रक्षा बंधन का क्या महत्व हैं?क्या है रक्षा बंधन के शुभ चौघड़िया मुहूर्त?क्या है वैदिक राखी?-
रक्षा बंधन का महत्व ;- 04 FACTS;- 1-रक्षाबंधन और श्रावण पूर्णिमा ये दो अलग-अलग पर्व हैं जो उपासना और संकल्प का अद्भुत समन्वय है और एक ही दिन मनाए जाते हैं।रक्षा बंधन के महत्व को समझने के लिये सबसे पहले इसके अर्थ को समझना होगा। "रक्षाबंधन " रक्षा+बंधन दो शब्दों से मिलकर बना है। अर्थात एक ऎसा बंधन जो रक्षा का वचन लें. इस दिन भाई अपनी बहन को उसकी दायित्वों का वचन अपने ऊपर लेते है।महाभारत काल में कृष्ण और द्रौपदी का एक वृत्तांत मिलता है ;जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उसे उनकी अंगुली पर पट्टी की तरह बांध दिया। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था। 2-रक्षा बंधन का पर्व विशेष रुप से भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है. एक ऎसा बंधन जो दो जनों को स्नेह की धागे से बांध ले। रक्षा बंधन को भाई - बहन तक ही सीमित रखना सही नहीं होगा. बल्कि भाई - बहन के रिश्तों की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए यह बंधन आज गुरु का शिष्य को राखी बांधना, एक भाई का दूसरे भाई को, बहनों का आपस में राखी बांधना और दो मित्रों का एक-दूसरे को राखी बांधना, माता-पिता का संतान को राखी बांधना हो सकता है। 3- राखी का अर्थ है, जो यह श्रद्धा व विश्वास का धागा बांधता है। वह राखी बंधवाने वाले व्यक्ति के दायित्वों को स्वीकार करता है. उस रिश्ते को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता है.रक्षा बंधन के दिन बांधा गया रक्षा सूत्र भाई को अकाल मृत्यु के भय से भी बचाता है। यह रक्षा सूत्र विपरीत स्थिति में मजबूती देता है। 4-पहली बार मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी थी। राजा बलि के यज्ञ में विष्णुजी वामन अवतार लेकर पहुंचे थे और उनसे 3 डग जमीन मांगी। राजा बलि ने देने का संकल्प लिया तो वामन भगवान ने एक डग में पूरी पृथ्वी व दूसरे में आकाश नाप लिया।अब तीसरा पग कहां रखें? ऐसा भगवान के पूछने पर राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। तभी भगवान ने प्रसन्न होकर उनको कहा कि आप पाताल लोक में निवास करो, मैं सुदर्शन रूप में आपके द्वार पर रहूंगा।तब माता ने उनको वापस लाने के लिए राजा बलि को राखी बांधी। जब उन्होंने राखी का बंधन बांधा था, तब उस दिन श्रावण माह की पूर्णिमा थी व श्रवण नक्षत्र था। तब से ही बहनें अपने भाइयों को रक्षाबंधन बांध रही हैं। अभिजीत मुहूर्त का महत्व 04 FACTS;- 1-अभिजीत मुहूर्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अभिजीत मुहूर्त (Abhijit Muhurat) दिन का सर्वाधिक शुभ मुहूर्त माना जाता है। प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है। सामान्यत: यह 45 मिनट का होता है। हालांकि इसकी समयावधि सूर्योदय और सूर्यास्त पर निर्भर करती ह 2-अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन मध्यान्ह से करीब 24 मिनट पहले प्रारम्भ होकर मध्यान्ह के 24 मिनट बाद समाप्त हो जाता है। अर्थात यदि सूर्योदय ठीक 6 बजे हो तो दोपहर 12 बजे से ठीक 24 मिनट पहले प्रारम्भ होकर यह दोपहर 12:24 पर समाप्त होगी। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अभिजीत मुहूर्त का वास्तविक समय सूर्योदय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यदि अभिजीत मुहूर्त में पूजन कर कोई भी शुभ मनोकामना की जाए तो वह निश्चित रूप से पूरी होती है। 3-अभिजीत का अर्थ है “विजेता” और मुहूर्त अर्थात “समय”। हमारे सनातन धर्म में समय को अत्यंत ही महत्व दिया गया है और ऐसा माना जाता है कि यदि कार्य को सही समय पर किया जाये तो सफलता निश्चित है।सामान्यतः मुहूर्त के लिए दिन, तिथि, नक्षत्र, योग और दिनमान का योग देखा जाता है, और उसके आधार पर निर्णय लिया जाता है कि कौन-सा कार्य कब करें कि सफलता सुनिश्चित हो। परन्तु ये गणनाएँ कुछ जटिल होती हैं और इन्हें कोई पंचांग का विशेषज्ञ ही बता सकता है। ऐसी स्थिति में जनसामान्य के लिए जिन्हें पंचांग की जानकारी न भी हो तो अभिजीत मुहूर्त सर्वोत्तम है। 4-अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन में आने वाला एक ऐसा समय है जिसमे आप लगभग सभी शुभ कर्म कर सकते हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट करने योग्य है कि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। परन्तु यदि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र एक साथ पड़ जाएँ तो अत्यंत ही शुभ माना जाता है। अभिजीत मुहूर्त में किये जाने वाले कर्म;- अभिजीत मुहूर्त लगभग सभी शुभ कर्मों में ग्राह्य हैं जैसे - पहली बार किसी कार्य से यात्रा प्रारम्भ करना, किसी नए कार्य को प्रारम्भ करना, दूकान या व्यापार का प्रारम्भ करना, ऋण को चुकाना या धन संग्रह करना या पूजा का प्रारम्भ करना इत्यादि। कुछ विद्वान इस समय गृह प्रवेश, मुंडन कार्य, विवाह इत्यादि की भी मान्यता देते हैं। परन्तु, ऐसी भी मान्यता है कि सामान्य शुभ कार्य के लिए तो यह अत्यंत उत्तम है, परन्तु मांगलिक कार्य तथा ग्रह प्रवेश जैसे प्रमुख कार्यों के लिए और भी योगों को देखना आवश्यक है। अभिजीत मुहूर्त में क्या नहीं करें;- 1-02 FACTS;- नारदपुराण के अनुसार अभिजीत मुहूर्त यात्रा या शुभ काम के लिए घर से निकलने का शुभ काल होता है। इस काल में यदि पंचाग या काल शुभ न हो तो भी यात्रा उत्तम फल देने वाली होती है। 2-अभिजीत मुहूर्त के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।साथ ही बुधवार को अभिजीत मुहूर्त में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। क्या है वैदिक राखी?- 05 FACTS;- 1-रक्षा बंधन का पर्व वैदिक विधि से मनाना श्रेष्ठ माना गया है। इस विधि से मनाने पर भाई का जीवन सुखमय और शुभ बनता है। शास्त्रानुसार इसके लिए पांच वस्तुओं का विशेष महत्व होता है, जिनसे रक्षासूत्र का निर्माण किया जाता है। इनमें दूर्वा (घास), अक्षत (चावल), केसर, चन्दन और सरसों के दाने शामिल हैं। 2-इन 5 वस्तुओं को रेशम के कपड़े में बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावे में पिरो दें। इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी। पांच वस्तुओं का महत्त्व;- 1-दूर्वा (घास); - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेजी से फैलता है और हजारों की संख्या में उग जाता है। उसी प्रकार रक्षा बंधन पर भी कामना की जाती है कि भाई का वंश और उसमें सदगुणों का विकास तेजी से हो। सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ती जाए। दूर्वा विघ्नहर्ता गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए। 2-अक्षत (चावल) ;- हमारी.. परस्पर एक दूजे के प्रति, श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे। 3-केसर या हल्दी; - केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात हम जिसे राखी बांध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं । हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है । यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है । 4-चन्दन; - चन्दन की प्रकृति शीतल होती है और यह सुगंध देता है। उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो। साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे। 5-सरसों के दाने; - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें। सरसो के दाने भाई की नजर उतारने और बुरी नजर से भाई को बचाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं। NOTE;- इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान के चित्र पर अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधें। इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं, वह पुत्र- पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्षभर सुखी रहते हैं। राखी मंत्र;- शास्त्रों के अनुसार, रक्षा सूत्र बांधते समय निम्न मंत्र का जाप करने से अधिक फल मिलता है।राखी बांधते समय बहन अवश्य बोलें यह मंत्र... येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
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