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क्या है चमत्कारिक शाम्भवी महामुद्रा?PART-03


क्या है चमत्कारिक शाम्भवी महामुद्रा?-

07 FACTS;-

1-प्राण से परे..शांभवी महामुद्रा में वह क्षमता है जो आपको उस आयाम को स्पर्श करा सकती है, जो इन सबका आधार है। लेकिन आप इसे सक्रिय तौर पर नहीं कर सकते। आप केवल माहौल को तय कर सकते हैं। हम शांभवी को हमेशा स्त्रीवाचक मानते हैं। उसके फलदायी होने के लिए आपके भीतर श्रद्धा का भाव होना चाहिए। आप सृष्टि के स्रोत के केवल संपर्क में आ सकते हैं - आपको इससे और कुछ नहीं करना।

2-शांभवी में प्राणायाम का एक तत्व भी मौजूद होता है, जो कई तरह से लाभदायक है। शांभवी क्रिया के बारे में अहम बात यह है कि यह सृष्टि के स्रोत को छूने का एक साधन है, जो प्राण से परे है। यह पहले दिन भी ही हो सकता है या यह भी हो सकता है कि आपको छह माह में भी कोई नतीजा न मिले। पर अगर आप इसे करते रहे, तो एक दिन आप इस आयाम को छू लेंगे। अगर आप इसे छू लेंगे, तो अचानक सब कुछ रूपांतरित हो जाएगा।

3-योग साधना मे शाम्भवी मुद्रा का विशेष महत्व बताया गया है| इसमें आपकी आँखे खुली तो होती है किन्तु आप देख नहीं सकते है ऐसी स्थिति जब सध जाती है तो उसे शाम्भवी मुद्रा कहा जाता है|यह बहुत कठिन साधना है। इसके ठीक उल्टा कि जब आंखें बंद हो तब आप देख सकते हैं यह भी बहुत कठिन है, लेकिन यह दोनों ही संभव है। असंभव कुछ भी नहीं। बहुत से ऐसे पशु और पक्षी हैं जो आंखे खोलकर ही सोते हैं।

4-जब इस मुद्रा को किया जाता है तो दोनो आँखे ऊपर मस्तिष्क में चढ़ जाती है और दिव्य प्रकाश के दर्शन भी होने लगते है। योगी का ध्यान दिल में स्थिर होने लगता है।इसकी एक खासियत यह है की इसे करते वक्त आंखें खुली रखकर भी व्यक्ति नींद और ध्यान का आनंद ले सकता है।

5-इसके सधने से व्यक्ति भूत और भविष्य का ज्ञाता बन सकता है।

जिसकी तीसरी आंख खुली हो, वह भविष्य के संकेतों को समझने में सफल होता है। शाम्भवी मुद्रा हमारी तीसरी आंख खोलती है, जिससे हमारी गहन चेतना के द्वार खुलते हैं। इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क में डेल्टा तरंगें सक्रिय हो जाती हैं, जिससे दिमाग एकदम शांत हो जाता है।मस्तिष्क के बाएं और दाएं हिस्सों के बीच संवाद का तादात्म्य स्थापित होता है, जिससे भावी घटनाओं के संकेत मिलने लगते हैं।

6-शाम्भवी मुद्रा को भगवान शिव की मुद्रा भी कहा जाता है| जब इस साधना को लम्बे समय तक किया जाता है तो बहुत ज्यादा नींद आने लगती है| इस मुद्रा को करने के बाद साधक घण्टो तक एक आसन पर चेतन अवस्था मे रहकर साधना कर सकते है।मुद्रा शब्द का प्रयोग एवं मुद्राओं के वैज्ञानिक अभ्यासक्रम का स्वीकार भक्ति एवं ज्ञानमार्ग में नहीं किया गया है किंतु योगमार्ग में योगसाधना में निपुण आचार्यों के द्वारा किया गया है । शांभवी मुद्रा का उल्लेख भी इसमें समाविष्ट है । तड़ागी, खेचरी, योनि तथा महामुद्रा की भाँति शांभवी मुद्रा भी एक महत्वपूर्ण मुद्रा है जिसका उल्लेख योगविद्या के प्राचीन ग्रंथो में किया गया है ।शांभवी मुद्रा का अभ्यास करने की तमन्ना वाले साधक को पद्मासन जैसे किसी विशिष्ट आसन में बैठना चाहिए ।

7-शांभवी मुद्रा मन की विषयगामी बाह्य वृत्ति को प्रतिनिवृत्त करके ध्यान में लगानेवाली मुद्रा है।नजर को दो भ्रमर के मध्य प्रदेश में स्थापित करके शांति से बैठे रहना और ध्यान करना ।इसका वर्णन करने वाले अनुभवसिद्ध आचार्यों ने बताया है कि इस मुद्रा में आँख खुली हो फिर भी मन बाह्य पदार्थों या विषयों में नहीं भटकता ।मन की वृत्ति क्रमशः शांत हो जाती है और अन्त में बिलकुल शांत होने पर आँख खुली होती है फिर भी कुछ नहीं देखती ।मन की परमशांति की अवस्था या समाधि की उपलब्धि, इसके लिए ही वह की जाती है । इसीलिए योग की सुप्रसिद्ध साधना में उसकी महिमा अद्वितीय मानी जाती है ।शांभवी मुद्रा साधक को विचारों, विकारों एवं विषयों के उस पार के प्रशांत प्रदेश में प्रवेशित कराती है।

ध्यान और शाम्भवी महामुद्रा के प्रभाव का वैज्ञानिक प्रमाण ;-

10 FACTS;- 1-ध्यान शब्द का प्रयोग कई चीजों के लिये किया जाता है। अगर आप किसी एक चीज़ पर एकाग्र हैं, तो लोग कहते हैं कि आप ध्यान कर रहे हैं। यदि आप एक ही विचार लगातार सोच रहे हैं तो भी लोग इसे ध्यान कहते हैं। जब आप सिर्फ एक ध्वनि, एक मंत्र या किसी और चीज़ का लगातार उच्चारण करते हैं, तो उसे भी ध्यान कहा जाता है। अगर आप मानसिक रूप से अपने आसपास हो रही चीज़ों के प्रति या अपनी शारीरिक व्यवस्था में हो रही चीज़ों के प्रति सजग हैं तो उसे भी ध्यान की संज्ञा दी जाती है।शाम्भवी इनमें से किसी भी प्रकार में

नहीं आती। इसीलिये इसे ‘महामुद्रा’ या ‘क्रिया’ कहते हैं।

2-मुद्रा शब्द का शाब्दिक अर्थ है - बंद करना। आप कुछ बंद कर देते हैं। पहले के किसी भी समय की तुलना में, आजकल के समय में ऊर्जा का खर्च होना सबसे बड़ी समस्या है। इसका कारण यह है कि मानवता के इतिहास के पहले के किसी भी समय की तुलना में, आज के समय में मनुष्य की संवेदनाओं से जुड़ा सिस्टम कहीं ज्यादा उत्तेजित रहता है। उदाहरण के लिये, अब हम सारी रात तेज़ रोशनी में बैठ सकते हैं। आप की आंखों की व्यवस्था इसके लिये तैयार नहीं की गयी है।वे इस तरह से बनीं हैं कि उन्हें बारह घंटे प्रकाश मिले और बारह घंटे अंधकार या एकदम हल्का प्रकाश। तो अब आपकी आंखों को पागलों की तरह काम करना पड़ता है । 3-पुराने ज़माने में आपको कोई बड़ी आवाज़ तभी सुनाई देती थी जब कोई शेर दहाड़ता था, या हाथी चिंघाड़ता था या ऐसी ही कोई अन्य, उत्तेजित करने वाली आवाज़ की जाती थी, अन्यथा सब जगह शांति रहती थी। आजकल हर समय भयानक शोरगुल रहता है और आप के कान इस अत्यधिक बोझ को सहन करते रहते हैं।तो इस तरह से अपनी इंद्रियों के द्वारा

आप जितना कुछ ग्रहण कर रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं था। जब इन्द्रियाँ इस स्तर पर काम कर रहीं हैं, तो अगर आप बैठ कर ॐ या राम कहते हैं तो ये बस बहुत तेज़ी से, अंतहीन रूप से दोहराना ही हो जायेगा। तो जब तक मनुष्य अपने भीतर एक शक्तिशाली प्रक्रिया न कर रहा हो, वो आज के समय में बिना दिन में सपने देखे आंखें बंद करके बैठ ही नहीं सकता। 4-जब भी आप किसी चीज़ पर ध्यान देते हैं तो आप की ऊर्जा खर्च होती है। अगर प्रकाश की एक किरण आप की ओर आती है तो आप इसे देख सकें, इसके लिये आप की ऊर्जा खर्च होती है। जब कोई आवाज़ आप की ओर आती है तो उसे सुनने में आप की ऊर्जा लगती है।ये महामुद्रा एक सील की तरह है। जैसे ही आप ताला लगा कर सील कर देते हैं तो आप की उर्जायें बाहर जाने की बजाय अपने आप को एक अलग ही दिशा में घुमा देती हैं। अब बात बन जाती है, जो होना चाहिये ...वो होता है।

5-शायद ही कोई अन्य क्रिया लोगों को पहले ही दिन इस तरह ऊपर उठा देती है, जैसा शाम्भवी महामुद्रा करती है। इसका कारण ये है कि यदि आप महामुद्रा सही ढंग से लगाते हैं तो आप की अपनी उर्जायें एक ऐसी दिशा में घूम जाती हैं जिसमें वे अपने आप कभी नहीं घूमतीं। अन्यथा आप की इंद्रियों को लगातार मिलने वाले संदेशों के कारण आप की ऊर्जाओं का खर्च ही होता रहता है। ये वैसा ही है कि जब आप किसी चीज़ को लगातार देखते रहते हैं तो कुछ समय बाद आप थक जाते हैं। सिर्फ आप की आँखें ही नहीं थकतीं, आप भी थक जाते

हैं। 6-शाम्भवी पर बहुत सा वैज्ञानिक शोधकार्य हो रहा है। वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि जो लोग शाम्भवी क्रिया करते हैं उनकी कार्टिसोल ( तनाव को कम करने वाले हार्मोन्स) को सक्रिय करने की क्षमता काफी ज्यादा होती है। बीडीएनएफ, ज्ञान तंतुओं को सुदृढ़ करने वाला तत्व जो मस्तिष्क द्वारा उत्पन्न किया जाता है, वह भी बढ़ता है।कोर्टिसोल को जागृत करने की

क्रिया जागरूकता के अलग-अलग स्तरों को निश्चित करती है। आत्मज्ञान प्राप्ति को भी जागरूक होना कहते हैं।अगर आप कम से कम 90 दिन से शाम्भवी क्रिया कर रहे हैं, तो सुबह उठने के 30 मिनट बाद आप की कोर्टिसोल को जागृत करने की क्षमता किसी सामान्य व्यक्ति की तुलना में कई गुना ज्यादा होगी। 7-नियमित रूप से शाम्भवी क्रिया करने से आप के शरीर में सूजन को कम करने वाले तत्व भी बहुत बढ़ते हैं। और आप का डीएनए बताता है कि 90 दिन तक क्रिया करने के बाद, कोशिकाओं के स्तर पर आप 6.4 वर्ष छोटे हो जाते हैं। जिम्मेदार वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है और इन सब बातों से भी अधिक सुंदर बात ये है कि आप की शांति कई गुना बढ़ जाती है जब कि आप का मस्तिष्क एकदम सक्रिय रहता है। ये शाम्भवी का सबसे अलग आयाम है।

8-अमेरिका में जो भी अध्ययन किये गये हैं, वे अधिकतर बौद्ध ध्यान प्रक्रियाओं के बारे में हैं, योग के अन्य आयामों के बारे में नहीं। बौद्ध ध्यान प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण भाग ये है कि उनसे लोग शांतिपूर्ण, आनंददायक हो जाते हैं पर साथ ही उनके मस्तिष्क की सक्रियता भी कम हो जाती है। शाम्भवी के बारे में जो महत्वपूर्ण बात है, वो ये है कि लोग शांतिपूर्ण, आनंददायक तो हो ही जाते हैं पर साथ ही उनके मस्तिष्क की सक्रियता भी बढ़ जाती है।

9- आध्यात्मिकता के नाम पर लोग सामान्य रूप से, बस बैठ कर राम-राम या कोई अन्य मंत्र जपते रहते हैं। आप अगर सिर्फ 'लललल ' को भी बार-बार जपते रहें तो भी आप शांतिपूर्ण हो जायेंगे। यह बस एक लोरी की तरह है। अगर कोई दूसरा आप के लिये नहीं गा रहा है तो आप स्वयं अपने लिये गा सकते हैं। ये आप के लिये सहायक होगा।बहुत से लोग

अपने आपको बार-बार कुछ कहते रहते हैं। फिर ये चाहे कोई तथाकथित पवित्र ध्वनि हो या कोई भी ऊटपटांग शब्द हो, अगर आप इसे बार-बार दोहराते रहेंगे तो आप में कुछ सुस्ती आयेगी ही। इस सुस्ती को अक्सर लोग गलती से शांति समझ लेते हैं।

10-अभी आप के साथ केवल एक ही समस्या है, और वह है आप के मस्तिष्क की सक्रियता। अगर आप में से दिमाग़ी गतिविधि को निकाल दिया जाये तो आप एकदम शांत और अद्भुत हो जायेंगे, लेकिन साथ ही साथ किसी भी संभावना से रहित भी हो जायेंगे।परन्तु आपका मस्तिष्क कार्यरत होना ही चाहिये।मूल रूप से मनुष्य की समस्या बस ये है कि वह अपनी संभावनाओं को समस्याओं के रूप में देखता है। अगर आप संभावना को हटा दें, यदि आप का आधा मस्तिष्क ले लिया जाये तो समस्या भी समाप्त हो जाएगी। तो संभावनाओं को बढ़ाना और फिर भी कोई समस्या न होने देना, यही विशेषता है शाम्भवी महामुद्रा की।

शाम्भवी मुद्रा की प्रथम विधि;-

05 FACTS;-

1-शाम्भवी मुद्रा को शिव मुद्रा या भैरवी मुद्रा भी कहते है। यदि आपने त्राटक किया है या आप त्राटक के बारे में जानते हैं तो आप इस मुद्रा को कर सकते हैं। इसके लिए किसी शांत जगह में सिद्धासन,सुखासन या पद्मासन में बैठे या ऐसा आसन जिस मे घंटों तक शरीर में हलचल न हो या पीड़ा महसूस न हो और अपनी पीठ सीधी रखे अपने कंधे और हाथ को ढीले रख ,हाथ ज्ञान मुद्रा में रखे ।तत् पश्चात् बाह्य तर्क-वितर्कों या विचारों से जितना हो सके उतना मुक्त होकर, रीढ़-गर्दन सीधी रखते हुए,पलकों को बिना झपकाएं ,आँखें दोनों भ्रमर के मध्य प्रदेश में अर्थात् योग की परिभाषा में आज्ञाचक्र में स्थिर एकाग्र करनी चाहिए ।दिमाग बिल्कुल भीतर कहीं लगा हो।आँखें अर्ध खुली रहे ।

2- शाम्भवी मुद्रा ज्यादा कठिन नहीं है इसे करते वक्त आपको अपनी EYEBROWS पर फोकस करना है|जब आप अपनी आँखों से आइब्रोस को देखते है तो आपको कुछ और नहीं दिखाई देता है|इसके करने के लिए अपनी दोनों EYEBALLS को ऊपर की ओर ले जाये| और जहाँ आपके दोनों आईब्रो की शुरुवात होती है वहाँ देखे|जब आप ऐसा कर पाएंगे तो आपको एक कर्व लाइन दिखेंगी जो बीच में जाकर दिखेंगी|

3-इस स्थिति में जितने देर आप अपनी आँखों को रख सकते है रख ले|

शुरुवात में इसे करते वक्त कुछ ही देर में आपकी आँखे थक जाएँगी और दुखने लगेगी|ऐसा होने पर कुछ देर के लिए रिलैक्स करे, फिर वापिस से अपनी आँखों को सामान्य अवस्था में ले आये|

4-इसका नियमित अभ्यास करने पर आपको धीरे धीरे इसे करने की आदत पढ़ जाएगी|शाम्भवी मुद्रा करते वक्त अपनी साँसों का आवागमन सामान्य रखे|जब आप ध्यान के तकनीक के साथ आगे बढ़ेंगे आपकी सांस धीमी और अधिक सूक्ष्म हो जायेगी|

5-जिस तरह से बाहरी कल्याण या सुख पाने के लिए खास तरह का विज्ञान और तकनीक होती है, उसी तरह से आंतरिक कल्याण व खुशी पैदा करने के लिए भी विज्ञान और तकनीक का पूरा तंत्र मौजूद है।शाम्भवी मुद्रा आपको ध्यान की गहरी स्थिति में ले जा सकती है| आप जीवन से इस तरह गुजर सकते हैं कि यह आपको छू भी नहीं सकता, आप जीवन के साथ जैसे चाहें वैसे खेल सकते हैं और फिर भी यह जीवन आपके ऊपर कोई निशान नहीं छोड़ता। यही वह चमत्कार है।

शाम्भवी मुद्रा की द्वितीय विधि;-

05 FACTS;

इस मुद्रा के तीन Steps है..

1-ध्यान के आसन में बैठें और अपनी पीठ सीधी रखें.आपके कंधे और हाथ बिलकुल ढीली अवस्था में होने चाहिए।इसके बाद हाथों को घुटनों पर चिंनमुद्रा, ज्ञान मुद्रा या फिर योग मुद्रा में रखें।

2-आप सामने की ओर किसी एक बिंदु पर दृष्टि एकाग्र करें है। अपने विचारों को भी नियंत्रित करने की कोशिश करें... इस बीच कुछ न सोचें । आप किसी माध्यम का भी चुनाव कर सकते है। ध्यान रखे कि आप जिस माध्यम पर त्राटक कर रहे है वो आपकी आँखों के सामने नहीं बल्कि आँखों के ऊपर हो ।इससे सहज ही third eye में ध्यान लगने लगता है।

3-इसके कुछ देर बाद आपको अपनी कल्पना के जरिये अपने माध्यम को बदलना है।खुली आँखों से,अपने सामने उस माध्यम (इष्टदेव) की कल्पना करनी है जिसे आप ज्यादा देर तक रख सके।ध्यान रखिए आपका सिर स्थिर रहे।

NOTE;-

इस आसन को शुरुआती दिनों में 10 मिनट तक करें.धीरे-धीरे समय सीमा भी बढ़ाते रहें।इसे आप अधिकतम 30 मिनट कर सकते हैं।20 से 25 मिनट के नियमित अभ्यास से आपके अन्दर ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता बढती है|

NOTE;-

इसका विस्तृत वर्णन अमनस्कयोग ,शिवसहिता और हठयोग प्रदीपिका में मिलेगा ।यह मुद्रा प्रारम्भ में कुछ मिनिट के लिए शुरू करे फिर धीरे धीरे समय को बढ़ाये, ध्यान रहे यह अभ्यास इतनी न करे की सर दर्द हो , इससे आज्ञाचक्र जागृत होता है और साधक त्रिकालज्ञ बनता है भूत ,वर्तमान ,भविष्य की बाते सहज ही जान सकता है।

शांभवी योग मुद्रा सिध्दासन :-

04 FACTS;- 1-इस मुद्रा में कुण्डलिनी अवश्य जागृत होगी व तुम्हें अपने स्वयं दिव्य प्रकाश का अनुभव होगा । सीधे पैर को खूब दबा कर योनि तथा गुदा की सीवन के बीच में ऐड़ी रखे ।फिर योनि स्थान के ऊपर दूसरे पैर की ऐड़ी रखे । फिर काया शिर तथा ग्रीवा को सम करके शरीर को तोल दो। ब्राह्य इन्द्रियो को बन्द करके ठूठ के समान निश्चल हो जाओं स्थिर दृष्टि से अर्धनेत्र खुले निश्चल रहो। यह शांभवी मुद्रा सिध्दासन है। 2-अन्तरमुख मन से हृदय में ''शिव सिध्द शरण'' सात बार बोले व सात बार मन ही से सुनो, वृति को हृदय में स्फुरण से एककर ..सोऽहम का चिन्तन करे; और फिर निश्चल संकल्प, विकल्प से रहित स्थित अर्ध नेत्र खुले रहे; इस तरह से शांभवी मुद्रा में बैठे रहो। 3-इस प्रकार के सतत चिन्तन अभ्यास से मुलाधार में ब्रह्म रन्ध्र तक सातों चक्र रूपी कपाट स्वत: ही खुल जाते है । जिससे प्रथम अपने आप में परिजातक गहरी सुगन्ध प्रकट होती है। फिर स्वयं का दिव्य प्रकाश पुंज अपने अन्दर प्रकट होकर सम्पूर्ण देह में व्याप्त हो जाता है; और फिर अन्दर-बाहर एक सा दिव्य प्रकाश ही प्रकाश अनुभूत होता है। यह जीव ब्रह्मलोक रूपी शिव शक्ति समायोग नामक मोक्ष है, इसके प्रभाव से जीवन मुक्ति रूप स्वाभाविक अवस्था स्वत: ही प्राप्त होती है।इस मुद्रा को शुरुआत में जितनी देर हो सके करें और बाद में धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते जाएं।

4-उच्च कोटि के प्रयोगशील साधक यदि शांभवी मुद्रा का आधार लेकर दोनों भ्रमर के मध्य प्रदेश में दृष्टि को स्थिर-एकाग्र करके ध्यान या जप करेंगे तो इससे उनको किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा लेकिन अन्य सर्वसाधारण साधकों की दृष्टि से सोचा जाए तो कह सकते हैं कि उनके लिए जप या ध्यान करते समय शांभवी मुद्रा करना उचित न होगा । उनके लिए तो आँखे बन्द करके जप या ध्यान के अभ्यास का विधिपूर्वक अभ्यास करना उचित होगा । उससे उनका मन आसानी से स्थिर या एकाग्र हो जाएगा ।सिर्फ मुद्रा का अभ्यास करना चाहे तो उसका अभ्यास कर सकते हैं ।

प्राण, संतुलन व स्वास्थ्य का महत्व;-

06 FACTS;-

1-आप जीवन में, आपका मन, आपका शरीर और आपका पूरा तंत्र कैसे काम करेगा, यह आपके प्राण या जीवन ऊर्जा से तय होता है। प्राण एक बुद्धिमान ऊर्जा है। चुंकि प्राण पर हर व्यक्ति की कार्मिक याद्दाश्त छपी होती है, इसलिए यह हर इंसान के लिए अलग तरह से काम करता है। इसके उल्टा, बिजली में कोई बुद्धि नहीं होती, इसलिए यह बल्ब जला सकती है, कैमरा चला सकती है और लाखों काम कर सकती है, यह इसकी समझदारी की वजह से नहीं होता, बल्कि यह उस यंत्र की वजह से होता है, जिसे यह चला रही है।

2-शरीर में प्राण के पाँच रूप हैं, जिन्हें पंच वायु कहते हैं। इनमें हैं - प्राण वायु, समान वायु, उदान वायु, अपान वायु, व्यान वायु। ये मानव-तंत्र के विभिन्न पहलू हैं।यौगिक अभ्यासों की मदद से, आप पंच वायु की डोर अपने हाथ में ले सकते हैं। अगर आपने इन पर महारत हासिल कर ली तो आप अधिकतर रोगों से मुक्त हो जाएंगे - खासकर मानसिक रोगों से अपना बचाव कर सकेंगे।आज संसार को इसकी सबसे अधिक जरूरत है।

3-अगर हमने अभी ध्यान न दिया तो आने वाले पचास सालों के अंदर हमारे पास बहुत अधिक लोग ऐसे होंगे जो मानसिक असंतुलन का शिकार होंगे। यह सब हमारी आधुनिक जीवनशैली की देन है। हम बहुत ही गलत तरीके से जीवन के कई आयामों को संभाल रहे हैं। अगर आप अपने प्राणों की जिम्मदारी लेते हैं तो बाहरी हालात चाहे जो भी हों, आप मनोवैज्ञानिक तौर पर संतुलित रहेंगे। अभी भी, बहुत सारे लोग मनोवैज्ञानिक स्तर पर असंतुलन के शिकार हैं, हालांकि उनका अभी मेडिकल डायग्नोसिस नहीं हुआ है।

4-हर रोज, लोगों का मन उन्हें निराश होने, तनाव में जाने या रोने के लिए विवश कर देता है। यह उनके लिए दुख पैदा कर रहा है।मान लीजिए आपका हाथ बेकाबू हो कर आपको नोचने लगे या चोट पहुँचाए - तो यह बिबीमारी है। इस समय लोगों का मन उनके साथ यही कर रहा है। यह भी एक रोग है पर समाज ने इसे रोग नहीं मानता। मनुष्य के रोजमर्रा से जुडे़ हर दुख का मूल मन में ही है। रोग हमारे भीतर आ चुका है, और दिन-ब-दिन बढ़ रहा है क्योंकि हमारे आसपास सामाजिक ढांचे, तकनीक और कई दूसरी चीजें ऐसी ही हैं।

5-जो अपने प्राणों पर महारत पा लेता है, वह सौ फीसदी अपने मानसिक संतुलन को भी बनाए रख सकता है। इस तरह आप खुद को कई तरह के शारीरिक रोगों से भी बचा सकते हैं। हालांकि आजकल के माहौल में होने वाले संक्रमण और जहरीले रसायनों से होने वाले खतरे तब भी बने रहेंगे। वायु, जल और भोजन के जरिए शरीर में जाने वाले तत्वों पर हम पूरी तरह से काबू नहीं पा सकते, भले ही हम कितने भी सावधान क्यों न रहें। लेकिन इनका असर हर व्यक्ति के लिए अलग होता है।

6-बाहरी कारणों की वजह से शारीरिक सेहत की सौ प्रतिशत गारंटी नहीं दी जा सकती, लेकिन अगर प्राणों को अपने वश में कर लें तो मानसिक सेहत की सौ प्रतिशत गारंटी है। अगर आप मानसिक तौर पर स्वस्थ होंगे तो थोड़े-बहुत शारीरिक मसलों से आपको कोई हानि नहीं होगी। अक्सर किसी शारीरिक परेशानी की स्थिति में, उस शारीरिक कष्ट से ज्यादा परेशानी, उसकी वजह से मन में उपजी प्रतिक्रिया से होती है। प्राण आपके साथ कैसे काम करते हैं, वे बाकी ब्रह्माण्ड के साथ कैसे काम करते हैं, वे किसी नवजात के शरीर में कैसे प्रवेश करते हैं, मरने वाले के शरीर को कैसे छोड़ते हैं - इन सब बातों को देखकर पता चलता है कि उनके पास अपनी एक समझ है।

NOTE;-

1-इसी प्रकार षट्मुखी भूचरी, ताड़गी, माण्डवी वैश्वानरी, वायवी, काकी, भुजंगनी आदि अनेक योग-मुद्राएं हैं जिनके द्वारा नाना प्रकार की शक्तियां प्राप्त की जा सकती हैं।

2-इस प्रकार हम देखते हैं कि मुद्राओं में शारीरिक मानसिक और आत्मिक तीनों प्रकार के अभ्यासों को ऐसा समन्वय किया गया है कि मनुष्य भीतरी शारीरिक शक्तियाँ, मानसिक जाग्रत हो जाती हैं और वह ऊँचें दर्जे के आत्मिक अभ्यास के योग्य हो जाता है पर का बात एक ध्यान रखना परमावश्यक है और वह यह कि मुद्राओं का अभ्यास किसी से सुन कर या पढ़ कर सही करना चाहिए, वरन् योग्य गुरु से सीख कर ही उसका अभ्यास करना अनिवार्य है ।

....SHIVOHAM....


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