top of page

Recent Posts

Archive

Tags

देवदोष निवारण/न झुकने की प्रवृत्ति घुटनों को खराब करती है/अंक संजीवनी विद्या

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Feb 10, 2019
  • 4 min read

देवदोष से मुक्ति;-

माता-पिता का अनादर, गुरू के प्रति दुर्भावना, बार बार ईष्ट बदलने, गैर जरूरी मूर्ति स्थापना, खंडित मंत्र जप, अधूरी साधनायें, पूजा पाठ के समय क्रोध, धार्मिक लोगों की आलोचना, पूजा पाठ में लगे व्यक्ति को डिस्टर्ब करने, प्रसाद का अनादर, मूर्तियां तोड़ने, हरे पेड़ काटने, नदियों- जलाशयों को गंदा करने, देवी देवताओं का तिरस्कार देवदोष उत्पन्न करता है. एेसी समस्यायें जिनका कारण समझ में न आये. काम अचानक बिगड़ने लगें, सोचे हुए काम परिणाम तक न पहुंच सकें, आर्थिक समस्या बार बार वापस आये, अकारण बीमारी परेशान करें, समृ्द्धि भंग होती रहे, एकाएक मित्र छूटने लगें, जीवन साथी का व्यवहार दुखदायी बन जाये, राजदंड का भय उत्पन्न हो तो देवदोष पर विचार जरूर कर लेना चाहिये. देवदोष बड़ा ही कष्टकारी होता है. एेसे समझें कि जब बचाने वाले ही मारने लग जायें तो मारकता भयानक हो जाती है. एेसा ही देवदोष से होता है. इससे मुक्त हुए बिना जीवन को आगे बढा पाना असम्भव सा होता है. सबसे गम्भीर बात ये है कि देवदोष कई जन्मों तक पीछा करता है. जिसका प्रभाव विभिन्न ऋणों के रूप में जन्मकुडंली में स्पष्ट देखा जा सकता है. शिव गुरू से देवदोष मुक्ति का आग्रह करके शिवशिष्य जन्म जनमान्तर से पीछे लगे देवदोष से मुक्ति पाकर जीवन को उज्जवल बना ही लेते हैं. विधान मै आगे दे रहा हूं. ध्यान से पढ़ें और अपनायें.

विधान… आंखें बंद करके पूर्व मुख हो आराम से बैठ जायें. शिव गुरू से मन में विराजमान होने का आग्रह करें. कहें- हे देवों के देव महादेव मेरे मन को सुखमय शिवाश्रम बनाकर माता महेश्वरी भगवान गणेश जी सहित सपरिवार मेरे मन मंदिर में विराजमान हों. आनंदित हों. मेरे जीवन में सुखों की स्थापना करें. फिर एकाग्रचित्त मन से 10 मिनट तक देवासुर गुरुर्देव देवासुर महेश्वरः देवासुर महामित्रः देवदेवात्म सम्भवः मंत्र का जप करें. उसके बाद शिवगुरू से देवदोष मुक्ति का आग्रह करें. कहें- हे शिव आप मेरे गुरू हैं मै आपका शिष्य हूं, मुझे शिष्य पर दया करें. जाने अनजाने मुझसे त्रुटि वश हुए अपराधों के कारण मेरे जीवन में देवदोष लग गया है. देवदोष समाप्त करके मेरे जीवन को निर्विघ्न करने हेतु मेरे सौभाग्य चक्र में देवशक्तियों की स्थापना करें. आग्रह को तीन बार दोहरायें. फिर शिव गुरू को, देवमित्रों को, संजीवनी शक्ति को, अपने सौभाग्य चक्र को, धरती माता को और विधान से परिचित कराने के लिये मुझे धन्यवाद दें. ध्यान रहे अध्यात्मिक ज्ञान से परिचित कराने वालों को धन्यवाद न देने अर्थात् उनकी अनदेखी करने से भी देवदोष उत्पन्न होता. सबका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है

;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

घुटनो के दर्द से आज बहुत लोग परेशान है | कुछ लोगो के तो घुटने बदलने तक की नोबत आ जाती है, ऐसे लोग चलने के लिए भी तरसते है | आज गुरूजी ने घुटने खराब होने का कारण बताया | जिनके घुटने खराब है, वे अपना परिक्षण कर ले |

गुरूजी का मैसेज.... न झुकने की प्रवृत्ति घुटनों को खराब करती है. प्राकृतिक रूप से घुटने झुकने के लिये ही बने हैं. घुटने नही पहचानते हैं कि क्या बुरा है, क्या भला. बस उन्हें मतलब है घुकने की क्रिया है. जब कोई अपनी बातों पर अड़ा रहता है तो घुटनों की इंद्रियां भ्रमित हो जाती हैं. वे अकड़े हुए स्वभाव से अकड़न की कमांड ले लेती हैं. जिससे रुखापन पैदा होता है. रुखापन घुटनों के लुब्रीकेंट को सुखाने लगता है. तरलता की कमी घुटनों के लेगामेंट में रुखापन और खिचाव पैदा करता है. जिससे वे कमजोर हो जाते हैं. लेगामेंट के कमजोर होने से घुटनों की हड्डियां आपस में घिसने लगती हैं. जिससे असहनीय पीड़ा होती है. हडि्डयां घिसते घिसते इतनी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं कि घुटने लगभग काम करना बंद कर देते हैं. तब घुटने बदलने पड़ते हैं. विशेष रूप से जो लोग शिक्षक होते हैं या विचारक, विद्वान होते हैं. उनमें इस बीमारी की आशंका अधिक होती है. क्योंकि जाने अनजाने उन्हें लगता है कि वे जो कह रहे हैं वही सही है. वे अक्सर अपनी बात पर अड़ जाते हैं. हो सकता है वे सही हों. मगर घुटनों को अड़ जाना रास नही आता. एेसा व्यक्ति यदि किसी स्तर का प्रभावशाली हुआ तो प्रायः उसके हिस्से के काम दूसरे लोग कर दिया करते हैं. एेसे में कई बार लोग अपना काम दूसरों से कराने भी लगते हैं. जैसे कई शिक्षक अपने हिस्से की परीक्षा की कापियां दूसरों से जंचवाने लगते हैं. घुटनों में बोझ उठाने की भी प्रकृतिक प्रवृत्ति होती है. वे जीवन भर शरीर का बोझ उठाने को तत्पर रहते हैं. एेसे में अपने काम का बोझ दूसरों पर डालने से घुटनों को अन्यथा संदेश मिलता है. वे शरीर का बोझ उठाने की क्षमता को शिथिल करने लगते हैं. अनायास कमांड ले लेते हैं कि अपना बोझ उठाने की जरूरत नही, उसे तो दूसरे लोग ही उठा लेंगे. *जिस व्यक्ति के आचरण में उक्त दोनो बातें उतर गईं, उनके घुटने खराब होने से कोई नही रोक सकता*. सो कोई भी इसके लिये भगवान को बददुआएं न दे. सिर्फ खुद का परीक्षण करें.

;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

1 से 9 तक के अंकों में प्रतिदिन कोई एक अंक हमारी एनर्जी से मैच करता है. उसे संजीवनी अंक कहा जाता है. यदि पता लगाकर संजीवनी अंक को अपने साथ रखा जाये तो वह अंक ब्रह्मांड से प्राण उर्जा को ग्रहण करके दिन भर आभामंडल और उर्जा चक्रों की हीलिंग करता रहता है. आभामंडल उर्जा चक्रों की हीलिंग से मन खुश होता है कांफीडेंस बढ़ता है व्यक्तित्व में सम्मोहन पैदा होता है चेहरे पर चमक उत्पन्न होती है लोगों के बीच सम्मान बढ़ता है कामकाज की रुकावट हटती है बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है सफलताओं की राहें आसान होने लगती हैं. इसी प्रतिदिन 1 से 9 तक के अंक में कोई एक अंक व्यक्ति की उर्जा से विपरीत होता है. यदि उसे अपने साथ रख लिया जाये तो ऊपर लिखी बातें उलट होने लगती हैं. इसलिये संजीवनी अंक का चयन जल्दबाजी या बेचैनी में नही करना चाहिये. चयन करते समय संजीवनी अंक रुद्राक्ष का प्रयोग करने से विपरीत अंक निकलने की सम्भावना शून्य हो जाती है. क्योंकि संजीवनी अंक रुद्राक्ष व्यक्ति के अवचेतन मन से संदेश प्राप्त करके अंक निकालता है. और अवचेतन मन को सटीक पता होता है कि व्यक्ति के लिये क्या सही है क्यो गलत है.

;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;


Recent Posts

See All
सर्व सिद्धि साधना

यह साधना मेरी ही नहीं कई साधको की अनुभूत है !काफी उच कोटी के संतो से प्राप्त हुई है और फकीरो में की जाने वाली साधना है !इस के क्यी लाभ है...

 
 
 
पूर्णमासी..अमवस्या..अध्यात्म विज्ञान की सरल तकनीक /चीनी से बने शिवलिंग पर पूजा से घर में सुख समृद्

हमारे तिथि त्योहार महज किसी की याद में या शक्ति प्रदर्शन के लिये नही बनाये गये. उनके पीछे गहरा विज्ञान है. सभी तिथि-त्योहार अध्यात्म...

 
 
 
Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page