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श्रीविद्या साधना(IN NUTSHELL)


श्री विद्या साधना;- शास्त्रों में श्रीविद्या के बारह उपासक बताये गये है- मनु, चन्द्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य अग्नि, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द, शिव और दुर्वासा ये श्रीविद्या के द्वादश उपासक है। श्रीविद्या के उपासक आचार्यो में दत्तात्रय, परशुराम, ऋषि अगस्त, दुर्वासा, आचार्य गौडपाद, आदिशंकराचार्य, पुण्यानंद नाथ, अमृतानन्द नाथ, भास्कराय, उमानन्द नाथ प्रमुख है। इस प्रकार श्रीविद्या का अनुष्ठान चार भगवत् अवतारों दत्तात्रय, श्री परशुराम, भगवान ह्यग्रीव और आद्यशंकराचार्य ने किया है। श्रीविद्या साक्षात् ब्रह्मविद्या है।श्रीविद्या साधना संसार की श्री विद्या साधना सर्वश्रेष्ठ साधनाओ मे से एक हैं।सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है कि शक्ति की प्राप्ति पूर्णता का प्रतीक नहीं है, वरन् शक्ति का सन्तुलित मात्रा में होना ही पूर्णता है। शक्ति का सन्तुलन विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। वहीं इसका असंतुलन विनाश का कारण बनता है। समस्त प्रकृति पूर्णता और सन्तुलन के सिद्धांत पर कार्य करती है। जीवन के विकास और उसे सुन्दर बनाने के लिये धन-ज्ञान और शक्ति के बीच संतुलन आवश्यक है। श्रीविद्या-साधना वही कार्य करती है, श्रीविद्या-साधना मनुष्य को तीनों शक्तियों की संतुलित मात्रा प्रदान करती है और उसके लोक परलोक दोनों सुधारती है।श्रीविद्या-साधना ही एक मात्र ऐसी साधना है जो मनुष्य के जीवन में संतुलन स्थापित करती है।ध्यान के बिना केवल मन्त्र का जाप करना श्री विद्या साधना नही है।बिना ध्यान के केवल दस प्रतिशत का ही लाभ मिल सकता है।श्रीविद्या साधना में ध्यान का विशेष महत्व हैं। इसलिए पहले ध्यान का अभ्यास करे व साथ-साथ जप करे,अन्त मे केवल ध्यान करें।कलियुग में श्रीविद्या की साधना ही भौतिक, आर्थिक समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन है। 1- श्री बाल सुंदरी >8 वर्षीया कन्या रूप में>धर्म, श्रीबाला-त्रिपुर-सुंदरी मंत्र:- ॐ - ऐं - क्लीं – सौः मंत्र कब होता है सिद्ध... 04 लाख बार जपने पर 2- षोडशी त्रिपुर सुंदरी >16 वर्षीया सुंदरी>अर्थ 3-षोडशी त्रिपुर सुंदरी(पंचदशी मंत्र):- ॐ क ए इ ल ह्रीं । ह स क ह ल ह्रीं। स क ल ह्रीं ॥ मंत्र कब होता है सिद्ध .. 16 लाख बार जपने पर सिद्ध हो जाता है । 3-श्रीराज-राजेश्वरी>युवा स्वरूप>काम षोडशाक्षरी विद्या मंत्र:- ''ॐ क ए इ ल ह्रीं ।ह स क ह ल ह्रीं। स क ल ह्रीं श्रीं॥ मंत्र कब होता है सिद्ध ..21 लाख बार जपने पर सिद्ध हो जाता है। 4- श्रीललिता त्रिपुर सुंदरी > वृद्धा रूप>मोक्ष ललिता माता का पवित्र मंत्र :- 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।' मंत्र कब होता है सिद्ध ..21 लाख बार जपने पर सिद्ध हो जाता है।

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श्रीविद्या साधना क्या है ?-

1-श्री’ अर्थात् देवी और विद्या अर्थात ज्ञान। सीधे-सादे शब्दों में यह देवी की उपासना है। एक ऐसा ज्ञान है जिसे जानने के पश्चात कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य आत्म बोध है। अपने निज स्वरूप से अनभिज्ञ मनुष्य स्वयं को असहाय महसूस करता है। कर्म बंधन में फंसा जीवन इसी आत्म बोध के लिए जन्म जन्मांतर तक भटकता रहता है। इसी आत्मबोध के तंत्र का नाम श्री विद्या है। यह शाक्त परंपरा की प्राचीन एवं सर्वोच्च प्रणाली है। आदि काल से मनुष्य लौकिक और पारलौकिक सुखों के लिए विभिन्न देवी-देवताओ की उपासना करता आया है। ऐसा अक्सर पाया जाता है कि भौतिक सुखों में लिप्त जीवन जीते हुए मनुष्य आत्मिक सुख से वंचित रहता है, कुछ अधूरा सा अनुभव करता है। यह भी माना जाता है कि आत्मिक अनुभूति के लिए भौतिक सुखों का मोह छोड़ना पड़ता है। एक साधारण मनुष्य के लिए यह भी संभव नहीं है।

2-ऐसे संदर्भ में श्री विद्या उपासना एक महत्वपूर्ण साधन है। यह देवी (शक्ति) की तीन अभिव्यक्तियों पर आधारित है।1- भोग, मोक्ष प्रदायिनी मां ललिता त्रिपुर सुंदरी का स्वरूप।2-श्री यंत्र 3-पंचदशाक्षरी मंत्र ।श्रीविद्या एक क्रमबद्ध, रहस्यमयी पद्धति है ।जिसमें योग (प्राणायाम), भक्ति और देवी के पूजन-अर्चन का सुंदर समावेश है।महाशक्ति त्रिपुरसुंदरी महादेव की स्वरूपा शक्ति हैं। इन्हीं के सहयोग से शिव सृष्टि में सूक्ष्म से लेकर स्थूल रूपों में उपस्थित हैं। सामान्य मनुष्य के लिए कण-कण में भगवान उपस्थित हैं। जगद् गुरु शंकराचार्य कृत सौंदर्य लहरी के प्रथम श्लोक में यह भाव प्रत्यक्ष दिखाई देता है। शिवः शक्तया युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि। अतस्त्वामाराध्यांहरिहरविरन्चयादिभिरपि प्रणन्तुं स्तोतुं वा कथमकृतपुण्यः प्रभवति।। अर्थात- हे भगवती! जब शिव शक्ति से युक्त होते हैं तभी जगदुत्पन्न करने में समर्थ होते हैं।

यदि वे शक्ति से युक्त न हों तो सर्वथा हिलने या चलने में भी अशक्त रहते हैं। मां त्रिपुर सुंदरी की अलौकिक सुंदरता का वर्णन भी सौंदर्य लहरी में कई स्थानों (श्लोकों) में मिलता है।

3-यूं तो मां शक्ति रूपा हैं, निराकार होकर भी सब में विद्यमान हैं, तो भी साधक के मन की एकाग्रता के लिए उनके स्थूल रूप का प्रयोजन है। शरदज्योत्सना शुद्धां शशियुत जटासूटमकुटाम्वरत्रासत्राणस्फटिक घटिका पुस्तककराम्। सकृत्र त्वां नत्वा कथमिव सतां संमिधते मधुक्षीर दक्षामधुरिणाः फणितयः।। शरदपूर्णिमा की चांदनी के समान शुभ्रवर्णा, द्वितीया के चंद्रमा से युक्त जटाजूट रूपी मकुटों वाली, अपने हाथों में वरमुद्रा, अभय मुद्रा, स्फटिक मणि की माला और पुस्तक धारण किए हुए आपको एक बार भी नमन करने वाले मनुष्य के मुख से मधु, क्षीर, द्राक्षा शर्करादि से भी मधुर अमृतमयी वाणी क्यों न झरेगी। आदि। मां की चार भुजाओं में पाश, अंकुश, इक्षुधनु और पंच पुष्पबाणों का ध्यान किया जाता है।पाश अर्थात 36 तत्वों में प्रीति, अंकुश अर्थात क्रोध, द्वेष। इक्षुधनु - संकल्प-विकल्पात्मक क्रियारूप मन ही इक्षुधनु है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध पांच पुष्प बाण हैं। इच्छाशक्तिमयपाशमकुशंज्ञानरूपिणम्। क्रियाशक्तिमये बाणधनुषी दधदुज्जवलम्।। अर्थात पाश- इच्छाशक्ति, अंकुश-ज्ञान शक्ति तथा बाण और धनुष क्रियाशक्ति स्वरूप हैं। इन तीनों शक्तियों को अपने में धारण करती हैं मां त्रिपुर सुंदरी। 4-किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए मनुष्यं को उपरोक्त शक्तियों का प्रयोग करना पड़ता है। प्रथम कार्य करने की इच्छा रखना, दूसरा ज्ञान (कार्य से संबंधित ज्ञान) और तीसरा कार्य को करना। स्पष्ट है कि इन तीनों के लिए आवश्यकता होती है मन की एकाग्रता की। मन की एकाग्रता प्रबल आत्मिक शक्ति और दृढ़ संकल्प के बिना असंभव है। अर्थात् आत्मिक शक्ति ही मां त्रिपुरा हैं। अदम्य आत्मिक शक्ति का परिचय उपासक को सशक्त बनाता है और वह असंभव को संभव कर देता है।

मां की उपासना मां का सीधा-सादा उपदेश है- स्वात्म शक्ति का ज्ञान क्योंकि यही पारसमणि है। श्री यंत्र: श्री विद्या उपासना चिह्न इसकी रचना जटिल है। यह एक बिंदु के चारों ओर अनेक त्रिकोणों का क्रमबद्ध समागम है। श्री चक्र मानव जीवन के अपने केंद्र ‘‘स्व’’ तक की यात्रा का प्रतीक है। बिंदु स्व का, आत्मशक्ति का- मां त्रिपुर सुंदरी का प्रतीक है। त्रिभुज आवरण हैं।

5-श्री यंत्र की आराधना नव (9) आवरण आराधना कही जाती है। जैसे-जैसे आवरण हटते जाते हैं उपासक अपने ही करीब आता जाता है। अंत में सब आवरण हटते ही उपासक मां त्रिपुर सुंदरी (स्वआत्मिक शक्ति) में लीन हो जाता है। यह बाहर से भीतर की यात्रा कुंडलिनी जागरण से भी संबंध रखती है। आदि शक्ति मूलाधार चक्र में सर्पाकार रूप में सुप्त अवस्था में उपस्थित होती है। कुंडलिनी योग और प्राणायाम से जाग्रत हो षटचक्रों को भेदती हुई सहस्त्राशार में पहुंच जाती है। यहां उपस्थित शिव तत्व में लीन होकर उपासक को परमानंद की अनुभूति देती है।महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुतमाकाशमुपरि। मनोऽपिभ्रूमध्ये सकलमपि भित्वा कुलपथं सहस्त्रारे पद्मे सह रहसि पत्या विहरसे।। अर्थात्- हे भगवती! आप मूलाधार में पृथ्वीतत्व को, मणिपुर में जलतत्व को, स्वाधिष्ठान में अग्नितत्व को, हृदय में स्थित अनाहत में मरुतत्व को, विशुद्धि चक्र में आकाशतत्व को तथा भूचक्र में मनस्तत्व को इस प्रकार सारे चक्रों का भेदन कर सुषुम्ना मार्ग को भी छोड़कर सहस्त्रा पद्म में सर्वथा एकांत में अपने पति सदाशिव के साथ विहार करती हैं। -सौंदर्य लहरी (9)

6-पंचदशाक्षरी मंत्र: शिवःशक्तिः कामः क्षितिरथं रविश्शीत किरणः स्मरो हंसश्शक्रस्तदनु च परामार हरयः अमी अहव्ल्लेखामिस्तिसृमिरवसानेषु घटिताः भजन्ते वर्णास्ते तव जननि नामावयवताम् अर्थात क-शिवः, ए- शक्ति, ई-कामः, ल-क्षिति, ह्रीं-ह्रल्लेखा,-ह,-रवि, स-सोम, क- रूमर, ह- हंस ल-शुक्रः हल्लेखा - हृीं, स-परा शक्ति, क-मारः ल-हरि, हल्लेखा-ह्रीं- इस प्रकार तीन कूटबीजों की सृष्टि होती है।हे भगवती ! आपके नामरूप ये तीन कूट हैं। इनका जप करने से साधक का अतिहित होता है। -सौंदर्य लहरी (32) इस श्लोक में गुप्त रूप से पंचदशाक्षरी मंत्र का वर्णन है। इस मंत्र के तीन भाग हैं- वाग्भव कूट अर्थात् वाहनि कुंडलिनी, कामराजकूट- सूर्य कुंडलिनी और शक्ति कूट- सोम कुंडलिनी। उपरोक्त सभी विधियां सामान्य मनुष्य के लिए कठिन प्रतीत होती हैं। किसी भी ज्ञान या विद्या का मूल्यांकन उसकी व्यवहारिकता से किया जाता है। यदि किसी विद्या का प्रयोग मनुष्य रोजमर्रा के जीवन में अपने विविध कार्य कलापों के लिए न कर सके तो उसका कोई प्रयोजन नहीं रह जाता।

7-इसके लिए आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने ग्रंथ सौंदर्य लहरी में एक सरल विधि बतायी है। जपो जल्पः शिल्पं सकलमपि मुद्राविरचना गतिः प्रादक्षिण्यक्रमणमशनाद्या हुतविधिः। प्रणामः संवेशः सुखमखिल मात्मार्पणदुशा सपर्यापर्यायस्तव भवतु यन्मे विलसितम्।। अर्थात- हे भगवती! आत्मार्पण दृष्टि से इस देह से जो कुछ भी बाह्यन्तर साधन किया हो, वह अपनी आराधना रूप मान लें और स्वीकार करें। मेरा बोलना आपके लिए मंत्र जप हो जाए, शिल्पादि बाह्य क्रिया मुद्रा प्रदर्शन हो जाए, देह की गति (चलना) आपकी प्रदक्षिणा हो जाए, देह का सोना (शयन) अष्टांग नमस्कार हो तथा दूसरे शारीरिक सुख या दुख भोग भी सर्वार्पण भाव में आप स्वीकार करें। स्पष्ट है कि यह अत्यंत सरल मार्ग है। आत्म समर्पण भाव से यदि श्री विद्या उपासना की जाए तो शीघ्र ही मां त्रिपुरा उपासक के जीवन का संचालन स्वयं करती हैं। उपासक सुख, समृद्धि सफलता तो पाता ही है, सत् चित आनंद भी उसके लिए सुलभ और सहज हो जाते हैं अर्थात् भौतिक और आत्मिक सुख दोनों प्राप्त हो जाते हैं। यही भोग, मोक्ष प्रदायिनी मां की अपने भक्तों से प्रतिज्ञा है।



विधि;- 1-कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करते समय विघ्नहरण भगवान गणेशजी की पूजा होती है, जो कि समस्त विघ्नों को दूर करके साधक की साधना पूर्ण करते हैं:-

1-1-मंत्र

गजाननं भूतगणादि सेवितं,

कपित्‍थ जम्बूफल चारु भक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकम्

नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।

उपरोक्त मंत्र पाठ करके हाथ में रखा अक्षत (चावल) गणेशजी की प्रतिमा के सम्मुख रख दें और मन ही मन प्रार्थना करें:-

'हे गणेशजी! आप समस्त विघ्नों का हरण करने वाले हैं।'

हे उमासुत! आप समस्त बाधाओं का नाश करने वाले हैं।

हे प्रभु! आपके चरण कमलों की मैं वंदना करता हूं।

1-2-किसी भी धार्मिक कृत्य, पूजा-पाठ व मंत्र आदि के जप से पूर्व होने वाली सूक्ष्म क्रियाओं संकल्प, विनियोग, न्यास व ध्यान आदि से आम जन सामान्यतः अनभिज्ञ होता है।आखिर ये सब जानने की हमें आवश्यकता क्यों हैं ..इसका उत्तर तो यही हैं की जब तक साधना क्षेत्र के बारे में ज्ञान का वह आवश्यक भाव भूमि हमारे जीवन में ना आ जाये सफलता कैसे प्राप्त होगी।हाँ सामान्य साधना में सफ़लत संभव हो सकती हैं पर उच्च स्तरीय साधना में सफलता पर प्रश्न वाचक चिन्ह ही हैं ।हर साधक को यह जानना चाहिए।मन्त्र जपने के पहले 'संकल्प' होता है | संकल्प के पश्चात विनियोग करें....

2-विनियोग;-

2-1-प्रक्रिया सरल हैं...एक उदाहरण लेते हैं....

''अस्यश्री श्रीविद्यापञ्चदशाक्षरी महा मन्त्रस्य -- आनन्दभैरव ऋषिः – गायत्रीछन्दः -- पञ्चदशाक्षर्यधिष्ठात्री ललितामहात्रिपुरसुन्दरी देवता ॥क ए ई ल ह्रीं बीजं॥ स क ल ह्रीं शक्तिः॥हस क ह ल ह्रीं कीलकम् ॥श्री ललितामहात्रिपुरसुन्दरी दर्शन भाषण सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥"

सीधे हाँथ में थोडा सा जल लेकर ऊपर लिखे शब्दोंका उच्चारण करे, इसके बाद उस जल को जमीन पर डाल दे।परन्तु हमें ये जानना चाहिए की इसका क्या अर्थ हैं.. क्या शब्द इसमें उपयोगित हुए हैं।

2-2-उच्चारण करते समय कहाँ- कहाँ ध्यान होना चाहिए। एक एक करके हम इन्हें समझने की कोशिश करते हैं।साधना जगत के उच्च लोगों के लिए "मन्त्र पुरुष"अपरिचित शब्द नहीं हैं। हर मंत्र का एक रूप मंत्रपुरुष के रूप में होता हैं। जब साधक किसी मन्त्र की पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर लेता हैं तब यह मंत्र पुरुष उस साधक के सामने प्रत्यक्ष होता ही हैं । पर यह बात तो सच नहीं लगती ,ना किसी ने इसके बारे में कभी लिखा , ना हमने सुना , तो बिस्वास करना कठिन सा हैं।जब इन शब्द का उच्चारण करते हैं तब इनका अर्थ या भावभूमि होती हैं।

ऋषि -----इसका उच्चारण करते समय सिर के उपरी के भाग में इनकी अवस्था मानी जाती हैं।छंद ------- गर्दन में

देवता ----- ह्रदय में

उत्कीलन ---- नाभि स्थान

परबीजं ------ कामिन्द्रिय स्थान

परशक्ति --- पैरों में (निचले हिस्से पर)

कीलक --- हांथो में

2-3-वास्तव में यह विनियोग एक प्रकार का समझौता , दिव्यता की साक्षी में होता हैं।जब भी आप इस विनियोग शब्द का उच्चारित करेंगे तो आप जानते हैं कि कहाँ- कहाँ भावना रखनी हैं ।

3-करन्यास;-

तत्पश्चात न्यास करें..

3-1-ॐ क ए ई ल ह्रीं - अंगुष्ठाभ्यां नम:।

3-2- ह स क ह ल ह्रीं - तर्जनीभ्यां नम:।

3-3- स क ल ह्रीं - मध्यामाभ्यां नम:।

3-4- ॐ क ए ई ल ह्रीं - अनामिकाभ्यां नम:।

3-5- ह स क ह ल ह्रीं - कनिष्ठिकाभ्यां नम:।

3-6-स क ल ह्रीं -करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

कर न्यास करने का सही तरीका क्या हैं?-

05 FACTS;- 1-करन्यास की प्रक्रिया को समझने से पहले हमें यह समझना होगा की हम भारतीय किस तरीके से नमस्कार करते हैं । इसमें हमारे दोनों हाँथ की हथेली आपस में जुडी रहती हैं।साथ -साथ दोनों हांथो की हर अंगुली ,ठीक अपने कमांक की दुसरे हाँथ की अंगुली से जुडी होती हैं। ठीक इसी तरह से यह न्यास की प्रक्रिया भी.... 2-यहाँ पर हमें जो प्रक्रिया करना हैं वह कम से धीरे धीरे एक पूर्ण नमस्कार तक जाना हैं। तात्पर्य ये हैं की जव् आप पहली लाइन के मन्त्र का उच्चारण करेंगे तब केबल दोनों हांथो के अंगूठे को आपस में जोड़ देंगेऔर जब तर्जनीभ्याम वाली लाइन का उच्चारण होगा तब दोनों हांथो की तर्जनी अंगुली को आपस में जोड़ ले।

3-यहाँ पर ध्यान रखे की अभी भी दोनों अंगूठे के अंतिम सिरे आपस में जुड़े ही रहेंगे , इसके बाद मध्यमाभ्यम वाली लाइन के दौरान हम दोनों हांथो की मध्यमा अंगुली को जोड़ दे। पर यहा भी पहले जुडी हुए अंगुली ..अभी भी जुडी ही रहेंगी. .. इसी तरह से आगे की लाइन के बारे में क्रमशः करते जाये ।और अंत में करतल कर वाली लाइन के समय एक हाँथ की हथेली की पृष्ठ भाग को दुसरे हाँथ से स्पर्श करे। और फिर दूसरी हाँथ के लिए भी यही प्रक्रिया करे। ॐ क ए ई ल ह्रींअंगुष्ठ भ्याम नमः ---- दोनों अंगूठो के अंतिम सिरे को आपस में स्पर्श कराये । ह स क ह ल ह्रींतर्जनी भ्याम नमः ---- दोनों तर्जनी अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये। (यहाँ पर अंगूठे मिले ही रहेंगे ), स क ल ह्रीं मध्यमाभ्याम नमः --- दोनों मध्यमा अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये ।(यहाँ पर अंगूठे, तर्जनी मिले ही रहेंगे ), ॐ क ए ई ल ह्रीं -अनामिकाभ्याम नमः ----दोनों अनामिका अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये ।(यहाँ पर अंगूठे, तर्जनी, मध्यमा मिले हीरहेंगे ), ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठिकाभ्याम नमः ---दोनों कनिष्ठिका अंगुली के अंतिम सिरे को आपस में मिलाये ।(यहाँ पर अंगूठे, तर्जनी, मध्यमा, अनामिकामिले ही रहेंगे ), स क ल ह्रीं करतल कर प्रष्टाभ्याम नमः -- - दोनों हांथो की हथेली के पिछले भाग को दूसरी हथेली से स्पर्श करे।

4-अंग न्यास:

1-ॐक ए ई ल ह्रीं - हृदयाय नम:।

2- ह स क ह ल ह्रीं - शिरसे स्वाहा।

3- स क ल ह्रीं - शिखायै वषट्।

4 -ॐ क ए ई ल ह्रीं - कवचाय हुम्।

5- ह स क ह ल ह्रीं - नेत्रत्रयाय वौषट्।

6-स क ल ह्रीं - अस्त्राय फट्। अंगन्यास करने का सही तरीका क्या हैं?- अंग न्यास ...

सीधे हाँथ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले। सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते जाये , शरीर के जिन-जिन भागों का नाम लिया जा रहा हैं उन्हें स्पर्श करते हुए यह भावना रखे की... वे भाग अधिक शक्तिशाली और पवित्र होते जा रहे हैं। उदाहरण;- ॐक ए ई ल ह्रीं ह्रदयाय नमः ----- बतलाई गयी उन्ही दो अंगुली से अपने ह्रदय स्थल को स्पर्श करे ह स क ह ल ह्रीं ---- अपने सिर को स क ल ह्रीं शिखाये फट ---- अपनी शिखा को (जोकि सिर के उपरी पिछले भाग में स्थित होती हैं ) ॐक ए ई ल ह्रीं - कवचाय हुम् --- अपने बाहों को ह स क ह ल ह्रीं नेत्र त्रयाय वौषट-----अपने आँखों को स क ल ह्रीं अस्त्राय फट् --- तीन बार ताली बजाये

( हम तीन बार ताली बजाते क्यों है?वास्तव में , हम हमेशा से बहुत शक्तियों से घिरे रहते हैं और जो हमेशा से हमारे द्वारा किये जाने वाले मंत्र जप को हमसे छीनते जाते हैं , तो तीन बार सीधे हाँथ की हथेली को सिर के चारो ओर चक्कर लगाये / सिर के चारो तरफ वृत्ताकार में घुमाये ,इसके पहले यह देख ले की किस नासिका द्वारा हमारा स्वर चल रहा हैं , यदि सीधे हाँथ की ओर वाला स्वर चल रहा हैं तब ताली बजाते समय उलटे हाँथ को नीचे रख कर सीधे हाँथ से ताली बजाये . ओर यदि नासिका स्वर उलटे हाथ की ओर / लेफ्ट साइड का चल रहा हैं तो सीधे हाँथ की हथेली को नीचे रख कर उलटे (Left) हाँथ से ताली उस पर बजाये ) इस तरीके से करने पर हमारा मन्त्र जप सुरक्षित रहा हैं ,सभी साधको को इस तथ्य पर ध्यान देना ही चाहिए)

5-ध्यान मंत्र;-

उपरोक्त विधि से न्यास करने के उपरान्त देव के स्वरूप का ध्यान करते हुए 'ध्यान मंत्र' का

पाठ करें। ध्‍यान के बाद मानस पूजा करें। मानस पूजा में देव को मन की कल्पना से रचित पुष्प, नैवेद्य, अर्घ्य, पाद्य आदि अर्पित किया जाता है, जैसे मन ही मन सुन्दर पुष्प की कल्पना करके कहें- हे देव! यह सुन्दर पुष्प मैं आपको अर्पित करता हूं। कृपालु होकर पुष्प स्वीकार करें और मुझे मनोवां‍छित फल प्रदान करें। इसी प्रकार अन्य क्रिया करें।तत्पश्चात ' मंत्र' का जप करें।

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बालामन्त्र जप(BALA Mantra Japa);-

आसन : बाल मंत्र जप करते समय या तो पूर्व या उत्तर की ओर मुख करना होता है। यदि किसी के पास गुरु नहीं है, तो भगवान दक्षिणामृति का चिंतन करें और उन्हें मानसिक रूप से गुरु के रूप में स्वीकार करें।(Seating: While doing Bala mantra japa, one has to either face East or North. If one does not have a guru, contemplate on Lord Dkṣiṇāmūrti and mentally accept Him as Guru.) 1. शाप हटाने का मन्त्र (Curse removal mantra: बालामन्त्रजपत्वेन शापविमोचनमन्त्रं करिष्ये। हसैं हसकरीं हसैं hasaiṁ hasakarīṁ hasaiṁ दैनिक जप शुरू होने से पहले 100 बार जाप किया जाना चाहिए। पहले कुछ दिनों तक 100 बार जप करने के बाद इस मंत्र का जाप किया जा सकता है।(to be recited 100 times before the commencement of daily japa. The recitation of this mantra can be dispensed with after reciting 100 times for the first few days.) 2. विनियोगः- अस्य श्री बालात्रिपुरसुन्दरी महा मन्त्रस्य। द्क्षिणामूर्ति ऋषिः। पङ्क्ति छन्दः। बालात्रिपुरसुन्दरी देवता॥ऐं बीजं। सौः शक्तिः। क्लीं कीलकम्॥श्री बालात्रिपुरसुन्दरी दर्शन भाषण सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥दोनों हथेलियों को खोलकर शरीर के सब अंगों पर चलाएँ; सिर से पैर तक (open both the palms and run them over all parts of the body; from head to feet)|| 3. Karanyāsaḥ करन्यासः- ऐं - अङ्गुष्ठाभ्याम् नमः। दोनों तर्जनी अंगुलियों का प्रयोग करें और दोनों अंगूठों पर चलाएं (use both the index fingers and run them on both the thumbs) क्लीं - तर्जनीभ्यां नमः। दोनों अंगूठों का प्रयोग करें और दोनों तर्जनी उंगलियों पर चलाएं (use both the thumbs and run them on both the index fingers) सौः- मध्यमाभ्यां नमः। मध्यमा उंगलियों पर दोनों अंगूठे (both the thumbs on the middle fingers) ऐं - अनामिकाभ्यां नमः। aiṁ - anāmikābhyāṁ namaḥ|अनामिका पर दोनों अंगूठे (both the thumbs on the ring fingers) क्लीं - कनिष्ठीकाभ्यां नमः। klīṁ - kaniṣṭhīkābhyāṁ namaḥ|छोटी उंगलियों पर दोनों अंगूठे (both the thumbs on the little fingers) सौः - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। sauḥ - karatalakarapṛṣṭhābhyāṁ namaḥ|दोनों हथेलियों को खोलें; दाहिने हाथ की खुली हुई हथेलियों को बाईं हथेली के आगे और पीछे की तरफ चलाएं और दूसरी हथेली के लिए भी यही दोहराएं (open both the palms; run the opened palms of the right hand on the front and back sides of the left palm and repeat the same for the other palm) 4. Hrdayādi nyāsaḥ ह्र्दयादि न्यासः- ऐं- ह्र्दयाय नमः। aiṁ - hrdayāya namaḥ|दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अनामिका को खोलकर हृदय चक्र पर रखें (open index, middle and ring fingers of the right hand and place them on the heart chakra) क्लीं - शिरसे स्वाहा। klīṁ - śirase svāhā|दाहिने हाथ की मध्यमा और अनामिका को खोलें और माथे के शीर्ष को स्पर्श करें (open middle and ring fingers of the right hand and touch the top of the forehead) सौः - शिखायै वषट्। sauḥ - śikhāyai vaṣaṭ|दाहिना अंगूठा खोलकर सिर के पिछले हिस्से को स्पर्श करें। यही वह बिंदु है जहां गुच्छ रखा जाता है (open the right thumb and touch the back of the head. This is the point where tuft is kept) ऐं - कवचाय हुं। aiṁ - kavacāya huṁ|दोनों हाथों को क्रॉस करें और पूरी तरह से खुली हुई हथेलियों को कंधे से लेकर उंगलियों तक चलाएं (cross both the hands and run the fully opened palms from shoulders to finger tips) क्लीं - नेत्रत्रयाय वौषट्। klīṁ - netratrayāya vauṣaṭ|दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अनामिका खोलें; तर्जनी और अनामिका का उपयोग करके दोनों आंखों को स्पर्श करें और मध्यमा उंगली से दोनों भौहों (अजना चक्र) के बीच के बिंदु को स्पर्श करें। (open the index, middle and ring fingers of the right hand; touch both the eyes using index and ring fingers and touch the point between the two eyebrows (ājñā cakra) with the middle finger.) सौः - अस्त्राय फट्॥ sauḥ - astrāya phaṭ|| भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः॥ bhūrbhuvassuvaromiti digbandhaḥ||दाहिने हाथ के अंगूठे और मध्यमा अंगुलियों से सिर के चारों ओर खड़खड़ाहट करें(By using right hand thumb and middle fingers make rattle around the head) ध्यानम्;- रक्तकलाम्बरां चन्द्रकलावतं सां समुद्यदादित्यनिभां त्रिनेत्रां। विद्याक्षमालाभयदामहस्तां ध्यायामि बालामरुणाम्बुजस्थाम्॥ ध्यान श्लोक का अर्थ;- उनके रूप के सहज चिंतन के लिए: मैं बाला देवी का ध्यान करता हूं, लाल वस्त्र पहने हुए, जिसका माथा अर्धचंद्र से सजाया गया है, जिसकी तीन आंखें हैं, जिसका तेज उगते सूरज की तरह है। जो एक लाल कमल पर विराजमान है और जो अपने चार हाथो में एक पवित्र पुस्तक, माला, अभय और वरद मुद्रा रखती है )(Meaning of dhyāna verse for easy contemplation of Her form: I meditate upon the Bālā Devi, clad in red garments whose forehead is decorated with a crescent moon, who has three eyes, whose brilliance is like that of the rising sun, who is seated on a red lotus and who holds in her four bands a sacred book, rosary, abhaya and varada mudras.) 6. Pañcapūjā पञ्चपूजा;-करन्यास के अनुसार पालन करें (follow as per Karanyāsa) लं - पृथिव्यात्मिकायै गन्धं समर्पयामि। हं - आकाशात्मिकायै पुष्पैः पूजयामि। यं - वाय्वात्मिकायै धूपमाघ्रापयामि। रं - अग्न्यात्मिकायै धीपं दर्शयामि। वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि। सं - सर्वात्मिकायै सर्वोपचार पूजाम् समर्पयामि॥ 7. Bālā mantraḥ बाला मन्त्रः-

बाला मंत्र तीन प्रकार के होते हैं और उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। निम्नलिखित में से किसी एक को चुनना होगा। तीनों में से बाला नवक्षरी मंत्र बहुत शक्तिशाली है और जप के लिए सबसे अच्छा मंत्र है। यह भौतिक सुख देने में सक्षम है। तीन अक्षर का मंत्र जड़ी बूटियों से संबंधित है। पवित्र औषधि बनाने वाले इस मंत्र का जाप करें। दूसरा छह अक्षर का मंत्र स्थानान्तरण से मुक्ति प्रदान करने में सक्षम है।(There are three types of Bālā mantra-s and they are known by different names. One has to choose any one of the following. Out of the three, Bālā navākṣarī mantra is very powerful and is the best mantra for recitation. It is capable of giving material comforts. The three syllable mantra is related to herbs. Those who make sacred herbal medicines should recite this mantra. The second six syllable mantra is capable of providing liberation from transmigration.) 1. Bālā mantra consists of three bījākṣara-s – ॐ - ऐं - क्लीं – सौः (om - aiṁ - klīṁ - sauḥ) 2. Bālātripurasundarī mantra consists of six bījākṣara-s - ॐ - ऐं - क्लीं - सौः -- सौः - क्लीं – ऐं (om - aiṁ - klīṁ - sauḥ -- sauḥ - klīṁ - aiṁ) 3. Bālā navākṣarī mantra - ॐ - ऐं - क्लीं - सौः -- सौः - क्लीं - ऐं -- ऐं - क्लीं – सौः (om - aiṁ - klīṁ - sauḥ -- sauḥ - klīṁ - aiṁ -- aiṁ - klīṁ - sauḥ)

8-. Samarpaṇam समर्पनम् गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मात्कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्मयि स्तिरा॥

अर्थ: आप सभी रहस्यों के रहस्य को बनाए रखती हैं। कृपया मेरे द्वारा किए गए इस जप को स्वीकार करें और मुझ पर अपनी शाश्वत कृपा प्रदान करें।(Meaning: You sustain the secret of all secrets. Please accept this japa performed by me and bestow Your perpetual Grace on me.) ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

श्रीविद्यापञ्चदशाक्षरी मन्त्रजप ये है पंचदशक्षरी मंत्र जप करने का आसान तरीका।आसन : पंचदशक्षरी मंत्र जप करते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए। यदि किसी के पास गुरु नहीं है, तो भगवान दक्षिणामृति का चिंतन करें और उन्हें मानसिक रूप से गुरु के रूप में स्वीकार करें। (This is the simple way of doing Panchadasaksari mantra japa,Seating: While doing Panchadasaksari mantra japa, one has to either face East or North. If one does not have a guru, contemplate on Lord Dkṣiṇāmūrti and mentally accept Him as Guru.)

1. शाप हटाने का मन्त्र (Curse Removal Mantra) :- श्रीविद्यापञ्चदशाक्षरी जपत्वेन शापविमोचनमन्त्रम् करिष्ये।

पहला भाग - सात बार पाठ करना चाहिए(First Part – Should Be Recited Seven Times) :- ई ए क ल ह्रीं स क ल ह्रीं दूसरा भाग - तीन बार पाठ करना चाहिए(Second Part – Should Be Recited Three Times) :- ह स क ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं ई ए क ल ह्रीं

तीसरा भाग - एक बार पढ़ा जाना चाहिए।(Third Part – Should Be Recited One Time) :- ह ल भ भ भ भ भ अ 2- विनियोग;- अस्यश्री श्रीविद्यापञ्चदशाक्षरी महा मन्त्रस्य -- आनन्दभैरव ऋषिः – गायत्रीछन्दः -- पञ्चदशाक्षर्यधिष्ठात्री ललितामहात्रिपुरसुन्दरी देवता ॥क ए ई ल ह्रीं बीजं॥ स क ल ह्रीं शक्तिः॥ह स क ह ल ह्रीं कीलकम् ॥श्री ललितामहात्रिपुरसुन्दरी दर्शन भाषण सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥

3 करन्यासःKARA-NYASAH क ए ई ल ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्याम् नमः-दोनों तर्जनी अंगुलियों का प्रयोग करें और दोनों अंगूठों पर चलाएं (Use both the index fingers and run them on both the thumbs) ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः -दोनों अंगूठों का प्रयोग करें और दोनों तर्जनी अंगुलियों पर चलाएं(Use both the thumbs and run them on both the index fingers) स क ल ह्रीं मध्यमाभ्यां नमः-दोनों अंगूठे मध्यमा उंगलियों पर (Both the thumbs on the middle fingers) क ए ई ल ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः -अनामिका पर दोनों अंगूठे)(Both the thumbs on the ring fingers) ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठीकाभ्यां नमः-दोनों अंगूठे छोटी उंगलियों पर (Both the thumbs on the little fingers)

स क ल ह्रीं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः-दोनों हथेलियों को खोलें; दाहिने हाथ की खुली हुई हथेलियों को बाईं हथेली के आगे और पीछे की तरफ चलाएं और दूसरी हथेली के लिए भी यही दोहराएं (Open both the palms; run the opened palms of the right hand on the front and back sides of the left palm and repeat the same for the other palm) 4-ह्र्दयादि न्यासः- क ए ई ल ह्रीं ह्र्दयाय नमः -दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अनामिका को खोलकर हृदय चक्र पर रखें(Open index, middle and ring fingers of the right hand and place them on the HEART chakra) ह स क ह ल ह्रीं शिरसे स्वाहा-दाहिने हाथ की मध्यमा और अनामिका को खोलकर माथे के शीर्ष को स्पर्श करें) (Open middle and ring fingers of the right hand and touch the top of the forehead)

स क ल ह्रीं शिखायै वषटं-

दाहिना अंगूठा खोलकर सिर के पिछले हिस्से को छुएं। यह वह स्थान है जहाँ गुच्छों को रखा जाता है (Open the right thumb and touch the back of the head. This is the point where tuft is kept)

क ए ई ल ह्रीं कवचाय हुं-दोनों हाथों को क्रॉस करें और पूरी तरह से खुली हुई हथेलियों को कंधे से लेकर उंगलियों तक चलाएं (Cross both the hands and run the fully opened palms from shoulders to finger tips)

ह स क ह ल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्- दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अनामिका खोलें; तर्जनी और अनामिका का उपयोग करके दोनों आंखों को स्पर्श करें और मध्यमा उंगली से दोनों भौहों (अजना चक्र) के बीच के बिंदु को स्पर्श करें(Open the index, middle and ring fingers of the right hand; touch both the eyes using index and ring fingers and touch the point between the two eyebrows ( AJNA chakra) with the middle finger.)

स क ल ह्रीं अस्त्राय फट्- बायीं हथेली को खोलकर दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों से तीन बार वार करें)(Open up the left palm and strike it three times with index and middle fingers of the right hand)

भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः॥दाहिने हाथ के अंगूठे और मध्यमा अंगुलियों से सिर के चारों ओर खड़खड़ाहट करें (By using right hand thumb and middle fingers make rattle around the head)

5- ध्यानम् (DHYANAM)

अरुणां करुणा-तरंगिताक्षीं धृत-पाशांकुश-पुष्प-बाण-चापाम्। अणिमादिबिरावृताम् मयूखै-रहमित्येव विभावये भवानीम्॥

इस श्लोक का अर्थ है-'' मैं परम सुख भवानी का ध्यान करता हूँ, जिसका रंग भोर के समय सूर्य के समान अर्थात् लाल रंग का है और जिससे प्रकाश की किरणें निकल रही हैं। यह उसके लाल रंग की पुष्टि करता है जिसकी चर्चा पिछले पद में की गई है। अपने भक्तों के लिए उनकी करुणा समुद्र की लहरों की तरह उनकी आँखों से निकलती है। इस श्लोक में उन्हें चार हाथों से वर्णित किया गया है। पिछले हाथों में उसके पास दो हथियार हैं जिन्हें पासम (रस्सी की तरह) और अंकुश (एक तेज धार वाला धातु का हथियार जो आमतौर पर हाथियों को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) कहा जाता है। सामने के हाथों में वह गन्ने से बना धनुष और फूलों से बने तीर रखती है। इस सहस्रनाम में बाद में उनके हथियारों के विस्तृत अध्ययन की चर्चा की गई है। वे उसके चार प्रमुख सहायकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह असम सिद्धि-एस से घिरी हुई है। प्रत्येक सिद्धि को श्री चक्र में एक देवी द्वारा दर्शाया गया है। मैं उनके स्वरूप का ध्यान करता हूं जिसे भवानी कहा जाता है, जो प्रकाश की किरणों के साथ परम सुख की स्थिति है।''

6-पञ्चपुजा (करन्यास के अनुसार पालन करें)

लं - पृथिव्यात्मिकायै गन्धं समर्पयामि। हं - आकाशात्मिकायै पुष्पैः पूजयामि। यं - वाय्वात्मिकायै धूपमाघ्रापयामि। रं - अग्न्यात्मिकायै दीपं दर्शयामि। वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि। सं - सर्वात्मिकायै सर्वोपचार पूजाम् समर्पयामि॥

IN ENGLISH...

The meaning for this verse is –'' I meditate on Bhavanī, the supreme happiness, whose colour is like the sun at dawn i.e. red in colour and from whom rays of light are emanating. This confirms Her red complexion discussed in the previous verse. Her compassion for Her devotees comes out of Her eyes like waves of ocean. In this verse She is described with four hands. In the rear hands She has two weapons called pasam (like a rope) and aṅkuśa (a sharp edged metal weapon normally used to control elephants). In the front hands she holds a bow made out of sugar cane and arrows made out of flowers. A detailed study of Her weaponries is discussed later in this Sahasranama. They represent four of Her premier assistants. She is surrounded by aṣṭama siddhi-s. Each siddhi is represented by a goddess in Śri Chakra. I meditate on Her form called Bhavanī, a state of supreme happiness with beams of light.''

6- पञ्चपूजा (Follow As Per Karanyasa) 7- श्रीविद्यापञ्चदशाक्षरी मन्त्रः

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं - ह स क ह ल ह्रीं - स क ल ह्रीं om aiṁ hriṁ sriṁ ka e i la hriṁ - ha sa ka ha la hriṁ - sa ka la hriṁ 8-समर्पनम्Samarpaṇam गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्-कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्मयि स्तिरा॥

MEANING: -

आप सभी रहस्यों का रहस्य बनाए रखती हैं। कृपया मेरे द्वारा किए गए इस जप को स्वीकार करें और मुझ पर अपनी शाश्वत कृपा प्रदान करें।(You sustain the secret of all secrets. Please accept this japa performed by me and bestow Your perpetual Grace on me.)

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NOTE;-

सौभाग्यविद्या पञ्चदशाक्षरी ...


सौभाग्यविद्या पंचदशकरी नाम से एक और मंत्र है, जिसमें प्रत्येक कूट के आगे ऐं-क्ली-सौः लगा है। उस स्थिति में, मंत्र इस प्रकार होगा:---''ऐं क ए ई ल ह्रीं - क्लीं ह स क ह ल ह्रीं - सौः स क ल ह्रीं''

तदनुसार न्यास - भी बदल जाएगा। बाकी वही रहता है।There is another mantra by name (Saubhagyavidya Pancadasakṣari ), in which aiṁ - klīṁ - Sauḥ is prefixed before each kuṭa. In that case, mantra will be like this:

aiṁ ka ei la hriṁ - kliṁ ha sa ka ha la hriṁ - sauḥ sa ka la hriṁ

Accordingly NYASA- will also change. Rest remains the same.

25 बीजा-अक्षरों का अर्थ;---

1-ऐं ;-

ज्ञान हासिल करना..

2-ह्रीं ;-

सांसारिक सुख की प्राप्ति..

3- ए

असंभव को पाना.....

4-द्राम

दीर्घायु..

5- ॐ हौं जूं सः

अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति और असामयिक मृत्यु से बचाव.......

6-सौः ;-

हर क्षेत्र में तरक्की और समृद्धि...

7-क्लीं ;-

इच्छा पूर्ति.....

8- नमः

क्रियाओं का सफल समापन (संपन्नकरण) .....

9 - हौं ;-

संतोष, शांति....

10 -ई ;-

बहस जीतना...

11- हुं;-

घृणा (द्वेश), क्रोध और साहस, शत्रु को डराने के लिए....

12-तं तं ;-

दूसरों की तरक्की में बाधक...

13-खेम खेम

मारन (मारन).....

14-BIRUM/बिरुम

सम्मोहन (सम्मोहन)...

15- वषट्;-

किसी और के मन को वश में करना (वशीकरण), शत्रु को नष्ट करने की आध्यात्मिक भावना......

16.वौषट्;-

आकर्षण (आकर्षण) शत्रुओं के बीच संघर्ष या विरोध पैदा करना, शक्ति और धन प्राप्त करना...

17--स्वाहा;-

हानिकारक ऊर्जा का विनाश, उदाहरण के लिए एक बीमारी का इलाज

और दूसरों का भला करना, प्रसाद के साथ मंत्र के देवता को खुश करना;

18-फट्;-

शत्रु को भगाने के लिए शत्रु पर आक्रमण करने की आध्यात्मिक भावना । विस्फोटक पुन: पुष्टि (बिना किसी संदेह के)

19-स्वधा:-

आत्म-संतुष्टि, स्वयं को मजबूत बनाना;-

20--ग्लौं ;-;-

यह गणेश जी का मंत्र है। ग यानी गणेश। ल का अर्थ है जो व्याप्त है। औ का अर्थ है चमक ।

21--हुं

इस मंत्र में ह शिव हैं।म भैरव है।

22-GAM/गं;-

यह गणेश-बीज है। ग का अर्थ है गणेश

23-जूं ;-

तेज करना, एनिमेशन, प्रेरणा

24-सः ;-

सा "वायु या हवा" है, और यह "सार्वभौमिक आत्मा" का आह्वान करता है

25--तं ;-

रोग, चिंता, भय और भ्रम से मुक्ति के लिए यह बीज मंत्र है।

चक्रों और अंगों के बीज-मंत्र ;--

1. मूलाधार> लं /लम > गुदा

2. स्वाधिष्ठान > वं /वम > यौन अंग

3. मणिपुर> रं /रम >पाचन के अंग

4. अनाहत>यं / यम> हृदय और फेफड़े

5. विशुद्ध> हं /हम> वाक् के अंग

6. ओम > तंत्रिका तंत्र (मन और बुद्धि)

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IN ENGLISH...

MEANING OF 25 BIJA-AKSHARS;---

.1-AIM

Acquisition of knowledge..

2-RHIM

Acquisition of worldly happiness..

3- AM

Achieving the impossible.....

4-DRAM

Longevity..

5- OM JUM SAHA Acquisition of good health and prevention of untimely death........

6-SOUM

Progress and prosperity in all spheres ...

7-KLIM

Fulfillment of wishes.....

8- NAMAHA

Successful completion of actions(sampannakaran).....

9 -RHOM

Satisfaction, Serenity....

10 -IHIM

Winning debates...

11- HUM/हुं

Hatred (Dvesh),Anger and courage, to frighten one’s enemy....

12-TAM TAM

Hindering others progress....

13-KHEM KHEM

Killing (maran).....

14-BIRUM

Hypnotising (sammohan)...

15-VASHAT/वषट्

Controlling someone else’s mind(vashikaran),A spiritual emotion of destroying the enemy......

16.VOUSHAT/वौषट्

Attraction (akarshan)To create conflicts or opposition among enemies, to acquire power and wealth....

17--SVAHA/स्वाहा

Destruction of harmful energy, for instance curing a disease and doing good to others, appeasing the deity of the mantra with offerings;

18--PHAT/फट्

A spiritual emotion of attacking the enemy, to drive the enemy away. Explosive reaffirmation (without doubt)

19-SVADHA

Self-contentment, strengthening oneself;-

20--GLAUM This is a Mantra of Ganesha. Ga means Ganesha. La means that which pervades. Au means lustre or brilliance.

21-H00M In this Mantra, Ha is Shiva. U is Bhairava.

22-GAM

This is the Ganesha-Bija. Ga means Ganesha

23-JUM

quickening, animation, inspiration

24-SAH

sa is “air or wind”, and it invokes “universal soul”

25-TAM

This beej mantra is for getting rid of disease, worry, fear and illusions.

BEEJ-MANTRAS OF CHAKRAS, & ORGANS ;--

1. Muladhar> Lam, Lrum >The anus

2. Svadhishthan >Vam >The sex organs

3. Manipur> Ram, rum >The organs of digestion

4. Anahat> Yam > The heart and lungs

5. Vishuddha>Ham> The organs of speech

6. Adnya Om >The nervous system (mind and intellect)


..SHIVOHAM...


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