देव बूटी /पत्नी के श्राप से जन्मों तक रूठ गई लक्ष्मी मां/शरीर छोड़ चुके संत का गुरु जी से सम्पर्क
देव बूटी एक पहाड़ी बूटी है. जो बद्रीनाथ और केदारनाथ के मध्य पहाड़़ी खाईयों में मिलती है. अक्सर वहां प्रमण करने वाले साधु संत इसे निकाल लाते हैं. क्योंकि वे इसे पहचानते हैं और इसके साधना महत्व को जानते हैं. पहाड़ी झाड़ियों से निकालकर इसे 11 घंटों के भीतर सुखा लिया जाता है. नाजुक होने के कारण उसके बाद बूटी सड़ने लगती है. सुखाने के बाद बूटी को 13 दिन के लिये ब्रह्मकमल के बीच रख दिया जाता है. जिससे ये स्वतः सिद्ध हो जाती है. ये बड़े आश्चर्य की बात है कि ब्रह्मकमल के सम्पर्क में देव बूटी स्वतः सिद्ध हो जाती है. ब्रह्मकमल केदारनाथ की घाटी में ऊंची पर्वत श्रंखला में मिलता है. वहां ये पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर बाहर आ जाता है. केदारनाथ धाम के पुजारी दुर्गम रास्तों से होते हुए भोर में इसे लेने जाते हैं. ये बहुत जहरीला होता है. धूप पड़ने पर इससे जहरीली सुगंध निकलती है. जिससे लोग बेहोश होकर मर सकते हैं. इस लिये केदारनाथ धाम के पुजारी सुबह तड़के ही ब्रह्मकमल लेने के लिये केदार धाम से भी ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर जाते हैं. वहां अक्सर उन पर पहाड़ी भालू हमला कर देते हैं. क्योंकि ब्रह्मकमल उनका भोजन है. ब्रह्मकमल को तोड़ने के समय पुजारी मुंह व नाक पर कपड़ा लपेटे रहते हैं. एेसा न करें. तो कमल से निकलने वाली सुगंध से वे बेहोश हो जाते हैं. निर्जन पहाड़ियों में उन्हें बचाने वाला कोई नही होता. बड़े आश्चर्य की बात है कि केदारनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाते ही ब्रह्मकमल का जहर बुझ जाता है. तब वो किसी को नुकसान नही करता. पुजारी इसे भक्तों को प्रसाद स्वरूप देते हैं. ब्रह्मकमल केदारनाथ भगवान पर चढ़ाया जाने वाला अनिवार्य पुष्प है. मान्यता है कि इसके बिना केदारनाथ की पूजा पूरी नही होता. भक्तों के लिये वहां के पुजारी भारी जोखिम उठाकर इन्हें एकत्र करते हैं. सूखे ब्रह्मकमल के साथ 13 दिन रखने से देव बूटी खुद सिद्ध हो जाती है. सिद्ध होने के बाद देव बूटी देवत्व साधना, अदृश्य साधना, वायु साधना, शून्य साधना, वायुगमन साधना सहित कई तरह की विलक्षण साधनाओं में यूज होती है. गुरू जी ने बताया कि देव बूटी में देव उर्जाओं को धरती की तरफ आकर्षित करके साधक तक पहुंचाने की अचम्भित करने वाली प्राकृतिक क्षमता होती है. इसे इंशानों और देवताओं के मध्य सम्पर्क स्थापित करने वाला शक्तिशाली यंत्र कहा जाये तो सटीक होगा। देव बूटी सामान्य बाजार में उपलब्ध नही है. क्योंकि साधनाओं के अतिरिक्त इसका कहीं उपयोग होने की जानकारी नहीं. हो सकता है किसी रूप में इसका कहीं औषधीय उपयोग होता हो, मगर हमें इसकी जानकारी नहीं. प्रायः पहाड़ों में विचरण करने वाले साधुओं के पास ये मिल जाती है. क्योंकि उच्च साधना के लालच में मिलने पर साधु इसे अपने पास रख ही लेते हैं. मगर इसके उपयोग की विधि न मालुम होने के कारण ज्यादातर साधु इसका सही उपयोग नही कर पाते. दरअसल साधना में उपयोग के लिये इसे साधक की उर्जा के साथ जोड़ना अनिवार्य होता है. इसे एेसे समझें जैसे सिम को एक्टिवेट न किया जाये तो वो मोबाइल में डालने पर भी काम नही करता. इस उदाहरण में देव बूटी को सिम और साधक को मोबाइल मानें. जिन साधुओं के पास ये सालों से रखी है वे मांगने पर इसे मुफ्त में ही दे देते हैं. जो इसे बेचने के लिये संग्रहीत करते हैं, वे मुंहमागी कीमत चाहते हैं. क्योंकि उनको इसका महत्व पता होता है. तांत्रित सामान बेचने वाले कुछ दुकानदार भी इसे रखते हैं. मगर कम मात्रा में क्योंकि खपत कम होने के कारण इसमें उनका पैसा फंसा पड़ा रहता है. खपत कम इसलिये क्योंकि खास लोग ही इसका उपयोग जानते हैं.
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साधना वृतांत शिवांशु जी के शब्दों में….11 गिरधर महाराज इस जन्म में सिद्ध संत बने. उनके पास रहने को ठीक झोपड़ी और खाने को दो समय का आनाज भी नही जुट पाता था. उनके साथ रहने वाले संत भी इसी हालत में थे. लक्ष्मी मइया उनसे रूठी थीं. क्योंकि पूर्व जन्म में उन्होंने अनजाने में पत्नी को बहुत अपमानित किया था. क्षुब्ध होकर उनकी पत्नी ने श्रापित कर दिया था. ये बात मुझे उनके पूर्व जन्म में जाकर पता चली. जोगी महराज मुझे समाधि के द्वारा गिरधर महराज के पास्ट में ले गये. ये गजब की सिद्धी थी. तब तक गुरुदेव ने मुझे समाधि में जाना नही सिखाया था. फिर भी मै समाधिस्थ हो गया. जब मै जोगी महराज के समक्ष आंखे बंद करके बैठा तो लगा जैसे मेरे सिर पर बोझ सा लाद दिया गया हो. पहले मैने सोचा था कि जोगी महराज मेरे आज्ञा चक्र को अपने नियंत्रण में लेकर पास्ट में ले जाएंगे. मगर ये क्रिया वैसी नही थी. ये तो मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को नियंत्रित करने जैसा था. मेरे सोचने समझने से पहले ही कब्जा हो चुका था. मै घोर अंधकार में लुढ़कता जा रहा था. जैसे किसी काली सुरंग में ढ़केल दिया गया हो. चाहकर भी सम्भल नही पा रहा था. सोचने समझने की शक्ति से परे था. बिल्कुल पराधीन.नही पता कितनी देर. जब चेतना का अहसास हुआ तब किसी और दुनिया में था. वो राजाओं का युग था. मै उस युग का हिस्सा नही था. सिर्फ वहां का दर्शक सा लगा. गिरधर जी मुझे वहां नजर आये. वे वहां के राजगुरू थे. बहुत ज्ञानी, बहुत तेजस्वी, बहुत सम्मानित, उच्च कोटि के साधक. उनके साथ शिष्यों का जमावड़ा. किसी बात पर पत्नी से तर्क हो रहा था. दोनो गुस्से में थे. कहते हैं गुस्सा ज्ञान को खा जाता है. यही मुझे उस वक्त भी नजर आया. तर्क ने सीमा लांघी. तो कुछ अपशब्ध हावी होने लगे. गिरधर जी की पत्नी सहम सी गईं. पर गिरधर जी न रुके. अपने शिष्यों के सामने ही कुछ एेसी बातें बोलीं जो मर्यादा के उलट थीं. उनकी पत्नी रोने लगीं. शब्दों से आहत पत्नी ने श्रापित किया. कहा हे मां लक्ष्मी यदि मै मन से इनका (गिरधर जी का) त्याग कर रही हूं, यदि मैने सच्चाई से आपको माना है तो आप भी इन्हें त्याग देना. एेसा कहकर वे भवन के भीतर चली गईं. वे मां लक्ष्मी की सच्ची साधक थीं. लक्ष्मी मां ने उनकी पुकार अपना ली. मगर अपने क्रोध के वश में हुए गिरधर जी ने पत्नी के श्राप पर ध्यान नही दिया. जिसका परिणाम पिछले दो जन्मों से भुगत रहे थे. उनके साथ धनहीनता का जीवन जी रहे संतों में से कुछ पूर्व जन्म के शिष्य ही थे. पिछले जन्म में गिरधर जी मजदूर थे. कड़ी मसक्कत के बाद भी वे भर पेट भोजन की व्यलस्था नही कर पाते थे. पूर्व की साधनाओं के प्रभाव से एक संत ने उन्हें शिष्य के रूप में अपना लिया. साधनायें सिखायीं. मगर वे सिद्धियां अर्जित कर पाते उससे पहले ही उनके गुरू ने शरीर छोड़ दिया. उनकी साधनायें अधूरी रह गईं. इस बार भी उनका जन्म बहुत गरीब परिवार में हुआ. पिछले जन्म की भक्ती-साधना भाव के प्रभाव से इस जन्म में 14 साल की उम्र में ही गुरू का साथ मिल गया. जब तक वे अपने गुरू के सानिग्ध में रहे तब तक तो ठीक था. मगर गुरू के शरीर छोड़ने के बाद वे दोबारा लक्ष्मी हीनता से ग्रसित हो गये. इस बीच वे कई सिद्धों के सम्पर्क में आ चुके थे. कुछ सिद्धियां भी अर्जित कीं. अपनी महागरीबी का कारण भी जान लिया. गिरधर महराज का पास्ट जानने के बाद भी मेरे दिमाग में सवाल बचे रह गये. जोगी महराज मेरी मनोदशा जान गये. उन्होंने कहा अब कुछ नये सवाल तुम्हें परेशान कर रहे होंगे.मैने हां में सिर हिला दिया.पूछो, उन्होंने अनुमति दी.जब गिरधर जी ने सिद्धियां अर्जित कर ली हैं तो भी वे श्राप मुक्त नही हो पाये, एेसा क्यों. मैने पूछा. पहली बात तो सिद्धियां अर्जित करना और श्राप मुक्त होना, दोनो अलग अलग विषय हैं. जोगी महराज ने बताया. साधना सिद्धियों से उन्होंने भगवान की नजदीकियां तो अर्जित कर लीं. मगर श्राप मोक्ष नही हुआ. तो क्या भगवान की नजदीकियां भी श्राप मुक्त नही कर सकतीं. मैने पूछा. ब्रह्मांड में संचालन और दंड के नियम लागू हैं. श्राप एक दंड है. जिसे भुगतना ही होता है. मगर भगवान दंड पाये भक्तों के लिये सरलता के रास्ते भी निकाल देते हैं. जोगी महराज ने कहा. जो गिरधर महराज का श्राप कैसे खत्म होगा. मैने पूछा. भगवान ने उनके लिये कोई सरल रास्ता क्यों नही निकाला. अगले जन्म में वे श्राप मुक्त हो जाएंगे. इसके लिये उनकी वही पत्नी पुनः उनके जीवन में आएंगी. वही श्राप मुक्त करेंगी. ये रास्ता बनाया है भगवान ने उनकी श्राप मुक्ति के लिये. जोगी महराज ने बताया. रही बात श्राप के कठिन दौर में सरलता से जीने की तो कुछ समय बाद उर्जा नायक (ये सम्बोधन उन्होंने गुरुवर के लिये किया था, गुरुदेव के अध्यात्मिक मित्र उन्हें उर्जा नायक कहकर पुकारते हैं) उन्हें लक्ष्मी सम्मोहन साधना कराने जा रहे हैं. जिससे बात बन जाएगी. इस जानकारी ने मुझे बहुत राहत दी. क्योंकि गुरुवर द्वारा कराई जाने वाली लक्ष्मी सम्मोहन साधना जन्मों से चली आ रही गरीबी को हटाने में सक्षम होती ही है. बाद में समय मिलने पर मैने गुरुवर से पूछा गिरधर जी आप लोगों से सीधा सहयोग क्यों नही लेते. क्योंकि एेसा करने से उनके प्रारब्ध बचे रह जाएंगे. गुरुदेव ने बताया. जिनके लिये दोबारा तकलीफों भरा जन्म जीना पड़ेगा. वे इसी जन्म में सारी सजा भुगत लेना चाहते हैं. क्योंकि अब उन्हें अपनी पुरानी गलतियों का अहसास है. मां लक्ष्मी ने उनकी पत्नी की बात को ही क्यों स्वीकारा. मैने गुरूदेव से श्राप फलित होने का कारण पूछा. गिरधर जी भी तो उस जन्म में उच्च साधक थे. उन पर दया क्यों नही दिखाई. पत्नी तो खुद ही लक्ष्मी होती है. गुरूदेव ने कहा. उसका श्राप और साथ अपने आपमें लक्ष्मी जैसा ही होता है. भगवती लक्ष्मी उसकी भावनाओं के विरुद्ध नही जातीं. यदि कोई पत्नी ही ठीक न हो. वह अकारण पति से झगड़े, ईगो का शिकार हो, गलत राह पर चल पड़े तो. मैने आज की सामाजिक स्थिति को देखते हुए पूछा. गिरधर जी की पत्नी एेसी नही थी. गुरुदेव ने बताया. दूसरी बात पत्नियों को प्यार से जीता जा सकता है. तीसरी बात कोई पत्नी अकारण गलत राह पर नही चल पड़ती. यदि किसी में एेसा दोष उत्पन्न हो तो ये प्रारब्ध के कारण ही होता है. क्या बिगड़ी हुई पत्नी के कारण भी एेसा श्राप लग सकता है. मैने पूछा. यदि उसके बिगड़ने के लिये रंच मात्र भी पति जिम्मेदार है तो जरूर लग सकता है. गुरुदेव बोले. अब पत्नी पुराण छोड़ो और जोगी जी के साथ जाने की तैयारी करो. वे तुम्हें स्वर्ण यक्षिणी की साधना कराएंगे. मगर ध्यान रखना ये साधना तुम स्वर्ण प्राप्ति के लिये करने नही जा रहे. बल्कि यक्षिणी को अपना अध्यात्मिक मित्र बनाने के लिये करोगे. इसलिये यदि साधना काल में देवी तुम्हारे समक्ष सशरीर न आयें. तो भी विचलित न होना. सिद्ध होने के बाद वे सदैव तुम्हारे साथ ही रहेंगी. सिद्ध होने के बाद मै तुम्हें उनसे देवदूतों की तरह काम लेने की विधि सिखाऊंगा. मै खुशी से झूम उठा. जोगी जी ने अभी तक अपने भी किसी शिष्य को ये सिद्धी नही कराई थी. उन्होंने मुझे चुना, इस बात की बड़ी खुशी थी. मै यक्षिणी को अपना मित्र बनाने की तैयारी में जुट गया. आगे मै आपको गुरुवर द्वारा कराई जाने वाली लक्ष्मी सम्मोहन साधना की जानकारी दूंगा. जिसे अपनाकर गिरधर महराज को राहत मिल गई. उनका श्राप पोस्टपोन सा हो गया. वैसे भी लक्ष्मी सम्मोहन करके लोग आर्थिक संकट से बाहर आ ही जाते हैं. क्रमश…
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गुरू जी इस साल की अपनी हिमालय साधना का पहला चरण पूरा करके वापस आ गये हैं. दूसरे चरण की उनकी हिमालय साधना अक्टूबर में सम्भावित है. हम बात कर रहे हैं सिद्ध शिव साधक, सिद्धों के उर्जा नायक और विश्व विख्यात एनर्जी गुरू राकेश आचार्या जी की दिव्य हिमालय साधना की. साधना से वापस आने पर मैने उनसे साधना वृतांत बताने का आग्रह किया. कई दिनों की व्यस्तता के बाद उन्होंने मुझे वृतांत सुनाना शुरू किया. यहां मै उनका वृतांत उन्हीं के शब्दों में शेयर करुंगी. ताकि उच्च साधकों का मंथन बढ़ें. नये साधकों को प्रेरणा मिले. अध्यात्म के अछूते वैज्ञानिक पहलुओं का रहस्योद्घाटन हो. वृतांत शुरू करने से पहले मै कहना चाहुंगी कि जो साधक हैं, जो अध्यात्म के जानकार हैं और उसकी गहराईयों से परिचित हैं. उन्हें सच समझते देर न लगेगी. मगर सब कुछ समझ पाना सबके वश की बात नही. इसलिये जिन्हें लगे कि वृतांत उन्हें कल्पना की दुनिया में ले जा रहा है, वे इसे कहानी के रूप में ही देखें. क्योंकि साधना और सिद्धियों के बीच की सच्चाई वे नही समझ सकते जो उस दुनिया के नजदीक से नही गुजरे.
गतांक से आगे... वैसे तो गुरू जी को पिछली बार की तरह जुलाई में ही हिमालय साधना के लिये जाना था. मगर अपने कुछ अदृश्य अध्यात्मिक मित्रों की सलाह पर उन्होंने एक माह पहले हिमालय साधना शुरू की. गुरु जी इन दिनों उर्जा पुराण रचने के लिये अनुसंधान कर रहे हैं. जिसमें उनके कई अध्यात्मिक मित्रों का समूह सहयोग कर रहा है. समूह में कुछ अदृश्य मित्र भी हैं. उनमें शरीर छोड़ चुके गुरु जी के छोटे भाई महाराज जी भी शामिल हैं. वे सिद्ध संत थे. नाम था सीताशरण दास. छोटी उम्र में ही सन्यास ग्रहण कर लिया था. बात 1989 की है. उन दिनों गुरू जी प्रिंट मीडिया में जाने माने रिपोर्टर थे. सन्यास ग्रहण करने वाले उनके भाई ठाकुर राजेश सिंह को संत समाज के गुरू से सीताशरण दास नाम मिला. छोटी उम्र में ही उन्हें महंत के पद पर आसीन किया गया. कालातंर में वे हनुमान जी के सिद्ध साधक बने. उन्होंने उच्च सिद्धियां अर्जित कीं.
उनके भक्त उन्हें हनुमान जी का अवतार कहते थे. उनके अनुयाई उन्हें महराज जी कहकर पुकारते थे. अनुयाइओं की संख्या बहुत बड़ी थी. महराज जी के नाम पर आज भी उनके भक्त मनौती मानकर उसका फल प्राप्त कर लेते हैं. महराज जी ने मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ के पास गुरुकुल आश्रम की स्थापना की. वहां क्षेत्र के गरीब बच्चों की पढ़ाई के साथ ही सन्यास धारण करने वाले संतों के साधना प्रशिक्षण की भी व्यवस्था थी. उनके गुरुकुल में रहकर दर्जनों संत साधनायें किया करते थे. उन दिनों मध्य प्रदेश का ये क्षेत्र डाकू प्रभावित था. वहां कई ईमानी डाकू गिरोह थे. लूटपाट के दौरान डाकू दहशत फैलाने के लिये लोगों को पीटकर उनकी जान भी ले लेते थे. एक रात डाकू गिरोह ने आश्रम में हमला किया. उस समय सीताशरण दास जी पुराने पीपल के पेड़ के नीचे बनी अंडरग्राउंड गुफा में साधना कर रहे थे. डकैतों ने साधु संतों के साथ मारपीट शुरू कर दी. संतों की चीख पुकार सुनकर महराज जी गुफा से बाहर निकल आये. उन्हें पता था कि ये जानलेवा हो सकता है. वे ये भी जानते थे कि भूमिगत गुफा में वे सुरक्षित हैं. मगर उन्हें आशंका थी कि डाकू साधुओं को पीट पीटकर मार डालेंगे. उन्हें बचाने के लिये ललकारते हुए गुफा से बाहर आ गये. उनकी ललकार सुनकर डाकू गिरोह उनकी तरफ मुड़ गया. गुफा के मुहाने पर ही डाकुओं से उनका मुकाबला हो गया. मुकाबले के दौरान उनका पैर फिसल गया. वे गुफा की सीढ़ियों पर गिर गये. सिर में गहरी चोट लगी. वे अचेत हो गये. अंदरूनी चोट ने प्राण हर लिये. उनके बलिदान ने संतों और शिष्यों को बचा लिया. डाकू आश्रम छोड़कर भाग गये. कालांतर में सीताशरण दास जी की अदृश्य चेतना ने गुरू जी से सम्पर्क किया. उनसे अपने कई अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये कहा. उसी प्रेरणा के तहत गुरुजी ने पत्रकारिता के ग्लैमर को छोड़कर अध्यात्म की दुनिया को अपनाया. अब महराज जी हिमालय की शंगरी ला घाटी की रहस्यभरी अदृश्य दुनिया से जुड़े हैं. वे अदृश्य अध्यात्मिक रिश्ते के रूप में आज भी गुरू जी का साथ देते हैं. ब्रह्मांड के रहस्यों की जानकारी देते हैं. उर्जा विज्ञान के अनुसंधान में उनकी मदद करते हैं. लोगों के लिये समस्या समाधान में गुरु जी का सहयोग करते हैं. जरूरत पड़ने पर शरीर छोड़ चुके सिद्धों से उनका सम्पर्क कराते हैं. इसके साथ ही महराज जी के साथ साधनायें करने वाले दर्जनों संत भी उनकी प्रेरणा से गुरू जी के सम्पर्क में हैं. उन संतों ने उच्च सिद्धियां अर्जित की हैं. वे देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहकर जनकल्याण कर रहे हैं. जनकल्याण के उद्देश्य में वे गुरु जी के सम्पर्क में रहते हैं. वे सब सिद्ध संत गुरु जी को उर्जा नायक कहकर सम्बोधित करते हैं. इस बार महराजजी के सुझाव पर ही गुरु जी ने हिमालय साधना की तिथि बदली. इस बार वे हिमालय साधना के लिये जुलाई की बजाय 15 जून को निकले.