ध्यान कैसे करें?'
ध्यान कैसे करें?- यह पूछने की आवश्यकता नहीं है कि ध्यान कैसे करें, बस पूछें कि कैसे स्वयं को खाली रखें। ध्यान सहज घटता है।यह ध्यान की कुल तरकीब है - कैसे खाली रहना है। तब आप कुछ भी नहीं करेंगे और ध्यान का फूल खिलेगा।जब तुम कुछ भी नहीं करते तब ऊर्जा केंद्र की तरफ बढ़ती है, यह केंद्र की ओर एकत्रित हो जाती है। जब तुम कुछ करते हो तो ऊर्जा बाहर निकलती है। करना बाहर की ओर जाने का एक मार्ग है। ना करना भीतर की ओर जाने का एक मार्ग है। किसी कार्य को करना पलायन है।धार्मिक कार्य और धर्मनिरपेक्ष कार्य के बीच कोई अंतर नही है: सभी कार्य, कार्य हैं, और वे तुम्हें तुम्हारी चेतना से बाहर की ओर ले जाने में मदद करते हैं। वे बाहर रहने के लिए बहाने हैं।मनुष्य अज्ञानी और अंधा है, और वह वैसा ही बने रहना चाहता है, क्योंकि स्वयं के भीतर आने के लिए साहस की आवश्यकता है। साहस- स्वयं होने का, साहस- भीतर जाने का। तो ध्यान है केवल स्वयं की उपस्थिति में आनंदित होना। यह बहुत सरल है - चेतना की पूरी तरह से विश्रांत अवस्था जहां तुम कुछ भी नहीं कर रहे होते।
जिस क्षण तुम्हारे भीतर कर्ता भाव प्रवेश करता है तुम तनाव में आ जाते हो; चिंता तुरंत तुम्हारे भीतर प्रवेश कर जाती है। क्या करें? सफल कैसे हों? असफलता से कैसे बचें? तुम पहले ही भविष्य में चले जाते हो।यदि तुम विचार कर रहे हो, तो तुम अज्ञात पर नहीं केवल ज्ञात पर विचार कर सकते हो।तुम श्री कृष्ण के बारे में चिंतन कर सकते हो; लेकिन "ईश्वर" अज्ञात है।ध्यान मात्र होना है, बिना कुछ किए -न कोई कार्य , न कोई विचार नहीं, न कोई भाव ..तुम बस हो। जब तुम कुछ नहीं करते हो तो यह आनंद आता है क्योंकि अस्तित्व आनंद नाम की वस्तु से बना है। इसे किसी कारण की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम अप्रसन्न हो तो तुम्हारे पास अप्रसन्नता का कारण है; अगर तुम प्रसन्न हो तो तुम बस प्रसन्न हो - इसके पीछे कोई कारण नहीं है।
तुम्हारा मन कारण खोजने की कोशिश करता है क्योंकि यह अकारण पर विश्वास नहीं कर सकता, क्योंकि यह अकारण को नियंत्रित नहीं कर सकता । यह प्रसन्नता तुम्हारी ही चेतना है ,तुम्हारा ही innermost है।ध्यान की शुरुआत खुद को मन से अलग करने से , एक साक्षी बनने से होती है।यदि तुम प्रकाश को देखते हो तो एक बात निश्चित है कि तुम प्रकाश नहीं हो।कुछ भी मत करो ...केवल द्रष्टा बने रहो, और देखने का चमत्कार ही ध्यान है। जैसे ही तुम देखते हो, धीरे-धीरे मन विचारों से खाली हो जाता है, लेकिन तुम सो नहीं जाते हो, तुम अधिक होशपूर्ण और अधिक जागरूक होने लगते हो।ध्यान बिना किसी भी मूल्यांकन के देखने का, साक्षी का, निरीक्षण का दूसरा नाम है।ध्यान अ-मन की अवस्था है ;बिना किसी विचार के शुद्ध चेतना की स्थिति है।
साधारणता, तुम्हारी चेतना धूल से ढके हुए एक दर्पण की तरह है। मन एक निरंतर चलता ट्राफिक है: विचार चल रहे हैं, इच्छाएं चल रही हैं, स्मृतियां चल रही हैं, महत्वाकांक्षाएं चल रही हैं। यहां तक कि जब तुम सो रहे होते हो तो भी मन कोई न कोई काम कर रहा होता है, वह स्वप्न देख रहा होता है ; अंदर ही अंदर अगले दिन की तैयारी चल रही होती है।इसके ठीक विपरीत है ध्यान। जब कोई विचार , कोई इच्छा नहीं होती , तुम पूरी तरह से मौन होते हो - वह मौन ही ध्यान है। और उस मौन में सत्य जाना जाता है, अन्यथा कभी नहीं। ध्यान एक बोध है कि "मैं मन नहीं हूं"। जब यह बोध तुम्हारे भीतर गहरा और गहरा हो जाता है, धीरे-धीरे कुछ मौन के क्षण आते हैं । उन ठहरे हुए क्षणों में तुम जान लोगे कि तुम कौन हो, और तुम्हें पता चलेगा कि इस अस्तित्व का क्या रहस्य है।
मन ध्यान में प्रवेश नहीं कर सकता, जहां मन समाप्त होता है, वहां ध्यान आरंभ होता है। इसे स्मरण रखना होगा, क्योंकि हमारे जीवन में, हम जो भी करते हैं, जो भी हम प्राप्त करते हैं ; , हम मन के द्वारा करते हैं।जो कुछ भी मन कर सकता है वह ध्यान नहीं हो सकता । ध्यान को छोड़कर सब कुछ मन से किया जाता है। यह कुछ ऐसा है जो मन के पार है। ध्यान किसी का नहीं करना होता है, ध्यान एक अवस्था है जब चेतना अकेली रह जाती है।ध्यान तुम्हारा आंतरिक स्वभाव है। वह तुम हो, तुम्हारी आत्मा है, इसका तुम्हारे कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है।यह कोई वस्तु नहीं है तुम इस पर कब्जा नहीं कर सकते। जब चेतना अकेली रह जाए और चेतना के सामने कोई विषय न हो उस अवस्था का नाम ध्यान है।उदाहरण के लिए हम एक कमरे से पूरा सामान हटा दें ,खाली करके एक दीपक जला दें।तो दिया तो प्रकाश करता ही रहेगा ना? उसी प्रकार हम चित्त से सारे विचार , सारी कल्पनाएं हटा दें तो चेतना अकेली रह जाएगी।
चेतना की वो अकेली अवस्था ध्यान है। ध्यान की स्थिति एक निर्दोष, मौन की अवस्था है। तो ध्यान के दो अर्थ हैं ध्यान और समाधि। ध्यान कुछ समय के लिए होता है, ध्यान कभी किया कभी नहीं किया; समाधि का अर्थ है कि अब तुम घर पहुंच गए, अब ध्यान करने की आवश्यकता नहीं रही।जब कोई ध्यान में जीता हो, ध्यान में चलता हो, ध्यान में सोता हो, उस व्यक्ति के होने का ढंग ही केवल ध्यान हो, तो व्यक्ति पहुंच गया।परन्तु हमें यह ध्यान रखना होगा कि साक्षी तक पहुंचना ध्यान की एक स्टेज है।एक बिगनर के लिए जिसने अभी -अभी ध्यान करना शुरू किया है ..केवल द्रष्टा बने रहना , और देखना अथार्त अमन की अवस्था में पहुंचना संभव नहीं है।कुंडलिनी योग उपनिषद के अनुसार हमें अपने आज्ञा चक्र में सफेद बादलों का का शिवलिंग और साढ़े तीन अंगुल की कुंडलिनी का ध्यान करना होता है।हमें यह ध्यान करना होता है कि साढ़े तीन अंगुल की कुंडलिनी शिवलिंग के चारों ओर घूम रही है। इसी के साथ ही हमें मंत्र का जप करना होता है। पहले इस अभ्यास के द्वारा ही हम अ-मन की अवस्था में पहुंच सकते हैं।