गुप्त नवरात्र का महत्व
गुप्त नवरात्र का महत्व;-
03 FACTS;-
1-देवी दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि वही इस चराचर जगत में शक्ति का संचार करती हैं। उनकी आराधना के लिये ही साल में दो बार बड़े स्तर पर लगातार नौ दिनों तक उनके अनेक रूपों की पूजा की जाती है। 9 दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व को नवरात्र कहा जाता है।एक हिन्दी वर्ष में चार बार नवरात्र आती है। दो नवरात्र सामान्य होती हैं और दो गुप्त होती हैं। चैत्र और आश्विन मास में आने वाली नवरात्र से ज्यादा महत्व गुप्त नवरात्र का माना जाता है।माघ नवरात्री उत्तरी भारत में अधिक प्रसिद्ध है, और आषाढ़ नवरात्रि मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में लोकप्रिय है। 2- साल में दो बार गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। यह साधना हालांकि चैत्र और शारदीय नवरात्र से कठिन होती है लेकिन मान्यता है कि इस साधना के परिणाम बड़े आश्चर्यचकित करने वाले मिलते हैं। इसलिये तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले तांत्रिकों के लिये यह नवरात्र बहुत खास माने जाते हैं।मान्यता है कि गुप्त नवरात्र में की जाने वाली साधना को गुप्त रखा जाता है। इस साधना से देवी जल्दी प्रसन्न होती है। चूंकि मां की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिये इन्हें गुप्त नवरात्र भी कहा जाता है।पौराणिक काल से ही गुप्त नवरात्रि में शक्ति की उपासना की जाती है ताकि जीवन तनाव मुक्त रहे। माना जाता है कि जीवन में अगर कोई समस्या है तो उससे निजात पाने के लिए माँ शक्ति के खास मंत्रों के जप से उससे मुक्ति पाई जा सकती है। 3-शक्ति के दो प्रकार ;- कुछ चीजें गुप्त होती हैं तो कुछ प्रगट। शक्ति भी दो प्रकार की होती है। एक आंतरिक और दूसरी बाह्य। आंतरिक शक्ति का संबंध सीधे तौर पर व्यक्ति के चारित्रिक गुणों से होता है। कहते हैं कि हम क्या है, यह हम ही जानते हैं। दूसरा रूप वह है जो सबके सामने है। हम जैसा दिखते हैं, जैसा करते हैं, जैसा सोचते हैं और जैसा व्यवहार में दिखते हैं। यह सर्वविदित और सर्वदृष्टिगत होता है।लेकिन हमारी आंतरिक शक्ति और ऊर्जा के बारे में केवल हम ही जानते हैं। आंतरिक ऊर्जा या शक्ति दस रूपों में हैं। साधारण शब्दों में इनको धर्म, अर्थ, प्रबंधन, प्रशासन, मन, मस्तिष्क, आंतरिक शक्ति या स्वास्थ्य, योजना, काम और स्मरण के रूप में लिया जाता है। हमारे लोक व्यवहार में बहुत सी बातें गुप्त होती हैं और कुछ प्रगट करने वाली। यही शक्तियां समन्वित रूप से महाविद्या कही गई हैं। गुप्त नवरात्र दस महाविद्या की आराधना का पर्व है।इन दस महाविद्याओं की होती है विशेष पूजा....गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं का पूजन किया जाता है।ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।
क्या है गुप्त नवरात्र की पूजा विधि;-
02 FACTS;- 1-जहां तक पूजा की विधि का सवाल है मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान भी पूजा अन्य नवरात्र की तरह ही करनी चाहिये।शारदीय और चैत्र नवरात्र की तरह ही गुप्त नवरात्र में कलश स्थापना की जाती है। नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा को घटस्थापना कर प्रतिदिन सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा की जाती है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं के पूजन के साथ व्रत का उद्यापन किया जाता है।देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है।तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं।इस पूजा के विषय में किसी और को नहीं बताना चाहिए और मन से मां दुर्गा की आराधना में तल्लीन रहना चाहिए। 2-इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होते हैं तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं। उस समय पृथ्वी पर रुद्र, वरुण, यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है।‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं । ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि
दस महाविद्या और गुप्त नवरात्र;-
04 FACTS;
श्री दुर्गा सप्तशती में कीलकम् में कहा जाता है कि भगवान शंकर ने बहुत सी विद्याओं को गुप्त कर दिया।भगवान शंकर की पत्नी सती ने जिद की कि वह अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां अवश्य जाएंगी। प्रजापति ने यज्ञ में न सती को बुलाया और न अपने दामाद भगवान शंकर को। शंकर जी ने कहा कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाते हैं। लेकिन सती जिद पर अड़ गईं। सती ने उस समय अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन किया।शंकर जी ने सती से पूछा- 'कौन हैं ये?' सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। सामने काली हैं। नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं। मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देती हूं।
2-इन्हीं दस महाविद्याओं के साथ देवी भगवती ने असुरों के साथ संग्राम भी किया। चंड-मुंड और शुम्भ-निशुम्भ वध के समय देवी की यही दश महाविद्या युद्ध करती रहीं। दश महाविद्या की आराधना अपने आंतरिक गुणों और आंतरिक शक्तियों के विकास के लिए की जाती है। यदि अकारण भय सताता हो, शत्रु परेशान करते हों, धर्म और आध्यात्म में मार्ग प्रशस्त करना हो, विद्या-बुद्धि और विवेक का परस्पर समन्वय नहीं कर पाते हों, उनके लिए दश महाविद्या की पूजा विशेष फलदायी है।चैत्र और शारदीय नवरात्र की तुलना में गुप्त नवरात्र में देवी की साधना ज्यादा कठिन होती है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इन नवरात्र में मानसिक पूजा का महत्व है। वाचन गुप्त होता है। लेकिन सतर्कता भी आवश्यक है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि गुप्त नवरात्र केवल तांत्रिक विद्या के लिए ही होते हैं। इनको कोई भी कर सकता है लेकिन थोड़ी सतर्कता रखनी आवश्यक है। दश महाविद्या की पूजा सरल नहीं।
3-कालीकुल और श्री कुल... जिस प्रकार भगवान शंकर के दो रूप हैं एक रुद्र ( काल-महाकाल) और दूसरे शिव, उसी प्रकार देवी भगवती के भी दो कुल हैं- एक काली कुल और श्री कुल। काली कुल उग्रता का प्रतीक है।काली कुल में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी हैं। यह स्वभाव से उग्र हैं। श्री कुल की देवियों में महा-त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला हैं। धूमावती को छोड़कर सभी सौंदर्य की प्रतीक हैं।नवरात्र की देवियां...नौ दुर्गा : 1. शैलपुत्री, 2. ब्रह्मचारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कुष्मांडा, 5. स्कंदमाता, 6. कात्यायनी, 7. कालरात्रि, 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री।गुप्त नवरात्र की देवियां..दस महा विद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
4-दस महाविद्या किसकी प्रतीक?- 1-काली ( समस्त बाधाओं से मुक्ति) 2-तारा ( आर्थिक उन्नति) 3-त्रिपुर सुंदरी ( सौंदर्य और ऐश्वर्य) 4-भुवनेश्वरी ( सुख और शांति) 5-छिन्नमस्ता ( वैभव, शत्रु पर विजय, सम्मोहन) 6-त्रिपुर भैरवी ( सुख-वैभव, विपत्तियों को हरने वाली) 7-धूमावती ( दरिद्रता विनाशिनी) 8-बगलामुखी ( वाद विवाद में विजय, शत्रु पर विजय) 9-मातंगी ( ज्ञान, विज्ञान, सिद्धि, साधना ) 10-कमला ( परम वैभव और धन)
पहला दिन;-
मां काली गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी है। इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी। शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा। नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं और अंत के तीन दिन मां सरस्वति को अर्पित होते हैं।
मां काली की पूजा में मंत्रों का उच्चारण करना है।
मंत्र-ऊँ क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा।
ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा।
दूसरी महाविद्या मां तारा;-
दूसरे दिन मां तारा की पूजा की जाती है। इस पूजा को बुद्धि और संतान के लिये किया जाता है।इस दिन एमसथिस्ट व नीले रंग की माला का जप करने हैं।
मंत्र- ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट।
तीसरी महाविद्या माँ छिन्नमस्ता;-
नवरात्रि के पांचवे दिन माँ छिन्नमस्ता की पूजा होती है। इस दिन पूजा करने से शत्रुओं और रोगों का नाश होता है। इस दिन रूद्राक्ष माला का जप करना चाहिए। अगर किसी का वशीकरण करना है तो उस दौरान इस पूजा करना होता है। राहू से संबंधी किसी भी परेशानी से छुटकारा मिलता है। इस दिन मां को पलाश के फूल चढ़ाएं।
मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा।
चौथी महाविद्या मां त्रिपुरसुंदरी और मां शोडषी; -
अच्छे व्यक्ति व निखरे हुए रूप के लिये इस दिन मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा की जाती है । इस दिन बुध ग्रह के लिये पूजा की जाती है। इस दिन रूद्राक्ष की माला का जप करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:।
पांचवी महाविद्या मां भुवनेश्वरी पूजा;-
इस दिन मोक्ष और दान के लिए पूजा की जाती है। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करना काफी शुभ होगा। चंद्रमा ग्रह संबंधी परेशानी के लिये इस पूजा की जाती है।
मंत्र- ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:।
ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:।
छठी महाविद्या मां त्रिपुर भैरवी ;-
इस दिन नजर दोष व भूत प्रेत संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए पूजा करनी होती है। मूंगे की माला से पूजा करें। मां के साथ बालभद्र की पूजा करना और भी शुभ होगा। इस दिन जन्मकुंडली में लगन में अगर कोई दोष है तो वो दूर होता है।
मंत्र- ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा।
सांतवी महाविद्या मां धूमावती पूजा- इस दिन पूजा करने से द्ररिता का नाश होता है । इस दिन हकीक की माला का पूजा करें।
मंत्र-ऊँ धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा।
आंठवी महाविद्या मां बगलामुखी;-
माँ बगलामुखी की पूजा करने से कोर्ट-कचहरी और नौकरी संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। इस दिन पीले कपड़े पहन कर हल्दी माला का जप करना है। अगर आप की कुंडली में मंगल संबंधी कोई परेशानी है तो मां बगलामुखी की कृपा जल्द ठीक हो जाएगा।
मंत्र-ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा।
नौवीं महाविद्या मां मातंगी -
मां मातंगी की पूजा धरती की ओर और मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए।इस दिन पूजा करने से प्रेम संबंधी परेशानी का नाश होता है। बुद्धि संबंधी परेशानी के लिये भी मां मातंगी पूजा की जाती है।
मंत्र-ऊँ क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा।
दसवी महाविद्या मां कमला;-
मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए। दरअसल गुप्त नवरात्रि के नौंवे दिन दो देवियों की पूजा करनी होती है।
मंत्र-ऊँ क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा
नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए। पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के 'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता है।
नवरात्रि विशेष;-
05 FACTS;
1-गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ मास की नवरात्रि में गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है ।आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है । वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है । ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है।गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी। शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है।मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की ।राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था
2-गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं। जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती। मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है । लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं । जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है ।
3-इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है । यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं । लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती । उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई । पति सन्मार्ग पर आ गया और जीवन माता की कृपा से खिल उठा । यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें । तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं। मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है। हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी । वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है।
4- ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है । यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है ।गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए ।गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है। इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है। अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें। गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है। इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है।
5-धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है।देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है। दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है । यह दमन या अंत होता है.. शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का। ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं । यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है। सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है ।
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
ब्रह्म मंत्र और उनका शक्ति बीज मंत्र;-
ब्रह्म मंत्र का जाप करने से हमें जीवन के चार उद्देश्य धार्मिकता, समृद्धि, सुख और मुक्ति को पूरा करने में मदद मिलती है। जो लोग ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए भी ब्रह्म मंत्र अच्छे हैं। नीचे ब्रह्म के तथा गुप्त नवरात्र में साधना के लिए ब्रह्म-शक्ति.. दो मंत्र दिए गए हैं...
1- " ओम सत चिद एकं ब्रह्मः "
2- "ओम ऐं ह्रीं श्रीं क्लीम सौः सच्चिद एकं ब्रह्मः "
ब्रह्म कौन है? -
"ओम ब्रह्म का नाम है, जिसने इस ब्रह्मांड को अपने तीन गुणों (प्रकृति के गुण: सकारात्मक, नकारात्मक और मौन) के साथ बनाया, जिसने सभी चीजों को रूप दिया और जो सार्वभौमिक है।"ब्रह्मांड के रचनात्मक सिद्धांत को संस्कृत में ब्रह्म कहा जाता है। ब्रह्म सारी सृष्टि के लिए एक रूपक है: इसके नियम, इसकी अंतर्निहित बुद्धि, और इसकी सचेत रूप से प्रकट शक्तियाँ जो संतों, संतों, ऋषियों, देवों, आकाशीय और सभी प्रकार की प्रकृति, स्वभाव और विवरण के दिव्य प्राणियों के रूप में कार्य करती हैं।ओम उपनिषदों में दिया गया संस्कृत नाम है जो सभी प्रकट और अव्यक्त लोकों का योग और सार है।ब्रह्म वह है जो न तो बनाया गया हैं और न ही नष्ट हुआ हैं बल्कि सृजन, जीवन से परे है।ब्रह्म इस ब्रह्मांड के रूप में बनाता है, संचालित करता है और ब्रह्मांड का विनाश करता है ।
ब्रह्म मंत्र का अर्थ ;- ;-
सत = सत्य
चिद = आध्यात्मिक मन की बातें
एकम = एक, एक सेकंड के बिना
ब्रह्म = यह संपूर्ण ब्रह्मांड, इसकी सभी सामग्री के साथ
बीज के साथ ब्रह्म मंत्र;- "ओम ऐं ह्रीं श्रीं क्लीम सौः सच्चिद एकं ब्रह्मः "
ओम;-
ओम कई मंत्रों का उपसर्ग है। यह भौंह केंद्र पर आज्ञा चक्र में ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है, जहां स्त्री और पुरुष धाराएं जुड़ जाती हैं और चेतना एकात्मक और समग्र हो जाती है।
ऐं ;- (उद्देश्य)
माँ सरस्वती के नाम से जाने जाने वाले स्त्री सिद्धांत के लिए एक बीज ध्वनि है। यह सिद्धांत आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ शिक्षा, विज्ञान, कला, संगीत और आध्यात्मिक अनुशासन की भौतिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
ह्रीं ;-
"महामाया" या सृष्टि के पर्दे के लिए एक बीज ध्वनि है। ऐसा कहा जाता है कि इस बीज ध्वनि पर ध्यान करने से ध्यानी को अंततः ब्रह्मांड को "जैसा है" दिखाया जाएगा, न कि जैसा कि हम इसे वर्तमान में देखते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वास्तविकता जैसा कि हम देखते हैं, यह वास्तव में हम सभी के बीच एक "समझौता" है जो पीढ़ी से पीढ़ी तक पारित होता है। बच्चे, अगर वे बात कर सकते हैं, तो ब्रह्मांड के बारे में काफी अलग तरीके से बात करेंगे। वे अंततः सीखते हैं कि मानवता का "समझौता" क्या है और वे दुनिया में कार्य करना शुरू कर देते हैं।
श्रीं ;-
माँ लक्ष्मीके सिद्धांत के लिए बीज ध्वनि है। इसमें भोजन, दोस्तों, परिवार, स्वास्थ्य और असंख्य अन्य चीजों की प्रचुरता अर्थात समृद्धि शामिल है।
क्लीम;-
माँ काली के सिद्धांत के लिए बीज ध्वनि और कई अर्थों वाला एक बीज है। वर्तमान संदर्भ में यह आकर्षण का सिद्धांत है। इस मंत्र में मंत्र ध्यान की प्रक्रिया को तेज करने के लिए अन्य सिद्धांतों के फल को आकर्षित कर रहा है।
सौः ;-
यह एक आध्यात्मिक सिद्धांत है जो आज्ञा चक्र में एक पंखुड़ी के माध्यम से संचालित होता है। यह एक शक्ति सक्रिय करने वाली ध्वनि भी है।
सत;- सत्य
चिद ;- आध्यात्मिक मन की बातें
एकम: एक, एक सेकंड के बिना
ब्रह्म: -यह संपूर्ण ब्रह्मांड, इसकी सभी सामग्री के साथ, जिसे कभी-कभी ब्रह्म भी कहा जाता है, सचेत अस्तित्व की स्थिति जो सब कुछ के साथ एक है।
...SHIVOHAM..
BRAHMAN & HIS SHAKTI BIJA MANTRA;-
Chanting the Brahman Mantra helps us to fulfill the four aims of life righteousness, Prosperity, Pleasures and Liberation. Brahman Mantras are also good for those who wish to gain knowledge. Given below are the TWO Mantras of Lord Brahman....
1-"OM Sat Chid Ekam Brahman"
2-“Om Eim Hrim Shrim Klim Sauh Satchid Ekam Brahman”
WHO IS BRAHMAN?-
03 FACTS;-
1-"Om is the name of Brahman,He who created this cosmos with its three gunas (qualities of nature: positive, negative and quiescent) who brought all things to form and who is universal."
2-The creative principle of the universe is called Brahman in Sanskrit. Brahman is a metaphor for all of creation: its laws, its inherent intelligence, and its consciously manifested potencies which operate as sages, saints, rishis, devas, celestials, and divine beings of all kinds of nature, temperament and description.
3-AUM is the Sanskrit name given in the Upanishads to that which is the sum and substance of all the manifested and unmanifested realms.Brahman is that which is neither created nor destroyed but transcends the creation, life
and destruction of the universe.Brahma creates, operates in the form of this universe.
BRAHMAN MANTRA;- ;- ''AUM SAT CHID EKAM BRAHMAN''
Surface Meaning:-
Sat = Truth Chid = Spiritual mind stuff Ekam = one, without a second Brahman = This entire cosmos, with all of its contents BRAHMAN MANTRA WITH BIJAS;- Here is a longer version of the "Sat Chid Ekam Brahma" mantra:
''AUM EIM HRIM SHRIM KLIM SAUH SAT CHID EKAM BRAHMAN''
AUM;- Om is a prefix to many mantras. It represents the energy at the Ajna chakra at the brow center, where the feminine and masculine currents become joined and consciousness becomes unitary and wholistic.
EIM;- (aim) is a seed sound for the feminine principle known as Saraswati. This principle governs spiritual knowledge as well as the material pursuits of education, science, art, music, and spiritual discipline.
HRIM;- is a seed sound for "mahamaya" or the veil of creation. It is said that meditation on this seed sound will result in the meditator ultimately being shown the universe "as it is" and not as we see it currently. That is because reality as we see it is really an "agreement" among all of us which is passed on from generation to generation. Babies, if they could talk, would speak of the universe in quite a different way. They ultimately learn what humanity's "agreement" is and start to function in the world. For more about the Hrim bija, see the chapter on Narayana.
SHRIM;- is the seed sound for the principle of abundance. This covers the abundance of food, friends, family, health and a myriad other things. Prosperity is, of course, included.
KLIM;- is a seed with several meanings. In the present context, it is the principle of attraction. In this mantra, it is attracting the fruit of the other principles to speed the process of mantra meditation.
SAUH;- is a couple of things. It is a spiritual principle which operates through one of the petals in the Ajna chakra. It is also a shakti activating sound.
SAT ;- Truth
CHID;- Spiritual mind stuff
Ekam: One, without a second
Brahman: This entire cosmos, with all of its contents, sometimes also called Brahman, the state of conscious existence which is one with everything.
....SHIVOHAM...