क्या जगदम्बा काली की प्रतिमा जन्म और मृत्यु का प्रतीक है?
जगदम्बा काली;-
08 FACTS;-
1-माँ काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। यह सुन्दरी रूप वाली भगवती दुर्गा का काला और भयप्रद रूप है, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिये हुई थी।माँ काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है जो सबको अपना ग्रास बना लेता है।यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलवाने वाला है अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेच्छु है और पूजनीय है। इनको महाकाली भी कहते हैं।काली शब्द का अर्थ है 'काल की पत्नी' ।काल शिव जी का नाम है अतः शिव पत्नी को ही काली की संज्ञा से अभिहित किया गया है।भगवती काली को अनादिरूपा ,आद्याविद्या, ब्रह्म स्वरूपिणी तथा कैवल्यदात्री माना गया है।भगवती काली आद्यशक्ति, चित्तशक्ति के रूप में विद्यमान रहती हैं। भगवती काली अजन्मा तथा निराकार है परन्तु भावुक भक्तजन भावना तथा देवी के गुण कार्यों के अनुरूप उनके काल्पनिक साकार रूप की उपासना करते हैं।इस प्रकार भगवती निराकार होते हुए भी साकार हैं; अदृश्य होते हुए भी दृश्यमान है।
2-भगवती काली के आठ भेद मुख्य माने जाते हैं... चिंतामणि काली ,स्पर्शमणि काली,सन्ततिप्रदा काली, सिद्धि काली, दक्षिणा काली ,कामकला काली, हंसिकाली एवं गुहा काली । इनके अतिरिक्त भद्रकाली ,श्मशान काली एवं महाकाली ...यह तीन भेद भी विशेष प्रसिद्ध है तथा इनकी उपासना भी विशेष रूप से की जाती है। 3-भगवती काली के स्वरूपों में दक्षिणा काली मुख्य है। इन्हें दक्षिण कालिका तथा दक्षिणा कालिका आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है ।काली के उपासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय भी भगवती दक्षिणा काली ही है। गुहा काली, भद्रकाली, श्मशान काली, तथा महाकाली स्वरूप भी भगवती दक्षिणा काली के ही हैं तथा इनके मंत्रों का जाप न्यास पूजन ध्यान आदि भी प्राय भगवती दक्षिणा काली की भांति ही किया जाता है।महानिर्वाण तंत्र के अनुसार जिस प्रकार श्वेत, पीत आदि सभी काले रंग में समाहित हो जाते हैं उसी प्रकार सब जीवो का लय काली में होता है।कालशक्ति, निर्गुणा निराकार, भगवती काली का वर्ण भी काला ही निरूपित किया गया है। 3-महानिर्वाण तंत्र के अनुसार दक्षिण दिशा में रहने वाला सूर्य पुत्र यम काली का नाम सुनते ही भयभीत होकर दूर भाग जाता है अर्थात वह काली उपासक को को नर्क में नहीं ले जा सकता ;इसी कारण भगवती को दक्षिणा काली कहते हैं। जिस प्रकार किसी भी धार्मिक कर्म की समाप्ति पर दक्षिणा फल की सिद्धि देने वाली होती है उसी प्रकार भगवती काली भी सभी कर्म फलों की सिद्धि प्रदान करती है ;इसलिए इन्हे दक्षिणा कहा जाता है।सर्वप्रथम दक्षिणामूर्ति भैरव ने इनकी आराधना की थी; अतः भगवती को दक्षिणा काली कहते हैं।पुरुष को दक्षिण तथा शक्ति को वामा कहते हैं।वही वामा दक्षिण पर विजय प्राप्त करके महामोक्ष प्रदायिनी बनी इसी कारण तीनों लोकों में इन्हे दक्षिणा कहा गया है। 4-कुछ तंत्रों में भगवती काली का वर्ण काला तथा लाल दोनों बताए गए हैं परंतु साथ में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि भगवती दक्षिणा काली का रंग काला तथा भगवती त्रिपुर सुंदरी अर्थात तारा का रंग लाल है भगवती के दक्षिण काली अथवा भद्रकाली महाकाली शमशान काली तथा महाकाली आदि रूपों के उपासक भक्तों को देवी के श्याम वर्ण अर्थात काले रंग के शरीर की ही भावना करनी चाहिए।भगवती काली को शमशान वासिनी कहा गया है।शमशान का अर्थ है जिस स्थान पर पंचमहाभूतो का लय हो वही शमशान है और वही भगवती का निवास है।
6-जिस स्थान पर कोई वस्तु भस्म हो वह स्थान शमशान कहलाता है अतः काम क्रोध राग आदि से रहित शमशान रूपी हृदय में ही भगवती काली निवास करती है।सांसारिक विषयो काम क्रोध राग आदि के भस्म होने का मुख्य स्थान हृदय है। श्मशान में चिता के प्रज्वलित होने का तात्पर्य है राग द्वेष आदि विकार रहित हृदय रूपी श्मशान में ज्ञान अग्नि का निरंतर प्रज्वलित बने रहना। 7-शिव से जब शक्ति पृथक हो जाती है तब वह शव मात्र रह जाता है अर्थात जिस प्रकार शिव का अंश स्वरूप जीव शरीर प्राण रूपी शक्ति के हट जाने पर मृत्यु को प्राप्त होकर शव हो जाता है। उसी प्रकार उपासक जब अपनी प्राण शक्ति को चिद शक्ति में समाहित कर देता है तब उसका पंच भौतिक शरीर शव की भांति निर्जीव हो जाता है। उस स्थिति में भगवती आद्यशक्ति उसके ऊपर अपना आसन बनाती है अर्थात उस पर अपनी कृपा बरसाती है और उसे स्वमं में सन्निहित कर भौतिक प्रपंचों से मुक्त कर देती है।यही भगवती का शव आसन है और इसीलिए शव को भगवती का आसन कल्पित किया गया है। 8-भगवती के ललाट पर चंद्रमा की स्थिति के कारण उन्हें शशि शेखरा कहा गया है ।इसका भावार्थ यह है कि वे चिदानंदमयी है तथा अमृतत्व रूपी चंद्रमा को धारण किए हुए हैं अर्थात उनकी शरण में पहुंचने वाले साधकको अमृतत्व की उपलब्धि होती है।भगवती मुक्तकेशी हैं अर्थात उनके बाल बिखरे हैं ।इसका तात्पर्य है कि केश विन्यास आदि विकारों से रहित वे त्रिगुणातीता है।चंद्र, सूर्य तथा अग्नि भगवती के तीन नेत्र हैं।
क्या जगदम्बा काली की प्रतिमा जन्म और मृत्यु का प्रतीक है?-
09 FACTS;-
1-वास्तव में ,जहां से सृष्टि पैदा होती है; वहीं प्रलय होता है। सर्किल वहीं पूरा होता है। इसलिए मां जन्म दे सकती है। शक्ति उसमें बहुत है। क्योंकि शक्ति तो वहीं है, चाहे वह सृजन हो/क्रिएशन बने और चाहे विनाश हो /डिस्ट्रैक्शन बने।जिन लोगों ने मां की धारणा के साथ सृष्टि और विनाश, दोनों को एक साथ सोचा था, उनकी दूरगामी कल्पना है। लेकिन बड़ी गहन और सत्य के बड़े निकट।
2-संत लाओत्से कहता है, स्वर्ग और पृथ्वी का मूल स्त्रोत वहीं है। वहीं से सब पैदा होता है। लेकिन ध्यान रहे, जो मूल स्त्रोत होता है,वही चीजें लीन हो जाती हे। वह अंतिम स्त्रोत भी होता
है।यहूदी /ज्युविश परंपराएं, (यहूदी, ईसाई और इसलाम, तीनों ही ज्युविश परंपराओं का फैलाव हैं) ने जगत को एक बड़ी धारणा दी, गॉड दि फादर।यह धारणा बड़ी खतरनाक है। पुरूष के मन को तृप्त करती है क्योंकि अपने को परमात्मा के रूप में प्रतिष्ठित पाता है।। लेकिन जीवन के सत्य से उस बात का संबंध नहीं है। एक जागतिक मां की धारणा ज्यादा उचित है। पर वह तभी ख्याल में आ सकेगी, जब स्त्रैण रहस्य को ,संत लाओत्से को समझ लें। अन्यथा समझ में न आ सकेगी।
3-कभी आपने देखा है मां काली की मूर्ति को, वह मां है और विकराल, मां है और हाथ में खप्पर लिए है।...आदमी की खोपड़ी का। मां है, उसकी आंखों में सारे मातृत्व का सागर है और नीचे, वह किसी की छाती पर खड़ी है। पैरों के नीचे कोई दबा हे। क्योंकि जो सृजनात्मक है, वहीं विध्वंसात्मक होगा। क्रिएटिविटि का दूसरा हिस्सा डिस्ट्रैक्शन है। इसलिए जिन्होंने यह सोचा,वे बड़ी खूबी ,बड़ी इमेजनेशन के, बड़ी कल्पना के लोग थे। बड़ी संभावनाओं को देखते थे। हाथ में मुर्दा आदमी की खोपड़ी है । खप्पर है, लहू टपकता है। गले में माला है खोपड़ियो की। और मां की आंखे है और मां का ह्रदय है, जिनसे दूध बहे। और वहां खोपड़ियो की माला टंगी है।
4-जितना ही हमने गौर से समझा , उतना ही हमें दिखाई पड़ा। एक, जन्म मिलता है स्त्री से ...तो निश्चित ही मृत्यु भी स्त्री से ही आती होगी। क्योंकि जहां से जन्म आता है वहीं से मृत्यु भी वहीं से आती होगी। जहां से जन्म आया है, वहीं से जन्म खींचा भी जाएगा।काली की प्रतिमा
को..काली को मां कहते है। वह मातृत्व का प्रतीक है। और गले में मनुष्य के सिरों का हार पहले हुए है। हाथ में अभी-अभी काटा हुआ आदमी का सिर लिए हुए है, जिससे खून टपक रहा है। काली खप्पर वाली, भयानक, विकराल रूप है, सुंदर चेहरा है, जीभ बाहर निकली हुई है। भयावनी और नीचे अपने पति की छाती पर नाच रही है। इसका अर्थ हुआ की मां भी है और मृत्यु भी है।यह कहने का एक ढंग हुआ—बड़ा काव्यात्मक ढंग है। मां भी है, मृत्यु भी है। तो काली को मां भी कहते है, और सारा प्रतीक इकट्ठा किया हुआ है। भयावनी भी है और सुंदर भी है।
5-स्त्री प्रतीक है। स्त्री का अर्थ से ‘स्त्री’ मत समझ लेना,अन्यथा सूत्र का अर्थ चूक जाओगे। स्त्री से तुम केवल यह महत्वपूर्ण बात समझना की स्त्री जन्मदात्री है। तो जहां से वर्तुल शुरू
हुआ है वहीं समाप्त होगा।उदाहरण के लिए वर्षा होती है बादल से। पहाड़ों पर वर्षा हुई, हिमालय पर वर्षा हुई, गंगोतरी से जल बहा, गंगा बनी, वहीं समुद्र में गिरी। फिर पानी भाप बन कर उठता है बादल बन जाते है। वर्तुल वहीं पूरा हाता है जहां से शुरू हुआ था। बादल बन कर ही वर्तुल पूरा होता है।
6-हर चीज वर्तुलाकार है। सब चीजें वहीं आ जाती है। बूढा फिर बच्चे जैसा हाँ जाता है, असहाय। जैसे बच्चा बिना दाँत के पैदा होता है, ऐसा बूढ़ा फिर बिना दाँत के हो जाता है। जैसा बच्चा असहाय होता है मां बाप को चिंता करनी पड़ती है..उठाओ, बिठाओ, खिलाओ, ऐसी ही दशा बूढे की हो जाती है। वर्तुल पूरा हुआ।जीवन की सारी गति वर्तुलाकार है, मंडलाकार है। स्त्री में जन्म मिलता है तो कहीं गहरे में स्त्री से ही मृत्यु भी मिलती होगी। अब अगर स्त्री शब्द को हटा दो चींजे और साफ हो जाएगी। क्योंकि हमारी पकड़ यह होती है: स्त्री यानी स्त्री।
7-हम प्रतीक नहीं समझ पाते; हम काव्य के संकेत नहीं समझ पाते । स्त्रियों को लगेगा, यह तो उनके विरोध में वचन है। और पुरूष सोचेगे, हम तो पहले ही से पता था, स्त्रीयां बड़ी खतरनाक है।यहाँ स्त्री से कोई लेना देना नहीं है।यह तो प्रतीक है, वह तो काव्य की प्रतीक है, यह तो सूचक है जो इस प्रतीक के द्वारा कुछ कहना चाहते है।कहना यह चाहते है कि
काम से जन्म होता है और काम के कारण ही मृत्यु होती है। जिस वासना के कारण देह बनती है, उसी वासना के विदा हो जाने पर देह विसर्जित हाँ जाती है। वासना ही जैसे जीवन है। और जब वासना की ऊर्जा क्षीण हो गयी तो आदमी मरने लगता है।
8-बूढे का क्या अर्थ है, इतना ही अर्थ है कि अब वासना की ऊर्जा क्षीण हो गई है। अब नदी सूखने लगी है अब जल्दी ही नदी तिरोहित हाँ जाएगी। बचपन का क्या अर्थ है—गंगोतरी। नदी पैदा हो रहीं है। जवानी का अर्थ है: नदी बाढ़ पर है। बुढ़ापे का अर्थ है, नदी विदा होने के करीब आ गई,समुद्र में मिलन का क्षण आ गया; नदी अब विलीन हो जाएगी।कामवासना
से जन्म है। इस जगत में जो भी, जहां भी जन्म घट रहा है—फूल खिल रहा है, पक्षी गुनगुना रहे है, बच्चे पैदा हो रहे है, अंडे रखे जा रहे है। सारे जगत में सृजन चल रहा है वह काम-ऊर्जा है। तो जैसे ही तुम्हारे भीतर से काम ऊर्जा विदा हो जाएगी, वैसे ही तुम्हारा जीवन समाप्त होने लगा, मौत आ गयी।
9-मौत क्या है... काम-ऊर्जा का तिरोहित हो जाना ही मौत है। इसलिए तो मरते दम तक आदमी कामवासना से ग्रसित रहता है। क्योंकि आदमी मरना नहीं चाहता।इसलिए
कामवासना के साथ वे अंत तक घिरे और पीड़ित रहते है।उसी किनारे को पकड़ना ही उनका सहारा है। जीवन का पर्याय है काम और काम का खो जाना है मृत्यु। इसलिए इन दोनों को एक साथ रखा है...मां काली के प्रतीक के रूप में।
...SHIVOHAM....