क्या है महामृत्युंजय मंत्र की महिमा?
महामृत्युंजय मंत्र की महिमा;-
05 FACTS;-
1-महामृत्युंजय मंत्र ("मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र") जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है। इस मन्त्र में शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' बताया गया है। यह गायत्री मन्त्र के समकक्ष हिंदू धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है।
2-इस मंत्र के कई नाम और रूप हैं। इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र कहा जाता है; शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मंत्र और इसे कभी कभी मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह कठोर तपस्या पूरी करने के बाद पुरातन ऋषि शुक्र को प्रदान की गई "जीवन बहाल" करने वाली विद्या का एक घटक है।
3-ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है। चिंतन और ध्यान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का सर्वोच्च स्थान है। "महामृत्युंजय मंत्र" भगवान शिव का सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र कहा जाता है। मान्यता है कि महामृत्युंजय मंत्र से शिवजी को प्रसन्न करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। इस मंत्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है। यह मंत्र ऋषि मार्कंडेय द्वारा सबसे पहले पाया गया था।
4-देवता मंत्रों के अधीन होते हैं । मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में ''त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्''। उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
5-शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को 'सर्वोत्तम' महामंत्र' की संज्ञान से विभूषित किया गया है । इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित 'मृतसंजीवनी विद्या' के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- ''मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को 'मृत्युंजय' कहा जाता है।'' सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं- वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं
महामृत्युंजय मंत्र;-
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; मंत्र इस प्रकार है -
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ;- त्र्यंबकम् =
त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक) यजामहे =
हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय सुगंधिम =
मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक) पुष्टिः =
एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता वर्धनम् =
वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली उर्वारुकम् =
ककड़ी (कर्मकारक) इव =
जैसे, इस तरह बन्धनात् =
तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है) मृत्योः =
मृत्यु से मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें मा = न अमृतात् =
अमरता, मोक्ष
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ ;-
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; ''हम तीन नेत्र वाले भगवान शंकर की पूजा करते हैं जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बंधनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं और मोक्ष प्राप्त कर लें''।
''मंत्र'' में दिए अक्षरों की संख्या ;-
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ' लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे 'त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ (8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 वषट तथा ऊँ)निश्चित की हैं।इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं।साथ ही वह नीरोग,ऐश्वर्य युक्ता धनवान भी होता है। महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है। भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।
मंत्र विचार :-
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है। महामृत्युंजय मंत्र के वर्णो (अक्षरों) का अर्थ महामृत्युंजय मंत्र के वर्ण पद वाक्यक चरण आधी ऋचा और सम्पुतर्ण ऋचा-इन छ: अंगों के अलग-अलग अभिप्राय हैं।
त्रि –
ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।
यम –
अध्ववरसु प्राण का घोतक है,जो मुख में स्थित है।
ब –
सोम वसु शक्ति का घोतक है,जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
कम –
जल वसु देवता का घोतक है,जो वाम कर्ण में स्थित है।
य –
वायु वसु का घोतक है,जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
जा-
अग्नि वसु का घोतक है,जो बाम बाहु में स्थित है।
म –
प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
हे –
प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
सु -
वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
ग -
शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
न्धिम् -
गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
पु-
अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।
ष्टि –
अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है,बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
व –
पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
र्ध –
भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है,बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
नम् –
कपाली रुद्र का घोतक है। उरु मूल में स्थित है।
उ-
दिक्पति रुद्र का घोतक है। यक्ष जानु में स्थित है।
र्वा –
स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
रु –
भर्ग रुद्र का घोतक है,जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
क –
धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
मि –
अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
व –
मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
ब –
वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।
न्धा –
अंशु आदित्यद का घोतक है। वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।
नात् –
भगादित्यअ का बोधक है। वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
मृ –
विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो् –
दन्दाददित्य् का बोधक है। वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
मु –
पूषादित्यं का बोधक है। पृष्ठै भगा में स्थित है।
क्षी –
पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है। नाभि स्थिल में स्थित है।
य –
त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है। गुहय भाग में स्थित है।
मां –
विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।
मृ –
प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
तात् –
अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।
NOTE;-
उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्तध देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजत हैं। जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युजय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग – अंग (जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं) उनकी रक्षा होती है। मंत्रगत पदों की शक्तियाँ;-
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों) की शक्तियाँ हैं। उसी प्रकार अलग – अल पदों की भी शक्तियाँ है।
त्र्यम्बकम् –
त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।
यजा-
सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है।
महे-
माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।
सुगन्धिम् –
सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।
पुष्टि –
पुरन्दिरी शक्ति का द्योतक है जो मुख में स्थित है।
वर्धनम –
वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है।
उर्वा –
ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है।
रुक –
रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है।
मिव-
रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है।
बन्धानात् –
बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है।
मृत्यो: –
मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।
मुक्षीय –
मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है।
मा –
माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है।
अमृतात –
अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।
जप करने की विधि ;-
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
सुबह स्नान करते समय गिलास मे पानी लेकर मुह गिलास के पास रखकर ग्यारह बार मंत्र का जप करे फिर उस पानी को अपने उपर प्रवाह कर ले,महादेव की कृपा आप के उपर बनी रहगी.इस मंत्र के 11 लाख अथवा सवा लाख जप का मृत्युंजय कवच यंत्र के साथ जप करने का विधान भी है। यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष के दाहिने तथा स्त्री के बाएँ हाथ पर बाँधने से असाध्य रोगों से मुक्ति होती है।
किस समस्या में इस मंत्र का कितने बार करें जाप;-
04 FACTS;-
1- भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है. 2-रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है. 3-पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है. 4- यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है.
मृत्युंजय मंत्र के प्रकार ;-
08 FACTS;-
1-मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण 'मृतसंजीवनी' तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है।
2-इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
इस प्रकार वेदोक्त 'त्र्यम्बकं यजामहे' मंत्र में ॐ सहित विविध सम्पुट लगने से उपर्युक्त मंत्रों की रचना हुई है।महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है।
3-उपर्युक्त तीन मंत्रों में मृतसंजीवनी मंत्र;-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ।
यह मंत्र सर्वाधिक प्रचलित एवं फल देने वाला माना गया है।
4-लघु मंत्र;-
कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग में आते हैं, जैसे ....
त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला ॐ जूं सः
पंचाक्षरी ॐ हौं जूं सः ॐ तथा ॐ जूं सः पालय पालय आदि।
ॐ हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ।
ॐ हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ। 5-तांत्रिक बीजोक्त मंत्र;- ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ ॥ 6-संजीवनी मंत्र अर्थात् संजीवनी विद्या(प्रभावशाली मंत्र);- ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ। 7-महामृत्युंजय गायत्री (संजीवनी) मंत्र-- ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ.. 8-लघु मृत्युंजय मंत्र;- ॐ हौं जूं सः ,मम पालय पालय, सः जूं ॐ ॥ ॐ हौं जूं स : ( (उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए अनुष्ठान हो रहा हो) पालय पालय स : जूं ॐ || उदाहरण के लिए, राम प्रसाद के लिए जप करना है,जिसके पिता का नाम दिनेश प्रसाद हैं तो .मंत्र इस प्रकार से होगा . ॐ हौं जूं स : दिनेश पुत्रम राम प्रसाद पालय पालय स : जूं ॐ || स्वयम के पुत्र के लिए करना हो तो .. ॐ हौं जूं स : मम पुत्रम (पुत्र का नाम ) पालय पालय स : जूं ॐ || लघु मृत्युंजय मंत्र का महत्व;- 03 FACTS;- `1-महा मृत्युंजय मंत्र का पुनश्चरण सवा लाख है और लघु मृत्युंजय मंत्र का 11 लाख है। नियमानुसार कोई भी मन्त्र जपें, पुरश्चरण सवा लाख करें। इस मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला पर सोमवार से शुरू किया जाता है। अपने घर पर महामृत्युंजय यन्त्र या किसी भी शिवलिंग का पूजन कर जप शुरू करें या फिर सुबह के समय किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का पूजन करें और फिर घर आकर घी का दीपक जलाकर मंत्र का 11 माला जप कम से कम 90 दिन तक रोज करें या एक लाख पूरा होने तक जप करते रहें।अंत में हवन हो सके तो श्रेष्ठ अन्यथा 25 हजार जप और करें। 2-लघु मृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण कराने से वही फल प्राप्त होते हैं जो महामृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण कराने से प्राप्त होते हैं। महामृत्युंजय मंत्र बड़ा है किंतु उसका सवा लाख जाप से ही पुरश्चरण हो जाता है। किंतु लघु मृत्युंजय मंत्र बहुत छोटा है किंतु उसका पुरश्चरण 11 लाख जाप से होता है। इसका दशांश हवन भी अनुष्ठान का ही अंग हैं। इसे सर्व रोग निवारक अनुष्ठान बताया गया है।यदि इतना जप न हो सके तो सवा लाख जप भी किया जा सकता है। इसका दशांश हवन करने से अनुष्ठान पूरा होता है। 3-महामृत्युञ्जय और लघु मृत्युंजय दोनों एक ही हैं। मात्र अंतर जप संख्या का है महा मृत्युंजय पुरश्चरण सवा लाख है और लघु मृत्युंजय की 11 लाख है। यह है सरल व आसान... लेकिन फल समान है। रोगों से मुक्ति के लिए मंत्र के स्वस्वर जाप करके रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। इस बीज मंत्र को जितना तेजी से बोलेंगे आपके शरीर में कंपन होगा और यही औषधि रामबाण होगी। जाप के बाद शिवलिंग पर काले तिल और सरसो का तेल ( तीन बूंद) चढाएं।ॐ हौं जूं सः ( तीन माला) ...
~ लघु महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ ;- ~ ===================================
''ह्रौं";-
''ह्रौं" शिव बीज है। यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तर मुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य १००८ बार जप करने से आश्चर्य जनक परिवर्तन होता है।
जुं;-
1-Mṛtyuṅjaya bīja, the seed of rejuvenation is actually the jīva bīja (seed of life which brings all living beings) is जुं (juṁ). It is formed from the starting syllable of the word जीव (jīva) which is ज (ja).This bīja was taught originally by Lord Śhiva to Bṛhaspati, due to which Bṛhaspati became the preceptor of the gods and due to which he was able to save Indra from definite destruction at the hands of Lord Śhiva.
2-Pleased with his dedication and well-meaning disposition, Lord Śhiva blessed Bṛhaspati to be known as जीव (jīva) by which he shall signify the very existence of life and by whose presence, the god of death Yama will have to turn away.
This power of Bṛhaspati has been explained in the Mahā Nārāyaṇa Upaniṣad.
3-In the Kāla-Chakra Bṛhaspati becomes Śrī Jīva and sits in the southern direction, which is the path of Yama, thereby blocking death from happening. So long as Śrī Jīva sits in his southern direction, the being shall live.
4-Thus, the mṛtyuṅjaya bīja जुं (juṁ) simply means Jīva Upadeśa.The Bīja mantra was obtained by Kahola-ṛṣi; the mantra is in Gāyatrī chandas; the mantra devatā (deity) is Sri Mṛtyuṅjaya (form of Shiva). This mantra is to be used for meditation and at all times for protection from all evils.
HOW TO MEDITATE WITH ''ॐ जुं सः''॥(om juṁ saḥ)-
Meditate with this mantra repeating it very quietly in the mind. Bring the mind to focus on the feet and recite the monosyllable ॐ (om). Then the bīja जुं (juṁ) has to be placed in the heart chakra. Finally the sahasrara chakra on top of the head is brought into metal focus with the seed syllable सः (saḥ). =================================== मंत्र- ॐ हौं जूं सः मम पालय पालय, सःजूं ॐ ॥ 03 FACTS;- विधि ; - 1-अपने या जिसके लिए भी ये प्रयोग करना है उसके नाम या खुद के लिये है तो अपना नाम लेकर संकल्प लेवे |जल शिवलिंग के निकट छोड दे और उक्त मन्त्र का 108 बार जाप करे | 2- फिर दूध की मिठाई और बेलपत्त लेकर 27 बार यही मंत्र पढ कर शिवलिंग पर से घुमाये |7 बार मंत्र पढते हुये शिव से प्रार्थना करे कि भगवान महामृत्युंजय शिव जी सब रोग नष्ट कर दे | 3-फिर इस मंत्र से अभिमंत्रित मिठाई स्वयम खा ले या रोगी को खिला दे साथ ही जल से भरे के गिलास मे गंगाजल की 2-5 बूंद डालकर उसे भी अभिमंत्रित कर पिलाये | सोमवार से 7 दिन करे आशातीत लाभ होगा | महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ;- 14 FACTS;- महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे। अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए- 1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें। 2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं। 3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें। 4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए। 5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें। 6. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें। 7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।इस मंत्र का जाप शिवमंदिर में या किसी शांत एकांत जगह पर रूद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए। 8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें। 9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें। 10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए। 12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ। 13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।मिथ्या बातें न करें। 14. जपकाल के दौरान व्यक्ति को मांस, शराब,काम तथा अन्य सभी तामसिक चीजों से दूर रहना चाहिए। उसे पूर्ण ब्रहमचर्य के साथ रहते हुए अपनी पूजा करनी चाहिए। NOTE;- 1-महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। 2-दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
3-यह मंत्र व्यक्ति को ना ही केवल मृत्यु भय से मुक्ति दिला सकता है बल्कि उसकी अटल मृत्यु को भी टाल सकता है। कहा जाता है कि इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से किसी भी बीमारी तथा अनिष्टकारी ग्रहों के दुष्प्रभाव को खत्म किया जा सकता है। इस मंत्र के जाप से आत्मा के कर्म शुद्ध हो जाते हैं और आयु और यश की प्राप्ति होती है। साथ ही यह मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। 4-आध्यात्म विज्ञान के अनुसार संजीवनी मंत्र के जाप से व्यक्ति में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है जिसे हर व्यक्ति सहन नहीं कर सकता। नतीजतन आदमी या तो कुछ सौ जाप करने में ही पागल हो जाता है इसीलिए इसे गुरू के सान्निध्य में सीखा जाता है और धीरे-धीरे अभ्यास के साथ बढ़ाया जाता है। इसके साथ कुछ विशेष प्राणायाम और अन्य यौगिक क्रियाएं भी होती है ताकि मंत्र से पैदा हुई असीम ऊर्जा को संभाला जा सके।
अथ महामृत्युंजय जप विधिसंकल्प;- तत्र संध्योपासनादिनित्यकर्मानन्तरं भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कृत्वा प्रतिज्ञासंकल्प कुर्यात ॐ तत्सदद्येत्यादि सर्वमुच्चार्य मासोत्तमे मासे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रो अमुकशर्मा/वर्मा/गुप्ता मम शरीरे ज्वरादि-रोगनिवृत्तिपूर्वकमायुरारोग्यलाभार्थं वा धनपुत्रयश सौख्यादिकिकामनासिद्धयर्थ श्रीमहामृत्युंजयदेव प्रीमिकामनया यथासंख्यापरिमितं महामृत्युंजयजपमहं करिष्ये। विनियोग;- अस्य श्री महामृत्युंजयमंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः श्री त्र्यम्बकरुद्रो देवता, श्री बीजम्, ह्रीं शक्तिः, मम अनीष्ठसहूियर्थे जपे विनियोगः। अथ श्रज्ञादिन्यास;- ॐ वसिष्ठऋषये नमः शिरसि। अनुष्ठुछन्दसे नमो मुखे।श्री त्र्यम्बकरुद्र देवतायै नमो हृदि। श्री बीजाय नमोगुह्ये। ह्रीं शक्तये नमोः पादयोः। ॥ इति यष्यादिन्यासः ॥ अथ करन्यासः- ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्रायं शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यं नमः।
ॐ ह्रीं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये माँ जीवय तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम् ओं नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यामाभ्यां वषट्। ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात् ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हां ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम्।
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साममन्त्राय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृताम् ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्निवयाय ज्वल ज्वल माँ रक्ष रक्ष अघारास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
॥ इति करन्यासः॥
अन्य शिव मंत्र;-
ॐ इं क्षं मं औं अं।
ॐ नमो नीलकण्ठाय।
ॐ प्रौं ह्रीं ठः।
ॐ ऊर्ध्व भू फट्।
ॐ नमः शिवाय।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
....SHIVOHAM....