जीवन और मृत्यु के मामले में काशी का क्या महत्व है?क्या है भैरवी यातना और कौन है भगवान कालभैरव ?
जीवन और मृत्यु के मामले में काशी का क्या महत्व है?-
07 FACTS;-
`1-हम सभी जानते हैं कि हर इंसान जन्म लेता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि आपका जन्म अचानक हो गया और एक बच्चे के रूप में दुनिया में आ गए। मां के गर्भ में आपका धीरे-धीरे विकास होता है। जीवन धीरे-धीरे शरीर में प्रवेश करता है और माता के शरीर से धीरे-धीरे आपका शरीर तैयार होता है ।आपने उसके एक हिस्से पर दखल कर लिया और वह हिस्सा आप बन गए।
यह पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। इसी तरह अगर किसी इंसान की मौत हो जाए और कुछ समय तक उसके मृत शरीर को रोककर रखा जाए तो आप देखेंगे कि उसके नाखून, उसके चेहरे और सिर के बाल 11 से 14 दिनों तक बढ़ते रहेंगे।कहने का मतलब यह है कि प्राण शरीर को एकदम से पूरी तरह नहीं छोड़ पाता जबकि व्यावहारिक रूप से इंसान की मौत हो जाती है।
मृत होने में उसे 11 से 14 दिन का समय लग जाता है।दुनिया के लिए तो इंसान अब नहीं रहा, लेकिन खुद अपने लिए वह अभी पूरी तरह मरा नहीं होता। मरने के बाद तमाम तरह के कर्मकांड और क्रियाएं जिस तरीके से की जाती हैं, उसके पीछे यही वजह है। जब आप शरीर का दाह संस्कार कर देते हैं तो सब कुछ तुरंत समाप्त हो जाता है।
2-काशी के मणिकर्णिका घाट पर रोजाना औसतन 40 से 50 मृतकों का दाह संस्कार होता है। अगर आप वहां बैठ कर तीन दिन भी साधना कर लें तो आपको उस स्थान का असर समझ आ जाएगा। इसकी सीधी सी वजह यह है कि वहां बड़ी मात्रा में और बहुत वेग के साथ शरीरों से उर्जा बाहर निकल रही है। यह एक तरह से मानव-बलि की तरह है, क्योंकि ऊर्जा जबरदस्ती बाहर आ रही है। इसी के चलते वहां जबरदस्त मात्रा में ऊर्जा की मौजूदगी होती है।यही वजह है कि भगवान शिव समेत कुछ खास किस्म के योगी हमेशा श्मशान घाट में साधना करते हैं, क्योंकि बिना किसी की जिंदगी को नुकसान पहुंचाए आप जीवन ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं।ऐसी जगहों पर खासकर तब जबर्दस्त ऊर्जा होती है, जब वहां आग जल रही हो। अग्नि की खासियत है कि यह अपने चारों ओर एक खास किस्म का प्रभामंडल पैदा कर देती है या आकाश तत्व की मौजूदगी का एहसास कराने लगती है। मानव के बोध के लिए आकाश तत्व बेहद महत्वपूर्ण है। जहां आकाश तत्व की अधिकता होती है, वहीं इंसान के भीतर बोध की क्षमता का विकास होता है।
3- मणिकर्णिका घाट पर दो चीजें हो रही हैं। पहली चीज यह कि बहुत सारी ऊर्जा बाहर निकल रही है। प्राण का बचा हुआ हिस्सा बाहर निकल रहा है, क्योंकि शरीर, जो आधार है, उसी का नाश हो रहा है। और दूसरी यह कि वहां अग्नि की मौजूदगी भी है। जो लोग ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं,या जो लोग अपनी ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाना चाहते हैं, उनके लिए ये दोनों स्थितियां मिलकर एक बेहतरीन वातावरण पैदा कर देती हैं। श्मशान घाटों की यही खासियत रही है।सद्गुरु के अनुसार ''ज्यादातर लोग शानदार तरीके से जी नहीं पाते। ऐसे में उनकी एक इच्छा होती है कि कम से कम उनकी मौत शानदार तरीके से हो। शानदार तरीके से मरने का मतलब है कि मौत के बाद सिर्फ शरीर का ही नाश न हो, बल्कि इंसान को परम मुक्ति मिल जाए। बस यही इच्छा लाखों लोगों को काशी खींच लाती है। इसी वजह से यह मृत्यु का शहर बन गया। लोग यहीं मरना चाहते हैं।''
4-मणिकर्णिका घाट के बराबर में ही कालभैरव मंदिर है। भैरव वह है जो आपको भय से दूर ले जाता है। काल मतलब समय यानि कालभैरव समय का भय है। यह मौत का भय नहीं है। भय का आधार समय है। अगर आपके पास असीमित समय होता तो कोई बात नहीं थी। लेकिन समय तो तेजी से भाग रहा है। अगर कुछ करना है, तो वक्त एक समस्या है, कुछ नहीं होता तो भी समस्या वक्त की ही है। बस इसीलिए है कालभैरव। अगर आप समय के भय से मुक्त हैं, तो आप भय से भी पूरी तरह से मुक्त हैं।इस बात की पूरी गारंटी होती थी कि अगर आप काशी आते हैं तो आपको मुक्ति मिल जाएगी, भले ही पूरी जिंदगी आप एक बेहद घटिया इंसान ही क्यों न रहे हों। यह देखते हुए ऐसे तमाम घटिया लोगों ने काशी आना शुरू कर दिया, जिनकी पूरी जिंदगी गलत और बेकार के कामों को करते बीती। जिंदगी तो बिताई बुरे तरीके से, लेकिन वे मरना शानदार तरीके से चाहते थे।तब यह जरूरी समझा गया कि ऐसे मामलों में कुछ तो रोक होनी चाहिए और इसीलिए ईश्वर ने कालभैरव का रूप ले लिया, जो भगवान शिव का प्राणनाशक रूप है जिसे भैरवी यातना भी कहते हैं। इसका मतलब है कि जब भी मौत का पल आता है, तो आप अपने कई जन्मों को एक पल में ही पूरी तीव्रता के साथ जी लेते है। जो भी परेशानी, कष्ट या आनंद आपके साथ घटित होना है, वो बस एक पल में ही घटित हो जाएगा।
5-हो सकता है, वे सब बातें कई जन्मों में घटित होने वाली हों, लेकिन वह सब मरने वाले के साथ माइक्रोसेकेंड में घटित हो जाएंगी, लेकिन इसकी तीव्रता इतनी जबरदस्त होगी कि उसे संभाला नहीं जा सकता। इसे ही भैरवी यातना कहा जाता है। यातना का अर्थ है जबरदस्त कष्ट, यानी जो कुछ आपके साथ नरक में होना है, वह सब आपके साथ यहीं हो जाएगा।
आपको जिस तरह का काम करना होता है, उसी तरह की आपकी वेशभूषा भी होनी चाहिए। तो भगवान शिव ने इस काम के हिसाब से वेशभूषा धारण की और इंसानों को भैरवी यातना देने के लिए कालभैरव बन गए। वह इतना जबरदस्त कष्ट देते हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन वह होता बस एक पल के लिए ही है ताकि उसके बाद अतीत का कुछ भी आपके भीतर बचा न रहे।अगर एक तरीके से देखा जाए तो ध्यान करने की पूरी प्रक्रिया अपने आप में मृत्यु का एक अनुकरण ही है। मृत्यु का मतलब है कि अब यह शरीर कोई समस्या नहीं रहा, और न ही अब कोई पक्षपाती या भेद-भाव करने वाला मन बचा है। आपके भेद-भाव से भरे विचार पिछले अनुभवों और प्रभावों का एक नतीजा है। किसी एक का विवेक दूसरे से बेहतर हो सकता हैं लेकिन यह चीजों को बांटने की ही कोशिश करता हैं , जो कुदरती तौर पर नहीं बंट सकती।
6-यह भेदभाव करने वाला विवेक दरअसल, परम अनुभूति से तात्कालिक अनुभूति तक आने का एक रास्ता है।पक्षपात करने वाली बुद्धि एक छलनी की तरह उन सारी चीजों को छानकर बाहर कर देती है, जिन्हें आप पसंद नहीं करते। और आपको करीब-करीब सारी सृष्टि ही नापसंद है.. जाहिर है, ऐसे में शिव को भी यह छलनी बाहर ही कर देगी।जब व्यक्ति शरीर में होता हैं , तो उसे कुछ सुनना गंवारा नहीं होता। मरने के बाद इंसान के पास भेद करने वाला मन नहीं रहता। इसलिए हम उस व्यक्ति के साथ ज्यादा कुछ कर सकते हैं, जो अपनी भेद–भाव करने वाली बुद्धि खो चुका हो।
7-अगर किसी की पक्षपात करने वाली बुद्धि चली गयी, तो इसका मतलब है कि उसके पास अब भेदभाव करने या भले-बुरे को अलग करने वाली छलनी नहीं रही।ऐसे में अब वह खुला मन हो चुका है,आप उसमें जो कुछ भरना या डालना चाहें डाल सकते हैं।परन्तु मरने के बाद आप शरीर के लिए कुछ नहीं कर सकते। उसके लिए करने का कोई मतलब भी नहीं रह जाता। अगर कर्मकांड शरीर के लिए होता तो हम उसे तभी करते, जब इंसान जिंदा होता।कर्मकांड स्मृतियों के उस बुलबुले के लिए है, जो मरने के बाद किसी दूसरे शरीर की तलाश में अब तक इधर-उधर भटक रहा है।इसके पीछे का मकसद उस प्राणी में विवेक पैदा करना है ।
कौन है भगवान कालभैरव ?-
05 FACTS;- 1-भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक भैरव का अर्थ होता है - भय + रव = भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला।) शैव धर्म में, वह शिव के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है।त्रिक प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर हिंदू धर्म में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है (जैसा कि वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं) ।पुराणों के मतानुसार भैरव भगवान शिव का दूसरा नाम है। भैरव का वाहन श्वान है। भैरव का अर्थ भयानक और पोषक दोनों ही होता है। इनसे काल सहमा-सहमा रहता है।भगवान कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है। तंत्र शास्त्र के अनुसार,किसी भी सिद्धि के लिए भैरव की पूजा अनिवार्य है। इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है।शिव उपसंहार के देवता भी हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं।कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है।इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव।
2-ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता।भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनके समाविष्ट हैं। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना।भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।जहां सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
3-भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।ब्रह्मवैवत पुराण के अनुसार आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव।लेकिन इसी पुराण के 41वें अध्याय (गणपति- खंड)में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है। तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण संहार नाम वाले हैं।भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं।शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है।
4-जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 41 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचरी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।
5-भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।
भगवान भैरव के 8 रूप ;-
तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है ... 1-कपाल भैरव इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है । कपाल भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं। भैरव के इन रुप की पूजा अर्चना करने से कानूनी कारवाइयां बंद हो जाती है । अटके हुए कार्य पूरे होते हैं । 2-क्रोध भैरव;- क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं । भगवान के इस रुप का वाहन गरुण हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते ह । क्रोध भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है । 3-असितांग भैरव;- असितांग भैरव ने गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हैं । तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है । भगवान भैरव के इस रुप की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती है । 4-चंद भैरव;- इस रुप में भगवान की तीन आंखें हैं और सवारी मोर है ।चंद भैरव एक हाथ में तलवार और दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए है। चंद भैरव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलता हैं और हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता आती है । 5-गुरू भैरव;- गुरु भैरव हाथ में कपाल, कुल्हाडी, और तलवार पकड़े हुए है ।यह भगवान का नग्न रुप है और उनकी सवारी बैल है।गुरु भैरव के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है।गुरु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है । 6-संहार भैरव;- संहार भैरव नग्न रुप में है, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है ।इनकी तीन आंखें हैं और वाहन कुत्ता है । संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और शरीर पर सांप लिपटा हुआ है ।इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते है । 7- उन्मत भैरव;- उन्मत भैरव शांत स्वभाव का प्रतीक है । इनकी पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती है । भैरव के इस रुप का स्वरूप भी शांत और सुखद है । उन्मत भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला हैं और उनका वाहन घोड़ा हैं। 8- भीषण भैरव;- भीषण भैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी आत्माओं और भूतों से छुटकारा मिलता है । भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए है ।भीषण भैरव का वाहन शेर है ।
भैरव मन्त्र;-
1-“ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक- नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा ”
2-“ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा ”
3-“ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर ! गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश ! जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण ! पकड़ पलना ल्यावे ! काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण ! फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा !”
4-ॐ भैरवाय नम: !!
5-ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवायनम:!
6-ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ !!
7-ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा !!
8-ॐ भ्रां कालभैरवाय फट् !!
9-श्री स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्र;- ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम: !!
श्री भैरव चालीसा !!
दोहा ;-
श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ !
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ !!
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल !
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल !!
जय जय श्री काली के लाला !
जयति जयति काशी- कुतवाला !!
जयति बटुक भैरव जय हारी !
जयति काल भैरव बलकारी !!
जयति सर्व भैरव विख्याता !
जयति नाथ भैरव सुखदाता !!
भैरव रुप कियो शिव धारण !
भव के भार उतारण कारण !!
भैरव रव सुन है भय दूरी !
सब विधि होय कामना पूरी !!
शेष महेश आदि गुण गायो ! काशी-कोतवाल कहलायो !!
जटाजूट सिर चन्द्र विराजत !
बाला, मुकुट, बिजायठ साजत !!
कटि करधनी घुंघरु बाजत !
दर्शन करत सकल भय भाजत !!
जीवन दान दास को दीन्हो !
कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो !!
वसि रसना बनि सारद-काली !
दीन्यो वर राख्यो मम लाली !!
धन्य धन्य भैरव भय भंजन !
जय मनरंजन खल दल भंजन !!
कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा !
कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा !!
जो भैरव निर्भय गुण गावत !
अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत !!
रुप विशाल कठिन दुख मोचन !
क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन !!
अगणित भूत प्रेत संग डोलत !
बं बं बं शिव बं बं बोतल !!
रुद्रकाय काली के लाला !
महा कालहू के हो काला !!
बटुक नाथ हो काल गंभीरा !
श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा !!
करत तीनहू रुप प्रकाशा !
भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा !!
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन !
व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन !!
तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं !
विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं !!
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय !
जय उन्नत हर उमानन्द जय !!
भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय !
बैजनाथ श्री जगतनाथ जय !!
महाभीम भीषण शरीर जय !
रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय !!
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय !
श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय !!
निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय !
गहत अनाथन नाथ हाथ जय !!
त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय !
क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय !!
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय !
कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय !!
रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर !
चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर !!
करि मद पान शम्भु गुणगावत !
चौंसठ योगिन संग नचावत !!
करत कृपा जन पर बहु ढंगा !
काशी कोतवाल अड़बंगा !!
देयं काल भैरव जब सोटा !
नसै पाप मोटा से मोटा !!
जाकर निर्मल होय शरीरा !
मिटै सकल संकट भव पीरा !!
श्री भैरव भूतों के राजा !
बाधा हरत करत शुभ काजा !!
ऐलादी के दुःख निवारयो !
सदा कृपा करि काज सम्हारयो !!
सुन्दरदास सहित अनुरागा !
श्री दुर्वासा निकट प्रयागा !!
श्री भैरव जी की जय लेख्यो !
सकल कामना पूरण देख्यो !!
!! दोहा !!
जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार !
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार !!
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार !
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार !!
!! आरती श्री भैरव जी की !!
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जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा !
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा !! जय !!
तुम्हीं पाप उद्घारक दुःख सिन्धु तारक !
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक !! जय !!
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी !
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी !! जय !!
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे !
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे !! जय !!
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषा वलि तेरी !
कृपा करिये भैरव करिए नहीं देरी !! जय !!
पांव घुंघरु बाजत अरु डमरु जमकावत !
बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत !! जय !!
बटकुनाथ की आरती जो कोई नर गावे !
कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे !! जय !!
साधना नियम ;-
1- यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें।
2- यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है।
3 - रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है।
4 - भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें।
5- भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए।
6 - साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें।
7 :- हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन- साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें।
...SHIVOHAM...