दक्षिणावर्ती शंख की घर में स्थापना करे....मंदिर में प्रवेश करते समय बड़ा घंटा..भए प्रगट कृपाला......
दक्षिणावर्ती शंख का हिंदु पूजा पद्धती में महत्वपूर्ण स्थान है दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)देवी लक्ष्मी के स्वरुप को दर्शाता है दक्षिणावर्ती शंख ऎश्वर्य एवं समृद्धि का प्रतीक है इस शंख का पूजन एवं ध्यान व्यक्ति को धन संपदा से संपन्न बनाता है और व्यवसाय में सफलता दिलाता है इस Dkshinavarti Shankh में जल भर कर सूर्य को जल चढाने से नेत्र संबंधि रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है तथा रात्रि में इस शंख में जल भर कर सुबह इसके जल को संपूर्ण घर में छिड़कने से सुख शंति बनी रहती है तथा कोई भी बाधा परेशान नहीं करती-
शंख(Shankh)बहुत प्रकार के होते हैं परंतु प्रचलन में मुख्य रूप से दो प्रकार के शंख हैं इसमें प्रथम वामवर्ती शंख और दूसरा दक्षिणावर्ती शंख महत्वपूर्ण होते हैं-वामवर्ती शंख(Wamavarti shankh)बांयी ओर को खुला होता है तथा दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)दायीं ओर खुला होता है तंत्र शास्त्र में वामवर्ती शंख की अपेक्षा दक्षिणावर्ती शंख को विशेष महत्त्व दिया जाता है दक्षिणावर्ती शंख का मुख बंद होता है इसलिए यह शंख बजाया नहीं जाता केवल पूजा कार्य में ही इसका उपयोग होता है इस शंख के कई लाभ देखे जा सकते हैं-
दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)को शुभ फलदायी है यह बहुत पवित्र, विष्णु-प्रिय और लक्ष्मी सहोदर माना जाता है मान्यता अनुसार यदि घर में दक्षिणावर्ती शंख रहता है तो श्री-समृद्धि सदैव बनी रहती है और इस शंख को घर पर रखने से दुस्वप्नों से मुक्ति मिलती है इस Dkshinavarti Shankh को व्यापार स्थल पर रखने से व्यापार में वृद्धि होती है. पारिवारिक वातावरण शांत बनता है-
दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)को स्थापित करने से पूर्व इसका शुद्धिकरण करना चाहिए-बुधवार एवं बृहस्पतिवार के दिन किसी शुभ- मुहूत्त में इसे पंचामृत, दूध, गंगाजल से स्नान कराकर धूप-दीप से पूजा करके चांदी के आसन पर लाल कपडे़ के ऊपर प्रतिष्ठित करना चाहिए-इस शंख का खुला भाग आकाश की ओर तथा मुख वाला भाग अपनी और रखना चाहिए-अक्षत एवं रोली द्वारा इस शंख को भरना चाहिए तथा शंख पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर इसे चंदन, पुष्प, धूप दीप से पंचोपचार पूजा करके ही करके स्थापित करना चाहिए।
स्थापना पश्चात दक्षिणावर्ती शंख का नियमित पूजन एवं दर्शन करना चाहिए तथा अतिशीघ्र फल प्राप्ति के लिए स्फटिक या कमलगट्टे की माला द्वारा निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए यह दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)दरिद्रता से मुक्ति, यश और कीर्ति वृद्धि, संतान प्राप्ति तथा शत्रु भय से मुक्ति प्रदान करता है-
“ऊँ ह्रीं श्रीं नम: श्रीधरकरस्थाय पयोनिधिजातायं लक्ष्मीसहोदराय फलप्रदाय फलप्रदाय श्री दक्षिणावर्त्त शंखाय श्रीं ह्रीं नम:।”
उद्योग-व्यवसाय स्थल हेतु -
अनेक चमत्कारी गुणों के कारण दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)का अपना विशेष महत्व है यह दुर्लभ तथा सर्वाधिक मूल्यवान होता है असली दक्षिणावर्ती शंख को प्राण प्रतिष्ठित कर के उद्योग-व्यवसाय स्थल, कार्यालय, दुकान अथवा घर में स्थापित कर उसकी पूजा करने से दुख-दारिद्र्य से मुक्ति मिलती है और घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है इस शंख की स्थापना करते समय निम्नलिखित श्लोक करना चाहिए-
दक्षिणावर्तेशंखाय यस्य सद्मनितिष्ठति। मंगलानि प्रकुर्वंते तस्य लक्ष्मीः स्वयं स्थिरा। चंदनागुरुकर्पूरैः पूजयेद यो गृहेडन्वहम्। स सौभाग्य कृष्णसमो धनदोपमः।।
तांत्रिक प्रयोगों में भी दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)का उपयोग किया जाता है तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख में विधि पूर्वक जल रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है तथा सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बनता है और नकारात्मक उर्जा दूर हो जाती है इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान पर छिड़कने से तंत्र-मंत्र इत्यादि का प्रभाव समाप्त हो जाता है भाग्य में वृद्धि होती है किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस दक्षिणावर्ती शंख(Dkshinavarti Shankh)के उपयोग द्वारा निष्फल हो जाते हैं दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है इसलिए यह जहां भी स्थापित होता है वहां धन संबंधी समस्याएं भी समाप्त होती हैं।
शंख देता है सुख और रोग से मुक्ति.......................
हमारे हिन्दू धर्म में शंख(Shankh)को पवित्र और शुभ फलदायी माना गया है इसलिए पूजा-पाठ में Shankh(शंख) बजाने का नियम है हम अगर इसके धार्मिक पहलू को दर किनार भी कर दें तो भी घर में शंख(Shankh) रखने और इसे नियमित तौर पर बजाने के ऐसे कई फायदे हैं जो सीधे तौर पर हमारी सेहत और घर की सुख-शांति(Peace Happiness)से जुड़े हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है-शंख(Shankh)से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं।
कल्याणकारी शंख(Shankh)दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है-यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है-विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है।
हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख(Shankh)रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है-शंख(Shankh)निधि का प्रतीक है- ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है-स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नव -निधियों में भी शंख(Shankh)का महत्त्वपूर्ण स्थान है हिन्दू धर्म में शंख(Shankh)का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है- शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है।
यहाँ तक कहा जाता है कि शंख(Shankh)का स्पर्श पाकर साधारण जल भी गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है- मन्दिर में शंख(Shankh)में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है-आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं-जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।
Shankh-शंख में जल भरकर "ऊँ नमोनारायण" का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।
सभी धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्त्व भी है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है-कुछ गुह्य साधनाओं में इसकी अनिवार्यता होती है-शंख(Shankh)साधक को उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है-वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों(Shankh)का प्रयोग किया जाता है।
मानुष हौं तो वही रसखान;-
मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं संग गोकुल गाँव के ग्वारन जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिन्दि कूल कदम्ब की डारन
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मंदिर में प्रवेश करते समय बड़ा घंटा बंधा होता है। प्रवेश करने वाला प्रत्येक भक्त पहले घंटानाद करता है और मंदिर में प्रवेश करता है। क्या वैज्ञानिक कारण है इसके पीछे ? इसका एक वैज्ञानिक कारण है जब हम बृहद घंटा के नीचे खडे रहकर सर ऊंचा करके हाथ उंठाकर घंटा बजाते है तब प्रचंड घंटानाद होता है। यह ध्वनी 330 मिटर प्रती सेकंड इस वेग से अपने उद्गम स्थान से दुर जाती है ध्वनी की यही शक्ती कंपन के माध्यम से प्रवास करती है। आप उस वक्त घंटा के निचे खडे़ होते हैं। अतः ध्वनी का नाद आपके सहस्रारचक्र (ब्रम्हरंध्र, सर के ठीक ऊपर) में प्रवेश कर शरीरमार्ग से भूमी मे प्रवेश करता है। यह ध्वनि प्रवास करते समय आपके मन में (मस्तक में ) चलने वाले असंख्य विचार, चिंता, टेंशन, उदासी, स्ट्रेस, इन नकारात्मक विचारों को अपने साथ ले जाती हैं और आप निर्विकार अवस्था में परमेश्वर के सामने जाते हैं। तब आपके भाव शुद्धता पूर्वक परमेश्वर को समर्पित होते हैं। व् घंटा के नाद की तरंगों की अत्यंत तीव्र के आघात से आस-पास के वातावरण के व् हमारे शरीर के सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता है, जिससे वातावरण मे शुद्धता रहती है व् हमें भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
इसीलिए मंदिर मे प्रवेश करते समय घंटानाद जरुर करें और थोडा समय घंटे के नीचे खडे रह कर घंटा नाद का आनंद जरूर लें। आप चिंतामुक्त व शुचिर्भूत बनेगें। मस्तिष्क ईश्वर की दिव्य ऊर्जा ग्रहण करने हेतू तैयार होगा। ईश्वर की दिव्य ऊर्जा व मंदिर गर्भ की दिव्य ऊर्जा शक्ती आपका मस्तिष्क ग्रहण करेगा। आप प्रसन्न होंगे .
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भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी
हर्षित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी
कहदुई कर जोरी अस्तुति तोरी के बिधि करउं अनंता मायागुन ज्ञाना तीत अमाना वेद पुरान भनंता
करुना सुख सागर सबगुन आगर जेहि गांवहि श्रुतिसंता
सो ममहित लागी जन अनुरागी भयहु प्रगट श्री कंता
ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया रोमरोम प्रति बेद कहे
मन उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मत थिर न रहे उपजा जब ज्ञाना प्रभु मुस्काना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेमलहै माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा यह चरित जे गावहिं हरिपद पावंहि ते न परहिं भवकूपा ।
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