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क्या अर्थ हैं त्रिदोष का? क्या आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने का समय बहुत महत्त्वपूर्ण है?


क्या अर्थ हैं त्रिदोष का?-

07 FACTS;-

1-वात, पित्त, कफ - ये तीन शारीरिक दोष माने गये हैं।आयुर्वेद के आधारभूत सिद्धांत के अनुसार वात, पित्त, कफ ही त्रिदोष हैं। वात का अर्थ है... गति, विनाश इत्यादि। शरीर की चलने की शक्ति ही गति है। पित्त का अर्थ है,गरम करना। यह शरीर का मेटाबॉलिज्म बताता है। कफ का अर्थ है, जो जल से विकास पाता हो या जल से लाभ प्राप्त करता हो।त्रिदोष का मतलब हानि नहीं है इसका मुख्य कार्य है--अनउपयोगी/बेकार चीजें को खत्म करना ,पाचन करना और पोषण करना |

2-पंचमहाभूतों से दोषों की उत्पत्ति;-

2-1. सृष्टि में व्याप्त वायु महाभूत से शरीरगत वात दोष की उत्पति होती है।वात वायु और आकाश तत्व का संयोजन है।

2-2. अग्नि से पित्त दोष की उत्पत्ति होती है,

2-3. जल तथा पृथ्वी महाभूतों से कफ दोष की उत्पति होती है।

3-प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में उस की प्रकृति के अनुसार निश्चित मात्रा में वात, पित्त, कफ होते है| इनमें से एक की शरीर में प्रधानता उस व्यक्ति का बॉडी टाइप तय करती है, लेकिन शरीर में इनकी मात्रा कम-ज्यादा होने पर रोग उत्पन्न होते हैं।त्रिदोष असामान्य आहार-विहार से विकृत या दूषित हो जाते है। इन तीनो दोषों को शरीर का स्तम्भ कहा जाता है। इनकी प्राकृत अवस्था एवं सम मात्रा ही शरीर को स्वस्थ रखती है, यदि इनका क्षय या वृद्धि होती है, तो शरीर में विकृति या रोग उत्पन्न हो जाता है।

4-शरीर रक्त आदि धातु से निर्मित होता है एवं मल शरीर को स्तंभ की तरह सम्हाले हुये हैं। शरीर की क्षय, वृद्धि, शरीरगत् अवयवो द्रव्यों की विकृति, आरोग्यता-अनारोग्यता, इन दोष पर ही आधारित है।तीनों दोषों में सर्वप्रथम वात दोष ही विरूद्ध आहार-विहार से प्रकुपित होता है और अन्य दोष एवं धातु को दूषित कर रोग उत्पन्न करता है। वात दोष प्राकृत रूप से प्राणियों का प्राण माना गया है।

5-वात दोष के पांच भेद:

1- प्राण वात

2- समान वात

3- उदान वात

4- अपान वात

5- व्‍यान वात

6-पित्‍त दोष के पांच भेद

1- साधक पित्‍त

2- भ्राजक पित्‍त

3- रंजक पित्‍त

4- आलोचक पित्‍त

5- पाचक पित्‍त

7-कफ दोष के पांच भेद

1- क्‍लेदन कफ

2- अवलम्‍बन कफ

3- श्‍लेष्‍मन कफ

4- रसन कफ

5- स्‍नेहन कफ

क्या महत्व हैं त्रिदोष का?-

07 FACTS;-

1-हमारा शरीर, मात्र रासायनिक तत्वों का संगठन नहीं बल्कि 'भौतिक' हैं। वात की वृद्वि का अर्थ है नर्वस सिस्टम (जिसमें मस्तिष्क भी शामिल है) की अतिरिक्त उत्तेजनशीलता या इरीटेबिलिटी। वात शमन का अर्थ है उसका सामान्य या प्राकृत स्तर तक लाना। इसी तरह पित्त वृद्वि का अर्थ है केटाबोलिज़्म के लिए ज़िम्मेदार स्रावों की वृद्वि तथा पित्त शमन का अर्थ है उसे प्राकृत स्तर तक लाना। कफ वृद्धि का अर्थ है एनाबोलिज्म के लिए जवाब देह स्रावों की वृद्धि और कफ शमन का अर्थ है उसको प्राकृत स्तर पर लाना।

2-वात दोष का अर्थ शरीर का पूरा तंत्र, मस्तिष्क सहित होता है। वात का अभिप्राय वस्तुत: नाडियाँ या उनमें में बहने वाले ज्ञान से है जैसे बिजली के तारों में विद्युत बहती है उसी तरह नाड़ियों मे बहने वाला 'सेन्स' ही आयुर्वेदीय वात हैं। हम जानते हैं, कि, शरीर की सारी क्रियाएँ तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) पर आधारित हैं। नाड़ियों के कार्यक्षमता न होने पर अर्थात लकवा होने की अवस्था में हाथ या पैर के मांस, अस्थि आदि सही होने पर भी हाथ या पैर गति नहीं कर सकते है। अत: आयुर्वेद में शरीर की समस्त क्रियाओं का चलाने वाला ही वात हैं।

3-सरल रूप से , शरीर क्रिया विज्ञान का एक शब्द है मेटाबोलिज़्म या चयापचय /समवर्त । इसका अर्थ शरीर की क्रियाओं के परिणाम हैं; जिसका दो विभाग हैं, एक एनाबोलिज़्म या चय तथा दूसरा केटाबोलिज्म या अपचय। शरीर के वे स्राव तथा अन्य पदार्थ जो शरीर की वृद्धि करतें हैं, पुष्टता लाते हैं, सरस करते हैं या वर्धन करते हैं उन्हें कंस्ट्रक्टिव मेटाबोलिज़्म/ एनाबोलिज़्म या चय कहते है।आयुर्वेद में कफ दोष का यही कार्यक्षेत्र है और इसे ही एनाबोलिज़्म या चय कहते हैं।

4-जो स्राव एनाबोलिज़्म पर नियंत्रण रखते हैं उन्हें पित्त दोष कहते है।तथा पित्त दोष के कार्यों को केटाबोलिज़्म/ डेसट्रक्टिव मेटाबोलिज़्म या उपचय कहते हैं।इन सब की समग्र क्रिया या मिलीजुली क्रिया को मेटाबोलिज़्म/चयापचय कहते हैं- यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि ये स्राव या दोष एक दूसरे के विरोधी या नियंत्रण रखते हुए भी विरोधी नही होते अपितु सहचर होते हैं जैसे बैलगाडी के दो बैल। यदि एक बैल ही गाड़ी मे जोता जाए तो गाड़ी चलनी असंभव होती हैं।ये वात पित और कफ के पाँच-पाँच भेद होते हैं।

5-पित व कफ पंगु माने गए है, जो वात या वायु के निर्देशानुसार शरीर में संचरण करते हैं। पित्त तथा कफ वस्तुत: शरीर की अंत: स्रावी या एन्डोक्राईनग्लेन्डस तथा बहि सावी ग्रंथियों के स्त्राव है। यह सर्व स्वीकार्य बात है कि शरीर की सारी क्रियाओं के नियामक व प्रेरणा स्रोत ये स्त्राव ही हैं जो मात्रा में अत्यल्प होते हुए भी शरीर की क्रियाओं को निर्णायक स्र्प से प्रभावित करते है।

6-उदाहरण के लिए कहा गया है 'यत पिण्डे तत ब्रहमांडे' अर्थात जैसा शरीर में है वैसा ही ब्रहमांड मे है अर्थात जो कार्य बाह्य जगत में हवा, सूर्य तथा पानी संपादित करते हैं वही शरीर मे वात, पित्त, कफ संपादित करते हैं। पानी संसार में शीतलता, सरसता, वर्धन, चय, निर्माण करता है यही कार्य शरीर में कफ दोष करता है। सूर्य की उष्णता इसको नियंत्रण में रखती है। इन दोनों की मिली जुली क्रिया से ही संसार के समस्त कार्य संपादित होते हैं। सूर्य की उष्णता का प्रतिनिधि ही शरीर में पित्त है।

7-सूर्य व पित्त के कार्य समान हैं इन दोनों अर्थात सूर्य व पानी की मिली जुली क्रिया से वनस्पतियों व प्राणियों का जीवन इस पृथ्वी पर संभव होता है। ये सूर्य व पानी एक दूसरे के विरोधी प्रतीत होते हुऐ भी एक निश्चित अनुपात में रह कर एक दूसरे के सहगामी या पूरक होते है। वायु या हवा इन दोनों के बीच माध्यम बनती है अर्थात उष्णता या शीतलता को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती हैं।ये कारक ही शरीर में ब्रह्मांड की तरह कार्य करते हैं। वायु का प्रतिनिधि शरीर में वात, सूर्य का पित्त तथा जल का कफ दोष होता है तथा जैसे ब्रह्मांड में वायु, अग्नि, जल कार्य करते है वैसे ही शरीर में वात, पित्त, कफ कार्य करते हैं।

सप्त धातु का क्या अर्थ हैं ?-

03 FACTS;-

1-आयुर्वेद के अनुसार शरीर में सप्त धातु होतें हैं।पूरा शरीर इनके द्वारा ही नियन्त्रित होता है। ये शरीर का पोषण और निर्माण करते हैं साथ ही शरीर की संरचना में सहायक होते हैं। इसलिए इन्हें “धातु” कहा जाता है। इन्हें एक निश्चित क्रम में रखा गया है।इनमें से हर एक का अपना अलग ही महत्व है। तीनों दोषों की ही तरह इन सातों धातुओं का निर्माण भी पांच तत्वों (पंच महाभूत) से मिलकर होता है। हर एक धातु में किसी एक तत्व की अधिकता होती है।

2-हम जो भी खाना खाते हैं वो पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद कई प्रक्रियाओं से गुजरते हुए इन धातुओं में बदल जाती है। आपके द्वारा खाया गया खाना आगे जाकर दो भागों में बंट जाता है : सार और मल। सार का मतलब है भोजन से मिलने वाला पोषक तत्व और उर्जा, जिससे हमारा शरीर ठीक ढंग से काम कर सके। वहीं मल से तात्पर्य है कि भोजन को पचाने के बाद जो अपशिष्ट बनता है जिसका शरीर में कोई योगदान नहीं वो मल के रुप में शरीर से बाहर निकल जाता है।

3-भोजन का यह सार वायु की मदद से खून में पहुँचता है और फिर खून के माध्यम से यह पूरे शरीर में फैलकर धातुओं को बनाता है।ये सारी धातुएं एक क्रम में हैं और प्रत्येक धातु अग्नि द्वारा पचने के बाद अगली धातु में परिवर्तित हो जाती है।जैसे कि जो आप खाना खाते हैं वो पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद सबसे पहले रस अर्थात प्लाज्मा में बदलता है। इसके बाद प्लाज्मा खून में और फिर खून से मांसपेशियां बनती है। इसी तरह यह क्रम चलता रहता है।सबसे अंत में शुक्र अर्थात प्रजनन संबंधी ऊतक जैसे कि वीर्य, शुक्राणु आदि बनते हैं।इसलिए कहा जाता है कि शरीर में पाचक अग्नि का ठीक होना बहुत ही ज़रूरी है। इन सभी धातुओं के निर्माण में रस धातु (प्लाज्मा) ही मूलभूत तत्व है।

सात धातुओं के नाम;-

1- रस : प्लाज्मा

2- रक्त : खून (ब्लड)

3- मांस : मांसपेशियां

4- मेद : वसा (फैट)

5- अस्थि : हड्डियाँ

6- मज्जा : बोनमैरो

7- शुक्र : प्रजनन संबंधी ऊतक (रिप्रोडक्टिव टिश्यू )

क्या आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने का समय बहुत महत्त्वपूर्ण है?-

17 FACTS;-

1-इस शरीर मे जठर है, उससे अग्नि प्रदीप्त होती है।जो ये हमारा शरीर है; वो कभी भी कुछ खाने के लिए नही है।आयुर्वेद के महान ज्ञाता महर्षि वाग्भटजी कहते है कि जठर मे जब अग्नि सबसे ज्यादा तीव्र हो ,उसी समय भोजन करे तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पाचन मे जाएगा और रस मे बदलेगा और इस रस में से मांस,मज्जा,रक्त और आपकी अस्थियाँ आदि का विकास होगा ।

2-आयुर्वेद के अनुसार, भोजन में 6 रस शामिल होने चाहिए। ये 6 रस हैं- मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), अम्ल (खट्टा), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कषाय (कसैला)। शरीर की प्रकृति के अनुसार ही भोजन करना चाहिए। इससे शरीर में पोषक तत्त्वों का असंतुलन नहीं होता।

3-स्वस्थ रहने के लिए खानपान के कुछ नियमों का पालन करना बहुत ही आवश्यक है। इन नियमों का पालन करके ही व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। जब कोई व्यक्ति खानपान के नियमों के विपरीत भोजन का सेवन करता है तो उसके शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण रोगी का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिरने लगता है। अत: सभी व्यक्तियों को भोजन संबन्धी नियमों का पालन करना चाहिए।

4-वाग्भटजी कहते है कि डेढ दो साल की रिसर्च के बाद उन्हें पता चला की जठराग्नि कौन से समय मे सबसे ज्यादा तीव्र होती है ।वास्तव में, सूर्य का उदय जब होता है, तो सूर्य के उदय होने से लगभग ढाई घंटे तक जठराग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है ।इसलिए नाश्ते का पोष्टिक होना बहुत जरुरी है |सुबह का खाना सबसे ज्यादा लाभदायक होता है और भोजन में पेट की संतुष्टी से ज्यादा मन की संतुष्टी का महत्व होता है।खाना खाने का समय निर्धारित करें ।और समय वही निर्धारित होगा जब आप के पेट में अग्नी की, जठरग्नि की... प्रबलता हो ।जठराग्नि सूरज के साथ सीधी संबंध्ति है ...जैसे जैसे सूर्य तीव्र होगा ;वैसे वैसे अग्नि तीव्र होगी ।भोजन करने का समय भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

5-दिन/ रात में वात पित्त कफ का समय;-

कफ;-( 06:00-10:00A.M.)

पित्त;-(10:00A.M.-02:00 P.M.)

वात;-(2:00- 06:00 P.M.)

कफ;-(6:00-10:00 P.M.)

पित्त;-(10:00P.M.-02:00 A.M.)

वात;-(02:00-06:00 A.M.)

6-वास्तव में,वात पित्त कफ का समय 'सूर्य उदय' और 'सूर्य अस्त' से

संबंध्ति है।तो बाग्वट जी कहते हैं हमे प्रकति से बहुत सीखने की जरूरत हैं ।आप तेल का दीपक जलाना शुरू किजीए, तो पहले लौ खूब तेजी से जलेगी और अंतिम लौ भी तेजी से जलेगी।अथार्त जब दीपक बुझने वाला होगा, तो बुझने से पहले तेजी से जलेगा , यही पेट के लिए है । जठरग्नी सुबह सुबह बहूत तीव्र होगी और शाम को जब सूर्यास्त होने जा रहा है, तब भी बहुत तीव्र होगी। वो कहते है , शाम का खाना सूरज रहते- रहते खा लो; सूरज डूबा तो अग्नि भी डूबी।

7-हमारे लिए ज्यादा नाश्ता करना बहुत अच्छा है।बाग्वट जी कहते हैं..नाश्ता सबसे ज्यादा करो, लंच थोडा कम करो और डिनर सबसे कम करो ।उसका कारण एक ही है .. 'जठराग्नि '। यूरोप अमेरिका में सूर्य जलदी नही निकलता ..साल में 8-8 महिने तक सूरज के दर्शन नहीं होते और सूरज नहीं तो जठरग्नी तीव्र नहीं हो सकती।इसलिये वो ज्यादा नाश्ता नही कर सकते.. करेंगे तो उनको तकलीफ हो जाएँगी !

8-सुबह का नाश्ता भोजन 6-8 बजे (6-8 A.M.) तक हो जाना चाहिए। दोपहर का भोजन 10-12 (10 A.M.-12:00- P.M.) बजे के बीच ले लीजिए। क्योंकि यह पित्त का काल है इसलिए यह दिन का सबसे बड़ा, भारी भोजन होना चाहिए। रात्रि का भोजन सूरज डुबने के 40 मिनिट पहले 5.30 बजे - 6 बजे खायिए ।और यह हल्का और सुपाच्य ही होना चाहिए। रात्रि 9 बजे के बाद भोजन बिल्कुल न लें |तो 40 मिनिट पहले शाम का खाना खा लीजीए और सुबह को सूरज निकलने के ढाई घंटे तक कभी भी खा लीजीए । दोनो समय पेट भरके खा लिजिए ।

9-रात के लिए बागवटजी कहते है कि, एक ही चीज हैं ..आप कोई तरल पदार्थ ले सकते है । जिसमे सबसे अच्छा उन्होंने दूध कहा हैं ।शाम को सूरज डूबने के बाद ‘हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ हार्मोन्स और रस या एंझाईम पैदा होते है जो दूध् को पचाते है’ ।इसलिए वो कहते है सूर्य डूबने के बाद जो चीज खाने लायक है वो दूध् है । तो रात को दूध् पी लीजीए । सुबह का खाना अगर आपने 10.30 बजे खाया तो 6.00 बजे खूब अच्छे से भूख लगेगी ।

10-वाग्भटजी कहते है कि जो चीज सबसे ज्यादा पसंद है (रसगुल्ला आदि )वो सुबह आओ । इसमें छोडने की जरूरत नहीं है।कभी भी भोजन करे तो पेट भरे ही ,लेकिन मन भी तृप्त हो ।सुबह पेट भरके खाओ तो पेट के साथ- साथ मन की भी संतुष्टी हो जाती है ।मन के भरने और

पेट के तृप्त होने का सबसे अच्छा समय सवेरे का है ।हमारा मन हार्मोन्स , एंझाईम्स आदि से संचालित है ।

11-आज की भाषा में डॉक्टर कहते हैं मन में पिनियल गलॅंड हैं ,इसमे से बहुत सारा रस निकलता है । जिनको हम हार्मोन्स ,एंझाईम्स कह सकते है ये पिनियल ग्लॅंड (मन )संतुष्टी के लिए सबसे आवश्यक है। यदि भोजन से

तृप्त नहीं है तो पिनियल ग्लॅंड मे गडबड होती है और पिनियल ग्लॅंड की गडबड पूरे शरीर मे पसर जाती है।और आपको तरह तरह के रोगो का शिकार बनाती है ।अगर आप तृप्त भोजन नहीं कर पा रहे है, तो निश्चित रूप से 10-12 साल के बाद आपको मानसिक क्लेश होगा और रोग होंगे ।आप सिझोफ्रनिया ,डिप्रेशनआदि के शिकार हो सकते है ;आपको 27 प्रकार की बीमारिया आ सकती है ।

12-शरीर रचना मे बंदर और आप में बस यही फर्क है कि बंदर को पूछ है आपको नहीं है ..बाकी अब कुछ समान है ।लेकिन बंदर को कभी भी high BP ,heart attck आदि नहीं होता ।कर्नाटक के एक बहुत बड़े

प्रोफेसर है ने एक बड़ा गहरा रिसर्च किया । उन्होने तरह तरह के virus और बॅक्टेरिया बंदर के शरीर मे डालना शुरू किया, कभी इंजेक्शन के माध्यम से कभी किसी माध्यम से।वो कहते है, मैं 15 साल असफल रहा । बंदर को कुछ नहीं हो सकता ।

13-और उन्हांने रहस्य की बात बताई कि बंदर का RH factor दुनिया में ,सबसे आदर्श है, और कोई डॉक्टर जब आपका RH factor नापता है तो वो बंदर से ही कंम्पेअर करता है , लेकिन वो आपको बताता नहीं.. ये अलग बात है।उसका कारण ये है कि उसे कोई बीमारी नहीं आ सकती।ब्लड मे कॉलेस्टेरॉल बढता ही नहीं ;ट्रायग्लेसाईड कभी बढती नहीं ;डायबिटीज कभी हुई नहीं ।बाहर से कितनी भी शुगर उसके शरीर मे इंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं। बीमारी न आने का कारण ये है कि बंदर सवेरे सवेरे ही भरपेट खाता है ;जो आदमी नहीं खा पाता।और सूरज अस्त

होने के बाद नहीं खाता है;चाहे तीन दिन भूखा रखो;जो आदमी नहीं करता।

14-तो जब प्रोफेसर ने अपने कुछ मरींजों से कहा कि 'आयुर्वेद के अनुसार सुबह सुबह भरपेट खाओ'। तो उनके कई मरीजो ने उन्हे बताया कि जबसे उन्हांने सुबह भरपेट खाना शुरू किया तो , डायबिटीज कम हो गयी, किसी का कॉलेस्टेरॉल कम हो गया, किसी के घटनों का दर्द कम हो गया, कमर का दर्द कम हो गया ,गैस बनना बंद हो गई ,पेट मे जलन होना बंद हो गयी ,नींद अच्छी आने लगी ....वगैरा ..वगैरा । और ये बात वाग्भटजी 3500 साल पहले कहते थे कि 'सुबह का खाना सबसे अच्छा'।अथार्त जो भी स्वाद आपको पसंद है ..वो सुबह ही खाईए।

15-आयुर्वेद का सिद्धांत है कि भोजन करने के बाद छाया में सौ पग धीरे-धीरे चलना चाहिए, शयन से कम से कम 2-3 घंटे पहले ही भोजन कर लेना चाहिए , अन्यथा कब्ज रहेगी। इसके अतिरिक्त दीर्घायु के लिये भी एक जगह बड़ा सुंदर संकेत कर दिया है कि-''बायीं करवट सोने वाला, दिन में दो बार भोजन करने वाला, कम से कम छ: बार लघुशंका , दो बार शौच जानेवाला ,गृहस्थ में आवश्यक होने पर स्वलप-मैथुनकारी व्यक्ति सौ वर्ष तक जीता है।''

16-अमृत के समान है घूंट-घूंट पानी पीना;-

आयुर्वेद के अनुसार भोजन के एक ग्रास को 32 बार चबाना चाहिए |सर्दियों में रातें लम्बी होने के कारण सुबह जल्दी भोजन कर लेना चाहिए और गर्मियों में दिन लम्बे होने के कारण शाम का भोजन जल्दी कर लेना उचित है।आयुर्वेद में घूंट-घूंट पानी पीना अमृत के समान बताया गया है। खाना खाने से आधा घंटा पहले और खाना खाने के आधा घंटे बाद पानी पी सकते हैं। खाने के दौरान जरूरत होने पर एक-दो घूंट पानी पी सकते हैं। खाना खाने के तुरंत पहले पानी पीने से पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। वहीं, खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीने से मोटापा बढ़ता है। पूरे दिन में सादा या गुनगुना पानी पीना सेहतमंद माना गया है।

17-इन चीजों को कभी-कभी खाएं;-

पनीर: -हफ्ते में दो बार।

स्प्राउट:- हफ्ते में दो बार। स्प्राउट को भाप में उबालें और उसमें नमक और नींबू मिलाकर खा सकते हैं।

दही:- हफ्ते में दो या तीन बार ही इस्तेमाल करें। दरअसल, रोजाना दही खाने से मोटापा, जोड़ों का दर्द, डायबीटीज आदि बीमारियां हो सकती हैं। बेहतर होगा कि दही में शहद या मिश्री मिलाकर खाएं।

....SHIVOHAM....


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