क्या है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना ?
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना;-
05 FACTS;-
1-भगवान शिव ने पार्वती से कहा है कि दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का जो फल है वह सिर्फ कुंजिकास्तोत्र के पाठ से प्राप्त हो जाता है। कुंजिकास्तोत्र का मंत्र सिद्ध किया हुआ इसलिए इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं है।जो साधक संकल्प लेकर इसके मंत्रों का जप करते हुए दुर्गा मां की आराधना करते हैं मां उनकी इच्छित मनोकामना पूरी करती हैं।
2-इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कुंजिकास्तोत्र के मंत्रों का जप किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करना चाहिए। किसी को क्षति पहुंचाने के लिए कुंजिकास्तोत्र के मंत्र की साधना करने पर साधक का खुद ही अहित होता है।
3-सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना से साधक स्तम्भन, मारण, मोहन, शत्रुनाश, सिद्धि, प्राप्ति, विजय प्राप्ति, ज्ञान प्राप्ति आदि अर्थात सभी क्षेत्रो मे प्रवेश की यह महाकुंजी है ।सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना के बाद प्रतिदिन प्रातःकाल सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ कराने से सभी प्रकार के विघ्न बाधा नष्ट हो जाते हैं व परम सिद्धि प्राप्त होती है ! इसके पाठ से काम, क्रोध का मारण, इष्टदेव का मोहन, मन का वशीकरण, इन्द्रियों की विषय वासनाओं का स्तम्भन और मोक्ष प्राप्ति हेतु उच्चाटन आदि कार्य सफ़ल होने लगते हैं ! 4-कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार की तकलीफ हो जैसे शत्रु का हावी होना, व्यापार में घाटा या नुकसान होना, संतान सुख से वंचित होना, भुत प्रेत और उपरी हवा या किसी भी प्रकार की परेशानी, जमींन से सम्बंधित परेशानी, रोग से सम्बंधित समस्याओं हो, सुख-शांति, समृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति की कामना व् समस्त प्रकार की कल्याण की भावना आदि सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से व कराने से लाभ मिलता हैं ! और नवरात्रि में कराने से इसका फल अंनत गुना प्राप्त होता हैं ! 5-इसके द्वारा आज्ञा चक्र का जागरण होता है इसमें आज्ञा चक्र के बीजो अक्षरों का समावेश है और अद्भुत तरीके से मूलाधार चक्र और कुण्डलिनी जागृत करने के सभी बीज अक्षर मंत्रो का इसमें उल्लेख है ।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना विधि ;- 04 FACTS;- 1-सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना नवरात्रि से या किसी भी माह की अष्टमी तिथि या शुक्ल पक्ष के मंगलवार या शुक्रवार से शुरू कर सकते हैं ! आप इस सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना ब्रह्ममुहूर्त में या रात में 10 बजे के बाद कर सकते हैं ! सर्वप्रथम जातक को प्रातः उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान कर शुद्ध लाल रंग के वस्त्र धारण करके लाल आसन पर पूर्व मुखी या उत्तर मुखी होकर बैठ जाना चाहिए !
2-उसके बाद अपने समाने चौकी रखकर उस पर लाल कपड़ा बिछाकर माँ श्री दुर्गा जी की प्रतिमा या फ़ोटो और दुर्गा यन्त्र स्थापित करें ! उसके बाद अब माँ और यंत्र का सामान्य पूजन करे ! जैसे की कुंकुम, अक्षत, पुष्प चढावे ! उसके बाद घी का दीपक जलाकर धूपबत्ती जलाये !
3-फिर माँ श्री दुर्गा जी को किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप मे अर्पित करे ! उसके बाद जातक अपने हाथ में जल लेकर संकल्प ले....
संकल्प;-
''हे माँ आज ( दिन, वार, तारीख़ बोलें ) से सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ और में इसका नित्य 9 दिनों तक 51 पाठ या 21 दिन तक 108 पाठ करूँगा या करुँगी ! माँ मेरी सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना को स्वीकार कर मुझे कुंजिका स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे ! ऐसा बोलकर जल भूमि पर छोड़ दे ! उसके बाद जातक सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ आरम्भ कर दें!'' 4-अनुष्ठान करते समय चढ़ाये जा रहे प्रसाद को जातक स्वयं खाए ! अनुष्ठान पूरा होने पर 9वें या 21 वाँ दिन सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र पाठ कर किसी 1, 3, 5 या 9 कुमारी कन्याओ या गाय को भोजन कराये ! ऐसा करने से साधक की सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना सम्पन्न हो जाती हैं !
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना नियम ;- 07 FACTS;- 1-साधना काल साधक को ब्रह्मचर्य का पालना करना चाहिए ! साधक को शारीरिक और मानसिक रूप से इसका पालना करना चाहिए! 2-सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना काल में साधक को भूमि पर शयन करना चाहिए ! 3-सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना करते समय साधक को अपने मुख मे पान ऱख कर की जाएं तो इससे माँ श्री दुर्गा जल्दी प्रसन्न होती है. इस पान मे चुना, कत्था और ईलायची के अतिरिक्त और कुछ नही डालना चाहिए ! 4-अगर नित्य रोज़ाना सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना समाप्त करने के बाद एक अनार काटकर माँ श्री दुर्गा को अर्पित किया जाये तो इससे साधना का प्रभाव और अधिक हो जाता है. परन्तु ये अनार साधक को नहीं ख़ाना चाहिए ये नित्य प्रातः गाय को दे देना चाहिए । 5-यदि आपका रात्रि मे सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का अनुष्टान कर रहे हो तो नित्य प्रातः काल पूजन के समय 3 माला नवार्ण मंत्र (नवार्ण मंत्र:-''ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।।") की करने से साधना काल मे हो रही ग़लती समाप्त हो जाती हैं ! यह काम साधक अपने इच्छानुसार कर सकता हैं ! 6- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना करने की बात गोपनीय रखे और सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना गुरु तथा मार्गदर्शक के अतिरिक्त किसी अन्य को कुछ नही बताये ! 7-सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना के समय साधक जितना सम्भव हो सभी वस्तुए लाल रंग की ही प्रयोग करे !
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विधि ;-
07 FACTS;-
1-ॐ गं गणपतये नम:
2-संकल्प;- 3-विनियोग :- ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:॥ अनुष्टुपूछंदः ॥ श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॥ ॐ ऐं बीजं ॥ ॐ ह्रीं शक्ति: ॥ ॐ क्लीं कीलकं ॥ मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥
4-ऋष्यादि न्यास : - सीधे हाँथ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले। नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ! मंत्र :- सदाशिवऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें ) अनुष्टुपूछंदः नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें ) श्रीत्रिगुणात्मिकादेवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें ) ऐं बीजाय नम: गुहे (कामिन्द्रिय स्थान पर...इसकी मुद्रा होगी- दाहिने करतल को पीछे ले जाकर,गुद-प्रान्त का वाह्य स्पर्श। ) ह्रीं शक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें ) क्लीं कीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें ) विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें ) 5-कर न्यास :-
कर न्यास करने का सही तरीका क्या हैं?-
03 FACTS;-
1-करन्यास की प्रक्रिया को समझने से पहले हमें यह समझना होगा की हम भारतीय किस तरीके से नमस्कार करते हैं । इसमें हमारे दोनों हाँथ की हथेली आपस में जुडी रहती हैं।साथ -साथ दोनों हांथो की हर अंगुली ,ठीक अपने कमांक की दुसरे हाँथ की अंगुली से जुडी होतीहैं। ठीक इसी तरह से यह न्यास की प्रक्रिया भी....
2-यहाँ पर हमें जो प्रक्रिया करना हैं वह कम से धीरे धीरे एक पूर्ण नमस्कार तक जाना हैं। तात्पर्य ये हैं की जव् आप पहली लाइन के मन्त्र का उच्चारण करेंगे तब केबल दोनों हांथो के अंगूठे को आपस में जोड़ देंगे और जब तर्जनीभ्याम वाली लाइन का उच्चारण होगा तब दोनों हांथो की तर्जनी अंगुली को आपस में जोड़ ले।
3-यहाँ पर ध्यान रखे की अभी भी दोनों अंगूठे के अंतिम सिरे आपस में जुड़े ही रहेंगे , इसके बाद मध्यमाभ्यम वाली लाइन के दौरान हम दोनों हांथो की मध्यमा अंगुली को जोड़ दे। पर यहा भी पहले जुडी हुए अंगुली ..अभी भी जुडी ही रहेंगी. .. इसी तरह से आगे की लाइन के बारे में क्रमशः करते जाये ।और अंत में करतल कर वाली लाइन के समय एक हाँथ की हथेली की पृष्ठ भाग को दुसरे हाँथ से स्पर्श करे। और फिर दूसरी हाँथ के लिए भी यही प्रक्रिया करे।
अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है. । ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम:। ऐं तर्जनीभ्यां नम: । ह्रीं मध्यमाभ्यां नम: । क्लीं अनामिकाभ्यां नम: । चामुण्डायै कनिष्ठिकाभ्यां नम: । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: । 6-ह्र्दयादि न्यास : - सीधे हाँथ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले। सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते जाये , शरीर के जिन-जिन भागों का नाम लिया जा रहा हैं उन्हें स्पर्श करते हुए यह भावना रखे की... वे भाग अधिक शक्तिशाली और पवित्र होते जा रहे हैं।ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है !
मंत्र :-
ॐ ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें) ऐं शिरसे स्वाहा ( सिर को स्पर्श करें) ह्रीं शिखायै वषट् (अपनी शिखा को जो कि सिर के उपरी पिछले भाग में स्थित होती हैं ) क्लीं कवचाय हुम् (दोनों कंधों को स्पर्श करें) चामुण्डायै नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें) ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट् (अपने सिर पर सीधा घुमाकर तीन बार चुटकी बजाएं)
NOTE;-
हम तीन बार चुटकी क्यों बजाते है?वास्तव में , हम हमेशा से बहुत शक्तियों से घिरे रहते हैं और जो हमेशा से हमारे द्वारा किये जाने वाले मंत्र जप को हमसे छीनते जाते हैं , तो तीन बार सीधे हाँथ की हथेली को सिर के चारो ओर चक्कर लगाये / सिर के चारो तरफ वृत्ताकार में घुमाये ,इसके पहले यह देख ले की किस नासिका द्वारा हमारा स्वर चल रहा हैं , यदि सीधे हाँथ की ओर वाला स्वर चल रहा हैं तब ताली बजाते समय उलटे हाँथ को नीचे रख कर सीधे हाँथ से ताली बजाये . ओर यदि नासिका स्वर उलटे हाथ (LEFT)की ओर का चल रहा हैं तो सीधे(RIGHT) हाँथ की हथेली को नीचे रख कर उलटे (Left) हाँथ से ताली उस पर बजाये ) इस तरीके से करने पर हमारा मन्त्र जप सुरक्षित रहा हैं ,सभी साधको को इस तथ्य पर ध्यान देना ही चाहिए...
7-ध्यान :- इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती का ध्यान चाहिए।
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र;- शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम। येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥1॥ न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् । न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥ कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् । अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥ गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् । पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥ अथ मंत्र:- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।" ॥ इति मंत्रः॥ "नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी ॥1॥ नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी ॥2॥ जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥ क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥ विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणी ॥5॥ धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥ हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥ अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥ सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे॥ इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥ यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥ । श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् । ॐ तत्सत्
...SHIVOHAM...