का सिर काटकर गणेशजी के धड़ पर लगा दिया।
9-1-लेकिन उन्हें किस हाथी का सिर काटना है, इसका चयन विष्णुजी ने कैसे किया, इस पर भी एक कथा प्रचलित है। कहते हैं कि जब एक नए सिर की खोज के लिए विष्णु जी निकले तो उन्होंने एक हाथी को पांव पर पांव रखकर सोते हुए देखा। बस वे समझ गए कि इस हाथी की आयु पूरी हो
चुकी है।तब ही उन्होंने उसका सिर धड़ से अलग कर गणेशजी को लगा दिया। इसका कारण है कि शास्त्रों के अनुसार पैर पर पैर रखकर सोने से आयु क्षीण होती है और मृत्यु नजदीक आ जाती है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि कभी भी सोते समय पांव पर पांव रखकर ना सोएं।
10-लेकिन कैसे बढ़ सकती है आयु?...यह थे वे तथ्य जिन्हें सोने वक्त यदि
अपनाया जाए तो आयु कम हो जाती है। लेकिन शास्त्रों में सोने की किस अवस्था में आयु बढ़ सकती है, इसका भी उल्लेख किया गया है। शास्त्रों के अनुसार अच्छी सेहत और लम्बी आयु के लिए शवासन की मुद्रा में सोना चाहिए।
शवासन की मुद्रा क्या है?-
शवासन की मुद्रा के लिए सबसे पहले सीधे लेट जाएं और अपने सिर को ऊपर की ओर रखें। साथ ही अपने दोनों हाथों को अपने शरीर के आसपास सीधा ही रखें। इससे शरीर को आराम मिलता है, थकान जल्द ही दूर हो जाती है तथा साथ ही व्यक्ति की पाचन शक्ति भी मजबूत होती है।
सोने की दिशा क्या है?-
02 FACTS;-
1-हम हर रोज की दिनचर्या में कई काम करते है जिनमे से कुछ सही और कुछ गलत भी करते है। उन गलत कामो का प्रभाव उसी समय न होकर धीरे धीरे हमारे जीवन पर पड़ता है और यह प्रभाव आस पास की ऊर्जा को नुकसान पहुंचा कर हमारी जीवन शैली पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
2-हिंदू शास्त्रों और वास्तुविदों के अनुसार सोते समय अपने पैर दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर रखना अनुचित है।ऐसा करने से आपके शरीर,दिल और दिमाग पर बुरा असर पड़ता है।किस दिशा में सोना चाहिए और किस
दिशा की तरफ सिर और किस दिशा में पैर करने चाहिए और गलत दिशा में सोने पर क्या नकारात्मक प्रभाव हो सकते है ...ये जानना आवश्यक है।
1-दक्षिण दिशा;-
06 FACTS;-
1-वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा में यमलोक स्थित है और यदि आप सोते समय अपने पाँव दक्षिण दिशा की ओर कर के सोते हैं तो इसका मतलब है कि आप यमलोक की ओर जा रहे हैं।इसलिए दक्षिण दिशा को नकारात्मक ऊर्जा की दृष्टि से देखा जाता है।
2-वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो उत्तर और दक्षिणी ध्रुव जब मिलते है तो वहाँ चुम्बकीय ऊर्जा प्रवाहमान होती है। इसीलिए उत्तर से दक्षिणी दिशा की ओर चुम्बकीय ऊर्जा विद्यमान होती है। उत्तर दिशा की ओर धनात्मक प्रवाह रहता है और दक्षिण दिशा की ओर ऋणात्मक प्रवाह रहता है।
3-हमारा सिर का स्थान धनात्मक प्रवाह वाला और पैर का स्थान ऋणात्मक प्रवाह वाला है। यह दिशा बताने वाले चुम्बक के समान है जिससे दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोने से हमारे शरीर में चुम्बकीय ऊर्जा प्रवाहित होती है और जब हम सुबह उठते है तो शरीर को थका थका सा महसूस होता है। शारीरिक ऊर्जा क्षीण हो जाती है जबकि दक्षिण दिशा ओर सिर रखकर सोने से इस तरह की कोई अनुभूति नही होती।
4-दरअसल, पृथ्वी में चुम्बकीय शक्ति होती है। इसमें दक्षिण से उत्तर की ओर लगातार चुंबकीय धारा प्रवाहित होती रहती है। जब हम दक्षिण की ओर सिर करके सोते हैं, तो यह ऊर्जा हमारे सिर ओर से प्रवेश करती है और पैरों की ओर से बाहर निकल जाती है ऐसे में सुबह जगने पर लोगों को ताजगी और स्फूर्ति महसूस होती है। इसके विपरीत, दक्षिण की ओर पैर करके सोने पर चुम्बकीय धारा पैरों से प्रवेश करेगी है और सिर तक पहुंचेगी। इस चुंबकीय ऊर्जा से मानसिक तनाव बढ़ता है और सवेरे जगने पर मन भारी-भारी रहता है।
5-जीव के शरीर में शक्ति का प्रवाह ऊपर की दिशा में ईश्वर-प्राप्ति की ओर तथा नीचे की दिशा में अर्थात पैर से पाताल की ओर जाता है । दक्षिण की ओर पैर कर सोने से यमलोक एवं पाताललोक के स्पंदन एकत्रित होते हैं और जीव रज-तम तरंगें आकर्षित करता है । इस कारण मनुष्य को नींद न आना, दुःस्वप्न आना, नींद में भय लगना अथवा घबराकर उठना आदि कष्ट होते हैं । इसलिए दक्षिण की ओर पैर कर नहीं सोते ।
6-दक्षिणोत्तर सोने से अधोगामी तथा तिर्यक तरंगों के कार्य के कारण वातावरण में विद्यमान रज-तम कणों का संचालन बढता है । इस कारण अनिष्ट शक्तियों के कार्य को गति मिलने से जीव को अनिष्ट शक्तियों से कष्ट होने की आशंका सर्वाधिक रहती है । इसलिए यथासंभव दक्षिणोत्तर न सोएं ।
2-उत्तर दिशा;-
02 FACTS;-
1-वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार उत्तर दिशा में धनात्मक या सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। चूँकि हमारे सिर में भी धनात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और पैरो से ऋणात्मक ऊर्जा का निकास होता है।यह भी दिशा बताने वाले चुम्बक के नियम के समान कार्य करता है कि धनात्मक प्रवाह वाले आपस में मिल नहीं सकते।
2-यदि हम अपने सिर को उत्तर दिशा की ओर रखेंगे तो उत्तर दिशा की धनात्मक शक्ति और सिर की धनात्मक तरंग एक दूसरे से विपरित भागेगी जिससे हमारे मस्तिष्क में बेचैनी बढ़ जाएगी और फिर नींद अच्छे से नहीं आएगी।
3-पूर्व दिशा;--
05 FACTS;-
1-पूर्व दिशा वास्तु के अनुसार सोने के लिए बहुत अच्छी मानी गयी है। पूर्व दिशा की ओर सिर करके सोने से ध्यान,एकाग्रता,आध्यात्मिकता और स्मृति में वृद्धि होती है। एक विद्यार्थी के लिए तो पूर्व दिशा में सिर रखकर सोना बहुत ही गुणकारी माना गया है। अतः पूर्व दिशा की ओर सिर रखकर सोना सबसे लाभप्रद माना गया है।
2-सोते समय सिर पूर्व दिशा में एवं पैर पश्चिम दिशा में होने चाहिए । पूर्व दिशा से आह्नाददायक सप्त तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । इन तरंगों के कारण जीव के शरीर में विद्यमान चक्रों का उचित दिशा में घूमना आरंभ हो जाता है । पूर्व दिशा में सिर करने से इस दिशा से प्रक्षेपित आह्लाददायक सप्त तरंगें जीव के षट्चक्रों द्वारा 10 प्रतिशत अधिक मात्रा में ग्रहण होती हैं । जीव के शरीर में विद्यमान चक्रों की यात्रा उचित दिशा में होने के कारण, निद्रा द्वारा जीव में निर्मित रजकणों का उसे कष्ट नहीं होता।
3-पूर्व की ओर सिर कर पूर्व-पश्चिम सोने से जीव सात्त्विक बनता
है। इससे सत्त्व, रज एवं तम तरंगों में समतोल रहता है । प्रातः पूर्व दिशा से सत्त्व तरंगें अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होती हैं । ब्रह्मरंध्र द्वारा वातावरण की सत्त्व तरंगें शरीर में प्रवेश करती हैं । उन्हें ग्रहण कर जीव सात्त्विक बनता है । प्रातः जो सत्त्व तरंगें प्राप्त होती हैं, उन्हें ग्रहण कर जीव के दिन का आरंभ सत्त्व से होता है ।
4-पूर्व-पश्चिम दिशा में सोने से उस दिशा से संलग्न एवं इन दो दिशाओं की रिक्ति में भ्रमण करने वाली ईश्वर की क्रिया तरंगों का लाभ होता है । ईश्वर की क्रिया शक्ति कार्य करने का बल प्रदान करती है । पूर्व-पश्चिम, इन कार्यमयी दिशाओं की सहायता से जीव के शरीर में सात्त्विक क्रिया तरंगों का संक्रमण होकर नाभिस्थित पंचप्राण कार्यरत होने में सहायता मिलती है । ये पंचप्राण उप-प्राणों के माध्यम से शरीर में विद्यमान त्याज्य सूक्ष्म-वायुओं को बाहर धकेलते हैं । यह जीव की प्राण-देह एवं प्राणमयकोष की शुद्धि में सहायक होता है ।
5-पूर्व एवं पश्चिम दिशाओं में भ्रमण करने वाली तरंगों की दिशा ऊर्ध्वगामी होती है । इस कारण इन तरंगों के माध्यम से प्राप्त सात्त्विकता अधिक मात्रा में निर्गुण प्रवण होती है एवं आग्नेय-नैऋत्य दिशाओं की तुलना में दीर्घकाल तक बनी रहती है । साथ ही पूर्व- पश्चिम दिशाओं में भ्रमण करने वाली तरंगों में विद्यमान पंचतत्त्वों का स्तर आग्नेय-नैऋत्य दिशाओं की अपेक्षा उच्च होने के कारण इन दिशाओं की ओर सिर रखने से जीव को अधिक मात्रा में लाभ मिलता है तथा वह दीर्घकाल तक बना रहता है । इसलिए मुख्यतः पूर्व-पश्चिम दिशाओं को प्रधानता दी जाती है ।
KEY POINTS ;-
1-मनुष्य के शरीर में 108 देह शुद्धक चक्र होते हैं ।प्रत्येक कृत्य करते समय स्थूल देह में निर्मित रज-तम कण जीव के शरीर से ऐसे चक्रों के माध्यम से निकलते हैं । इन चक्रों का मूल उद्देश्य है, ‘देहृकोष की निरंतर शुद्धि करते रहना’ । इसलिए उन्हें ‘देह शुद्धक चक्र’ कहते हैं । नामजप करने से ये सर्व चक्र जागृत होते हैं और अनावश्यक तमो-गुणी कण एवं काली शक्ति निकलती है । दिनभर नामजप करने वाले साधक को पूर्व अथवा पश्चिम दिशा में सिर कर सोने के उपरांत भी कष्ट नहीं होता ।
2-मनुष्य द्वारा दिन-भर किए जाने वाले कार्य के कारण जीव में विद्यमान रजकण गतिशील रहते हैं । रजकणों की प्रबलता के कारण संपूर्ण दिन जीव की सूर्य नाडी जागृत रहती है । इसलिए जीव में रज-तम कणों की मात्रा में वृद्धि होती है । देह से इन रज-तम कणों का विघटन उचित पद्धति से हो, इस हेतु रात्रि में पैरों की उंगलियों में स्थित ये देह शुद्धक चक्र खुलते हैं
(रात्रि रजकणों की प्रबलता के कारण) और पैराेंकी उंगलियों द्वारा रज-तम कण बाहर निकलते हैं । पश्चिम दिशा (शक्तिस्वरूपी कार्य) अस्त होने की दिशा है । इस कारण पैरों की उंगलियों द्वारा प्रक्षेपित रज-तम कण उस दिशा में उत्सर्जित होकर अस्त होते हैं ।
3-पूर्व दिशा में उत्पत्ति स्वरूपी शक्ति का प्रक्षेपण होता है । उस दिशा में पैर कर सोने से अस्त होने वाले कणों की यात्रा, उत्पत्तिस्वरूपी शक्ति प्रक्षेपित करने वाली दिशा में होती है । इस कारण पैरों की उंगलियों के पास दोनों प्रकार की शक्तियों के बीच घर्षण होता है और जो शक्ति अधिक बलवान होती है, उसकी विजय होती है । कलियुग के मनुष्य में रज-तम कणों की मात्रा अधिक होने के कारण पैरों से निकलने वाली शक्ति अधिक मात्रा में विजयी होती है । इस कारण वृद्धिंगत रज-तम कण पैरों के माध्यम से नहीं निकलते ।
4-पश्चिम दिशा;-
02 FACTS;-
1-पश्चिम दिशा की ओर सिर रखकर नही सोना चाहिए। वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में सूर्य देव और अन्य सभी देवी-देवताओ का वास होता है। यदि हम पश्चिम दिशा में सिर रखकर सोयेंगे तो पूर्व दिशा की ओर हमारे पैर होंगे और देवी-देवताओ की ओर पैर करके सोना अशुभ माना गया है जिससे नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
2-पश्चिम दिशा की ओर सिर रखकर सोने से बुरे बुरे सपने आते है और मन में बेचैनी रहती है। अतः पश्चिम दिशा की ओर सिर रखकर कभी नही सोना चाहिए।
NOTE;-
1-तिरछा सोना ...इसके विपरीत तिरछा सोने से वायुमंडल में विद्यमान तिरछी रेखा में कार्यमान तमो-गुणी तिर्यक तरंगें जीव की ओर आकृष्ट होकर शरीर में संक्रमित होती हैं । इसलिए नींद में दुःस्वप्न आना, शरीर की अनावश्यक गतिविधियां होना, अस्वस्थता का अनुभव होना तथा तिर्यक तरंगों की सहायता से वायुमंडल में भ्रमण करने वाली किसी अनिष्ट शक्ति का शरीर में प्रविष्ट होना, ऐसे कष्ट होते हैं । वायुमंडल में तिर्यक तरंगों के भ्रमण के कारण यथासंभव इस दिशा में न सोएं ।
2-सोने के लिए पूर्व दिशा और दक्षिण दिशा ही उपयुक्त होती है। अर्थात हमेशा दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर ही सिर रखकर सोये अन्यथा आपका स्वास्थ्य और कार्यशैली दोनों प्रभावित होंगी।
क्या करवट भी बदल सकते हैं?-
05 FACTS;-
1-ना केवल शास्त्रीय, बल्कि चिकित्सकीय मायनों में भी शवासन की मुद्रा आयु बढ़ाने के लिए लाभकारी है।लेकिन यह मुद्रा सारी रात अपना सकना थोड़ा कठिन है, क्योंकि गहरी नींद में हम अपनी मुद्रा बदल लेते हैं। लेकिन यदि आप मुद्रा को थोड़ा सा बदलकर केवल करवट ही लेते हैं, तो यह भी शास्त्रीय नियमों के अनुसार सही माना जाता है।
2-एक ही ओर करवट लेकर सोना
इसमें कोई दो राय नहीं कि पूरी रात एक ही ओर करवट लेकर सोना संभव नहीं है। नींद में हम हम ना जाने कितनी बार करवट बदलते हैं, और अंत में किस पोज़ीशन में सो रहे होते हैं यह हमें खुद भी मालूम नहीं होती। हमें जिस ओर लेटने से आराम मिलता है शायद हम उसी ओर की पोज़ीशन लेकर पूरी रात सोए रहते हैं
3-बाईं ओर करवट लेकर सोना;-
07 POINTS;-
1-बाईं ओर करवट लेकर सोने से पेट की कई बीमारियां आने से पहले ही समाप्त हो जाती हैं। इनमें से जो आम हैं वे हैं पेट के फूलने की परेशानी, पेट में गैस होने की परेशानी या फिर एसिडिटी बनने की परेशानी, आदि सभी बाईं ओर करवट लेकर सोने से हल हो जाती हैं।
2-डॉक्टरों के मुताबिक बाएं ओर करवट लेकर सोने से शरीर में जमा होने वाले टॉक्सिन धीरे-धीरे लसिका तंत्र द्वारा निकल जाते हैं। दरअसल बाईं ओर सोने से हमारे लीवर पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं पड़ता, इसलिए यह टॉक्सिन शरीर से बाहर निकलने में सफल हो जाते हैं।
3-बाएं ओर सोने का दूसरा फायदा हमारे पाचन तंत्र को मिलता है। इस तरह सोने से पेट और अग्न्याशय अपना काम जो कि खाना पचाने का कार्य है, उसको आराम से करने लगते हैं। अग्न्याशय से एंजाइम सही समय पर निकलना शुरू होता है। खाया गया भोजन भी आराम से पेट के जरिए नीचे पहुंचता है और आराम से खाना हज़म हो जाता है।यदि किसी
का हाज्मा गड़बड़ रहता है और बदहजमी की शिकायत रहती है, तो उन्हें बायीं ओर करवट लेकर ही सोना चाहिए। आप स्वयं इससे मिलने वाले फायदे का अनुभव कर सकेंगे।
4-पाचन तंत्र..अगला फायदा अपने आप ही दूसरा फायदा मिलने के बाद मिल जाता है। जब पाचन तंत्र मजबूत हो जाएगा, तो अपने आप ही सुबह पेट आसानी से साफ हो जाएगा। बाएं ओर सोने की वजह से ग्रेविटी, भोजन को छोटी आंत से बड़ी आंत तक आराम से पहुंचाने में मदद करती है। इस वजह से सुबह के समय आपका पेट आराम से साफ होगा।
5-लीवर..बाएं ओर सोने से हमारे लीवर के अलावा, किडनी को भी फायदा मिलता है। बाएं ओर करवट लेकर सोने से कभी भी हमारे लीवर और किडनी पर कोई प्रेशर नहीं पड़ता, इसका परिणाम यह होता है कि जो पेट का एसिड होता है, वह ऊपर की जगह नीचे की ओर ही जाता है, जिससे एसिडिटी और सीने की जलन नहीं होती।तो यदि किसी को खाना पचाने में
दिक्कत होती हो या फिर पेट में निरंतर एसिड बनने की परेशानी हो तो उन्हें रात में बाएं ओर करवट लेकर ही सोना चाहिए। इससे उन्हें काफी आराम मिलेगा।
6-दिल को फायदा ..बाएं ओर करवट लेकर सोने से मिलने वाले फायदों में एक फायदा हमारे दिल को भी मिलता है। बाएं करवट सोने से दिल पर जोर कम पड़ता है क्योंकि उस समय दिल तक खून की सप्लाई काफी अच्छी मात्रा में हो रही होती है।
7-डॉक़्टरों के अनुसार हमारे हृदय को हमेशा सही मात्रा में खून पहुंचना चाहिए। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है। बायीं करवट में सोने से रक्त का प्रवाह सही रहता है, जो गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ के लिए भी अच्छा है। इसके अलावा आपके गुर्दों को काम करने में भी मदद मिलती है। एड़ी, पैरों और हाथों में सूजन भी आने की आशंका कम रहती हैं।
4-दायीं करवट ;-
दायीं करवट सोने से दिल पर ज़ोर कम पड़ता है और वह जिस्म व दिमाग को ज्यादा आसानी के साथ खून व आक्सीज़न की सप्लाई पहुंचाता रहता है। जिससे दिमाग की सोचने की ताकत बढ़ जाती है ।बुद्धिमता और दिमागी ताकत बढ़ने का सीधा सम्बन्ध् दायीं तरफ सोने से है।सुबह हमें दायीं करवट ही लेकर उठना चाहिए परन्तु ज्यादा दायीं करवट सोने से व्यक्ति रोगी हो जाता हैं।
5-औंधे मुंह सोना;-
एक आम इंसान के लिये रातभर किसी एक करवट सोना फायदेमन्द नहीं होता। उसे करवट बदल बदलकर सोना चाहिए। लेकिन किसी भी हालत में औंधे मुंह नहीं सोना चाहिए क्योंकि इससे रीढ़ की हड्डी पर प्रेशर पड़ता है और यह खतरनाक हो सकता है। औंधे मुंह सोने वालों में नर्वसनेस और घबराहट के भी आसार ज्यादा देखे गये हैं। ऐसे लोग ज्यादा दबाव झेल नहीं पाते और साथ ही मुजरिमों के तरह लड़ाकू और जिद्दी भी होते हैं। इन्हें लगता है कि पूरी दुनिया इनके खिलाफ है। देखा जाये तो औंधे मुंह सोना
खराब आदत है।
....SHIVOHAM....
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