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क्या है सूक्ष्‍म शरीर,एवं ध्यान -साधना के कुछ गुप्‍त आयाम?PART-01

क्या कठिनाई है कि समाधि के प्रयोग में अगर सूक्ष्म/तेजस शरीर स्थूल शरीर के बाहर चला गया तो पुरुष के तेजस शरीर को बिना स्त्री की सहायता के वापस नहीं लौटाया जा सकता या स्त्री के तेजस शरीर को बिना पुरुष की सहायता के वापस नहीं लौटाया जा सकता।क्या दोनों के स्पर्श से एक विद्युत वृत्त पूरा होता है ?

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32 FACTS;-

1-दो -तीन बातें समझना उपयोगी है। एक तो यह कि इस सारे जगत की व्यवस्था ऋण और धन के विरोध पर निर्भर है, निगेटिव और पाजिटिव के विरोध पर निर्भर है।इस जीवन में जहां भी आकर्षण है, इस जीवन में जहां भी खिचाव है, वहां सभी जगह ऋण और धन के बंटे हुए हिस्से काम करते हैं।स्त्री-पुरुष का विभाजन भी उस बड़े विभाजन का एक हिस्सा है।विद्युत की भाषा में ऋण और धन के ध्रुव एक -दूसरे को तीव्रता से खींचते हैं।

साधारणत: स्त्री -पुरुष अपने बीच जो आकर्षण अनुभव करते हैं, उसका कारण भी यही है।

2-इस आकर्षण में और एक चुंबक की तरफ खिंचते हुए लोहे के टुकड़े के आकर्षण में बुनियादी रूप से कोई फर्क नहीं है।अगर लोहे का टुकड़ा भी बोल सकता होता, तो वह कहता कि मैं इस चुंबक के प्रेम में पड़ गया हूं। कि इस चुंबक के बिना अब मैं जी न सकूंगा या तो इसके साथ जीऊंगा या

मर जाऊंगा।वह चूंकि बोलता नहीं है, इतना ही फर्क है, अन्यथा आकर्षण वही है।

3-इस आकर्षण की बात अगर हमारे खयाल में आ जाए, तो और दो -तीन

बातें खयाल में आ जाएंगी।सामान्य रूप से इस आकर्षण को अनुभव किया जाता है। लेकिन आध्यात्मिक अर्थों में इस आकर्षण का भी उपयोग हो सकता है और किन्हीं स्थितियों में अनिवार्य हो जाता है।जैसे अगर किसी

पुरुष का सूक्ष्म शरीर आकस्मिक रूप से बाहर निकल जाए ;जिसके लिए उसने पूर्व इंतजाम न किया हो, पूर्व व्यवस्था न की हो, जिसे बाहर ले जाने के लिए कोई साधना और आयोजन न किया हो तो लौटना बहुत मुश्किल हो जाता है। या स्त्री का सूक्ष्म शरीर अगर अनायास बाहर निकल जाए -किसी बीमारी में, किसी दुर्घटना में, किसी चोट के लगने से, या किसी साधना की प्रक्रिया में, लेकिन स्वयं के द्वारा अन -आयोजित तो उस हालत में लौटना बहुत कठिन हो जाता है।

4-क्योंकि न तो हमें पता होता है जाने के रास्ते का, न पता होता है लौटने के रास्ते का। ऐसी अवस्थाओं में विपरीत आकर्षण के बिंदु की मौजूदगी

सहयोगी हो सकती है।अगर पुरुष का सूक्ष्म शरीर बाहर है और स्त्री उसके शरीर को स्पर्श करे, तो उसके सूक्ष्म शरीर को अपने शरीर में वापस लौटने में सुविधा हो जाती है। यह सुविधा वैसी ही है जैसे कि हम एक चुंबक को बाहर रख दें और बीच में एक ग्लास की दीवाल हो और उस तरफ लोहे का एक टुकड़ा, फिर भी ग्लास की दीवाल की बिना फिक्र किए चुंबक के पास खिंच आए।

5-पुरुष का स्थूल शरीर तो बीच में होगा , लेकिन स्त्री का स्पर्श उसके बाहर गए सूक्ष्म शरीर को वापस ले आने में सहयोगी हो जाएगा। वह

चुंबकीय, मैग्नेटिक फोर्स ही उसका कारण बनेगी। ऐसा ही स्त्री के भी आकस्मिक रूप से गए सूक्ष्म शरीर को भीतर लाने में सहयोग मिल सकता है। लेकिन यह आकस्मिक रूप से जरूरी है। अगर व्यवस्थित रूप से प्रयोग किया गया हो, तो जरूरी नहीं है।क्योंकि प्रत्येक पुरुष का पहला

शरीर पुरुष का है, दूसरा शरीर स्त्री का है। स्त्री का पहला शरीर स्त्री का है दूसरा शरीर पुरुष का है। अगर किसी ने आयोजित रूप से अपने शरीर को बाहर भेजा हो, तो उसे दूसरी स्त्री के शरीर की जरूरत नहीं है। वह अपने ही भीतर की स्त्री शरीर का उपयोग करके उसे वापस लौटा सकता है। तब दूसरे की आवश्यकता नहीं रह जाती।

6-लेकिन यह तब होगा, जब कि सुनियोजित प्रयोग किया गया हो। घटना आकस्मिक न हो। आकस्मिक घटना में तो तुम्हें पता ही नहीं होता है कि तुम्हारे भीतर और शरीर भी हैं। और न ही उन शरीरों की प्रक्रिया का तुम्हें पता होता है, न उन शरीरों का उपयोग करने का तुम्हें पता होता है। इसलिए यह हो भी सकता है कि बिना स्त्री के भी पुरुष का बाहर गया शरीर भीतर आ जाए, लेकिन वह भी आकस्मिक ही घटना होगी जैसे बाहर जाना आकस्मिक था। इसलिए उसके लिए पक्का नहीं कहा जा सकता।

7- .मनुष्य के आंतरिक जीवन के संबंध में जितना तांत्रिकों ने प्रयोग किया उतना किसी और ने नहीं किया है इसलिए उन प्रयोशालाओ में स्त्री की मौजूदगी अनिवार्य हो गई थी। और साधारण स्त्री की मौजूदगी भी अनिवार्य नहीं थी, असाधारण स्त्री की मौजूदगी अनिवार्य हो गई थी।अगर एक स्त्री बहुत पुरुषों के संबंध में आ चुकी है या एक ही पुरुष के बहुत संबंध में आ चुकी है, तो उसकी मैग्नेटिक, चुंबकीय शक्ति क्षीण होती चली जाती है।इसलिए कुंवारी लड़कियों का तंत्र में बड़ा महत्व था। उसके कारण और कुछ भी नहीं थे।

8-वृद्ध स्त्री के आकर्षण के कम हो जाने का कारण सिर्फ वृद्धावस्था नहीं होती या वृद्ध पुरुष के आकर्षण के कम हो जाने का कारण सिर्फ वृद्धावस्था नहीं होती। बहुत बुनियादी कारण तो यह होता है कि उनकी जो पोलेरिटी है, वह क्षीण हो गई होती है। पुरुष कम पुरुष हो गया होता है और स्त्री कम स्त्री हो गई होती है।अगर कोई वृद्धावस्था तक भी अपने पुरुष या अपनी स्त्री को बचा सके ...इसे बचाने की प्रक्रिया का नाम ही ब्रह्मचर्य है ...तो उसका आकर्षण अंत तक नहीं खोता।

9-इसलिए तंत्र में उन कुंवारी युवतियों का उपयोग साधक की बाहर गई चेतना को भीतर लौटाने के लिए किया जाता रहा। और कुंवारी लड़कियों को इतनी पवित्रता दी कि किसी भी द्वार से उनकी जो चुंबकीय शक्ति है

वह बाहर न हो जाए।इस चुंबकीय शक्ति को बढ़ाने के भी उपाय हैं; इसे क्षीण करने के भी उपाय हैं। हमें साधारणत: खयाल में नहीं है। जिसको हम सिद्धासन कहते हैं, पद्यासन कहते हैं, ये सारे के सारे आसन मनुष्य की चुंबकीय शक्ति बाहर न झरे, उसको ध्यान में रखकर निर्मित किए गए हैं।

10-हमारी चुंबकीय शक्ति के बहने के कुछ निश्चित मार्ग हैं। जैसे हाथ की उंगलियों से चुंबकीय शक्ति बहती है। असल में कहीं से भी शक्ति को बहना हो, तो उसे कोई लंबी नुकीली चीज बहने के लिए चाहिए। गोल चीज से शक्ति नहीं बह सकती। वह उसी में गोल घूम जाती है। पैर की उंगलियों से बहती। हाथ और पैर दो खास जगह हैं जहां से चुंबकीय शक्ति बहती है।

तो पद्यासन या सिद्धासन में दोनों हाथों को और दोनों पैरों को जोड़ लेने का उपाय है। जिससे शक्ति बहे तो एक हाथ से बही हुई शक्ति दूसरे हाथ में प्रवेश कर जाए। शक्ति बाहर न गिर सके।

11-दूसरा जो बहुत बड़ा द्वार है शक्ति के प्रवाहित होने का, वह आँख है। लेकिन अगर आँख को आधी खुला रखा जा सके, तो उससे शक्ति का

बहना बंद हो जाता है।यह जानकर आप हैरान होंगे कि पूरी खुली आँख से भी शक्ति बहती है और पूरी बंद आँख से भी बहती है। सिर्फ आधी खुली आँख से नहीं बहती। पूरी आँख बंद हो तो भी बह सकती है, पूरी आँख खुली हो तब तो बहती ही है।लेकिन अगर आधी आँख बंद हो और आधी खुली हो, तो आँख के भीतर जो वर्तुल बनता है, उसे तोड़ देने की व्यवस्था हो जाती है।

12-आधी आँख खुली, आधी बंद, तो शक्ति बहना भी चाहती है, रुकना भी चाहती है। शक्ति के भीतर दो खंड हो जाते हैं।ये दोनों खंड, आधा खंड बाहर निकलना चाहता है और आधा खंड भीतर जाना चाहता है। ये एक दूसरे के विरोधी हो जाते हैं और एक दूसरे को निगेट कर देते हैं। इसलिए ।तंत्र में, योग में, सभी तरफ आधी खुली आँख का भारी मूल्य हो

गया।अगर सब भांति शक्ति सुरक्षित की गई हो और व्यक्ति को अपने भीतर के विपरीत शरीर का बोध हो, पता हो, तो दूसरे की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन कभी-कभी प्रयोग करते हुए आकस्मिक घटनाएं घटती हैं।

13-ध्यान कोई कर रहा है, उसे पता ही नहीं है, और ध्यान करते करते वह घड़ी आ जाती है कि जहां घटना घट जाती है। और तब बाहरी सहयोग उपयोग में लाए जा सकते हैं। अनिवार्य नहीं हैं, सिर्फ आकस्मिक

अवस्थाओं में अनिवार्य हैं।इसलिए अगर पति -पत्नी एक -दूसरे का सहयोग कर सकें, तो वे आध्यात्मिक रूप में भी साथी हो सकते हैं। अगर वे एक -दूसरे की पूरी की पूरी आध्यात्मिक स्थिति, चुंबकीय शक्ति और विद्युत के प्रवाहों को पूरी तरह समझ सकें और एक -दूसरे को सहयोग दे सकें, तो पति पत्नी जितनी आसानी से अंतर अनुभूति को उपलब्ध हो सकते हैं, उतनी अकेले संन्यासियों या सन्यासिनों के लिए उपलब्ध करना बहुत कठिन है।

14-और पति पत्नी के लिए और भी सुविधा है कि न केवल वे एक दूसरे से परिचित हो पाते हैं, बल्कि एक दूसरे की चुंबकीय शक्ति एक गहरे

एडजेस्टमेंट को उपलब्ध हो जाती है।इसलिए एक बहुत अजीब अनुभव होता है कि अगर एक स्त्री और पुरुष में बहुत प्रेम हो, बहुत निकटता हो, बहुत आत्मीयता हो, कलह न हो, तो धीरे -धीरे एक दूसरे के गुण दोष एक -दूसरे में प्रवेश कर जाते हैं। यहां तक कि अगर स्त्री -पुरुष एक -दूसरे को बहुत प्रेम करते हैं, तो उनकी आवाज एक सी होने लगती है, उनके चेहरे के ढंग एक से होने लगते हैं, उनके व्यक्तित्व में एक तारतम्यता आनी शुरू हो जाती है।

15-असल में एक दूसरे की विद्युत एक दूसरे में प्रवेश कर जाती है और धीरे धीरे वे सम होते चले जाते हैं। लेकिन उनके बीच अगर कलह का वातावरण हो, तो यह संभव नहीं हो पाता।तो इस बात को भी ध्यान

में रखना उपयोगी है कि स्त्री पुरुष सहयोगी हो सकते हैं। पति पत्नी उनका दा्ंपत्य सिर्फ संबंध का दांपत्य नहीं, समाधि का दांपत्य भी बन

सकता है।साधारणत: संन्यासी जितना स्त्रियों को आकर्षित करता है, उतना साधारण आदमी आकर्षित नहीं करता उसका और कोई कारण नहीं है।संन्यासी के पास मैग्नेटिक फोर्सेस की बड़ी शक्ति इकट्ठी हो जाती है।यही बात एक संन्यासिनी स्त्री के साथ भी है।

16- और अगर पति पत्नी भी शक्ति को इकट्ठी करने और खोने की व्यवस्था को ठीक से समझ लें तो वे एक दूसरे की शक्ति के खोने में कम और एक दूसरे की शक्ति को बचाने में बहुत सहयोगी हो सकते हैं।हमें साधारणत:

कोई अनुमान नहीं है कि हमारा प्रत्येक स्पर्श चुंबकीय स्पर्श है। जब हम प्रेम से भर कर किसी को छूते हैं, तो स्पर्श का भेद जिसको स्पर्श किया है उसे पता चलता है। जब हम घृणा से भरकर किसी को छूते हैं, तब भी पता चलता है।जब हम उपेक्षा से छूते हैं, तब भी पता चलता है। तीनों स्थितियों में हमारा चुंबकीय तत्व अलग अलग धाराओं में प्रवाहित होता है। फिर अगर पूरे मन से और पूरे संकल्प से हाथ पर ही स्वयं को पूरा केंद्रित किया गया हो, तो चुंबकीय धाराएं बड़ी तीव्र हो जाती हैं, जिनको मैग्नेटिक पासेज कहा जाता है।

17-मैग्नेटिक फोर्सेस की बड़ी शक्ति इकट्ठी होने के कारण एक संन्यासिनी/संन्यासी के लिए यह सरल सी प्रक्रिया है। चेहरे पर दोनों हाथ चार इंच की दूरी पर रख कर जोर से उंगलियों को हिलाना शुरू करें और मन में कामना करें कि शरीर से विद्युत की किरणें पांचों -दसों उंगलियों से बहती हुई नीचे गिर रही हैं और नीचे तक ले जाएं। चार इंच फासला रहे और चार इंच फासले पर उस शरीर पर अगर हम दोनों हाथों को जोर से कंपित करते हुए उसके पैरों तक ले जाएं और यह पंद्रह मिनट तक करें, तो वह व्यक्ति इतनी अपरिसीम शांतिशाति में और इतनी अपरिसीम निद्रा में चला जाएगा जितनी निद्रा में वह कभी भी नहीं गया है।

18-छुए मत ...सिर्फ चार इंच , चार अंगुल की दूरी पर, हाथों से सिर्फ विद्युत धाराएं हवा में पैदा करें। दोनों हाथों से सिर्फ समझें कि विद्युत की धाराएं बह रही हैं और दोनों हाथों को फैलाते हुए पैर तक ले जाएँ ऊपर से नीचे तक।अगर शक्ति देनी हो तो ऊपर से नीचे की तरफ, अगर वापिस लौटानी हो तो नीचे से ऊपर की तरफ।वह जो शक्ति मैग्नेटिक पासेज से दी जाये,अगर वह वापस नहीं निकाली गई, तो दो दिन तक उसका पीछा करती रहेगी।अथार्त वो व्यक्ति ऐसे रहेगा जैसे नीद में हो।

19-फिर शरीर के कुछ बिंदु हैं जो बहुत सेंसिटिव हैं, जहां से शक्ति शीघ्रता से प्रवेश करती है। जैसे सबसे ज्यादा संवेदनशील जो बिंदु है, वह हमारी दोनों आंखों के बीच में है। जिसको आज्ञा चक्र / तीसरी आँख कहते हैं। वह सर्वाधिक संवेदनशील बिंदु है। आप आँख बंद करके बैठ जाएं और दूसरा आदमी आपकी दोनों आंखों के बीच में चार इंच की दूरी पर अपनी अंगुली रखकर बैठ जाए, आपको अंगुली दिखाई नहीं पड़ेगी, लेकिन भीतर दिखाई पड़ने लगेगी। अंगुली आपको छू नहीं रही है, लेकिन भीतर स्पर्श शुरू हो जाएगा और आपके भीतर चक्र चलना शुरू हो जाएगा। सोए हुए आदमी को भी अगर चार इंच की दूरी पर अंगुली उसके माथे के ठीक बीच में रखकर कोई बैठ जाए, तो नींद में उसका चक्र शुरू हो जाएगा। यह बहुत सक्रिय बिंदु है।

20-दूसरा सक्रिय बिंदु हमारे ठीक गरदन के पीछे है। इसका कभी छोटा—मोटा प्रयोग करके देख सकते है। रास्ते पर कोई अपरिचित आदमी जा रहा है। आप उसके पीछे जा रहे हैं। कोई चार फुट की दूरी पर आप उसकी गरदन पर दोनों आंखों को गड़ा कर उसको सुझाव दें कि पीछे लौट कर देखो! तो आप दो -तीन मिनट के भीतर पाएंगे कि वह आदमी घबड़ा कर पीछे लौट कर देखेगा। या उसको आप यह भी सुझाव दे सकते हैं कि बाएं से लौटकर देखो या दाएं से लौटकर देखो। तो जो आप सुझाव देंगे, वह वैसे ही लौटकर देखेगा।दस -पांच प्रयोग करने के बाद जब आप बहुत आश्वस्त हो जाएं और समझ लें कि यह हो सकता है। सिर के

पास ये दो बिंदु सरलतम और बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ऐसे और बिंदु भी शरीर में हैं,जैसे नाभि भी एक बिंदु है।

21-अगर किसी व्यक्ति की चेतना बाहर चली गई हो, तो उसे कहां स्पर्श करना है? साधारणत: उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के संबंध में हमें पता होना चाहिए कि वह किस बिंदु पर जीता है।अगर वह कामुक है, तो उसके काम सेंटर पर स्पर्श करने से वह शीघ्रता से वापस लौटेगा। अगर वह बुद्धि में जीता है, तो उसके आज्ञाचक्र को छूने से वह वापस लौटेगा। अगर भावुक है, सेंटीमेंटल है, इम्मोशनल है, तो उसके हृदय को छूने से वह वापस लौटेगा। अब यह उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करेगा कि वह जीता किस बिंदु पर है।

22-ध्यान रहे, जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसके उसी बिंदु से प्राण निकलते हैं, जहां वह जीता है। और उस व्यक्ति का जो बिंदु प्राण निकलने का है, वही बिंदु उसके सूक्ष्म शरीर के भीतर प्रवेश करने का होता है। जैसे कामुक व्यक्ति मरता है, तो उसके प्राण उसकी जननेंद्रिय से ही निकलते हैं। इसका पूरा शास्त्र था, और है। कि मरे हुए आदमी को देखकर कहा जा सकता है कि वह किस बिंदु पर जीवन भर जीया, क्योंकि उसका वह सेंटर टूट जाएगा।

23-हम जानते हैं कि अभी भी हम मरघट पर एक प्रक्रिया किए चले जा रहे हैं, जो बिलकुल नासमझी की है, लेकिन किसी बड़ी समझदारी के क्षण में तय की गई थी। मरघट पर ले जाकर हम मरे हुए आदमी का कपाल फोड़ते हैं, लकड़ी से उसका सिर फोड़ते हैं। वह उस जगह फोड़ते हैं जहां सहस्रार है। असल में जो व्यक्ति सहस्रार को उपलब्ध हो जाता है, उसका मरते वक्त कपाल फूट जाता है । उसके प्राण वहीं से निकलते हैं। इस आशा में कि जो हमारा प्रियजन मर गया है, उसके प्राण भी सहस्रार से निकलें, हम उसका कपाल फोड़ते जा रहे हैं।

24-वह पहले ही निकल चुका है, अब कपाल फोड़ने से कुछ अर्थ नहीं। लेकिन जो परम स्थिति को उपलब्ध हुए हैं, उनके कपाल पर छिद्र हो जाता है, मरते वक्त वहीं से प्राण निकलते हैं। यह अनुभव में आ गया। तो इस आशा और इस प्रेम में हम मरघट पर जा कर अपने प्रियजन का भी कपाल फोड़ते जा रहे हैं कि उसका भी प्राण वहीं से निकल जाए। लेकिन अब वह मर चुका है, प्राण निकल चुका है।

25-जहां से हमारा प्राण निकलता है, वही सेंटर हमारे जीवन का सेंटर है। इसलिए उसी सेंटर को स्पर्श करने से तत्काल सूक्ष्म शरीर वापस लौट सकता है। यह हर व्यक्ति का अलग -अलग होगा। लेकिन सौ में से नब्बे लोगों का काम -सेंटर होगा, क्योंकि सारी दुनिया कामुकता से ग्रसित है।दूसरा अगर काम -सेंटर न हो, तो बहुत संभावना आज्ञाचक्र के होने की है। क्योंकि जो लोग बहुत बुद्धिमान हैं या बहुत बुद्धि का प्रयोग करते हैं, उनकी काम ऊर्जा धीरे -धीरे उनकी इंटेलीजेंस में बदल जाती है।अगर ये दोनों

न हों, तो हृदय का केंद्र छूना जरूरी है। जो लोग न बहुत कामुक हैं, न बहुत बौद्धिक हैं, वे लोग भावुक होते हैं। ये तीन सामान्य केंद्र हैं। फिर असामान्य केंद्र भी हैं। लेकिन उस तरह के असामान्य लोग बहुत कम होते हैं।

26-ये स्पर्श भी दो -तीन और बातें ध्यान में रखकर देने की बात है। अगर स्पर्श देने वाला व्यक्ति स्वयं भी किसी विशेष केंद्र से बंधा हुआ है, तो बहुत सोचने जैसा मामला हो जाता है। समझ लें कि एक ऐसा व्यक्ति जिसका कि आज्ञाचक्र सक्रिय है, अगर किसी के हृदयचक्र को छुए, तो बहुत कम

प्रभावित कर पाएगा।इसलिए ध्यान के प्रयोग, पूरे विज्ञान की बात है। और इन सारे प्रयोगों के लिए, सात शरीरों के अनुभव के लिए, शरीरों की बहिर्यात्रा के लिए व्यक्तिगत प्रयोग सदा खतरनाक हैं। ये स्कूल में, आश्रम में करने योग्य हैं। जहां कि और लोग हैं जो इन सारी व्यवस्थाओं को समझ सकते हैं, सहयोगी हो सकते हैं।

27-इसलिए जिन संन्यासियों ने परिव्राजक होना तय किया, उन संन्यासियों की परंपराओं में सात चक्र, सात शरीर सब खो गए, क्योंकि परिव्राजक संन्यासी इनका प्रयोग नहीं कर सकता। जो संन्यासी घूमते ही रहते हैं, रुकते नहीं, ठहरते नहीं, वे इन सब संबंधों में बहुत प्रयोग नहीं कर सकते। इसलिए जहां मोनास्ट्रीज थीं, आश्रम थे, वहां इन पर बड़े प्रयोग किए गए।

28-अब जैसे उदाहरण के लिए यूरोप में एक मोनास्ट्री है, जिसमें किसी पुरुष ने कभी भी प्रवेश नहीं किया, आज भी नहीं किया। उस मोनास्ट्री को बने कोई चौदह सौ वर्ष हो गए। उसमें सिर्फ स्त्रियां हैं, नन्स हैं, साध्वियां हैं। और जो स्त्री एक बार प्रवेश होती है, वह फिर दोबारा बाहर नहीं निकल सकती। उसका नाम नागरिकता के रजिस्टर से काट दिया जाता है, क्योंकि वह मरने के बराबर हो गई। उसका अब जगत से कोई मतलब नहीं।

ऐसी एक मोनास्ट्री पुरुषों की भी है।और जिस इजोटेरिक क्रिश्चियनिटी ने यह मोनास्ट्री बनाई थी, उसने बहुत गजब का काम किया है। उस पुरुषों की मोनास्ट्री में किसी स्त्री ने कभी प्रवेश नहीं किया है। और जो पुरुष उसके भीतर गया, फिर वह कभी बाहर नहीं निकला।

29-ये दोनों मोनास्ट्री पास -पास हैं। और अगर कभी किसी साधक की आत्मा बाहर चली जाए, तो उसे स्त्री के स्पर्श की जरूरत नहीं। सिर्फ स्त्रियों की मोनास्ट्री की दीवाल के पास लिटा देना काफी है। वह पूरी की पूरी चार्जड है मोनास्ट्री। वहां पुरुष कभी गया नहीं। उसके भीतर हजारों स्त्रियां हैं। पुरुषों की मोनास्ट्री के भीतर हजारों पुरुष हैं। और यह साधारण नहीं ;असाधारण संकल्प है। यह जीते जी मर जाने का संकल्प है। लौटने का अब उपाय नहीं है।

30-अब ऐसी मोनास्ट्रीज में जो गुप्ततम विज्ञान थे, वे विकसित हो सके। क्योंकि यहां प्रयोग की बड़ी सुविधा थी। तांत्रिकों ने भी ऐसी व्यवस्थाएं की थीं, लेकिन तांत्रिक धीरे -धीरे नष्ट हो गए ।क्योंकि इस मुल्क में तांत्रिकों को

अनैतिक सिद्ध कर दिया गया।केवल राजा भोज ने एक लाख तांत्रिकों की हत्या की। सामूहिक रूप से पूरे मुल्क में हत्या की गई। उनकी एक -एक जगह नष्ट कर दी गई। क्योंकि वे कुछ प्रयोग कर रहे थे;जो समाज को स्वीकार नहीं थे।

31-हम सबने सुना है कि हाइड्रोजन और आक्सीजन अगर मिल जाएं, तो पानी बन जाता है। लेकिन आप अपने घर में हाइड्रोजन और आक्सीजन दोनों को अपने कमरे में भर दें, तो भी पानी नहीं बनेगा। हाइड्रोजन और आक्सीजन के पानी बनने के लिए बहुत बड़े वोल्टेज में विद्युत की वहां प्रवाहना होनी चाहिए। वर्षा में जो आपको पानी दिखाई पड़ता है वह आकाश में चमकी हुई बिजली की वजह से बनता है। हाइड्रोजन और आक्सीजन दोनों मौजूद होते हैं लेकिन उतने जोर से विद्युत जब चमकती है, तो उतनी गर्मी की विद्युत की व्यवस्था में ही हाइड्रोजन और आक्सीजन एक दूसरे से मिल पाते हैं और पानी बन जाते हैं।

32-कभी ऐसा दुर्भाग्य का दिन आ जाए कि हमारे पास सिर्फ

इतना लिखा रह जाए कि हाइड्रोजन और आक्सीजन के मिलने से पानी बनता है, तो हम पानी न बना सकेंगे। ऊर्जा नष्ट नहीं होती, सिर्फ उसका बहाव बदलता है।कोई शक्ति नष्ट नहीं होती, सिर्फ उसका मार्गीकरण होता है।एक स्त्री को पूजा के भाव से देखने की विशेष प्रक्रियाएं थीं, विशेष मनोदशाए थीं, विशेष ध्यान के प्रयोग थे, विशेष मंत्र थे, विशेष शब्द थे, विशेष तंत्र थे। और उन सबके बीच प्रयोग करने पर यह घटित हो जाता था।अगर बाहर स्त्री पूज्य हो गई, तो ऊर्जा भीतर की तरफ बहनी शुरू हो जाती है और भीतर की स्त्री से मिलन हो जाता है। उस मिलन के बाद बाहर की स्त्री से मिलन का कोई अर्थ,कोई प्रयोजन नहीं रहता।उन सबका प्रयोग ईश्वर के पाने के लिए करना तो उचित है परंतु माया जगत में उसका दुरुपयोग करना साधक के लिए विनाशकारी सिद्ध होता है।

NOTE;-

मैंने स्पष्ट लिखा है कि सन्यासी और सन्यासिनो के लिए कठिन है।यह नहीं लिखा है कि बिना Partener के नहीं हो सकता , लेकिन यह समझ लीजिए कि सप्तऋषि मैरिड हैं और हमारे त्रिदेव भी मैरिड हैं।आदिशंकरा और स्वामी विवेकानंद केवल गुरु हैं, भगवान नहीं।अपने सूक्ष्म शरीर को तभी जगाना चाहिए जब कारण शुध्द हो अथार्त संसार का कल्याण करने का ...अन्यथा नहीं जगाना चाहिए।

NEXT..

...SHIVOHAM...

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