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क्या कारण हैं कि मनस विद्याओं के प्रयोग में लगे लोगों की आंखें तनावग्रस्त और डरावनी होती हैं ?क्या


क्या कारण हैं कि मनस विद्याओं के प्रयोग में लगे लोगों की आंखें तनावग्रस्त और डरावनी होती हैं ?क्या यह एक दुष्ट कला है?-

14 FACTS;-

1-जो लोग सम्मोहन -विद्या जैसी चीजों का प्रयोग करते हैं उनकी आंखें तनावग्रस्त होंगी, यह साफ ही है। कारण यह है कि वे बलपूर्वक अपनी ऊर्जा को आंख के माध्यम से प्रवाहित करने की कोशिश करते हैं। वे किसी को प्रभावित करने के या किसी पर अधिकार जमाने के इरादे से अपनी समस्त ऊर्जा को आंख के पास इकट्ठा कर लेते हैं।उनकी आंखें तनाव से भर जाएंगी; क्योंकि वे आंखों में उतनी ऊर्जा भर देते हैं जितनी ऊर्जा वे झेल नहीं सकतीं। उनकी आंखें लाल हो जाती हैं और तन जाती हैं और उन्हें देखकर ही तुम सहसा कांपने लग सकते हो।बात यह है कि वे अपनी आंखों का राजनीतिक ढंग से उपयोग कर रहे हैं। अगर वे तुम्हारी तरफ देखते हैं तो वे आंखों द्वारा अपनी ऊर्जा भेजकर तुम पर मालकियत करना चाहते हैं।और आंख के द्वारा किसी पर मालकियत करना आसान है।

2-तो यह एक दुष्ट कला है, काली साधना है।काली साधना का, जादू—टोने का अर्थ है कि तुम दूसरे पर प्रभुत्व जमाने के लिए अपनी ऊर्जा का अपव्यय कर रहे हो। और शुभ साधना उसे कहते हैं जिसमें उन्हीं उपायों का इस्तेमाल तुम अपने पर प्रभुत्व के लिए, अपना स्वामी आप बनने के लिए करते हो। तुम्हें भी वे आंखें मिल सकती हैं; यह कठिन नहीं है।तुम्हें सिर्फ यह सीखना है कि सारी ऊर्जा को आंख के पास कैसे ले आएं।ऐसा करने से आंखें ऊर्जा से आपूरित हो जाती हैं। और इस दशा में जब तुम किसी को देखोगे तो तुम्हारी ऊर्जा उसकी तरफ बहने लगेगी, उस पर छा जाएगी, उसके मन में प्रवेश कर जाएगी। और उसके धक्के से उसका सोच -विचार बंद हो जाएगा।

3-यह केवल आदमियों पर ही घटने वाली दुलर्भ चीज नहीं है; पशु जगत में भी यह घटित होता है। अनेक पशु हैं जो अपने शिकार की आंखों में घूरते हैं। और यदि शिकार ने भी उनकी आंखों से आंखें मिला लीं तो वह गया। तब शिकार की आंखें बंध जाती हैं; तब वह वहां से हिल

नहीं सकता।शिकारी इस बात को बखूबी जानते हैं। शिकारियों की आंखें बहुत ही शक्तिशाली हो जाती हैं; क्योंकि रात के अंधेरे में वे जानवरों की टोह लेते रहते हैं। स्वभावत: उनकी आंखें शक्तिशाली होंगी ही। उनके धंधों के कारण ही चोर और शिकारी की आंखों में अपने ही आप बहुत शक्ति इकट्ठी हो जाती है।

4-किसी शिकारी के सामने अचानक एक सिंह प्रकट हो जाए और शिकारी निहत्था हो तो वह क्या करे? ऐसी हालत में कुशल शिकारी सदा एक काम करते हैं। शिकारी सिंह की आंखों में

आंख डालकर घूरेगा।अब बात इस परनिर्भर है कि शिकारी की आंखें ज्यादा चुंबकीय हैं या सिंह की। अगर सिंह कम चुंबकीय है और अगर शिकारी अपनी समग्र ऊर्जा आंखों में इकट्ठी कर सकता है ...और यह संभव है, मृत्यु को सामने देखकर आदमी कुछ भी कर सकता है, शिकारी अपनी समग्र शक्ति को दाव पर लगा सकता है।अगर शिकारी सब कुछ भूलकर सिंह की आंखों में सीधा घूर सके, टकटकी बांध सके, तो उसकी समस्त ऊर्जा सिंह को अभिभूत कर देगी, सिंह भय से कांपने लगेगा और अंततः भाग जाएगा।

5-आंख के जरिए तुम अपनी समस्त ऊर्जा को प्रवाहमान कर सकते हो; लेकिन जब ऐसा करोगे तो तुम्हारी आंखें तनाव से भर जाएंगी, तुम्हारी नींद खो जाएगी, तुम आराम में न रह सकोगे। जो लोग भी दूसरों पर मालकियत करने में लगे हैं वे चैन से नहीं रह सकते। तुम उन्हें देखोगे तो उनकी आंखें तो बहुत जीवित मालूम होंगी, लेकिन चेहरे मरे मराए जैसे होंगे। किसी सम्मोहनविद को देखो; उसकी आंखें तो बहुत जीवित होंगी, लेकिन उसका चेहरा मुर्दा -मुर्दा होगा। कारण यह है कि उसकी आंखें उसकी सब ऊर्जा पी जाती हैं; और अन्य जगहों के

लिए ऊर्जा बचती ही नहीं।ऐसा मत करो; क्योंकि दूसरे पर मालकियत करना व्यर्थ है। अपना मालिक होना ही सार्थक है। दूसरे पर प्रभुत्व करना अपनी शक्ति का अपव्यय है; उससे सिर्फ अहंकार की तृप्ति होती है, और कुछ भी नहीं।

6-परन्तु, अगर कोई श्रीकृष्ण /गौतम बुद्ध तुम्हारे बीच घूमें तो तुम पर उनका प्रभाव हो जाएगा। हालांकि वे प्रभुत्व करने की कोशिश नहीं करते हैं ; लेकिन तुम प्रभाव में आ जाओगे। क्योंकि वे अपने मालिक आप हैं; और वे ऐसे मालिक हैं कि उनके इर्द -गिर्द जो भी आएगा, वह उनका दास हो जाएगा। लेकिन गौतम बुद्ध की ओर से ऐसा कोई सचेतन प्रयत्न नहीं होता है।वरन इसके विपरीत वे निरंतर कहते हैं कि अपने स्वामी आप बनो ।वे प्रभुत्व जमाने की कोई चेष्टा नहीं करते हैं ; लेकिन वे जानते हैं कि इसके बावजूद ऐसा होगा।

7-गौतम बुद्ध के अंतिम वचन थे : 'अप्प दीपो भव।’ वे मृत्यु—शय्या पर थे। मरने के एक दिन पहले आनंद ने उनसे पूछा कि जब आप नहीं होंगे तो हम क्या करेंगे! गौतम बुद्ध ने कहा. 'अच्छा ही होगा कि अब मैं नहीं रहूंगा। तब तुम अपने स्वामी हो जाओगे। मुझे भूल जाओ और अपना दीया आप बनो। यह अच्छा होगा; क्योंकि जब मैं नहीं रहूंगा तो तुम मेरे प्रभुत्व से मुक्त हो जाओगे।’तो जो दूसरों पर प्रभुत्व करने की चेष्टा करते हैं वे सब तरह से तुम्हें अपना गुलाम बनाने की कोशिश करेंगे। यह दुष्टता है, यह शैतानी है। और जो अपने स्वामी आप होते हैं वे तुम्हें भी स्वामी बनाने की चेष्टा करेंगे, वे हर तरह से अपने प्रभाव को कम करेंगे। और यह कई ढंगों से किया जा सकता है।

8-उदाहरण के लिए संत गुरजिएफ का प्रधान शिष्य ऑसपेंस्की संत गुरजिएफ के मातहत दस वर्षों से काम कर रहा था। संत गुरजिएफ के मातहत काम करना बहुत कठिन था। उसकी चुंबकीय शक्ति अतिशय थी, असीम थी। जो भी उसके पास आता था ..उसके वश में हो जाता

था।ऐसे लोगों के प्रति तटस्थ नहीं रहा जा सकता।या तो तुम उनके वश में रहोगे ..और या उनसे भयभीत होकर उनके विरोध में खड़े हो जाओगे। पक्ष या विपक्ष में खड़ा होना अनिवार्य है; ऐसे लोगों के प्रति उदासीन नहीं रहा जा सकता। और विरोध में जाना बचाव का उपाय है। चुंबकीय शक्ति वाले लोगों के पास जाने पर तुम्हें उनका गुलाम बनना पड़ेगा। और यदि तुम उनसे बचना चाहोगे तो तुम्हें उनका दुश्मन बनना पड़ेगा। यह सिर्फ सुरक्षा है।

9-तो ऑसपेंस्की संत गुरजिएफ के पास आया और उसके साथ रहकर उसने काम किया। और वहा कोई सैद्धांतिक शिक्षा नहीं दी जाती थी। संत गुरजिएफ एक कर्मशील आदमी था। वह विधियां बताता था और लोग उन्हें साधते थे। ऑसपेंस्की में एक क्रिस्टलाइजेशन,एक अखंडता पैदा हुई; वह रूपांतरित हुआ। वह पूरी तरह बुद्ध तो नहीं हुआ था; लेकिन वह हमारी तरह गहरी नींद में भी न था। वह दोनों के बीच में था ..बुद्धत्व के कगार पर।

10-कभी-कभी ऐसा होता है तुम्हें थोड़ी भनक मालूम पड़ती है कि सुबह करीब है, सुबह की खबर देने वाला कलरव सुनाई देने लगता है, तब तुम सोए भी रहो तो पूरे सोए नहीं हो सकते। तब नींद जाने ..जाने को होती है। लेकिन तुम अभी जागे नहीं हो और खतरा है कि तुम फिर

से सो सकते हो। तुम अभी जागरण के निकट भर हो।ऐसे ही जब ऑसपेंस्की जागरण के निकट पहुंच गया था तो उसने सोचा कि अब गुरजिएफ मेरी अधिक सहायता करेंगे;क्योंकि सहायता का क्षण आ गया है।

11-लेकिन अचानक संत गुरजिएफ ने ऑसपेंस्की के साथ अजीबोगरीब व्यवहार करना शुरू कर दिया और नतीजा हुआ कि ऑसपेंस्की को उससे विदा लेनी पड़ी।संत गुरजिएफ उसके साथ ऐसे पेश आया, उसने ऐसी -ऐसी यह बेतुकी और बेहूंदी हरकतें कीं कि ऑसपेंस्की खुद ही छोड़कर चला गया।संत गुरजिएफ ने उसको जाने को कभी नहीं कहा।

12-इतना ही नहीं कि ऑसपेंस्की संत गुरजिएफु से अलग हो गया, बल्‍कि वह उसका विरीध भी करने लगा। उसने कहा कि संत गुरूजिएफ पागल हो गया है। ऑसपेंसकी खुद लोगों को सिखाने लगा; लेकिन उसने सदा ही कहा कि मैं संत गुरजिएफ की शिक्षा के अनुसार सिखाता हूं। वह यह भी कहता था कि अब संत गुरजिएफ पागल हो गया है, इसलिए मैं पहले के संत गुरजिएफ का अनुगमन करता हूं। वह बाद के संत गुरजिएफ की बात ही नहीं करता था।लेकिन संत गुरजिएफ के इस व्यवहार की बुनियाद में उसकी गहरी करुणा थी।

13-वह क्षण आ गया था जब ऑसपेंस्की को अकेला छोड़ देना जरूरी था, अन्यथा वह सदा के लिए संत गुरजिएफ पर निर्भर रह जाता। यह अवसर था कि उसे अलग करना जरूरी था और वह भी इस ढंग से कि उसे पता न चले कि मैं निकाला गया हूं।गौतम बुद्ध या संत गुरजिएफ

जैसे लोग सचेतन चेष्टा के बिना ही तुम्हें प्रभावित करते हैं और तुम उनके पास खिंचे चले जाते हो। लेकिन वे लोग हर तरह से कोशिश करेंगे कि तुम ऐसे ही खिंचे न चले आओ, कि तुम उनके सम्मोहन में पड़ो और गुलाम बन जाओ। बल्कि उलटे वे तुम्हें.. तुम्हारा स्वामी बनने में सहयोग देंगे।

14-जो दूसरों पर मालकियत करने की चेष्टा में लगे हैं, उनकी आंखें तनी होंगी, अशुभ होंगी। उनकी आंखों में तुम्हें किसी निर्दोषता की, पवित्रता की खबर नहीं मिलेगी। तुम्हें उनमें आकर्षण जरूर मिलेगा; लेकिन वह आकर्षण शराब जैसा होगा। तुम्हें उनकी तरफ एक चुंबकीय खिंचाव अनुभव होगा; लेकिन वह खिंचाव तुम्हें गुलाम बनाने वाला होगा, मुक्त करने वाला नहीं।

क्या अर्थ है..ऊर्जा अपव्यय का?

11 FACTS;-

1-आंतरिक हिंसा का एंटीडोट सिर्फ प्रेम है।किसी पर प्रभुत्व करने के लिए ऊर्जा का उपयोग मत करो। यही कारण है कि बुद्ध, महावीर, जीसस निरंतर जोर देकर कहते रहे, कि जिस क्षण तुम आध्यात्मिक खोज पर निकलो, तो सबके लिए ..शत्रुओं के लिए भी प्रेम से भरकर ही निकलो। अगर तुम प्रेम से भरे रहोगे तो तुम उस आंतरिक हिंसा के खिंचाव से बच जाओगे जो मालकियत करना चाहता है। अन्यथा जब तुम्हें ऊर्जा प्राप्त होगी, या जब तुम ऊर्जा से भर जाओगे, तो तुम दूसरों पर मालकियत करने लगोगे।

2-ध्यान रहे, दूसरों पर प्रभुत्व करने के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का उपयोग करने से तुम नाहक अपनी शक्ति नष्ट करोगे। देर -अबेर तुम चुक जाओगे/ रिक्त हो जाओगे और सहसा तुम्हारा पतन हो जाएगा.. और यह शुद्ध अपव्यय है।

3-लेकिन जब तुम्हें लगता है कि अब मैं कुछ कर सकता हूं तो अपने पर अंकुश रखना कठिन होता है। अगर तुम किसी बीमार को छूते हो और वह तुम्हारे छूते ही स्वस्थ हो जाता है तो अब तुम दूसरों को छूने से अपने को कैसे रोकोगे? अब तुम अपने को बस में न रख सकोगे। और बस में न रख सकोगे तो तुम ऊर्जा का अपव्यय करोगे। तुम्हें कुछ घटित हुआ है; लेकिन तुम जल्दी ही उसे गंवा दोगे और नाहक गंवा दोगे।

4- मनुष्य का मन इतना चालाक है कि तुम सोच सकते हो कि मैं दूसरों का उपचार कर रहा हूं, दूसरों की मदद कर रहा हूं। वह मन की महज चालाकी हो सकती है। अगर तुम्‍हारे दिल में प्रेम नहीं है तो तुम दूसरों की बीमारी, दूसरों के स्वास्थ्य की फिक्र नहीं कर सकते। तुम्हें इससे कुछ मतलब नहीं है। सच तो यह है कि तुम्हें शक्ति मिल गई है और उपचार के जरिए तुम दूसरों पर प्रभुत्व पैदा करना चाहते हो। तुम भले कहते होओ कि मैं उनकी मदद कर रहा हूं; लेकिन तुम मदद के नाम पर दूसरों पर आधिपत्य जमा रहे हो। और उससे तुम्हारा अहंकार तृप्त होगा; वह तुम्हारे अहंकार के लिए भोजन बन जाएगा।

5-इसलिए सभी पुराने धर्मग्रंथ सावधान करते हैं। वे कहते हैं कि सावधान रहो; क्योंकि जब शक्ति आती है तो तुम एक खतरनाक जगह पर पहुंच जाते हो। तुम उसे फेंक दे सकते हो, गंवा दे सकते हो। इसलिए जब शक्ति प्राप्त हो तो उसे गुप्त ही रखो, उसके बारे में किसी

को कुछ मत जानने दो।जीसस ने कहा है कि अगर तुम्हारा दाहिना हाथ कुछ करे तो उसे बाएं हाथ को भी मत जानने दो।

6-सूफी संत परंपरा में कहते हैं कि जब शक्ति आने लगे तो दूसरों के सामने प्रार्थना भी मत करो, दूसरों के सामने मस्जिद भी मत जाओ।क्योंकि जब शक्ति के आने पर कोई प्रार्थना करता है और बहुत लोगों की मौजूदगी में करता है तो दूसरों को तुरंत पता चलने लगता है कि कुछ हो रहा है। तो सूफी कहते हैं कि तब तुम्हें रात के अंधेरे में, आधी रात में.. अपनी नमाज कहनी चाहिए ;जब सब सोए हों और किसी को पता न चले कि तुम्हें कुछ हो रहा है। किसी को बताओ भी मत कि तुम्हें क्या हो रहा है।

7-लेकिन मन बहुत बकवादी है। अगर तुम्हें कुछ घटित होगा तो तुम तुरंत दूसरों को इसका शुभ समाचार देने निकल पड़ोगे। लेकिन तभी चूक हो जाएगी। यह शक्ति का अपव्यय होगा। और अगर लोग तुमसे प्रभावित भी होंगे तो तुम्हें उसकी वाहवाही मिलेगी, और कुछ भी नहीं। वह कोई बढ़िया सौदा नहीं है।जब तुम अपने मालिक हो जाओगे तभी तुम दूसरों को अपना मालिक बनने में सहयोग दे सकोगे।

8-उदाहरण के लिए, एक दिन सूफी संत जुन्नैद के पास.. एक आदमी आया और उसने कहा. 'गुरुवर, मैं आपसे आपका गुप्त रहस्य जानने आया हूं। लोग कहते हैं कि आपके पास कोई स्वर्ण-रहस्य है और अब तक आपने उसे किसी को भी नहीं बताया है। आप मुझे वह बता दें; मैं उसके बदले में कुछ भी करने को राजी हूं।’

8-1-जुन्नैद ने कहा. 'मैं इस रहस्य को तीस वर्षों से छिपाए हूं; तुम उसके लिए कितने समय तक इंतजार करने को तैयार हो? तुम्हें उसके लिए तैयारी करनी होगी। मैंने इस रहस्य को तीस वर्षों से छिपाए रखा है; लेकिन तुम्हें मैं बता दूंगा। लेकिन कितने समय तक तुम इसके लिए प्रतीक्षा कर सकते हो?'

8-2-वह आदमी डर गया, घबरा गया। उसने जुन्नैद से कहा कि आप ही बताएं कि मुझे कितने समय तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। जुन्नैद ने कहा कि कम से कम तीस वर्ष धीरज रखना होगा; ज्यादा समय नहीं कहता हूं। मैं बहुत की मांग नहीं कर रहा हूं।

उस आदमी ने कहा : 'तीस वर्ष? मैं विचार करूंगा।’ जुन्नैद ने कहा कि तब तीस वर्षों के बाद भी मैं तुम्‍हें नहीं दूंगा। याद रहे, अभी तय करो तो ठीक, अन्‍यथा मुझे भी विचार करना पड़ेगा। और वह आदमी राजी हो गया।

9-कहते हैं कि वह आदमी कोई तीस वर्षों तक जुन्नैद के साथ रहा। तब अंतिम दिन आया और वह जुन्नैद के पास जाकर बोला कि अब अपना रहस्य मुझे बता दें। जुन्नैद ने कहा कि वह मैं तुम्हें इसी शर्त पर दे सकता हूं कि तुम उसे गुप्त रखो;किसी को बताओ नहीं। रहस्य को अपने साथ लिए मर जाना।

10-उस आदमी ने कहा. 'तो आपने मेरी जिंदगी क्यों बर्बाद की? तीस साल मैंने इसीलिए तो इंतजार किया कि रहस्य मिलेगा तो उसे दूसरों को बताऊंगा, और अब आप यह शर्त लगाते हैं! तब जानने का क्या फायदा जब मैं उसे किसी को बता ही नहीं सकता? अगर यह शर्त है तो मुझे बताएं ही मत। यह तो तब मेरी समस्या बन जाएगी जो मेरा पीछा करेगी; कोई चीज जानते हुए भी मैं किसी को बता नहीं सकूंगा। उससे तो अच्छा है कि कहें ही मत। आपने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी। अब तो थोड़े दिन बचे हैं, शांति से जीने दें। किसी चीज को जानते हुए औरों को न बताना मेरे लिए बड़ा कठिन होगा।’

11-इसलिए जब किसी आध्यात्मिक साधना से कुछ उपलब्ध हो तो उसे छिपाए रखना। उसका प्रचार मत करो; उसका उपयोग मत करो। उसे अछूता, शुद्ध रहने दो। तभी वह आंतरिक रूपांतरण के काम आएगा। अगर उसका बाहरी उपयोग करोगे तो वह व्यर्थ चला जाएगा।

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क्या आंखों की गति रोककर ऊर्जा रूपांतरित की जा सकती है ?-

20 FACTS;-

1- तंत्र के अनुसार , तुम्हारा मन और तुम्हारा शरीर दो चीजें नहीं हैं। इस बात को सदा स्मरण रखो और ऐसा मत कहो कि यह शारीरिक प्रक्रिया है और यह मानसिक प्रक्रिया है। वे दो नहीं हैं.. वे एक इकाई के दो हिस्से हैं। शरीर के तल पर तुम जो भी करते हो वह मन को प्रभावित करता है और मन के तल पर जो भी करते हो वह शरीर को प्रभावित करता है। वे दो नहीं हैं, एक ही हैं।

2-तुम ऐसा कह सकते हो कि शरीर उसी ऊर्जा की ठोस अवस्था है और मन उसी ऊर्जा की तरल अवस्था। ऊर्जा एक ही है। इसलिए तुम अगर शरीर के तल पर कुछ कर रहे हो तो ऐसा मत समझो कि यह महज शारीरिक है ..यह मन के रूपांतरण में भी सहयोगी हो सकता है।

जब कोई शराब पीता है तो शराब तो शरीर में जाती है, लेकिन मन प्रभावित होता है। जब कोई ड्रग्स लेता है तो वह शरीर में जाती है, मन में नहीं; लेकिन मन प्रभावित होता है। या अगर तुम उपवास करो तो यह उपवास शरीर के तल पर होगा; लेकिन मन प्रभावित होगा।

3-विलियम जेम्स का एक सिद्धात है।विलियम जेम्स और दूसरे विज्ञानविद लैंग ने मिलकर इस सिद्धात को प्रस्तावित किया था और इसीलिए उसे जेम्स—लैंग सिद्धात कहते हैं।इस सदी के पूर्वार्द्ध में यह सिद्धात बेतुका मालूम पड़ता था, लेकिन एक अर्थ में यह सही है।

आमतौर से हम कहते हैं कि जब तुम भयभीत होते हो तो तुम सुरक्षा के लिए भागते हो, या जब तुम क्रोध करते हो तो तुम्हारी आंखें लाल हो जाती हैं और तुम अपने दुश्मन पर चोट करने लगते हो। लेकिन जेम्स और लैग ने जो बात कही वह ठीक इसके विपरीत है। उन्होंने कहा कि चूंकि तुम भागते हो इसलिए तुम भयभीत होते हो और चूंकि तुम्हारी आंखें लाल हो जाती हैं और तुम शत्रु पर चोट करने लगते हो इसलिए तुम्हें क्रोध होता है।

4-यह कितनी विरोधी बातें हैं..जेम्स और लैंग ने कहा कि यदि ऐसा नहीं है तो हम क्रोध की

एक ऐसी मिसाल देखना चाहेंगे जिसमें आंखें लाल न हों, शरीर प्रभावित न हो और शुद्ध क्रोध हो। अपने शरीर को प्रभावित मत होने दो और क्रोध करने की चेष्टा करो, तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम क्रोध नहीं कर सकते।जापान में वे अपने बच्चों को क्रोध पर काबू पाने

का एक सरल उपाय सिखाते हैं। वे कहते हैं कि जब भी तुम्हें क्रोध हो,क्रोध के साथ सीधे कुछ मत करो; बस गहरी श्वास लेना शुरू करो। इसका प्रयोग करो और तुम क्रोध नहीं कर सकोगे। क्या सिर्फ गहरी श्वास लेने से क्रोध नहीं कर सकते? क्या क्रोध करना असंभव हो जाता है?

3-इसके दो कारण हैं। तुम गहरी श्वास लेने लगते हो; लेकिन क्रोध के लिए श्वास की एक खास लय, उसका एक विशेष ढंग आवश्यक है। उस ढंग के बिना क्रोध संभव नहीं है। क्रोध करने के लिए जरूरी है कि श्वास एक विशेष लय में चले। असल में क्रोध के लिए श्वास का अराजक होना जरूरी है। इसलिए जब तुम गहरी श्वास लेते हो तो क्रोध का उभरना असंभव हो जाता है। अगर तुम सचेतन रूप से गहरी श्वास लेते हो तो क्रोध प्रकट नहीं हो सकता। क्रोध के लिए एक भिन्न ढंग की श्वास की गति जरूरी है। वह गति तुम्हें लानी नहीं पड़ती है, क्रोध ही उसे ले आता है। गहरी श्वास के साथ तुम क्रोध नहीं कर सकते।

4-और दूसरा कारण है कि मन बंट जाता है। जब तुम क्रोध करते हो और साथ ही गहरी श्वास लेने लगते हो तो तुम्हारा मन श्वास पर चला जाता है। अब शरीर क्रोध करने की अवस्था में नहीं रहा, क्योंकि मन की एकाग्रता किसी और चीज पर चली गई। ऐसी हालत में क्रोध करना

कठिन है।यही कारण है कि जापानी पृथ्वी पर सबसे संयमित लोग हैं—सर्वाधिक संयमित। बचपन से ही उन्हें इसके लिए प्रशिक्षित किया जाता है। दुनिया में अन्यत्र ऐसी घटना देखने को नहीं मिलती है; लेकिन जापान में यह आम बात है। अब तो जापान में भी वह कम हो रहा है; क्योंकि यह देश अधिकाधिक पाश्चात्य बनता जा रहा है और उसके पारंपरिक ढंग—ढांचे खोते जा रहे हैं। लेकिन ऐसी बात होती थी और आज भी हो रही है।

5-उदाहरण के लिए ,जापान में एक आदमी को कार से धक्का लगा और वह जमीन पर गिर पड़ा; लेकिन जब वह उठा तो उसने ड्राइवर को धन्यवाद दिया और तब अपनी राह ली। जापान में यह कठिन नहीं है। उसने कुछ गहरी श्वासें ली होंगी; तभी यह संभव है। तब तुम्हारा दृष्टिकोण पूरी तरह बदल जाता है। और तब तुम उस आदमी को भी धन्यवाद दे सकते हो जो तुम्हारी हत्या करने जा रहा हो, या जिसने तुम्हारी हत्या का प्रयास किया हो।

तो शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाएं दो चीजें नहीं हैं, वे एक हैं। और तुम किसी भी छोर से दूसरे को बदलने की शुरुआत कर सकते हो।तंत्र यह कर सकता है, क्योंकि तंत्र को शरीर पर गहरा भरोसा है। और कोई भी वैज्ञानिक विधि उपयोग में आ सकती है।

6- कोई भी वैज्ञानिक पद्धति शरीर से ही शुरू कर सकती है, क्योंकि शरीर तुम्हारी पहुंच के भीतर है। अगर कोई ज्ञानी तुमसे कुछ कहे जो तुम्हारी पकड़ के बाहर हो तो तुम उसे सुन लोगे, उसे स्मृति में इकट्ठा कर लोगे; तुम उसकी चर्चा भी करोगे; लेकिन उससे कुछ भी नहीं होगा। तुम वही के वही होगे, तुम्हारी जानकारी बढ़ जाएगी, लेकिन तुम नहीं बढ़ोगे। तुम्हारा ज्ञान तो बढ़ता चला जाएगा; लेकिन तुम्हारे प्राण गरीब के गरीब रह जाएंगे, जहां के तहां पड़े रहेंगे। तुम्हें उससे कुछ भी नहीं होगा।

7-स्मरण रहे, शरीर तुम्हारे हाथ में है, तुम्हारी पहुंच के भीतर है। तुम उसके साथ अभी कुछ कर सकते हो और शरीर के जरिए मन को बदल सकते हो। और धीरे— धीरे तुम अपने शरीर के मालिक हो जाओगे। और तब तुम मन के भी मालिक हो जाओगे। और जब तुम मन के मालिक हो जाते हो तो धीरे-धीरे उसे रूपांतरित कर मन के भी पार जा सकते हो। जब शरीर बदलता है तो तुम शरीर के पार जाते हो, और जब मन बदलता है तो तुम मन के पार जाते हो।और सदा वह करो जो तुम कर सकते हो।

8-उदाहरण के लिए, तुम अभी तुरंत गौतम बुद्ध की तरह अपने क्रोध के मालिक नहीं हो सकते हो।लेकिन अगर तुम श्वास की प्रक्रिया को बदल दो तो तुम उसके सूक्ष्म प्रभाव को, परिवर्तन को अनुभव कर लोगे। इसे करके देखो।कुछ सरल उपाय हैं.. जैसे कि अगर तुम्हें क्रोध आए तो तुम अपने चेहरे की मांस—पेशियों को खींचो, सख्त बनाओ। तुम यह काम अपने स्नानगृह में जाकर कर सकते हो, या महज मेज के नीचे झुककर कर सकते हो; ताकि तुम्हें कोई देख न सके। समझो कि कोई तुम्हारे सामने ही बैठा है और तुम्हें क्रोध आ गया है। तो स्नानघर में जाकर या मेज के नीचे सिर करके अपने चेहरे को कसो

और कसते ही जाओ। जब कसावट हद पर पहुच जाए अचानक ढील दे दो, और तब तुम्‍हें फर्क का अनुभव होगा; क्रोध जा चूकेगा। या यदि इतने पर भी न जाए तो इस प्रयोग को दुहराओ—दो बार करो, तीन बार करो।

9- वास्तव में,अगर तुम चेहरे की मांस-पेशियों को कसते जाओ, और कसते ही चले जाओ, और उसे तनाव से भर दो, तो जो ऊर्जा क्रोध में लगी थी वही चेहरे में गति करने लगेगी। और चेहरे में गति करना बहुत आसान है। जब तुम क्रोध करते हो तो क्या होता है? तुम्हारा जी करता है कि किसी को मुक्के मारो, क्योंकि इस ऊर्जा का उपयोग करना है। और उपयोग कर सको तो ऊर्जा बिखर जाएगी और तुम्हारा चेहरा शिथिल और शांत हो जाएगा। और जो आदमी तुम्हारे सामने बैठा था उसे पता भी नहीं चलेगा कि तुम क्रोध में थे। ऐसा लगेगा कि तुम्हें कुछ भी नहीं हुआ है।

10-और एक बार तुम इन चीजों को जान लो तो तुम्हें अधिकाधिक बोध होगा कि ऊर्जा रूपांतरित की जा सकती है, उसकी दिशा बदली जा सकती है, उसे नियंत्रित किया जा सकता है, उसे राह दी जा सकती है और उसकी राह रोकी भी जा सकती है। तुम्हें यह बोध होगा कि ऊर्जा का उपयोग भिन्न—भिन्न ढंगों से किया जा सकता है। और जब तुम ऊर्जा का उपयोग सीख लोगे तो तुम उसके मालिक हो जाओगे। और तब किसी दिन यह तुम्हारे हाथ में होगा कि ऊर्जा का उपयोग न करके उसका संरक्षण करो।

11-यह प्रयोग, घूंसा तानने का प्रयोग, बुद्ध के काम का नहीं है। बुद्ध के काम का इसलिए नहीं है क्योंकि यह ऊर्जा का अपव्यय है। लेकिन यह तुम्हारे बहुत काम का है। कम से कम दूसरा तुम्हारे क्रोध का शिकार होने से बच जाता है, और इस तरह पैदा होने वाले एक दुश्चक्र का अंत हो जाता है। जब तुम किसी पर क्रोध करते हो तो दूसरा भी क्रोध करता है, और इसका कहीं अंत नहीं है। इससे तुम्हारी पूरी रात खराब हो जाती है; इस उपद्रव का असर सप्ताह भर रह सकता है। और तब इसके प्रभाव में तुम कई ऐसी चीजें कर गुजरोगे जिन्हें तुम कभी नहीं करना चाहते थे।

12-तो यह मत कहो कि यह महज शारीरिक प्रक्रिया है।परन्तु तुम शरीर ही हो, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। अपनी ऊर्जा का उपयोग करो, उसे इनकार करने की जरूरत

नहीं है।अगर तुम अपनी आंखें बंद करो तो कभी—कभी तुम्हें वहां थोड़ा तनाव, थोड़ी बेचैनी अनुभव हो सकती है। इस संबंध में कुछ बातें उपयोगी हो सकती हैं। एक तो यह कि जब आंखें बंद करो तो उसके संबंध में तनाव न लो; उन्हें शिथिल रहने दो। तुम आंखों को जबरदस्ती भी बंद कर सकते हो, तब तनाव पैदा होगा, तब तुम्हारी आंखें थक जाएंगी और तुम्हें भीतर बेचैनी महसूस होगी। पहले चेहरे को शिथिल होने दो, फिर आंखों को शिथिल होने दो और तब उन्हें बंद होने दो।आंखों को बंद होने दो ..उन्हें बंद मत करो। विश्राम में रहो.. पलकों को गिरने दो और आंखों को बंद होने दो। उनके साथ जबरदस्ती मत करो। जबरदस्ती करना अच्छा नहीं है।

13-और अगर तुम्हें फर्क पता न चले तो ऐसा करो कि पहले पहले पूरे चेहरे को तनाव से भर दो और तब आंखों को जबरदस्ती बंद करो। और फिर दूसरी बार उन्हें विश्रामपूर्वक बंद करो। तब तुम्हें फर्क पता चलेगा। तो कुछ भी करने में जबरदस्ती मत करो; वह तुम्हें थका डालेगी।

और दूसरी बात कि जब आंखें बंद हो जाएं और चेहरा शिथिल हो जाए, तो ऐसे देखो जैसे कि सब अंधकारमय है, तुम्हारे चारों ओर गहरा अंधकार है। भाव करो कि गहरी अंधेरी रात में तुम अंधकार ही अंधकार से, मखमली अंधकार से घिरे हो। इस अंधकार को महसूस करो। उससे तुम्हारी आंखों की गति बंद हो जाएगी; जब कुछ भी देखने को नहीं रहेगा तो आंखें ठहर जाएंगी। इसलिए अंधकार में होना उपयोगी है।

14-यह काम तुम अंधेरे कमरे में कर सकते हो। आंखें खोलो और अंधकार को देखो,और फिर उन्हें बंद करके अंधकार को अनुभव करो। फिर आंखें खोलकर अंधकार को देखों; और फिर आंखें बंद कर अंधकार को भीतर महसूस करो।अंधकार गहन रूप से आरामदायक है।

अंधकार तुम्हारे बाहर है और अंधकार तुम्हारे भीतर है। और इसमें सब कुछ मृत मालूम देता है..मृत और अंधेरा। अंधकार और मृत्यु एक दूसरे से परस्पर जुड़े हैं। यही कारण है कि हम मृत्यु को काले रंग से चित्रित करते हैं। दुनियाभर में लोग मृत्यु को काले रँग में चित्रित करते हैं।

15-इस विधि का प्रयोग करते हुए अंधेरे को महसूस करो, उसे प्रेम करो और अपने भीतर भाव करो कि मेरी मृत्यु होने वाली है। भाव करो कि चारों तरफ अंधेरा है और मैं मर रहा हूं। तब आंखें ठहर जाएंगी। तुम देखोगे कि वे सचमुच ठहर गई हैं। तब तुम्हारी ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होकर तीसरी आंख पर चोट करने लगेगी।इस चोट को तुम सुनोगे, अनुभव करोगे।

तुम्हें एक उष्णता का अनुभव होगा और ऐसा लगेगा कि कोई तरल आग प्रवाहित हो रही है और नए मार्ग खोज रही है। इससे डरना मत, इसके साथ सहयोग करना। इस आग को गति करने देना। तुम यह आग ही हो जाना। और जब यह तीसरी आंख पहली बार खुलेगी तो अंधेरा समाप्त हो जाएगा और प्रकाश ही प्रकाश होगा। इस प्रकाश का कोई स्रोत नहीं है, उदगम नहीं है।

16-तुमने प्रकाश देखा होगा जिसका स्रोत होता है ..चाहे वह सूर्य से आए, चांद -तारों से आए और चाहे दीए से आए। उसका कोई न कोई स्रोत होता है। लेकिन जब ऊर्जा तीसरी आंख से होकर बहती है तब एक स्रोतहीन प्रकाश का उदय होता है। यह कहीं से आता नहीं है; यह बस

है।यही कारण है कि उपनिषद कहते हैं कि परमात्मा स्रोतहीन प्रकाश है। वह सूरज या ज्योतिशिखा की भाति नहीं है; उसका कहीं भी कोई स्रोत नहीं है, केवल प्रकाश है, रोशनी है—मानो वह ऊषाकाल है जब कि रात तो चली गई और सूर्य उदित नहीं हुआ है। दोनों के बीच जो ऊषाकाल है, यह वह है। या यह संध्या की गोधूलि है, जब सूर्य डूब गया है और रात अभी आई नहीं है। इसलिए उसे संध्या भी कहते हैं—दिन और रात की संधि—वेला।

17-और यही कारण है कि हिंदुओं ने ध्यान के लिए संध्या को उचित समय माना है। वे ध्यान को संध्या ही कहने लगे फिर। वह ठीक मध्य—वेला है; जब दिन जा चुका है और रात आने को होती है। क्यों? यह महज प्रतीक है। प्रकाश तो है, लेकिनस्रोतहीन। वही बात अंतस से घटित होगी—स्रोतहीन प्रकाश घटित होगा। उसकी कल्पना मत करो, उसकी प्रतीक्षा करो।

और आखिरी बात याद रखने की यही है उसकी कल्पना मत करो।

18-तुम कुछ भी कल्पना कर सकते हो। इस लिए तुम्‍हें बहुत सी बातें बताना खतरनाक है, तुम उनकी कल्पना करने लगोगे। तुम आंखें बंद कर लोगे और कल्पना में देख लोगे कि तीसरी आंख खुल रही है। कल्पना से तुम प्रकाश भी देख लोगे। लेकिन यह कल्पना मत करो। कल्पना से बचो। आंखें बंद करो और प्रतीक्षा करो। जो भी आए, उसे अनुभव करो, उसके साथ सहयोग करो। लेकिन प्रतीक्षा करो। आगे की छलांग मत लो;अन्यथा कुछ भी नहीं होगा। तुम्हारे हाथ एक सपना आ सकता है-सुंदर आध्यात्मिक सपना..और कुछ नहीं।

19-लोग कहते हैं कि हमने यह देखा और हमने वह देखा। लेकिन यह सब उनकी कल्पना है। यदि यह देखना सच होता तो वे रूपांतरित हो गए होते। मगर वे रूपांतरित नहीं हुए हैं। वे वही के वही लोग हैं; लेकिन एक नया आध्यात्मिक दंभ उनसे जुड़ गया है। उन्होंने कुछ सपने देख लिए हैं..सुंदर आध्यात्मिक सपने। किसी ने बांसुरी बजाते श्रीकृष्ण को देखा है; कोई प्रकाश देख रहा है; किसी की कुंडलिनी जाग रही है। ये चीजें वे देखते रहते हैं और वही के वही बने रहते हैं उन्हें कुछ भी नहीं हुआ है। और वे वही के वही बने रहते हैं ...क्रोधी, दुखी, बचकाने और मूढ़। उनका कुछ भी नहीं बदला है।

20-अगर सचमुच तुम्हें वह प्रकाश दिखाई पड़े जो तीसरी आंख से आता है तो तुम दूसरे ही व्यक्ति हो जाओगे। और तब तुम्हें किसी को भी बताने की जरूरत नहीं होगी। लोग जान लेंगे कि तुम दूसरे व्यक्ति हो गए हो। तुम इसे छिपा भी नहीं सकते; यह बात लोगों के अनुभव में आ जाती है। तुम जहां भी जाओगे वहा लोग महसूस करेंगे कि इस आदमी को कुछ हुआ है।

इसलिए कल्पना मत करो।तुम विधि का प्रयोग करो और प्रतीक्षा करो और चीजों को अपने आप ही घटित होने दो।आगे की छलांग मत लो।

....SHIVOHAM...


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