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क्या है मनुष्य के सात शरीरों का विस्तृत, वैज्ञानिक विवेचन ?PART-03


भौतिक शरीर, भाव शरीर और कारण शरीर का विवेचन:-

06 FACTS;-

1-पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है।दूसरे शरीर में भाव का विकास होता है; तीसरे शरीर में तर्क, विचार और बुद्धि का विकास होता है। जीवन के पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है, बाकी सारे शरीर बीजरूप होते हैं; उनके विकास की संभावना होती है, लेकिन वे विकसित उपलब्ध नहीं होते।

2-पहले सात वर्ष, इसलिए अनुकरण/इमिटेशन, के ही वर्ष हैं। पहले सात वर्षों में कोई बुद्धि, कोई भावना, कोई कामना विकसित नहीं होती, विकसित होता है सिर्फ भौतिक शरीर।

कुछ लोग सात वर्ष से ज्यादा कभी आगे नहीं बढ़ पाते; कुछ लोग सिर्फ भौतिक शरीर ही रह जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में और पशु में कोई अंतर नहीं होगा। पशु के पास भी सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है, दूसरे शरीर अविकसित होते हैं।

3-दूसरे सात वर्ष में भाव शरीर का विकास होता है, या आकाश शरीर का। इसलिए दूसरे सात वर्ष व्यक्ति के भाव जगत के विकास के वर्ष हैं।कुछ लोग चौदह वर्ष के होकर ही रह जाते हैं, शरीर की उम्र बढ़ती जाती है, लेकिन उनके पास दो ही शरीर होते हैं।

4-तीसरे सात वर्षों में कारण शरीर विकसित होता है— इक्कीस वर्ष की उम्र तक।

इसलिए सात वर्ष के पहले दुनिया की कोई अदालत किसी बच्चे को सजा नहीं देगी, क्योंकि उसके पास सिर्फ भौतिक शरीर है; और उसको जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। और अगर बच्चे ने कोई पाप भी किया है, अपराध भी किया है, तो यही माना जाएगा कि किसी के अनुकरण में किया है, मूल अपराधी कोई और होगा।

5-हमारा जो शरीरविकसित होता है, उस शरीर के अनंत—अनंत आयाम हमारे लिए खुल जाते हैं। जिसका भाव शरीर विकसित नहीं हुआ, जो सात वर्ष पर ही रुक गया है, उसके जीवन का रस खाने—पीने पर समाप्त हो जाएगा। जिस कौम में पहले शरीर के लोग ज्यादा मात्रा में हैं, उसकी जीभ के अतिरिक्त कोई संस्कृति नहीं होगी।

6-जिस कौम में अधिक लोग दूसरे शरीर के हैं, उसका सारा व्यक्तित्व—उसकी कविता, उसका संगीत, उसकी फिल्म, उसका नाटक, उसके चित्र, उसके मकान आदि ..सब किसी अर्थों में वासना से भर जाएंगी।

तीसरे शरीर में तर्क, विचार और बुद्धि का विकास ;-

05 FACTS;-

1-जिस सभ्यता में तीसरे शरीर का विकास ठीक से हो पाएगा, वह सभ्यता अत्यंत बौद्धिक चिंतन और विचार से भर जाएगी। जब भी किसी कौम या समाज की जिंदगी में तीसरे शरीर का विकास महत्वपूर्ण हो जाता है, तो बड़ी वैचारिक क्रांतियां घटित होती हैं। बुद्ध और महावीर के वक्त में बिहार ऐसी ही हालत में था कि उसके पास तीसरी क्षमता को उपलब्ध बहुत बड़ा समूह था।

2-सुकरात और प्लेटो के वक्त यूनान की ऐसी ही हालत थी। कनफ्यूशियस और लाओत्से के समय चीन की ऐसी ही हालत थी। और ये सारे महान व्यक्ति पांच सौ साल के भीतर सारी दुनिया में हुए। उस पांच सौ साल में मनुष्य के तीसरे शरीर ने बड़ी ऊंचाइयां छुई।लेकिन

आमतौर से तीसरे शरीर पर मनुष्य रुक जाता है, अधिक लोग इक्कीस वर्ष के बाद कोई विकास नहीं करते।

3-दूसरे शरीर के विकास के बाद (चौदह वर्ष) एक तरह की प्रौढ़ता मिलती है; लेकिन वह प्रौढ़ता यौन—प्रौढ़ता है। प्रकृति का काम उतने से पूरा हो जाता है। इसलिए पहले शरीर और दूसरे शरीर के विकास में प्रकृति पूरी सहायता देती है, लेकिन दूसरे शरीर के विकास से मनुष्य मनुष्य नहीं बन पाता। तीसरा शरीर—जहां विचार, तर्क और बुद्धि विकसित होती है ..वह शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता का फल है। इसलिए दुनिया के सभी मुल्क इक्कीस वर्ष के व्यक्ति को मताधिकार देते हैं।

4-अभी कुछ मुल्कों मेंअठारह वर्ष के बच्चों को मताधिकार मिलने का संघर्ष है। वह संघर्ष स्वाभाविक है; क्योंकि जैसे— जैसे मनुष्य विकसित हो रहा है, सात वर्ष की सीमा कम होती जा रही है। अठारह वर्ष का मताधिकार इसी बात की सूचना है कि मनुष्य, जो काम इक्कीस वर्ष में पूरा हो रहा था, उसे अब और जल्दी पूरा करने लगा है, वह अठारह वर्ष में भी पूरा कर ले रहा है।

5-लेकिन साधारणत: इक्कीस वर्ष लगते हैं तीसरे शरीर के विकास के लिए। और अधिकतम लोग तीसरे शरीर पर रुक जाते हैं; मरते दम तक उसी पर रुके रहते हैं; चौथा शरीर, मनस शरीर भी विकसित नहीं हो पाता।

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चौथे मनस शरीर(अतींद्रिय क्रियाएं) का विवेचन:-

04 FACTS;-

1-चौथे शरीर के बड़े अनूठे अनुभव हैं। जैसे सम्मोहन, टेलीपैथी, क्लेअरवायंस /clairvoyance(the supposed faculty of perceiving things or events in the future) ये सब चौथे शरीर की संभावनाएं हैं। आदमी बिना समय और स्थान की बाधा के दूसरे से संबंधित हो सकता है; बिना बोले दूसरे के विचार पढ़ सकता है या अपने विचार दूसरे तक पहुंचा सकता है; बिना कहे, बिना समझाए, कोई बात दूसरे में प्रवेश कर सकता है और उसका बीज बना सकता है, शरीर के बाहर यात्रा कर सकता है—(एस्ट्रल प्रोजेक्शन)—शरीर के बाहर घूम सकता है, अपने इस शरीर से अपने को अलग जान सकता है।

2-इस चौथे शरीर की, मनस शरीर की, साइकिक बॉडी की बड़ी संभावनाएं हैं, जो हम बिलकुल ही विकसित नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इस दिशा में बहुत खतरे हैं और इस दिशा में मिथ्या की बहुत संभावना है । क्योंकि जितनी चीजें सूक्ष्म होती चली जाती हैं, उतनी ही मिथ्या संभावनाएं बढ़ती चली जाती हैं।

3-उदाहरण के लिए,एक आदमी अपने शरीर के बाहर गया या नहीं—वह अपने शरीर के बाहर जाने का सपना भी देख सकता है,या जा भी सकता है। और उसके अतिरिक्त, स्वयं के अतिरिक्त और कोई गवाह नहीं होगा। इसलिए धोखे में पड़ जाने की बहुत गुंजाइश है; क्योंकि इस शरीर से जो दुनिया शुरू होती है , वह सब्जेक्टिव है; इसके पहले की दुनिया ऑब्जेक्टिव है।

4-किसी के हाथ में रुपया एक कॉमन रियलिटी है है, तो आप भी देख सकते हैं, पचास लोग देख सकते हैं ;हम सब सहभागी हो सकते हैं और जांच हो सकती है—रुपया है या नहीं? लेकिन किसी के विचारों की दुनिया में आप सहभागी नहीं हो सकते, वहां से निजी दुनिया शुरू हो गई। जहां से निजी दुनिया शुरू होती है, वहां से खतरा शुरू होता है; क्योंकि किसी चीज की वैलिडिटी, के सारे बाह्य नियम खतम हो जाते हैं।क्योंकि चीजें इतनी बारीक और निजी हो गई हैं कि उसके खुद के पास भी कोई कसौटी नहीं है कि वह जाकर जांच करे कि सच में जो हो रहा है वह हो रहा है? कि वह कल्पना कर रहा है?

क्या है,चौथे शरीर के लाभ और खतरे?-

03 FACTS;-

1-यह जो चौथा शरीर है, इससे हमने मनुष्यता को बचाने की कोशिश की। और अक्सर ऐसा हुआ कि इस शरीर का जो लोग उपयोग करनेवाले थे, उनकी बहुत तरह की बदनामी हुई। योरोप में हजारों स्त्रियों को जला डाला गया विचेज़ कहकर, डाकिनी कहकर; क्योंकि उनके पास यह चौथे शरीर का काम था। हिंदुस्तान में सैकड़ों तांत्रिक मार डाले गए इस चौथे शरीर की वजह से, क्योंकि वे कुछ सीक्रेट्स जानते थे जो कि हमें खतरनाक मालूम पड़े।

2-आपके मन में क्या चल रहा है, वे जान सकते हैं; आपके घर में कहां क्या रखा है, यह उन्हें घर के बाहर से पता हो सकता है। तो सारी दुनिया में इस चौथे शरीर को एक तरह का ब्लैक आर्ट समझ लिया गया कि एक काले जादू की दुनिया है जहां कि कोई भरोसा नहीं कि क्या हो जाए! और एकबारगी हमने मनुष्य को तीसरे शरीर पर रोकने की भरसक चेष्टा की कि चौथे शरीर पर खतरे हैं।

3-खतरे थे, लेकिन खतरों के साथ उतने ही अदभुत लाभ भी थे। तो बजाय इसके कि रोकते, जांच—पड़ताल जरूरी थी कि वहां भी हम रास्ते खोज सकते थे जांचने के। और अब विज्ञानिक उपकरण भी हैं और समझ भी बढ़ी है, रास्ते खोजे जा सकते हैं।साधकों ने

चौथे शरीर के भी बाहर से जांचने के उपाय खोज लिए हैं। और अब तय किया जा सकता है कि जो हुआ, वह सच है या गलत, वह मिथ्या है या सही; जिस कुंडलिनी का तुमने चौथे शरीर पर अनुभव किया, वह वास्तविक है या झूठ। सिर्फ साइकिक होने से झूठ नहीं होती, मनस में भी झूठ हो सकती है और मनस में भी सही हो सकती है।

क्या सपना भी चौथा शरीर की ही घटना है ?-

05 FACTS;-

1-यह जो चौथा शरीर है, सपना इसकी ही घटना है।सपने हर किसी को आते है।सपने दो तरह के होते है एक वो जो हम सोने के बाद गहरी नींद में देखते है, दूसरा वो जो हम अपने सुनहरे भविष्य के लिए सोचते है।सपने में कई बार हम ऐसी घटना देखते है जो हमारे

भूतकाल से जुड़ी हुई होती है, या फिर वो देखते है जो आने वाले भविष्य में होने वाला है।कई बार हम अपने जीवन में जैसी सोच रखते है, जैसे माहोल में रहते है वैसा ही रात को सपना देखते है। सपने हमेशा अधूरे नहीं रहते है, वे कई बार पूरे भी होते है। लेकिन सपने में

देखी गई हर चीज वस्तु, इन्सान, घटना का कोई न कोई गहरा मतलब होता है।

2-सपना कहने से ही कुछ झूठ नहीं हो जाता, सपने के अपने यथार्थ हैं। झूठा सपना भी हो सकता है, सच्चा सपना भी। सच्चे का मतलब यह है कि जो— हुआ है, सच में हुआ है। और ठीक -ठीक तो सपने को तुम बता ही नहीं पाते सुबह। मुश्किल से कोई आदमी है जो सपने की ठीक रिपोर्ट कर सके।तुमने रात एक सपना देखा । यह सपना एक सत्य है, क्योंकि यह घटा। लेकिन सुबह उठकर तुम ऐसे सपने को भी याद कर सकते हो जो तुमने देखा नहीं, लेकिन तुम कह रहे हो कि मैंने देखा; तब यह झूठ है।

3-एक आदमी सुबह उठकर कहता है कि मैं सपना देखता ही नहीं। हजारों लोग हैं जिनको खयाल है कि वे सपने नहीं देखते। वे सपने देखते हैं; क्योंकि सपने जांचने के अब बहुत उपाय हैं जिनसे पता चलता है कि वे रात भर सपने देखते हैं; लेकिन सुबह वे कहते हैं कि हमने सपने देखे ही नहीं। तो वे जो कह रहे हैं, बिलकुल झूठ कह रहे हैं, हालांकि उन्हें पता नहीं है। असल में, उनको स्मृति नहीं बचती.. सपने की। इससे उलटा भी हो रहा है जो सपना तुमने कभी नहीं देखा, उसकी भी तुम सुबह कल्पना कर सकते हो कि तुमने देखा। वह झूठ होगा।

4-इसलिए बड़ी कठिनाइयां हैं, सपने की रिपोर्ट ठीक से देने की। बड़ी कठिनाई तो यह है कि जब तुम सपना देखते हो तब उसका सीकेंस अलग होता है और जब याद करते हो तब उलटा होता है, फिल्म की तरह। जब हम फिल्म देखते हैं तो शुरू से देखते हैं, पीछे की तरफ। सपना जब आप देखते हैं नींद में.. तो जो घटना पहले घटी, वह स्मृति में सबसे बाद में घटेगी, क्योंकि वह सबसे पीछे दबी रह गई। जब तुम सुबह उठते हो तो सपने का आखिरी हिस्सा तुम्हारे हाथ में होता है और उससे तुम पीछे की तरफ याद करना शुरू करते हो।

5-यह ऐसे उपद्रव का काम है, जैसे कोई किताब को उलटी तरफ से पढ़ना शुरू करे, और सब शब्द उलटे हो जाएं, और वह डगमगा जाए। इसलिए थोड़ी दूर तक ही जा पाते है हम..सपने में, बाकी सब गड़बड़ हो जाता है। उसे याद रखना और उसको ठीक से रिपोर्ट कर देना बड़ी कला की बात है। इसलिए हम आमतौर से गलत रिपोर्ट करते हैं; जो हमें नहीं हुआ होता, वह रिपोर्ट करते हैं। उसमें बहुत कुछ खो जाता है, बहुत कुछ बदल जाता है, बहुत कुछ जुड़ जाता है।

क्या योग -सिद्धियां, कुंडलिनी, चक्र इत्यादि भी चौथे शरीर की ही संभावनाएं हैं?-

04 FACTS;-

1-जितनी भी योग में सिद्धियों का वर्णन है, वह इस सारे चौथे शरीर की ही व्यवस्था है।इस चौथे शरीर की बड़ी संभावनाएं हैं और निरंतर योग ने सचेत किया है कि उनमें मत जाना। और सबसे बड़ा डर यही है कि उसमें मिथ्या में जाने के बहुत उपाय हैं और भटक जाने की बड़ी संभावनाएं हैं।और अगर वास्तविक में भी चले जाओ तो भी उसका आध्यात्मिक मूल्य नहीं है।

2-वस्तुत: कुंडलिनी इस चौथे शरीर की घटना है इसलिए फिजियोलाजिस्ट तुम्हारे इस शरीर को जब खोजने जाएगा तो उसमें कोई कुंडलिनी नहीं पाएगा। तुम्हारे चक्र इस शरीर में

कहीं भी नहीं हैं।वह चौथे शरीर की व्यवस्था है ; लेकिन वह चौथा इतना सूक्ष्म है कि, उसे पकड़ा नहीं जा सकता, पकड़ में तो यही शरीर आता है। लेकिन उस शरीर और इस शरीर के तालमेल पडते हुए स्थान हैं।

3-उदाहरण के लिए,हम सात कागज रख लें, और एक आलपीन सातों कागज में डाल दें, और एक छेद सातों कागज में एक जगह पर हो जाए। अब समझ लो कि पहले कागज पर छेद विदा हो गया, नहीं है। फिर भी, दूसरे कागज पर, तीसरे कागज पर जहां छेद है उससे कॉरस्पांड करने वाला स्थान पहले कागज पर भी है; छेद तो नहीं है, इसलिए पहले कागज की जांच पर वह छेद नहीं मिलेगा, लेकिन पहले कागज पर भी कॉरस्पाडिंग कोई बिंदु है, जिसको अगर हाथ रखा जाए तो वह तीसरे—चौथे कागज पर जो बिंदु है, उसी जगह पर होगा।

4-तो इस शरीर में जो चक्र , कुंडलिनी की बात है, वो, वह इस शरीर की नहीं है। वह बात इस शरीर में सिर्फ कॉरस्पाडिंग बिंदुओं की है। और इसलिए कोई शरीर -शास्त्री इनकार करे तो गलत नहीं कह रहा है ...वहां कोई कुंडलिनी नहीं मिलती, कोई चक्र नहीं मिलता। वह किसी और शरीर पर है। लेकिन इस शरीर से संबंधित बिंदुओं का पता लगाया जा सकता है।तो...

कुंडलिनी चौथे शरीर की घटना है। यह मानसिक/साइकिक होना भी दो तरह का हो सकता है -गलत और सही । गलत तब होगा जब तुमने कल्पना की; क्योंकि कल्पना भी चौथे शरीर की ही स्थिति है।

क्या कल्पना भी चौथे शरीर की ही स्थिति है?-

11 FACTS;-

1-जानवर रोज अपने आसपास किसी को मरते देखते हैं, लेकिन यह कल्पना नहीं कर पाते कि मैं मरूंगा। इसलिए मृत्यु का कोई भय जानवर को नहीं है।तो जानवर का अतीत थोड़ा -बहुत होता है, भविष्य बिलकुल नहीं होता। इसलिए जानवर निश्चिंत हैं, क्योंकि चिंता सब भविष्य के बोध से पैदा होती है।

2- मनुष्यो में भी बहुत हैं जिनको यह खयाल नहीं आता है कि ''मैं मरूंगा''; उनको भी खयाल आता है - '' कोई और मरता है''। ''मैं मरूंगा'', इसका खयाल नहीं आता। उसका कारण सिर्फ यह है कि चौथे शरीर में कल्पना जितनी विस्तीर्ण होनी चाहिए.. कि दूर तक देख पाए, वह नहीं हो रहा।

3-अब इसका मतलब यह हुआ कि कल्पना भी सही होती है और मिथ्या होती है। सही का मतलब सिर्फ यह है कि हमारी संभावना दूर तक देखने की है। जो अभी नहीं है, उसको देखने की संभावना कल्पना की बात है। लेकिन जो होगा ही नहीं, जो है ही नहीं, उसको भी मान लेना कि हो गया है और है, वह मिथ्या कल्पना होगी।

4-अगर कल्पना का ठीक उपयोग हो तो विज्ञान पैदा हो जाता है, क्योंकि विज्ञान सिर्फ एक कल्पना है ..प्राथमिक रूप से। हजारों साल से आदमी सोचता है कि आकाश में उड़ेंगे। जिस आदमी ने यह सोचा है आकाश में उड़ेंगे, बड़ा कल्पनाशील रहा होगा। लेकिन अगर किसी आदमी ने यह न सोचा होता तो राइट ब्रदर्स हवाई जहाज नहीं बना सकते थे। हजारों लोगों ने कल्पना की है और सोचा है कि हवाई जहाज में उड़ेंगे, इसकी संभावना को जाहिर किया है। फिर धीरे— धीरे, धीरे— धीरे संभावना प्रकट होती चली गई—खोज हो गई और बात हो गई। 5-फिर हजारों वर्षों से हम सोच रहे हैं कि चांद पर पहुंचेंगे। वह कल्पना थी उस कल्पना को जगह मिल गई। लेकिन वह कल्पना आथेंटिक थी। यानी वह कल्पना मिथ्या के मार्ग पर नहीं थी। वह कल्पना भी उस सत्य के मार्ग पर थी जो कल आविष्कृत हो सकता है।

तो वैज्ञानिक भी कल्पना कर रहा है, एक पागल भी कल्पना कर रहा है।

6-वास्तव में,पागलपन भी कल्पना है और विज्ञान भी कल्पना है, तो तुम यह मत समझ लेना कि दोनों एक ही चीज हैं। पागल भी कल्पना कर रहा है, लेकिन वह ऐसी कल्पनाएं कर रहा है जिनका वस्तु जगत से कभी कोई तालमेल न है, न हो सकता है। वैज्ञानिक भी कल्पना कर रहा है, लेकिन ऐसी कल्पना कर रहा है जो वस्तु जगत से तालमेल रखती है। और अगर कहीं तालमेल नहीं रखती है तो तालमेल होने की पूरी की पूरी संभावना है।

7-तो इस चौथे शरीर की जो भी संभावनाएं हैं उनमें सदा डर है कि हम कहीं भी चूक जाएं और मिथ्या का जगत शुरू हो जाता है। तो इसलिए इस चौथे शरीर में जाने के पहले सदा अच्छा है कि हम कोई अपेक्षाएं लेकर न जाएं। क्योंकि यह चौथा शरीर मनस शरीर है।

जैसे कि अगर हमें एक मकान से नीचे उतरना है—वस्तुत, तो सीढ़ियां खोजनी पड़ेगी, लिफ्ट खोजनी पड़ेगी। लेकिन अगर विचार में उतरना है, तो लिफ्ट और सीढ़ी की कोई जरूरत नहीं।

8-विचार और कल्पना में खतरा यह है कि चूंकि कुछ नहीं करना पड़ता, सिर्फ विचार करना पड़ता है, तो कोई भी उतर सकता है। और अगर अपेक्षाएं लेकर कोई गया, तो जो अपेक्षाएं लेकर जाता है उन्हीं में उतर जाएगा। क्योंकि मन कहेगा कि ठीक है, कुंडलिनी जगानी है? यह जाग गई! और तुम कल्पना करने लगोगे कि जाग रही, जाग रही, जाग रही। और तुम्हारा मन कहेगा कि बिलकुल जाग गई और बात खत्म हो गई, कुंडलिनी उपलब्ध हो गई है; चक्र खुल गए हैं; ऐसा हो गया।

9-लेकिन इसको जांचने की कसौटी है और वह कसौटी यह है कि प्रत्येक चक्र के साथ तुम्हारे व्यक्तित्व में आमूल परिवर्तन होगा। उस परिवर्तन की तुम कल्पना नहीं कर सकते, क्योंकि

वह परिवर्तन वस्तु जगत का हिस्सा है।आचरण जो है ..साधन नहीं है, भीतर कुछ घटा है, उसकी कसौटी है। और प्रत्येक प्रयोग के साथ कुछ बातें अनिवार्य रूप से घटना शुरू होंगी। जैसे चौथे शरीर की शक्ति के जगने के बाद किसी भी तरह का मादक द्रव्य नहीं लिया जा सकता। अगर लिया जाता है, और उसमें रस है, तो जानना चाहिए कि किसी मिथ्या कुंडलिनी के खयाल में पड़ गए हो। वह नहीं संभव है।

10-कुंडलिनी जागने के बाद हिंसा करने की वृत्ति सब तरफ से विदा हो जाएगी क्योंकि हिंसा करने की जो वृत्ति है, हिंसा करने का जो भाव है, दूसरे को नुकसान पहुंचाने की जो भावना और कामना है वह तभी तक हो सकती है जब तक कि तुम्हारी कुंडलिनी शक्ति नहीं जगी है। जिस दिन वह जगती है, उसी दिन से तुम्हें दूसरा.. दूसरा नहीं दिखाई पड़ता, कि उसको तुम नुकसान पहुंचा सको। और तब तुम्हें हिंसा रोकनी नहीं पड़ेगी, तुम हिंसा नहीं कर पाओगे। और अगर तुम्हें अब भी हिंसा पर,संयम रखना पड़ता हो,हिंसा रोकनी पड़ रही हो, तो समझना चाहिए कि अभी कुंडलिनी नहीं जगी है।

11-चरित्र में आमूल परिवर्तन होगा। और सारे नियम...वे सहज हो जाएंगे। तो समझना कि सच में ...साइकिक ही है, लेकिन आथेंटिक है। और अब आगे जा सकते हो, क्योंकि आथेंटिक से आगे जा सकते हो; अगर झूठी है तो आगे नहीं जा सकते। और चौथा शरीर मुकाम नहीं है, अभी और शरीर हैं।

क्या चौथे शरीर में चमत्कारों का प्रारंभ हो जाता है?-

05 FACTS;-

1-चौथा शरीर कम लोगों का विकसित होता है..इसीलिए दुनिया में मिरेकल्स हो रहे हैं। अगर चौथा शरीर हम सबका विकसित हो तो दुनिया में चमत्कार तत्काल बंद हो जाएंगे। यह ऐसे ही है, जैसे कि चौदह साल तक हमारा शरीर विकसित हो, और हमारी बुद्धि विकसित न हो पाए, तो एक आदमी जो हिसाब -किताब लगा सकता हो बुद्धि से, गणित का हिसाब कर सकता हो, वह चमत्कार मालूम हो।

2-आज से हजार साल पहले जब कोई कह देता था कि फलां दिन सूर्य—ग्रहण पड़ेगा, तो वह बड़ी चमत्कार की बात थी, वह परम ज्ञानी ही बता सकता था। अब आज हम जानते हैं कि यह मशीन बता सकती है, यह सिर्फ गणित का हिसाब है। इसमें कोई ज्योतिष और कोई बड़े भारी ज्ञानी की जरूरत नहीं है, एक कंप्यूटर बता सकता है और एक साल का नहीं, आनेवाले करोड़ों साल का बता सकता है कि कब -कब सूर्य ग्रहण पड़ेगा।

3-अभी जो चमत्कार घट रहे हैं, ये सब चौथे शरीर के लिए बड़ी साधारण सी बातें हैं।जितने गहरे शरीर पर व्यक्ति खड़ा हो जाएगा, उतना ही पीछे के शरीर के लोगों के लिए चमत्कार हो जाएगा। और उसकी सब चीजें मिरेकुलस मालूम पड़ने लगेंगी कि यह हो रहा है।क्योंकि उस चौथे शरीर के नियम का हमें कोई पता नहीं है। इसलिए दुनिया में जादू चलता है, चमत्कार घटित होते हैं; वे सब चौथे शरीर के थोड़े से विकास से हैं।

4-चौथा शरीर अट्ठाइस वर्ष तक विकसित होता है। लेकिन कम ही लोग इसको विकसित करते हैं।इसलिए दुनिया से अगर चमत्कार खतम करने हों, तो लोगों को समझाने से खतम नहीं होंगे।जैसे हम तीसरे शरीर की शिक्षा देकर प्रत्येक व्यक्ति को गणित और भाषा समझने के योग्य बना देते हैं, उसी तरह हमें चौथे शरीर की शिक्षा भी देनी पड़ेगी और प्रत्येक व्यक्ति को इस तरह की चीजों के योग्य बना देना होगा।तब दुनिया से चमत्कार मिटेंगे, उसके पहले नहीं मिट सकते।

5-ये चार शरीर अगर विकसित हों, तो शिक्षा ठीक है, सम्यक है।सम्यक शिक्षा का मतलब है...चार शरीर तक तुम्हें ले जाए। क्योंकि पांचवें शरीर तक कोई शिक्षा नहीं ले जा सकती, वहां तो तुम्हें जाना पड़ेगा। लेकिन चार शरीर तक शिक्षा ले जा सकती है। इसमें कोई कठिनाई नहीं है।पांचवां कीमती शरीर है, उसके बाद यात्रा निजी शुरू हो जाती है। फिर छठवां और सातवां तुम्हारी निजी यात्रा है।

क्यो इतना महतत्वपूर्ण हैं ''चौथा शरीर''?-

05 FACTS;-

1-हर शरीर का समय पर विकसित हो जाना जरूरी है।अगर किसी में इक्कीस वर्ष तक

उसकी बुद्धि विकसित न हो पाए, तो फिर अब बहुत कम उपाय हैं कि इक्कीस वर्ष के बाद हम उसकी बुद्धि को विकसित करवा पाएं। हम पहले शरीर की भी फिकर कर लेते हैं,स्कूल में

भी पढ़ा देते हैं, सब कर देते हैं।लेकिन बाद के शरीरों का विकास भी उस सुनिश्चित उम्र से बंधा हुआ है, और वह चूक जाने की वजह से बहुत कठिनाई होती है।

2-एक आदमी पचास साल की उम्र में उस शरीर को विकसित करने में लगता है जो उसे इक्कीस वर्ष में लगना चाहिए था। तो इक्कीस वर्ष में जितनी ताकत उसके पास थी उतनी पचास वर्ष में उसके पास नहीं है। इसलिए अकारण कठिनाई पड़ती है और उसे बहुत ज्यादा श्रम उठाना पड़ता है।अब एक लंबा पथ और कठिन पथ हो जाता है।और एक कठिनाई हो जाती है कि वह इस बीच इतना भटक चुका है और इतने दरवाजे देख चुका है कि उसे पता लगाना भी मुश्किल है कि वह दरवाजा कौन सा है, जिस पर वह इक्कीस वर्ष में खड़ा हो गया था।

3-इसलिए पच्चीस वर्ष तक बड़ी सुनियोजित व्यवस्था की जरूरत है ..बच्चों के लिए। वह इतनी सुनियोजित होनी चाहिए कि उनको चौथे पर तो पहुंचा दे। चौथे के बाद बहुत आसान है। फाउंडेशन सब भर दी गई हैं, अब तो सिर्फ फल आने की बात है। चौथे तक वृक्ष निर्मित होता है, पांचवें से फल आने शुरू होते हैं, सातवें पर पूरे हो जाते हैं। इसमें थोड़ी देर ..अबेर हो सकती है, लेकिन यह बुनियाद पूरी की पूरी मजबूत हो जाए।

4-क्या स्त्री और पुरुष के चार विद्युतीय शरीर है?-

08 POINTS;-

1-चार शरीर तक स्त्री और पुरुष का फासला है। जैसे कोई व्यक्ति पुरुष है, तो उसकी फिजिकल बॉडी मेल बॉडी होती है। लेकिन उसके पीछे की, नंबर दो की ईथरिक बॉडी/ भाव शरीर, स्त्रैण होती है; वह फीमेल बॉडी होती है। क्योंकि कोई निगेटिव या कोई पाजिटिव अकेला नहीं रह सकता। स्त्री का शरीर और पुरुष का शरीर, इसको अगर हम विद्युत की भाषा में कहें, तो निगेटिव और पाजिटिव बॉडीज़ हैं।

2-स्त्री के पास निगेटिव बॉडी है -स्थूल।निगेटिव का मतलब ऐसा नहीं कि शून्य, और ऐसा नहीं कि ऋणात्मक। निगेटिव का मतलब विद्युत की भाषा में इतना ही होता है ..रिजर्वायर। स्त्री के पास एक ऐसा शरीर है जिसमें शक्ति संरक्षित है -बडी शक्ति संरक्षित है। लेकिन सक्रिय नहीं है, है वह निष्किय शक्ति।

3-पुरुष के पास एक पाजिटिव बॉडी है -भौतिक शरीर। लेकिन जहां भी पाजिटिव है, उसके पीछे निगेटिव को होना चाहिए, नहीं तो वह टिक नहीं सकता। वे दोनों इकट्ठे ही मौजूद होते हैं, तब उनका पूरा सर्किल बनता है। तो पुरुष का जो नंबर दो का शरीर है, वह स्त्रैण है; स्त्री के पास जो नंबर दो का शरीर है, वह पुरुष का है।

4-इसलिए पुरुष दिखता बहुत ताकतवर है -जहां तक उसके भौतिक शरीर का संबंध है; लेकिन उसके पीछे एक कमजोर शरीर खड़ा हुआ है,.. स्त्रैण। इसलिए उसकी ताकत क्षणों में प्रकट होगी, लंबे अरसे में वह स्त्री से हार जाएगा; क्योंकि स्त्री के पीछे जो शरीर है, वह पाजिटिव है।

5-इसलिए सहने की क्षमता पुरुष से स्त्री में सदा ज्यादा होगी। अगर एक बीमारी पुरुष और स्त्री पर हो, तो स्त्री उसे लंबे समय तक झेल सकती है, पुरुष उतने लंबे समय तक नहीं झेल सकता। बच्चे स्त्रियां पैदा करती हैं, अगर पुरुष को पैदा करना पड़े तो शायद दुनिया में फिर संतति—नियमन की कोई जरूरत न रह जाए, वह बंद ही कर दे। वह इतना कष्ट नहीं झेल सकता। ताकत तो उसके पास ज्यादा है, लेकिन पीछे उसके पास एक डेलिकेट और कमजोर शरीर है जिसकी वजह से वह उसको झेल नहीं पाता। इसलिए स्त्रियां कम बीमार पडती हैं।

6-स्त्रियों की उम्र पुरुष से ज्यादा है। इसलिए हम शादी करते वक्त पांच साल का फासला रखते हैं क्योंकि पुरुष की उम्र चार -पांच साल कम है। तो उसका, दोनों के बीच तालमेल बैठ जाए और वे बराबर जगह आ जाएं।नहीं तो दुनिया विधवाओं से भर जाए।एक सौ सोलह

लड़के पैदा होते हैं और एक सौ लड़कियां पैदा होती हैं; पैदा होते वक्त सोलह का फर्क होता है, सोलह लड़के ज्यादा पैदा होते हैं। लेकिन दुनिया में स्त्री -पुरुष की संख्या बराबर हो जाती है. पीछे।लड़के ज्यादा मरते हैं, लड़कियां कम मरती हैं, उनके पास रेसिस्टेंस की क्षमता, प्रतिरोध की क्षमता प्रबल है। वह उनके पीछे के शरीर से आती है।

7-दूसरी बात ..तीसरा शरीर जो है पुरुष का, वह फिर पुरुष का होगा—यानी सूक्ष्म शरीर। और चौथा शरीर, मनस शरीर फिर स्त्री का होगा। और ठीक इससे उलटा स्त्री में होगा।

चार शरीरों तक स्त्री -पुरुष का विभाजन है, पांचवां शरीर बियांड सेक्स है।इसलिए आत्म -उपलब्धि होते ही इस जगत में फिर कोई स्त्री और पुरुष नहीं है। लेकिन तब तक स्त्री -पुरुष है।

8-और इस संबंध में एक बात और है, चूंकि प्रत्येक पुरुष के पास स्त्री का शरीर है भीतर और प्रत्येक स्त्री के पास पुरुष का शरीर है, अगर संयोग से स्त्री को ऐसा पति मिल जाए जो उसके भीतर के पुरुष शरीर से मेल खाता हो, तभी विवाह सफल होता है, नहीं तो नहीं हो पाता; या पुरुष को ऐसी स्त्री मिल जाए तो उसके भीतर की स्त्री से मेल खाती है, तो ही सफल होता है, नहीं तो नहीं हो पाता।

5-क्या प्रथम चार शरीरों के विकास के बिना विवाह असफल होते हैं?-

04 POINTS;-

1-सारी दुनिया में विवाह असफल होते हैं, क्योंकि उनकी गहरी सफलता का सूत्र अभी तक साफ नहीं हो सका है। और उसको हम कैसे खोजबीन करें कि उनके भीतरी शरीरों से मेल खा जाए, तब तक दुनिया में विवाह असफल ही होता रहेगा। उसके लिए हम कुछ भी इंतजाम कर लें, वह सफल नहीं हो सकता। और उसको हम तभी खोज पाएंगे जब यह सारी की सारी शरीरों की पूरी वैज्ञानिक व्यवस्था अत्यंत स्पष्ट हो जाए।और इसलिए अगर एक युवक और एक

युवती,विवाह के पहले, अपनी कुंडलिनी जागरण तक पहुंच गए हों, तो उन्हें ठीक साथी चुनना सदा आसान है। उसके पहले ठीक साथी चुनना कभी भी आसान नहीं है।

2-वास्तव में,एक पुरुष अपने ही भीतर की स्त्री को खोज रहा है;और एक स्त्री अपने ही भीतर के पुरुष को खोज रही है। अगर कहीं तालमेल बैठ जाता है संयोग से, तब तो वह तृप्त हो जाता है, अन्यथा वह अतृप्ति बनी रहती है। फिर हजार तरह की विकृति पैदा होती है ...।

और जितनी मनुष्य की बुद्धि विकसित होगी उतनी यह परेशानी बढ़ेगी। अगर चौदह वर्ष तक ही आदमी रुक जाए तो यह परेशानी नहीं होगी। क्योंकि यह सारी परेशानी तीसरे शरीर के विकास से शुरू होगी, 'बुद्धि के'। अगर सिर्फ दूसरा शरीर विकसित हो, भाव शरीर, तो वह तृप्त हो जाएगा।

3-इसलिए दो रास्ते थे या तो हम पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य के काल में उसको चार शरीरों तक पहुंचा दें, और या फिर बाल -विवाह कर दें। क्योंकि बाल -विवाह का मतलब है .. ''बुद्धि का शरीर विकसित होने के पहले''। ताकि वह 'कामभाव' पर ही रुक जाए और कभी झंझट में न पड़े। तब उसका बाल -विवाह का जो संबंध है, वह बिलकुल पाशविक संबंध है।वह सिर्फ 'काम' का संबंध है; प्रेम जैसी संभावना वहां नहीं है।

4-इसलिए अमेरिका जैसे मुल्कों में, जहां शिक्षा बहुत बढ़ गई, और जहां तीसरा शरीर पूरी तरह विकसित हो गया, वहां विवाह टूटेगा, वह नहीं बच सकता। क्योंकि तीसरा शरीर कहता है मेल नहीं खाता। इसलिए फौरन तलाक तैयार हो जाएगा, क्योंकि 'मेल नहीं खाता ..तो इसको खींचना कैसे संभव है'।

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पांचवां आत्म शरीर-स्प्रिचुअल बॉडी:-

03 FACTS;-

1-पांचवां शरीर बहुत कीमती है, जिसको अध्यात्म शरीर या -स्प्रिचुअल बॉडी कहें। चौथे शरीर में कुंडलिनी जगे तो ही पांचवें शरीर में प्रवेश हो सकता है, अन्यथा पांचवें शरीर में प्रवेश नहीं हो सकता।वह पैंतीस वर्ष की उम्र तक, अगर ठीक से जीवन का विकास हो, तो उसको विकसित हो जाना चाहिए।

2-लेकिन वह तो बहुत दूर की बात है,क्योंकि चौथा शरीर ही नहीं विकसित हो पाता। इसलिए आत्मा वगैरह हमारे लिए बातचीत है, सिर्फ चर्चा है; उस शब्द के पीछे कोई कंटेंट नहीं है। जब हम कहते हैं ‘ आत्मा ‘, तो उसके पीछे कुछ नहीं होता, सिर्फ शब्द होता है, जब हम कहते हैं ‘ दीवाल’, तो सिर्फ शब्द नहीं होता, पीछे कंटेंट होता है। हम जानते हैं, दीवाल यानी क्या। ‘ आत्मा’ के पीछे कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि आत्मा हमारा अनुभव नहीं है। वह पांचवां शरीर है। और चौथे का पता नहीं है, इसलिए पांचवें का पता नहीं हो पाता। और पांचवां भी बहुत थोड़े से लोगों को पता हो पाता है। जिसको हम आत्मवादी कहते हैं, कुछ लोग उस पर रुक जाते हैं, और वे कहते हैं बस यात्रा पूरी हो गई; आत्मा पा ली और सब पा लिया।लेकिन यात्रा अभी भी पूरी नहीं हो गई।

3-इसलिए जो लोग इस पांचवें शरोर पर रुकेंगे, वे परमात्मा को इनकार कर देंगे, वे कहेंगे, कोई ब्रह्म, कोई परमात्मा वगैरह नहीं है। जैसे जो पहले शरीर पर रुकेगा, वह कह देगा कि कोई आत्मा वगैरह नहीं है। तो एक शरीरवादी है, एक मैटीरियलिस्ट है, वह कहता है. शरीर सब कुछ है; शरीर मर जाता है, सब मर जाता है। ऐसा ही आत्मवादी है, वह कहता है. आत्मा ही सब कुछ है, इसके आगे कुछ भी नहीं; बस परम स्थिति आत्मा है। लेकिन वह पांचवां शरीर ही है।

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छठवां और सातवां शरीर...ब्रह्म शरीर तथा निर्वाण काया:-

04 FACTS;-

1-छठवां शरीर ब्रह्म शरीर है, वह कास्मिक बॉडी है। जब कोई आत्मा को विकसित कर ले और उसको खोने को राजी हो, तब वह छठवें शरीर में प्रवेश करता है।अगर दुनिया में मनुष्य वैज्ञानिक ढंग से विकास करे, तो बयालीस वर्ष की उम्र तक सहज हो जाना चाहिए।

और सातवां शरीर उनचास वर्ष तक हो जाना चाहिए। वह सातवां शरीर निर्वाण काया है, वह कोई शरीर नहीं है, वह बॉडीलेसनेस की हालत है। वह परम है। वहां शून्य ही शेष रह जाएगा। वहां ब्रह्म भी शेष नहीं है। वहां कुछ भी शेष नहीं है। वहां सब समाप्त हो गया है।

2-इसलिए गौतम बुद्ध से जब भी कोई पूछता है, वहां क्या होगा? तो वे कहते हैं जैसे दीया बुझ जाता है, फिर क्या होता है? खो जाती है ज्योति, फिर तुम नहीं पूछते, कहां गई? फिर तुम नहीं पूछते, अब कहां रहती होगी? बस खो गई।निर्वाण शब्द का मतलब होता है,दीये का

बुझ जाना। इसलिए बुद्ध कहते हैं, निर्वाण हो जाता है। पांचवें शरीर तक मोक्ष की प्रतीति होगी, क्योंकि परम मुक्ति हो जाएगी; ये चार शरीरों के बंधन गिर जाएंगे और आत्मा परम मुक्त होगी।

3-तो मोक्ष जो है, वह पांचवें शरीर की अवस्था का अनुभव है।अगर चौथे शरीर पर कोई रुक

जाए,तो स्वर्ग का या नरक का अनुभव होगा; वे चौथे शरीर की संभावनाएं हैं।

अगर पहले, दूसरे और तीसरे शरीर पर कोई रुक जाए, तो यही जीवन सब कुछ है -जन्म और मृत्यु के बीच; इसके बाद कोई जीवन नहीं है।अगर चौथे शरीर पर चला जाए,तो इस

जीवन के बाद नरक और स्वर्ग का जीवन है, दुख और सुख की अनंत संभावनाएं हैं वहां।

अगर पांचवें शरीर पर पहुंच जाए, तो मोक्ष का द्वार है।

4-अगर छठवें पर पहुंच जाए, तो मोक्ष के भी पार ब्रह्म की संभावना है; वहां न मुक्त है, न अमुक्त है, वहां जो भी है उसके साथ वह एक हो गया। 'अहं ब्रह्मास्मि 'की घोषणा इस छठवें शरीर की संभावना है।लेकिन अभी एक कदम और,.. जहां न अहं है, न ब्रह्म है,जहां मैं और

तू दोनों नहीं हैं; जहां कुछ है ही नहीं, जहां परम शून्य है ..टोटल, एब्सोल्युट वॉयड ..वह निर्वाण है।

THE KEY NOTES;-

1-ये सात शरीर हैं और उनचास वर्ष में यह पूरा होता है, इसलिए औसतन पचास वर्ष को क्रांति का बिंदु समझा जाता था।पच्चीस वर्ष तक एक जीवन -व्यवस्था थी। इस पच्चीस वर्ष में कोशिश की जाती थी कि हमारे जो भी जरूरी शरीर हैं वे विकसित हो जाएं -यानी चौथे शरीर तक आदमी पहुंच जाए; मनस शरीर तक आदमी पहुंच जाए, तो उसकी शिक्षा पूरी हुई। फिर वह पांचवें शरीर को जीवन में खोजे। और पचास वर्ष तक अथार्त शेष पच्चीस वर्षों में ,वह सातवें शरीर को उपलब्ध हो जाए।

2-इसलिए पचास वर्ष में दूसरा क्रांति का बिंदु आएगा कि अब वह वानप्रस्थ हो जाए। वानप्रस्थ का मतलब केवल इतना ही है कि उसका मुख अब जंगल की तरफ हो जाए; अब आदमी की तरफ से, समाज की तरफ से, भीड़ की तरफ से वह मुंह को फेर ले। और पचहत्तर वर्ष फिर एक क्रांति का बिंदु है जहां से वह संन्यस्त हो जाए। वन की तरफ मुंह फेर ले ..भीड़ और आदमी से बचे। और संन्यस्त का मतलब है— अपने से भी बचे, अब अपने से भी मुंह फेर ले।यानी जंगल में 'अब मैं तो बच ही जाऊंगा.'..फिर इसको भी छोड़ने का वक्त है कि पचहत्तर वर्ष में इसको भी छोड़ दे।

3-लेकिन गृहस्थ जीवन में उसके सातों शरीर का अनुभव और विकास हो जाना चाहिए, तो यह सब आगे बड़ा सहज और आनंदपूर्ण हो जाएगा; और अगर यह न हो पाए, तो यह बड़ा कठिन हो जाएगा। क्योंकि प्रत्येक उम्र के साथ विकास की एक स्थिति जुड़ी है। अगर एक बच्चे का शरीर सात वर्ष में स्वस्थ न हो पाए, तो फिर जिंदगी भर वह किसी न किसी अर्थों में बीमार रहेगा। ज्यादा से ज्यादा हम इतना ही इंतजाम कर सकते हैं कि वह बीमार न रहे, लेकिन स्वस्थ कभी न हो सकेगा। क्योंकि उसकी बेसिक फाउंडेशन जो सात साल में पड़नी थी, वह डगमगा गई; वह उसी वक्त पड़नी थी।

4-जैसे कि हमने मकान की नींव भरी, अगर नींव कमजोर रह गई, तो शिखर पर पहुंचकर उसको ठीक करना बहुत मुश्किल मामला है; वह जब नींव भरी थी तभी मजबूत हो जानी

चाहिए थी।तो वे जो पहले सात वर्ष हैं, वह अगर भौतिक शरीर के लिए पूरी व्यवस्था मिल जाए, तो बात बनेगी। दूसरे सात वर्ष में अगर भाव शरीर का ठीक विकास न हो पाए, तो ...फिर उनको सुधारना बहुत मुश्किल हो जाएगा। वह वही वक्त है, जबकि उसकी तैयारी हो जानी चाहिए। यानी जीवन की प्रत्येक सीढ़ी पर, प्रत्येक शरीर की साधना का सुनिश्चित समय है। उसमें इंच, दो इंच का फेर -फासला और बात है।

....SHIVOHAM...


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