top of page

Recent Posts

Archive

Tags

पूजा -पाठ के समय सुरक्षा चक्र बनाने की क्या विधि है?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Jul 30, 2021
  • 7 min read

Updated: Jul 31, 2021


पूजा -पाठ के समय भय की अनुभूति : –

शास्त्रों के अनुसार सभी पूजा -पाठ शुभ फल देने वाले होते है |देवों का आशीर्वाद पाने के साथ – साथ विशेष कार्य की सिद्धि के लिए भक्तों द्वारा समय -समय पर पूजा -पाठ का आयोजन किया जाता है | जब कभी व्यक्ति किसी (बाहरी पीड़ा व बाधा )नकारात्मक शक्ति की गिरफ्त में आ जाता है तो ऐसे में विशेष पूजा -पाठ का आयोजन कर अपने कष्टों का निवारण करता है | इस प्रकार की विशेष पूजा -पाठ में पूजा के समय नकारात्मक शक्ति किसी भी समय अपना प्रभाव दिखा सकती है | इसलिए इस प्रकार की पूजा से पहले सुरक्षा चक्र बनाना अति अनिवार्य हो जाता है |ऐसी साधनाएं करते समय परा शाक्तियाँ आपको नुकसान पहुंचा सकती है | इसलिए जरुरी है कि ऐसी साधनाएं करते समय अपने चारों ओर मंत्र द्वारा सुरक्षा घेरा बना लिया जाये | सुरक्षा घेरा बनाने में अक्सर चाक़ू, चिमटे , लोहे की कील व जल आदि का प्रयोग किया जाता है |

पूजा -पाठ के समय सुरक्षा चक्र बनाने की विधि :-

1- पहली विधि :-

किसी भी मंत्र जप या साधना को करने के पहले सुरक्षा घेरा बनाया जाता है सुरक्षा घेरा बनाने के लिए राई या चाकू का उपयोग किया जाता है| वैसे तो घर में साधना करने पर कोई डरने की बात नहीं होती लेकिन फिर भी सुरक्षा घेरा बनाने से भावनात्मक रूप से सुदृढ़ होते हैं| इसलिए सुरक्षा घेरा बनाना चाहिए| सुरक्षा घेरा हर प्रकार की नकारात्मक सोच ऊर्जा और प्रभाव से साधक की रक्षा करता है सुरक्षा घेरा बनाने के लिए मंत्र को पढ़ते हुए राई के दाने अपने दाहिने हाथ में लेकर साधक अपने साधना के कमरे में चारों तरफ 2 चार दाने फेंक दे |इस तरह से वह कमरा सुरक्षित हो जाता है |या चाहे तो यही मंत्र बोलते हुए चाकू से फर्श पर सिर्फ अपने चारों ओर एक अदृश्य लाइन खींच ले| यह लाइन दिखाई नहीं देगी क्योंकि ना तो जमीन को खरोचना है और ना ही खोदना है| सिर्फ हल्के हाथों से एक अदृश्य लाइन चाकू से बनाई जाती है जो कि एक नियम मात्र है|साधक चाहे तो कोई भी मंत्र पढ़कर राई या चाकू की विधि से सुरक्षा घेरा बना सकता है जैसे बगलामुखी मंत्र हो या महाकाली मंत्र हो या शिवजी का मंत्र हो... किसी भी सुरक्षा मंत्र से घेरा बनाया जा सकता है

दूसरी विधि :-

मंत्र सिद्ध करते समय या पूजा -पाठ से समय सुरक्षा चक्र बनाने के लिए पूजा पर बैठने से पहले एक बताशे में छोटा सा छेद करके उसमें पूजा में प्रयोग होने वाला सिन्दूर डाल ले |अब इस बताशे को अपने आसन के नीचे रख दे | और फिर आसन पर बैठ जाये , आपके बैठने से बताशा टूट जायेगा, यह ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है | आसन पर बैठने के पश्चात् हाथ में थोडा जल लेकर अपने चारों तरफ घुमा कर डाल दे | अब आप पूजा शुरू कर सकते है | किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्ति अब आपको परेशान नहीं करेगी |पूजा से उठने के पश्चात् इस टूटे हुए बताशे और सिन्दूर को एक गिलास पानी में डालकर घर से बाहर डाल दे | मंत्र सिद्धि और पूजा -पाठ में भय की अनुभूति होने पर इस सुरक्षा चक्र का प्रयोग साधक को अवश्य करना चाहिए |

तीसरी विधि :-

सुदर्शन रक्षा कवच ..सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का एक शक्तिशालि हथियार है, जिसमें दिव्य शक्ति छिपी है और इसका प्रहार अचूक होता है। विशेष बात यह कि बुराईयों का नाशकर वापस लौट आता है। इस दिव्य चक्र में कुल 108 दांतें बनी होती हैं और भगवान विष्णु के दाहिने हाथ की शोभा बढ़ाती हैं। भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का मन में ध्यान करके निम्नलिखित मंत्र से आवाहन किया जाना चाहिए तथा रक्षा कवच बना लेना चाहिए।

''ओम सुदर्शन चक्राय शीघ्र आगच्छ ;मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा!!''

क्या है सुदर्शन चक्र मंत्र साधना?-

सुदर्शन चक्र मंत्र साधना से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। जीवन में सकारात्मक पक्ष को जागृत कर नकारत्मकता को खत्म किया जा सकता है। इस मंत्र के नियमित जाप करने भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है यानी कि व्यक्ति दैविय आभा से प्रभावित हो जाता है। इसकी साधना और मंत्र प्रयोग से हर मुश्किलों को दूर किया जा सकता है।लंबे समय से चले आ रोग को दूर करने के लिए, कामकाज या कारोबार में आने वाली बाधा या फिर दुश्मनों से सुरक्षा के लिए भगवान विष्णु या भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर के सामने समान्य पूजन के बाद सुदर्शन चक्र मंत्र का रूद्राक्ष की माला से 108 बार जाप करें।इस मंत्र की साधना की शुरूआत श्रीसुदर्शन चक्र के विधिवत पूजन से करनी चाहिए।श्रीसुदर्शन चक्र को दाहिने हाथ में लेकर श्रीसुदर्शन चक्र मंत्र का 18 बार जाप करना चाहिए। जाप के बाद चक्र को भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति के पास तीन दिनों तक रहने दें। इसके सकारात्मक परिणाम पहले दिन से दिख सकते हैं। तीनों दिनों के बाद उस चक्र को गले में धारण कर लेना चाहिए।यह भारत की कुछ दुर्लभ विद्याओं मे से एक है। वह मंत्र इस प्रकार हैः-


ओम श्रीं हीं क्लीं, कृष्णाय गोविंदाय, गोपीजन वल्लभाय!

पराया परम पुरुषाय परमात्माने, पराकर्म मंत्रयंत्रौषद्यस्त्रशस्त्राणि!!

औषधा विषा आभिखरा अस्त्र शस्त्राणि, संहारा संहारा मृत्युर मचाया मचाया!

ओम नमो भगवते महा सुदर्शनाय हूं भट!

दीप्तरए ज्वाला परीतय, सर्वे विक्षोभना कराया

हूं पहात पारा ब्रह्मणी परम ज्योतिषी स्वाहा!

ओम नमो भगवती सुदर्शनाय, ओम नमो भगवती महासुदर्शनाय!

म्हा चकराया माहा ज्वालाय, सर्व रोग प्रशमनया, कर्मा बंधा विमोचनाया,

पदाधि मास्था पर्यंत , वादा जनित रोगों, पिता जनित रोगों, दाठु सनकालीकोठ भाव

नाना विकारे रोगों नासाय नासाय, परसमय परसमय आरोगियां देहि देहि!

ओम सहस सरा हम पहात स्वः श्रीसुदर्शन चक्र विद्या!!

NOTE;-

1-इस मंत्र के स्मरण के बाद रूद्राक्ष की एक माला से निम्न सुदर्शन रक्षा कवच का जाप किया जाना चाहिए।साधना संपन्न होने तक रूद्राक्ष की माला धारण किए रहना चाहिए।

सुदर्शन चक्र रक्षा साधना मंत्र::

"ॐ सुदर्शनं महावेगं गोविन्दस्य प्रियायुधम्‚ज्वलत्पावक सङ्काशं सर्वशत्रुविनाशनम्।कृष्णप्राप्तिकरं शश्वद्भक्तानां भयभञ्जनम्‚ सङ्ग्रामे जयदं तस्माद् ध्यायेद्देवं सुदर्शनम्॥ओम सुदर्शन चक्राय शीघ्र आगच्छ मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा!!''

अथवा

"ॐ सुदर्शन ! नमस्तुभ्यं, सहस्त्रारायुत-प्रभो ! सर्वास्त्र-घातिन् ! दैत्यानां, दानवानां विजृम्भणम्।।ओम सुदर्शन चक्राय शीघ्र आगच्छ मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा!!''

2-कुछ आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैंः-

04 POINTS;-

1-इस मंत्र की साधना भगवान विष्णु को प्रसन्न करने से ही पूर्ण होती है। इसके लिए सफेद रंग का विशेष महत्व होता है। एक खास मंत्र से भगवान विष्णु और उनके सुदर्शन चक्र का ध्यान किया जाता है।

2-इसकी साधना किसी को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं किया जाना चाहिए।

3-इस साधना को दूसरों की रक्षा के लिए किया जाता है, विशेषकर असाध्य रोग से ग्रसित बीमार व्यक्ति के लिए किया जाता है। इसक लिए खास विनियोग मंत्र अंत में दिए गए हैं।

4-प्रयोग के दौरान मंत्र का जाप कम से कम 18 और अधिक से अधिक 108 बार किया जाना चाहिए

पूजन विधिः

02 POINTS;-

1-श्रीसुदर्शन चक्र के पास छोटे से कलश में जल रखें। गाय के घी का दीपक जलाएं। सुगंधित धूप दिखाएं और सफेद नैवेद्य से भोग लगाएं। जैसे दूध-चीनी, खीर, दही, कलाकंद आदि। सफेद फूल चढ़ाएं। पूजन के बाद रोग निवारण के लिए विधिवत संकल्प लेते हुए जल छोड़ें। उसके बाद श्रीसुदर्शन चक्र को हाथ में लेकर 3, 7, 11 या 18 बार सुदर्शन मंत्र का जाप करें। इस तरह से कलश में रखा जल अभिमंत्रित हो जाता है। उसका रोगी के आसपास छिड़काव कर दें। इस विधि से औषधियों को भी अभिमंत्रित किया जा सकता है।

2-हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सुदर्शन मंत्र के नियमित जाप से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है। किसी खास बाधा से छुटकारा पाने के लिए एक पंक्ति के मंत्र का 108 बार जाप सूर्योदय पूर्व स्नान आदि के बाद किया जाना चाहिए। साधना आरंभ करने का समय रात्रिकाल है।सफेद परिधान में आसन पर बैठें और सामान्य पूजन के साथ भगवान गणपति मंत्र का एक माला जाप करें। मत्र जाप की कुल संख्या 11,000 है, जिसे अपनी क्षमता के अनुसार सात या 11 दिनों में पूरा किया जाना चाहिए। यानि कि प्रतिदिन 11 माला के जाप से इस साधना को पूर्ण किया जा सकता है। साधना के लिए पूरे मंत्र का जाप करने में पांच से छह घंटे का समय लग सकता है। जिसे एक बैठक में ही पूरा किया जाना चाहिए।साधना के ग्यारह दिनों के बाद आनेवाले ग्रहण काल के समय एकबार फिर से मंत्र का 11 बार जाप करना चाहिए। इसकी पूर्णाहुति 1008 हवन की आहूतियों से की जाती है।

;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

श्रीसुदर्शन-चक्र-विद्या-माला-मन्त्र::

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीसुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्रस्य अहिर्बुध्न्य ऋषिः, जगती-गायत्री छन्दः, श्री-सुदर्शन-रुपी श्रीनृसिंह देवता, मम समस्त-दोष-परिहारार्थं जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः-

श्रीअहिर्बुध्न्य-ऋषये नमः शिरसि, जगती-गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री-सुदर्शन-रुपी श्रीनृसिंह देवतायै नमः हृदि, मम समस्त-दोष-परिहारार्थं जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

कर-न्यासः-

ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः, ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा, ह्रूं मध्यमाभ्यां वषट्, ह्रैं अनामिकाभ्यां हुं, ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्, ह्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

अंग-न्यासः-

ह्रां हृदयाय नमः, ह्रीं शिरसे स्वाहा, ह्रूं शिखायै वषट्, ह्रैं कवचाय हुं, ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्, ह्रः अस्त्राय फट्।


'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''

घर का औरिक सुरक्षा कवच बनाने की विधि ;-

घर का औरिक सुरक्षा कवच बना कर घर को सभी तरह की नकारात्मक उर्जाओं से सुरक्षित किया जाता है। आप भी इसे अपना सकते है और अपने घर को नकारात्मक उर्जाओ से सुरक्षित कर सकते है।

सबसे पहले भगवान शिव से प्रार्थना करें… हे शिव आप मेरे गुरु है मैं आपका शिष्य हूं ।मुझ शिष्य पर दया करें। मै आपको साक्षी बनाकर अपने घर केे लिये औरिक सुरक्षा कवच का निर्माण कर रहा हूं।इसकी सफलता के लिये मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें।

आंखे बंद करके आराम से बैठ जायें।अपने घर के लिए संजीवनी रुद्राक्ष माला से इलेक्टि्रक वायलेट उर्जा के सुरक्षा कवच की मांग करें।

पुनः प्रार्थना करे :-

1-हे संजीवनी रुद्राक्ष माला मेरे घर को इलेक्ट्रिक वायलेट उर्जा का अभेद सुरक्षा कवच प्रदान करें।

2-अब इस सुरक्षा कवच को एक और पिरामिड आकार के कवच में सुरक्षित करें।

3- इस सुरक्षा कवच में मेरे घर के सभी लोगों की खुशियों के लिये प्रेम व प्रकाश के आने जाने की राह दें।

4-इस सुरक्षा कवच को…..

गुस्सा, तनाव, तंत्र, ग्रह, वास्तुदोष, प्रेतबाधा सहित किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जाऐं भेद न सकें।

5-मुझ पर, मेरे परिवार पर व मेरे घर पर उनका कोई दुष्प्रभाव न पड़े। मै, मेरा परिवार और मेरा घर इस सुरक्षा कवच में सुखी और सुरक्षित रहें ।ऐसा ही हो, ऐसा ही हो, ऐसा ही हो , तथास्तु। 6-भगवान शिव का धन्यवाद करें.रुद्राक्ष का धन्यवाद करें..खुद को धन्यवाद दे।


..SHIVOHAM..


Comments


Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page