क्या है नवग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित वृक्ष और जड़े धारण करने की सम्पूर्ण विधि?
नवग्रहों के वृक्ष और जड़े धारण करने की सम्पूर्ण विधि...
02 POINTS;-
1-प्राचीन काल से नवग्रह की अनुकूलता के लिये रत्न पहनने का प्रचलन रहा है।सम्पन्न लोग महंगे से महंगे रत्न धारण करलेते है। लेकिन इन रत्नों का संबंध ग्रह के शुभाशुभ प्रभावको बढ़ाने के कारण इनकी माँग और भी ज्यादा बढ़ गई है। हमारे ऋषि मुनियों ने प्राचीन काल से ही ग्रह राशियों के आधिकारिक वृक्ष उनके गुण देखकर निर्धारित किये थे।प्रारम्भ में सभी लोगों को महंगे रत्न उपलब्ध नहीं होते थे। तब वे पेड़ की जड़ धारण करते थे।रत्नों की तरह ही पेड़ की जड़ भी पूर्ण लाभ देती है।
2-ज्योतिष विज्ञान में महंगे रत्नों, उपरत्नों के विकल्प के रूप में पेड़-पौधों की जड़ें पहनी जाती हैं। इससे बुरे ग्रहों का प्रभाव नष्ट होता है और संबंधित ग्रह
अनुकूल होता है।वृक्ष की जड़ पहनने के लिए सर्वप्रथम आपको अपने जन्मनाम की राशि का पता होना चाहिए। और अपनीराशि के स्वामी ग्रह का भी ज्ञान होना चाहिए। नीचे सारणी में आपको ग्रह और राशि के साथ आधिकारिक वृक्ष की जड़ का विवरण दिया जा रहा है।
राशि ----ग्रह ---- वृक्ष
1-मेष ------- मंगल---खदिर/अनंतमूल की जड़(इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर सीधे हाथ में बांधा जाता है।)
2-वृष---------शुक्र ---- गूलर/अरंडमूल की जड़(शुक्रवार के दिन सफेद कपड़े में इसकी जड़ को बांधकर दाहिनी भुजा पर बांधे।)
3-मिथुन------बुध-----अपामार्ग/विधारा मूल की जड़(बुधवार के दिन हरे रंग के कपड़े में बांधकर सीधे हाथ में उपर की ओर बांधा जाता है।)
4-कर्क -------चंद्र -----पलाश/खिरनी की जड़ का(सोमवार के दिन सफेद कपड़े में हाथ में बांधने पर इसके शुभ प्रभाव मिलना प्रारंभ हो जाते हैं।)
5-सिंह--------सूर्य -----आक/बेलमूल की जड़(रविवार के दिन नारंगी कपड़े में इसकी जड़ को बांधकर दाहिनी भुजा में बांधना चाहिए।)
6-कन्या-------बुध ----अपामार्ग/विधारा मूल की जड़
7-तुला--------शुक्र ----गूलर/अरंडमूल की जड़
8-वृश्चिक------मंगल---खदिर/अनंतमूल की जड़
9-धनु--------- गुरु ----पीपल/हल्दी की गांठ(गुरुवार के दिन पीले कपड़े में हल्दी की गांठ बांधकर पास रखे )
10-मकर--------शनि---शमी/धतूरे की जड़(इस की जड़ को शनिवार के दिन काले कपड़े में बांधकर दाहिनी भुजा में बांधना चाहिए।)
11-कुम्भ--------शनि ---शमी/धतूरे की जड़
12-मीन --------गुरु -- -पीपल/हल्दी की गांठ
NOTE;-
1-राहु ग्रह के बुरे प्रभाव कम करने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा या इस पेड़ की जड़ का उपयोग किया जाता है। शनिवार या सोमवार को सफेद या भूरे रंग के कपड़े में इसे बांधकर पास रखा जाता है। महिलाओं को गर्भाशय से संबंधित रोग, त्वचा की समस्या, गैस प्रॉब्लम, दस्त और बुखार में इस जड़ का चमत्कारी प्रभाव देखा गया है। बार-बार दुर्घटनाएं होती हैं तो भी इस जड़ का प्रयोग करना चाहिए।
2-केतु अश्वगंधा की जड़ का प्रतिनिधि ग्रह केतु है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि करने और बुरे प्रभाव कम करने में अश्वगंधा चमत्कार की तरह काम करता है। अश्वगंधा की जड़ को नीले रंग के कपड़े में बांधकर शनिवार को सीधे हाथ में बांध जाता है। इसके प्रभाव से स्मॉलपॉक्स, यूरीन इंफेक्शन और त्वचा संबंधी रोगों में आराम मिलता है। जीवन में चल रही मानसिक परेशानियां भी इससे कम होती हैं।
पेड़ से जड़ लेने की प्रक्रिया;-
09 POINTS;-
1-आपको जिस ग्रह या नक्षत्र से संबंधित पेड़ की जड़ लेनी हो , उस ग्रह या नक्षत्र के आधिकारिक दिन से एक दिन पहले अर्थात....
2-मेष या वृश्चिक राशि हो तो उसके स्वामी मंगल की जड़ पहनने के लिए मंगलवार से एक दिन पहले सोमवार को
3-वृष या तुला राशि हो तो उसके स्वामी शुक्र की जड़ पहनने के लिए शुक्रवार से एक दिन पहले गुरुवार को
4-यदि मिथुन या कन्या राशि हो तो उसके स्वामी बुध की जड़ पहनने के लिए बुधवार से एक दिन पहले मंगलवार को
5-यदि कर्क राशि हो तो उसके स्वामी चन्द्रमा की जड़ पहनने के लिए सोमवार से एक दिन पहले रविवार को ,
-6-यदि सिंह राशि हो तो उसके स्वामी सूर्य की जड़ पहनने के लिए रविवार से एक दिन पहले शनिवार को,
7-यदि धनु - मीन राशि हो तो स्वामी गुरु की जड़ पहनने के लिए गुरुवार से एक दिन पहले बुधवार को ,
8-यदि मकर - कुम्भ राशि हो तो उसके स्वामी शनि की जड़ पहनने के लिए शनिवार से एक दिन पहले शुक्रवार को ,
9-शुभ मुहूर्त देखकर उस वृक्ष के पास जाएँ और वृक्ष से निवेदन करें कि मैं आपके आधकारिक ग्रह की शांति और शुभ फल प्राप्ति हेतु आपकी जड़ धारण करना चाहता हूँ , जिसे कल शुभ मुहूर्त में आपसे लेने आऊंगा। इसके लिए मुझे अनुमति प्रदान करें। इसके बाद अगले दिन उस ग्रह के वार को धूपबत्ती , जल का लोटा , पुष्प , प्रसाद आदि सामग्री लेकर शुभ मुहूर्त में उस वृक्ष के पास जाएँ और हाथ जोड़कर जल चढ़ाएं। फिर धूपबत्ती जलाकर पुष्प चढ़ाएं। उसके बाद प्रसाद का भोग लगाएं। फिर प्रणाम करके उसकी जड़ खोदकर निकाल लें। और घर ले आएं।
जड़ धारण करने की विधि ;-
जड़ को घर लाकर शुभ मुहूर्त में भगवान के सामने आसन पर बैठ कर उसे पंचामृत और गंगाजल से धोकर धूपबत्ती दिखाकर उसके आधिकारिक ग्रह के मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक या कम से कम एक माला का जाप करें। फिर उसे गले में पहनना हो तो ताबीज़ में डाल ले और हाथ पर बांधना हो तो कपड़े में सिलकर पुरुष दाएं हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांध ले।
धारण करते समय निम्न मंत्र बोले
सूर्य ----- ॐ घृणि: सूर्याय नमः
चन्द्रमा -ॐ चं चन्द्रमसे नमः
मंगल - ॐ भौम भौमाय नमः
बुध ----ॐ बुं बुधाय नमः
गुरु ----ॐ गुं गुरुवे नमः
शुक्र ---ॐ शुं शुक्राय नमः
शनि ---ॐ शं शनये नमःमंत्र -
राहु ----ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः
केतु ----ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
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ज्योतिष के अनुसार 9 ग्रहों का प्रभाव मानव ,जीवो, पेड़ पोधो, सब पर पड़ता है। हर ग्रह का एक नक्षत्र होता है। परन्तु हर नक्षत्र का एक वृक्ष होता है । नक्षत्रो के माध्यम से भी ग्रहों के कुप्रभाव को सही किया जा सकता है।
कोई भी व्यक्ति अपने नक्षत्र के अनुसार वृक्ष की पूजा करके अपनें नक्षत्र को ठीक कर सकता है। यदि जन्म नक्षत्र अथवा गोचर के समय कोई नक्षत्र पीड़ित चल रहा हो तब उस नक्षत्र से संबंधित वृक्ष की पूजा करने से पीड़ा से राहत मिलती है।
नक्षत्रों के देवता और स्वामी ;--
1-अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार जी और स्वामी केतु हैं ! 2-भरणी नक्षत्र के देवता यमराज जी और स्वामी शुक्र हैं ! 3-कृत्तिका नक्षत्र के देवता अग्नि देव जी और स्वामी सूर्य है ! 4-रोहिणी नक्षत्र के देवता ब्रह्मा जी और स्वामी चन्द्रमा है ! 5-मृगशिरा नक्षत्र के देवता चन्द्रमा जी और स्वामी मंगल है ! 6-आर्द्रा नक्षत्र के देवता शिव जी और स्वामी राहु हैं ! 7-पुनर्वसु नक्षत्र के देवता अदिति माता जी और स्वामी गुरु हैं ! 8-पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति देव जी और स्वामी शनि हैं ! 9-आश्लेषा नक्षत्र के देवता नागदेव जी और स्वामी बुध हैं ! 10-मघा नक्षत्र के देवता पितृदेव जी और स्वामी केतु हैं ! 11-पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के देवता भग देव जी और स्वामी शुक्र हैं ! 12-उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के देवता अर्यमा देव जी और स्वामी सूर्य हैं ! 13-हस्त नक्षत्र के देवता सूर्य देव जी और स्वामी चन्द्रमा हैं ! 14-चित्रा नक्षत्र के देवता विश्वकर्मा जी और स्वामी मंगल हैं ! 15-स्वाति नक्षत्र के देवता पवन देव जी और स्वामी राहु हैं ! 16-विशाखा नक्षत्र के देवता इन्द्र देव एवं अग्नि देवजी और स्वामी गुरु हैं ! 17-अनुराधा नक्षत्र के देवता मित्र देव जी और स्वामी शनि हैं ! 18-ज्येष्ठा नक्षत्र के देवता इन्द्र देव जी और स्वामी बुध हैं ! 19-मूल नक्षत्र के देवता निरिती देव जी और स्वामी केतु हैं ! 20-पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता जल देव जी और स्वामी शुक्र हैं ! 21-उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वेदेव जी और स्वामी सूर्य हैं ! 22-श्रवण नक्षत्र के देवता विष्णु जी और स्वामी चन्द्र हैं ! 23-धनिष्ठा नक्षत्र के देवता अष्टवसु जी और स्वामी मंगल हैं ! 24-शतभिषा नक्षत्र के देवता वरुण देव जी और स्वामी राहु हैं ! 25-पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के देवता अजैकपाद देव जी और स्वामी गुरु हैं ! 26-उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुध्न्य देवजी और स्वामी शनि हैं ! 27-रेवती नक्षत्र के देवता पूषा [सूर्य ]देव जी और स्वामी बुध है !
नक्षत्र-देवता की पूजा;-
सभी नक्षत्र-देवता जो नक्षत्रों में ही व्यवस्थित हैं, वे पूजित होने पर समस्त अभीष्ट कामनाओं को प्रदान करते हैं।
अश्विनी नक्षत्र ;-
अश्विनी नक्षत्र में अश्विनीकुमारों की पूजा करने से मनुष्य दीर्घायु एवं व्याधिमुक्त होता है।
भरणी नक्षत्र;-
भरणी नक्षत्र में कृष्णवर्ण के सुंदर पुष्पों से बनी हुई मान्यादि और होम के द्वारा पूजा करने से अग्निदेव निश्चित ही यथेष्ट फल देते हैं।
कृतिका नक्षत्र ;-
कृतिका नक्षत्र में शिव पुत्र कार्तिकेय की पूजा एवं कृतिका नक्षत्र के सवा लाख वैदिक मंत्रों का जाप किया जाता है।
रोहिणी नक्षत्र;-
रोहिणी नक्षत्र में ब्रह्मा की पूजा करने से वह साधक की अभिलाषा पूरी कर देते हैं।
मृगशिरा नक्षत्र ;-
मृगशिरा नक्षत्र में पूजित होने पर उसके स्वामी चंद्र देव उसे ज्ञान और आरोग्य प्रदान करते हैं।
आर्द्रा नक्षत्र ;-
आर्द्रा नक्षत्र में शिव के अर्चन से विजय प्राप्त होती है। सुंदर कमल आदि पुष्पों से पूजे गए भगवान शिव सदा कल्याण करते हैं।
पुनर्वसु नक्षत्र;-
पुनर्वसु नक्षत्र में अदिति की पूजा करनी चाहिए। पूजा से संतृप्त होकर वे माता के सदृश रक्षा करती हैं।
पुष्य नक्षत्र;-
पुष्य नक्षत्र में उसके स्वामी बृहस्पति अपनी पूजा से प्रसन्न होकर प्रचुत सद्बुद्धि प्रदान करते हैं।
आश्लेषा नक्षत्र ;-
आश्लेषा नक्षत्र में नागों की पूजा करने से नागदेव निर्भय कर देते हैं, काटते नहीं।
मघा नक्षत्र ;-
मघा नक्षत्र में हव्य-कव्य के द्वारा पूजे गए सभी पितृगण धन-धान्य, भृत्य, पुत्र तथा पशु प्रदान करते हैं।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र;-
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में पूषा की पूजा करने पर विजय प्राप्त हो जाती है और
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र ;-
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भग नामक सूर्यदेव की पुष्पादि से पूजा करने पर वे विजय कन्या को अभीप्सित पति और पुरुष को अभीष्ट पत्नी प्रदान करते हैं तथा उन्हें रूप एवं द्रव्य-संपदा से संपन्न बना देते हैं।
हस्त नक्षत्र;-
हस्त नक्षत्र में भगवान सूर्य गंध-पुष्पादि से पूजित होने पर सभी प्रकार की धन-संपत्तियां प्रदान करते हैं।
चित्रा नक्षत्र ;-
चित्रा नक्षत्र में पूजे गए भगवान त्वष्टा शत्रुरहित राज्य प्रदान करते हैं।
स्वाती नक्षत्र ;-
स्वाती नक्षत्र में वायुदेव पूजित होने पर परम शक्ति प्रदान करते हैं।
विशाखा नक्षत्र;-
विशाखा नक्षत्र में लाल पुष्पों से इंद्राग्नि का पूजन करके मनुष्य इस लोक में धन-धान्य प्राप्त कर सदा तेजस्वी रहता है।
अनुराधा नक्षत्र ;-
अनुराधा नक्षत्र में लाल पुष्पों से भगवान मित्रदेव की भक्तिपूर्वक विधिवत पूजा करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और वह इस लोक में चिरकाल तक जीवित रहता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र ;-
ज्येष्ठा नक्षत्र में देवराज इंद्र की पूजा करने से मनुष्य पुष्टि बल प्राप्त करता है तथा गुणों में, धन में एवं कर्म में सबसे श्रेष्ठ हो जाता है।
मूल नक्षत्र ;-
मूल नक्षत्र में सभी देवताओं और पितरों की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मानव स्वर्ग में अचलरूप से निवास करता है और पूर्वोक्त फलों को प्राप्त करता है।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र;-
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अप्-देवता (जल) की पूजा और हवन करके मनुष्य शारीरिक तथा मानसिक संतापों से मुक्त हो जाता है।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ;-
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में विश्वेदेवों और भगवान विश्वेश्वर की पुष्पादि द्वारा पूजा करने से मनुष्य सभी कुछ प्राप्त कर लेता है।
श्रवण नक्षत्र ;-
श्रवण नक्षत्र में श्वेत, पीत और नीलवर्ण के पुष्पों द्वारा भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा कर मनुष्य उत्तम लक्ष्मी और विजय को प्राप्त करता है।
धनिष्ठा नक्षत्र;-
धनिष्ठा नक्षत्र में गन्ध-पुष्पादि से वसुओं के पूजन से मनुष्य बहुत बड़े भय से भी मुक्त हो जाता है। उसे कहीं भी कुछ भी भय नहीं रहता।
शतभिषा नक्षत्र ;-
शतभिषा नक्षत्र में इन्द्र की पूजा करने से मनुष्य व्याधियों से मुक्त हो जाता है और आतुर व्यक्ति पुष्टि, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र ;-
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुद्ध स्फटिक मणि के समान कांतिमान अजन्मा प्रभु की पूजा करने से उत्तम भक्ति और विजय प्राप्त होती है।
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र;-
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मेँ अहिर्बुध्न्य की पूजा करने से परम शांति की प्राप्ति होती है।
रेवती नक्षत्र ;-
रेवती नक्षत्र श्वेत पुष्प से पूजे गए भगवान पूषा सदैव मंगल प्रदान करते हैं और अचल धृति तथा विजय भी देते हैं।
नक्षत्रों से संबंधित वृक्ष;-
1- अश्विनी नक्षत्र का वृक्ष :– केला, आक, धतूरा ।
2- भरणी नक्षत्र का वृक्ष :–केला, आंवला।
3- कृत्तिका नक्षत्र का वृक्ष :– गूलर ।
4- रोहिणी नक्षत्र का वृक्ष :– जामुन ।
5- मृगशिरा नक्षत्र का वृक्ष :– खैर।
6- आर्द्रा नक्षत्र का वृक्ष :– आम, बेल ।
7- पुनर्वसु नक्षत्र का वृक्ष:– बांस ।
8- पुष्य नक्षत्र का वृक्ष :– पीपल ।
9- आश्लेषा नक्षत्र का वृक्ष :– नाग केसर और चंदन।
10- मघा नक्षत्र का वृक्ष :– बड़।
11- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का वृक्ष :- ढाक।
12- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का वृक्ष :- बड़ और पाकड़।
13- हस्त नक्षत्र का वृक्ष :– रीठा।
14- चित्रा नक्षत्र का वृक्ष :– बेल।
15- स्वाति नक्षत्र का वृक्ष :– अर्जुन।
16- विशाखा नक्षत्र का वृक्ष :– नीम।
17- अनुराधा नक्षत्र का वृक्ष :– मौलसिरी।
18- ज्येष्ठा नक्षत्र का वृक्ष :– रीठा।
19- मूल नक्षत्र का वृक्ष :– राल का पेड़।
20- पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का वृक्ष :– मौलसिरी/जामुन।
21- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का वृक्ष :– कटहल।
22- श्रवण नक्षत्र का वृक्ष :– आक।
23- धनिष्ठा नक्षत्र का वृक्ष :– शमी और सेमर।
24- शतभिषा नक्षत्र का वृक्ष :– कदम्ब।
25- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का वृक्ष :– आम।
26- उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का वृक्ष :– पीपल और सोनपाठा।
27- रेवती नक्षत्र का वृक्ष :– महुआ।
इनकी पूजा करने से नक्षत्रों का दोष दूर हो जाता है। प्रतिदिन इन पेडो़ के दर्शन मात्र से नक्षत्र का दोष दूर हो जाता है||
.....SHIVOHAM...