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क्या रहस्य है त्रिगुण अथार्त तीन  ELEMENT(WATER,FIRE,AIR) और त्रिगुणातीत का ?क्यो श्रीकृष्ण पूर्ण


क्या त्रिगुण अथार्त तीन ELEMENT(FIRE,WATER,AIR) की समान मात्राओं का होना संभव है? -

07 FACTS;-

1-प्रकृति त्रिगुणमयी हैं। हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश ... तीनो प्रकृति के तीन गुणों (FIRE,WATER,AIR) का प्रतिनिधित्व करते हैं।वे सी क्यूब हैं ;अथार्त CREATOR,CARING और CONCLUSIVE... ब्रह्मा...FIRE ELEMENT(रजोगुण/

पित्त); विष्णु ..WATER ELEMENT(तमस/कफ ) और महेश... AIR ELEMENT( सत्वगुण/वात)का प्रतिनिधित्व करते हैं।और वे तीनो हीं अर्धनारीश्वर हैं।

2-संसार में WATER-CONTENT 70% है अथार्त WATER-ELEMENT के 70% लोग है।AIR CONTENT 28 % है अथार्त AIR -ELEMENT के 28% लोग है।FIRE CONTENT 2% है अथार्त FIRE -ELEMENT के 2% लोग है।

3-इस तत्वज्ञान से ये सिद्ध होता है....

1-ब्रह्मा;- FIRE ELEMENT/ FUTURE/रजस ,

2-विष्णु;- WATER-ELEMENT/ PAST/तमस और

3-महेश;- AIR ELEMENT /PRESENT /सत्वगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं।त्रिगुण ..जो वर्तमान में हैं, वही भविष्य में है,जो भविष्य में है, वही भूत में भी हैं।ये तीनों ही काल एक दूसरे के विरोधी हैं ,परन्तु आत्मतत्व स्वरुप से एक ही हैं।

4-आकाश, वायु, अग्रि, जल और पृथ्वी, यह पंच महाभूत सारे ब्रह्माण्ड को तो बनाते ही हैं हमारे शरीर की भी रचना करते हैं। आकाश और पृथ्वी तो प्रत्येक प्राणी के आधारभूत तत्व हैं;जिसके असंतुलन से एक सामान्य व्यक्ति होना ही संभव नहीं हैं।इसके बाद मुख्य रूप से तीन गुण प्रत्येक व्यक्ति में हैं।दो गुणों से कोई भी व्यक्ति बन नहीं सकता।एक गुण के साथ किसी व्यक्ति के अस्तित्व की कोई संभावना नहीं है। उन तीनों का जोड़ ही आपको शरीर और मन देता है।जैसे बिना तीन रेखाओं के कोई त्रिकोण न बन सकेगा, वैसे ही बिना तीन गुणों के कोई व्यक्तित्व न बन सकेगा। उसमें एक भी गुण कम होगा, तो व्यक्तित्व बिखर जाएगा।

5-अगर कोई व्यक्ति कितना ही सत्व-प्रधान हो, तो सत्व-प्रधान का इतना ही अर्थ है कि सत्व प्रमुख है, बाकी दो गुण सत्व के नीचे छिप गए हैं, दब गए हैं। लेकिन वे दो गुण मौजूद हैं और उनकी छाया सत्वगुण पर पड़ती रहेगी।प्रधानता उनकी नहीं है, वे गौण हैं।मनुष्य में तीनों प्रकार के त्रिगुण / त्रिदोष होते हैं किन्तु दो प्रधान दोषों के आधार पर उन्हें द्विंदज मान लिया जाता है।आपमें कोई भी गुण प्रकट हो, तब भी दो मौजूद होते हैं।

6-त्रिगुण / त्रिदोष... के अलग-अलग संयोजन हमारे शरीर में वात पित्त और कफ के रूप में रहते हैं।इस प्रकार संसार में केवल 6 प्रकार के मनुष्य होते हैं...

1-WATER-FIRE(कफ-पित्त)

2-WATER- AIR,(कफ-वात)

3-AIR- FIRE(वात-पित्त)

4-AIR-WATER(वात-कफ)

5-FIRE-AIR( पित्त-वात),

6-FIRE-WATER(पित्त-कफ) 7-त्रिगुण/त्रिदोष मानव शरीर की उत्पत्ति के कारक भी हैं।असंतुलन की स्थिति में AIR CONTENT (वात) बढऩे से 80, FIRE CONTENT(पित्त ) से 40 और WATER-CONTENT(कफ )से 20 किस्म की बीमारियां हो सकती हैं।प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में उसकी प्रकृति के अनुसार निश्चित अनुपात में AIR/FIRE/WATER-CONTENT रहेगे। इनमें से एक की शरीर में प्रधानता उस व्यक्ति का प्रकृति तय करती है।

क्या है आपका तत्व(ELEMENT) ?-

मनुष्य केवल दृश्य और अदृश्य पदार्थो का मेल है । फिर भी प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव, बर्ताव और कार्य भिन्न भिन्न होते है। इसका कारण है प्रकृति के तीन गुण।सत्व, रजस और तमस के कम और अधिक मात्रा के समन्वय से मनुष्य का स्वभाव बनता है। कोई व्यक्ति जल-तत्व प्रधान है,कोई अग्नि-तत्व प्रधान है,तो कोई वायु-तत्व प्रधान है।हमारे दिमाग रूपी कम्प्यूटर में जो चिप लगायी गयी.. हमारा स्वभाव और बर्ताव वैसा ही होगा जो अपरिवर्तिनीय है।हम इसे केवल विकृत ही कर सकते है...परिवर्तित नही कर सकते।इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने तत्व के अनुसार ही बर्ताव करना चाहिए।तभी हम सफल हो सकते है।

कैसे होते है जल तत्व प्रधान व्यक्ति?...

भावना प्रधान (WATER ELEMENT);-

03 FACTS;-

1-जब हम तत्व के रूप में जल को जानने की कोशिस करते है तो हम पाते है कि यही वो तत्व है जो की स्रष्टि के निर्माण के बाद जीवन की उत्पत्ति का कारण है। जल में दो तत्व और निहित हैं- देव तत्व और जीवन तत्व। इनके कारण जल का महत्व और भी बढ़ जाता है।जल सामाजिक व्यवहार को दर्शाता हैं |जल-तत्व में ग्रहण करने की क्षमता होती है, इसलिए जल-तत्व प्रधान व्यक्तियों में आत्मविश्लेषण, खोज एवं ग्रहण करने का विशेष गुण होता है।ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होते हैं।

2-यदि जल तत्व के व्यक्तियों में असंतुलन की स्थिति आ जाती है तो

व्यक्ति, अकेला और अलग रहने वाला, भुलक्कड़, बांझ, या नपुंसक हो जाता हैं |

जोड़ो के दर्द, नींद न आना, खराब सपने या हीनता की भावना से ग्रसित हो जाता हैं|जल तत्व की अधिकता से व्यक्ति ज्यादा सक्रिय,सागर की तरह असमीमित, अभिभूत और ज्यादा ताकत दिखाने वाला हो जाता है |उदाहरण के लिए ..जहाँ पर बहता हुआ पानी कम मात्रा में रहता है जैसे कि चट्टानों से टपकता हुआ पानी या फ़व्वारे से निकलता हुआ पानी ..जो निकल तो रहा है पर जा कहीं नहीं जा रहा है |

कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों मे होने वाले लक्षण ;-

02 FACTS;-

1-कफ प्रकृति वाले लोग सामान्य रूप से गोरे वर्ण वाले, सुडौल, चिकना, मोटा शरीर होता है, इन्हें सर्दी अधिक कष्ट देती है ।ये लोग चिकनी त्वचा वाले,घने,घुंघराले,काले

केश वाले होते हैं।मधुर बोलने वाले होते है |भूख कम लगती है, अल्प भोजन से तृप्ति हो जाती है, मन्दागिन रहती है।प्यास कम लगती है,नींद अधिक आती है।ये लोग धीमी, स्थिर (एक जैसी) चाल वाले होते है।

2-सर्दी बुरी लगती है और बहुत कष्ट देती है, धूप और हवा अच्छी लगती है, नम मौसम में भय लगता है, गरमा गरम भोजन और गर्म पदार्थ प्रिय लगते हैं।गर्म चिकने, चरपरे और कड़वे पदार्थों की इच्छा अधिक होती है।कमजोर व कोमल नाड़ी होती है ,नाड़ी की गति -मन्द-मन्द (हंस की चाल वाली)होती है।

PROPERTIES OF WATER ELEMENT..EMOTION:-

KEY NOTIONS;-

1-The cold, humidity---Feminine, receptive, manager,connected to the emotions, intuition, mysterious, the subconscious, etc.;Good in resource management,Saving etc.

2-People of water element possess a very subtle cast of mind; quite often they demonstrate parapsychological abilities. People of water element are very impressionable and sensitive. People of water element are distinguished by inconstancy, emotionality, and a rather extreme sensitivity.

3-Compatibility:People of water element should choose partners among water element .

INTERNAL ESSENCE OF WATER ELEMENT;-

04 POINTS ;-

1-The water element is an owner and captures everything. Water element may assume colours and paints at the same time hiding things like sugar or salt dissolved in water. Only shoaling water element is transparent, in depths water element is dark. Water element is able to hide only thoughts, but water element is frank in feelings. Therefore, water element frequently becomes a victim of one's own mood, imagination and subjectivity. Water element pays particular attention to trifles, details, surroundings. This basis gives rise to methodicalness.

2-Water excess results in hysterical reactions, pettiness, and psychopathy. However, water element is also merciful, can soothe, protect, pull through, and nurse. Water element is hard-working and endowed with sense of duty and responsibility. Water element is disposed to submission. Since water element is running, her feelings are changeable.

3-The sense of ownership may give rise to greediness and jealousy. The imagination of water element is peculiar and is the ground for romanticism,

subjectivity and idealism.People of water element possess a very subtle cast of mind; quite often they reveal parapsychological abilities. People of water element are very impressionable and sensitive.

4-People of water element are distinguished by inconstancy, emotionality, and a rather extreme sensitivity. But they are more capable of adaptation than it seems. At times it may seem that their condition is hopeless, however they find a way out of a difficult life situations like water that grides its way through rocks.

कैसे होते है अग्नि तत्व प्रधान व्यक्ति?-

कर्म प्रधान (FIRE ELEMENT);-

04 FACTS;-

1-अग्नि तत्व प्रधान व्यक्तियों में क्रियात्मक शक्ति का समावेश होता है।अग्नि में रूप परिवर्तन की क्षमता होती है।यदि हम अपने वैदिक ध्वज पर ध्यान दे तो उस का रंग और और उसकी आकृति अग्नि का प्रतीक है। हमारा तेज जिसे वैज्ञानिक भाषा में हम अपनी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड भी कहते है अग्नि तत्व पर निर्भर करता है। यह असीम ऊर्जा का स्रोत है.. इसे हम शिव तत्व के नाम से भी जानते है। किसी भी कार्य में...चाहे वो अध्यात्मिक हो या सांसारिक... हमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है।और स्थूल से सूछ्म ऊर्जा अधिक प्रभावी होती है।

2-अग्नि तत्व न सिर्फ हमें प्रभावशाली बनाता है अपितु हमारी अध्यात्मिक और सांसारिक

उन्नति भी करता है।अग्नि में रूप परिवर्तन की क्षमता होती है।हम सतयुग से ही अग्नि के उपासक रहे है। अग्नि में सदैव ऊपर उठने का गुण होता है।जब किसी व्यक्ति की अध्यात्मिक उन्नति होती है, वह उच्चतर स्तर पर कार्य करने लगता है।इस स्तर के आध्यात्मिक उन्नत व्यक्ति से; विशिष्ट रूप का तेज/अग्नि सा प्रक्षेपित होता प्रतीत होता है । जब ऐसा होता है,तो उस जीव की मूलभूत इच्छाएं भी अल्प होती जाती हैं, जैसे अन्न तथा नींद ।इसके अतिरिक्त, बोधगम्यता तथा कार्य करने की क्षमता संख्यात्मक तथा गुणात्मक रूप से प्रचंड मात्रा में बढ जाती है ।

3-अग्नि तत्व की प्रधानता वाले व्यक्ति भावनाओं को उचित रुप से जाहिर कर पाते हैं | इनको किसी प्रकार का बैर नहीं रहता है और दूसरो के प्रति दया भावना रहती हैं |जब अग्नि तत्व में असंतुलन आ जाता है, तो यह अपने आपको जाहिर करने में असमर्थ बना देता है |ऎसा व्यक्ति जो रसोई घर या ऎसे ही गर्म वातावरण में काम करता है या रेगिस्तान में रहता है या त्रिकोणाकार पर्वत के नीचे रहता है तो उसकी भावनाएं निष्क्रिय और निर्जीव तथा उन्मत और अतिक्रियाशील हो जाती हैं ...चरम सीमाओं में प्रकट होती हैं | 4-अग्नि तत्व की कमी से जोड़ो का दर्द,शुष्क त्वचा,नजर की कमजोरी और खराब रक्त संचार की समस्या आती हैं |हम थके हुये महसूस करते हैं, जोश की कमी रहती है भविष्य को लेकर भय और उत्तेजना बनी रहती है |बहुत ज़्यादा अग्नि तत्व का प्रभाव... अस्थिर, आलोचनात्मक और अप्रिय व्यक्तित्व वाला बना देता हैं....जो आसानी से गुस्सा होने वाले और झगड़े में पड़ने वाले होता हैं |

पित्त प्रकृति वाले व्यकित के लक्षण ;-

02 FACTS;- 1-शारीरिक गठन..नाजुक शिथिल शरीर होता है इन्हें गर्मी सहन नहीं होती । त्वचा त्वचा पीली एवं नर्म होती है फुंसियों और तिलों से भरी हुई अंग शिथिल; हथेलियाँ, होठ, जीभ, कान आदि लाल रहते हैं ।बालों का छोटी उम्र में सफेद होना व झड़ना, रोम बहुत कम होना ।कण्ठ सूखता है; स्पष्ट, श्रेष्ठ वक्ता होता है ।मुंह का स्वाद कड़वा रहता है ,

मुंह व जीभ में छाले होते है।भूख अधिक लगती है, बहुत सा भोजन करने वाला होता है,परन्तु पाचन शक्ति अच्छी होती है।प्यास अधिक लगती है।पसीना बहुत कम आता है ,परन्तु गर्म और दुर्गन्धयुक्त पसीना।

2-साधारण किन्तु लक्ष्य की ओर अग्रसर चाल वाला होता है।गर्मी बुरी लगती है और

अत्यधिक सताती है, गर्म प्रकृति वाली चीजें पसंद नहीं आती, धूप और आग पसंद नहीं, शीतल वस्तुयें यथा-ठंडा जल, बर्फ, ठण्डे जल से स्नान, फूलमाला आदि प्रिय लगते हैं, कसैले, चरपरे और मीठे पदार्थ प्रिय लगते हैं । नाड़ी की गति -कूदती हुई

(मेढ़क की चाल वाली), उत्तेजित व भारी नाड़ी होती है।

PROPERTIES OF FIRE ELEMENT...ACTION:-

KEY NOTIONS;-

1- Warmth and dryness...Energy, activity, idea;Masculine, projective, connected to the will, passion, creativity, etc.;Good in speaking and earning money,owners..

2-People of fire element are characterized by fiery temper, lively wit, and quick intelligence. People of fire element are not predisposed to long explanations, are impatient in trifles, but are smart and capable to grasp quickly the meaning of the main things. People of fire element frequently make thoughtless actions.

3-Compatibility:They should choose friends and beloved ones among the signs of fire element and air.

INTERNAL ESSENCE OF FIRE ELEMENT;-

03 POINTS ;-

1-The internal essence of the fire element is pitilessness - fire element burns mercilessly. The fire element likes to govern, rule over others, order people about. The fire element is very beautiful and bright, aspiring to be handsome and defiant. The basic feature of fire element is demonstrative behaviour.

2-People of fire element are hot and fiery tempered; they possess agile mind and quick wits. People of fire element are not predisposed to long explanations and are impatient in trifles; however, they are bright and capable to grasp the meaning of the main things quickly.

3-People of fire element do everything thoughtlessly and frequently commit rash actions. At the same time they do not regret the results of their own impetuosity. They have a hot blood and a hot head.People of fire element are lusty. Their temperament is explosive. Their warm-heartedness and fervor attract people. As a rule, people of fire element are successful in life, but if they are not lucky, failures follow one another.

कैसे होते है वायु-तत्व प्रधान व्यक्ति?-

ज्ञान प्रधान (AIR ELEMENT);-

1-इस की महत्ता इस बात से ही समझ में आती है की हमारा सूक्ष्म शरीर... 5 प्रकार की वायु आपान , उदान, व्यान, समान और प्राण में और और 5 उपवायु-नाग,कूर्म, कृकल,देवदत्त और धनंजय में वर्णित है।

2-वायु-तत्व प्रधान व्यक्ति परिवर्तन प्रिय एवं मानसिक रूप से सबल एवं प्रभावशाली होती हैं।इसमें चचंलता, अनिश्चय एवं बुद्धिमता का गुण है।वायु-तत्व की कमी से आप किसी पर

विश्वास नहीं कर पायेंगे |आप हमेशा चिंतित और परेशान रहेंगे |आपका अपना कोई मत नहीं होगा |और आप बहुत आसानी से दूसरों की बातों में आ जायेंगे और कुछ बोल नहीं पायेंगे |

वात प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण 02 FACTS;- 1-शारीरिक गठन - प्राय: शरीर रूखा, फटा-कटा सा दुबला-पतला होता है, इन्हें सर्दी सहन नहीं होती।त्वचा रूखी एवं ठण्डी होती है फटती बहुत है पैरों की बिवाइयां फटती हैं हथेलियाँ और होठ फटते हैं, उनमें चीरे आते हैं अंग सख्त व शरीर पर उभरी हुई बहुत सी नसें होती हैं । शरीर मे बाल रूखे, कड़े, छोटे और कम तथा दाढ़ी-मूंछ रूखी और खुरदरी होती हैं ।अंगुलियों के नाखून रूखे और खुरदरे होते है। जीभ मैली ,आवाज कर्कश व भारी, स्वर गंभीरता रहित तथा अधिक बोलता है ।व्यक्ति में मुंह का स्वाद फीका या खराब मालूम

होता है तथा मुंह अधिक सूखता है। 2-भूख कभी ज्यादा कभी कम, पाचन क्रिया कभी ठीक रहती है तो कभी कब्ज हो जाता है, विषम अग्नि, वायु बहुत बनती है ।व्यक्ति में प्यास कभी कम, कभी ज्यादा कम तथा बिना गन्ध वाला पसीना ।नींद कम आना, ज्यादा जम्हाइयां आना,सोते समय दांत किटकिटाने वाला।ऐसा व्यक्ति अक्सर आकाश में उड़ने के सपने देखता हैं।तेज चलने वाला होता है।

सर्दी बुरी लगती है, शीतल वस्तुयें अप्रिय लगती हैं,गर्म वस्तुओं की इच्छा अधिक होती है मीठे, खटटे, नमकीन पदार्थ विशेष प्रिय लगते हैं।नाड़ी की गति ...टेढ़ी-मेढ़ी (सांप की चाल के समान)चाल वाली प्रतीत होती है, तेज और अनियमित नाड़ी होती है।

PROPERTIES OF AIR ELEMENT...KNOWLEDGE:-

KEY NOTIONS;-

1- Warmth, humidity--Circulation, communication,speed,service, information;Masculine, projective element connected to rational thought, the mind, intellect, wisdom, communication, etc.; Good artist

2-People of air element are very sociable and are peculiar guides, intermediaries among various people and even groups. Distinctive features of air element are quick-wittedness, cheerful, bright character, loquacity, and sociability. Particularities of air element people are juridical and reasonable arguments.

3-Compatibility:According their air element these people should choose friends and sweethearts belonging to the elements of air and fire .

INTERNAL ESSENCE OF AIR ELEMENT;-

04 POINTS ;-

1-Air element is endowed with the heightened receptivity. This is the leading quality because gases in space can penetrate everywhere. It provides high ability to the interaction, based on observation. Against the internal background of the air element one can notice anxiety, fussiness, nervousness, and increased uneasiness.

2-People of air element will never hurt themselves, they do not feel keenly. Their emotions are not destructive because they calm down quickly. Mind of air element helps to evade destruction.The characteristic features of

air element are attention, changeability, sincerity, and openness. Air element is able to escape without staying too long. Upward movement occurs due to the intellectual superiority.

3-On negative background the air element is garrulous(बातूनी) because of

excessive openness.People of air element are very sociable and are peculiar guides, intermediaries among various people and even groups. Distinctive features of air element are quick-wittedness, cheerful, bright character, loquacity(talkativeness), and sociability.

4-Particularities of air element people are juridical, reasonable arguments and explanations. Therefore air element is associated with thinking and imagination. People of air element live in the world of ideas, thoughts and associations. They like to operate with logic arguments and possess clear, sober judgment.

IN NUTSHELL;WATER IS EMOTION ,FIRE IS ACTION ,AIR IS KNOWLEDGE...And all of them are complement of each other.. Their behaviour is according to their element.Neither try to change yourself nor others. Only,trust on your element and behave accordingly.

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क्या रहस्य है त्रिगुण और त्रिगुणातीत का ?

09 FACTS;-

1-तमस आधार है और सत्व शिखर ...इस भवन का जिसे हम जीवन कहें, तमस बुनियाद है, रजोगुण बीच का भवन है और सत्वगुण मंदिर का शिखर है।यह जीवन की व्यवस्था है।उदाहरण के लिए,बुद्ध, महावीर, मोहम्मद और जीसस जैसे महापुरुषों ने एक ही गुण को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। मोहम्मद और जीसस हैं.. तो रजोगुण उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम है। बुद्ध और महावीर हैं...तो सत्वगुण उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम है। लाओत्से और रमण हैं, तो तमस उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम है। परन्तु श्रीकृष्ण तीनों गुणों को एक सा ..अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग कर रहे हैं।

2-इस संसार में केवल 6 प्रकार के मनुष्य होते हैं...परन्तु श्रीकृष्ण परब्रह्म परमात्मा हैं ...उन्होंने तीनों गुणों का एक साथ प्रयोग किया है। जैसे तीनों गुणों की तीनों भुजाएं समान लंबाई की हैं;उसी प्रकार त्रिभुज की तीनों रेखाएं समान लंबाई की हैं।केवल श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व तीनों का संयुक्त जोड़ है--33.3 WATER,33.3 FIRE,33.3 AIR और इसलिए श्रीकृष्ण को समझना उलझन की बात है।

3-एक गुण वाले व्यक्ति को समझना बहुत आसान है। जिसमें दो गुण दबे हों, उसके व्यक्तित्व में एक संगति होगी, कसिस्टेंसी होगी। लाओत्से के व्यक्तित्व में जैसी कसिस्टेंसी, संगति है, वैसी श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में नहीं है।लाओत्से का जो स्वाद एक शब्द में है, वही सारे शब्दों में है। बुद्ध के वचनों में एक संगति है, गहन संगति है। बुद्ध ने कहा है, जैसे तुम सागर को कहीं से भी चखो, वह खारा है, वैसे ही तुम मुझे कहीं से भी चखो, मेरा स्वाद एक है। जीसस या मोहम्मद, इन सबके स्वाद एक हैं।

4-लेकिन आप अनेक स्वाद श्रीकृष्ण में ले सकते हैं, तीन तो निश्चित ही ले सकते हैं। और चूंकि तीनों का मिश्रण हैं, इसलिए बहुत नए स्वाद भी उस मिश्रण से पैदा हुए हैं। इसलिए श्रीकृष्ण का रूप बहुरंगी है। और कोई भी व्यक्ति श्रीकृष्ण को पूरा प्रेम नहीं कर सकता, उसमें चुनाव करेगा। जो पसंद होगा, वह बचाएगा; जो नापसंद है, उसे काट देगा।

इसलिए अब तक श्रीकृष्ण के ऊपर जितनी भी व्याख्याएं हुई हैं, सब चुनाव की व्याख्याएं हैं। 5-न तो आदि शंकराचार्य श्रीकृष्ण को पूरा स्वीकार करते हैं, न रामानुज, न निंबार्क, न वल्लभाचार्य, न तिलक, न गांधी, न अरविंद, कोई भी श्रीकृष्ण को पूरा स्वीकार नहीं करता। उतने हिस्से श्रीकृष्ण में से काट देने पड़ते हैं, जो असंगत मालूम पड़ते हैं, विरोधाभासी मालूम पड़ते हैं, जो एक-दूसरे का खंडन करते हुए प्रतीत मालूम पड़ते हैं।

6-उदाहरण के लिए गांधीजी अहिंसा को इतना मूल्य देते हैं तो श्रीकृष्ण अर्जुन को हिंसा के लिए उकसावा दे रहे हैं, यह उनके लिए अड़चन की बात हो जाएगी। गांधीजी सत्य को परम मूल्य देते हैं, श्रीकृष्ण झूठ भी बोल सकते हैं, यह गांधीजी की समझ के बाहर है। श्रीकृष्ण धोखा भी दे सकते हैं, यह गांधीजी का मन स्वीकार नहीं करेगा। और अगर श्रीकृष्ण ऐसा कर सकते हैं, तो गांधीजी के लिए श्रीकृष्ण पूज्य न रह जाएंगे।

7-तो एक ही उपाय है कि गांधी जी किसी तरह समझा लें कि श्रीकृष्ण ने ऐसा किया नहीं है। या तो यह कहानी है, प्रतीकात्मक /सिंबालिक है। गांधी जी के हिसाब से यह जो युद्ध है महाभारत का, यह वास्तविक युद्ध नहीं है । ये कौरव और पांडव असली मनुष्य नहीं हैं, जीवित मनुष्य नहीं हैं, ये सिर्फ प्रतीक हैं बुराई और भलाई के। और युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है, मनुष्यों के बीच नहीं। पूरी कथा है, एक पैरेबल है, तब फिर गांधी जी को अड़चन नहीं है। बुराई को मारने में अड़चन नहीं है, बुरे आदमी को मारने में गांधी को अड़चन है। अगर सिर्फ बुराई को काटना हो, तो कोई हर्जा नहीं है।

8-लेकिन अगर बुराई को ही काटना होता, तो अर्जुन को भी कोई सवाल उठाने का कारण नहीं था। सवाल तो इसलिए उठ रहा था कि बुरे आदमी को काटना है। सवाल तो इसलिए उठ रहा था कि उस तरफ जो बुरे लोग हैं, वे अपने ही हैं, निजी संबंधी हैं। उनसे ममत्व है, उनसे राग है, और उनके बिना दुनिया अधूरी और बेमानी हो जाएगी।तीन गुण एक साथ हैं,तो असंगति

पैदा करेंगे।श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व असंगत ही महसूस होगा।तीनों गुण व्यक्ति में हैं।

और व्यक्तित्व की पूर्णता तभी होगी, जब तीनों गुण अभिव्यक्ति में उपयोग में ले लिए जाएं, उनमें से कोई भी दबाया न जाए। और जो भी व्यक्तित्व में है, उसका सृजनात्मक उपयोग हो जाना चाहिए।

9-श्रीकृष्ण दमन के पक्ष में नहीं हैं ;उन्होंने पूर्ण शिवत्व धारण किया है ,इसलिए उनका हर निर्णय सही है।परन्तु पूर्ण शिवत्व धारण न करने वाला उन्हें नहीं समझ सकता।

सामान्य मनुष्य के लिए एक और भी संभावना है ...तीनों गुणों का एक साथ नहीं, एक-एक गुण का अलग-अलग प्रयोग। इस प्रक्रिया में तीनों गुणों को एक साथ अभिव्यक्ति के लिए न चुनकर तीन अलग-अलग कालखंडों में एक-एक गुण को अभिव्यक्ति के लिए चुनना है!

क्या अर्थ है तीनों गुणों के अलग-अलग प्रयोग का?-

03 FACTS;-

1-WATER ELEMENT/EMOTION/BHAKTIYOG/तमस;-

16 FACTS;-

1-तमस आधारभूत है, बुनियाद में है।बच्चा पैदा होता है मां के गर्भ से, तो नौ

महीने मां के गर्भ में बच्चा तमस में होता है, गहन अंधकार में होता है। कोई क्रिया नहीं होती, परम आलस्य होता है। श्वास लेने तक की क्रिया बच्चा स्वयं नहीं करता, वह भी मां ही करती है। भोजन लेने की बच्चे में खून भी प्रवाहित होता है, तो वह भी मां का ही खून रूपांतरित होता रहता है। बच्चा अपनी तरफ से कुछ भी नहीं करता है।अक्रिया की ऐसी अवस्था

परिपूर्ण तमस की अवस्था है। बच्चा है, प्राण है, जीवन है, लेकिन जीवन किसी तरह का कर्म नहीं कर रहा है। गर्भ की अवस्था में अकर्म पूरा है।

2-मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मोक्ष की तलाश, स्वर्ग की आकांक्षा, निर्वाण की खोज, सिर्फ इसीलिए पैदा होती है कि हर व्यक्ति ने अपने गर्भ के क्षण में एक ऐसा अक्रिया से भरा हुआ क्षण जाना है, इतना शून्यता से भरा हुआ अनुभव किया है। वह स्मृति में टंगा हुआ है, वह आपके गहरे में छिपा है वह अनुभव जो नौ महीने गर्भ में हुआ। वह इतना सुखद था, क्योंकि जब कुछ भी न करना पड़ता हो, कोई दायित्व न हो, कोई जिम्मेवारी न हो, कोई बोझ न हो, कोई चिंता न हो, कोई काम न हो, सिर्फ आप थे, जस्ट बीइंग, सिर्फ होना मात्र था! जिसको हम मोक्ष कहते हैं, वैसी ही करीब -करीब अवस्था मां के गर्भ में थी। वही अनुभूति आपके भीतर छिपी है।

3-इसलिए जीवन में आपको कहीं भी सुख नहीं मिलता और हर जगह आपको कमी मालूम पड़ती है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यह तभी हो सकता है, जब आपके अनुभव में कोई ऐसा बड़ा सुख रहा हो, जिससे आप तुलना कर सकें।हर आदमी कहता है, जीवन में दुख है।

सुख का आपको अनुभव न हो, तो दुख की आपको प्रतीति कैसे होगी? और हर आदमी कहता है कि कोई सुख की खोज करनी है। किस सुख की खोज कर रहे हैं? जिसका कभी स्वाद न लिया हो, उसकी खोज भी कैसे करिएगा? और जिससे हमारा कोई परिचय नहीं है, उसकी हम जिज्ञासा कैसे करेंगे?

4-हमारे अचेतन में जरूर कोई अनुभव की किरण है, कोई बीज है छिपा हुआ है, कोई आनंद हमने जाना है, कोई स्वर्ग हमने जीया है, कोई संगीत हमने सुना है। कितना ही विस्मृत हो गया हो, लेकिन हमारे रोएं-रोएं में वह प्यास छिपी है, और वह खबर छिपी है, हम उसकी ही

खोज कर रहे हैं।मोक्ष की खोज एक विराट गर्भ की खोज है। और जब तक यह सारा अस्तित्व हमारा गर्भ न बन जाएगा, तब तक यह खोज जारी रहेगी।

5-यह बात बड़ी कीमती है, बहुत अर्थपूर्ण है। लेकिन इस संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि बच्चा नौ महीने अपने मां के गर्भ में ठीक तमस में पड़ा है। वहां न तो राजसी होने का सवाल है, न सात्विक होने का सवाल है, गहन तम में पड़ा है. गहन आलस्य है। बस सोया है, चौबीस घंटे सो रहा है। नौ महीने की लंबी नींद है।फिर जैसे ही बच्चा पैदा होता है,

तो फिर बाईस घंटे सोएगा, फिर बीस घंटे, फिर अठारह घंटे, धीरे -धीरे जागेगा। वर्षों लग जाएंगे, तब वह आकर आठ घंटे की नींद पर ठहरेगा।

6-और जन्मों लग जाएंगे, जब नींद बिलकुल शून्य हो जाएगी, और वह परिपूर्ण जागरूक हो जाएगा कि निद्रा में भी जागता रहे। जिसको श्रीकृष्ण कहते हैं, जब सभी सोते हैं, तब भी योगी जागता है। इसके लिए जन्मों की यात्रा होगी।एक बड़े मजे की बात है कि अगर

आप जरूरत से ज्यादा सोए, तो सोने में जागरण निर्मित होने लगता है। अगर आप जरूरत से कम सोए, तो नींद एक मूर्च्छा होगी। अगर आप जरूरत से ज्यादा सोए, तो सो तो नहीं सकते। शरीर की जरूरत पूरी हो जाती है।

7-धीरे -धीरे शरीर की कोई जरूरत नहीं रह जाती और आप सोए हुए हैं, तो भीतर कोई

जागकर देखने लगता है।अगर आप छत्तीस घंटे पड़े हुए सोए रहें, तो आपको थोड़ी -सी झलक मिलेगी उस बात की, जिसको श्रीकृष्ण कह रहे हैं, 'तस्याम जागर्ति संयमी'। क्योंकि नींद की कोई शरीर को जरूरत न रह जाएगी। और शरीर को आप नींद की अवस्था में पड़ा रहने दें। तो भीतर से जागरण का स्वर शुरू हो जाएगा।

8-ध्यान रहे, जिस तत्व को भी आप साधना बना लें, थोड़े दिन में उसके पार आप चले ही जाएंगे। साधना का मतलब ही ट्रासेंडेंस है, अतिक्रमण है। और जिसको भी आप पूरी तरह भोग लें, आप उसके भीतर नहीं रह सकते। अगर आप आलस्य को भी पूरी तरह भोग लें, आप अचानक पाएंगे कि आलस्य विदा हो गया। जिससे मुक्त होना हो, उसे पूरा भोग लेना जरूरी है।

9-जिंदगी बहुत रहस्यपूर्ण है।अगर आप जगत से छीनने -झपटने जाएं, तो हर जगह प्रतिरोध है। और अगर आप कुछ न करने की हालत में हों, तो सब द्वार आपको देने को खुल जाते हैं।करने का भाव ही न हो, तो बहुत सी चीजें सहज स्वीकार हो जाती हैं और जिंदगी में असंतोष की मात्रा एकदम नीचे गिरने लगती है।क्योंकि जब आप कुछ कर ही न रहे हों, तो आपकी कोई मांग नहीं रह जाती और फल का भी कोई सवाल नहीं है... तो जो भी मिल जाए।

अगर आप अपने मकान की सीलिंग को ही देखते हुए दो घंटे पड़े रहें , तो आप पाएंगे, चित्त आकाश जैसा कोरा हो जाता है, शून्य हो जाता है।

10-अगर आलस्य को कोई साधना बना ले, तो शून्य की अनुभूति बड़ी सहज हो जाती है।

आलसी के लिए अनीश्वरवाद संगत है। क्योंकि अगर ईश्वर है, तो काम शुरू हो गया। फिर कुछ करना पड़ेगा। अगर आत्मा है, तो कुछ करना पड़ेगा।लेकिन कुछ न करते हुए,

बिना ईश्वर और आत्मा को मानते हुए, उस चुपचाप पड़े रहने में ही उस सब की झलक मिलनी शुरू हो जाती है , जिसको हम आत्मा कहें, ईश्वर कहें। और तब तक तमस को नहीं छोड़े, जब तक तमस हमे न छोड दे।

11-अगर आप तमस को ठीक से जी लें, तो उसके बाद रजोगुण अपने आप पैदा हो जाएगा। क्योंकि वह दूसरा गुण है, जो आपकी दूसरी मंजिल में छिपा हुआ है। पहली मंजिल पूरी हो गई; आप सीढ़ियां पार कर आए, रजोगुण शुरू हो जाएगा। आपमें सक्रियता का उदय होगा।

लेकिन यह सक्रियता बहुत अनूठी होगी। यह सक्रियता राजनीतिज्ञ की विक्षिप्तता नहीं होगी। अगर आलस्य को आपने साधना बनाया हो और आलस्य आपका शून्यता में जाने का द्वार बना हो, तो यह सक्रियता वासना की सक्रियता नहीं हो सकती, करुणा की ही हो सकती है। यह सक्रियता अब एक बांटने का काम होगी।

12-तो उस सक्रियता को भी पूरी तरह जी लिया। बीच में कुछ बाधा न डालना ..जो भी हो रहा हो, उसे होने देना और ऐसे अगर कोई होने दे, तो बहुत जल्दी गुणातीत हो जाएगा।

क्योंकि तब स्वयं करने वाला नहीं रह जाता, गुण ही करने वाले रह जाते हैं। वह आलस्य का गुण था, जिसने अपने को पूरा कर लिया।फिर रजोगुण था।लेकिन जब सारी मनुष्यता

एक विक्षिप्तता में पड़ा हो,, और अगर आपको भी दौड़ना हो उस मनुष्यता के बीच, तो खेल के लिए ही सही, आपको कुछ उपद्रव अपने आस -पास निर्मित कर लेने चाहिए, कुछ विवाद खड़े कर लेने चाहिए।

13-अगर कर्म की विक्षिप्तता से वे पैदा हो , तो उनसे दुख पैदा होता। लेकिन सिर्फ रजोगुण के निकास की भांति, अभिव्यक्ति की भांति वे है , तो उन सबमें एक खेल है और रस है। वे विवाद एक अभिनय से ज्यादा नहीं है ।पर रजोगुण को पूरा निकल जाने देना जरूरी है।

कर्म के प्रतिकर्म पैदा होते हैं, किया से प्रतिक्रिया जन्मती है।रजोगुण को जलाने का

एक ही उपाय है , कि वह भभक कर जले। वह पूरा का पूरा अंगारा बन जाए, तो जल्दी राख हो जाएगा। जितने धीरे -धीरे जलेगा, उतना समय लेगा। इकट्ठा जल जाए, पूर्णता से जले, तो जल्दी राख हो जाएगा।

14-और जैसे साझ को सूरज अपनी सारी किरणों को सिकोड़ ले..और जैसे सांझ को

मछुआ अपने जाल को निकाल ले, ऐसे हीं सब सिकुड़ जाएगा।क्योंकि तीसरा

तत्व शुरू होगा। तो जैसे -जैसे रजोगुण पूरा फिंक जाता है और सत्य की प्रक्रिया शुरू होती है, वैसे -वैसे सभी क्रियाएं फिर शून्य हो जाएंगी।तमोगुण में भी सारी क्रियाएं शून्य होती हैं।

लेकिन वह शून्यता निद्रा जैसी होती है। सत्वगुण में भी सारी क्रियाएं शून्य हो जाती हैं। लेकिन वह शून्यता जागरूकता जैसी होती है।

15-तमस और सत्य में एक समानता है कि दोनों शून्य होंगे। तमस का रूप निद्रा जैसा होगा; सत्य का रूप जागरण जैसा होगा।और ये जीवन की ठीक प्रक्रिया हैं कि जीवन का प्रथम

चरण तमस में गुजरे, द्वितीय चरण रज में गुजरे, तृतीय चरण सत्व में गुजरे। और तीनों चरण में आप अपने को अलग रखने की कोशिश में लगे रहें, तो आप साधना में हैं। और तीनों चरणों में आप जानते रहें कि यह मैं नहीं कर रहा हूं ये गुण कर रहे हैं। यह मुझसे नहीं हो रहा है; मैं सिर्फ देखने वाला हूं मैं सिर्फ साक्षी हूं। जब आलस्य हो तब भी, जब कर्म हो तब भी, जब सत्य हो तब भी। मैं सिर्फ देखने वाला हूं मैं मात्र द्रष्टा हूं। ऐसी प्रतीति बनी रहे, तो तीनों गुण चुक जाएंगे.. अपने से और आप गुणातीत में ठहर जाएंगे।

16-वास्तव में,पहुंचना है तीनों के पार....साढ़े तीन में --.5 में।त्रिगुण(.5 )हैं और दूसरा वह परब्रह्म (.5 ) हैं ;वह जहां कोई भी नहीं है, जहां तीनों नहीं हैं।श्रीकृष्ण ने तीनों को

इकट्ठा व्यक्त किया है ।जो तीनों को अलग-अलग एक-एक परिधि में बांटकर उपयोग करेगा ;उसकी बातों में असंगति मिलेगी। क्योंकि तीन अलग गुणों के माध्यम से वे बातें प्रकट हुई हैं। जो तमस के क्षणों में कहा है और जीया है, उसका रजस के क्षणों से कोई मेल नहीं बैठेगा। और जो रजस के क्षणों में कहा है, उसका सत्व के क्षणों में कही गई बातों से बहुत विरोध हो जाएगा।और तीनों के बीच संगति असंभव जैसी है क्योंकि

केवल श्रीकृष्ण ही ऐसा कर सकते है...वे परमात्मा हैं। ''प्रकृति के इन तीन गुणों को निकालकर निर्मल हो जाएगा, तब तू परमात्मा बन जाएगा!'' क्या कारण था कि हजारों-लाखों गोपियां श्रीकृष्ण के पीछे दीवानी थीं?-

NEXT..

....SHIVOHAM...


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