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क्या जीवन के अज्ञात रहस्यों की मनस शक्ति(चौथे शरीर) द्वारा खोज हो सकती है?क्या है पुराण की वैज्ञानिक


चौथे शरीर की वैज्ञानिक संभावनाएं;-

05 FACTS;-

1-चौथे शरीर में कल्पना और स्वप्न की क्षमता का जब रूपांतरण होता है तो आदमी को दिव्य दृष्टि व दूर -दृष्टि उपलब्ध होती है। चौथी स्टेज तक विज्ञान विकसित हो चुका है।न

जाने कितने लोग इस चौथे शरीर तक पहुंच चुके हैं।बहुत सी बातें इस चौथे शरीर को उपलब्ध लोगों ने बताई हैं और उनको गिना जा सकता है।अब जैसे, पृथ्वी कब बनी, इसके संबंध में जो पृथ्वी की उम्र चौथे शरीर के लोगों ने बताई है, उसमें और विज्ञान की उम्र में थोड़ा सा ही फासला है। और अभी भी यह नहीं कहा जा सकता कि विज्ञान जो कह रहा है वह सही है। अभी विज्ञान भी यह दावा नहीं कर सकता। फासला बहुत थोड़ा है, बहुत ज्यादा नहीं है।

2-पृथ्वी की गोलाई और गोलाई की माप के संबंध में जो चौथे शरीर के लोगों ने खबर दी है, उसमें और विज्ञान की खबर में और भी कम फासला है।जरूरी नहीं है कि जो खबर चौथे शरीर को उपलब्ध लोगों ने बताई है, वह गलत ही हो; क्योंकि पृथ्वी की गोलाई में निरंतर अंतर पड़ता रहा है। आज पृथ्वी जितनी सूरज से दूर है, उतनी दूर सदा नहीं थी; और आज पृथ्वी से चांद जितना दूर है, उतना सदा नहीं था। आज जहां अफ्रीका है, वहां पहले नहीं था। एक दिन अफ्रीका हिंदुस्तान से जुड़ा हुआ था। हजार घटनाएं बदल गई हैं, वे रोज बदल रही हैं। उन बदलती हुई सारी बातों को अगर खयाल में रखा जाए तो बड़ी आश्चर्यजनक बात मालूम पड़ेगी कि विज्ञान की बहुत सी खोजें की खबर चौथे शरीर के लोगों ने बहुत पहले दी हैं।

3-यह भी समझने जैसा मामला है कि विज्ञान के और चौथे शरीर तक पहुंचे हुए लोगों की भाषा में बुनियादी फर्क है, इस वजह से बड़ी कठिनाई होती है।क्योंकि चौथे शरीर को जो उपलब्ध है, उसके पास कोई मैथेमेटिकल लैंग्वेज नहीं होती। उसके पास तो प्रतीक की, विजन ,पिक्चर और सिंबल की लैंग्वेज होती है।सपने में, विजन में कोई भाषा नहीं होती।

अगर हम गौर से समझें, तो हम दिन में जो कुछ सोचते हैं, अगर रात हमें उसका ही सपना देखना पड़े, तो हमें प्रतीक भाषा या प्रतीक चुनना पड़ता है; क्योंकि भाषा तो होती नहीं।

4-अगर कोई महत्वाकांक्षी है और दिन भर आशा करता है कि सबके ऊपर निकल जाये , तो रात में जो सपना देखेगा उसमें वह पक्षी हो जायेगा और आकाश में उड़ जायेगा, और सबके ऊपर हो जायेगा। लेकिन सपने में यह नहीं कह सकता कि वह महत्वाकांक्षी हैं।सपने में सारी भाषा बदल जाएगी ।वह इतना ही कर सकता है कि ..एक पक्षी बनकर आकाश में , सबके ऊपर उड़ेगा।तो विजन की भी जो भाषा है, वह शब्दों की नहीं है, पिक्चर की है।

5- जिस तरह अभी ड्रीम इंटरप्रिटेशन फ्रायड , एडलर के बाद विकसित हुआ कि स्वप्न की हम व्याख्या करें, तभी हम पता लगा पाएंगे कि मतलब क्या है। इसी तरह चौथे शरीर के लोगों ने जो कुछ कहा है, उसका इंटरप्रिटेशन, व्याख्या अभी भी होने को है। अभी तो ड्रीम की व्याख्या भी पूरी नहीं हो पा रही है,विजन की व्याख्या तो बहुत दूसरी बात है कि ''विजन में जिन लोगों ने जो देखा है, उनका मतलब क्या है? वे क्या कह रहे हैं''?

क्या पुराणों में वर्णित अवतार जैविक विकास क्रम के प्रतीकात्मक रूप है?-

15 FACTS;-

1-अगर हम यह सारी बात समझें तो हमें पता चलेगा कि जिसको डार्विन बहुत बाद में विज्ञान की भाषा में कह सका, चौथे शरीर को उपलब्ध लोगों ने उसे पुराण की भाषा में बहुत पहले कहा है। लेकिन आज भी, पुराण की ठीक -ठीक व्याख्या नहीं हो पाती है, उसकी वजह है कि पुराण बिलकुल नासमझ लोगों के हाथ में पड़ गया है ।वास्तव में,कठिनाई यह है कि ;सभी पुराण कोड लैंग्वेज में है और एक वैज्ञानिक ही डिकोड कर सकता है।दूसरी कठिनाई यह हो गई है कि पुराण को खोलने के जो कोड हैं, वे सब खो गए हैं, वे हमारे पास नहीं हैं। इसलिए बड़ी अड़चन हो गई है।

2-अगर हम चौबीस अवतारों की कहानी पढ़ें, तो हमें इस बात को जानकर इतनी हैरानी होगी कि जिसको डार्विन हजारों साल बाद पकड़ पाया, ठीक वही विकास क्रम हमने पकड़ लिया। जब मनुष्य अवतार पैदा हुआ उसके पहले आधा मनुष्य और आधा सिंह का नरसिंह अवतार है।आखिर जानवर भी एकदम से आदमी नहीं बन सकते, जानवरों को भी आदमी बनने में एक बीच की कड़ी पार करनी पड़ी होगी। यह असंभव है कि छलांग सीधी लग गई हो ...जानवर से आदमी के बीच की एक कड़ी खो गई है, जो नरसिंह की ही होगी ..जिसमें आधा जानवर होगा और आधा आदमी होगा।

3- उदाहरण के लिए, जब डार्विन ने कहा किआदमी जानवरों से, विकसित हुआ है तो उसने एक वैज्ञानिक भाषा में यह बात लिखी। लेकिन पुराण में अगर हम, अवतारों की कहानी पढ़ें, तो हमें पता चलेगा कि वह अवतारों की कहानी डार्विन के बहुत पहले ...बिलकुल ठीक प्रतीक कहानी है। पहला अवतार आदमी नहीं है, पहला अवतार मछली है। और डार्विन का भी पहला जो रूप है मनुष्य का, वह मछली है। अब यह सिंबॉलिक लैंग्वेज हुई कि ''जो पहला अवतार पैदा हुआ, वह मछली था ...मत्सावतार''।

4-लेकिन यह भाषा ,वैज्ञानिक नहीं है। अब कहां अवतार और कहां मत्‍स्‍य.. हम उसको इनकार करते रहे। लेकिन जब डार्विन ने कहा कि ''मछली जो है.. जीवन का पहला तत्व है, पृथ्वी पर पहले मछली ही आई है, इसके बाद ही जीवन की दूसरी बातें आईं!'' लेकिन उसका जो ढंग है, उसकी जो खोज है, वह वैज्ञानिक है। अब जिन्होंने विजन में देखा होगा, उन्होंने यह देखा कि पहला जो भगवान है वह मछली में ही पैदा हुआ है। अब यह विजन, जब भाषा बोलेगा, तो वह कुछ.. इस तरह की ही भाषा होगी ।

5-फिर दूसरा अवतार कछुआ है। कछुआ जो है, वह जमीन और पानी दोनों का प्राणी है। निश्चित ही, मछली के बाद एकदम से कोई प्राणी पृथ्वी पर नहीं आ सकता; जो भी प्राणी आया होगा, वह अर्ध जल और अर्ध थल का रहा होगा। तो जो दूसराविकास हुआ होगा, वह कछुए जैसे प्राणी का ही हो सकता है, जो जमीन पर भी रहता हो और पानी में भी रहता हो। और फिर धीरे -धीरे कछुओं के कुछ वंशज जमीन पर ही रहने लगे होंगे और कुछ पानी में ही रहने लगे होंगे, और तब विभाजन हुआ होगा।

6-बहुत बाद में विज्ञान यह कहता है कि आदमी ज्यादा से ज्यादा चार हजार वर्ष तक पृथ्वी पर और जी सकता है। लेकिन यही भविष्यवाणी बहुत से पुराणों में भी है। और यह वक्त भी करीब -करीब वही है जो पुराणों में है, कि चार हजार वर्ष से ज्यादा पृथ्वी नहीं टिक

सकती।पुराण और तरह की भाषा बोलते हैं और विज्ञान की भाषा अलग है।विज्ञान बोलता है कि सूर्य ठंडा होता जा रहा है, उसकी किरणें क्षीण होती जा रही हैं, उसकी गर्मी की ऊर्जा बिखरती जा रही है, वह चार हजार वर्ष में ठंडा हो जाएगा। उसके ठंडे होते ही पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएगा।

7-लेकिन ये चार हजार वर्ष और अगर पुराण कहें पांच हजार वर्ष, तो अभी भी यह पक्का नहीं है कि विज्ञान जो कहता है वह बिलकुल ठीक ही कह रहा है, पांच हजार भी हो सकते हैं। क्योंकि विज्ञान के गणित में भूल -चूक हो सकती है, विजन में भूल -चूक नहीं होती। और इसीलिए विज्ञान रोज सुधरता है -कल कुछ कहता है, परसों कुछ कहता है, रोज हमें बदलना पड़ता है; न्यूटन कुछ कहता है, आइंस्टीन कुछ कहता है। हर पांच वर्ष में विज्ञान को अपनी धारणा बदलनी पड़ती है, क्योंकि और एग्जेक्ट उसको पता लगता है कि और भी ज्यादा ठीक यह होगा। और बहुत मुश्किल है यह बात तय करनी ..कि अंतिम जो हम तय करेंगे, वह चौथे शरीर में देखे गए लोगों से बहुत भिन्न होगा।

8- अभी भी जो हम जानते हैं, उस जानने से अगर मेल न खाए, तो बहुत जल्दी निर्णय लेने की जरूरत नहीं है; क्योंकि जिंदगी इतनी गहरी है कि जल्दी निर्णय सिर्फ अवैज्ञानिक चित्त ही ले सकता है। सौ साल में विज्ञान के सब सत्य ''पुराण या कथाएं हो जाते हैं,फिर कोई उनको मानने को तैयार नहीं होता, क्योंकि सौ साल में और बातें खोज में आ जाती हैं।

अब जैसे, पुराण के जो सत्य थे, उनका कोड खो गया है; उनको खोलने की जो कुंजी है, वह खो गई है।

9-उदाहरण के लिए, समझ लें कि कल तीसरा महायुद्ध हो जाए। और तीसरा महायुद्ध अगर होगा, तो उसके जो परिणाम होंगे, पहला परिणाम तो यह होगा कि जितना शिक्षित, सुसंस्कृत जगत है वह मर जाएगा। यह बड़े आश्चर्य की बात है! अशिक्षित और असंस्कृत जगत बच जाएगा। कोई आदिवासी, कोई कोल, कोई भील जंगल -पहाड़ पर बच जाएगा। मुंबई में नहीं बच सकेंगे आप, न्यूयार्क में नहीं बच सकेंगे।जब भी कोई महान युद्ध होता है,

तो उस समाज का जो श्रेष्ठतम वर्ग है, वह सबसे पहले मर जाता है, क्योंकि चोट उस पर होती है।

10-बस्तर की रियासत का एक कोल और भील बच जाएगा। वह अपने बच्चों से कह सकेगा कि आकाश में हवाई जहाज उड़ते थे। लेकिन बता नहीं सकेगा, कैसे उड़ते थे। तो उसने उड़ते देखे हैं, वह झूठ नहीं बोल रहा। लेकिन उसके पास कोई कोड नहीं है; क्योंकि जिनके पास कोड था वे मुंबई में थे, वे मर गए हैं। और बच्चे एकाध -दो पीढ़ी तक तो भरोसा करेंगे, इसके बाद बच्चे कहेंगे कि आपने देखा? तो उनके पिता कहेंगे -नहीं, हमने सुना; ऐसा हमारे पिता कहते थे। और उनके पिता से उन्होंने सुना था कि आकाश में हवाई जहाज उड़ते थे, फिर युद्ध हुआ और फिर सब खत्म हो गया। बच्चे धीरे - धीरे कहेंगे कि कहां हैं वे हवाई जहाज? कहां हैं उनके निशान? कहां हैं वे चीजें? दो हजार साल बाद वे बच्चे कहेंगे सब कपोल - कल्पना है, कभी कोई नहीं उड़ा।

11-ठीक ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं। महाभारत ने इस देश के पास साइकिक माइंड से जो -जो उपलब्ध ज्ञान था, वह सब नष्ट कर दिया, सिर्फ कहानी रह गई हैं। अब हमें शक आता है कि राम जो हैं वे हवाई जहाज पर बैठकर लंका से आए हों। यह शक की बात है, क्योंकि एक साइकिल भी तो नहीं छूट गई उस जमाने की, हवाई जहाज तो बहुत दूर की बात है। और किसी ग्रंथ में कोई एक सूत्र भी तो नहीं छूट गया।असल में, महाभारत के बाद उसके पहले का

समस्त ज्ञान नष्ट हो गया, ''स्मृति'' के द्वारा जो याद रखा जा सका, वह रखा गया।

12-इसलिए पुराने ग्रंथ का नाम 'स्मृति है', वह मेमोरी है,सुनी हुई और स्मरण रखी बात है।

वह देखी हुई बात नहीं है।किसी ने किसी को कही थी, वह हम बचाकर रख लिए हैं, ऐसा हुआ था। लेकिन अब हम कुछ भी नहीं कह सकते कि वह हुआ था, क्योंकि उस समाज का जो श्रेष्ठतम बुद्धिमान वर्ग था… और ध्यान रहे, दुनिया की जो बुद्धिमत्ता है, वह दस -पच्चीस

लोगों के पास होती है।अगर एक आइंस्टीन मर जाए तो रिलेटिविटी की थ्योरी बतानेवाला दूसरा आदमी खोजना मुश्किल हो जाता है।

13-आइंस्टीन खुद,अपनी जिंदगी में कहते थे कि ''केवल दस -बारह आदमी ही हैं जो मेरी बात समझ सकते हैं—पूरी पृथ्वी पर''। अगर ये बारह आदमी मर जाएं तो हमारे पास किताब तो होगी जिसमें लिखा है कि रिलेटिविटी की एक थ्योरी होती है, लेकिन एक समझने वाला,या समझाने वाला एक आदमी भी नहीं होगा।तो महाभारत ने श्रेष्ठतम व्यक्तियों

को नष्ट कर दिया, उसके बाद जो बातें रह गईं वे कहानी की रह गईं। लेकिन अब प्रमाण खोजे जा रहे हैं, और अब खोजा भी जा सकता है। लेकिन हम तो अभागे हैं; क्योंकि हम तो कुछ भी नहीं खोज सकते।

14-ऐसी जगहें खोजी गई हैं, जो इस बात का सबूत देती हैं कि वे कम से कम तीन /चार या पांच हजार वर्ष पुरानी हैं, और किसी वक्त उन्होंने वायुयान को उतरने के लिए एयरपोर्ट का काम किया है।उतने बड़े स्थान को बनाने की और कोई जरूरत नहीं थी। ऐसी चीजें खोज ली गई हैं जो कि बहुत बड़ी यांत्रिक व्यवस्था के बिना नहीं बन सकती थीं। जैसे ''पिरामिड पर चढ़ाए गए पत्थर ''। ये पिरामिड पर चढ़ाए गए पत्थर आज भी हमारे बड़े से बड़े क्रेन की सामर्थ्य के बाहर पड़ते हैं। लेकिन ये पत्थर चढ़ाए गए,चढ़ाकर रखे गए, यह तो साफ है। और ये आदमी ने चढ़ाए हैं। इन आदमियों के पास कुछ चाहिए। तो या तो मशीन रही हो; और या फिर चौथे शरीर की कोई शक्ति रही हो।आप भी उसको प्रयोग करके देख सकते है।

15-उदाहरण के लिए,एक आदमी को आप लिटा लें और चार आदमी चारों तरफ खड़े हो जाएं। दो आदमी उसके पैर के घुटने के नीचे दो अंगुलियां लगाएं दोनों तरफ और दो आदमी उसके दोनों कंधों के नीचे अंगुलियां लगाएं ..एक-एक अंगुली ही लगाएं। और चारों संकल्प करें कि हम एक-एक अंगुली से इसे उठा लेंगे! और चारों पांच मिनट तक जोर से श्वास लें, इसके बाद श्वास रोक लें और उठा लें। वह एक -एक अंगुली से आदमी उठ जाएगा।तो पिरामिड पर जो

पत्थर चढ़ाए गए, या तो क्रेन से चढ़ाए गए और या फिर साइकिक फोर्स से चढाए गए -कि चार आदमियों ने एक बड़े पत्थर को एक -एक अंगुली से उठा दिया। इसके सिवाय कोई उपाय नहीं है। लेकिन वे पत्थर चढे हैं, वे सामने हैं, और उनको इनकार नहीं किया जा सकता ।

क्या जीवन के अज्ञात रहस्यों की मनस शक्ति द्वारा खोज हो सकती है?-

05 FACTS;-

1-दूसरी बात जो जानने की है वह यह है कि.. साइकिक फोर्स की इनफिनिट डायमेंशन हैं। एक आदमी जिसको चौथा शरीर उपलब्ध हुआ है, वह चांद के संबंध में ही जाने, यह जरूरी नहीं है। वह चांद के संबंध में जानना ही न चाहे,तो जानने की उसे कोई जरूरत भी नहीं है। वे जो चौथे शरीर को विकसित करनेवाले लोग थे, वे कुछ और चीजें जानना चाहते थे, उनकी उत्सुकता किन्हीं और चीजों में थी, और ज्यादा कीमती चीजों में थी। उन्होंने वे जानी।

2-वे प्रेत को जानना चाहते थे कि प्रेतात्मा है या नहीं? वह उन्होंने जाना। और अब विज्ञान खबर दे रहा है कि प्रेतात्मा है। वे जानना चाहते थे कि लोग मरने के बाद कहां जाते हैं? कैसे जाते हैं? क्योंकि चौथे शरीर में जो पहुंच गया है उसकी पदार्थ के प्रति उत्सुकता कम हो जाती है; उसकी चिंता बहुत कम रह जाती है कि जमीन की गोलाई कितनी है।

3- उदाहरण के लिए,एक बड़ा आदमी है। छोटे बच्चे उससे कहें कि ''हम तुम्हें ज्ञानी नहीं मानते, क्योंकि तुम कभी नहीं बताते कि यह गुड्डा कैसे बनता है। हम तुम्हें ज्ञानी कैसे मानें! एक लड़का हमारे पड़ोस में है, वह बताता है कि गुड्डा कैसे बनता है, वह ज्यादा ज्ञानी है।'' उनका कहना ठीक है, उनकी उत्सुकता का भेद है। एक बड़े आदमी को कोई उत्सुकता नहीं है कि गुड्डे के भीतर क्या है, लेकिन छोटे बच्चे को है।

4-चौथे शरीर में पहुंचे हुए आदमी की इंक्वायरी बदल जाती है; वह कुछ और जानना चाहता है। वह जानना चाहता है कि मरने के बाद आदमी का यात्रापथ क्या है? वह कहां जाता है? वह किस यात्रापथ से यात्रा करता है? उसकी यात्रा के नियम क्या हैं? वह कैसे जन्मता है, वह कहां जन्मता है, कब जन्मता है? उसके जन्म को क्या सुनियोजित किया जा सकता है?

उसकी उत्सुकता इसमें नहीं थी कि चांद पर आदमी पहुंचे, क्योंकि यह बेमानी है, इसका कोई मतलब नहीं है। उसकी उत्सुकता इसमें थी कि आदमी मुक्ति में कैसे पहुंचे? और वह बहुत मीनिगफुल है। उसकी फिकर थी कि जब एक बच्चा गर्भ में आता है तो आत्मा कैसे प्रवेश करती है? क्या हम गर्भ चुनने में उसके लिए सहयोगी हो सकते हैं? कितनी देर लगती है?

5-तिब्बत में एक किताब है.. ''तिबेतन बुक ऑफ दि डेड''। तिब्बत का जो भी आदमी चौथे शरीर को उपलब्ध था, उसने सारी मेहनत इस बात पर की है कि मरने के बाद हम किसी आदमी को क्या सहायता पहुंचा सकते हैं। आप मर गए, मैं आपको प्रेम करता हूं लेकिन मरने के बाद मैं आपको कोई सहायता नहीं पहुंचा सकता। लेकिन तिब्बत में पूरी व्यवस्था है सात सप्ताह की, कि मरने के बाद सात सप्ताह तक उस आदमी को कैसे सहायता पहुंचाई जाए; और उसको कैसे गाइड किया जाए; और उसको कैसे विशेष जन्म लेने के लिए उत्पेरित किया जाए; और उसे कैसे विशेष गर्भ में प्रवेश करवा दिया जाए।

6-अभी विज्ञान को वक्त लगेगा कि वह इन सब बातों का पता लगाए; लेकिन यह पता लग जाएगा, इसमें अड़चन नहीं है। और फिर इसकी वैलिडिटी के भी सब उपाय उन्होंने खोजे थे

कि इसकी जांच कैसे हो।अभी फिलहाल …..तिब्बत में जो लामा है , पिछला लामा जो मरता है, वह बताकर जाता है कि अगला मैं किस घर में जन्म लूंगा; और तुम मुझे कैसे पहचान सकोगे, उसके सिंबल्स दे जाता है। फिर उसकी खोज होती है पूरे मुल्क में कि अब वह बच्चा कहां है। और जो बच्चा उस सिंबल का राज बता देता है, वह समझ लिया जाता है कि वह पुराना लामा है।

7- क्योकि वह राज सिवाय उस आदमी के कोई नहीं बता सकता, जो बता गया था। तो यह जो लामा है, ऐसे ही खोजा गया। पिछला लामा कहकर गया था। इस बच्चे की खोज बहुत दिन करनी पड़ी। लेकिन आखिर वह बच्चा मिल गया। क्योंकि एक खास सूत्र था जो कि हर गांव में जाकर चिल्लाया जाएगा और जो बच्चा उसका अर्थ बता दे, वह समझ लिया जाएगा कि वह पुराने लामा की आत्मा उसमें प्रवेश कर गई। क्योंकि उसका अर्थ तो किसी और को पता ही नहीं था, वह तो बहुत सीक्रेट मामला है।

8-तो उस चौथे शरीर के आदमी की क्यूरिआसिटी अलग थी। अनंत है यह जगत, और अनंत हैं इसके राज, और अनंत हैं इसके रहस्य। अब ये जितनी साइंस को हमने जन्म दिया है, भविष्य में ये ही साइंस रहेंगी, यह मत सोचिए, और नई हजार साइंस पैदा हो जाएंगी, क्योंकि और हजार आयाम हैं जानने के।जिज्ञासा का इतना फर्क है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। और जब वे नई साइंसेस पैदा होंगी, तब वे कहेंगे कि ''पुराने लोग वैज्ञानिक न थे, वे यह क्यों

नहीं बता पाए?'हम कहेंगे... पुराने लोग भी वैज्ञानिक थे, उनकी जिज्ञासा और थी।

9-अब जैसे कि हम कहेंगे कि आज बीमारियों का इलाज हो गया है, पुराने लोगों ने इन बीमारियों के इलाज क्यों न बता दिए! लेकिन आप जानकर हैरान होंगे.. कि आयुर्वेद में या यूनानी में इतनी जड़ी -बूटियों का हिसाब है, और इतना हैरानी का है कि जिनके पास कोई प्रयोगशालाएं न थीं वे कैसे जान सके कि यह जड़ी -बूटी फलां बीमारी पर इस मात्रा में काम करेगी?

9- कोई प्रयोगशाला तो नहीं थी, पर चौथे शरीर से काम हो सकता था। लुकमान के बाबत कहानी है कि वह एक -एक पौधे के पास जाकर पूछता था कि'' तू किस काम में आ सकता है, यह बता दे''। अब आज यह कहानी बिलकुल फिजूल हो गई है। आज कोई पौधे से.. .क्या मतलब है इस बात का? लेकिन अभी पचास साल पहले तक हम नहीं मानते थे कि पौधे में प्राण है। इधर पचास साल में विज्ञान ने स्वीकार किया कि पौधे में प्राण है। इधर तीस साल पहले तक हम नहीं मानते थे कि पौधा श्वास लेता है। इधर तीस साल में हमने स्वीकार किया कि पौधा श्वास लेता है। अभी पिछले पंद्रह साल तक हम नहीं मानते थे कि पौधा फील करता है। अभी पंद्रह साल में हमने स्वीकार किया कि पौधा अनुभूति भी करता है।

10-और जब आप क्रोध से पौधे के पास जाते हैं तब पौधे की मनोदशा बदल जाती है, और जब आप प्रेम से जाते हैं तो मनोदशा बदल जाती है। कोई आश्चर्य नहीं कि आनेवाले पचास साल में हम कहें कि पौधे से बोला जा सकता है। यह तो क्रमिक विकास है। और लुकमान सही सिद्ध हो गया कि उसने पौधों से पूछा हो कि ''किस काम में आएगा, यह बता दे''।लेकिन यह ऐसी

बात नहीं कि हम सामने बोल सकें, यह केवल चौथे शरीर पर संभव है कि पौधे को आत्मसात किया जा सके, उसी से पूछ लिया जाए।

11-और यह सच है क्योंकि कोई लेबोरेटरी इतनी बडी नहीं मालूम पड़ती कि लुकमान लाख -लाख जडी बूटियों का पता बता सके।इसका कोई उपाय नहीं है; क्योंकि एक -एक जड़ी -बूटी की खोज करने में एक -एक लुकमान की जिंदगी लग जाती है। वह एक लाख -करोड़ जड़ी -बूटियों के बाबत कह रहा है कि यह इस काम में आएगी। और अब विज्ञान भी यही कहता है कि, वह इस काम में आती है और वह आ रही है इस काम में।यह जो सारी की सारी अतीत की

खोजबीन है, वह खोजबीन चौथे शरीर में उपलब्ध लोगों की ही है।उन्होंने बहुत बातें खोजी

थीं, जिनका हमें खयाल ही नहीं है।

12-उदाहरण के लिए, हम हजारों बीमारियों का इलाज कर रहे हैं जो बिलकुल अवैज्ञानिक है। चौथे शरीरवाला आदमी कहेगा ये तो बीमारियां ही नहीं हैं, तुम इनका इलाज क्यों कर रहे हो?

लेकिन अब विज्ञान समझ रहा है। अभी एलोपैथी प्लेसिबो-इफ़ेक्ट पर नये प्रयोग कर रही है। अमेरिका के कुछ हास्पिटल्स में उन्होंने… एक ही बीमारी के दस मरीज हैं, तो पांच मरीज को वे पानी का इंजेक्यान दे रहे हैं और, पांच को दवा दे रहे हैं। बड़ी हैरानी की बात यह है कि दवा वाले भी उसी अनुपात में ठीक होते हैं और पानीवाले भी उसी अनुपात में ठीक होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि पानी से ठीक होनेवाले रोगियों को वास्तव में कोई रोग नहीं था, बल्कि उन्हें बीमार होने का भ्रम भर था।

13-अगर ऐसे लोगों को, जिन्हें बीमार होने का भ्रम है, दवाइयां दी गईं तो उसका विषाक्त और विपरीत परिणाम होगा। उनका इलाज करने की कोई जरूरत नहीं है। इलाज करने से नुकसान हो रहा है, और बहुत सी बीमारियां इलाज करने से पैदा हो रही हैं, जिनको फिर ठीक करना मुश्किल होता चला जाता है। क्योंकि अगर आपको बीमारी नहीं है, या आपको फैन्टम बीमारी है, और आपको असली दवाई दे दी गई, तो आप मुश्किल में पड़े। अब वह असली दवाई कुछ तो करेगी आपके भीतर जाकर; वह पायजन करेगी, वह आपको दिक्कत में डालेगी। अब उसका इलाज चलाना पड़ेगा। आखिर में फैन्टम बीमारी मिट जाएगी और असली बीमारी पैदा हो जाएगी।

14-और पुराना विज्ञान तो कहता है, सौ में से नब्बे प्रतिशत बीमारियां फैन्टम हैं। अभी पचास साल पहले तक एलोपैथी नहीं मानती थी कि फैन्टम बीमारी होती है। लेकिन अब एलोपैथी कहती है, पचास परसेंट तक हम राजी हैं।हो सकता है चालीस - पचास वर्षों में नब्बे परसेंट तक राजी होना पड़ेगा क्योंकि असलियत यही है।

क्या केवल विज्ञान और पुराण की भाषा ही अलग-अलग है?-

12 FACTS;-

1- इस चौथे शरीर में आदमी ने जो जाना है, उसकी व्याख्या खोजने वाला या व्याख्या करनेवाला आदमी नहीं है। उसको ठीक जगह पर या आज के पर्सपेक्टिव में और आज के विज्ञान की भाषा में रख देनेवाला आदमी नहीं है। वह तकलीफ हो गई है। और जरा भी तकलीफ नहीं हो गई है।वास्तव में, पैरॅबॅल /दृष्टांत की जो भाषा है वह अलग है।

2-आज विज्ञान कहता है कि सूरज की हर किरण प्रिज्म में से निकलकर सात हिस्सों में टूट जाती है, सात रंगों में बंट जाती है।एक श्वेत प्रकाश किरण (सूर्य का प्रकाश) एक काँच के प्रिज्म (सघन माध्यम) में प्रवेश करता है ,बाहर आता है एवं सात रंगों में विभक्त (Deflect ) हो जाता है।श्वेत प्रकाश सात रंग रखती है, जिनका नाम, बैंगनी, गहरा नीला, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल है जिन्हें शब्द VIBGYOR से याद रखा जाता है। वेद का ऋषि कहता है कि सूरज के सात घोड़े हैं... सात रंग के घोड़े हैं और उन पर सूरज सवार है। सूरज की किरण सात रंगों में टूटती है।

3-अब यह पैरॅबॅल की भाषा है ,कहानी की भाषा है। इसको किसी दिन हमें समझना पड़ेगा कि यह पुराण की भाषा है,या विज्ञान की भाषा है। लेकिन इन दोनों में या इसमें कठिनाई क्या है? यह ऐसे भी समझी जा सकती है। इसमें कोई अड़चन नहीं है।विज्ञान बहुत सी बातों को बहुत

पीछे समझ पाता है।असल में, साइकिक फोर्स के आदमी बहुत पहले प्रेडिक्ट कर जाते हैं। लेकिन जब वे प्रेडिक्ट करते हैं तब भाषा नहीं होती। भाषा तो बाद में, जब विज्ञान खोजता है.. तब बनती है; पहले भाषा नहीं होती।

4-अब जैसे कि आप हैरान होंगे, कोई भी गणित है, लैंग्वेज है, कोई भी दिशा में अगर आप खोजबीन करें, तो आप पाएंगे ...विज्ञान तो आज आया है, और भाषा तो बहुत पहले आई,या

गणित बहुत पहले आया।जिन लोगों ने यह सारी खोजबीन की, जिन्होंने यह सारा हिसाब लगाया, उन्होंने किस हिसाब से लगाया होगा? उनके पास क्या माध्यम रहे होंगे, उन्होंने कैसे नापा होगा? उन्होंने कैसे पता लगाया होगा कि एक वर्ष में पृथ्वी सूरज का एक चक्कर लगा लेती है? एक वर्ष में चक्कर के हिसाब से वर्ष है। वर्ष तो बहुत पुराना है, विज्ञान के बहुत पहले का है। वर्ष में तीन सौ पैंसठ दिन होते हैं, यह तो विज्ञान के बहुत पहले.. हमें पता हैं। जब तक किन्हीं ने यह देखा न हो.. .लेकिन देखने का कोई वैज्ञानिक साधन नहीं था। तो सिवाय साइकिक विजन के और कोई उपाय नहीं था।

5-एक बहुत अदभुत चीज मिली है। अरब में एक आदमी के पास सात सौ वर्ष पुराना दुनिया का नक्‍शा मिला है—सात सौ वर्ष पुराना दुनिया का नक्‍शा है। और वह नक्शा ऐसा है कि बिना हवाई जहाज के ऊपर से बनाया नहीं जा सकता; क्योंकि वह नक्‍शा जमीन पर देखकर बनाया हुआ नहीं है। बन नहीं सकता। आज भी पृथ्वी हवाई जहाज पर से जैसी दिखाई पड़ती है, वह नक्‍शा वैसा है। और वह सात सौ वर्ष पुराना है।तो अब दो ही उपाय हैं या तो सात

सौ वर्ष पहले हवाई जहाज हो, जो कि नहीं था।

6-दूसरा उपाय यही है कि कोई आदमी अपने चौथे शरीर से इतना ऊंचा उठकर जमीन को देख सके और नक्‍शा खींचे। सात सौ वर्ष पहले हवाई जहाज नहीं था, यह तो पक्का है। इसकी कोई कठिनाई नहीं है।लेकिन यह सात सौ वर्ष पुराना नक्‍शा इस तरह है जैसे कि ऊपर से देखकर बनाया गया है। तो अब इसका क्या…….

7-अगर हम चरक और सुश्रुत को समझें तो हमें हैरानी हो जाएगी। आज हम आदमी के शरीर को काट -पीटकर जो जान पाते हैं, उसका वर्णन चरक संहिता में दिया गया । तो दो ही उपाय हैं या तो सर्जरी इतनी बारीक हो गई हो जो कि नहीं दिखाई पड़ती; क्योंकि सर्जरी के विज्ञान की कोई किताब नहीं मिलती है। लेकिन आदमी के भीतर के बारीक से बारीक हिस्से का वर्णन है। और ऐसे हिस्सों का भी वर्णन है जो विज्ञान बहुत बाद में पकड़ पाया है; जो अभी पचास साल पहले इनकार करता था, उनका भी वर्णन है कि वे वहां भीतर हैं। तो एक ही उपाय है कि किसी व्यक्ति ने विजन की हालत में व्यक्ति के भीतर प्रवेश करके देखा हो।

8-असल में, आज हम जानते हैं कि एक्सरे की किरण आदमी के शरीर में पहुंच जाती है। सौ साल पहले अगर कोई आदमी कहता कि हम आपके भीतर की हड्डियों का चित्र उतार सकते हैं, हम मानने को राजी न होते। आज हमें मानना पड़ता है, क्योंकि वह उतार रहा है। लेकिन क्या आपको पता है कि चौथे शरीर की स्थिति में आदमी की आंख एक्सरे से ज्यादा गहरा देख पा सकती है, और आपके शरीर का पूरा—पूरा चित्र बनाया जा सकता है, जो कि कभी काट -पीटकर नहीं किया गया। और हिंदुस्तान जैसे मुल्क में, जहां कि हम मुर्दे को जला देते थे, काटने -पीटने का उपाय नहीं था।

9-सर्जरी पश्चिम में इसलिए विकसित हुई कि मुर्दे गाड़ दिये जाते थे, नहीं तो हो नहीं सकती थी। और आप हैरान होंगे कि यह अच्छे आदमियों की वजह से विकसित नहीं हुई, यह कुछ चोरों की वजह से विकसित हुई जो मुर्दों को चुरा लाते थे। हिंदुस्तान में तो विकसित ही नहीं हो सकती थी, क्योंकि हम जला देते हैं। और जलाने का हमारा खयाल था, कोई वजह थी, इसलिए जलाते थे।

10-यह साइकिक लोगों का ही खयाल था कि अगर शरीर बना रहे, तो आत्मा को नया जन्म लेने में बाधा पड़ती है; वह उसी के आसपास घूमती रहती है। उसको जला दो, ताकि इस झंझट से उसका छुटकारा हो जाए; वह इसके आसपास न घूमे.. वह बात ही खत्म हो जाए। और वह अपने सामने ही उस शरीर को जलता हुआ देख ले, जिस शरीर को इसने समझा था कि 'मैं हूं'। ताकि दूसरे शरीर में भी इसको शायद स्मृति रह जाए कि यह शरीर तो जल जानेवाला है.. तो हम उसको जलाते थे।इसलिए सर्जरी विकसित न हो सकी; क्योंकि आदमी को काटना -पीटना पड़े, टेबल पर रखना पड़े।

12- यूरोप में भी चोरों ने लोगों की लाशें चुरा -चुराकर वैज्ञानिकों के घर में पहुंचाईं, मुकदमे चले, अदालतों में दिक्कतें हुईं, क्योंकि लाश को लाना गैर -कानूनी था, और मरे हुए आदमी को काटना जुर्म है। लेकिन वे काट -काटकर जिन बातों पर पहुंचे हैं, उन्हें बिना काटे भी आज से तीन हजार वर्ष पुरानी किताबें ..पहुंच गईं उन बातों पर।तो इसका मतलब सिर्फ इतना ही

होता है कि बिना प्रयोग के भी.. किन्हीं और दिशाओं से भी चीजों को जाना जा सका है।

...SHIVOHAM...


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