कोई कैसे जाने कि वह 'बह्म' की ध्वनि/ कास्मिक साउंड 'ओम' को उपलब्ध कर चुका है?
कोई कैसे जाने कि वह बह्म की ध्वनि/कास्मिक साउंड-- 'ओम' को उपलब्ध कर चुका है?-
14 FACTS;-
1-जितने ही गहरे आप जाते हैं, उतनी ही आंतरिक वह घटना हो जाती है।घटना सदैव ही भीतर घटती है, एक तरह से व्यक्तिगत रूप से।उसके बारे में बाहर से कुछ भी नहीं जान सकते। इसलिए यह कहना कठिन है कि किसी के भीतर क्या यह घट गया है।और बिना एक बुद्ध हुए बाहर से व्यवहार झूठा भी हो सकता है ;नकल भी किया जा सकता है।यदि तुम इतना भी सोच सकते हो कि तुम मर गए हो या जिंदा हो, तो तुम जीवित हो।यह घटना इतनी प्रामाणिक होती है कि कभी सवाल ही नहीं उठता है कि मैं वास्तविक हूं या नहीं। आप धूमिल हो जाते हैं , वास्तविक हो जाते हैं।आप मात्र एक छाया, एक प्रेम हो जाते हैं। अब आपकी वास्तविकता जैसी पहले कभी थी, उसके जैसी नहीं होती।
2-यदि आपने भीतर से कास्मिक साउंड, ब्रह्म नाद को प्राप्त कर लिया ,तो आप जान लेंगे।जब आप कास्मिक साउंड, ब्रह्म-ध्वनि को पहुंचते हैं, तब आप अपने अस्तित्व की भूमि पर पहुंचते हैं।यदि आप ओम की ध्वनि को
सुनते हैं जो कि तुम्हारे द्वारा या किसी के द्वारा उच्चरित नहीं है, वरन चारों ओर एक ब्रह्म-ध्वनि की तरह हो रही है--तो तुम जानते हो।वास्तविक चारों
तरफ है परन्तु वह एक सपना भी हो सकता है। आप सपने में भी ऐसा अनुभव करते हैं कि हर चीज वास्तविक है। इसलिए कैसे तय करें कि जो यह ध्वनि आप सुन रहे हैं वास्तविक है या कोई सपना है? इसका निष्कर्ष किसी दूसरे ही मार्ग से आता है।
3-यह ध्वनि का सुनना आपके अस्तित्व में एक विस्फोट होगा। आप फिर से वही नहीं हो सकेंगे। आप यहां तक कि अपने अतीत से अपने आपको नहीं जोड़ सकेंगे।आप उसे स्मरण रखेंगे जैसे कि यह किसी और का अतीत था। आपकी स्मृति अब आपकी नहीं होगी। इस अनुभव के बाद, आपका दोबारा जन्म होगा और आपका दूसरा जन्म ही इस बात के लिए सबूत होगा कि आपने सुन लिया है।
4-परन्तु इस संबंध में एक तीसरी बात है कि कोई ओम का उच्चारण दोहराए चला जा रहा है ;उसमें और जो ओम ध्वनि आई है, उसमें क्या कोई अंतर है अथवा दोनों वही हैं? वास्तव में, जब आप 'ओम', कहते हैं- तब आप अपने भीतर एक केंद्र निर्मित करते हैं।आप एक पत्थर डालते हैं और तब ध्वनि बाहर, और बाहर जाती है--आपसे दूर ..बहुत दूर ;यह एक
आयाम है।और जब आप ओम की ध्वनि सुनते हैं--कास्मिक साउंड, तो वह भिन्न होती है। वह आती है, लेकिन कभी नहीं जाती। वह आपसे दूर जाती हुई नहीं है बल्कि वह आपके पास आती हुई है और उसका केंद्र कहीं भी नहीं मिलता। वह बस आती जाती है,और आप उससे भर जाते हैं।यह भी एक आयाम है, दिशा है।
5-यदि ध्वनि का केंद्र आप हैं, तो लहरें आप से बाहर जाती है क्योंकि ओम आपके द्वारा उच्चारित किया जाता है। यदि आप केंद्र नहीं हैं, तो ध्वनि तरंगें आती जाती हैं और कहीं किसी जगह से केंद्र का पता भी नहीं चलता। यदि पूछा जाये कि परमात्मा का केंद्र कहां है? जगत का केंद्र कहां है? तो उत्तर है 'सब कहीं या फिर कहीं नहीं'। दोनों का एक ही अर्थ है।
साधारणतः साधक ही परमात्मा की खोज में जाते हैं, परन्तु जब तक कि परमात्मा स्वयं तुम्हारे पास नहीं आता, तब तक आप एक कल्पना में, एक स्वप्न में हो। यदि आप ब्रह्म की, परमात्मा की , केंद्र की खोज में जाते हैं, तो आप खोजते ही रहेंगे और आप उसे कभी भी नहीं खोज सकेंगे।
6-आप केंद्र को कैसे खोज सकते हैं? केंद्र ही आप तक आ सकता है। इसलिए यह हमेशा ही झूठा संबंध है, कि साधक परमात्मा की तरफ जा रहा है--वास्तविक संबंध भिन्न ही है--परमात्मा ही साधक की तरफ आ रहा है। जब आप तैयार होते हैं, वह आता है। जब आप खुले होते हैं, तो वह अतिथि बनता है। जब आपका निमंत्रण योग्य ,समग्र होता है, तो वह वहां होता है। वह सदैव ही आता हुआ है, न कि जाता हुआ है।परन्तु आप
छिपे हुए हैं, वह आपको नहीं खोज सकता। जब कभी वह आता है, आप बच जाते हैं। आप बंद हैं, कभी भी खुले नहीं। वह द्वार खटखटाता ही रहता है और आपके द्वार बंद ही पड़े हैं। इसलिए जब वह ओम आपके पास आ रहा होता है, आप बस भर जाते हैं। आप बस इसमें डूब जाते हैं और स्रोत का पता नहीं चलता।
7-यदि आप उस स्रोत का पता लगा लें कि वह कहां से आ रहा है, तो आप पाएंगे कि कोई बाहर से ओम की ध्वनि कर रहा है और वह आपके पास आ रही है। कोई किसी साज पर ओम बजा रहा है और वह आ रहा है।
उसका कोई स्रोत नहीं है। इसलिए रहस्यवादियों ने सदैव ही कहा है कि परमात्मा का कोई उदगम नहीं है। वह उदगम रहित है। वह कहीं से भी नहीं आता--मात्र आकाश से आता है और वह यहां है। जब आप ऐसा अनुभव करते हों, तभी आप जानते हैं कि अब ओम कास्मिक है। वह अब
आपसे संबंधित नहीं।केवल एक ही ध्वनि है ब्रह्म के ओम की ..जो बिना किसी घर्षण के पैदा होती है--दो वस्तुएं नहीं, केवल ध्वनि।और भेद सदैव यही होगा कि ध्वनि कहीं से नहीं आ रही होगी--उदगम--रहित ध्वनि, बिना उत्पन्न की हुई। तब ही वह ब्रह्म ही, ओम की ध्वनि होगी।
8-जो भी वाणी हम सुनते हैं, वह सब आघात से पैदा होती है, दो चीजों की टक्कर से पैदा होती है, द्वंद्व से पैदा होती है। अगर आप मंजीरे को टकराते हैं तो आवाज पैदा होती है। अगर दोनों हाथों को टकराते हैं तो ताली पैदा होती है। अगर हवाएं वृक्षों से गुजरती हैं, तो सरसराहट पैदा होती है। अगर कोई बोल रहा है तो कंठ टक्कर देता है, तो वाणी पैदा होती है। हम जो भी वाणी जानते हैं, वह सब नाद है। संघर्ष से पैदा हुआ है, दो की टक्कर से।लेकिन जहां कोई
दूसरा नहीं है,खाली आकाश है तो वहां वाणी कैसी होगी? वहां नाद आघात वाला पैदा नहीं हो सकता।
9-तो दो बातें हैं.. या तो हम कहें नाद रहित वाणी; ऐसा स्वर जो टक्कर से, दो चीजों के आघात से पैदा नहीं होता। और या फिर एक और शब्द है ..बहुत कीमती — अनाहत नाद। अनाहत का मतलब ही यही होता है कि जो आहत से, टक्कर से नहीं पैदा नहीं हुआ क्या ऐसा कोई नाद है, जो अनाहत है और अगर ऐसा कोई नाद है तो वही जीवन का मूल स्वर है।
इसमें कई बातें समझ लेने जैसी हैं।जो पैदा हुआ है, वह नष्ट हो जाएगा। जो बना है, वह मिट जाएगा।जो चीज टकराहट से पैदा होती है, वह नष्ट हो जाएगी। क्योंकि टकराहट से एक शक्ति की मात्रा उपलब्ध होती है और वह शक्ति की मात्रा सीमित है।जो संघात से बना है,
वह शाश्वत नहीं हो सकता, सनातन नहीं हो सकता।जिस डंडे में एक छोर है, उसमें दूसरा छोर भी होगा ही। तो जिसमें पैदा होने वाला छोर है, उसमें मरने वाला छोर भी होगा। सिर्फ वही 'शाश्वत' हो सकता है, जो पैदा ही न हुआ हो।
10-जो अजन्मा हो, जो अनादि हो, वही अनंत हो सकता है। तो क्या ऐसा भी कोई स्वर, ऐसा भी कोई नाद, ऐसा भी कोई संगीत है, जिसे हम जीवन का संगीत कहें! जो पैदा नहीं हुआ और कभी मिटेगा भी नहीं। और जब तक हम उसे न जान ले, तब तक हमने जीवन की परम
व्यवस्था को नहीं जाना।केवल नाद रहित स्वर ही है परम संगीत;वही है शक्ति।। लेकिन इसे कैसे सुनेंगे? मंत्र शास्त्र ने इसकी व्यवस्था की है। मंत्र शास्त्र कहता है, किसी मंत्र का उच्चार शुरू करो तो पहले जोर से उच्चार करो, ओंम का उच्चार शुरू करो, ओंम सुनाई पड़ेगा, हवाओं में गूंजेगा। फिर जब यह उच्चार सध जाए और जब ओंम इस तरह गूंजने लगे कि तुम्हारे भीतर कोई दूसरा शब्द, कोई दूसरा विचार न रह जाए, तभी तुम्हारा ओंम शुद्ध होगा। अगर तुम्हारे भीतर कोई भी विचार चल रहा है, तो उसकी छाया तुम्हारे ओंम की गूंज में भी मौजूद रहेगी।
11-उदाहरण के लिए अगर तुम ओंम कह रहे हो, और तुम्हारे मन में चल रहा है कि जा कर बाजार से कोई सामान खरीद लाएं, तो तुम्हारा ओंम जो है, वह अशुद्ध हो रहा है। क्योंकि उसके पीछे यह बारीक स्वर भी जुड़ा हुआ है कि बाजार जाएं, सामान खरीद लाएं, यह स्वर उसे विकृत कर रहा है। तुम्हारा औंम तब शुद्ध हो जाएगा, जब सिर्फ ओंम की ही गूंज होगी और भीतर कोई दूसरा विचार न होगा। उसे विकृत करने वाला कोई भी मौजूद न होगा। जिस दिन तुम्हारे ओंम का यह गुंजार शुद्ध हो जाए, उस दिन तुम ओंठ बंद कर लेना और अब तुम भीतर ही ओंम को गुजाना।ओंठ बंद रखना, हवा की टक्कर से बचाना, तो भीतर ओंम का गुंजार चलेगा। और जब भीतर ओंम का गुंजार चलेगा, तब फिर खयाल रखना, दूसरे गहरे तल पर भी तुम्हारे मन में कोई विचार कोई कामना, कोई वासना, कोई भावना तो नहीं है! अगर वह भावना और वासना और कोई विचार चल रहा है गहरे तल पर, तो वह अशुद्ध कर रहा है, उसको भी विसर्जित करना।
12-और भीतर जब सिर्फ ...ओंम की गूंज रह जाए, तब तीसरा प्रयोग करना। तब तुम ओंम को पैदा मत करना, सिर्फ आंख बंद करके सुनना। जैसे कि ओंम तुम्हारे भीतर गूंज
रहा है, तुम नहीं कर रहे हो।अगर दोनों चीजें पहले प्रयोग में शुद्ध हो गई हों तो यह घटना घटती है।तुमने ओंम का गुंजार किया और भीतर कोई विचार न बचे, तो तुम्हारे चेतन मन से विचार समाप्त हो गए।अब तुम ओंठ बंद कर लो, अब तुम ओंम का गुंजार भीतर करो। अब तुम्हारे अचेतन मन में विचार बाधा डालेंगे। तुम इतना गुंजार करो कि तुम्हारा अचेतन मन भी उसमें गूंज जाए और भीतर कोई विचार न रह जाएं, तो तुम्हारा अचेतन मन भी शांत हो गया। तुम्हारे मन की दो पर्तें शांत हो गईं। अब तुम ओंम का गुंजार बंद कर दो। क्योंकि मन जब शांत हो जाता है, तो तुम्हारे हृदय के अंतरस्थल में जो गुंजार स्वभावत: चल ही रहा है ..सदा से चल रहा है, जिससे तुम बने हो, जो तुम्हारी मूल प्रकृति है ;वह अब तुम्हें सुनाई पड़ सकता है।
13-तुम्हारे विचारों के कारण ही वह तुम्हें सुनाई नहीं पड़ता था। अब सुनाई पड़ सकता है।
तो तुमने जो पहले ओंम का पाठ किया, वह असली मंत्र नहीं है। वह तो केवल तुम्हारे विचारों से छुटकारे का उपाय है।अब तुम चुप हो जाओ और सुनो ..बोलो मत। अब तक तुम बोलते थे। पहले तुम जोर से ओंम बोले थे, फिर तुमने धीमे से भीतर ओंम को बोला था। अब तुम बोलो मत, अब तुम सुनो। अब तुम सिर्फ सुनो भीतर कि क्या वहां ओंम गज रहा है? और तुम चकित हो जाओगे, औंम का गुंजार तुम्हारे प्राणों से आ रहा है। और तुम्हारे रोएं—रोएं, शरीर में फैलता जा रहा है। यह प्रतीति जैसे -जैसे तुम्हारी साफ होती जाएगी, तुम पाओगे कि ओंम तुम्हारा जीवन स्वर है।
14-यह जो स्वर तुम्हें सुनाई पड़ेगा, यह अनाहत है ;नाद रहित वाणी है क्योंकि वह किसी चीज के संघर्षण से पैदा नहीं हो रहा है। इसको कबीर और नानक अजपा कहते हैं, क्योंकि यह किसी जप से पैदा नहीं हो रहा है।जो जाग जाता है उसे तो कण कण में परमात्मा नजर आता है। फिर वह संसार को कीचड़ नहीं कहता। जो जाग जाता है, वह न महातमा रह जाता है और न संसारी, न धर्मात्मा रह जाता है और न पापी। जो जाग जाता है उसके लिये भौतिकता और अध्यात्मिकता ,लोक-परलोक भी एक हो जाता है "ओंकार ध्यान की पहली विधि " ;-
03 FACTS;-
पहला चरण;-
02 POINTS;-
1-आपके चारों तरफ विद्युत का वर्तुल बनना जरूरी है।ध्यान में एक तरह की ओपनिंग, एक तरह का द्वार खुलता है ।उस वक्त कोई भी प्रवेश कर सकता है और हमारे चारों तरफ बहुत तरह की आत्माएं निरंतर उपस्थित हैं।इसलिए पहले चरण को हर हालत में पूरा करना जरूरी है।अपनी मन्त्र शक्ति से चारों तरफ विद्युत का वर्तुल बनाये।यह पहला चरण है। इस चरण के और भी अर्थ हैं । अगर यह चरण पूरा नहीं किया गया, तो दूसरे चरण में प्रवेश नहीं हो सकेगा। ऐसे ही जैसे कोई पहली सीढ़ी पर न चढ़ा हो तो दूसरी सीढ़ी पर न जा सके। पहली सीढ़ी पर पैर रखना जरूरी है, तभी दूसरी सीढ़ी पर चढ़ा जा सकता है।
2-अगर पहला चरण पूरा है तो आपका शरीर एक तरह का रेसिस्टेंस, एक तरह की प्रतिरोध की दीवाल खड़ी कर लेता है, उसमें से कोई भी हानिकर चीज आपके भीतर प्रवेश नहीं पा सकती और आपके भीतर से कोई भी शक्ति बाहर नहीं जा सकती, वह दीवाल का काम करने लगती है।जैसे कि हम अपने घर के चारों तरफ बिजली का तार दौड़ा दें, और उसमें करंट दौड़ रही हो, तो चोर भीतर न घुस सके, क्योंकि तार को छुए कि मुश्किल में पड़ जाए। पहले चरण का यही महत्वपूर्ण काम है कि वह आपके चारों तरफ विद्युत का वर्तुल बना दे। न तो भीतर से बाहर कुछ जा सके, न बाहर से भीतर कुछ आ सके।
सुरक्षा कवच धारण विधि ;- 05 POINTS;- 1-पद्मासन /या सिद्धासन में बैठे । आंखें अधखुली, यानि आधी खुली आधी बंद।
2-ॐ/इष्टमंत्र/ गुरुमंत्र ..का जप करते हुए यह भावना करे की मेरे इष्ट की कृपा का शक्तिशाली प्रवाह मेरे अंदर प्रवेश कर रहा है और मेरे चारो ओर सुदर्शन चक्र जैसा एक इन्द्रधनुषी घेरा बनाकर घूम रहा है।
3-''इन्द्रधनुषी प्रकाश घना होता जा रहा है।वह अपने दिव्य तेज़ से मेरी रक्षा कर रहा है।दुर्भावनारूपी अंधकार विलीन हो गया है और सात्विक प्रकाश ही प्रकाश छाया है। सूक्ष्म आसुरी शक्तियों से मेरी रक्षा करने के लिए वह चक्र सक्रिय है और मै पूर्णतः निश्चित हूँ ,आश्वस्त हूँ।'' जितनी देर श्वास भीतर रोक सके.. उक्त भावना को दोहराये और मानसिक चित्र बना ले...
4-''आकाश के अंदर पृथ्वी है।पृथ्वी के अंदर अनेक देश, अनेक समुद्र, अनेक लोग है।उनमे से एक आपका शरीर आसन पर बैठा हुआ है।आप एक शरीर नहीं हो बल्कि अनेक शरीर ,देश,सागर ,पृथ्वी ,सूर्य ,चंद्र , ग्रह एवं पूरे ब्रह्मांड के दृष्टा हो,साक्षी हो।''
5- अब धीरे - धीरे ॐ का दीर्घ उच्चारण करते हुए श्वास बाहर निकाले।मन ही मन भावना करे कि मेरे सारे दोष विकार बाहर निकल गए है।मन, बुद्धि शुद्ध हो गया है।
दूसरा चरण ;-
02 POINTS;-
1-दस मिनट में जब शरीर पूरी तरह चार्ज्ड, शक्ति से भर जाता है, तो दूसरे चरण में शक्ति को खेलने का मौका देना है। वह जो शक्ति जगी है उसको सहयोग करना है।हमारे भीतर जो भी शक्ति पड़ी है उसे चोट देकर जगाना है। तो दस मिनट में इतने जोर से श्वास लेनी है कि भीतर कोई गुंजाइश ही न रह जाए कि हम इससे ज्यादा भी ले सकते थे। श्वास की पूरी ताकत लगा देनी है।सख्त होकर खड़े नहीं हो जाना है और जब आप श्वास की पूरी ताकत लगाएंगे, तो जोर से चोट पड़ेगी;उतना ही शरीर डोलेगा। चोट मारनी है और शरीर को
डोलने देना है। और उस चोट के साथ शरीर के साथ डोलने लगना है।
2-दस मिनट में पूरी की पूरी हमारे फेफड़े में जितनी भी वायु है उस सबको रूपांतरित कर लेना है, उस सबको बदल देना है।हमारे फेफड़े में कोई छह हजार छिद्र हैं।जिसमें मुश्किलसे डेढ़ या दो हजार तक हमारी श्वास पहुंचती है, बाकी चार हजार सदा ही बंद पड़े रह जाते हैं, उनमें कार्बन डाय-आक्साइड ही इकट्ठी होती रहती है। पूरे के पूरे फेफड़े के सारे छिद्रों में नई आक्सीजन, नई प्राणवायु पहुंचा देनी है। जैसे ही प्राणवायु की मात्रा भीतर बढ़ती है वैसे ही शरीर की विद्युत जगनी शुरू हो जाती है। आप अनुभव करेंगे कि शरीर इलेक्ट्रिफाइड हो गया, उसमें बिजली दौड़ने लगेगी, रोआं-रोआं कंपने लगेगा ।
तीसरा चरण; -
03 FACTS;-
FIRST STEP;-
अब बैठ जाएं और दस मिनट में पूरी शक्ति से ओंकार के मंत्र की ध्वनि करें।ॐ.. ॐ.. ॐ.., ध्वनि इतनी सघन और तीव्रता से हो कि एक ओंकार पर दूसरा ओंकार चढ़ जाये। यानि दो ओंकार के बीच में कोई गैप न रहे। यदि एक श्वास में एक बार पूरी त्वरा से ॐ दोहराते हैं, तो विचारों के लिए कोई जगह नहीं रहेगी।
SECOND STEP;-
अब आंखें अधखुली, यानि आधी खुली आधी बंद। होंठ बंद और जबान तालु से लगी हुई। अब दस मिनट तक मन में ओंकार की ध्वनि करनी है ...पूरी शक्ति से।
THIRD STEP;- अब दस मिनट आंखें बंद कर लें। गर्दन झुका लें(यानि ठुड्डी हमारे सीने को छुए)। अब कोई ध्वनि नहीं करना है ..सिर्फ सुनना है।हमारे भीतर जो ओंकार की ध्वनि हो रही है, उसे सुनना है। पहले हमने शरीर से ओंकार की ध्वनि की, फिर मन से की और अब हमें भीतर हो रही ध्वनि को सुनना है। बाद लेट जाएं ,आंख बंद कर लें और विश्राम में चले जाएं। ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; "ओंकार ध्यान की दूसरी विधि " पहला चरण;- दस मिनट में उपरोक्त प्रकार से सुरक्षा कवच बना ले। दूसरा चरण ;- दस मिनट में उपरोक्त प्रकार से पूरी की पूरी हमारे फेफड़े में जितनी भी वायु है उस सबको रूपांतरित कर शरीर इलेक्ट्रिफाइड कर लेना है । तीसरा चरण; - 03 STEPS;- FIRST STEP;- 03 POINTS;- 1- बीस मिनट के बाद बस शांत हो जाएं। आवाज बंद कर दें।शक्ति जाग गई है, उसे भीतर रोकें।इंद्रियों को शिथिल छोड़ दें।और जरा भी हिलें-डुलें नहीं, बिलकुल मुर्दे की भांति हो जाएं। जो शक्ति भीतर जाग गई है, उसे ऊपर की यात्रा पर जाने दें। सब तरफ से द्वार बंद कर दें।आंख बंद.. हलन-चलन बंद।..आवाज बंद। अब अपने दाएं हाथ को माथे पर रख लें, दाएं हाथ को ले जाएं दोनों आंखों के बीच, तीसरे नेत्र के पास। 2- दोनों आंखों के बीच के स्थान को माथे पर रगड़ें...आहिस्ता-आहिस्ता ..भीतर बहुत कुछ होगा, जैसे कोई नया द्वार खुल जाए और एक नया दर्शन उपलब्ध हो। रगड़ते ही रगड़ते भीतर प्रकाश फैलना शुरू हो जाएगा, अनंत प्रकाश... भीतर अनंत प्रकाश फैल जाएगा, जैसे एक द्वार खुल गया और पिंजड़े से बाहर हो गए...छोड़ दें, खो दें अपने को प्रकाश में,एक हो जाएं...अनुभव करें ... प्रकाश ही प्रकाश है, और प्रकाश के साथ एक हुए जा रहे हैं...एक हुए जा रहे हैं... 3-जिन्हें प्रकाश का खयाल न आ रहा हो, वे अपने दोनों हाथों को आंखों पर रख कर आंखों को आहिस्ता से दबाएं और प्रकाश की लहरें भीतर शुरू हो जाएंगी। प्रकाश ही प्रकाश, अनंत प्रकाश... .भीतर प्रकाश ही प्रकाश हो गया और आप उस भीतरी प्रकाश में खो गए... देखते रहें चुपचाप, कोई बातचीत न करें। और प्रकाश ही प्रकाश, अनंत प्रकाश,अनुभव करें ...प्रकाश को रोएं-रोएं में भर जाने दें, तन-मन में, सब ओर...प्रकाश के सागर में डूब जाएं, जैसे मछली सागर में हो, ऐसे प्रकाश के साथ एक हो जाएं..
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1-नाउ पुट योर राइट हैंड पाम ऑन दि फोरहेड बिट्वीन दि आइब्रोज एंड रब दि थर्ड आई स्पॉट ..अपसाइड डाउन एंड साइडवेज। रब इट, एंड विद दि वेरी रबिंग समथिंग हैपन्स इनसाइड, ए न्यू डोर ओपन्स, ए न्यू परसेप्शन इज़ हैपनिंग...
2-नाउ बी वन विद दि लाइट...नाउ फॉरगेट योरसेल्फ एंड रिमेंबर दि लाइट...नाउ यू आर नॉट, ओनली लाइट रिमेन्स...बी वन विद इट, बी कंप्लीटली डिजाल्व इन इट...
3-दोज हू कैन नॉट फील दि लाइट, दे शुड पुट देयर बोथ हैंड्स ऑन देयर आइज एंड प्रेस योर पाम, प्रेस वेरी स्लोली... SECOND STEP;- 03 POINTS;- 1-अनुभव करें...प्रकाश के साथ ही साथ आनंद उतरना शुरू हो जाता है...प्रकाश के अनुभव के साथ ही साथ आनंद की तरंगें उतरनी शुरू हो जाती हैं... अनुभव करें ..प्रकाश ही प्रकाश, और प्रकाश...आप खो गए, प्रकाश ही रह गया... और प्रकाश के पीछे-पीछे ही आनंद की तरंगें भीतर फैलने लगेंगी, आनंद की लहरें भीतर उठने लगेंगी, आनंद रोएं-रोएं में छाने लगेगा...प्रकाश के पीछे ही आता है आनंद.. अनुभव करें, आनंद उतर रहा, आनंद छा रहा, सब ओर से आनंद झर रहा...बिलकुल खाली घड़े की भांति हो जाएं, खाली घड़े में जैसे वर्षा की बूंदें भरती हों, आनंद भरता चला जाता है... मन-प्राण सब ओर आनंद को भर जाने दें...आनंद के साथ एक हो जाएं... 2-जो लोग आनंद को अनुभव न कर पा रहे हों, वे अपने दाएं हाथ को हृदय पर रख लें और आहिस्ता से दबाएं। दबाते ही भीतर आनंद की तरंगें फैलनी शुरू हो जाएंगी। जैसे कोई पत्थर फेंक दे झील में और लहरें उठ जाएं, ऐसा ही हृदय को दबाते ही तरंगें फैलनी शुरू हो जाएंगी. ..आनंद अनुभव करें, आनंदित हों, आनंद में डूब जाएं, एक हो जाएं ..रोएं-रोएं में, श्वास-श्वास में आनंद को भर जाने दें... 3-और आनंद के पीछे-पीछे ही परमात्मा की मौजूदगी अनुभव होने लगती है...और आनंद की सघनता ही परमात्मा की मौजूदगी बन जाती है... और पीछे-पीछे परमात्मा का स्पर्श आने लगता है...परमात्मा को अनुभव करें, चारों ओर वही घेरे खड़ा है, चारों ओर उसी का स्पर्श है, बाहर-भीतर वही स्पर्श कर रहा है...उसकी मौजूदगी अनुभव करें और भीतर सुगंधित हो उठेगा... उसकी मौजूदगी अनुभव करें, और आप एक मंदिर बन जाते हैं...जिन लोगों को मौजूदगी अनुभव न होती हो, वे एक सेकेंड के लिए श्वास को रोक दें ..। श्वास के रुकते ही उसकी मौजूदगी अनुभव होगी...परमात्मा चारों ओर मौजूद है... वही मौजूद है...अब आप मिट गए, वही है...
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1-नाउ बी जस्ट ए नथिंगनेस, एन एंप्टी वेसल, एंड लेट दि वेसल बी फिल्ड
टोटली विद ब्लिस...नाउ फील दि ब्लिस, नाउ बी फिल्ड विद ब्लिस, नाउ बी वन विद दि ब्लिस...
2-दोज हू आर नॉट फीलिंग ब्लिस, दे शुड पुट देयर राइट हैंड पाम ऑन दि हार्ट, एंड देन प्रेस दि स्पॉट, प्रेस दि स्पॉट...
जस्ट बाइ प्रेसिंग योर हार्ट, वेव्स ऑफ ब्लिस आर कमिंग...एंड दे गो ऑन
स्प्रेडिंग...फील ब्लिस...मोर ब्लिस...मोर ब्लिस...एंड बिकम वन विद इट...
3-डीपर वन इज़ इन ब्लिस, डीपर वन गोज इनटु दि डिवाइन...नाउ डिजाल्व योरसेल्फ कंप्लीटली एंड फील दि प्रेजेंस ऑफ दि डिवाइन.
दोज हू आर नॉट एबल टु फील दि डिवाइन, दे शुड स्टॉप देयर ब्रेथ एज इट इज़, स्टॉप फॉर ए मोमेंट। एंड दि मोमेंट ब्रेथ इज़ स्टॉप्ड, दि प्रेजेंस इज़ फेल्ट। THIRD STEP;- 03 POINTS;- 1-और ध्यान की अंतिम स्थिति अनुभव करें। अब उसकी मौजूदगी ही नहीं, आप स्वयं परमात्मा हैं। मैं स्वयं परमात्मा हूं। अनुभव करें: ''अहं ब्रह्मास्मि'' उसकी मौजूदगी ही नहीं, अब मैं तो मिट गया, अब वही है...मैं स्वयं परमात्मा हूं...अनुभव करें--मैं स्वयं परमात्मा हूं... . अब दुबारा अपने दाएं हाथ की हथेली को माथे पर रख लें और आहिस्ता से रगड़ें। रगड़ें, भीतर बहुत कुछ होगा, जैसे अचानक कोई द्वार खुल जाए, जैसे अचानक रात के अंधेरे में बिजली चमक जाए.. भीतर होते परिवर्तन को अनुभव करें...भीतर बहुत कुछ बदलेगा, सब कुछ बदलेगा, सारी चेतना ही बदल जाती है, आप किसी दूसरी दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं... 2-अब दोनों हाथ आकाश की ओर ऊपर उठा लें। आंखें खोलें, आकाश को देखें और आकाश को आपके भीतर देखने दें...आकाश और आपके बीच एक संवादको घटित होने दें...आलिंगन में दोनों हाथ फैला दें और आकाश के हृदय को आपके हृदय के पास आने दें.. और अब हृदय में जो भी भाव उठता हो उसे पूरी तरह प्रकट होने दें। 3-जो भी भीतर हो रहा हो उसे प्रकट करें... अब रुक जाएं। दोनों हाथ जोड़ लें और परमात्मा के चरणों में सिर रख दें, धन्यवाद दें... आदमी अकेला काफी नहीं, परमात्मा की सहायता चाहिए। उसकी अनुकंपा के बिना कुछ भी न हो सकेगा, उसकी अनुकंपा चाहिए।हृदय में भीतर-भीतर भाव को फैलने दें: प्रभु की अनुकंपा अपार है ।दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं।
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1 -नाउ नॉट ओनली दि प्रेजेंस ऑफ दि डिवाइन, नाउ फील दैट यू आर दि डिवाइन...व्हेन यू आर नॉट, यू आर दि डिवाइन...नाउ फील, नाउ रिमेंबर, नाउ रियलाइज--आई एम दि डिवाइन...
2- नाउ पुट अगेन योर राइट हैंड पाम ऑन दि फोरहेड बिट्वीन दि टू आइब्रोज एंड रब दि स्पॉट, रब दि थर्ड आई स्पॉट, एंड मच विल हैपन इनसाइड... नाउ रब, रब दि थर्ड आई स्पॉट एंड सम डोर, अननोन डोर ओपन्स इनसाइड... रब दि स्पॉट, रब दि स्पॉट एंड फील दि ट्रांसफार्मेशन इनसाइड...
3-नाउ रेज़ योर बोथ हैंड्स टुवर्ड्स दि स्काई, ओपन योर आइज, नाउ सी दि स्काई एंड लेट दि स्काई सी इनटु यू...लेट देयर बी ए कम्यूनियन बिट्वीन यू एंड दि स्काई... .नाउ बी इन एन एम्ब्रेस विद दि स्काई...
नाउ एक्सप्रेस योरसेल्फ टोटली, व्हाट सो एवर इज़ इनसाइड, लेट इट बी
एक्सप्रेस्ड... नाउ जस्ट बी मैड इन एक्सप्रेसिंग..
नाउ रेज़ योर बोथ हैंड्स इन ए नमस्कार पोस्चर एंड पुट योर हेड इनटु दि डिवाइन्स फीट। दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट । NOTE;- इस प्रयोग को आप प्रतिदिन घर पर करें।परमात्मा तक पहुंचने में साहस की कमी के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है। जिन्हें न भी हो पाया हो, वे भी प्रयास करें । दो-चार-आठ दिन, पंद्रह दिन बीतते, कभी भी घटना घट जाएगी। और एक बार घट जाए, तो फिर आपकी आगे की यात्रा प्रारंभ हो जाती है।
....SHIVOHAM...