सर्व सिद्धि साधना
- Chida nanda
- Aug 7, 2019
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यह साधना मेरी ही नहीं कई साधको की अनुभूत है !काफी उच कोटी के संतो से प्राप्त हुई है और फकीरो में की जाने वाली साधना है !इस के क्यी लाभ है !यह एक बहुत ही चमत्कारी साधना है ! 1 इस साधना से किसी भी अनसुलझे प्रशन का उतर जाना जा सकता है !अगर इस को सिद्ध कर लिया जाए और मात्र 5 जा 10 मिंट इस मंत्र का जप कर सो जाए जा आंखे बंद कर लेट जाए तो यह चल चित्र की तरह सभी कुश दिखा देती है ! और जो भी आपका प्रश्न है! उसका उतर दिखा देती है !क्यी वार कान में आवाज भी दे देती है जो आप जानना चाहते है ऐसा बहुत वार परखा गया है ! 2 इस साधना से किसी भी शारीरिक दर्द का इलाज किया जा सकता है !दर्द चाहे कही भी हो इस मंत्र को पढ़ते जदी कुश देर दर्द वाली जगह पे हाथ फेरा जाए तो कुश ही मिंटो में दर्द गायब हो जाता है ! 3 इस से किसी भी भूत प्रेत को शांत किया जा सकता है!इस मंत्र से बतासे अभिमंत्रिक कर रोगी को पहले एक दिया जाता है फिर दूसरा और फिर तीसरा और उस पे जो भी छाया हो वोह उसी वक़्त सवारी में हाजर हो जाती है!तब उस से पूछ लिया जाता है के उसे क्या चाहिए और कहा से आई है किस ने भेजा है आदि आदि और फिर उसे और बताशा दिया जाता है जिस से वोह शांत हो चले जाती है इस तरह बहुत वार परखा गया है! यह बहुत ही आसान साधना है भूत प्रेत भागने की और अगर देवता की क्रोपी भी हो वोह भी बता देते है के उन्हे क्या चाहिए इस का प्रयोग सिर्फ अनुभवी व्यक्ति ही करे इसका एक अलग विधान है के कैसे करना है !इस साधना को होली और फिर आने वाले ग्रहण में करे जितनी वार की जाती है इसकी ताकत बढ़ती है ! 4 जदी इसे अनुष्ठान रूप में स्वा लाख जप लिया जाए तो व्यक्ति हवा में से मन चाहा भोजन प्राप्त कर सकता है जब अनुष्ठान के रूप में की जाती है तो साधना समाप्ती पे दो आदमी प्रकट होते है जिन के हाथो में वाजे होते है जब वोह दिख जाए तो सवाल जबाब कर लेना चाहिए उस के बाद वोह शून्य में से पदार्थ प्राप्त करा देते है! हमारे संत बताते थे के इस से स्वर्ग तक की चीजे भी प्राप्त कर सकते है और हर प्रकार का स्वादिष्ट भोजन भी क्यी साधू लोग इसी के बल पे जंगल में बैठे वढ़िया भोजन प्राप्त कर लेते है ! इसका अनुष्ठान 40 दिन में सवा लाख मंत्र जप करे !अगर किसी कारण वश पहली वार सफलता न मिले तो घबराए न दुयारा करे यह अनुभूत है ! इस साधना के भूत भविष्य दर्शन की एक बेजोड़ साधना है! इस का साधक कभी भूत प्रेत के चक्र में नहीं फसता और अपनी व अपने सभी साथियो की सुरक्षा कर लेता है !इस से किसी के भी मन की बात जान सकते है और उस अपने अनुकूल बना सकते है ! और यह साधना घर से गए व्यक्ति का पता कुश ही मिंटो में लगा लेती है ! कुश ही दिन करने से इस साधना की दिव्य्य्ता का स्व पता चल जाता है ! विधि – 1 इस साधना को सफ़ेद वस्त्र धारण कर करे ! 2 आसान सफ़ेद हो ! 3 माला सफ़ेद हकीक की ले ! 4 दिशा उतर रहे ! 5 अगर होली या ग्रहण पे कर रहे है तो 11 माला कर ले ! मगर इस से पूर्ण लाभ नहीं मिलेगे सिर्फ आने वाले समय के वारे स्वपन में जानकारी मिल जाएगी और किसी प्रश्न का उतर पता लगाया जा सकता है ! 6 अगर इसे अनुष्ठान के रूप में करते है जो उपर वाले सभी लाभ मिल जाते है 7 आसन पे बैठ जाए पहले गुरु पूजन और गणेश पूजन कर फिर शिव आज्ञा और अपने सहमने एक कागज पे थोरे चावल चीनी और घी जो की गऊ का हो रख ले कागज पे बस थोरा थोरा ही डाले और मंत्र जप पूर्ण होने पर उसे किसी चोराहे पे छोड़ दे और घर आके मुह हाथ दो ले इस तरह यह साधना सिद्ध हो जाती है !अगर सवा लाख कर रहे है तो यह स्मगरी रोज भी ले सकते है और पहले जा अंतिम दिन भी ले सकते है जैसी आपकी ईशा कर ले मगर इस स्मगरी को बिना रखे साधना न करे नहीं तो शरीर मिटी के समान बेजान सा लगता है जब तक आप यह पुजा नहीं रखते ! 8 जब किसी के घर जा रहे है अगर कोई बुलाने आया है के हमारा घर देखो क्या हुया है तो इस मंत्र से कुश बतासे पढ़ कर छत पे डाल दे फिर जाए और जा 7 बतासे ले उन्हे पढ़ कर उन में से चार छत पे डाल दे बाकी तीन साथ ले जाए और रोगी को एक एक करके दे देने से वोह ठीक हो जाता है जा उस पे अगर कुश होगा तो सिर या कर बोल देगा! 9 साधना काल में शुद्ध घी का दीपक जलता रहना चाहिए और अगरवती आदि लगा दे ! 10 साधना काल में ब्रह्मचारेय का पालन अनिवार्य है !साबर मंत्र — ॐ नमो परमात्मा मामन शरीर पई पई कुरु कुरु सवाहा !! ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; वायवीय सिद्धि शुन्य से मनचाही वास्तु प्राप्त करने की साधना और प्रयोग
शुन्य से मनोवांछित पदार्थ प्राप्त करना भारतीय साधको और योगिओं का सफलतादायक प्रयोग रहा हे . जंगलो में जब वे साधनारत होते हे तो वे इसी साधना से शुन्य से अपनी मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर अपना कार्य संपन्न करते हे हवा से भोजन प्राप्त करना, शीतल जल , रूपये , धन धान्य , वस्त्र और अन्य वस्तुए जो भी भौतिक पदार्थ संसार में सुलभ हे उन्हें एक क्षण में प्राप्त कर लेना "वायवीय सिद्धि " हे
अभी तक ये साधना पूर्णतया गोपनीय रही हे पर इन पंक्तियों के माध्यम से स्वामी हर्षानंद पहली बार इस प्रमाणिक विधि को प्रस्तुत कर रहे हे.
मेरे जीवन की कई दिनों की चाह थी के में वायवीय साधना संपन्न करू परन्तु इस साधना को सिखाने वालो की भारतवर्ष में सर्वथा कमी हे . यधपि दावा तो हजारो साधू और योगी करते हे तथा वे अपने भक्तो के सामने हवा में से भभूत या छोटी मोटी चींजे निकल कर देते भी हे पर ये सब चालाकी और हाथ की सफाई होती हे और ये सब धूर्तता हे कोई भी छोटा मोटा जादूगर ये आपको सिखा सकता हे .
में गृहस्थ था परन्तु एक तरह से कर्म सन्यासी हूँ , गृहस्थ रहते हुए भी गृहस्थ नहीं हूँ , मन जम जाता हे तो कई कई महीने हिमालय में साधनारत हो जाता हूँ , औ मौज आती हे तो तीर्थ यात्राओ के दर्शन के लिए निकल जाता हूँ , मेरा कोई निश्चित स्थान और पता नहीं हे परन्तु में भगवे वस्त्र पहनने वाले बाबाओ में से नहीं हूँ जो कुछ भी न जानते हुए बहुत कुछ जानने को ढोंग करते हे,
ऐसे ही घूमते घूमते एक दिन मुझे केदारनाथ से पहले गौरी कुंड के पास एक योगी दर्शन हो गए , जो दिखने में तो सीधे सादे थे परन्तु उनके चेहरे पर एक अपूर्व तेज और आभा झलक रही थी. वे भी केदारनाथ की यात्रा पर थे, इसलिए मेरा उनका साथ हो गया और मेने उनका सामान अपने कंधो पर उठा लिया जिससे उन वृद्ध योगी को कुछ रहत महसूस हुई उनके साथ रहते हुए अनेक आश्चर्यजनक घटनाये घटी , फलत मेरे मन में वायवीय विद्या सिखने का विचार आया तो मेने उन्हें इसके बारे में बताया और जानकारी लेनी इच्छा जाहिर की . तो उन्होंने मुझे बताया की ये साधना योगियों, तपस्वियों के लिए कोई अजूबा नहीं हे. हम लोग पहाड़ो पर इसी साधना के बल पर ही तो इतनी मस्ती से रहते हे, यह साधना जितनी हमारे लिए उपयोगी हे उतनी ही गृहस्थ लोगो के लिए भी उपयोगी हे, इसके माध्यम से शुन्य में से मामूली सुई भी प्राप्त की जा सकती हे और हाथी भी प्राप्त किया जा सकता हे
मेने धड़कते दिल से यह विद्या सिखने की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने कुछ क्षण मेरी और ताका फिर सिखाने के लिए सहमत हो गए उनकी स्वीकृति मेरे लिए वरदानस्वरूप थी , एक तो में गृहस्थ जीवन को आसानी से सुख सुविधा पूर्ण बिता सकता था और आराम से अपना समय साधना कार्यो में लगा सकता था दुसरे इससे मुझे इस विद्या के बारे में प्रमाणिकता का पता भी चल जायेगा और में धडल्ले से लोगो को कह सकूँगा की यह विद्या पुर्णतः सही और प्रमाणिक हे. केदारनाथ की यात्रा कर हम पुनः बद्रीनाथ आ गए, यहाँ पर स्वामी जी पंद्रह बीस दिन रहने चाहते थे, में भी उनके साथ ठहर गया मेरे अनुरोध पे उन्होंने मुझे वही पर इसकी जानकारी दी.
साधना दिवस
स्वामी जी के अनुसार शुन्य साधना को संपन्न करने का श्रेष्ठ समय मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ होता हे, तह पांच दिन की साधना हे और पांच साधना करने पर यह सिद्ध हो जाती हे.
साधना उपकरण
मेरे पूछने पर स्वामी जी ने बताया की इसके लिए पांच वस्तुओ की आवश्यकता होती हे - १. स्फटिक माला ( मंत्र सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठायुक्त ) २. बिल्ली की नाल ३. शुन्य गुटिका ४. घी का दीपक ५. सफ़ेद सूती आसन ये पांचो वस्तुए साधक को मंगाकर रख लेनी चाहिए
साधना विधि
मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष के रविवार को प्रातः काल स्नान करके घर के एकांत में सफ़ेद सूती आसन बिछा कर सामने जल पात्र रख दे और घी का दीपक लगा ले फिर किसी पात्र में केसर या कुमकुम से स्वस्तिक चिन्ह बनाकर उस पर शुन्य गुटिका रखदे और उसके सामने ही बिल्ली की नाल रख दे इस बात का ध्यान रखना चाहिए की ये दोनों वस्तुए पूर्ण प्राण प्रतिष्ठा युक्त और मंत्र सिद्ध होनी चाहिए. इसके बाद १०८ मनको की स्फटिक माला से मंत्र जप प्रारंभ करने चाहिए , नित्य १०१ मालाये फेरने का विधान हे.
साधना नियम
इस साधना में साधक को पांचो दिन केवल दूध पर ही बिताने चाहिए, अन्न ग्रहण नहीं करे, दूध जितनी बार जितना चाहे पी सकते हे यदि दूध स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल नहीं हे तो चाय पीकर या फिर सर्वथा भूखे रहकर भी साधना की जा सकती हे साथ ही साथ भूमि शयन , ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए इसके अतिरिक्त कोई जटिल विधि विधान नहीं हे.
जब साधना पूरी हो जाये तब बिल्ली की नाल और शुन्य गुटिका को किसी चांदी के ताबीज में बंद करके अपनी दाहिनी भुजा पर काले धागे से बांध ले .एसा करने से यह साधना सिद्ध हो जाती हे इसके बाद जब भी किसी वस्तु की आवशकता हो तो केवल एक बार मंत्र उच्चारण करके वस्तु की इच्छा की जाती हे तो वह वस्तु तुरंत प्राप्त हो जाती हे और जब उस वस्तु को वापस हवा में विलीन करना हो तो फिर से एक बार मंत्र का उच्चारण करके मन में भावना लेन से वह वस्तु हवा में विलीन हो जाती हे
इस साधना का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता, यदि किसी वजह से साधना खंडित भी हो जाती हे तब भी कोई नुकसान या हानि नहीं होती , यह सोम्य मान्त्रिक साधना हे जिसका फल अतिशीघ्र प्राप्त होता हे
साधना मंत्र
इस साधना में जिस मंत्र का जप किया जाता हे वह स्वामी जी के अनुसार इस प्रकार हे -
ॐ वैताली वैताली वायु मार्गेण इच्छित पदार्थ प्राप्ति क्रीं क्रीं ह्रीं हुं फट
यह लघु मंत्र वैताली मंत्र हे और अपने आप में अचूक तथा शीघ्र सिद्धिदायक मंत्र हे यह मंत्र महागोपनीय कहा गया हे इसलिए इसे कुकर्मी या दुष्ट प्रकति वाले व्यक्ति को इस मंत्र का ज्ञान नहीं होना चाहिए ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; शून्य की साधना विधि: निर्वस्त्र शमसान साधना विशेष योग्यता – यह सदाशिव, परमात्मा, 0 पर ब्रह्म की साधना है। कम से कम साधनाकाल में साधक को स्वयं, संसार, भौतिक, स्वयं की अनुभूति से परे होकर ध्यान में डूबने का अभ्यास करना होगा। यह अत्यन्त कठिन और सर्वोच्च साधना है।
योग, तन्त्र, और तन्त्र के विभिन्न मार्गों में इसे निचले चक्र से प्रारम्भ किया जाता है और प्राण ऊर्जा को सहस्त्रार चक्र के मध्य चन्द्रमा के मध्य छिद्र तक पहुँचाया जाता है। इन विधियों में जीवन खप जाता है और तब भी शायद ही कोई यहाँ तक पहुँच पाता है । कुण्डलिनी की चक्र साधनाएं इसी से सम्बन्धित है।
इस बिंदु तक पहुँचने में किसी भी मार्ग में अनेक विघ्न बाधाओं और भयानक स्थिति का सामना करना होता है। इस तक पहुँचने में अपनी सिद्धियाँ भी बाधक बन जाती है। जब अतिरिक्त शक्तियाँ प्राप्त होंगे लगती है, तो साधक अनेक माध्यम से अपनी कामना के भोगों को प्राप्त करने में लग जाता है और अपनी मंजिल भूल जाता है।
निर्वस्त्र शमसान साधना विशेष सरल विधि – पर वैदिक ऋषि सीधे इस बिंदु में ही डूबने का अभ्यास करते थे। इसमें सरलता है , पर इसका सबसे कठिन तथ्य यह है कि मन संसारिकता और अनुभूतियों से विमुख नहीं होता।
पर ऐसा नहीं है कि अभ्यास द्वारा यह विमुखता प्राप्त नहीं होती। इसके लिए साधक को सांसारिकता से विरक्त होना पड़ता है। संसार, अपने जन्म-मृत्यु, जीवन, सम्बन्ध, उपलब्धि और इसकी नश्वरता पर लगातार चिंतन करना पड़ता है। यह ज्ञान ही उसे विरक्त कर सकता है। तंत्राचार्यों ने कहा है कि नश्वरता का चिंतन ही रहस्य जानने की जिज्ञासा उत्पन्न करता है और इससे उस परमात्मा की लीला का ज्ञान होता है।
यह न भी हो , तो साधक विरक्त होता है और शून्य समाधि में डूबता है; जिसमें उसे अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है। यह अभ्यास और चिंतन उसे सत्य तक पंहुचा देता है । तब परमात्मा की विशेष कृपा प्राप्त होती है और वह इच्छा मृत्यु या जन्म की शक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति करता है।
इस साधना को रात्रिकाल में खुले आसमान के नीचे कुश के आसन में पश्चिम दिशा में मुह करके निर्वस्त्र साधना करनी चाहिए. मंत्र आदि की जानकारी नीचे दी गयी है.
साधना काल प्रातः 3 बजे से 5 बजे या रात्रि 11 बजे से डेढ़ बजे ।
साधना स्थल खुले आसमान के नीचे निर्जन विराना, श्मशान, नदी का किनारा या कोई एकांत सन्नाटे से युक्त कमरा।
आसन कुश का आसन, सफ़ेद कम्बल, मछली का ढेर, बेल के पत्ते आदि का आसन।
वस्त्र निर्वस्त्र, सफेद ढीला।
दिशा पश्चिम मुखी
यंत्रादि इसमें किसी यंत्र, दीपक , माला की आवश्यकता नहीं होती।
मन्त्र ॐ – सात स्वर में मानसिक. ॐ नमः शिवाय.
भूत शुद्धि साधना प्रारंभ करने से पूर्व तिन दिन तक समाधि में (सुखासन) अपने को शव रूप में चिंतन करना , फिर तिन दिन तक चिंता में जलते हुए अनुभूत करना, फिर एक दिन जली राख को वायु से उड़ते अनुभूत करना, फिर एक दिन शिव की गंगा सिर से गिरकर जली हड्डीयों को बहाती विशाल समुद्र में जा रही है, यह कल्पना करना , फिर एक दिन उन समस्त हड्डीयों को गलकर घुलकर पानी में विलीन होते देखना।
ध्यान इस विदेधनुभुती में चाँद के मध्य चन्द्रमा जैसे शांत प्रकाशित बिंदु की कल्पना करके उसमें उतरते जाने का अभ्यास ।
समय प्रारंभ में 5 मिनट से अधिक ध्यान न लगायें। धीरे-धीरे जब मिनट तक बिंदु स्थिर हो , तब इसे एक-एक मिनट बढाये।
बाधाएं डर लग सकता है। आँखों के आगे छाया, बिंदु या भूत-प्रेत भी नजर आ सकते है। कोई सुन्दरी भी आमन्त्रण देती नजर आ सकती है। इस पर ध्यान न दें।
शरीर का ट्रीटमेंट तलवे साफ़ रखें। पेट साफ रखें। रात में सिर के चाँद, कान, गुदा मार्ग, नाभि में गाय का घी पर्याप्त पचायें। सारे शरीर पर घृत की मालिश करें। सुबह मिट्टी से धोएं। यथा संभव केमिकल से बचें। जहाँ तक हो सके दूध, घी, चावल, रोटी, दाल, हरी सब्जी का प्रयोग करें। प्रातःकाल कुछ दिन बेल पत्र का शर्बत छानकर पीयें।
यथा संभव कम बोलें। चिंतन में रहें। चाँद पर ध्यान हमेशा बनाये रखें और विलासिता से बचें।