ध्यान में अस्तित्व की उपस्थिति(BLISS OF MEDITATION) को कैसे अनुभव करें?
ध्यान में अस्तित्व की उपस्थिति;-
07 FACTS;-
1-देखना, सुनना और सोचना यह तीन महत्वपूर्ण गतिविधियां हैं। इन तीनों के घालमेल से ही चित्र कल्पनाएं और विचार निर्मित होते रहते हैं। इन्हीं में स्मृतियां, इच्छाएं, कुंठाएं, भावनाएं, सपने आदि सभी 24 घंटे में अपना-अपना किरदार निभाते हुए चलती रहती है। यह निरंतर चलते रहना ही बेहोशी है और इसके प्रति सजग हो जाना ही ध्यान है। साक्षी हो जाना ही ध्यान है। 2-दिमाग को विचारों से मुक्ति करना 'नो माइंड होना 'बहुत ही कठिन है लेकिन जो ऐसा करना शुरू कर देता है वह मन के पार चला जाता है। उदाहरणार्थ, एक वाक्य के कुछ शब्दों के बीच जो खाली स्थान होता है असल में वही सत्य है। उस खाली स्थान को बढ़ाने के लिए ही ध्यान की विधियां है।प्रत्येक व्यक्ति के लिए ध्यान की विधियां अलग-अलग होती है। लेकिन कुछ ध्यान ऐसे हैं जिनको सभी आजमा सकते हैं।
3-बहुत भीतरी कारण होते हैं जिनकी वजह से हमें पता नहीं चलता कि हम ध्यान में जाना नहीं चाहते हैं।ध्यान में स्वयं के संकल्प के अभाव के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है।इसलिए अगर ध्यान में जाने में बाधा पड़ती हो तो जानना कि आपके संकल्प में ही कमी है।दूसरी बात, ध्यान में अगर कोई कुतूहलवश जाना चाहता हो कि देखें क्या होता है...तो कभी नहीं जा सकेगा।
4-जिसे ऐसा लगा हो कि बिना ध्यान के मेरा जीवन व्यर्थ गया है।बिना ध्यान के मैंने देख लिया कि कुछ भी नहीं होता है और अब मुझे ध्यान में जाना ही है, ध्यान के अतिरिक्त अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं है--ऐसे निर्णय के साथ ही अगर जाएंगे तो जा सकेंगे। क्योंकि ध्यान बड़ी छलांग है। उसमें पूरी शक्ति लगा कर ही कूदना पड़ता है। कुतूहल में पूरी शक्ति की कोई जरूरत नहीं होती।वह कोई आपके जीवन की धारा नहीं है। उस पर आपका कोई जीवन टिकने वाला नहीं है।हम कुतूहलवश बहुत सी बातें कर लेते हैं।लेकिन ध्यान कुतूहल नहीं है।
5-अपने जीवन को एक बार देख लें कि बिना ध्यान के कुछ पाया तो नहीं है... धन पा लिया होगा, यश पा लिया होगा। फिर भी भीतर सब रिक्त और खाली है.. कुछ पाया नहीं है। हाथ अभी भी खाली हैं। और जिन्होंने भी जाना है, वे कहते हैं कि ध्यान के अतिरिक्त वह मणि, वह रतन , मिलता नहीं... जिसे पाने पर लगता है कि अब पाने की और कोई जरूरत न रही, सब पा लिया।
6-तो ध्यान को कुतूहल नहीं, मुमुक्षा--बहुत गहरी प्यास अगर बनाएंगे, तो ही प्रवेश कर पाएंगे।... ध्यान मनुष्य की आत्यंतिक संभावना है, आखिरी संभावना है। वह जो मनुष्य का बीज फूल बनता है, वही फूल है ध्यान, जहां मनुष्य खिलता है, उसकी पंखुड़ियां खुलती हैं और उसकी सुगंध परमात्मा के चरणों में समर्पित होती है।
7-कोई बीज फूल के संबंध में कितनी ही खबर सुन ले, तो भी फूल को नहीं जान पाएगा, जब तक कि टूटे नहीं और फूल न बन जाए। और फूल के संबंध में सुनी गई खबरों में फूल की सुगंध ,फूल का खिलना और वह आनंद, वह एक्सटैसी, वह समाधि नहीं हो सकती है। बीज कितनी ही खबरें सुने फूलों के बाबत, बीज को कुछ भी पता न चलेगा, जब तक स्वयं न टूटे, अंकुरित न हो, बड़ा न हो, आकाश में पत्तों को न फैलाए, सूरज की किरणों को न पीए और खिलने की तरफ स्वयं न बढ़े।
त्राटक विधि;-
05 FACTS;-
1-यह विधि आंतरिक संवेदना पर आधारित है।पहले अपनी संवेदन-शक्ति को बढ़ाएं।पहले नहा लें, अपनी आंखों पर ठंडा पानी फेंकें, फिर प्रार्थनापूर्ण भाव से मोमबती के सामने बैठें। अपने द्वार बंद कर लें, कमरे में अंधेरा कर लें और मोमबत्ती जला लें। मोमबत्ती के पास प्रेमपूर्वक बैठ जाएं--बल्कि प्रार्थनापूर्ण भाव से।
2-इसे देखें, शेष सब भूल जाएं। बस इस छोटी सी मोमबत्ती को--मोमबत्ती व उसकी ज्योति को। इसे निहारते रहें। पांच मिनट में तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि मोमबत्ती की लौ में बहुत कुछ बदल रहा है। ध्यान रहे, मोमबत्ती की लौ में कुछ नहीं बदला, वह सब कुछ तुम्हारी आंखों में बदल रहा है।
3-प्रेमपूर्ण भाव से, पूरे संसार को बाहर रखे हुए, संपूर्ण एकाग्रता से, प्रेमपूर्ण हृदय से मोमबत्ती व उसकी लौ को निहारते रहें। तुम लौ के आस-पास नये रंग पाओगे-- ऐसे रंग, जो पहले तुम कभी नहीं देख पाए। वे वहीं हैं, पूरा इंद्रधनुष वहां है। जहां प्रकाश है, वहां इंद्रधनुष है क्योंकि प्रकाश ही रंग है। एक सूक्ष्म संवेदना चाहिए। इसे अनुभव करें और इसे निहारते रहें। भले ही आंसू बहने लगें, इसे निहारते रहें। ये आंसू आंखों को ताज़गी देने में सहायक होंगे।
4-संवेदना का बढ़ना आवश्यक है। तुम्हारी प्रत्येक संवेदना और अधिक सजीव हो जानी चाहिए। तभी तुम इस विधि का प्रयोग कर सकते हो। "ब्रह्मांड को निरंतर-सजीव आलोकित सत्ता के रूप में अनुभव करें।" चारों ओर प्रकाश है...सभी प्रकार के रूपों व आकारों में, चारों ओर प्रकाश घट रहा है। ज़रा देखें... चारों ओर प्रकाश है क्योंकि इस पूरी घटना की बुनियाद में प्रकाश है। एक पत्ते को, एक फूल को, एक पत्थर को देखो, देर-सबेर इनमें से किरणें निकलती दिखाई देंगी। धैर्य रखें, शीघ्रता न करें क्योंकि शीघ्रता में कभी भी कुछ उजागर नहीं होता है।
5-धैर्यपूर्वक किसी भी बात की प्रतीक्षा करें, तुम एक नयी घटना पाओगे जो सदा से वहीं थी बस तुम सचेत नहीं थे ...सजग नहीं थे। तुम्हारा मन पूर्णतया शांत हो जाएगा ज्यों ही तुम चिर-निरंतर के अस्तित्व को अनुभव करोगे। तुम बस उसका एक छोटा सा अंश हो, उस महासंगीत का छोटा सा स्वर।कोई बोझ, कोई तनाव नहीं…बूंद सागर में समा गई।
लेकिन शुरू में एक बड़ी कल्पना की आवश्यकता होगी, और संवेदना का प्रशिक्षण भी सहायक होगा।
NOTE;-
ये सब विधियां तुम्हारे शरीर के रसायन को बदल देंगी। यदि तुम अनुभव करते हो कि सारा जगत जीवन व प्रकाश से भर गया है तो तुम्हारे शरीर का रसायन बदलने लगा। और यह एक श्रृंखला है। जब तुम्हारे शरीर का रसायन बदलता है तो तुम जगत को देख सकते हो, यह और अधिक सजीव दिखाई देने लगेगा। और यदि यह अधिक सजीव दिखाई देता है तो तुम्हारे शरीर का रसायन और बदलेगा और तब यह एक श्रृंखला बनती चली जाएगी।
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रहस्यमयी आभामण्डल ध्यान (पांच सप्ताह के लिए)
05 FACTS;-
1-पहला चरण:-
पहले सात दिन तक बिस्तर पर लेटकर या बैठकर, बत्ती बुझाओ और अंधेरे में रहो।
2-दूसरा चरण:-
05 POINTS;-
1-सात दिन के बाद ;आठवें दिन..किसी सुंदर क्षण का स्मरण करो जिसे आपने अतीत में अनुभव किया हो -- कोई भी सुंदर क्षण, उनमें से सर्वोत्तम क्षण चुनो। हो सकता है वह बिलकुल साधारण हो, क्योंकि कभी कभी असाधारण घटनाएं निहायत साधारण तल पर घटती हैं।
2-तुम सिर्फ खाली बैठे हो, कुछ न करते हुए, बारिश छत पर गिर रही है, उसकी खुशबू, उसकी ध्वनि आपके आसपास होती है, और कुछ कौंध सी होती है। तुम पवित्र क्षण में होते हो। या किसी दिन रास्ते पर जाते हुए पेड़ों के पीछे से अचानक तुम्हारे ऊपर सूरज की रोशनी उतरती है…और एक कौंध! कुछ खुल जाता है। पल भर के लिए तुम अलग ही दुनिया में प्रवेश करते हो।
3-एक बार उस क्षण को चुन लेने के बाद उसे सात दिन तक जारी रखो। अपनी आंखें बंद करो और उसे पुन: जीयो।उदाहरण के लिए, छत पर बारिश गिर रही है, टप, टप… वह आवाज… वह सुगंध… उस पल की गुणवत्ता…कोई पक्षी गा रहा है…कहीं कुत्ता भौंक रहा है…कोई प्लेट गिर गई और उसकी आवाज। इन सभी बारीकियों में जाओ, सभी पहलुओं से, सभी आयामों से, सभी इंद्रियों द्वारा।
4-हर रात तुम पाओगे कि तुम गहरी तफ़सील /विस्तृत वर्णन में उतर रहे हो... ऐसी जिन्हें तुम असली घटना में चूक गए होओगे लेकिन तुम्हारे मन ने उसे मुद्रित किया है। तुम उस पल को भले ही चूक जाओ, तुम्हारा मन उसे दर्ज करता रहता है।तुम्हें ऐसे सूक्ष्म पहलू महसूस होंगे जो तुम्हें पता नहीं थे कि तुमने अनुभव किए थे।
5-जब तुम्हारी चेतना उस पल पर केंद्रित होगी तब वह क्षण पुनश्च उभरेगा। तुम्हें नई बातों का अनुभव होगा। अचानक तुम्हें बोध होगा कि वे वहां पर थीं लेकिन उस पल में तुम उनसे चूक गए थे। वास्तव में, मन उन सब बातों को दर्ज करता है। वह बेहद भरोसेमंद नौकर है,
अत्यधिक सक्षम। सातवें दिन तक तुम उसे इतना साफ देख पाओगे कि तुम्हें लगेगा कि तुमने कोई भी असली क्षण इतनी सुस्पष्टता से नहीं देखा है जितना कि इसे।
3-तीसरा चरण:
चौदहवें दिन के बाद ;पन्द्रहवे दिन..वही बात करो लेकिन एक और बात जोड़ो।अपने आसपास के स्थान को महसूस करो, ऐसा अनुभव करो कि तीन फीट की दूरी तक एक आभामण्डल आपको घेरे हुए है, उस बीते क्षण का ''आभामण्डल ''अनुभव करो।इक्कीसवें दिन तक तुम लगभग बिलकुल अलग ही दुनिया में रहोगे बेशक इसका होश भी रहेगा कि इन तीन फीटों के बाहर एक भिन्न समय और भिन्न आयाम मौजूद है।
4-चौथा चरण:- 02 POINTS;-
1-इक्कीसवें दिन तक तुम उस क्षण को जीयो, उससे घिरे रहो, और अब काल्पनिक ऐन्टी स्पेस, विपरीत स्थान निर्मित करो। जैसे मान लो तुम्हें बहुत अच्छा लग रहा है, तीन फीट तक तुम इस खुशहाली से , दिव्यता से घिरे हो , अब ऐसी घटना के बारे में सोचो कि किसी ने तुम्हारा अपमान कर दिया और वह अपमान केवल उस सीमा तक ही आता है।
2-या कोई उदास घटना को याद करो, तुम्हें पीड़ा हुई है लेकिन वह पीड़ा तुम्हारे आसपास के कांच की दीवार तक ही पहुंचती है और वहीं पर गिर जाती है। तुम तक पहुंचती ही नहीं। तुम देखोगे कि यदि पहले दो सप्ताह सही गए हैं और तीसरे सप्ताह सब कुछ तीन फीट की सीमा तक आता है तो चौथे सप्ताह से तुम्हारे भीतर कुछ भी प्रवेश नहीं करता।
5-पांचवां चरण :- 02 POINTS;-
1-फिर पांचवें सप्ताह से उस आभामण्डल को अपने पास रखो--बाजार जाते हुए, लोगों से
बात करते हुए सतत स्मरण रखो। तुम बहुत ही रोमांचित हो ओगे। तुम दुनिया में घूमोगे फिरोगे; लेकिन तुम्हारी अपनी ही एक दुनिया होगी, तुम्हारी निजी दुनिया... इसे निरंतर ख्याल रखो।
2-इससे तुम वर्तमान में जी सकोगे क्योंकि वस्तुत: तुम सतत हजारों हजार बातों से प्रभावित हो रहे हो और वे तुम्हारा ध्यान खींच लेते हैं। अगर तुम्हारे आसपास सुरक्षात्मक आभामण्डल नहीं होगा तो तुम कमजोर पड़ जाओगे।वर्तमान की एक घटना तुम्हें कहीं अतीत में ले जाती है।यह तुम्हें भविष्य में भी ले जा सकती है, कुछ कहा नहीं जा सकता। कोई भी चीज कहीं भी
ले जा सकती है।मामला बहुत जटिल है।इसलिए तुम्हें एक आसपास सुरक्षा आभामंडल चाहिए ताकि तुम अपने आपमें रहो.. स्थिर, शांत, मौन, केंद्रित। NOTE;-
इस आभामण्डल को कुछ दिन या कुछ महीने तक सम्हालो। जब तुम देखोगे कि अब इसकी जरूरत नहीं है तब इसे छोड़ दो। एक बार तुम जान लो कि यहां और अभी कैसे रहा जाए, एक बार तुम उसकी सुंदरता का, उसकी अपरिसीम मस्ती का आनंद ले लो, तो फिर इस आभामण्डल को छोड़ दो।
....SHIVOHAM...