क्या है नवरात्र का अर्थ और रहस्य?
नवरात्र का अर्थ/महत्व;-
09 FACTS;-
1-नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'।इसमें हर एक दिन दुर्गा मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है।इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की आराधना महिलाओं के अदम्य साहस, धैर्य और स्वयंसिद्धा व्यक्तित्व को समर्पित है।
2-नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। चार बार का अर्थ यह कि यह वर्ष के महत्वपूर्ण चार पवित्र माह में आती है। यह चार माह है:- पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन।चारों नवरात्र का मकसद और मान्यताएं अलग-अलग हैं। अमूमन लोग गुप्त नवरात्र के बारे में कम ही जानते हैं। साल में दो बार होने वाले शारदीय और चैत्र नवरात्र के बारे में ज्यादातर लोगों की जानकारी होती है।पुराणों में चैत्र नवरात्र को आत्मशुद्धि और मुक्ति का आधार माना गया है। वहीं शारदीय नवरात्र को वैभव और भोग प्रदान करने वाला माना गया है।
3-नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
4-नवरात्रि का काल बाहर बिखरी हुई अपनी ऊर्जा को स्वयं में आत्मसात करने यानी उन्हें खुद में समेटने की बेला है। इसके तीन दिन आत्मबोध और ज्ञान बोध के, तीन दिन शक्ति संकलन और उसके संचरण यानी फैलाव के और तीन दिन अर्थ प्राप्ति के कहे गए हैं। यूं तो नवरात्रि में भी लक्ष्मी आराधना की जा सकती है, क्योंकि इसकी तीन रात्रि अर्थ, धन या भौतिक संसाधनों की मानी गई हैं। पर यह पर्व सीधे धन न देकर, अर्थार्जन की क्षमता प्रदान करता है, जो कर्म, श्रम और प्रयास के बिना फलीभूत नहीं होता। सनद रहे कि धन प्राप्ति के सूत्र तो सिर्फ श्रम पूर्वक कर्म और स्वयं की योग्यता व क्षमता में ही निहित हैं।
5-शक्ति प्राप्ति का अर्थ किसी देवी के खाते से शक्ति का स्थानांतरण है। यहां शक्ति से आशय खुद की महाऊर्जा से है, अंतर्मन की शक्ति से है, आंतरिक ऊर्जा से है। नवरात्र का दिव्य पर्व बाहर बिखरी स्वयं की ऊर्जा को खुद में समेटने की पावन बेला है। इसके तीन दिन स्वपरिचय यानि ज्ञान और बोध के, तीन दिन शक्ति संकलन और संचरण अर्थात फैलाव व विस्तार के और तीन दिन अर्थ व पदार्थ प्राप्ति के कहे गए हैं। ये नौ दिन किसी हथियार को नहीं, बल्कि स्वयं को धार प्रदान करने का विलक्षण काल है।
6-वैज्ञानिक अवधारणा है कि हम अपने संपूर्ण जीवन में अपने बाह्य मस्तिष्क का मात्र कुछ ही प्रतिशत इस्तेमाल कर पाते हैं। हमारे बाह्य मस्तिष्क यानि चेतन मस्तिष्क से हमारा अचेतन मस्तिष्क नौगुणा ज्यादा शक्तिशाली है, ऐसा आध्यात्म ही नहीं विज्ञान भी मानता है। इसलिए समस्त आध्यात्मिक साधनाएं और उपासनाएं स्वयं में प्रविष्ट होने की ही अनुशंसा करती हैं। आध्यात्मिक नवरात्र का पर्व कर्मकांड से इतर अपने उसी नौ गुणे सामर्थ्य के पुनर्परिचय का काल है।
7-नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
8-शक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
9-नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संबंध इन नौ से सीधा जुड़ा है …हमारे शरीर में 9 इंद्रियाँ हैं :आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, वाक्, मन, बुद्धि, आत्मा।नौ ग्रह हैं जो हमारे सभी शुभ-अशुभ के कारक होते हैं :बुध, शुक्र, चंद्र, बृहस्पति, सूर्य, मंगल, केतु, शनि, राहु।नौ उपनिषद हैं :ईश, केन, कठ, प्रश्न, मूंडक, मांडूक्य, एतरेय, तैतिरीय, श्वेताश्वतर।
नौ देवियाँ है :-
1-शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
2-ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
3-चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
4-कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
5-स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
6-कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
7-कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वाली ।
8-महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
9-सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
देवी के नवरूप व पूजन से फल ;-
11 FACTS;-
1-शैलपुत्री- मां दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म होने के कारण इन्हें 'शैलपुत्री' कहा जाता है। नवरात्र की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से भक्त सदा धन-धान्य से परिपूर्ण पूर्ण रहते हैं।
2-ब्रह्मचारिणी- मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। मां दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
3- चन्द्रघटा- मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चन्द्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, वीरता के गुणों में वृद्धि होती है, स्वर में अद्वितीय अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है तथा आकर्षण बढ़ता है।
4- कूष्मांडा- चतुर्थी के दिन मां कूष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों व निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु व यश में वृद्धि होती है।
5- स्कंदमाता- नवरात्रि का पांचवां दिन आपकी उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायिनी हैं। मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
6- कात्यायनी- मां का छठा रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती है। इनका ध्यान गोधूलि बेला में करना होता है।
7- कालरात्रि- नवरात्रि की सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है। तेज बढ़ता है।
8- महागौरी- देवी का आठवां रूप मां गौरी है। इनका अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। पूजन करने से समस्त पापों का क्षय होकर कांति बढ़ती है, सुख में वृद्धि होती है व शत्रुशमन होता है।
9- सिद्धिदात्री- मां सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्रि की नवमी के दिन की जाती है। इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लघिमा, प्राप्ति प्राकाम्य, महिमा, ईशीत्व, सर्वकामावसान्यिता, दूरश्रवण, परकाया प्रवेश, वाक् सिद्धि, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों व नव निधियों की प्राप्ति होती है।
( वैसे फल की इच्छा न करते हुए भी पूजा करना चाहिए।)
10-नवरात्र से नवग्रहों का संबंध भी है :
नवग्रह मे कोई भी ग्रह अनिष्ट फल देने जा रहा हो जो शक्ति उपासना करने से विशेष लाभ
मिलता है।सूर्य ग्रह के कमजोर रहने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए शैलपुत्री की उपासना से लाभ
मिलती है।चंद्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के कुष्मांडा देवी की विधि विधान से नवरात्रि मे साधना करें।मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए स्कंदमाता,बुध ग्रह की शांति तथा
अर्थव्यवस्था मे वृद्धि के लिए कात्यायनी देवी,गुरु ग्रह के अनुकूलता के लिए महागौरी,
शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्रि तथा शनि के दुष्प्रभाव को दूर कर शुभता
पाने के लिए कालरात्रि के उपासना सार्थक रहती है।राहु की शुभता प्राप्त करने के लिए ब्रह्माचारिणी की उपासना करनी चाहिए।केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने
के लिए चंद्रघंटा की साधना अनुकूलता देती है।
11-शरीर और आत्मा के सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर मे शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर मे ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।नवरात्र मे निम्न आहार को अधिक महत्व दिया गया है, जिसका सीधा सीधा संबंध हमारे स्वास्थ और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बड़ाने के लिए ही है :-
1. कुट्टू – शैल पुत्री
2. दूध दही – ब्रह्म चारिणी
3. चौलाई – चंद्रघंटा
4. पेठा – कूष्माण्डा
5. श्यामक चावल – स्कन्दमाता
6. हरी तरकारी – कात्यायनी
7. काली मिर्च व तुलसी – कालरात्रि
8. साबूदाना – महागौरी
9. आंवला – सिध्दीदात्री
नवरात्रि के नौ दिन;-
03 FACTS;-
1-नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है।
2- नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले ही वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रियों को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।
3-सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है।
चंडी पाठ का महत्व ;-
06 FACTS;-
1-देवी पाठ दरअसल ध्वनि के द्वारा अपने भीतर की ऊर्जा के विस्तार की एक पद्धति है। ये पाठ प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के श्लोकों में गुंथे वो सात सौ वैज्ञानिक फॉर्म्युले हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो अपने शब्द संयोजन की ध्वनि से हमारे अंदर की बदहाली और तिमिर को नष्ट करने वाली ऊर्जा को सक्रिय कर देने की योग्यता रखते हैं। ये कवच, अर्गला, कीलक, प्रधानिकम रहस्यम, वैकृतिकम रहस्यम और मूर्तिरहस्यम के छह आवरणों में लिपटे हुए हैं।
2-इसके सात सौ मंत्रों में से हर मंत्र अपने चौदह अंगों में गुंथा है, जो इस प्रकार हैं- ऋषि, देवता, बीज, शक्ति, महाविद्या, गुण, ज्ञानेंद्रिय, रस, कर्मेंद्रिय स्वर, तत्व, कला, उत्कीलन और मुद्रा। माना जाता है कि संकल्प और न्यास के साथ इसके उच्चारण से हमारे अंदर एक रासायनिक परिवर्तन होता है, जो आत्मिक शक्ति और आत्मविश्वास को फलक पर पहुंचाने की योग्यता रखता है। मान्यताएं इसे अपनी आंतरिक ऊर्जा के विस्तार में सहायक मानती हैं।
3-लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ।
4-दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
5-वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया।
6-मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
नवरात्रि से जुड़ी कथा;-
03 FACTS;-
1-इस पर्व से जुड़ी एक कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए।
2- महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है। तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।
3-इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा।
13-नवरात्र को ‘ नवरात्र ‘ ही क्यूँ कहते हैं ?-
0 4 FACTS;- 1-‘ रात्रि ‘ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात मे ही मनाने की परंपरा है।यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता
तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता , जैसे नवदिन या शिवदिन
दिन मे आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी … किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे ध्वनि प्रदूषण के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन मे सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।
2-रेडियो इस बात का जीता जागता उदाहरण है। कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन
भी आसानी से सुना जा सकता है।मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य मे समझने और समझाने का प्रयत्न किया। रात्रि मे प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। 3-आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। इसी वैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर मंत्र जप की विचार तरंगों में भी दिन के समय अवरोध रहता है, इसीलिए ऋषि मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है।
4-इसी तथ्य को ध्यान मे रखते हुए , साधक गण रात्रि मे संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं ,उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य पूर्ण होती है।सामान्यजन , दिन मे ही पूजा पाठ निपटा लेते हैं,जबकि एक
साधक , इस अवसर की महत्ता जानता है और ध्यान , मंत्र जप आदि के लिए रात्रि का समय ही चुनता है।
नवरात्र में नियमों का पालन ;-
09 FACTS;-
1-पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल मे एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमे मार्च व सितंबर माह मे पड़ने वाली संधियों मे साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। दिन और रात के तापमान मे अंतर के कारण , ऋतु संधियों मे प्रायः शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है।2-आयुर्वेद के अनुसार इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ मे दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण मे रोगाणु … जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। नवरात्र के विशेष काल मे देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण मे अपनाने गए संयम और अनुशासन, तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं।
3-चैत्र नवरात्र में घर में पूजन करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दौरान पूजा करने वाले साधक को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए।नवरात्रि के दौरान कुछ भक्त... उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं। भक्त इस व्रत के समय मांस, शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नहीं खाते।
4-नवरात्रि और मौसमी परिवर्तन के काल के दौरान अनाज आम तौर पर परहेज कर दिया जाते है क्योंकि मानते है कि अनाज नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता हैं। नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का अवधि है और पारंपरिक रूप से नए उद्यम शुरू करने के लिए एक शुभ और धार्मिक समय है।
5-चैत्र नवरात्र हवन पूजन और स्वास्थ्य के बहुत फायदेमंद होते हैं। इस समय चारों नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल में होते हैं यानी इस समय मौसम में परिवर्तन होता है। इस कारण व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करता है। मन को पहले की तरह दुरुस्त करने के लिए व्रत किए जाते हैं।
6-चैत्र नवरात्र यानी इन नौ दिन में जातक उपवास रखकर अपनी भौतिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और तांत्रिक इच्छाओं को पूरा करने की कामना करता है। इन दिनों में ईश्वरीय शक्ति उपासक के साथ होती है और उसकी इच्छाओं को पूरा करने में सहायक होती है।
7-ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व रखने वाले चैत्र नवरात्र में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य इस दौरान मेष में प्रवेश करता है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने का असर सभी राशियों पर पड़ता है।
8- मान्यता है कि नवरात्र के नौ दिन काफी शुभ होते हैं, इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य बिना सोच-विचार के कर लेना चाहिए। इसका कारण यह है कि पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढ़कने वाली आदिशक्ति इस समय पृथ्वी पर होती है।
9-चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष शुरू होता है। तीसरे चैत्र नवरात्र को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का भगवान राम के रूप में अवतार भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था। इसलिए इनका बहुत अधिक महत्व है।
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नवरात्रि मनाने का रहस्य;-
16 FACTS;-
1-शक्ति से सृजन होता है और शक्ति से ही विध्वंस। वेद कहते हैं शक्ति से ही यह ब्रह्मांड चलायमान है।...शरीर या मन में यदि शक्ति नहीं है तो शरीर और मन का क्या उपयोग। शक्ति के बल पर ही हम संसार में विद्यमान हैं। शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है।
माँ पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर माँ प्रकृति है। जहाँ भी सृजन की शक्ति है वहाँ प्रकृति ही मानी गई है इसीलिए माँ को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है। जिसमें भी जन्म देने की शक्ति है वह प्रकृति ही हैै।
2-अनादिकाल की परम्परा ने माँ के रूप और उनके जीवन रहस्य को बहुत ही विरोधाभासिक बना दिया है। वेदों में ब्रह्मांड की शक्ति को चिद् या प्रकृति कहा गया है। गीता में इसे परा कहा गया है। इसी तरह प्रत्येक ग्रंथों में इस शक्ति को अलग-अलग नाम दिया गया है, लेकिन इसका शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती से कोई संबंध नहीं। फिर भी पुराणकारों ने सभी का संबंध दुर्गा से जोड़ दिया। दुर्गा नाम तो दुर्गमासुर नामक असुर का वध करने के कारण पड़ा। असल में तो माता का मान अम्बा और जगदम्बा है। दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करके जनता को कुतंत्र से मुक्त कराया था। उनकी यह पवित्र गाथा मर्केण्डेय पुराण में मिलती है।
3-इस समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं सिद्धियाँ और शक्तियाँ। स्वयं हमारे भीतर भी कई तरह की शक्तियाँ हैं। ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, मन:शक्ति और क्रियाशक्ति आदि। अनंत हैं शक्तियाँ। वेद में इसे चित्त शक्ति कहा गया है जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है। यह शक्ति सभी के भीतर होती है।
4-जून महीने में आने वाली ग्रीष्म संक्रांति से दक्षिणायन शुरू होता है। दक्षिणायन में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ने लगता है। इसी तरह दिसंबर महीने में आने वाली शीत संक्रांति से उत्तरायण की शुरुआत होती है जिसमें सूर्य की दिशा उत्तर की तरफ हो जाती है। यौगिक संस्कृति में दिसंबर में उत्तरायण की शुरुआत से जून में दक्षिणायन की शुरुआत तक का छह माह का समय ज्ञान पद के नाम से जाना जाता है।
5-दक्षिणायन की शुरुआत से उत्तरायण की शुरुआत तक साल का दूसरा आधा भाग साधना पद के नाम से जाना जाता है। दक्षिणायन का समय अंतरंगता या फिर नारीत्व का समय होता है। इस समय पृथ्वी में नारीत्व से सम्बंधित गुणों की प्रधानता होती है। स्त्रैण ऊर्जा से जुड़े त्यौहार इन्हीं छह महीनों में मनाए जाते हैं। इस धरती की पूरी संस्कृति इसी के अनुकूल रची गई थी। इन दिनों हर महीने, कोई न कोई त्यौहार होता है। साल के इस स्त्रियोचित अर्ध भाग में, 22 सितंबर को शरद इक्वीनॉक्स होता है।
6-आपको पता होगा कि इक्वीनॉक्स उस दिन को कहते हैं जब दिन और रात बराबर होते हैं। इक्वीनॉक्स के बाद की पहली अमावस्या से दिसंबर में उत्तरायण के आरंभ होने तक का, तीन महीने का समय 'देवी पद' कहलाता है। इस तिमाही में, पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सौम्य हो जाता है क्योंकि इस तिमाही में उत्तरी गोलार्ध को सबसे कम धूप मिलती है। इसलिए सब कुछ मंद होता है, ऊर्जा बहुत सक्रिय नहीं होती है।
7-अमावस्या के बाद का दिन नवरात्रि का पहला दिन होता है। नवरात्रि का संबंध देवी से है। कर्नाटक में, नवरात्रि का संबंध चामुंडी से, बंगाल में दुर्गा से है। इसी तरह, यह अलग-अलग जगहों में अलग-अलग देवियों के लिए मनाया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से नवरात्रि का संबंध देवी यानी दिव्यता की स्त्री-शक्ति से ही होता है।
8-स्त्री शक्ति की पूजा धरती पर पूजा का सबसे पुराना रूप है। सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि यूरोप, अरेबिया और अफ्रीका के बड़े हिस्सों में स्त्री शक्ति की पूजा होती थी। दुर्भाग्यवश, पश्चिम में कथित मूर्तिपूजा और एक से ज्यादा देवों की पूजा के सभी नामोनिशान मिटाने के लिए देवी मंदिरों को मिट्टी में मिला दिया गया।
9-आधुनिक शिक्षा का एक दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह है कि हम अपनी तर्कशक्ति पर खरा न उतरने वाली हर चीज को नष्ट कर देना चाहते हैं।
दुनिया के बाकी हिस्सों में भी यही हाल हुआ। भारत इकलौती ऐसी संस्कृति है, जिसने स्त्री शक्ति की पूजा को जारी रखा है। इसी संस्कृति ने हमें अपनी जरूरतों के मुताबिक अपनी देवियां खुद गढ़ने की आजादी भी दी।
10-पुरुष-प्रधान हो जाने के कारण इस देश में भी देवी पूजा बड़े पैमाने पर गोपनीय तरीके से की जाती है। अधिकांश देवी मंदिरों में मुख्य पूजा बस कुछ ही पुजारियों द्वारा की जाती है। मगर इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता।
11-नवरात्रि उत्सव का रहस्य...नवरात्रि का उत्सव ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-शक्ति यानी स्त्रैण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। वे धरती, सूर्य और चंद्रमा या तमस (जड़ता), रजस (सक्रियता, जोश) और सत्व (परे जाना, ज्ञान, शुद्धता) के प्रतीक हैं।
12-जो लोग शक्ति या ताकत चाहते हैं, वे धरती मां या दुर्गा या काली जैसे स्त्रैण रूपों की आराधना करते हैं। धन-दौलत, जोश या भौतिक सौगातों की इच्छा रखने वाले लोग लक्ष्मी या सूर्य की आराधना करते हैं। ज्ञान, विलीन होने या नश्वर शरीर की सीमाओं से परे जाने की इच्छा रखने वाले लोग सरस्वती या चंद्रमा की पूजा करते हैं।
13-नवरात्रि के नौ दिनों को इन्हीं मूल गुणों के आधार पर बांटा गया है। पहले तीन दिन दुर्गा, अगले तीन दिन लक्ष्मी और आखिरी तीन दिन सरस्वती को समर्पित हैं। विजयदशमी का दसवां दिन जीवन के इन तीनों पहलुओं पर जीत को दर्शाता है।
14-यह सिर्फ प्रतीकात्मक ही नहीं है, बल्कि ऊर्जा के स्तर पर भी सत्य है। इंसान के रूप में में हम धरती से निकलते हैं और सक्रिय होते हैं। कुछ समय बाद, हम फिर से जड़ता की स्थिति में चले जाते हैं। सिर्फ व्यक्ति के रूप में हमारे साथ ऐसा नहीं होता, बल्कि तारामंडलों और पूरे ब्रह्मांड के साथ ऐसा हो रहा है। ब्रह्मांड जड़ता की स्थिति से निकल कर सक्रिय होता है और फिर जड़ता की अवस्था में चला जाता है। बस हमारे अंदर इस चक्र को तोड़ने की क्षमता है।
15-इंसान के जीवन और खुशहाली के लिए देवी के पहले दो आयामों की जरूरत होती है। तीसरा परे जाने की इच्छा है। अगर आपको सरस्वती को अपने भीतर उतारना है, तो आपको प्रयास करना होगा। वरना आप उन
तक नहीं पहुंच सकते।नवरात्रि मनाने का सबसे अच्छा तरीका है ...इसे उत्सव की भावना के साथ मनाया जाना चाहिए। जीवन का रहस्य यही है ..गंभीर न होते हुए भी पूरी तरह शामिल होना।
16-अगर आपको सरस्वती को अपने भीतर उतारना है, तो आपको प्रयास करना होगा। वरना आप उन तक नहीं पहुंच सकते।पारंपरिक रूप से
देवी पूजा करने वाली संस्कृतियां जानती थीं कि अस्तित्व में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे कभी समझा नहीं जा सकता। आप उसका आनंद उठा सकते हैं, उसकी सुंदरता का उत्सव मना सकते हैं, मगर कभी उसे समझ नहीं सकते। जीवन एक रहस्य है और हमेशा रहेगा। नवरात्रि का उत्सव इसी मूलभूत ज्ञान पर आधारित है।
..SHIVOHAM....