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क्या हैं मृत्यु-भय से मुक्त करवाने वाली अनूठी ध्यान विधि ?ध्यान में शारीरिक दर्द बाधा क्यों डालते ह


क्या हैं मृत्यु-भय से मुक्त करवाने वाली अनूठी ध्यान विधि ?(विज्ञानं भैरव तंत्र सूत्र पर आधारित)-

पहला सूत्र-ध्यान का श्वास से क्या संबंध है?-

07 FACTS;-

1-यह समझ लेनी जरूरी है कि ध्यान का श्वास से बहुत गहरा संबंध है। मन की सारी दशाएं श्वास से गहरे में संबंधित हैं।साधारणतः देखा होगा, क्रोध में श्वास एक प्रकार से चलती है, शांति में दूसरे प्रकार से चलती है। कामवासना में तो श्वास की गति तत्काल बदल जाती है।जब श्वास बहुत शांत, धीमी, गहरी चलती हो, तो मन बहुत अदभुत प्रकार के आनंद को अनुभव करता है।

2-जापान शायद अकेला देश है, जहां अधिकतम लोग प्रसन्नचित्त दिखाई पड़ते हैं। इस संबंध में खोज-बीन चलती थी कि वहां के लोगों की प्रसन्नता का कारण क्या है? तो बहुत अजीब बात पता चली और वह यह कि जापान में छोटे-छोटे बच्चों को मां-बाप एक बात जरूर सिखाते हैं..कि जब भी क्रोध हो, मन अशांत हो, चिंतित हो, तो गहरी श्वास लो और श्वास पर ध्यान करो। इससे उनके पूरे व्यक्तित्व में बुनियादी अंतर हुआ है। 3-तो इसे कभी भी, दिन में किसी भी क्षण में अशांति मालूम पड़े, क्रोध मालूम पड़े, चिंता मालूम पड़े, तो एक मिनट के लिए प्रयोग करके देखें। गहरी श्वास लें और श्वास पर ध्यान करें। और जब ध्यान के लिए बैठें, तब तो अनिवार्य रूप से दस मिनट के लिए पहले गहरी श्वास लेकर। अगर इस प्रयोग को ही एक घंटे पूरा किया जाए, तो अलग से और कुछ करने की जरूरत भी नहीं है।

4-श्वास हमारी आत्मा और शरीर को जोड़ने वाला सेतु है, ब्रिज है। उसी के द्वारा आत्मा और शरीर जुड़े हुए हैं। जब हम गहरी श्वास लेते हैं, तो शरीर और आत्मा के बीच का फासला बड़ा हो जाता है। और जब हम श्वास पर ध्यान करते हैं, तो शरीर धीरे-धीरे बाहर अलग पड़ा रह जाता है, आत्मा अलग हो जाती है और ध्यान बीच के अंतराल पर हो जाता है। 5- अगर एक घंटा रोज तीन महीने तक सिर्फ इतना ही प्रयोग कर सकें, कि आपका शरीर आपसे अलग है, इसकी स्पष्ट प्रतीति हो जाएगी, यह किसी शास्त्र में नहीं पढ़ना पड़ेगा।कम से कम तीस परसेंट लोगों को तो किसी न किसी दिन यह भी अनुभव हो सकता है कि शरीर अलग पड़ा है, मैं अलग खड़ा हूं, और अपने ही पड़े हुए शरीर को देख रहा हूं। शरीर के बाहर

होने का अनुभव भी हो सकता है।और एक बार भी यह अनुभव हो जाए, तो मृत्यु समाप्त हो गई। क्योंकि तब हम जानते हैं कि शरीर ही मरेगा, मेरे मरने का अब कोई कारण नहीं है। और जिस व्यक्ति के जीवन से मृत्यु का भय चला जाए, उस व्यक्ति के जीवन से सभी भय चले जाते हैं। क्योंकि मूल भय मृत्यु है और जिस व्यक्ति को ऐसा दिखाई पड़ जाए कि मैं शरीर से अलग हूं, उसके जीवन में वह द्वार खुल जाता है जो प्रभु का द्वार है।

6-इसलिए पहले दस मिनट के लिए श्वास पर थोड़ा सा प्रयोग करें। श्वास इन दस मिनटों में गहरी लेनी है, जितनी आप ले सकें, बिना दबाव और जोर के, कोई परेशानी और तकलीफ न हो; और उतनी ही गहरी वापस छोड़नी है। हमारे फेफड़ों में अगर बहुत कार्बन डाइआक्साइड भरा हो, तो चित्त का शांत होना कठिन हो जाता है। अगर हमारे प्राणों में बहुत आक्सीजन चला जाए..खून में, श्वास में, सब तरफ प्राण-वायु भर जाए..तो ध्यान में जाना बहुत आसान हो जाता है।

7- इस प्रयोग में सारा ध्यान श्वास पर ही रखना है। श्वास भीतर गई, तो हम ये जानते है कि श्वास भीतर जा रही है, और ध्यान को भीतर ले जाना है।श्वास बाहर गई, तो जानना है कि श्वास बाहर जा रही है, और उसके साथ ही ध्यान को बाहर ले जाना है। ध्यान श्वास के झूले पर झूलने लगे।श्वास भीतर जाए तो हमारा ध्यान भीतर जाए; श्वास बाहर जाए तो हमारा ध्यान बाहर जाए।

श्वास के साथ ही हमारे चित्त की डोर बंध जाए।बस श्वास ही रह जाए, और सब कुछ मिट जाए। दस मिनट गहरी श्वास लेनी है और श्वास के साथ ही बाहर-भीतर जाना है। इन दस मिनटों में हम आंख बंद रखें, ताकि और कुछ न दिखाई पड़े।

दसरा सूत्र-'सर्व-स्वीकार' का क्या अर्थ हैं?-

05 FACTS;- 1-यदि हम श्वास पर ध्यान कर रहे हैं..तो बाहर पक्षी आवाज कर रहे हैं, कोई बच्चा चिल्लाएगा, सड़क से कोई ट्रक निकलेगा..ये सारी आवाजें हमारे चारों तरफ हो रही हैं। साधारणतः ध्यान करने वाले लोग, प्रार्थना-पूजा करने वाले लोग अपने चारों तरफ के जगत से एक दुश्मनी ले लेते हैं। अगर घर में एक आदमी ध्यान करने लगे, तो वह ध्यान के पहले जितना अशांत था, उससे ज्यादा ध्यान के बाद दिखाई पड़ेगा। कहीं घर में बर्तन गिर जाएगा, कोई बच्चा रोने लगेगा, तो उसका क्रोध और बढ़ जाएगा। उसे लगेगा कि डिस्टर्बेंस हो रहा है, बाधा पड़ रही है। 2-वास्तव में, ध्यान ऐसी प्रक्रिया है जो समस्त बाधाओं को स्वीकार कर लेती है, किसी बाधा को बाधा नहीं मानती। और जब तक हम ऐसी ध्यान की प्रक्रिया न सीख सकें जिसमें हम बाधाओं को भी सीढ़ियों की तरह प्रयोग कर लें, तब तक ध्यान में जाना असंभव है। क्योंकि बाधाएं तो चारों तरफ हैं। रास्ते से ट्रक निकलेगा, पक्षी आवाज करेंगे, उन्हें कोई प्रयोजन नहीं कि आप ध्यान करने बैठे हैं, कि आपके ध्यान में बाधा न पड़ जाए। और अगर आपने ऐसा समझा कि बाधा पड़ रही है, तो बाधा पड़ जाएगी। 3-बाधा बाधाओं के कारण नहीं, हमारी इस भाव-दशा के कारण होती है कि बाधा पड़ रही है। अगर यह भाव-दशा छोड़ दी जाए और हम स्वीकार कर लें कि जो भी हो रहा है, ठीक है, हम राजी हैं। पक्षी आवाज कर रहे हैं, हम राजी हैं। तो पक्षियों की आवाज आपकी शांति को गहरा देगी, कम नहीं करेगी। रास्ते से ट्रक निकल रहा है, हम राजी हैं। कोई बच्चा रो रहा है, हम राजी हैं। क्योंकि आज तो आप बगीचे में आकर बैठ गए हैं, अगर प्रयोग करना चाहेंगे तो घर में ही करेंगे, सड़क चलेगी, घर में आवाज होगी, बात होगी, शोर होगा, और अगर यह दृष्टि रही कि यह सब बाधा बन रही है, तो ध्यान असंभव हो जाएगा।

4-तो दूसरा दस मिनट का प्रयोग हैं, 'सर्व-स्वीकार' का।अथार्त जो भी हो रहा है, मैं उससे राजी हूं, मेरा कोई विरोध नहीं है। पक्षी आवाज कर रहे हैं, मैं राजी हूं। और जब आप राजी होकर शांति से, आनंद से, स्वीकार से,पक्षी की आवाज सुनेंगे.. तो आप पाएंगे कि पक्षी की आवाज आपके भीतर गूंजती है और चली जाती है।आप एक खाली घर की तरह रह गए। वह आवाज कोई बाधा नहीं डालती, बल्कि उस आवाज के बाद आप और शांत हो गए। जैसा कि कभी अंधेरी रात में रास्ते पर चलते हों, और कार निकल जाए, तो कार के प्रकाश के गुजर जाने के बाद रास्ता और अंधेरा मालूम पड़ने लगता है। ठीक ऐसे ही आवाज गुजरेगी, अगर हमने उसका विरोध न किया, तो और घनी शांति पीछे से लौट आती है। 5-बिना सर्व-स्वीकार के प्रयोग के ध्यान में जाना असंभव है।आप हिमालय पर भाग कर नहीं जा सकते हैं...और वहां भी भाग कर चले जाएं, तो वहां भी कुछ न कुछ हो रहा है।आदमी नहीं बोलेंगे, तो पक्षी बोलेंगे; सड़क पर कोई न गुजरेगा, तो वृक्षों में हवाएं बहेंगी और आवाज होगी। सारे जगत में जीवन है, जीवन की आवाज है, उससे भागा नहीं जा सकता, उसे स्वीकार कर लेना पड़े।और फिर जब सभी तरफ परमात्मा है, तो सभी आवाजें उसकी हैं। विरोध उचित भी नहीं है। एक पक्षी ही चिल्ला रहा है, तो वह भी परमात्मा ही चिल्ला रहा है। और अगर वृक्ष में हवाएं आती हैं, सूखे पत्ते उड़ते हैं, वे भी परमात्मा के हैं। सब परमात्मा का है। और जब इस सबके साथ हमें एक हो जाना है, तो विरोध करके हम एक न हो पाएंगे। अ-विरोध, नॅान-रेसिस्टेंस दूसरा सूत्र है।

तीसरा सूत्र ‘मैं’ को कैसे विसर्जन करें ?-

05 FACTS;- 1-तीसरे सूत्र में पहले दोनों सूत्रों का प्रयोग जारी रहेगा और तीसरा सूत्र भी जुड़ जाएगा। श्वास हम गहरी लेंगे। सब स्वीकार का भाव मन में रखेंगे कि जो भी हो रहा है, उससे मैं राजी हूं। कहीं कोई मन में विरोध लेने की जरूरत नहीं है। धूप तेज है तो तेज है, और मैं राजी हूं, जो भी हो रहा है। और ध्यान श्वास पर ही जारी रहेगा। और तीसरी बात उसमें जोड़ देनी है कि मैं नहीं हूं, मैं मिट गया हूं। जैसे बूंद पानी में गिर जाए सागर में और खो जाए, ऐसा ही मैं खो गया हूं।

2-जैसे-जैसे यह भाव गहरा होगा कि मैं खो गया, मैं मिट गया, मैं समाप्त हो गया, वैसे-वैसे ही 'वह है', इसका भाव अपने आप प्रकट होने लगेगा। यहां मैं मिटूंगा, वहां उसका होना शुरू हो जाएगा। इस तरफ मैं मिटूंगा, उस तरफ वह होना शुरू हो जाएगा। बूंद गिरती है सागर में, इधर बूंद मिटी नहीं कि उधर सागर हुआ।मनुष्य मिट जाए, तो परमात्मा इसी क्षण है। और मिटने के लिए हमारी हिम्मत नहीं है। अपने को सम्हाल कर रखते हैं कि कहीं खो न जाएं, कहीं मिट न जाएं। शायद जिंदगी में जरूरी भी है। लेकिन चौबीस घंटे में अगर घड़ी भर को मिट जाएं, तो पता चलेगा कि तेईस घंटे होकर भी जो सुख ,शांति न मिली, वह एक घंटे 'न होकर' मिल गइ और सब पा लिया। 3-लेकिन हम इतने कमजोर लोग हैं कि दो-तीन महीने भी घंटा भर परमात्मा को देना संभव नहीं हो पाता। एक-दो दिन करेंगे और सोचेंगे कि पता नहीं कुछ होगा कि नहीं होगा। तीन महीने एक बात ख्याल रख लें कि कुछ न भी होगा, तो कुछ खो नहीं जाएगा।आदमी कुआं खोदता है, तो पहले दस-बीस फीट, पचास फीट कंकड़-पत्थर ही खोदना पड़ते हैं, तब कहीं जल-स्रोत आते हैं।और ध्यान यानी मन की खुदाई,मन का कुआं बनाना। जब हम मन की खुदाई पर उतरते हैं...तो भी पहले कंकड़-पत्थर ही हाथ आते हैं। लेकिन अगर कोई लगा ही रहे, लगा ही रहे, तो जल-स्रोत भी आ जाता है। और ज्यादा देर नहीं है.. प्रतीक्षा करने की। लेकिन हमारी थोड़ी प्रतीक्षा करने की भी क्षमता नहीं रह गई है।

ध्यान विधि;-

पहला चरण ;-

सुरक्षा कवच धारण विधि ;- 05 POINTS;- 1-ध्यान के लिए बैठने में दो-तीन बातें ख्याल में लें।शरीर को सीधा रख कर बैठें..आराम से जितना सीधा हो सके;अकड़ाने की जरूरत नहीं है। रीढ़ सीधी हो, जमीन से नब्बे का कोण बनाती हो, इतना भर ख्याल कर लें।पद्मासन /या सिद्धासन में बैठे । आंखें अधखुली, यानि आधी खुली आधी बंद। 2-ॐ/इष्टमंत्र/ गुरुमंत्र ..का जप करते हुए यह भावना करे की मेरे इष्ट की कृपा का शक्तिशाली प्रवाह मेरे अंदर प्रवेश कर रहा है और मेरे चारो ओर सुदर्शन चक्र जैसा एक इन्द्रधनुषी घेरा बनाकर घूम रहा है। 3-''इन्द्रधनुषी प्रकाश घना होता जा रहा है।वह अपने दिव्य तेज़ से मेरी रक्षा कर रहा है।दुर्भावनारूपी अंधकार विलीन हो गया है और सात्विक प्रकाश ही प्रकाश छाया है। सूक्ष्म आसुरी शक्तियों से मेरी रक्षा करने के लिए वह चक्र सक्रिय है और मै पूर्णतः निश्चित हूँ ,आश्वस्त हूँ।'' जितनी देर श्वास भीतर रोक सके.. उक्त भावना को दोहराये और मानसिक चित्र बना ले... 4-''आकाश के अंदर पृथ्वी है।पृथ्वी के अंदर अनेक देश, अनेक समुद्र, अनेक लोग है।उनमे से एक आपका शरीर आसन पर बैठा हुआ है।आप एक शरीर नहीं हो बल्कि अनेक शरीर ,देश,सागर ,पृथ्वी ,सूर्य ,चंद्र , ग्रह एवं पूरे ब्रह्मांड के दृष्टा हो,साक्षी हो।'' 5- अब धीरे - धीरे ॐ का दीर्घ उच्चारण करते हुए श्वास बाहर निकाले।मन ही मन भावना करे कि मेरे सारे दोष विकार बाहर निकल गए है।मन, बुद्धि शुद्ध हो गया है। दूसरा चरण ;-

03 STEPS;-

FIRST STEP;-

हम आंख बंद रखें, फिर दस मिनट तक श्वास पर ही ध्यान रखना है।बस श्वास ही रह जाएगी.. दस मिनट के लिए, और सब बंद हो जाएगा। श्वास भीतर गई, तो हम जानते हुए भीतर जाएं; श्वास बाहर गई, तो हम जानते हुए बाहर जाएं। ध्यान का मतलब यह है कि श्वास की जो गति है भीतर और बाहर, वह हमसे चूक न पाए, हम उसके साथ ही बाहर-भीतर डोलते रहें।गहरी श्वास भीतर ले जाएं,पूरे फेफड़े भर लें, फिर बाहर निकालें; भीतर ले जाएं, बाहर निकालें। दस मिनट में मन बहुत शुद्ध और शांत हो जाएगा।

SECOND STEP;- तो दस मिनट हम सर्व-स्वीकार का प्रयोग करें कि जो भी हो रहा है उससे मैं राजी हूं, मैं स्वीकार करता हूं, मेरा कोई विरोध नहीं है। और जैसे ही यह भाव भीतर घना होगा कि मैं राजी हूं, मैं स्वीकार करता हूं, वैसे ही मन गहरी शांति में उतरने लगेगा। पुनः आंख बंद कर लें। गहरी श्वास, श्वास पर ध्यान और चारों ओर के जीवन की स्वीकृति, विरोध नहीं। मन को गहरी से गहरी शांति के रास्ते पर अपने आप गति मिलनी शुरू हो जाती है। किसी भी चीज का अस्वीकार नहीं है, विरोध नहीं है। विरोध से ही बाधा बन जाती है।

THIRD STEP;-

तीसरा प्रयोग, दस मिनट के लिए।मनुष्य के और परमात्मा के बीच में जो सबसे बड़ी दीवाल है, वह दीवाल परमात्मा की तरफ से नहीं, मनुष्य की ही तरफ से है। और वह दीवाल है मनुष्य का यह ख्याल कि 'मैं हूं'। यह ख्याल,अहंकार,ईगो जितना मजबूत है, उतनी ही बड़ी दीवाल हमारे और उसके बीच खड़ी हो जाती है। ध्यान की पूरी गहराई में ‘मैं’ का मिट जाना जरूरी है, अन्यथा दीवाल नहीं गिरेगी, और उससे मिलना भी नहीं हो सकेगा।तो तीसरा प्रयोग है: ‘मैं नहीं हूं’ इस भाव में डूब जाना है।

NOTE;-

विश्राम में जाएं।आंखे बंद किए हुए ही, शांत और शिथिल होकर लेट जाएं।

IN NUTSHELL;- ध्यान के दूसरे चरण में दस मिनट गहरी श्वास लेना है और श्वास को ध्यानपूर्वक लेना है।श्वास भीतर जाए, तो ध्यान भीतर जाए; श्वास बाहर जाए, तो ध्यान बाहर जाए। देखते रहें..यह श्वास भीतर गई, यह श्वास बाहर लौटी; यह फिर भीतर गई, यह फिर बाहर लौटी..। श्वास अनदेखी न रहे, श्वास की स्मृति बनी रहे। फिर सब स्वीकार का भाव रहे..जो भी है, स्वीकार है; जो भी है, स्वीकार है।और अब तीसरे प्रयोग में डूब जाएं..एक भाव करें, जैसे बूंद सागर में गिर जाती है, ऐसे ही मैं भी गिर गया अनंत के सागर में, मिट गया..मैं नहीं हूं, मैं नहीं हूं...विश्राम में जाएं।

NOTE;- 1-अगर कोई व्यक्ति जितना ज्यादा श्वास पर ध्यान रख सके..रास्ते पर चलते हुए, बस में बैठे हुए, खाना खाते हुए, रास्ते पर चलते हुए..उतना ही उसका मन गहरी से गहरी शांति की पर्तों में उतरता चला जाता है।दिन के किसी भी समय में क्रोध आ जाए, मन अशांत हो जाए, चिंतित हो जाए, तो इस प्रयोग को एक मिनट के लिए करके देखें। जब भी मन क्रोधित हो, अशांत हो, चिंतित हो, गहरी श्वास लें और श्वास पर ध्यान करें। एक मिनट से ज्यादा क्रोध, चिंता या अशांति टिकनी असंभव हो जाएगी।

क्या हम तीनों प्रयोगों को बिस्तर पर लेट कर भी कर सकते है?-

03 FACTS;- 1-इन तीनों प्रयोगों को बिस्तर पर लेट कर भी कर सकते है।इन तीनों प्रयोगों को एक साथ, सुबह जब सोकर उठें, तब एक आधा घंटे के लिए करें, और रात जब सोने लगें तो बिस्तर पर ही लेट कर करें और करते-करते ही सो जाएं।अगर चौबीस घंटे में से एक घंटा इस बात के लिए दिया जा सके, तो दो-तीन महीने के भीतर ही आप एक रूपांतरण देखेंगे।आप पाएंगे कि आपके भीतर से कोई नये आदमी का जन्म शुरू हो गया। कुछ नया ही होना शुरू हो गया, जिसका हमें पता भी नहीं था। 2-अगर रात सोते समय इसे करते-करते ही सो जाएं, तो बहुत कीमती परिणाम होंगे। क्योंकि रात सोते समय हमारी मन की जो आखिरी दशा होती है, फिर पूरी नींद में उसकी प्रतिध्वनि होती रहती है।और धीरे-धीरे, धीरे-धीरे पूरी नींद ध्यान में बदली जा सकती है।और आज की दुनिया में किसी के पास इतना समय नहीं हैं कि अलग से ध्यान के लिए बहुत समय दे सके।इसलिए रात सोते समय अगर ध्यान किया जाए, तो धीरे-धीरे बिना कोई अलग से समय निकाले रात की पूरी नींद ध्यान में बदल जाती है।और थोड़े दस-पंद्रह दिन में ही आपको पता पड़ना शुरू होगा कि नींद की गहराई/क्वालिटी बदल गई है ।और जब सुबह आप उठेंगे, तो ऐसा नहीं लगेगा कि नींद से उठे, ऐसा लगेगा कि गहरे ध्यान से उठे। ताजगी, शांति, हलकापन..वह सब सुबह से ही मालूम होने शुरू हो जाएंगे।

3-और यदि संभव हो सके, तो सुबह स्नान के बाद 'ध्यान 'कर लें।तीन महीने के लिए एक घंटा ध्यान के लिए दे दें।फिर तीन महीने के बाद ध्यान के लिए घंटा नहीं देना पड़ेगा, ध्यान अपने आप ले लेगा।वह जो आनंद की झलक ,शांति की किरण आएगी, वह जो परमात्मा का स्पर्श मालूम पड़ना शुरू होगा ;वह अपने आप अपने आप पुकार लेगा। मन का नियम है कि जहां आनंद है, मन उस तरफ अपने आप बहा चला जाता है। हम एक बार आनंद का रास्ता भर पकड़ लें , तो जैसे नदी सागर की तरफ भाग रही है, ऐसा मन आनंद की तरफ भागने लगता है। और जहां पूर्ण आनंद है, वहीं परमात्मा का निवास भी है।

...SHIVOHAM...


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