top of page

Recent Posts

Archive

Tags

क्या है आध्यात्मिक रहस्य ..तंत्र विद्या ...




आध्यात्मिक रहस्य ..तंत्र विद्या ;-

05 FACTS;-

1-हिंदू धर्म में हजारों तरह की विद्याओं और साधनाओं का वर्णन मिलता है। साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उससे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ। मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं- तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना। चारों ही तरह की साधना के कई उप प्रकार हैं। सवाल यह है कि तंत्र साधना क्या है?तंत्र विद्या, साधना या तंत्र शास्त्र का नाम सुनते ही लोगों में भय व्याप्त हो जाता है।माना जाता है कि यह कोई भयानक विद्या या अघोरियों की साधना होगी। लेकिन ऐसा नहीं है।अघोर साधना अलग होती है और तंत्र साधना अलग। तंत्र, मंत्र और यंत्र में तंत्र को सबसे पहले रखा गया है। तंत्र एक रहस्यमयी विद्या है।हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध और जैन धर्म में भी इस विद्या का प्रचलन है।तंत्र एक प्रक्रिया है जिससे हम अपनी आत्मा और मन को बंधन मुक्त करते हैं। इस प्रक्रिया से शरीर और मन शुद्ध होता है, और ईश्वर का अनुभव करने में सहायता हो। तंत्र की प्रक्रिया से हम भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की हर समस्या का हल निकाल सकते हैं।एक व्यक्ति तंत्र की सही प्रक्रिया से मष्तिष्क का पूरा इस्तेमाल कर पाता है और अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन जाता है।

2-लोग अकसर आध्यात्मिक रहस्य और तंत्र-मंत्र-विद्या(ऑकल्ट) को एक ही बात समझने की गलती कर बैठते हैं। लोग सोचते हैं कि आध्यात्मिक रहस्य का मतलब कुछ जादुई करतब करना होता है। यदि आप इस धरती के सबसे महान रहस्यवादी और दिव्यदर्शी-आदियोगी,की भी बात करें, तो स्वयं उन्होंने भी एक बार भी कोई जादुई करतब नहीं किया। उन्होंने तो बस अपने थोड़े-से चहेते लोगों तक अपनी बात पहुंचाई। वे इस धरती के एक आम इंसान की तरह रहे।आप कह सकते हैं कि ऑकल्ट या तंत्र-मंत्र एक तरह से टेक्नालॉजी है और आध्यात्मिक रहस्य विज्ञान है।तंत्र एक शुद्ध विद्या है।इसमें मन का शुद्धिकरण आवश्यक है।काला जादू, पिशाच विद्या... यह सब अलग है। इनका तंत्र से कोई लेना देना नहीं है।लोग तंत्र को गलत समझते हैं।वास्तव में तंत्र की परिभाषा ही नहीं जानते।तंत्र को पिशाच विद्या और काला जादू से जोड़ देते हैं।इस संसार में सब का लेना देना हैं।अगर किसी के साथ गलत करोगे तो तुम्हारे साथ भी गलत ही होगा।

3-विज्ञान का असली मकसद यह जानना है कि इस अस्तित्व का स्वरूप कैसा है। लेकिन आज ज्यादातर लोग विज्ञान को टेक्नालॉजी के रूप में ही जानते हैं। जरूरी नहीं है कि टेक्नालॉजी आपकी भलाई ही करे। यह आपको रसातल में भी गिरा सकती है, लेकिन हो सकता है आपको इसका अहसास भी नहीं हो, क्योंकि आप अपने तौर-तरीकों में इतने हाई-टेक हो चुके हैं कि आप यही समझते रह जाएंगे कि आप तो अच्छा कर रहे हैं।विज्ञान का मतलब तो यह होता है कि आप हर चीज की वास्तविकता को जानना चाह रहे हैं। आप जिंदगी को उसी रूप में समझना चाहते हैं जैसी कि वह वास्तव में है। लेकिन टेक्नालॉजी अक्सर अस्तित्व का दुरुपयोग ही करता है। टेक्नालॉजी एक बहुत अच्छी चीज है, जिसने भौतिक रूप से हमें कई तरह की आजादी दी है, लेकिन फिलहाल टेक्नालॉजी के बारे में हमारी सोच यह हो गई है कि हम किसी भी चीज को, बल्कि हर चीज को- यहां तक कि पूरे अस्तित्व को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर डालें- सब कुछ बस हमारे लिए है।

हमें पता है कि एक जीवाणु का इस्तेमाल कैसे करें, हम यह भी जानते हैं कि इस धरती के सारे संसाधन को कैसे पूरी तरह खर्च कर डालें– हमने हर चीज का इस्तेमाल सीख लिया है – लेकिन हम नहीं जानते कि हम स्वस्थ और प्रसन्न कैसे रहें।तंत्र-मंत्र तब होगा जब आप ब्लू टूथ के बिना भी बात कर सकें। यह एक अलग स्तर की टेक्नालाजी है, पर है भौतिक ही। यह सब करने के लिए आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं।

4-टेक्नालाजी चाहे जो हो, आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। आम तौर पर आप अपनी सेवा के लिए दूसरे पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक सेलफोन या किसी भी टेक्नालाजी के उत्पादन के लिए जिन बुनियादी पदार्थों का उपयोग होता है, वे शरीर, मन और ऊर्जा ही होते हैं।शुरू-शुरू में फोन तैयार करने के लिए आपको तरह-तरह के सामान की जरूरत होती थी। अब हम लगातार इस सामान की मात्रा घटाने की कोशिश कर रहे हैं। एक दिन ऐसा आएगा, जब हमें किसी भी सामान की जरूरत नहीं पड़ेगी – यह होगा तंत्र-मंत्र। आधुनिक विज्ञान और तंत्र-मंत्र कहीं-न-कहीं जरूर मिलेंगे अगर कौन क्या है इसकी समझ में थोड़े फेरबदल हो जाए। भौतिक का अनेक प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर अगर आप इनफार्मेशन टेक्नालाजी को लें, तो जो चीज पत्थर के टैबलेट से शुरू हुई, वह अब एक बहुत ही छोटे-से चिप तक पहुंच चुकी है। जिस के लिए पूरे पहाड़ को तराशने की जरूरत होती, आज एक बहुत ही छोटा-सा चिप उसके लिए काफी है। भौतिक वस्तु अब सूक्ष्म हो चली है। जब हम भौतिक के सूक्ष्मतम आयाम का उपयोग करते हैं, तो उसको तंत्र-मंत्र कहते हैं।दुनिया के कई हिस्सों में तंत्र-मंत्र को आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो कि ठीक नहीं है। जब हम आध्यात्मिक कहते हैं, तो भौतिकता के पार जाने की बात करते हैं, आपके भीतर एक ऐसी अनुभूति लाने के लिए जो भौतिक की नहीं है। पर भौतिक के सूक्ष्मतम आयामों का उपयोग करने के बावजूद तंत्र-मंत्र है तो भौतिक ही।जैसे-जैसे आधुनिक टेक्नालाजी सूक्ष्म और सूक्ष्म होती जाएगी, तंत्र-मंत्र की जरूरत कम होती जाएगी।

5-आध्यात्मिक रहस्य विज्ञान जैसा है। आध्यात्मिक रहस्य वास्तव में यह जानने का एक तरीका है कि अस्तित्व क्या है, आपकी अपनी प्रकृति क्या है, और आप जिसको “मैं” और जिसको ब्रह्मांड कहते हैं, उन दोनों के बीच क्या संबंध है। आध्यात्मिक रहस्य यह जानने और महसूस करने का तरीका है कि ‘मैं’ और ब्रह्मांड जैसा कुछ नहीं है, सिर्फ मैं हूं, या फिर सिर्फ ब्रह्मांडीय गूंज है। इसको ज्ञान, सिद्धांत या दर्शन के तौर पर नहीं, बल्कि एक जीवंत वास्तविकता के रूप में जानना ही आध्यात्मिक रहस्य है।हमें तृप्ति जीवन के किसी काम से नहीं, बल्कि अनुभव की गहराई से मिलती है।जब कोई इंसान उस अवस्था तक पहुंच जाता है, जहां उसे कुछ भी लेने की जरूरत नहीं रह जाती, तभी आध्यात्मिक रहस्य संभव हो पाता है। यह उन लोगों के लिए नहीं है, जो ये सोचते हैं कि इससे क्या मिलेगा या जो दुनिया को कुछ दिखाना चाहते हैं। यह तो ऐसे इंसान के लिए है, जो जिंदगी के एक ऐसे आयाम में पहुंच गया है, जहां न शरीर है, न मन, और न ही कोई बाहरी प्रभाव – है तो बस शुद्ध जिंदगी!जिंदगी हर चीज को छूना चाहती है – चाहे वो दृश्य हो चाहे अदृश्य। इस ललक के तृप्त होने का ही नाम है आध्यात्मिक रहस्य।

तंत्र विद्या के रहस्य...

10 FACTS;-

1-तंत्र में शरीर है महत्वपूर्ण : -

साधारण अर्थ में तंत्र का अंर्थ तन से, मंत्र का अर्थ मन से और यंत्र का अर्थ किसी मशीन या वस्तु से होता है। तंत्र का एक दूसरा अर्थ होता है व्यवस्था। तंत्र मानता है कि हम शरीर में है यह एक वास्तविकता है। भौतिक शरीर ही हमारे सभी कार्यों का एक केंद्र है। अत: इस शरीर को हर तरह से तृप्त और स्वस्थ रखना अत्यंत जरूरी है। इस शरीर की क्षमता को बढ़ाना जरूरी है। इस शरीर से ही अध्यात्म को साधा जा सकता है। योग भी यही कहता है।तंत्र का मांस, मदिरा और काम से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है, जो व्यक्ति इस तरह के घोर कर्म में लिप्त है, वह कभी तांत्रिक नहीं बन सकता। तंत्र को इसी तरह के लोगों ने बदनाम कर दिया है। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अंतर्मुखी होकर साधनाएं की जाती हैं।

2-तंत्र के ग्रंथ : -

तंत्र को मूलत: शैव आगम शास्त्रों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इसका मूल अथर्ववेद में पाया जाता है। तंत्र शास्त्र 3 भागों में विभक्त है आगम तंत्र, यामल तंत्र और मुख्‍य तंत्र। आगम में शैवागम, रुद्रागम और भैरवागमन प्रमुख है।वाराहीतंत्र के अनुसार जिसमें सृष्टि प्रलय, देवताओं की पूजा, सत्कर्यों के साधन, पुरश्चरण, षट्कर्मसाधन और चार प्रकार के ध्यानयोग का वर्णन हो उसे 'आगम' कहते हैं। जिसमें सृष्टितत्त्व, ज्योतिष, नित्य कृत्य, क्रम, सूत्र, वर्णभेद और युगधर्म का वर्णन हो उसे 'यामल' कहते हैं। इसी तरह जिसमें सृष्टि, लय, मन्त्र, निर्णय, तीर्थ, आश्रमधर्म, कल्प, ज्योतिषसंस्थान, व्रतकथा, शौच-अशौच, स्त्रीपुरुषलक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युगधर्म, व्यवहार तथा आध्यात्मिक नियमों का वर्णन हो, वह 'मुख्य तंत्र' कहलाता है।वाराही तंत्र के अनुसार तंत्र के नौ लाख श्लोकों में एक लाख श्लोक भारत में हैं। तंत्र साहित्य विस्मृति के चलते विनाश और उपेक्षा का शिकार हो गया है। अब तंत्र शास्त्र के अनेक ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं। वर्तमान में प्राप्त सूचनाओं के अनुसार 199 तंत्र ग्रंथ हैं। तंत्र का विस्तार ईसा पूर्व से तेरहवीं शताब्दी तक बड़े प्रभावशाली रूप में भारत, चीन, तिब्बत, थाईदेश, मंगोलिया, कंबोज आदि देशों में रहा। तंत्र को तिब्बती भाषा में ऋगयुद कहा जाता है। समस्त ऋगयुद 78 भागों में है जिनमें 2640 स्वतंत्र ग्रंथ हैं। इनमें कई ग्रंथ भारतीय तंत्र ग्रंथों का अनुवाद है और कई तिब्बती तपस्वियों द्वारा रचित है।

3-रहस्यमयी विद्याएं :-

तंत्र में बहुत सारी विद्याएं आती है उसी में एक है गुह्य-विद्या। गुह्य का अर्थ है रहस्य। तंत्र विद्या के माध्‍यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है। यही तंत्र का उद्देश्य है। इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विद्या का जन्म हुआ है। तंत्र से वशीकरण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन और स्तम्भन क्रियाएं भी की जाती है।इसी तरह मनुष्य से पशु बन जाना, गायब हो जाना, एक साथ 5-5 रूप बना लेना, समुद्र को लांघ जाना, विशाल पर्वतों को उठाना, करोड़ों मील दूर के व्यक्ति को देख लेना व बात कर लेना जैसे अनेक कार्य ये सभी तंत्र की बदौलत ही संभव हैं। तंत्र शास्त्र के मंत्र और पूजा अलग किस्म के होते हैं।

4-तांत्रिक गुरु : -

तंत्र के प्रथम उपदेशक भगवान शंकर और उसके बाद भगवान दत्तात्रेय हुए हैं। बाद में सिद्ध, योगी, शाक्त और नाथ परंपरा का प्रचलन रहा है। तंत्र साधना के प्रणेता, शिव, दत्तात्रेय के अलावा नारद, परशुराम, पिप्पलादि, वसिष्ठ, सनक, शुक, सन्दन, सनतकुमार, भैरव, भैरवी, काली आदि कई ऋषि मुनि इस साधना के उपासक रहे हैं।ब्रह्मयामल में बहुसंख्यक ऋषियों का नामोल्लेख है, जिसमें शिव ज्ञान के प्रवर्तक थे; उनमें उशना, बृहस्पति, दधीचि, सनत्कुमार, नमुलीश आदि उल्लेख मिलता है। जयद्रथयामल के मंगलाष्टक प्रकरण में तन्त्र प्रवर्तक बहुत से ऋषियों के नाम हैं, जैसे दुर्वासा, सनक, विष्णु, कस्प्य, संवर्त, विश्वामित्र, गालव, गौतम, याज्ञवल्क्य, शातातप, आपस्तम्ब, कात्यायन, भृगु आदि।

5-तंत्र से हथियार :-

तंत्र के माध्यम से ही प्राचीनकाल में घातक किस्म के हथियार बनाए जाते थे, जैसे पाशुपतास्त्र, नागपाश, ब्रह्मास्त्र आदि। जिसमें यंत्रों के स्थान पर मानव अंतराल में रहने वाली विद्युत शक्ति को कुछ ऐसी विशेषता संपन्न बनाया जाता है जिससे प्रकृति से सूक्ष्म परमाणु उसी स्थिति में परिणित हो जाते हैं जिसमें कि मनुष्य चाहता है।पदार्थों की रचना, परिवर्तन और विनाश का बड़ा भारी काम बिना किन्हीं यंत्रों की सहायता के तंत्र द्वारा हो सकता है। विज्ञान के इस तंत्र भाग को 'सावित्री विज्ञान' तंत्र-साधना, वाममार्ग आदि नामों से पुकारते हैं। तंत्र-शास्त्र में जो पंच प्रकार की साधना बतलाई गई है, उसमें मुद्रा साधन बड़े महत्व का और श्रेष्ठ है। मुद्रा में आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि योग की सभी क्रियाओं का समावेश होता है।

6-तांत्रिक साधना :-

तांत्रिक साधना को साधारणतया 3 मार्ग- वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग और मध्यम मार्ग कहा गया है। हालांकि यह मुख्यत: दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।

इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है अर्थात: मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।

7-तंत्र के प्रतीक :-

त्रिकोण से बनाए गए स्टार के बीच स्वास्तिक या ॐ का चिन्हा, हाथों में लगाई जाने वाली मेहंदी, आंगन द्वारों पर चित्रित की जाने वाली अल्पना, बालक के संध्या काल पैदा होने पर लगाए जाने वाले स्वास्तिक और डलिया की आकृति, दीपावली और अन्य त्योहारों पर सजाई गई रंगोली आदि तंत्र के प्रतीक हैं। हालांकि तंत्र के और भी प्रतीक हैं जैसे योग की कुछ मुद्राएं, क्रियाएं आदि।

8-तंत्र साधना के देवी और देवता :-

तंत्र साधना में देवी काली, अष्ट भैरवी, नौ दुर्गा, दस महाविद्या, 64 योगिनी आदि देवियों की साधना की जाती है। इसी तरह देवताओं में बटुक भैरव, काल भैरव, नाग महाराज की साधना की जाती है। उक्त की साधना को छोड़कर जो लोग यक्षिणी, पिशाचिनी, अप्सरा, वीर साधना, गंधर्व साधना, किन्नर साधना, नायक नायिका साधान, डाकिनी-शाकिनी, विद्याधर, सिद्ध, दैत्य, दानव, राक्षस, गुह्मक, भूत, वेताल, अघोर आदि की साधनाएं निषेध है।

9- तांत्रिक मंत्र :

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं-

1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र।

तांत्रिकों के बीज मंत्रों में ह्नीं, क्लीं, श्रीं, ऐं, क्रूं आदि तरह के अक्षरों का उपयोग किया जाता है।जिस भी मंत्र में प्रारंभ में इस तरह के अक्षर होते हैं वे सभी तांत्रिक मंत्र होते हैं। एक अक्षर से पता चलता है कि यह किस देवता का मंत्र है जैसे लक्ष्मी माता के लिये श्रीं का उपयोग करते हैं। काली माता के लिये क्रीं का।

तंत्रिक मंत्रों में भी

एकाक्षरी (काली) मंत्र ॐ क्रीं,

तीन अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं॥,

पांच अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट्॥,

षडाक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं कालिके स्वाहा॥,

सप्ताक्षरी काली मंत्र ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा॥,

श्री दक्षिणकाली पूर्ण मंत्र;-

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं॥

या

ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

कैसे करें तांत्रिक साधना ? -

सबसे पहली बात तो यह कि आप क्यों तंत्र साधना करना चाहते हैं? जब आपका यह 'क्यों' स्पष्ट हो जाए तब आप उक्त साधना से संबंधित किताबों का अध्ययन करें। किताबों का अध्ययन करने के बाद आप किसी योग्य तंत्र साधन को खोजे। संभव: यह आपको हिन्दू धर्म के संन्यासी समाज के मुख्‍य 13 अखाड़ों के संन्यासियों में मिल जाएंगे।जब यदि कोई योग्य साधक मिल जाता है तो उसके पास रहकर ही यह साधना सीखें और करें। यदि आप चार किताबें पढ़कर यह साधना करते हैं तो आप सावधान हो जाएं, क्योंकि इससे बुरा परिणाम हो सकता है।यदि आपका उद्येश्य इस साधना के माध्यम से किसी का बुरा करना है तब भी आप सावधान हो जाएंगे क्योंकि इसके परिणाम भी आप ही को भुगतने हो सकते हैं।

....SHIVOHAM...


Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page