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सम्मोहन(HYPNOTISM) क्या है?क्या है त्राटक सम्मोहन साधना ?क्या सम्मोहन का प्रयोग साधना के लिए खतरनाक


सम्मोहन क्या है?

05 FACTS;-

1-सम्मोहन शब्द अपने आप में काफी रहस्यपूर्ण है। सम्मोहन भारत की प्रचीनतम विद्याओ में एक है।युगों से इस परामनोविज्ञान की एक श्रेष्ठ विद्या का उपयोग होता रहा है। सामान्य तौर पर किसी को अपने आचरण, बात-व्यवहार, रूप-रंग व सौंदर्य से आकर्षित तो किया जा सकता है, लेकिन इससे उसे तत्काल अपने सम्मोहन में कदापि बांधा नहीं जा सकता है।

2-सम्मोहन विद्या को ही प्राचीनकाल से प्राण विद्या अथवा त्रिकालविद्या के नाम से भी जाना जाता था। इसे मोहिनी और वशीकरण विद्या के नाम से भी जाना जाता हैं। पूर्व काल में साधु-संत और ऋषि-मुनि इस विद्या का प्रयोग सिद्धियां और मोक्ष प्राप्त करने के लिए भी करते थे। त्रिकाल विद्या इसको इसलिए माना जाता है, क्योंकि सम्मोहन विद्या से आखिर में व्यक्ति या साधक भूत भविष्य वर्तमान देखने की क्षमता प्राप्त कर लेता है, जो उसे सर्व सामाथ्र्यवान बनाती है।

3-अंग्रेजी में इसे हिप्नोटिज्म कहते हैं। हिप्नोटिज्म मेस्मेरिज्म का ही सुधरा रूप है। यूनानी भाषा हिप्नॉज से बना है हिप्नोटिज्म जिसका अर्थ होता है निद्रा। 'सम्मोहन' शब्द 'हिप्नोटिज्म' से कहीं ज्यादा व्यापक और सूक्ष्म है। पहले इस विद्या का इस्तेमाल भारतीय साधु-संत सिद्धियां और मोक्ष प्राप्त करने के लिए करते थे। जब यह विद्या गलत लोगों के हाथ लगी तो उन्होंने इसके माध्यम से काला जादू और लोगों को वश में करने का रास्ता अपनाया। मध्यकाल में इस विद्या का भयानक रूप देखने को मिला। फिर यह विद्या खो-सी गई थी।

4-सम्मोहन व्यक्ति के मन की वह अवस्था है जिसमें उसका चेतन मन धीरे-धीरे निद्रा की अवस्था में चला जाता है और अर्धचेतन मन सम्मोहन की प्रक्रिया द्वारा निर्धारित कर दिया जाता है। साधारण नींद और सम्मोहन की नींद में अंतर होता है। साधारण नींद में हमारा चेतन मन अपने आप सो जाता है तथा अर्धचेतन मन जागृत हो जाता है। 5-दुनिया का प्रत्येक धर्म व्यक्ति को बचपन से ही बार-बार दिए जाने वाले सुझाव और निर्देश द्वारा ही नियमों का पालन करने के लिए मजबूर करता है। धर्म इसके लिए ईश्वर का भय और लालच का सहारा लेता है।सम्मोहन निद्रा में सम्मोहनकर्ता चेतन मन को सुलाकर अवचेतन को आगे लाता है और उसे सुझाव के अनुसार कार्य करने के लिए तैयार करता है। हर व्यक्ति का जीवन उसके या किसी और व्यक्ति के सुझावों पर चलता है। व्यक्ति को सम्मोहित करने के लिए उसकी पांचों इंद्रियों के माध्यम से जो प्रभाव उसके मन पर डाला जाता है उसे ही यहां सुझाव कहते हैं।

मन के प्रकार;-

02 FACTS;-

1-मनोविज्ञान के अनुसार हमारे मन के 3 प्रकार है ... 1- चेतन मन (Conscious mind)

2- अवचेतन मन (आदिम आत्मचेतन मन)(Sub Conscious Mind )

3-अचेत मन (Unconscious Mind)

2-हमारे मन की मुख्यतः दो अवस्थाएं (कई स्तर) होती हैं- 2-1- चेतन मन( Conscious Mind) :-

इसे जाग्रत मन भी मान सकते हैं। चेतन मन में रहकर ही हम दैनिक कार्यों को निपटाते हैं अर्थात खुली आंखों से हम कार्य करते हैं। विज्ञान के अनुसार मस्तिष्क का वह भाग जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमें होती है। यह वस्तुनिष्ठ एवं तर्क पर आधारित होता है। 2-2- अवचेतन मन(Sub Conscious Mind) :-

04 POINTS;-

1-जो मन सपने देख रहा है वह अवचेतन मन है। इसे अर्धचेतन मन भी कहते हैं। गहरी सुसुप्ति अवस्था में भी यह मन जाग्रत रहता है। विज्ञान के अनुसार जाग्रत मस्तिष्क के परे मस्तिष्क का हिस्सा अवचेतन मन होता है। हमें इसकी जानकारी नहीं होती।सम्मोहन के दौरान अवचेतन मन को जाग्रत किया जाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति की शक्ति बढ़ जाती है लेकिन उसका उसे आभास नहीं होता, क्योंकि उस वक्त वह सम्मोहनकर्ता के निर्देशों का ही पालन कर रहा होता है।

2-अचेतन मन जो हमारी इच्छाशक्ति और चेतन स्वरुप से परे है और उससे सम्पर्क सामान्य अवस्था में नहीं किया जा सकता।अचेतन मन को सुप्त या अचेत [ अन्-कांशियस ] मन भी कहा जा सकता है।इसी अचेतन सुप्त मन के चार विभाग हैं:

2-1-एक मन जो आत्मा को परमेश्वर से जोड़ता है।

2-2-एक मन जो परमेश्वर के प्रतिरूप की ज्योति में आत्मा के अंतकरण में विद्यमान रहता है ।

2-3-एक मन जो सब प्राचीन जीवन कालों, कृत्यों, कर्मों और संचित व्यवहार और ज्ञान को सूचक पुरालेख के सयोंजन में सलंग्न है।

2-4-एक मन जो संचित भावों, नकारात्मक या सकारात्मक का लेख जोखा रखता है।

3-चेतन मन पूरे दिमाग का केवल 10% होता है। जिसमे –-इच्छा शक्ति (Will Power)-याददाश्त (Memory)-तर्क शक्ति (Logical power )-गंभीर सोच (Critical Thinking )होतें है।

4-अवचेतन मन पूरे दिमाग का केवल 90% होता है। जिसमे –-आदतें (Habits)-मान्यताएं (Beliefs )-भावनाएँ (Emotions)-प्रतिक्रियाओं (Reactions)-मजबूत मेमोरी (Strong Memory)-अंतर्ज्ञान आदि (Intuition etc)होतें है।

अवचेतन मन की शक्ति : -

03 FACTS;-

1-हमारा अवचेतन मन चेतन मन की अपेक्षा अधिक याद रखता है एवं सुझावों को ग्रहण करता है। आदिम आत्मचेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। 2-यह मन हमें आने वाले खतरे या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। इसे आप छठी इंद्री भी कह सकते हैं। यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन 6 माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास भी करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उक्त मन को साधना ही सम्मोहन है।

3-अवचेतन को साधने का असर ..सम्मोहन द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। इसके सधने से व्यक्ति को बीमारी या रोग के होने का पूर्वाभास हो जाता है।

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सम्मोहन के प्रकार :-

1-वैसे सम्मोहन के कई प्रकार हैं, लेकिन मुख्‍यत: 5 प्रकार माने गए हैं-

1-1-1. आत्म सम्मोहन

1-2. पर सम्मोहन

1-3. समूह सम्मोहन

1-4. प्राणी सम्मोहन

1-5. परामनोविज्ञान सम्मोहन 1- आत्म सम्मोहन क्या है?

वास्तव में सभी प्रकार के सम्मोहनों का मूल आत्म सम्मोहन ही है। इसमें व्यक्ति खुद को सुझाव या निर्देश देकर तन और मन में मनोवांछित प्रभाव डालता है। 2- पर सम्मोहन क्या है?

पर सम्मोहन का अर्थ है दूसरे को सम्मोहित करना। इसमें सम्मोहनकर्ता दूसरे व्यक्ति को सम्मोहित कर उसके मनोविकारों को दूर कर उसके व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक निर्देश दे सकता है या उसके माध्यम से लोगों को चमत्कार भी दिखा सकता है।

सम्मोहन में सुझाव या निर्देश का प्रभाव :-

02 FACTS;-

1-व्यक्ति को सम्मोहित करने के लिए उसकी पांचों इंद्रियों के माध्यम से उसे जो सुझाव प्रभाव, वस्तु, आवाज, सुगंधी, खाने वाली वस्तु के स्वाद, स्पर्श, आदि द्वारा दिया जा सकता है, वह देते हैं। सुझावों द्वारा व्यक्ति सम्मोहित हो जाता है। 2-एक कहावत है- 'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात है सिल पर पड़त निशान' अर्थात बार-बार प्रयास करने से बुद्धिहीन मस्तिष्क भी काम करने लगता है। सम्मोहन में यही किया जाता है। विशेष सुझाव और निर्देश को बार-बार दोहराया जाता है। इस दोहराव से ही व्यक्ति अपने अवचेतन मन में चला जाता है और फिर वह उन सुझावों को सत्य मानने लगता है।

सम्मोहन करने या सीखने के पूर्व :-

02 FACTS;-

1-सम्मोहन करने से पूर्व सम्मोहन सीखना होगा। सम्मोहन सीखने के लिए आत्म सम्मोहन को करना होगा। आत्म सम्मोहन को करने के लिए अवचेतन मन को समझना होगा और इसे शक्तिशाली बनाना होगा। 2-चेतन मन से अवचेतन मन में जाकर उस मन में चेतना को जाग्रत रखना ही आत्म सम्मोहन है। जैसे कभी-कभी सपनों में आपको इस बात का भान हो जाता है कि सपने चल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि आप चेतन और अवचेतन मन के बीच अचेतन मन में हैं। इसे अर्धचेतन मन भी कह सकते हैं।

कैसे साधें इस मन को : 03 FACTS;- 1-पहला तरीका : -

वैसे इस मन को साधने के बहुत से तरीके या विधियां हैं, लेकिन सीधा रास्ता है कि प्राणायाम से सीधे प्रत्याहार और प्रत्याहार से धारणा को साधें। जब आपका मन स्थिर चित्त हो, एक ही दिशा में गमन करे और इसका अभ्यास गहराने लगे तब आप अपनी इंद्रियों में ऐसी शक्ति का अनुभव करने लगेंगे जिसको आम इंसान अनुभव नहीं कर सकता। इसको साधने के लिए त्राटक भी कर सकते हैं। त्राटक भी कई प्रकार से किया जाता है। ध्यान, प्राणायाम और नेत्र त्राटक द्वारा आत्म सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है। दूसरा तरीका :-

शवासन में लेट जाएं और आंखें बंद कर ध्यान करें। लगातार इसका अभ्यास करें और योग निद्रा में जाने का प्रयास करें। योग निद्रा अर्थात शरीर और चेतन मन इस अवस्था में सो जाता है लेकिन अवचेतन मन जाग्रत रहता है। समझाने के लिए कहना होगा कि शरीर और मन सो जाता है लेकिन आप जागे रहते हैं। यह जाग्रत अवस्था जब गहराने लगती है तो आप ईथर माध्‍यम से जुड़ जाते हैं और फिर खुद को निर्देश देकर कुछ भी करने की क्षमता रखते हैं। 3-अन्य तरीके :

कुछ लोग अंगूठे को आंखों की सीध में रखकर, तो कुछ लोग स्पाइरल (सम्मोहन चक्र), कुछ लोग घड़ी के पेंडुलम को हिलाते हुए, कुछ लोग लाल बल्ब को एकटक देखते हुए और कुछ लोग मोमबत्ती को एकटक देखते हुए भी उक्त साधना को करते हैं, लेकिन हम नहीं जानते...यह कितना सही है।

सम्मोहित करने के प्रकार (TYPES OF HYPNOSIS);-

05 FACTS;-

सम्मोहित करने के प्रकार निम्नवत है-

1-साधारण सम्मोहन- इस तरह के सम्मोहन में व्यक्ति सिर्फ उपर से सम्मोहित होता है। वो आपकी सिर्फ वही बाते मानेगा जो उसको उचित लगेगी।

2-दूसरे स्तर का सम्मोहन- इसमें व्यक्ति आपकी जादातर बाते मानता है पर सभी नही। यदि आप उससे किसी का कुछ बुरा करने को कहेंगे तो वो नही करेगा।

3-तीसरे स्तर का सम्मोहन- इसके द्वारा किसी व्यक्ति को पूरी तरह से सम्मोहित कर सकते है। व्यक्ति के मन में दूसरी बाते भी डाल सकते है।

4-पोस्ट हिप्टोनिस्म- इसमें व्यक्ति किसी वस्तु की मदद से लोगो को सम्मोहित करता है। उदाहरण के तौर पर – रुमाल, पेन आदि।

5-स्व: सम्मोहन- इसमें व्यक्ति खुद को ही सम्मोहित कर लेता है। अपने मन, मस्तिष्क पर कंट्रोल कर लेता है।

साधारण सम्मोहन क्या है?

यह मात्र सतही सम्मोहन होता है, इसमें व्यक्ति केवल उपरी तौर पर ही सम्मोहित होता है और सम्मोहित व्यक्ति आपकी वही बातें मानेगा जो उसके अनुकूल होगी, जो बात उसके आचरण, धर्म व विश्वास के विपरीत होगी, ऐसी बात वह कभी नहीं मानेगा, यानी कहने का आशय यह हुआ कि वह स्वयं के हित को सर्वोपरि रखेगा, वह आपके सम्मोहन में तो जरूर होगा, लेकिन करेगा अपने हित को ध्यान में रखकर।

2 -क्या है दूसरे स्तर का सम्मोहन क्या है?

दूसरे स्तर पर सम्मोहित किया गया व्यक्ति आपकी आज्ञा के अनुसार कार्य करने लगता है, लेकिन इस स्तर पर भी वह सम्मोहनकर्ता की सभी बातें नहीं मानता। कल्पना कर लीजिए, अगर सम्मोहनकर्ता सम्मोहित व्यक्ति से कहता है कि वह किसी का हत्या कर दे या फिर उसके किसी प्रिय का अपमान कर दे, तो सम्मोहित व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा। वह ऐसा कोई अन्य कार्य भी नहीं करेगा तो उनके व्यवहार, संस्कार व आचरण के प्रतिकूल होगा। वह वहीं करेगा, जो उसके आचरण के अनुकूल होगा।

3- तीसरे स्तर का सम्मोहन क्या है?

इस स्तर पर सम्मोहित व्यक्ति पूरी तरह से सम्मोहनकर्ता के वश में होता है। सम्मोहनकर्ता जो भी उस व्यक्ति को आज्ञा देगा, वह व्यक्ति उसकी बात अवश्य मान लेता है। इस स्तर पर सम्मोहित व्यक्ति के मन में कोई बात भी डाली जा सकती है। जिसे वह व्यक्ति मानने लगता है। उदाहरण स्वरूप अब से आपको मिर्ची मीठी लगने लगेगी, अचार फीका लगेगा और इसके बाद अगर सम्मोहन तोड़ दिया जाए तो आपको बहुत ज्यादा हैरानी होगी कि सम्मोहित व्यक्ति को मिर्ची मीठी लगने लग जाएगी और आचार फीका लगने लगेगा।

4-पोस्ट हिप्नोटिज्म क्या है?

सम्मोहन का एक अन्य तरीका भी है, जिसे पोस्ट हिप्नोटिज्म कहा जाता है, इस सम्मोहन के तहत व्यक्ति सीधे तौर पर किसी दूसरे व्यक्ति को सम्मोहित नहीं करता है, बल्कि वह किसी वस्तु के माध्यम से दूसरे व्यक्ति को सम्मोहित करता है। उदाहरण स्वरूप सम्मोहनकर्ता एक रुमाल पर सम्मोहन करता है और उसे भावना देता है कि जो भी व्यक्ति इस रुमाल को देखेगा, वह उसके अनुकूल हो जाएगा।

यह बहुत हैरान कर देने वाला तथ्य यह है कि इस प्रकार का सम्मोहन भी पूरी तरह से काम करता है। यह सम्मोहन का काफी प्रभावी तरीका है।

5-स्व: सम्मोहन क्या है?

इस प्रक्रिया में सम्मोहन कर्ता स्वयं का सम्मोहन करता है। सम्मोहन की इस प्रक्रिया में व्यक्ति का उसके मस्तिष्क पर नियंत्रण बढ़ जाता है और इससे उसका मस्तिष्क सशक्त हो जाता है। यह विद्या आत्मोत्थान के लिए प्रभावी मानी गई है।

सम्मोहन से लाभ;-

12 FACTS;-

सम्मोहन से निम्नलिखित फायदे हो सकते हैं- 1. किसी भी शारीरिक रोग को कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है। 2. किसी भी मानसिक रोग को बहुत हद तक ठीक किया जा सकता है। 3. इसके माध्यम से किसी भी प्रकार का डर या फोबिया दूर किया जा सकता है। 4. इससे व्यक्ति का विकास कर सफलता अर्जित की जा सकती है। 5. सम्मोहन से दूर बैठे किसी भी व्यक्ति की स्थिति जानी जा सकती है।6. इसके माध्यम से शरीर से बाहर निकलकर हवा में घूमा जा सकता है। 7. इसके माध्यम से भूत, भविष्य और वर्तमान की घटनाओं को जाना जा सकता है। 8. इससे अपने पिछले जन्म को जाना जा सकता है। 9. इसके माध्यम से किसी की भी जान बचाई जा सकती है। 10. इसके माध्यम से लोगों का दु:ख-दर्द दूर किया जा सकता है। 11. इसके माध्यम से खुद की बुरी आदतों से छुटकारा पाया जा सकता है।

12. इसके माध्यम से भरपूर आत्मविश्वास और निडरता हासिल की जा सकती है।

कैसे काम करता है सम्मोहन?-

असलियत में सम्मोहन हमारी मानसिक शक्ति पर निर्भर करता है। सम्मोहन पूरी तरह से हमारे अचेतन मस्तिष्क पर आधारित होता है, हमारा अवचेतन मस्तिष्क जितना ही शक्तिशाली व एकाग्र होगा, उतनी हमारी सम्मोहन शक्ति प्रबल होती जाएगी। यूं तो हमारे अवचेतन मस्तिष्क को शक्तिशाली व एकाग्र करने की अनेक विधियां शास्त्रों में बताई गई है, लेकिन उन विधियों में भी दो विधियां प्रमुख है। पहली है त्राटक तो दूसरी है ध्यान।

त्राटक क्या है?–

किसी वस्तु अथवा बिंदु को एकटक बिना पलक झपकाए देखने को त्राटक कहते हैं। त्राटक ही सम्मोहन की पहली सीढ़ी हैं। इस सीढ़ी पर चल कर साधक मन और इंद्रियों को वश में करने का प्रयास करता है। विशेष तौर पर मन और नेत्रों को वश में करने का प्रयास करते है।

ध्यान क्या है?–

आंखें बंद कर किसी व्यक्ति, वस्तु या निराकार तत्व के बारे में बिना कोई अन्य विचार लाए सोचने को ध्यान कहते हैं। ध्यान के माध्यम से मानसिक शक्तियां प्रबल होती है, यह सर्वाधिक प्रभावी साधना है। ये दोनों विद्याएं ही अत्यंत शक्तिशाली है। आप त्राटक के माध्यम से एक सफल सम्मोहनकर्ता बन सकते हैं। यह विद्या अपेक्षित रूप से सहज भी होती है, क्योकि ध्यान के माध्यम से मन और मस्तिष्क को साधना हर व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है।

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क्या है त्राटक सम्मोहन साधना ?-

02 FACTS;-

1-जिस प्रकार आम जीवन में इंसान तरक्की के लिए विभिन्न क्षेत्रों को अपनाता है उसी प्रकार आध्यात्मिक जीवन के उत्थान हेतु भी इंसान अपनी रुचि के अनुसार क्षेत्र चुनता है| जैसे – तंत्र-मंत्र, ज्योतिष, भक्ति, योग| त्राटक सिद्धि योग का एक हिस्सा है जो विशेष प्रकार की ध्यान विधि पर आधारित है|

2-यद्यपि आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए सभी क्षेत्रों में ध्यान पर बल दिया गया है| जैसे भक्ति में भी भक्ति ईश्वर के ध्यान में लीन रहता है| तंत्र मंत्र में मंत्र सिद्धि हेतु किसी निश्चित विषय पर ध्यान केन्द्रित करना होता है| ध्यान की अवस्था में मनुष्य की समस्त ऊर्जा एक दिशा में प्रवाहित होने लगती है और वही साधना को परिणाम तक पहुंचाती है|

त्राटक सम्मोहन साधना;-

04 FACTS;-

1-त्राटक साधना पूरी तरह ध्यान पर ही आध्रारित है| शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से किसी विषय पर एकटक दृष्टि रखना त्राटक कहलाता है| अष्टांगिक योग के आठ चरणों में सबसे अंतिम ध्यान है| ध्यान के कई प्रकार बताए गए हैं, इनमे त्राटक सर्वोत्कृष्ट माना जाता है क्योंकि आम जीवन जीने वाले भी इस विधि से अनेक विशेष गुणो से सम्पन्न हो सकते हैं| ध्यान नेत्र खोलकर भी की जा सकती है और नेत्र बंद करके भी|

2-बंद नेत्र द्वारा किए जाने वाले ध्यान में किसी आराध्य छवि की कल्पना होती है| परंतु नेत्र खोलकर किए जाने वाले ध्यान में किसी आराध्य को होना आवश्यक नहीं है| बल्कि अपने सामने किसी वस्तु को एकटक देखते हुए उसके द्वारा मूर्त से अमूर्त तक पहुँचते हैं|

3-सांख्य-योग दर्शन शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर में ही ब्रम्ह का वास है, जिन्हें प्राप्त करने के लिए योग क्रिया की जाती है| कुंडली जागृत होते ही इंसान ‘अहम ब्रम्हास्मि’ का बोध कर लेता है| ठीक उसी प्रकार त्राटक द्वारा साधक उस दिव्य दृष्टि को प्राप्त करता है, जो सूक्ष्म रूप से प्रत्येक मनुष्य में है परंतु सुप्त रूप में|

4-त्राटक साधना अत्यंत सरल है परंतु साधक में कुछ विशेष गुणो का होना आवश्यक है जैसे ....

4-1-साधना के प्रति निष्ठा हो

4-2-शारीरिक रूप से स्वस्थ हो

4-3-व्यभिचारी न हो

4-4-यम, नियम का पालन करने वाला हो

4-5-तामसिक भोजन का रसिक न हो

त्राटक साधना कैसे करें?-

05 FACTS;-

इस साधना के कई प्रकार है| कुछ प्रमुख प्रकारों का वर्णन नीचे दिया जा रहा है| आप अपनी रुचि के अनुसार इनमे से कोई एक चुन सकते हैं| एक बार मे एक ही विधि चुने| उक्त विधि कष्टप्रद हो तो कुछ दिन विश्राम करें| पुनः अन्य विधि से प्रारम्भ करें|

1-एकान्त कक्ष में एक ऐसा कैनवास रखें जिसमे काले पृष्ठभुमि पर लाल अथवा सफ़ेद बिन्दु हो| स्नान के बाद प्रातः काल स्वच्छ आसन पर बैठें तथा उस बिन्दु पर अपना ध्यान केन्द्रित करें| कुछ देर बार वह बिन्दु चमकीली नज़र आएगी| आपको अपने शरीर का भान समाप्त हो जाएगा| प्रारम्भ में एक मिनट का लक्ष्य रखें| फिर इसे धीरे धीरे बढ़ा दें|

2-दूसरी विधि में ध्यान के लिए दीपक का सहारा लिया जा सकता है| आकार में बड़े दीपक को जलाकर उसके समक्ष बैठ जाएँ तथा उस पर ध्यान केन्द्रित करें| ध्यान से पहले कक्ष की बत्ती बुझा दें| ध्यान रखें लौ में किसी प्रकार का कंपन न हो| प्रारम्भ में ध्यान भटकते ही छोड़ दें| अगले दिन पुनः प्रयास करें|

3-तीसरी विधि में आईने की सहाता से त्राटक साधना की जा सकती है| आईना कम से कम 6 इंच चौड़ा तथा 8 इंच लंबा हो तो अति उत्तम| एकांत कक्ष में बैठकर आईना अपने सामने रखें तथा खुद से नज़र मिलाएँ| धीरे-धीरे अपनी ही आँखों की पुतलियों पर ध्यान केन्द्रित करें| एक स्थिति ऐसी आएगी जिसमे आपको खुद का चेहरा दिखाई देना बंद हो जाएगा| अंत में वह पुतली भी नहीं दिखेगी|

4-चौथी विधि में सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उगते हुए सूर्य पर ध्यान केन्द्रित करें| स्मरण रखें ध्यान केन्द्रित करें का आशय उसे एकटक देखते रहने से हैं| इस त्राटक विधि से सूर्य की लालिमा साधक को कान्ति प्रदान करती है तथा स्वाभाविक ऊर्जा से भर देती है|

5-इसके अलावा सरलता से उपलब्ध किसी भी वस्तु को एकटक देखते हुए यह साधना की जा सकती है| जैसे दीवार पर टंगी कोई तस्वीर, गमला आदि|

सावधानी;-

05 FACTS;-

1-किसी भी विधि से यह साधना करें लेकिन ध्यान रखे साधना के लिए बैठते वक्त पेट न तो पूरी तरह खाली हो.. ना पूरी तरह भरा हो| खाली पेट गैस बनाता है, पेट दर्द की शिकायत हो सकती है| इसलिए थोड़ा बहुत खाकर बैठना नुकसान नहीं करता| परंतु पूरी तरह भरे पेट से बैठना और एकाग्र होना भी संभव नहीं होता|

2-यदि परिवार के मध्य रहते हो तो घर के सभी सदस्यों को पता होना चाहिए कि इस वक्त आपको आवाज नहीं देना है| फोन अलार्म आदि बंद रखें| यहाँ तक कि दरवाजे पर दस्तक होने पर कौन द्वार खोलेगा यह भी सुनिचित कर लें|

3-जल्दी जल्दी साधना विधि न बदले| जिस विधि का चुनाव करें उस पर कम से कम छह महीने परिश्रम करें|

त्राटक साधना से लाभ;-

05 FACTS;-

1-त्राटक साधना तंत्र- मंत्र से सर्वथा भिन्न मार्ग है| इसे किसी निश्चित दिन, निश्चित रंग के कपड़े ,प्रसाद, धूप- दीप, अगरबत्ती से कुछ भी लेना देना नहीं है| इसकी सफलता आत्म शक्ति पर निर्भर करती है.. जिसे अंग्रेजी में विल पावर कहा जाता है| यह एक सतत प्रक्रिया है| इसलिए दो-माह चार माह की सीमा में बांधने के बजाय इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें|

2-जिस प्रकार बैटरी कुछ दिन बाद फ्यूज हो जाती है, उसी प्रकार इस साधना के बाद प्राप्त हुआ ओज धीरे धीरे मद्धम पड़ जाता है| यह ओज बनी रहे इसलिए प्रतिदिन थोड़ी ही देर के लिए सही.. त्राटक अवश्य करें| ध्यान रखने योग्य बात यह है कि किसी भी विधि से यह साधना करने पर लाभ और नुकसान एक समान ही है|

3-इस साधना से चेहरे पर कान्ति आती है| व्यक्तित्व में आकर्षण उत्पन्न होता है| नेत्र में इतना तेज आ जाता है कि किसी को देखते ही वह सम्मोहित हो जाता है| यह सम्मोहन तंत्र-मंत्र से प्राप्त सम्मोहन शक्ति से पृथक है| इसे सौम्य सम्मोहन कह सकते हैं जो आपमे आई सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से उत्पन्न होता है|

4-स्वभाव में आमूल चूल परिवर्तन हो जाता है| पहले बात बात पर उत्तेजित होने वाला इंसान इस साधना के बाद धीर गंभीर और सोच समझकर निर्णय लेने वाला बन जाता है|

5-इस साधना के बाद एकाग्रता अत्यधिक बढ़ जाती है| छात्रों के लिए यह साधना रामबाण है| त्राटक अभ्यास के बाद कठिन से कठिन विषय पर ध्यान केन्द्रित करना सरल हो जाता है|

त्राटक साधना से नुकसान;-

02 FACTS;-

1-विश्व में जितनी भी वस्तु अथवा विषय है उसके दो पहलू होते हैं| इन्हें अपनाने से पूर्व दोनों पहलुओं पर विचार कर लेना जरूरी होता है| यद्यपि यह साधना अत्यंत सरल है| मात्र इच्छा शक्ति के दम पर साधक अनेक विशिष्ट गुणो का स्वामी बन सकता है| तथापि त्रुटि होने पर कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, जैसे –साधना काल में अचानक तेज ध्वनि होने पर साधक अचेत हो सकता है| यहाँ तक कि हृदय गति रुक भी सकती है|

2-लगातार एकटक देखने से कभी-कभी आंखो में समस्या आने लगती है| आँसू निकल आते हैं या साधना के तुरंत बाद देखने में समस्या आने लगती है| दो चार दिन साधना करने के बाद नेत्र चिकित्सक से इसके प्रभाव की जांच करवाएँ| यदि पहले से नेत्र संबंधी समस्या हो तो यह साधना न करें|

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क्या सम्मोहन का प्रयोग साधना के लिए खतरनाक भी हो सकता है?

21 FACTS;-

1-सम्मोहन एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है। लाभप्रद भी है, खतरनाक भी। असल में जिस चीज से भी लाभ पहुंच सकता हो, उससे खतरा भी हो सकता है। खतरा होता ही उससे है, जिससे लाभ हो सकता हो। जिसमें लाभ की शक्ति है, उसमें नुकसान की शक्ति भी होती है।

तो सम्मोहन कोई होमियोपैथिक दवा नहीं है कि जिससे सिर्फ लाभ ही पहुंचता हो और नुकसान न होता हो।

2-सम्मोहन के संबंध में बड़ी भ्रांतिया हैं। पूरब में भ्रातियों का बहुत जोर है.. और आश्चर्य की बात तो यह है कि पूरब ही सम्मोहन का पहला खोजी है। लेकिन हम उसे दूसरा नाम देते थे। हमने उसे योग—तंद्रा कहा है। नाम हमारा बढ़िया है। नाम सुनते ही अंतर पड़ जाता है।

हिप्‍नोसिस का मतलब भी तंद्रा है। वह भी ग्रीक शब्द हिप्‍नोस से बना है, जिसका अर्थ नींद होता है।

3-दो तरह की नींद संभव है। एक तो नींद, जब आपका शरीर थक जाता है, रात आप सो जाते हैं। वह प्राकृतिक है। दूसरी नींद है, जो चेष्टा करके आप में लाई जा सकती है। योग—तंद्रा या सम्मोहन या हिप्‍नोसिस वही दूसरी तरह की नींद है। रात जब आप सोते हैं, तब आपका चेतन मन धीरे—धीरे, धीरे— धीरे शात हो जाता है। और अचेतन मन सक्रिय हो जाता है। आपके मन की गहरी परतों में आप उतर जाते हैं। सम्मोहन में भी चेष्टापूर्वक यही प्रयोग किया जाता है कि आपके मन की ऊपर की पर्त, जो रोज सक्रिय रहती है, उसे सुला दिया जाता है। और आपके भीतर का मन सक्रिय हो जाता है।

4-भीतर का मन ज्यादा सत्य है। क्योंकि भीतर के मन को समाज विकृत नहीं कर पाया है। भीतर का मन ज्यादा प्रामाणिक है। क्योंकि भीतर का मन अभी भी प्रकृति के अनुसार चलता है। भीतर के मन में कोई पाखंड, कोई धोखा, भीतर के मन में कोई संदेह, कोई शक—सुबहा कुछ भी नहीं है। भीतर का मन एकदम निर्दोष है .. बच्चे का जैसा । धूल तो ऊपर—ऊपर जम गई है। मन के बाहर की परतों पर कचरा इकट्ठा हो गया है। भीतर जैसे हम प्रवेश करते हैं, वैसा शुद्ध मन उपलब्ध होता है।

5- हिप्‍नोसिस के द्वारा इस शुद्ध मन से संपर्क स्थापित किया जा सकता है। स्वभावत:, लाभ भी हो सकता है, खतरा भी।अगर कोई खतरा पहुंचाना चाहे, तो भी पहुंचा सकता है।

क्‍योंकि वह भीतर का मन संदेह नहीं करता है। उससे जो भी कहा जाता है, वह मान लेता है। वह परम श्रद्धावान है।

6-अगर एक पुरुष को सम्मोहित करके कहा जाए कि तुम पुरुष नहीं, स्त्री हो, तो वह स्वीकार कर लेता है कि मैं स्त्री हूं। उस पुरुष को कहा जाए कि तुम्हारे सामने यह गाय खड़ी है—और वहा कोई भी नहीं खडा है—अब तुम दूध लगाना शुरू करो, तो वह बैठकर दूध लगाना शुरू कर

देगा।वह जो अचेतन मन है, वह परम श्रद्धावान है। उससे जो कहा जाए, वह उस पर प्रश्न नहीं उठाता। वह उसे स्वीकार कर लेता है। यही श्रद्धा का अर्थ है। वह यह नहीं कहता कि कहां है गाय? वह यह नहीं कहता कि मैं पुरुष हूं स्त्री नहीं हूं। वह संदेह करना जानता ही नहीं। संदेह तो मन की ऊपर की पर्त, जो तर्क सीख गई है, वही करती है।

7-इसका लाभ भी हो सकता है, इसका खतरा भी है। क्योंकि उस परम श्रद्धालु मन को कुछ ऐसी बात भी समझाई जा सकती है, जो व्यक्ति के अहित में हो, जो उसको नुकसान पहुंचाए। मृत्यु तक घटित हो सकती है। सम्मोहित व्यक्ति को अगर भरोसा दिला दिया जाए कि तुम मर रहे हो, तो वह भरोसा कर लेता है कि मैं मर रहा हूं।

8-उन्नीस सौ बावन में अमेरिका में एटी—हिप्‍नोटिक एक्ट बनाया गया। यह पहला कानून है हिप्‍नोसिस के खिलाफ दुनिया में कहीं भी बना। क्योंकि चार लड़के विश्वविद्यालय के एक छात्रावास में सम्मोहन की किताब पढ़कर प्रयोग कर रहे थे। और उन्होंने एक लड़के को, जिसको बेहोश किया था, भरोसा दिला दिया कि तू मर गया है। वे सिर्फ मजाक कर रहे थे। लेकिन वह लड़का सच में ही मर गया। वह हृदय में इतने गहरी बात पहुंच गई—वहा कोई संदेह नहीं है—मृत्यु हो गई, तो मृत्यु को स्वीकार कर लिया। शरीर और आत्मा का संबंध तत्‍क्षण छूट गया। तो हिप्नोसिस के खिलाफ एक कानून बनाना पड़ा।

9-अगर मृत्यु तक पर भरोसा हो सकता है, तो फिर किसी भी चीज पर भरोसा हो सकता है।

तो सम्मोहन का लाभ भी उठाया जा सकता है। पश्चिम में बहुत बड़ा सम्मोहक था, कूए। कूए ने लाखों मरीजों को ठीक किया सिर्फ सम्मोहन के द्वारा। अब तक दुनिया का कोई चिकित्सक किसी भी चिकित्सा पद्धति से इतने मरीज ठीक नहीं कर सका है, जितना कूए ने सिर्फ सम्मोहन से किया। असाध्य बीमारियां दूर कीं। क्योंकि भरोसा दिला दिया भीतर कि यह बीमारी है ही नहीं। इस भरोसे के आते ही शरीर बदलना शुरू हो जाता है।

कूए ने हजारों लोगों की शराब, सिगरेट, और तरह के दुर्व्यसन क्षणभर में छुड़ा दिए क्योंकि भरोसा दिला दिया। मन को गहरे में भरोसा आ जाए तो शरीर तक परिणाम आने शुरू हो जाते हैं।

10- अगर आपको ध्यान नहीं लगता है,तो सम्मोहन में अगर आपको सुझाव दे दिया जाए, दूसरे दिन से ही आपका ध्यान लगना गहरा हो जाएगा। आप प्रार्थना करते हैं, लेकिन व्यर्थ के विचार आते हैं। सम्मोहन में कह दिया जाए कि प्रार्थना के क्षण में कोई भी विचार न आएंगे, तो प्रार्थना आपकी परम शात और आनंदपूर्ण हो जाएगी, कोई विचार का विषय न रह जाएगा। आपकी साधना में सहयोग पहुंचाया जा सकता है।

11-योग के गुरु सम्मोहन का प्रयोग करते ही रहे हैं सदियों से। लेकिन कभी उसका प्रयोग जाहिर और सार्वजनिक नहीं किया गया। वह गुरु के और शिष्य के बीच की निजी बात थी। और जब गुरु किसी शिष्य को इस योग्य मान लेता था कि अब उसके अचेतन में प्रवेश करके काम शुरू करे, तो ही प्रयोग करता था। और जब कोई शिष्य किसी गुरु को इस योग्य मान लेता था कि उसके चरणों में सब कुछ समर्पित कर दे, तभी कोई गुरु उसके भीतर प्रवेश करके सम्मोहन का प्रयोग करता था।

12-रास्ते पर काम करने वाले सम्मोहक भी हैं। स्टेज पर प्रयोग करने वाले सम्मोहक भी हैं। उनके साथ आपका कोई श्रद्धा का नाता नहीं है। उनके साथ आपका नाता भी है, तो व्यावसायिक हो सकता है कि आप फीस दें और वह आपको सम्मोहित कर दे। लेकिन जो आदमी फीस में उत्सुक है सम्मोहित करने को, वह आपको नुकसान पहुंचा सकता है।

इस तरह की घटनाएं दुनियाभर के पुलिस थानों में रिपोर्ट की गई हैं कि किसी ने किसी को सम्मोहित किया और उससे कहा कि रात तू अपनी तिजोरी में चाबी लगाना भूल जाना; या रात तू अपने घर का दरवाजा खुला छोड़ देना।

13-पोस्ट हिप्‍नोटिक सजेशन... आपको बाद के लिए भी सुझाव दिया जा सकता है कि आप अड़तालीस घंटे बाद ऐसा काम करना। तो आप अड़तालीस घंटे बाद वैसा काम करेंगे और आपको कुछ समझ में नहीं आएगा कि आप क्यों कर रहे हैं। या आप कोई तरकीब खोज लेंगे, कोई रेशनलाइजेशन, कि 'मैं इसलिए कर रहा हूं'।अचेतन मन बड़ा शक्तिशाली है।

14-आपके चेतन मन की कोई भी शक्ति नहीं है। आपका चेतन मन तो बहुत ही कमजोर है। इसीलिए तो आप संकल्प करते हैं कि कोल्ड ड्रिंक नहीं पीऊंगा, छोड़ दूंगा; और घंटे भर भी संकल्प नहीं चलता है। क्योंकि जिस मन से आपने किया है, वह बहुत कमजोर मन है। उसकी ताकत ही नहीं है कुछ। अगर यही संकल्प भीतर के मन तक पहुंच जाए, तो यह महाशक्तिशाली हो जाता है। फिर उसे तोड़ना असंभव है।

15-सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति का ढांचा खोजा जा सकता है। लेकिन सम्मोहित ऐसे व्यक्ति से ही होना, जिस पर परम श्रद्धा हो। व्यावसायिक सम्मोहन करने वाले व्यक्ति से सम्मोहित मत होना। क्योंकि उसकी आपमें उत्सुकता ही व्यावसायिक है। आपसे कोई आत्मिक और आंतरिक संबंध नहीं है। और जब तक आत्मिक और आंतरिक संबंध न हो, तब तक किसी व्यक्ति को अपने इतने भीतर प्रवेश करने देना खतरनाक है।

16-इसलिए गुरु तो प्रयोग करते रहे हैं। लेकिन इस प्रयोग को सदा ही निजी समझा गया है। यह सार्वजनिक नहीं है। दो व्यक्तियों के बीच की निजी बात है।जैसे कि स्टेज पर कोई

सम्मोहित कर रहा है आपको, तो आप कितने ही सम्मोहित हो जाएं, आपके भीतर एक हिस्सा असम्मोहित बना रहता है।क्योंकि आपको डर तो रहता ही है कि पता नहीं, यह आदमी क्या करवाए! तो अगर वह कहे कि दौड़ लगाओ ,तो आप लगा लेंगे।लेकिन अगर वह कोई ऐसी बात कहे, जो आपके अंतःकरण के विपरीत पड़ती है, अनुकूल नहीं पड़ती है, या आपकी नैतिक दृष्टि के एकदम खिलाफ है, तो आप तत्‍क्षण जाग जाएंगे और इनकार कर देंगे।

17-जैसे किसी जैन को जो बचपन से ही गैर—मांसाहारी रहा है, सम्मोहित करके अगर कहा जाए कि मांस खा लो, वह फौरन जग जाएगा; वह सम्मोहन टूट जाएगा उसी वक्त।तो जब

कोई व्यावसायिक रूप से किसी को सम्मोहित करता है, तो आपके भीतर एक हिस्सा तो सजग रहता ही है। बहुत गहरे प्रवेश नहीं हो सकता। लेकिन जब कोई गुरु और शिष्य के संबंध में सम्मोहन घटित होता है, तो प्रवेश बहुत आंतरिक हो जाता है। व्यक्ति अपने को पूरा छोड़ देता है। इसलिए समर्पण का इतना मूल्य है, श्रद्धा का इतना मूल्य है।

18-सम्मोहन के माध्यम से निश्चित ही व्यक्ति के टाइप का पता लगाया जा सकता है। सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति के पिछले जन्मों में प्रवेश किया जा सकता है।सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति के भीतर कौन—से कारण हैं, जिनके कारण वह परेशान और उलझा हुआ है, वे खोजे जा सकते हैं। और सम्मोहन के माध्यम से बहुत—सी बातें मन से उखाड़कर बाहर फेंकी जा सकती हैं।

19-हम जो भी करते हैं ऊपर—ऊपर से, वह ऐसा है, जैसे कोई किसी वृक्ष की शाखाओं को काट दे। शाखाएं कटने से वृक्ष नहीं कटता, नए पीके निकल आते हैं। वृक्ष समझता है कि आप कलम कर रहे हैं। जब तक जड़ें न उखाड़ फेंकी जाएं, तब तक कोई परिवर्तन नहीं होता। वृक्ष

फिर से सजीव हो जाता है।आप मन के ऊपर—ऊपर जो भी कलम करते हैं, वह खतरनाक है। वह फायदा नहीं करती, नए अंकुर निकल आते हैं। वही बीमारियां और घनी होकर पैदा हो जाती हैं। जड़ उखाड़कर फेंकना हो, तो गहरे अचेतन में जाना जरूरी है।

20-लेकिन सम्मोहन अकेला मार्ग नहीं है। अगर आप ध्यान करें, तो खुद भी अपने भीतर इतने ही गहरे जा सकते हैं। सम्मोहन के द्वारा दूसरा व्यक्ति आपके भीतर गहरे जाता है और आपको सहायता पहुंचा सकता है। ध्यान के द्वारा आप स्वयं ही अपने भीतर गहरे जाते

हैं और अपने को बदल सकते हैं।जिन लोगों को ध्यान में बहुत कठिनाई होती हो, उनके लिए सम्मोहन का सहारा लेना चाहिए। लेकिन निकट संबंध हो तभी..। और जो व्यक्ति ध्यान में सीधे जा सकते हों, उनको सम्मोहन के विचार में नहीं पड़ना चाहिए। उसकी कोई भी जरूरत नहीं है।

21-और सम्मोहन का भी सहारा इसीलिए लेना चाहिए कि ध्यान में गहरे जाया जा सके, बस। और किसी काम के लिए सहारा नहीं लेना चाहिए। क्योंकि बाकी सब काम तो ध्यान में गहरे जाकर किए जा सकते हैं। सिर्फ ध्यान न होता हो, तो ध्यान में कैसे गहरे जाऊं, सम्मोहन का इसके लिए सहारा लिया जा सकता है।सम्मोहन गहरी प्रक्रिया है और

बड़ी वैज्ञानिक है। और मनुष्य के बहुत हित में सिद्ध हो सकती है। लेकिन स्वभावत:, जो भी हितकर हो सकता है, वह खतरनाक भी है।

ध्यान में सम्मोहन का प्रयोग:-

09 FACTS;-

1-सम्मोहन एक विज्ञान है। और सभी विज्ञान दोधारी तलवार हैं। अणु की शक्ति है, वह खेत में गेहूं भी पैदा कर सकती है, और गेहूं खानेवाले को भी दुनिया से मिटा सकती है—वे दोनों काम हो सकते हैं, दोनों ही अणु की शक्ति हैं। यह बिजली घर में हवा भी दे रही है, और इसका तुम्हें शॉक लगे तो तुम्हारे प्राण भी ले सकती है। लेकिन इससे तुम बिजली को कभी जिम्मेवार न ठहरा पाओगे।

2-तो सम्मोहन, अगर कोई अहंकार सम्मोहन का उपयोग करे— और दूसरे को दबाने, और दूसरे को मिटाने, और दूसरे में कुछ इल्‍यूजंस और सपने पैदा करने के लिए—तो किया जा सकता है। लेकिन इससे उलटा भी किया जा सकता है। सम्मोहन तो सिर्फ तटस्थ शक्ति है, वह तो एक साइंस है। उससे तुम्हारे भीतर जो सपने चल रहे हैं, उनको तोड्ने का भी काम किया जा सकता है; और तुम्हारे जो इल्‍यूजंस डीप रूटेड हैं, उनको भी उखाड़ा जा सकता है।

3-सम्मोहन के साथ एक बुनियादी तत्व और जुड़ा हुआ है जो तुम्हारी रक्षा करेगा और जो तुम्हें सम्मोहित न होने देगा— और वह है साक्षी— भाव। बस सम्मोहन में और ध्यान में उतना ही फर्क है। लेकिन वह बहुत बड़ा फर्क है। जब तुम्हें कोई सम्मोहित करता है तो वह तुम्हें मूर्च्छित करना चाहता है, क्योंकि तुम मूर्च्छित हो जाओ तो ही फिर तुम्हारे साथ कुछ किया जा सकता है। ध्यान में सम्मोहन का उपयोग है लेकिन तुम साक्षी रहो पीछे, तुम पूरे समय जागे रहो, जो हो रहा है उसे जानते रहो, तब तुम्हारे साथ कुछ भी तुम्हारे विपरीत नहीं किया जा सकता; तुम सदा मौजूद हो।

4-सम्मोहन के वही सुझाव तुम्हें बेहोश करने के काम में लाए जा सकते हैं, वही सुझाव

तुम्हारी बेहोशी तोड्ने के भी काम में लाए जा सकते हैं।ध्यान के प्राथमिक चरण सब के सब सम्मोहन के हैं..और होंगे ही, क्योंकि तुम्हारी कोई भी यात्रा आत्मा की तरफ तुम्हारे मन से ही शुरू होगी। क्योंकि तुम मन में हो, वह तुम्हारी जगह है जहां तुम हो। वहीं से तो यात्रा शुरू होगी। लेकिन वह यात्रा दो तरह की हो सकती है या तो तुम्हें मन के भीतर एक चकरीले पथ पर डाल दे कि तुम मन के भीतर चक्कर लगाने लगो, कोल्हू के बैल की तरह चलने लगो। तब यात्रा तो बहुत होगी, लेकिन मन के बाहर तुम न निकल पाओगे। वह यात्रा ऐसी भी हो सकती है. तुम्हें मन के किनारे पर ले जाए और मन के बाहर छलांग लगाने की जगह पर पहुंचा दे। दोनों हालत में तुम्हारे प्राथमिक चरण मन के भीतर ही पड़ेंगे।

5-तो सम्मोहन का भी प्राथमिक रूप वही है जो ध्यान का है, लेकिन अंतिम रूप भिन्न है, और दोनों का लक्ष्य भिन्न है। और दोनों की प्रक्रिया में एक बुनियादी तत्व भिन्न है। सम्मोहन चाहता है तत्काल मूर्च्छा—नींद, सो जाओ। इसलिए सम्मोहन का सारा सुझाव नींद से शुरू होगा, तंद्रा से शुरू होगा—''सोओ'', फिर बाकी कुछ होगा। ध्यान का सारा सुझाव— ''जागो,''वहां से होगा और पीछे साक्षी पर जोर रहेगा। क्योंकि तुम्हारा साक्षी जगा हुआ है तो तुम पर कोई भी बाहरी प्रभाव नहीं डाले जा सकते। और अगर तुम्हारे भीतर जो भी हो रहा है, वह भी तुम्हारे जानते हुए हो रहा है...तो एक तो यह खयाल में लेना जरूरी है।

6-और दूसरी बात यह खयाल में लेना जरूरी है कि जिनको हो रहा है और जिनको नहीं हो रहा, उनमें जो फर्क है, वह इतना ही है कि जिनको नहीं हो रहा है उनका संकल्प थोड़ा क्षीण है। वे भयभीत, डरे हुए हैं ..कहीं हो न जाए, इससे भी डरे हुए।ये डिफेंस मेजर हैं; ये उनके

सुरक्षा के उपाय हैं। इस भांति वे कह रहे हैं कि ''अरे, हम कोई इतने कमजोर नहीं कि हमको हो जाए! ये कमजोर लोग हैं जिनको हो रहा है।'' इससे वे अपने अहंकार को तृप्ति भी दे रहे हैं। और यह नहीं जान पा रहे हैं कि यह कमजोरों को नहीं होता, यह शक्तिशाली को होता है; और यह भी नहीं जान पा रहे हैं कि यह बुद्धिहीनों को नहीं होता बुद्धिमानों को होता है।

7-एक जड़बुद्धि आदमी को न तो सम्मोहित किया जा सकता है, न ध्यान में ले जाया जा सकता है, दोनों ही नहीं किया जा सकता।एक पागल आदमी को कोई सम्मोहित नहीं कर सकता। जितनी प्रतिभा का आदमी हो, उतनी जल्दी सम्मोहित हो जाएगा; और जितना प्रतिभाहीन हो, उतनी देर लग जाएगी।तो हमारा मन बहुत अजीब—अजीब इंतजाम करता है,

वह कहता है कि ये सब गड़बड़ बातें हो रही हैं, यह अपने को नहीं होनेवाला, हम कोई कमजोर थोड़े ही हैं, हम ताकतवर हैं।

8-लेकिन ताकतवर होते तो हो गया होता; बुद्धिमान होते तो हो गया होता। क्योंकि बुद्धिमान आदमी का पहला लक्षण तो यह है कि जब तक वह खुद न कर ले तब तक वह कोई निर्णय न लेगा। वह यह भी न कहेगा कि दूसरा झूठा कर रहा है।जीसस को थोड़े लोगों ने ही माना

कि इनको कुछ हुआ है... नहीं तो वे सूली पर न लटकाते ।

9-हम दो नाव पर सवार रहना चाहते हैं। और दो नावों पर सवार यात्री बहुत कठिनाई में पड़ जाता है। एक ही नाव अच्छी—नरक जाए तो भी एक तो हो। लेकिन स्वर्ग की नाव पर भी एक पैर रखे हैं, नरक की नाव पर भी एक पैर रखे हैं। असल में, संदिग्ध है मन कि कहां जाना है। और डर है कि पता नहीं नरक में सुख मिलेगा कि स्वर्ग में सुख मिलेगा। दोनों पर पैर रखे खड़े हैं। इसमें दोनों जगह चूक सकती हैं, और नदी में प्राणांत हो सकते हैं। ऐसा है..हमारा मन पूरे वक्त ...जाएंगे भी, फिर वहां रोक भी लेंगे। और नुकसान होता है।इसलिए पूरा प्रयोग करो... और दूसरे के बाबत निर्णय मत लो।

.....SHIVOHAM....


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