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बरसाना और नन्दगाँव के दर्शनीय स्थल...


बरसाना ;-

09 FACTS;-

1-बरसाना हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मथुरा ज़िले की छाता तहसील के नन्दगाँव ब्लॉक में स्थित एक क़स्बा और नगर पंचायत है। प्राचीन समय में इसे 'वृषभानुपुर'

नाम से जाना जाता था। बरसाना मथुरा से 42 कि.मी. तथा कोसी से 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। यहाँ 'लाड़ली जी' का बहुत बड़ा मंदिर है।

2-यहाँ की अधिकांश पुरानी इमारत 300 वर्ष पुरानी है। राधा को लोग यहाँ प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मटकी छीन लिया करते थे। बरसाना का पुराना नाम 'ब्रह्मासरिनि' भी कहा जाता है।

3-राधा भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाना की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं, जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाना से 4 मील पर नन्दगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है, जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था।

4- बरसाना के चारों ओर अनेक प्राचीन व पौराणिक स्थल हैं। यहां स्थित जिन चार पहाड़ों पर राधा रानी का भानुगढ़, दान गढ़, विलासगढ़ व मानगढ़ हैं, वे ब्रह्मा के चार मुख माने गए हैं। इसी तरह यहां के चारों ओर सुनहरा की जो पहाड़ियां हैं उनके आगे पर्वत शिखर राधा रानी की अष्टसखी रंग देवी, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंग विद्या व इंदुलेखा के निवास स्थान हैं। यहां स्थित मोर कुटी, गहवखन व सांकरी खोर आदि भी अत्यंत प्रसिद्ध हैं। सांकरी खोर दो पहाड़ियों के बीच एक संकरा मार्ग है।

5- लट्ठमार होली... ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित ठाकुर लाड़ीलीजी महाराज मन्दिर के प्रांगण में जब नंदगाँव से होली का न्योता देकर महाराज वृषभानजी का पुरोहित लौटता है तो यहाँ के ब्रजवासी ही नहीं देश भर से आये श्रृद्धालु ख़ुशी से झूम उठते हैं। पांडे का स्वागत करने के लिए लोगों में होड़ लग जाती है। स्वागत देखकर पांडे ख़ुशी से नाचने लगते हैं। राधा-कृष्ण की भक्ति में सब अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं।

6-लट्ठामार होली...बसंत पंचमी' से बरसाना होली के रंग में सरोबार हो जाता है। टेसू (पलाश) के फूल तोड़कर और उन्हें सुखा कर रंग और गुलाल तैयार किया जाता है। गोस्वामी समाज के लोग गाते हुए कहते हैं- "नन्दगाँव को पांडे बरसाने आयो रे।" शाम को 7 बजे चौपाई निकाली जाती है, जो लाड़ली मन्दिर होते हुए सुदामा चौक रंगीली गली होते हुए वापस मन्दिर आ जाती है। सुबह 7 बजे बाहर से आने वाले कीर्तन मंडल कीर्तन करते हुए गहवर वन की परिक्रमा करते हैं।

7-बारहसिंगा की खाल से बनी ढाल को लिए पीली पोखर पहुँचते हैं। बरसानावासी उन्हें रुपये और नारियल भेंट करते हैं, फिर नन्दगाँव के हुरियारे भांग-ठंडाई छानकर मद-मस्त होकर पहुँचते हैं। राधा-कृष्ण की झांकी के सामने समाज गायन करते हैं।लोगों द्वारा लाये गये

लड्डुओं को नन्दगाँव के हुरियारे फगुआ के रूप में बरसाना के गोस्वामी समाज को होली खेलने के लिए बुलाते हैं। कान्हा के घर नन्दगाँव से चलकर उनके सखा स्वरूप आते हैं।नन्दगाँव के हुरियारे सर्वप्रथम पीली पोखर पर जाते हैं। यहाँ स्थानीय गोस्वामी समाज अगवानी करता है।

8-बरसानावासी राधा पक्ष वाले समाज गायन में भक्तिरस के साथ चुनौती पूर्ण पंक्तियाँ प्रस्तुत करके विपक्ष को मुक़ाबले के लिए ललकारते हैं और मुक़ाबला रोचक हो जाता है। लट्ठामार होली से पूर्व नन्दगाँव व बरसाना के गोस्वामी समाज के बीच ज़ोरदार मुक़ाबला

होता है।गायन के बाद रंगीली गली में हुरियारे लट्ठ झेलते हैं। यहाँ सुघड़ हुरियारी अपने लठ लिए स्वागत को खड़ी मिलती हैं। दोंनों तरफ कतारों में खड़ी हंसी ठिठोली करती हुई हुरियानों को जी भर-कर छेड़ते हैं। ऐसा लगता है जैसे असल में इनकी सुसराल यहाँ है। इसी अवसर पर जो भूतकाल में हुआ, उसे जिया जाता है।

9-यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। निश्छल प्रेम भरी गालियां और लाठियां इतिहास को दोबारा दोहराते हुए नज़र आते हैं। बरसाना और नन्दगाँव में इस स्तर की होली होने के बाद भी आज तक कोई एक-दूसरे के यहाँ वास्तव में आपसी रिश्ता नहीं हुआ। आजकल भी यहाँ टेसू के फूलों से होली खेली जाती है, रसायनों से अपवित्रता के कारण बाज़ारू रंगों से परहेज़ किया जाता है। अगले दिन नन्दबाबा के गाँव में छटा होती है।

बरसाना के दर्शनीय स्थल;-

18 FACTS;-

1-सांकरी खोर :-

ब्रह्म पर्वत और विष्णु पर्वत के मध्य संकरी गली को ही सांकरी खोर कहते हैं। इस मार्ग से गोपियाँ दूध-दही बेचने जाया करती थीं। एक बार श्री कृष्ण जी ने गोपियों को यहाँ रोक लिया और कर के रूप में दही-माखन मांगने लगे। सखियों के आनाकानी करने पर श्रीकृष्ण एवं अन्य सखाओं ने उनकी मटकी फ़ोड़कर सारा दूध-दही लूट लिया। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ला त्रियोदशी के दिन बूढ़ीलीला(मटकीफ़ोड़ लीला) होती है।

2-दानगढ :-

यह ब्रह्म पर्वत के उत्तरी भाग में एवं सांकरी खोर की पश्चिम दिशा में है। यहाँ पर श्री कृष्ण सखाओं के साथ श्री राधिका एवं अन्य सखियों की प्रतीक्षा कर रहे थे। श्री राधा एवं अन्य सखियाँ सूर्य पूजा के बहाने विविध द्रव्यों को लेकर वहाँ से गुजर रहीं थी। तब श्री कृष्ण जी ने कहा आप यहाँ से जा रही हो आपको कर देना होगा। विशाखा सखी ने पूँछा- "तुम कौन होते हो कर लेने वाले। कृष्ण जी बोले मुझे यहाँ राजा कन्दर्पदेव ने कर लेने के लिये नियुक्त किया है। सभी सखियाँ बोलीं यहाँ की राजेश्वरी तो श्री राधा रानी हैं। श्री राधा जी के कटाक्षरूपी बाणों से आपके राजा कन्दर्प का सारा पराक्रम दूर हो जाता है। यहाँ पर दान बिहारी जी का मन्दिर है।

3-मानगढ़ :-

एक बार श्याम सुन्दर राधा जी से मिलने जा रहे थे, मार्ग में उन्हें पद्मा मिली और उसने कृष्ण जी को चन्द्रावली के विरह के बारे में बताया। श्री श्याम सुन्दर जी चन्द्रावली को सांत्वना देने चले गये। श्री राधा जी श्यामसुन्दर के न आने के कारण व्याकुल हो गयीं और उन्होंने अपनी सखियों को श्याम सुन्दर के बारे में पता करने को कहा। सखियों ने श्री राधा जी को बताया कि श्याम सुन्दर तो चन्द्रावली सखी की कुञ्ज में हास-परिहास कर रहे हैं। यह सुनकर श्रीराधाजी श्रीश्याम सुन्दर से मान कर बैठीं। रसिक श्री कृष्ण ने बड़े कौशल से श्रीराधा जी का मान भंग किया।

4-रत्न कुण्ड : -

कृष्णजी ने मुक्ता कुण्ड में मोती उगाये, जिन्हें नन्दराय जी ने वृषभानु जी के यहाँ भेजा। इनको देखकर वृषभानु चिन्तित हो गये। राधा जी ने उनकी चिन्ता को दूर करने के लिये अपनी माँ से मोती का हार लिया और इस कुण्ड पर मोती की खेती कर दी। जिससे यहाँ विभिन्न प्रकार के मोती उग आये।

5-विलासगढ़ :-

विष्णु पर्वत पर स्थित यह स्थान चिकसौली और ऊँचा गाँव से घिरा हुआ है। यहाँ पर श्री राधा जी अपनी सखियों के साथ धूला खेलतीं थीं। यहाँ विलास मन्दिर है। यहाँ श्री राधा-कृष्ण ने विविध प्रकार के क्रीड़ा-विलास किये हैं।

6-भानुगढ़: -

बरसाने में भानुगढ़ पर ही श्री राधा रानी जी का मन्दिर स्थित है। इसे वृषभानु जी का भवन कहते हैं। मन्दिर अत्यंत सुन्दर, कलात्मक बना हुआ है। राधाष्टमी पर यहाँ विशेष दर्शन होते हैं।

7-मोरकुटी :-

यहाँ पर श्री राधा जी मय़ूरों को नृत्य सिखाती थीं। कभी-कभी श्याम सुन्दर भी मोर का रूप धारण कर वहाँ पहुँच जाते थे और राधा रानी जी से नृत्य सीखा करते। श्याम सुन्दर जान बूझ कर गलतियाँ करते और राधा जी उनको डाँटती थीं, श्रीराधा रानी को नाराज होते हुए देख श्यामसुन्दर को बहुत प्रसन्नता होती थीं।

8-गह्वर वन :-

इस सघन वन को स्वयं श्री राधा रानी जी ने सुशोभित किया। यह बहुत ही रमणीय स्थान है। यह श्री राधा जी एवं अन्य सखियों का नित्य विहार स्थल है। यहाँ श्री राधा-सरोवर, रास मण्डल, शंख का चिह्न और गाय के स्तन का चिह्न दर्शनीय है। रास मण्डल के पास मयूर सरोवर है। अनेक वैष्णव रसिक संतों को यहाँ श्री किशोरी जू का साक्षात्कार हुआ है। महाप्रभु श्री बल्लभाचार्य जी की यहाँ बैठक भी है।

9-कृष्ण कुण्ड :-

चारों ओर से लता-पताओं, वृक्षों से घिरा हुआ यह सरोवर गह्वर वन की शोभा है तथा अनेक वैषणवों के लिये श्रद्धा का स्थल है। पिया-प्रियतम ने यहाँ जल केलि आदि लीलाएं की हैं।

10-चिकसौली :-

श्रीराधा जी की अष्ट सखियों में अत्यंत प्रिय चित्रा सखी का यह जन्म स्थान है। चित्रा सखी के पिता का नाम चतुर्गोप और माता का नाम चर्चिता था। चित्रा सखी श्री राधा जी के नाना प्रकार के श्रंगार करने में दक्ष, चित्रकला में योग्य तथा पशु-पक्षियों की भाषा समझने में निपुण थीं।

11-दोहनी कुण्ड : -

यह गहवर वन के समीप ही चिकसौली गाँव में स्थित हैं। इस स्थान पर महाराज वृषभानु जी की लाखों गाय रहती थीं। एक बार श्री राधा जी की गौ दोहन की इच्छा हुई, वे मटकी लेकर एक गाय का दूध दोहने लगीं। उसी समय श्रीकृष्ण भी वहाँ आ पहुँचे और बोले - सखी! तोपे दूध दोहवौ नाय आवै है, ला मैं बताऊँ।'' दोनों ने गाय के थन दोहना प्रारम्भ किया। तो श्यामसुन्दर ने ठिठोली करते हुए दूध की धार राधा जी के मुख पर ऐसी मारी कि राधा जी का मुख दूध से भर गया। यह सब देखकर सखियाँ हंसने लगीं।

12-पीलीपोखर :-

यह बरसाना की उत्तर दिशा में है। पीलू के वृक्षॊं से घिरे इस वन में श्रीराधा जी अपनी सखियों के साथ अनेक प्रकार की क्रीड़ा करती थीं। श्याम सुन्दर जी भी गौचारण कराते हुए अपने सखाओं के साथ यहाँ पहुँच जाया करते और श्री राधा जी से मिला करते थे। माना जाता है यहाँ श्री राधा जी ने विवाह के पश्चात हल्दी से लिपे हाथ धोये थे जिससे सारा जल पीला हो गये। अतः इसे पीली पोखर कहते हैं।

13-ऊँचा गाँव :-

श्री राधा जी की अष्ट सखियों में सबसे प्रधान श्री ललिता सखी जी का यह गाँव है। श्री ललिता सखी जी तो श्रीराधा-कृष्ण की निकुंज लीलाओं की भी साक्षी हैं। श्रीराधाजी को अमित सुख प्रदान कराने वाली ललिता सखी प्रिया-प्रियतम की विविध लीलाओं में सहगामी हैं। इनके नि:स्वार्थ प्रेम के वशीभूत होने के कारण श्री युगल सरकार इन्हें हमेशा अपने साथ ही रखते हैं। स्वयं भोलेनाथ शंकर जी ने भी गोपी भाव की दीक्षा इन्हीं से ली थी।

14-चित्र-विचित्र शिला :-

एक समय सखियों ने प्रिया-प्रियतम का श्रंगार किया तथा ललिता जी के साथ श्री श्याम सुन्दर के विवाह का आयोजन किया। उनके मेहंदी रचे कर-कमल इस शिला पर टिके थे, जिसके चिह्न आज भी दर्शनीय हैं। सखियों द्वारा यहाँ की गयी चित्रकारी की सुन्दरता आज भी देखते ही बनती है।

15-रीठौरा : -

श्री वृषभानु जी के ज्येष्ठ भ्राता श्री चन्द्रभानु गोपजी का यह गाँव है। इन्हीं चन्द्रभानुजी की लाड़िली बेटी श्री चन्द्रावली जी हैं। ये श्री कृष्ण जी की अनन्य प्रिया सखी हैं। श्री कृष्ण जी इनके प्रति विशेष प्रेम रखते थे। यहाँ चन्द्रावली सरोवर तथा श्री बिट्ठलनाथ जी की बैठक है।

16-डभारो : यह श्री तुंगविद्या सखी जी का जन्मस्थल है।

17-संकेतवन :-

बरसाना और नंदगाँव दोनों के बीच में संकेत वन स्थित है। श्री राधा जी जावट से और श्री कृष्ण नंदगाँव से आकर यहाँ पर मिलते थे। वृन्दा देवी, वीरा देवी और सुबल सखा किसी न किसी बहाने से संकेत के द्वारा यहाँ पर प्रिया-प्रियतम का मिलन कराते थे। यहाँ पर संकेत बिहारी जी का मन्दिर, रास मण्डल स्थल, झूला मण्डप आदि दर्शनीय हैं।

18-अन्य स्थल :-

वृषभानु सरोवर, कीर्तिदा सरोवर, श्रीराधा सरोवर, ब्रजेश्वर महादेव, शूरसरोवर, मयूर सरोवर, त्रिवेणी स्थल, सखी कूप, बल्देव स्थल आदि दर्शनीय हैं।

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नन्दगाँव;-

1-नन्दगाँव ब्रजमंडल का प्रसिद्ध तीर्थ है। मथुरा से यह स्थान 30 किलोमीटर दूर है। नंद यहीं पर रहते थे। यहाँ एक पहाड़ी पर नन्द बाबा का मन्दिर है। नीचे पामरीकुण्ड नामक सरोवर है। यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला हैं। भगवान कृष्ण के पालक पिता से सम्बद्ध होने के कारण यह स्थान तीर्थ बन गया है। नन्दगाँव में ब्रजराज श्रीनन्दमहाराज जी का राजभवन है।

2-गोवर्धन से 16 मील पश्चिम उत्तर कोण में, कोसी से 8 मील दक्षिण में तथा वृन्दावन से 28 मील पश्चिम में नन्दगाँव स्थित है। नन्दगाँव की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) चार मील की है। यहाँ पर कृष्णलीलाओं से सम्बन्धित 56 कुण्ड हैं। जिनके दर्शन में 3–4 दिन लग जाते हैं।देवाधिदेव महादेव शंकर ने अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर यह वर माँगा था कि मैं आपकी बाल्यलीलाओं का दर्शन करना चाहता हूँ। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने नन्दगाँव में उन्हें पर्वताकार रूप में स्थित होने का आदेश दिया।

3-श्रीशंकर महादेव भगवान के आदेश से नन्दगाँव में नन्दीश्वर पर्वत के रूप में स्थित होकर अपने आराध्य देव के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। श्रीकृष्ण परम वैष्णव शंकर की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए नन्दीश्वर पर्वत पर ब्रजवासियों विशेषत: नन्दबाबा, यशोदा मैया तथा गोप सखाओं के साथ अपनी बाल्य एवं पौगण्ड अवस्था की मधुर लीलाएँ करते हैं।

नन्दगाँव के 15 दर्शनीय स्थल;-

1-नन्दभवन :-

03 POINTS;-

1-यह नन्दगाँव का प्रमुख मन्दिर है। यह नन्दीश्वर पर्वत पर स्थित है। इसमें नन्दबाबा माँ यशोदा, रोहिणी एवं श्री कृष्ण-बल्देव के साथ विराजमान हैं। यहाँ सबके अलग-अलग शयन कक्ष हैं। यहीं पर श्री कृष्ण-बलराम ने अपनी बाल एवं किशोर अवस्था तक की बहुत सी लीलायें की हैं।

2-नन्दीश्वर पर्वत से संलग्न दक्षिण की ओर नन्दभवन की पौढ़ी का भग्नावशेष नाममात्र अवशिष्ट है। यहीं पर विशाल नन्दभवन था। इसमें नन्दबाबा, माँ यशोदा, माँ रोहिणी, कृष्ण और बलदेव सबके अलग–अलग शयनघर, रसोईघर, भाण्डारघर, भोजनस्थल, राधिका एवं कृष्ण के विश्रामस्थल आदि कक्ष विराजमान थे।

3-यहीं पर माँ यशोदा के अत्यन्त आग्रह और प्रीतिपूर्वक अनुरोध से सखियों के साथ राधिका प्रतिदिन पूर्वाह्व में जावट ग्राम से आकर परम उल्लासपूर्वक माँ रोहिणी के साथ कृष्ण के लिए रुचिकर द्रव्यों का पाक करती थीं। कृष्ण पास के बृहत भोजनागार में सखाओं के साथ भोजन करते थे। भोजन के पश्चात् एक सौ पग चलकर शयनागार में विश्राम करते थे।

ये सारे स्थान बृहदाकार नन्दभवन में स्थित हैं....

1-2-राधिका विश्रामस्थल;-

रन्धन का कार्य समाप्त होने के पश्चात् राधिका माँ यशोदा के अनुरोध से श्री धनिष्ठा सखी के द्वारा लाये हुए श्रीकृष्ण के भुक्तावशेष के साथ प्रसाद पाकर इसी बगीचे में विश्राम करती थी। उसी समय सखियाँ दूसरों से अलक्षित रूप में कृष्ण का उनके साथ मिलन कराती थी। इस स्थान का नाम राधाबाग़ है।

1-2-वनगमन स्थान;-

माँ यशोदा बलराम और कृष्ण का प्रतिदिन नाना रूप से श्रृंगार कर उन्हें गोचारण के लिए तैयार करती थीं। तथा व्याकुल चित्त से सखाओं के साथ गोचारण के लिए विदा करती थीं।

1-3--गोचारण गमन मार्ग;-

सखाओं के साथ नटवर राम–कृष्ण गोचारण के लिए इसी मार्ग से होकर निकलते थे।

1-4-राधिका विदा स्थल;-

माँ यशोदा राधिका को गोदी में बैठाकर रोती हुई उसे जावट ग्राम के लिए यहीं से विदा करती थी।

1-5--दधिमन्थन का स्थान;-

यशोदा जी यहाँ नित्यप्रति प्रात:काल दधिमन्थन करती थीं। आज भी यहाँ एक बहुत बड़ी दधि की मटकी दर्शनीय है।

1-6-पूर्णमासीजी का आगमन पथ;-

बालकृष्ण का दर्शन करने के लिए योगमाया पौणमासी इसी पथ से नन्दभवन में पधारती थीं।

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2-नन्दकुण्ड :-

नन्दभवन से थोड़ी दूर दक्षिण में नन्द कुण्ड है। महाराज नन्द प्रातः काल यहाँ स्नान, संध्या वंदन आदि करते थे। कभी-कभी कृष्ण और बलराम को अपने कन्धों पर बिठाकर लाते और उन्हें भी यहाँ स्नान कराते थे। कुण्ड के तट पर स्थित मन्दिर में नन्दबाबा की गोद में बैठे हुए श्री कृष्ण एवं बलराम जी के मनोहर दर्शन हैं।

3-नन्दबैठक :-

ब्रजेश्वर महारज नन्दराय जी यहाँ अपने सभी परिजनों, वृद्ध गोपों तथा पुरोहित आदि के साथ समय समय पर बैठकर श्री कृष्ण-बलराम के कल्याण के लिए परामर्श किया करते थे।

4-यशोदा कुण्ड :-

मैया यशोदा प्रतिदिन यहाँ स्नान करने आतीं थीं। माँ यशोदा के साथ कभी-कभी कृष्ण-बलराम भी स्नान करने आ जाते थे और उन दोनों की जल क्रीड़ाएं देखकर यशोदा जी बहुत प्रसन्न्द होती थीं। कुण्ड के तट पर नृसिंह जी का मन्दिर है, वह नित्य नृसिंह देव से लाला कन्हैया के कुशल मंगल की प्रार्थना करती थीं। इसी के पास ही एक प्राचीन गुफ़ा है जिसमें अनेक संत महात्माऒं ने तप किया और ठाकुर जी की दिव्य लीलाओं के दर्शन किये।

5-हाऊ-विलाऊ: -

"दूर खेलन मत जाओ लाल यहाँ हाऊ आये हैं, हँस कर पूछत कान्ह मैया यह किनै पठाये हैं॥"

यशोदा कुण्ड के पश्चिम तट पर सखाओं के साथ कृष्णजी की बाल लीलाऒं का यह स्थान है। यहाँ श्री कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ खेलने आया करते थे और खेलने में इतने तनमय हो जाते कि उन्हें भोजन करने का भी स्मरण नहीं रहता। मैया यशोदा कृष्ण-बलराम को बुलाने के लिए रोहिणी जी को भेजती, किन्तु जब वे नहीं आते तो स्वयं जाती और नाना प्रकार से डराते हुए कहती - लाला! जल्दी आजा हऊआ आ जायेगौ।" तो कन्हैया डर कर मैया की गोद में आ जाया करते।

6-चरण पहाड़ी :-

नन्दगाँव के पश्चिम में चरण पहाड़ी स्थित है। श्री कृष्ण ने यहाँ लाखों गायों को एकत्रित करने के लिए गौचारण के समय इस पहाड़ी पर बंशी वादन किया था। श्री कृष्ण जी की मधुर बंशी को सुनकर यह पहाड़ी पिघल गयी तथा कृष्ण के चरण चिह्न यहाँ पर बन गये।

7-वृन्दा देवी : -

चरण पहाड़ी से थोड़ी ही दूर वृन्दा देवी का मन्दिर है। श्री कृष्ण की प्रकट लीला के समय वृन्दा देवी यहाँ निवास किया करती थीं। यहीं से वे संकेत आदि कुंजों में श्री राधा-कृष्ण का मिलन करातीं थीं। यहाँ वृन्दा देवी कुण्ड भी है। वृन्दा देवी ही श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं की अधिष्ठात्री वन देवी हैं। वृन्दा देवी की कृपा से ही श्री राधा-कृष्ण की लीलाओं में प्रवेश लिया जा सकता है।

8-पावन सरोवर :-

यह सरोवर नंदगाँव से काम्यवन जाने वाले रास्ते पर स्थित है। इस सरोवर का निर्माण विशाखा सखी के पिता पावन गोप ने किया था, इसीलिए इसका नाम पावन सरोवर है। सखाओं के साथ गोचारण से लौटते समय कृष्ण जी अपनी गायों को इस सरोवर में पानी पिलाते थे।

9-धोवनी कुण्ड:-

पावन सरोवर के पास ही यह कुण्ड स्थित है। इस कुण्ड में दूध-दही के बर्तन धोये जाते थे इसीलिए इसका नाम धोवनी कुण्ड पड़ गया।

10-मुक्ता (मोती) कुण्ड : -

जब वृषभानु जी राधा जी की सगाई श्री कृष्ण जी के साथ करने नन्दगाँव पहुंचे तो साथ में विविध प्रकार के वस्त्र, अलंकार, आभूषण, रत्न, मोती आदि अपने साथ लाये। इन सब को देखकर नन्दराय जी एवं यशोदा जी चिन्तित हुई और सोचने लगीं कि इसके बदले हम बरसाना क्या भेजें, हमारे पास तो इतने रत्न नहीं है। श्री कृष्ण जी ने माँ यशोदा की चिन्ता को दूर करने के लिये यहीं पर रत्नों की खेती की और यहाँ नाना प्रकार के रत्न उग आये थे।

11-ललिता कुण्ड :-

यह वह स्थान है जहाँ ललिता सखी जी श्रीराधा रानी को किसी न किसी बहाने से बुलाकर श्रीश्याम सुन्दर से मिलाया करती थीं।

12-टेर कदम्ब : -

02 POINTS;-

1-नन्दगाँव एवं जावट ग्राम के बीच में यह स्थित है। जब श्रीकृष्ण जी गोचारण कराने जाते थे, तो कदम्ब वृक्ष के ऊपर बैठकर मधुर बंशी बजाकर अपनी गायों को टेरते थे। टेरने का मतलब होता है पुकारना अथवा बुलाना। सभी गाय कन्हैया की बंशी सुनकर यहाँ एकत्र हो जाती थीं। अतः यह स्थान टेर कदम्ब कहलाता है। आज भी गोपाष्टमी के दिन नन्दगाँव के गोस्वामी परम्परागत इस उत्सव को मनाते चले आ रहे हैं।

2-नन्दगाँव की लीला स्थलियों में टेर कदम्ब सबसे सुरम्य है। मध्य में चबूतरे पर टेर कदम्ब के नीचे कृष्ण बलराम की मनोहारी झाँकी है। इस कदम्ब को उन्हीं प्राचीन कदम्ब की संतति माना जाता है, जिसपर चढ़कर श्रीश्यामसुंदर गायों को टेरते थे। चारों ओर कदम्ब और डूँगर के वृक्ष है। इसी प्रांगण में कृष्ण कुण्ड है, जिसके पास चबूतरे पर बाँसुरी बजाते लाला की मोहिनी मूरत है। उनके चारों ओर कारी, कामर, धौरी, धूसर, श्यामली आदि गाय है।

13-आसेश्वर महादेव : -

यहाँ आसेश्वर महादेव का मन्दिर है।आसेश्वर नाम से ही झलकता है कि यह स्थान आशा पूर्ति से संबंधित है।यहाँ जब महादेव नंद भवन में लला के दर्शन करने गए तो यशोदा मैया ने मना कर दिया कि हमारा लला बहुत छोटा है और आपके दर्शन से डर जाएगा तो महादेव यहाँ इस आस में आसन लगा कर बैठ गए कि श्री कृष्ण हमारी सुनेंगे और दर्शन देंगे। अतः आसेश्वर कहलाए।

14-मधुसूदनकुण्ड;-

नन्दीश्वर के उत्तर में यशोदाकुण्ड के पास ही नाना प्रकार के पुष्पों से लदे हुए वृक्ष और लताओं के बीच में यह कुण्ड सुशोभित है। यहाँ मत्त हो कर भ्रमरगण सदैव पुष्पों का मकरन्द पान करते हुए सर्वत्रगुञ्जन करते हैं कृष्ण सखाओं के साथ वन में खेलते हुए भ्रमरों के गुञ्जन का अनुकरण करते हैं। भ्रमरों का दूसरा एक नाम मधुसूदन भी है तथा कृष्ण का भी एक नाम मधुसूदन है। दोनों के यहाँ गुञ्जन का स्थान होने के कारण इस स्थान का नाम मधुसूदन कुण्ड है।

15-पानीहारीकुण्ड;-

02 POINTS;-

1-इसका नामान्तर पनघट कुण्ड भी है। ब्रजवासी इसी कुण्ड का विशुद्ध मीठाजल पान करते थे। गोप रमणियाँ इस कुण्ड पर जल भरने के लिए आती थीं। इसलिए इसे पनघट कुण्ड भी कहते हैं। कृष्ण भी गोपियों के साथ मिलने के लिए पनघट पर उपस्थित होते। विशेषकर गोपियाँ कृष्ण से मिलने के लिए ही उत्कण्ठित हो कर यहाँ आती थीं। जल भरते समय कृष्ण का दर्शनकर ऐसी तन्मय हो जातीं कि मटकी ख़ाली है या जल से भरी है इसका भी उन्हें ध्यान नहीं रहता। किन्तु उनकी हृदयरूपी मटकी में प्रियतम अवश्य भर जाते। 2-पनघट का एक निगुढ़ रहस्य यह भी है– गोपियाँ यहाँ कृष्ण का यह पन (प्रतिज्ञ) स्मरण करके आतीं कि 'मैं वहाँ तुमसे अवश्य ही मिलूँगा '। कृष्ण उस पन को निभाने के लिए वहाँ उनकी प्रतीक्षा करते हुए निश्चित रूप में मिलते। अत: कृष्ण और गोपियाँ दोनों का पन यहाँ पूरा होता है, इसलिए इसके पनघट कहते हैं।

.....SHIVOHAM....


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