क्या है ''जीवन और मृत्यु''?क्या हम अपने अतीत के जन्मों को जान सकते है?PART-01
क्या है ''जीवन और मृत्यु''?-
16 FACTS;-
1-वास्तव में,मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक झूठ है ..जो न कभी हुआ, न कभी हो सकता है। जो है, वह सदा है। रूप बदलते हैं और रूप की बदलाहट को तुम मृत्यु समझ लेते हो। तुम बच्चे थे, फिर तुम जवान हो गए। बच्चे का क्या हुआ? बच्चा मर गया? अब तो बच्चा कहीं दिखायी नहीं पड़ता! जवान थे, अब बूढ़े हो गए। जवान का क्या हुआ? जवान मर गया? जवान अब तो कहीं दिखायी नहीं पड़ता! सिर्फ रूप बदलते हैं.. बच्चा ही जवान हो गया; जवान ही बूढ़ा हो गया और कल जीवन ही मृत्यु हो जाएगा।
2-यह सिर्फ रूप की बदलाहट है। दिन में तुम जागे थे, रात सो जाओगे। दिन और रात एक ही चीज के रूपांतरण हैं। जो जागा था, वही सो गया। बीज में वृक्ष छिपा है। जमीन में डाल दो, वृक्ष पैदा हो जाएगा। जब तक बीज में छिपा था, दिखायी नहीं पड़ता था। मृत्यु में तुम फिर छिप जाते हो, बीज में चले जाते हो। फिर किसी गर्भ में पड़ोगे; फिर जन्म होगा। और गर्भ में नहीं पड़ोगे, तो महाजन्म होगा, तो मोक्ष में विराजमान हो जाओगे। मरता कभी कुछ भी नहीं। विज्ञान भी इस बात से सहमत है। विज्ञान कहता है. किसी चीज को नष्ट नहीं किया जा सकता।
3-विज्ञान कहता है पदार्थ अविनाशी है। एक रेत के छोटे से कण को भी विज्ञान की सारी क्षमता के बावजूद हम नष्ट नहीं कर सकते। पीस सकते हैं, नष्ट नहीं कर सकते। पीसने से तो रूप बदलेगा। रेत को पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। उसको और पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। हम उसका अणु विस्फोट भी कर ‘सकते हैं। लेकिन अणु (molecule)टूट जाएगा, तो परमाणु (Atom )होंगे। रेत और पतली हो गयी।BUNDLE OF Energy.. हम परमाणु को भी तोड़ सकते हैं, तो फिर इलेक्ट्रान, पाजिट्रान(पोजीटिव इलेक्ट्रोन),फोटॉन (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) रह जाएंगे। रेत और पतली हो गयी... मगर नष्ट कुछ नहीं हो रहा है; सिर्फ रूप बदल रहा है।
4-PART OF Atom..परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसके चारो ओर इलेक्ट्रॉन (एक ऋणात्मक विद्युत आवेश,आकार बहुत छोटा तथा सबसे हल्का) चक्कर लगाते रहते हैं।नाभिक--प्रोटॉन (धनात्मक आवेश.. तथा इलेक्ट्रान के द्रव्यमान के 1,839 गुना ) एवं न्यूट्रानों (अनावेशित,न्यूट्रल जो इलेक्ट्रान के द्रव्यमान के 1,839 गुना है) से बना होता है।एक परमाणु के नाभिक/न्यूक्लिअस में... इलेक्ट्रॉन्स-प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है जबकि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक दूसरे को आकर्षित करते है।
5-न्यूक्लिअसरूपी परंब्रह्म के चारो ओर इलेक्ट्रान क्लाउड या नेगेटिव एनर्जी चक्कर लगाती रहती हैं।न्यूक्लिअसरूपी परंब्रह्म प्रोटॉनरूपी पॉजिटिव एनर्जी एवं न्यूट्रानरूपी न्यूट्रल एनर्जी-साम्यावस्था से अधिक नज़दीक हैं।नेगेटिव एनर्जी- पॉजिटिव एनर्जी की ओर आकर्षित होती है ;जबकि पॉजिटिव एनर्जी एवं न्यूट्रल एनर्जी-एक दूसरे को आकर्षित करते है।
6-विज्ञान ने पदार्थ की खोज की, इसलिए पदार्थ के अविनाशत्व को जान लिया। धर्म कहता है – चेतना अविनाशी है, क्योंकि धर्म ने चेतना की खोज की और चेतना के अविनाशत्व को जान लिया। विज्ञान और धर्म इस मामले में राजी हैं कि जो है, वह अविनाशी है। मृत्यु है ही नहीं। तुम पहले भी थे; तुम बाद में भी होओगे। और अगर तुम जाग जाओ, अगर तुम चैतन्य से भर जाओ, तो तुम्हें सब दिखायी पड़ जाएगा कि , कब क्या थे।
7-गौतम बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों की कितनी ही कथाएं कही हैं । कभी जानवर थे; कभी पौधा , कभी पशु ;कभी पक्षी, कभी राजा, कभी भिखारी, कभी स्त्री, तो कभी पुरुष। जो जाग जाता है, उसे सारा स्मरण आ जाता है। मृत्यु तो होती ही नहीं। मृत्यु तो सिर्फ पर्दे का गिरना है। तुम नाटक देखने गए और पर्दा गिरा।अब फिर तैयारी कर रहे होंगे।मेकअप करेंगे और
फिर पर्दा उठेगा।शायद तुम पहचान भी न पाओ कि जो सज्जन थोड़ी देर पहले कुछ और थे, अब वे कुछ और हो गए हैं!
8-बस, यही हो रहा है। इसलिए संसार को नाटक मंच कहा गया है। यहां रूप बदलते रहते हैं। यहां राम भी रावण बन जाते हैं और रावण भी राम बन जाते हैं। ये पर्दे के पीछे तैयारियां कर आते हैं। फिर लौट आते हैं, बार -बार लौट आते हैं। मृत्यु एक भ्रान्ति है , धोखा है। पहले भी सब ऐसा ही था।फिर और फिर ऐसा ही होगा।यह दुनिया मिट जाएगी, तो दूसरी दुनिया
पैदा होगी। यह पृथ्वी उजड़ जाएगी, तो दूसरी पृथ्वी बस जाएगी।
9-तुम इस देह को छोड़ोगे, तो दूसरी देह में प्रविष्ट हो जाओगे। तुम इस चित्तदशा को छोड़ोगे, तो नयी चित्तदशा मिल जाएगी। तुम अज्ञान छोड़ोगे, तो ज्ञान में प्रतिष्ठित हो जाओगे; मगर मिटेगा कुछ भी नहीं। मिटना होता ही नहीं। सब यहां अविनाशी है। अमृत इस अस्तित्व का स्वभाव है। मृत्यु है ही नहीं और जो है ही नहीं, उसकी व्याख्या कैसे करें?
उदाहरण के लिए ये ऐसा ही है, जैसे तुमने रास्ते पर पड़ी रस्सी में भय के कारण सांप देखा। भागे, घबडाए, फिर कोई मिल गया, जो जानता है कि रस्सी है। उसने तुम्हारा हाथ पकड़ा और कहा मत घबड़ाओ, रस्सी है। तुम्हें ले गया; पास जाकर दिखा दी कि रस्सी है।
10-फिर क्या तुम उससे पूछोगे सांप का क्या हुआ? बात खतम हो गयी,क्योकि सांप था ही नहीं। रस्सी के रूप -रंग ने , सांझ के धुंधलके ने , तुम्हारे भीतर के भय ने तुम्हें भांति दे दी। सारी भ्रांतियों ने मिलकर एक सांप निर्मित कर दिया। वह तुम्हारा सपना था। मृत्यु तुम्हारा सपना है। कभी घटा नहीं। घटता मालूम होता है। और इसलिए भ्रांति मजबूत बनी रहती है कि जो आदमी मरता है, वह तो विदा हो जाता है। वही जानता है कि' क्या है मृत्यु' जो मरता है।तुम तो मर नहीं रहे ;केवल बाहर से खड़े देख रहे हो।
11- एक डाक्टर कह सकता है कि मैंने सैकड़ों मृत्युएं देखी हैं। लेकिन ये गलत है।उसने सैकडों मरते हुए लोग देखे होंगे, लेकिन मरते हुए लोग देखने से क्या होता है! तुम बाहर यही देख सकते हो कि सांस धीमी होती जाती है; धड़कन डूबती जाती है। मगर यह मृत्यु थोड़े ही है। यह आदमी अब ठंडा हो गया, यही देखोगे। मगर इसके भीतर जो चेतना थी, कहां गयी? उसने कहां पंख फैलाए? वह किस आकाश में उड गयी? वह किस द्वार से प्रविष्ट हो गयी? किस गर्भ में बैठ गयी? वह कहां गयी? क्या हुआ? उसका तो तुम्हें कुछ भी पता नहीं है।
12-यह तो वही आदमी कह सकता है और मुर्दे कभी लौटते नहीं। जो मर गया, वह लौटता नहीं। और जो लौट आते हैं, उनकी तुम मानते नहीं। जैसे बुद्ध यही कह रहे हैं कि मैंने ध्यान में वह सारा देख लिया जो मौत में देखा जाता है। इसलिए तो ज्ञानी की कब्र को हम समाधि कहते हैं, क्योंकि वह समाधि को जानकर मरा। उसने ध्यान की परम दशा जानी। इसलिए हम संन्यासी को जलाते नहीं बल्कि गाड़ते हैं।
13-शायद तुमने सोचा ही न हो कि 'क्यों'? क्योंकि गृहस्थ को अभी फिर पैदा होना है। उसकी देह जल जाए, यह अच्छा हैं। क्योंकि देह के जलते ही उसकी आत्मा की जो आसक्ति इस देह में थी, वह मुक्त हो जाती है। जब जल ही गयी; खतम ही हो गयी, राख हो गयी—अब इसमें मोह रखने का क्या प्रयोजन है? वह उड़ जाता है। वह नए गर्भ में प्रवेश करने की तैयारी करने लगता है। पुराना घर जल गया, तो नया घर खोजता है।
14-संन्यासी तो जानकर ही मरा है। अब उसे कोई नया घर स्वीकार नहीं करना है। पुराने घर से मोह तो उसने मरने के पहले ही छोड़ दिया।अब जले-जलाए, मरे -मराए को जलाने से क्या सार। इस आधार पर संन्यासी को हम जलाते नहीं, गाड़ते हैं। और उसकी कब्र को समाधि कहते हैं। इसीलिए कि वह ध्यान की परम अवस्था समाधि को पाकर गया है। वह मृत्यु को जीते जी जानकर गया है कि मृत्यु झूठ है।
15-जिस दिन मृत्यु झूठ हो जाती है, उसी दिन जीवन भी झूठ हो जाता है। क्योंकि वह मृत्यु और जीवन हमारे दोनों एक ही भांति के दो हिस्से हैं।जिस दिन मृत्यु झूठ हो गयी, उस दिन जीवन भी झूठ हो गया। उस दिन कुछ प्रगट होता है, जो मृत्यु और जीवन दोनों से अतीत है। उस अतीत का नाम ही परमात्मा है; जो न कभी पैदा होता, न कभी मरता, जो सदा है।
मृत्यु कीमती चीज है। अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो संन्यास न होता। अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो धर्म न होता।
16-मृत्यु अपरिहार्य है।अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो परमात्मा का कोई स्मरण न होता, प्रार्थना न होती, पूजा न होती, आराधना न होती ; न होते बुद्ध, न महावीर, न कृष्ण, न क्राइस्ट, न मोहम्मद। यह पृथ्वी दिव्य पुरुषों को तो जन्म ही न दे पाती, मनुष्यों को भी जन्म न दे पाती। यह पृथ्वी पशुओं से भरी होती। यह तो मृत्यु ने ही झकझोरा। मृत्यु की बड़ी कृपा है, उसका बड़ा अनुग्रह है।बुद्ध को भी स्मरण आया था ..मृत्यु को ही देख कर।
बुद्ध ने उसी रात घर छोड़ दिया,और क्रांति घट गई। जब मृत्यु होने ही वाली है, तो हो ही गई; तो जितने दिन हाथ में है.. इतने दिनों में हम उसको खोज लें जो अमृत है।
क्या मृत्यु के बाद जीवन होता है?
17 FACTS;-
1-मृत्यु की समाप्ति और जीवन का अनुभव एक ही सीमा पर होते हैं, एक ही साथ होते हैं। जीवन को जाना कि मृत्यु गई, मृत्यु को जाना कि जीवन हुआ। अगर ठीक से समझें तो ये एक ही चीज को कहने के दो ढंग हैं। ये एक ही दिशा में इंगित करने वाले दो इशारे हैं ।यदि एक बार यह पता चल जाए कि'मैं अलग हूं' , तो जीवन का अनुभव शुरू हो गया।
2-गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है,कि ''तू भयभीत मत हो, क्योंकि तू जिन्हें सामने खड़े देख रहा है, वे बहुत बार रहे हैं पहले भी। तू भी था, मैं भी था, हम सब बहुत बार थे और हम सब बहुत बार होंगे। जगत में कुछ भी नष्ट नहीं होता। इसलिए न मरने का डर है, न मारने का डर है। सवाल है जीवन को जीने का।जो न मर सकता है, न मार सकता है, वह जानता ही नहीं कि जो है वह न मारा जा सकता है, न मर सकता है।''
3-कैसे होगी वह दुनिया जिस दिन सारा जगत जानेगा ..भीतर से ,कि आत्मा अमर है! उस दिन मृत्यु का सारा भय विलीन हो जाएगा! उस दिन मरने का भय भी विलीन हो जाएगा, मारने की धमकी भी विलीन हो जाएगी। उस दिन युद्ध विलीन होंगे, उसके पहले नहीं।जब तक आदमी को लगता है कि मारा जा सकता है, मर सकता हूं, तब तक दुनिया से युद्ध विलीन नहीं हो सकते। चाहे सारी दुनिया में 'अहिंसा' के कितने ही पाठ पढ़ाए जाएं। जब तक मनुष्य को भीतर से यह अनुभव नहीं पैदा हो सकता कि जो है, वह अमृत है, तब तक दुनिया में युद्ध बंद नहीं हो सकते।
4-वे जिनके हाथों में तलवारें दिखती हैं, यह मत समझ लेना कि वे बहुत बहादुर लोग हैं।क्योंकि बहादुर के हाथ में तलवार की कोई जरूरत नहीं है।
वह जानता है कि मरना और मारना दोनों बच्चों की बातें हैं।तलवार सबूत है कि यह आदमी भीतर से डरपोक है, कायर है। 5-लेकिन एक अदभुत प्रवंचना आदमी पैदा करता है।भीतर वह देखता है कि शरीर क्षीण हो रहा है, जवानी गई, बुढ़ापा आ रहा है और भीतर दोहरा रहा है कि आत्मा अजर-अमर है।वास्तव में,वह अपना विश्वास जुटाने की, हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रहा है-कि मत घबराओ ..मौत तो है, लेकिन ऋषि-मुनि कहते हैं कि आत्मा अमर है। आत्मा की अमरता का सिद्धांत मौत से डरने वाले लोगों का सिद्धांत बन गया है। 6-आत्मा अमर है लेकिन आत्मा की अमरता को जानना बिलकुल दूसरी बात है। और यह भी ध्यान रहे कि आत्मा की अमरता को वे ही जान सकते हैं, जो जीते जी मरने का प्रयोग कर लेते हैं।उसके अतिरिक्त कोई जानने
का उपाय नहीं।वास्तव में, “भय मृत्यु का नहीं है, भय समय का है, और यदि तुम इसमें गहराई से देखते हो तो तुम पाते हो कि 'भय है उस जीवन के लिए जो जिया ही नहीं है' ..तुम अब तक जी नहीं पाए हो। यदि तुम जीते हो, तो कोई डर नहीं है। अगर जीवन परिपूर्ण है, तो कोई भय नहीं है।
तुमने उसके प्रत्येक क्षण को उसकी संपूर्णता में जिया है - तो समय का कोई भय नहीं है, तब सब भय मिट जाता है”
7-मृत्यु शत्रु नहीं है। मृत्यु बहुत करुणावान है। वस्तुत: यह ब्रह्मांड है जो सभी कूड़े-कचरे से तुम्हें फिर से मुक्त कर रहा है जिन्हें तुमने अपने इर्द-गिर्द जमा कर लिया है, जिससे तुम फिर से ताजा, युवा बन जाओगे, जिससे तुम्हें जीने का एक और अवसर मिलेगा।मृत्यु से
कोई नहीं डरता। लोग निश्चित रूप से अस्पतालों में अजीब प्रकार के बिस्तरों में पड़ने से डरते हैं - पैर ऊपर, हाथ नीचे, सिर और छाती में लगे हुए सभी प्रकार के यंत्र। लोग इन सब से डरते हैं, लेकिन मृत्यु से नहीं। क्या तुमने मृत्यु को किसी को भी कोई नुकसान पहुंचाते देखा है? फिर किसी को मृत्यु से क्यों डरना चाहिए? मृत्यु से कोई भी नहीं डरता।
8-लोग जीवन को जीने से भयभीत हैं, मृत्यु से नहीं, क्योंकि जीवन एक समस्या है जिसे सुलझाना है। जीवन में हजारों जटिलताएं हैं जिनका समाधान होना है। जीवन में इतने सारे आयाम हैं कि तुम निरंतर किसी न किसी चिंता में होते हो ... कि क्या जिस आयाम में तुम गति कर रहे हो, वह सही है या फिर तुमने सही आयाम को पीछे छोड़ दिया है?”
"यदि मृत्यु का भय होता है, तो इसका मतलब है कि कुछ कमियां हैं जिन्हें पूरा नहीं किया गया है। तो मृत्यु के वे भय बहुत संकेतात्मक और सहायक हैं। वे दर्शाते हैं कि तुम्हारे जीवन की मशाल की भभक को दोनों सिरों से एक साथ जलना होगा।
9-अगर तुम्हें केवल इतना ही पता हो कि मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं है, तो तुम नए जन्म लेना जारी रखोगे। तुमने केवल आधी सच्चाई जानी होगी: फिर से जीने की, एक और शरीर लेने की और एक नया जन्म लेने की वासना तब भी बनी रहेगी। जिस दिन तुम्हें बाकी की आधी सच्चाई का भी पता चल जाएगा, जिस दिन तुम सच्चाई को उसके पूर्ण रूप में जान लोगे – कि जीवन, जीवन नहीं है, और मृत्यु, मृत्यु नहीं है – तुम उस बिंदु तक पहुंच गए होगे जहां से फिर कोई लौटना न होगा। फिर यहां लौटने का कोई सवाल नहीं होगा।”
10- जीवन कुछ और नहीं बल्कि एक पेड़ है और मृत्यु उस पेड़ का एक फूल।जब कोई ऐसा मरता है, कोई जिससे तुम गहराई से सम्बंधित रहे हो, बहुत निकट रहे हो, सुखी और दुखी रहे हो, उदास और क्रोधित, कोई जिसके साथ तुमने जीवन की समस्त ऋतुएं जानी हैं और कोई जो एक प्रकार से तुम्हारा अंग बन गया और तुम उसका अंग बन गए हो; जब ऐसा कोई मरता है, यह मात्र एक बाहर की मृत्यु नहीं है, यह एक मृत्यु है जो भीतर भी घटती है।
11-वह तुम्हारी चेतना का एक अंश थी तो जब वह मरती है, तुम्हारे भीतर का वह अंश भी मरता है। वह तुम्हारे भीतर कुछ पूर्ति कर रही थी। वह लुप्त हो गयी और घाव रह गए। हमारी चेतना में कई छिद्र हैं। उन छिद्रों के कारण हम दूसरों का साथ खोजते हैं, दूसरों का प्रेम। दूसरे की उपस्थिति से हम किसी प्रकार से उन छिद्रों को भरने में समर्थ हो पाते हैं। जब दूसरा लुप्त हो जाता है, वे छिद्र फिर से वहां होते हैं... खुलते हुए विशाल खड्ड। 12-तुम उनके बारे में भूल गए होंगे, मगर तुम उन्हें.. उनकी पीड़ा को महसूस करोगे। तो इन क्षणों का उपयोग गहरे ध्यान के लिए करो क्योंकि देर अबेर वे छिद्र फिर से भर जायेंगे। वे छिद्र फिर से लुप्त हो जायेंगे। इसके पहले की ऐसा हो यह अच्छा है की इन छिद्रों में प्रवेश किया जाये, उस रिक्तता में प्रवेश किया जाये जो वह अपने पीछे छोड़ जाएगी। तो इन क्षणों का उपयोग करो। चुप चाप बैठ जाओ, आँखें बंद कर लो, भीतर चले जाओ और देखो क्या घटा है।
13-भविष्य के सम्बन्ध में विचार मत करो, अतीत के सम्बन्ध में मत सोचो। स्म्रतियों में मत जाओ क्योंकि वह व्यर्थ है; बस भीतर चले जाओ। तुम्हें क्या हो रहा है... उस प्रक्रिया में चले जाओ। वह तुम्हें बहुत सी बातें प्रकट करेगा। यदि तुम उन छिद्रों को भेद देते हो तो तुम पूर्णतया रूपांतरित हो जाओगे। तुम उनको फिर से भरने का प्रयास नहीं करोगे, मगर फिर भी तुम प्रेम कर सकते हो ..बिना किसी को भीतर लिए हुए और वहां पर कोई गहरी आवश्यकता को पूर्ण करे बिना।
14-तो पहली बात.. इन घावों में जाओ, इस रिक्तता में जाओ, इस अनुपस्थिति में जाओ और देखो। दूसरी बात ये याद रखो जीवन वास्तव में तैरता हुआ, फिसलता हुआ है... इसीलिए क्षणभंगुर है। हम एक चमत्कारिक जगत में रहते हैं। हम अपने को धोखा दिए जाते हैं। बार बार भ्रम टूटता है। पुनः वास्तविकता विस्फोटित होती है। फिर फिर कोई मरता है और तुम स्मरण दिलाये जाते हो की जीवन भरोसे योग्य नहीं है,या किसी को जीवन पर बहुत निर्भर नहीं रहना चाहिए।
15-एक क्षण वह है, दूसरे क्षण वह जा चुका है। वह एक साबुन का बुलबुला है; छोटी से चुभन और वह गया। वास्तव में जितना तुम जीवन को समझते हो उतना तुम आश्चर्य से भरते हो की वह कैसे अस्तित्व में है! तब मृत्यु समस्या नहीं है; जीवन समस्या बन जाता है! मृत्यु स्वाभाविक लगती है। यह एक चमत्कार है की जीवन अस्तित्व में है; इतनी कामचलाऊ चीज़, इतनी क्षणिक चीज। और मात्र यह अस्तित्व में ही नहीं है, लोग इस पर श्रद्धा करते हैं। लोग इस पर निर्भर रहते हैं, लोग इस पर भरोसा करते हैं।
16-वे अपनी पूरी आत्मा इसके चरणों में रख देते हैं; और यह मात्र एक भ्रम है, एक स्वप्न है। किसी भी क्षण यह चला गया है और कोई रोता हुआ पीछे छूट गया है। उसके साथ सारा प्रयास चला गया है, वह सारा बलिदान जो उसके लिए किया था। अचानक सब कुछ लुप्त हो जाता है। तो इसको देखो; इस क्षणिक, स्वप्नवत्, भ्रामक जीवन को देखो! और मृत्यु सब को आ रही है। हम सब कतार में खड़े हैं, और वह कतार लगातार मृत्यु के निकट आ रही है। वह चली गयी; कतार थोड़ी कम हुई। उसने और एक आदमी की जगह बना दी है।
17-हर एक मरता हुआ व्यक्ति तुम्हें अपनी मृत्यु के निकट ला रहा है, तो हर मृत्यु आधारभूत रूप से तुम्हारी मृत्यु है। हर मृत्यु में कोई मर रहा है और पूर्ण विराम के निकट आ रहा है। इसके पहले यह घटे, व्यक्ति को जितना होश पूर्ण हो सके हो सके, बनना है। यदि हम जीवन पर बहुत श्रद्धा करते हैं, तो हम अचेतन होने की ओर प्रवृत्त हैं। यदि हम इस तथाकथित जीवन पर संदेह करते हैं; जो हमेशा मृत्यु पर समाप्त होता है; तब हम अधिक होश पूर्ण होते हैं। और उस बोध में एक नए प्रकार का जीवन प्रारंभ होता है, उसके द्वार खुलते हैं; वह जीवन जो मृत्यु विहीन हैं, जो शाश्वत है, जो समय के पार है।
क्या हम अपने अतीत के जन्मों को जान सकते है?
NEXT..
... SHIVOHAM...
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