क्या है जाति-स्मरण (पिछले जन्मों के स्मरण की विधि) के गुप्त सूत्रों का रहस्य?
क्या अर्थ है जाति-स्मरण के प्रयोग का?-
03 FACTS;-
1-आध्यामिक दृष्टिकोण से भारतीय दर्शन में इस पद्धति का उल्लेख "जाति - स्मरण" के नाम से हमारे उपनिषदों में, जैन धर्म शास्त्र एवं बुद्ध धर्म शास्त्रों में भी मिलता है। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर एवं भगवान बुध्द ने ध्यान की विधियों के द्वारा इस पद्धति का प्रयोग स्वयम के लिए और अपने शिष्यों को दीक्षा देने के पूर्व करते थे। कालन्तर में इस पद्धति का लोप हो गया था। परंतु आज हम फिर से इसे Past Life Regression Theraphy के नाम से जानते है।
2-बुद्ध और महावीर, दोनों ने अपने सभी साधकों को पिछले जन्मों में ले जाने का प्रयोग किया।और प्रत्येक व्यक्ति जो उनके निकट आता, उसे जाति-स्मरण के प्रयोग में ले जाते, ताकि वह जान सके कि उसकी पिछली यात्रा क्या है। यहां तक भी वह जान सके कि वह पशु कब था, कैसा पशु था, क्या पशु होने में उसने किया कि वह मनुष्य हो सका। और अगर यह उसे पता चल जाए कि पशु होने में उसने कुछ किया, जो उसे मनुष्य बनाया, तो उसे खयाल में हो सकता है कि मनुष्य होने में कुछ करे तो क्या और ऊपर जा सकता है। कुछ करने से ही वह आया है।
3-अगर कोई बहुत गौर से समझे तो बुद्ध और महावीर का जो सबसे बड़ा दान है वह अहिंसा वगैरह नहीं है। अहिंसा तो बहुत दिन से चलती थी। इन दोनों का जो सबसे बड़ा कीमती दान है, वह जाति स्मरण है, वह विधि है जिसके द्वारा आदमी को उसका पिछला जन्म स्मरण दिलाया जा सके। और जो लाखों लोग भिक्षु और संन्यासी हो गए, वह शिक्षा से नहीं हो गए। वह जैसे ही उनको पिछले जन्म का स्मरण आया कि सब बातें बेकार हो गईं और उनको सिवाय संन्यास के कोई सार्थक बात न रही।
4-लाखों आदमी एक साथ जो संन्यासी हुए, उसका यह कारण नहीं था कि महावीर ने समझा दिया कि संन्यास से मोक्ष मिल जाएगा। उसका कुल कारण इतना था कि उनको उनकी स्मृति की याद दिला देने से उनको यह लगा कि यह सब तो हम बहुत बार कर चुके, इसमें तो कुछ सार नहीं है, इसमें कुछ भी सार नहीं है। यह चक्कर तो बहुत दफे घूम चुका, इसमें कोई भी अर्थ नहीं है।
5-लोगो का पूर्व के जन्मो और पुनर्जन्मों के प्रति बढ़ती उत्सुकता और विश्वाश के कारण ही "Past Life Regression" जैसी Therapy प्रचलित हुई। लोग अपनी वर्तमान समस्या (किसी तरह का अनजाना डर या फोबिया) का हल पूर्वजन्म की घटनाओं में तलाश रहे है । और ऐसे लोगो की संख्या हज़ारो में है, जिनका दावा है कि Past Life Regression Therapy के कारण वे अपनी अनेक परेशानियों से छुटकारा पा चुके है। इस Theraphy मे उत्सुक व्यक्ति को समोहनकर्ता (Hypnotherapist) सम्मोहन अर्थात Hypnosis के तहत उसके बचपन से लेकर जन्म से पहले के कालखंड में पहुचने के लिए प्रेरित करता है।
6-ज्यादतर मामलो में इस प्रक्रिया से गुजर रहा व्यक्ति अपने मौजूदा जीवन से पहले के जीवन या जीवन और मृत्यु के बीच के समय के बारे में बाते करने लगता है जिससे पारलौकिक जीवन के कई रहस्यो से अनायास ही पर्दा उठने लगता है और साथ ही साथ अपनी गम्भीर बीमारी या मनोदशा से छुटकारा भी पा लेता है। पाश्चात्य जगत में, आज से 50-60 वर्षो पूर्व ही Past Life Regression तकनीक पर व्यापक तौर पर शोध हुए जिनमे सुप्रसिध्द मनोचिकित्सक डॉ माइकल न्यूटन भी एक थे, जिन्होंने PLR Threpahy पर अपने जीवन के 30 वर्षों के शोध के बाद कई किताबें लिखी जिनमे से 3 मुख्य है।जिनके नाम निम्नलिखित है .. 1-Life Between Life
2-Journey of Souls
3-Destiny of Souls
स्वास्थय लाभ के साथ साथ अपनी आध्यात्मिक यात्रा की उन्नति के लिए PLR Theraphy मील का पत्थर साबित हो सकती है।
क्या हम अपने अतीत के जन्मों को जान सकते है ?-
06 FACTS;-
1-जाति-स्मरण का अर्थ है, पिछले जन्मों के स्मरण की विधि।निश्चित ही मनुष्य अपने पिछले जन्मों को जान सकता है।क्योंकि जो भी एक बार चित पर स्मृति बन गई है, वह नष्ट नहीं होती। वह हमारे चित के गहरे तलों में /अनकांशस हिस्सों में सदा मौजूद रहती है। हम जो भी जान लेते है कभी नहीं भूलते।लेकिन अभी तो आप इस जन्म को भी नहीं जानते है, अतीत के जन्मों को जानना तो फिर बहुत कठिन है।
2-वास्तव में,सम्मोहित अवस्था में आपके भीतर की स्मृति को बाहर लाया जा सकता है।
लेकिन पहले उसे इसी जन्म में पीछे लौटना पड़ेगा।वहां तक पीछे लौटना पड़ेगा, जहां वह मां के पेट में कंसीव हुआ, गर्भ-धारण हुआ। और बाद में फिर दूसरे जन्मों की स्मृतियों में प्रवेश
किया जा सकता है।लेकिन ध्यान रहे, प्रकृति ने पिछले जन्मों की व्यवस्था आकारण नहीं कर रखी है। कारण बहुत महत्व पूर्ण है।और पिछला जन्म तो दूर है, अगर आपको इस महीने की भी सारी बातें याद रह जाये, तो आप पागल हो जायेंगे। एक दिन की भी अगर सुबह से सांझ तक की सारी बातें याद रह जाएं तो आप जिंदा नहीं रह सकते।
3-तो प्रकृति की सारी व्यवस्था यह है कि आपका मन कितने तनाव झेल सकता है। उतनी ही स्मृति आपके भीतर शेष रहने दी जाती है। शेष अंधेरे गर्त में डाल दि जाती है। जैसे घर में कबाड़-घर होता है, डालकर दरवाजा बंद कर दिया है। वैसे ही स्मृति का एक कलेक्टिव हाऊस , एक अनकांशस/अचेतन घर है, जहां स्मृति में जो बेकार होता है, जिसे चित में रखने की कोई जरूरत नहीं है, वह सब संग्रहीत होता रहता है। लेकिन अगर कोई आदमी अनजाने, बिना समझे हुए उस घर में प्रविष्ट हो जाए तो तत्क्षण पागल हो जाएगा। इतनी ज्यादा है वे स्मृतियां।
4-आत्मा के संबंध में जितनी बातें हैं, वे बिना प्रयोग के कोई भी समझ में
आने वाली नहीं हैं।और कठिनाई तो यह है कि किसी की गहरे प्रयोग करने की तैयारी नहीं है। क्योंकि गहरे प्रयोग खतरनाक भी हैं। क्योंकि आपको अगर पिछले जन्मों की स्मृति आ जाए, तो आप फिर दुबारा वही आदमी कभी नहीं हो सकेंगे जो आप स्मृति के पहले थे।यानी आपकी पूरी, टोटल पर्सनैलिटी फौरन बदल जाएगी। क्योंकि अगर आप अपने बेटे के लिए मरे जा रहे हैं कि इसको यह बनाऊं, इसको वह बनाऊं, और आपको अगर पांच जन्मों की स्मृति आ जाए कि आप ऐसे कई बेटों के साथ मेहनत कर चुके हैं, वह सब बेमानी साबित हुई, और आखिर में मर गए, तो इस बेटे के साथ जो आपका पागलपन है वह एकदम क्षीण हो जाएगा।
5-इक्कीस दिन में गहरा प्रयोग करने से आप बिलकुल दूसरे आदमी हो सकते हैं। आपकी सारी जिंदगी और हो जाए ;जो आप सोचते थे वह चला जाए; जो आप जीते थे वह चला जाए; और दुबारा आप लौट कर कभी
वही न हो सकें।लेकिन बौद्धिक जिज्ञासा से तो कुछ हल होने वाला नहीं है ।
मन और चित्त में अंतर है। चित्त में एक लाख जन्मों की स्मृतियां संग्रहित रहती है।
6-चित्त कभी न नष्ट होने वाली हार्ड डिस्क की तरह होता है। वर्तमान जन्म से पहले का जन्म सबसे ज्यादा स्पष्ट होता है, क्योंकि उस जन्म में मरकर ही हम इस जन्म में आए हैं। ताजा मामला जरा ज्यादा स्पष्ट होता है।
अब सवाल यह उठता है कि यह कैसे संभव होता है कि हमारे पिछले जन्म के हमें संकेत मिलते रहते हैं? यह संकेत समझने वाला ही उस पर गौर करता है और अभ्यास से वह वहां पहुंच जाता है जहां वह पिछले जन्म में रहता था।
क्या है संकेत ?-
06 FACTS;-
1-घटनाए देती है संकेत :-
02 POINTS;-
1-यदि आप पिछले जन्म में बुरी घटनाओं के दौरा से गुजरे हैं तो इस जन्म में आपका स्वभाव किसी होनी-अनहोनी की आशंका से ग्रस्त रहेगा। यह भी कि आपकी पिछले जन्म में मौत स्वाभाविक नहीं हुई है तो निश्चित ही आप किसी अजीब और अनजानी घटना के भय से हमेशा ग्रस्त रहेंगे।
हालांकि डरना एक साधारण और स्वाभाविक बात होती है। लेकिन जब आप बेवजह की चीजों जैसे, कोई निश्चित रंग, संख्या, स्वाद, वस्त्र, गंध, स्थान से भी डरने लगते हैं, जिनसे एक आम इंसान को नहीं डरना चाहिए या उसका भय नहीं सताना चाहिए, तो यह साधारण बात नहीं होती है।
2-इसके अलावा अगर आपको अंधेरे, ऊंचाई या पानी से डर लगता है और किसी खास तरह के कपड़े या टोपी को पसंद या नापसंद करते हैं, तो यह पिछले जन्म का संकेत ही है। किसी-किसी में यह डर इस कदर हावी रहता है कि उसका जीना मुश्किल हो जाता है। हालांकि मनोवैज्ञानिक इसे फोबिया कह सकते हैं लेकिन यह आपके अवचेतन मन में कैसे समाया यह सोचने वाली बात है। आपके साथ जरूर ऐसा कुछ घटा है तभी तो आप उक्त बातों से डरते हैं।
2-जाने पहचाने से स्थान :-
आप किसी शहर, गली,या गांव से गुजर रहे हो और अचानक से आपको लगे कि मैं यहां पहले भी आया हूं या इस जगह में कुछ तो है जो मुझे आकर्षित कर रही है। हो सकता है कि आप इस स्थान पर अपने इस जन्म में पहली बार गए हों लेकिन वो आपको कुछ जाना-पहचाना सा लगने लगता है। कई बार सपनों में भी ऐसी जगहें दिखाई देती है लेकिन हम उस पर गौर नहीं करते।
3-जाने पहचाने से चेहरे :-
अधिकतर लोगों को कुछ अनजाने से लोगों को देखकर लगता है कि मैंने इसे कहीं देखा है। कहां .. यह याद नहीं। हालांकि आप उस व्यक्ति से पहली बार ही मिले हो। यह भी हो सकता है कि किसी पिछले जन्म के व्यक्ति से मिलता-जुलता कोई चेहरा हो, जिसे आप देख रहे हो हो सकता है कि कोई ऐसा चेहरा हो जो आपने पिछले जन्म में देखा हो या जो आपका बहुत करीबी हो।
4-पहली बार मिलकर अजीब-सी फीलिंग :-
आप किसी व्यक्ति से पहली बार मिले हैं लेकिन मिलते ही आपके मन में अजीब सी खुशी और सिरहन होती है। आप गहराई से उसे अचानक ही पसंद करने लगते हैं। यह भी हो सकता है कि कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई दे जिसे देखकर ही आपके मन में घृणा उत्पन्न हो। हो सकता है उस व्यक्ति का आपके पिछले जन्म से कोई संबंध हो। भले ही उन लोगों से आपका वर्तमान में किसी भी प्रकार का संबंध न हो लेकिन आपको उनके भीतर से सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा जैसा आभास होता है।
5-किसी सपने का बार-बार आना :-
03 POINTS;-
1-अक्सर कुछ ऐसे सपने होते हैं जो आपके पिछले जन्म से जुड़े होते हैं। हो सकता है कि आप किसी गली में किसी के साथ घुम रहे हों या कोई घर आपको बार-बार दिखाई देता हो। अक्सर आप उस घर की छत पर या आंगन में खुद को पाते हों। कभी-कभी ऐसे सपने डरावने भी हो सकते हैं।
2-आपने देखा होगा कि आपको उस घर या गली के सपने ज्यादा आते हैं जहां आपने बचपन बिताया है। इसी तरह आपने अपने पिछले जन्म में भी कई घरों में अपना जीवन बिताया है। उन घरों की स्मृतियां आपके अंदर हमेशा मौजूद रहेगी। वे स्मृतियां समय-समय पर जाग्रत होती रहती है। यह आपको पिछले जन्म से जोड़ने की एक कड़ी है।
3-आप इस पर गौर करेंगे तो निश्चित ही अपने सपनों में अपने पिछले जन्म के घर को स्पष्ट रूप से देख पाएंगे। हो सकता है कि आप किसी बोर्ड पर उस शहर का नाम भी देख या पढ़ लें जहां आप पिछले जन्म में रहते थे। कभी कभी अचानक ही ऐसे सपने स्पष्ट रूप से आते हैं लेकिन अधिकतर लोग इस पर ध्यान नहीं देते और सुबह उठते ही सपने भूल जाते हैं या वे उस सपने के बारे में अच्छे से सोच नहीं पाते हैं।
6-पिछले जन्म की अनूठी स्मृतियां : -
02 POINTS;-
1-अक्सर पिछले जन्म की यादें आपका पिछा करती रहती है। कभी-कभी यह लगता है कि वर्तमान में आप जिन घटनाओं का सामने कर रहे हैं वे पहले भी इसी तरह से घट चुकी है। जीवन एक चक्र है। कभी-कभी हमारे साथ एक ही तरह की घटनाएं बार-बार घटती रहती है। निश्चित ही इसमें समय और स्थान के अलावा पिछले जन्म का भी योगदान रहता होगा।
2-कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इस जन्म में आपके साथ असल में ऐसी कोई घटना नहीं घटी है जिसकी यादें आपके दिमाग में मौजूद है। आप उसी तरह की घटना किसी ओर के साथ जब घटते हुए देखते हैं तो आपको अजीब-सी अनुभूति होने लगती है। आप उस घटना से जुड़ जाते हैं। कभी-कभी किसी बच्चों को ऐसी घटनाएं याद आ जाती है जो उसके पिछले जन्में घटी है। वह उसका वर्णन करने लगता है लेकिन हम समझते हैं कि यह उल्लू बना रहा है ..बहुत कार्टून देखने लगा है। दरअसल, ये स्थिति बच्चों के साथ अक्सर होती है, जब वे कुछ ऐसा बोलने लगते हैं या याद करने लगते हैं, जिसका संबंध उनके पिछले जन्म से होता है।
पुनर्जन्म क्यों?-
14 FACTS;-
1-महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- ''हे कुंतीनंदन! तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं। फर्क ये है कि मुझे मेरे सारे जन्मों की याद है, लेकिन तुझे नहीं। जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है'।यहूदी, ईसाइयत, इस्लाम पुनर्जन्म के सिद्धांत
को नहीं मानते हैं। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिन्दू, जैन और बौद्ध.. ये तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है।
2-उत्तर भारत में यह मान्यता है कि जो बच्चे अपने पिछले जन्म के बारे में जानकारी रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है। इसलिए जो बच्चे पुनर्जन्म की घटनाओं को याद रखते हैं, उनके लिए पालक उसकी इस स्मृति को भुलाने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। कई बार तो उसे कुम्हार के चाक पर बैठाकर चाक को उल्टा घुमाया जाता है ताकि उसकी स्मृति का लोप हो जाए। हमारा संपूर्ण जीवन स्मृति-विस्मृति के चक्र में फंसा रहता है। उम्र के साथ स्मृति का घटना शुरू होता है, जो कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, अगले जन्म की तैयारी के लिए।
3-एक तो शरीर हमें दिखाई पड़ता है, जो हमारा ऊपर है। एक और शरीर है, ठीक इसके जैसे ही आकृति का, जो इस शरीर में व्याप्त है। उसे सूक्ष्म शरीर कहें, सटल बाडी कहें, कार्मण शरीर कहें, कर्म शरीर कहें––मनो-शरीर कहें,कुछ भी नाम दें सकते है ।ठीक इस शरीर जैसा ही, अत्यंत सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित सूक्ष्म देह है। जब यह शरीर गिर जाता है, तब भी वह देह नहीं गिरती। वह देह आत्मा के साथ यात्रा करती है। उस देह की खूबी है कि आत्मा की जैसी मनोकामना होती है, वह देह वही आकार ग्रहण कर लेती है। पहले वह देह आकार ग्रहण करती है, और तब उस आकार की देह में वह प्रवेश कर सकती है।
4-अगर एक सिंह मरे, तो उसके शरीर के पीछे जो छिपा हुआ सूक्ष्म शरीर है, वह सिंह का होगा, लेकिन वह मनो-काया है। मनो-काया का मतलब यह है कि जैसे हम पानी एक गिलास में डालें, तो उस गिलास का हो जाए रूप उसका, बर्तन में डालें, तो बर्तन जैसा हो जाए, बोतल में भरें, बोतल जैसा हो जाए। हमारी स्थूल देह सख्त है, पत्थर के बर्फ की तरह। और हमारी सूक्ष्म देह तरल, लिक्विड है। वह तत्काल। किसी भी आकार को ग्रहण कर सकती है तो अगर एक सिंह मरे और उसकी आत्मा विकसित होकर मनुष्य बनना चाहे, तो मनुष्य शरीर ग्रहण करने के पहले उसकी सूक्ष्म देह मनुष्य की आकृति को ग्रहण कर लेती है। वह उसकी मनो-आकृति है।
5-सूक्ष्म शरीर जैसे ही देह ग्रहण कर लेता है, मनो-आकृति बन जाता है, वैसे ही उसकी खोज
शुरू हो जाती है गर्भ के लिए।स्त्री और पुरुष के अणुओं का मिलन सिर्फ अवसर/अपरचुनिटी है, जन्म नहीं है; जिसमें एक आत्मा उतर सकती है ।और उस काया को पिघलाने के लिए
जो प्रक्रिया है, वही साक्षी-भाव, सामायिक या ध्यान है। और वह हमारे स्मरण में आ जाए और उसके प्रयोग से हम गुजर जाएं तो फिर कोई पुनर्जन्म नहीं है।पुनर्जन्म रहा है सदा, रहेगा,
अगर हम कुछ न करें। लेकिन ऐसा हो सकता है कि फिर पुनर्जन्म न हो। तब हम विराट जीवन के साथ एक हो जाते हैं।
6-ऐसा नहीं कि हम मिट जाते हैं, समाप्त हो जाते हैं, बस ऐसा ही है जैसे बूंद सागर हो जाती है। मिटती-विटती नहीं, लेकिन बूंद की तरह मिट जाती है, सागर की तरह रह जाती है।
चेतना इस बात का सबूत है कि विकास स्वचालित, आटोमेटिक नहीं हो सकता, उसमें 'चेतना' सक्रिय रूप से भाग लेगी और चेतना भाग ले रही है। इसलिए जो हमें विकास दिख रहा है, जितने पीछे हम उतरते हैं, , उतना ही स्वचालित विकास की मात्रा बढ़ती चली जाती है और सचेष्ट विकास की मात्रा कम होती चली जाती है ।जैसे अमीबा है, आखिरी, पहला
कदम जीवन ने जहां उठाया, तो वहां हम कह सकते हैं कि शायद निन्यानबे प्रतिशत तो आटोमेटिक है, एकाध प्रतिशत विकास स्व-इच्छा से हो सकता है।
7-लेकिन जैसे-जैसे हम ऊपर की तरफ आते हैं, तो मनुष्य के साथ तो मामला ऐसा है कि अगर विकास होगा तो निन्यानबे प्रतिशत स्वेच्छा से होगा, नहीं तो विकास होगा ही नहीं।
और इसीलिए मनुष्य कोई पचास हजार वर्षों से ठहर गया है। यानी मनुष्य में अब कोई आटोमेटिक विकास परिलक्षित नहीं हो रहा है । दस लाख वर्ष के भी जो शरीर मिले हैं, उन शरीरों में भी कोई विकास नहीं हुआ है। दस लाख वर्ष के जो अस्थिपंजर मिले हैं और हमारे अस्थिपंजर में कोई बुनियादी फर्क नहीं पड़ा है। न हमारे मस्तिष्क में कोई बुनियादी फर्क पड़ा है।
8-तो ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य में तो निन्यानबे प्रतिशत स्वेच्छा पर निर्भर करेगा। कोई बुद्ध, कोई महावीर, यह स्वेच्छा का विकास है। और अगर हम स्वचालित विकास की प्रतीक्षा करते रहें तो एक ही प्रतिशत विकास की संभावना है, जो बहुत धीरे-धीरे घिसटती रहेगी।
मनुष्य तक आते हैं तो स्वेच्छा ज्यादा है, यांत्रिकता कम है। लेकिन निम्नतम स्थिति में भी एक अंश स्वेच्छा का है। वह एक अंश स्वेच्छा का ही उसे चेतन बनाता है, नहीं तो चेतन होने का कोई अर्थ नहीं है। यानी चेतन होने का अर्थ ही यह है कि विकास में हम भागीदार हैं और पतन में हम जिम्मेवार हैं। चेतना का मतलब ही यह है कि जो भी हो रहा है उसमें, 'दायित्व है हमारा', रिस्पांसिबिलिटी है। अंततः हम जिम्मेवार हैं। सारा विकास–चाहे पशु, पक्षी, मछली, कीड़े-मकोड़े, पौधा–कोई भी विकसित हो रहा हो, उसकी भी इच्छा सक्रिय होकर काम रही है।
9-तो विकास किया हुआ है, चेतना श्रम कर रही है विकास में। चेतना जितनी विकसित होती चली जाती है, उतने विकसित शरीर भी निर्माण करती है। इसलिए शरीर में भी जो विकास हो रहा है, वह भी जैसा डार्विन समझता है कि स्वचालित है, आटोमेटिक है, वैसा नहीं है।
जितनी चेतना तीव्र विकास ग्रहण कर लेती है, उतना शरीर के तल पर भी विकास होना अनिवार्य हो जाता है।यानी किसी बंदर का शरीर अगर कभी आदमी का शरीर बनता है तो तभी जब किसी बंदर की आत्मा इसके पूर्व आदमी की आत्मा का चरण उठा चुकी होती है। उस आत्मा की जरूरत के लिए ही पीछे से शरीर भी विकसित होता है।आत्मा का विकास पहले है, शरीर का विकास पीछे है। शरीर सिर्फ अवसर बनता है। जितनी आत्मा विकसित होती चली जाती है, उतना विकसित अवसर शरीर को भी बनना पड़ता है।
10-मनुष्य हो जाना असाधारण घटना है। लंबी प्रक्रियाओं, लंबी चेष्टाओं, लंबे श्रम और लंबी यात्रा से मनुष्य की चेतना की स्थिति उपलब्ध होती है। लेकिन अगर हमने ऐसा मान लिया कि मुफ्त में मिल गई है–और अक्सर ऐसा होता है।कभी भी मनुष्य और भी आगे गति कर सकता है और ऐसी चेतना विकसित हो सकती है, जो मनुष्य से श्रेष्ठतर शरीरों को जन्म दे सके।
इस जन्म में जब हमारी उपलब्धि होती है और तब हमें खयाल भी नहीं रह जाता, और तब हम अक्सर गंवाना शुरू करते हैं।यह धन के बाबत ही नहीं होता, यह पुण्य के बाबत भी , ज्ञान के बाबत भी , और चेतना के बाबत भी यही होता है। फिर हम अवसर का उपयोग नहीं कर पाते। तो जो हो गया है, वहीं हम अटक जाते हैं।
11-इसलिए बहुत लोग एक ही योनि में बार-बार पुनरुक्त होते हैं। लाख बार भी पुनरुक्त हो सकते हैं। नीचे कोई नहीं जाता। नीचे जाने का कोई उपाय नहीं है! पीछे कोई नहीं लौट सकता। लेकिन जहां हैं, वहीं पुनरुक्त हो सकता है या आगे जा सकता है।दो ही उपाय हैं–या
तो आगे जाएं या जहां हैं वहीं भटकते रह जाएं।और जहां हैं, अगर आप वहीं भटकते हैं तो विकास अवरुद्ध हो जाएगा, रुक जाएगा। और अगर आगे जाते हैं तो विकास फलित होगा।विकास चेष्टा निर्भर है, संकल्प निर्भर है, साधना निर्भर है। इसीलिए इतना बड़ा प्राणी-जगत है, लेकिन मनुष्यों की संख्या बहुत कम है। बढ़ती भी है तो बहुत धीमे बढ़ती है। आज हमें लगता भी है कि बहुत जोर से बढ़ रही है, तो भी वह हम सिर्फ मनुष्य को ही सोचते हैं, इसलिए ऐसा लगता है। अगर हम प्राणी-जगत को देखें तो असंख्य प्राणी-जगत में हमारी क्या संख्या है! हमसे ज्यादा छोटी जाति का कोई प्राणी नहीं है इस जगत में।
12-एक घर में इतने मच्छर हो सकते हैं जितनी पूरी मनुष्य-जाति है।हम एक बड़े समुद्र में एक छोटी बूंद से ज्यादा नहीं हैं। लेकिन अगर हम मनुष्यों को देखें तो हमें बहुत ज्यादा मालूम
पड़ता है। पहला जीवन भी जो इस पृथ्वी पर आया है, वह भी वैज्ञानिक नहीं बता पाते कि कैसे आ गया। वैज्ञानिक विकास बता पाते हैं, लेकिन विकास तो बाद की बात है। जीवन आया कहां से? मछली आदमी बन गई ; लेकिन मछली, वह प्राण कहां से आया? कि कोई कहे पौधा मछली बन गया, तो पौधे में वह प्राण कहां से आया? यानी प्राण को कहीं न कहीं से आने की जरूरत है।और दूसरी बात, यह है कि जब एक मां गर्भ के योग्य होती है, तो एक आत्मा उसमें प्रवेश करती है। जब एक पृथ्वी या एक उपग्रह जीवन के योग्य हो जाता है, तो दूसरे ग्रहों-उपग्रहों से जीवन वहां प्रवेश करता है। और कोई उपाय नहीं है। यानी जो पहला जीवाणु है, वह सदा ट्रांस-माइग्रेट करता है।
13-जानने की सीमा इतनी छोटी है कि हमें पता नहीं कि इस अंतहीन विस्तार में, इस पूरे ब्रह्मांड में कितने-कितने लोकों में जीवन है। उस जीवन से भी संबंध स्थापित करने की निरंतर चेष्टाएं की गई हैं। वैज्ञानिक चेष्टा तो अब चल रही है, धार्मिक चेष्टा बहुत पुरानी है। और संबंध स्थापित किए गए हैं। अगर हम स्वयं बाधा न बनें तो वह संभावना खुल सकती है। सिर्फ एक ही यात्रा है इस जगत में, विचार की, जिसमें समय नहीं लगता।गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियां जातक कथाओं द्वारा जानी जाती हैं।
14-आठ कारणों से लेती आत्मा पुनर्जन्म:-
1. भगवान की आज्ञा से : भगवान किसी विशेष कार्य के लिए महात्माओं और दिव्य पुरुषों की आत्माओं को पुन: जन्म लेने की आज्ञा देते हैं।
2. पुण्य समाप्त हो जाने पर : संसार में किए गए पुण्य कर्म के प्रभाव से व्यक्ति की आत्मा स्वर्ग में सुख भोगती है और जब तक पुण्य कर्मों का प्रभाव रहता है, वह आत्मा दैवीय सुख प्राप्त करती है। जब पुण्य कर्मों का प्रभाव खत्म हो जाता है तो उसे पुन: जन्म लेना होता है।
3. पुण्य फल भोगने के लिए : कभी-कभी किसी व्यक्ति द्वारा अत्यधिक पुण्य कर्म किए जाते हैं और उसकी मृत्यु हो जाती है, तब उन पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए आत्मा पुन: जन्म लेती है।
4. पाप का फल भोगने के लिए।
5. बदला लेने के लिए : आत्मा किसी से बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लेती है। यदि किसी व्यक्ति को धोखे से, कपट से या अन्य किसी प्रकार की यातना देकर मार दिया जाता है तो वह आत्मा पुनर्जन्म अवश्य लेती है।
6. बदला चुकाने के लिए।
7. अकाल मृत्यु हो जाने पर।
8. अपूर्ण साधना को पूर्ण करने के लिए।
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हम पशु-पक्षियों को कैसे जानें कि वे अपनी स्वेच्छा से विकसित होकर और ऊंची योनियों में प्रवेश कर रहे हैं?-
05 FACTS;-
1-हमें पहचानना बहुत मुश्किल हो जाता है ..एक ही सरलतम रास्ता है।और वह यह है कि जो मनुष्य-चेतनाएं आज हैं, अगर हम उन्हें उनके पिछले जन्मों में उतर सकें तो हम इस बात का पता पा जाएंगे कि वे पिछले जन्मों में पशुओं और पौधों से भी होकर आए हैं।उदाहरण के
लिए महावीर स्वामी एक व्यक्ति को समझा रहे थे ;जो राजकुमार है, लेकिन वह नया दीक्षित है। वह जो बीच का रास्ता है धर्मशाला का, उस पर ही सोया हुआ है।पुराने साधुओं को ज्यादा ठीक जगह मिल गई है। रात भर उसे बड़ी तकलीफ हुई है ; एक तो यह भारी अपमान है,कि वह राजकुमार था। कभी जमीन पर चला नहीं था और आज गलियारे में सोना पड़ा है। वृद्ध साधुओं को कमरे मिल गए हैं। वह गलियारे में पड़ा हुआ है। रात भर कोई गलियारे से निकलता है, फिर उसकी नींद टूट जाती है।
2-वह बार-बार सोचने लगा कि ''बेहतर है, मैं लौट जाऊं ;जो था, वही ठीक था। यह क्या पागलपन में मैं पड़ गया हूं! ऐसा गलियारों में पड़े-पड़े तो मौत हो जाएगी। यह तो व्यर्थ की जिंदगी हो गई। यह मैंने क्या गलती कर ली!''सुबह महावीर ने उसे बुलाया और कहा कि
तुझे पता है कि पिछले जन्म में तू कौन था?उसने कहा 'मुझे कुछ पता नहीं'।तो महावीर उससे कहते हैं कि पिछले जन्म में तू हाथी था। और जंगल में आग लगी, सारे पशु, सारे पक्षी भागे, तू भी भागा। जब तू पैर उठा रहा था और सोच रहा था कि किधर को जाऊं, तभी तूने देखा कि एक छोटा सा खरगोश तेरे पैर के नीचे आकर बैठ गया। उसने समझा कि पैर छाया है, बचाव हो जाएगा। और तू इतना हिम्मतवर था कि तूने नीचे देखा कि खरगोश है तो तूने फिर पैर नीचे नहीं रखा। तू फिर पैर ही ऊंचा किए खड़ा रहा।आग लग गई, तू मर गया, लेकिन तूने खरगोश को बचाने की मरते दम तक चेष्टा की। उस कृत्य की वजह से तू आदमी हुआ है। उस कृत्य ने तुझे मनुष्य होने का अधिकार दिया है।और आज तू इतना कमजोर है कि रात भर गलियारे में नहीं सो सका तो भागने की सोचने लगा।
3-तो उसे याद आती है अपने पिछले जन्म की।और उसे पता चलता है कि ऐसा था। तब फिर सब बदल जाता है। तब भागने का, पलायन का, छोड़ने का, जरा से कष्ट से भयभीत हो जाने का, सारी बात समाप्त हो जाती है। अब वह ज्यादा सुदृढ़ संकल्प पर खड़ा हो जाता है ..एक
नई भूमि उसे मिल जाती है।तो एक रास्ता यह है कि हम व्यक्तियों को उनके पिछले जन्म-स्मरणों में ले जाएं, उससे पता चलेगा कि वे किस योनि से कैसे विकसित हुए, कौन सी घटना थी, जिस घटना ने मूलतः उन्हें हकदार बनाया कि वे ऊपर की जिंदगी में चले जाएं।यही सरलतम रास्ता है।
4-दूसरा रास्ता बहुत कठिन है ।हम पशु-पक्षियों के निकट उनको जानें-पहचानें। उसके भी प्रयोग किए गए हैं। और बहुत से प्रयोगों के आधार पर ही यह कहा जा सकता है कि विकास स्वेच्छा से हो रहा है। हम दस-पांच पशुओं के निकट रहें और उनसे आंतरिक संबंध स्थापित करें तो हमें पता चल जाएगा कि उसमें भी अच्छी आत्माएं हैं, बुरी आत्माएं हैं; अच्छे प्राणी हैं, बुरे प्राणी हैं; सज्जन हैं, दुर्जन हैं।तो हमें पता चलेगा कि वे जो दस कुत्ते हमें दिखाई पड़ रहे हैं, वे सब एक जैसे कुत्ते नहीं हैं।उन दस का अपना व्यक्तित्व है।कुछ कुत्तो के व्यक्तित्व में कुछ ऐसा है जो कि मनुष्यों तक में कम होता है। यह उस जगह से ऊपर उठ जाने वाला है। इसने मनुष्य होने का एक बड़ा कदम रख लिया।
5-इसकी चेतना ने एक कदम उठा लिया है, जो इसे आगे ले ही जाएगी।सारे प्राणी विकसित नहीं हो पाते हैं। जो उस दिशा में थोड़ा श्रम करते हैं ,वे विकसित हो जाते हैं। जो नहीं श्रम करते, वे पुनरुक्ति करते रहते हैं उसी योनि में।अनंत पुनरुक्ति भी हो सकती है। लेकिन कभी न कभी वह क्षण आ जाता है कि पुनरुक्ति भी उबा देती है। और बहुत गहरे प्राणों में ऊपर उठने की आकांक्षा पैदा कर देती है।
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जाति-स्मरण के सूत्र क्या है? ;-
18 FACTS;-
1-आप कल को भूल जाते है। इसलिए आने वाले कल में जीने के लिए समर्थ हो जाते है। फिर मन खाली हो जाता है। और आगे देखने लगता है। आगे देखने के लिए जरूरी है कि पीछे का भूल जाए। अगर पीछे का न भूले तो आगे देखने की क्षमता न बचेगी। और रोज आपके मन का एक हिस्सा खाली हो जाना चाहिए। जिसमें नए संस्कार, नए इंप्रेसंस ग्रहण किए जा सकें।अन्यथा ग्रहण कौन करेगा। तो अतीत रोज मिटता है। भविष्य रोज आता है। और जैसे ही भविष्य अतीत बना, वह भी मिट जाता है ताकि हम आगे के लिए फिर मुक्त हो जाएं। ऐसी मन की व्यवस्था है।
2-जैसे अगर कोई व्यक्ति पचास साल का है ,तो पचास साल में अरबों-खरबों स्मृतियां बनती है।यदि वे सभी याद रखनी पड़ें, तो विक्षिप्त हो जाने के सिवाय कोई और रास्ता न रहे। जो बहुत सारभूत है, वह याद रह जाता है। जो असार है, वह धीरे-धीरे विस्मरण हो जाता है। लेकिन विस्मरण से आप यह मत अर्थ लेना कि वह आपके भीतर से मिट जाता है। सिर्फ आपकी चेतना के बिंदु से सरक कर आपके मन के लिए कोने में संग्रहीत हो जाता है।
3-बुद्ध ने उस संग्रहीत स्थान के लिए बहुत कीमती नाम दिया है। ‘’आलय-विज्ञान’’ 'द स्टोर हाउस आफ कांशसनेस'। जैसे हमारे घर में सब घरों में, कबाड़ खाने के लिए फिजूल की चीजों को इक्ट्ठा करने का कमरा होता है। जहां जो बेकार हो जाता है। हम इक्ट्ठा करते जाते है। वह हमारी नजर से हट जाता है। लेकिन घर में मौजूद रहता है। ऐसे ही हमारी स्मृतियां, हमारी नजर से हट जाती है। और हमारे मन के कोने में इकट्ठी रह जाती है। अगर इस जीवन की सारी स्मृतियां याद रहें, तो आपका जीना कठिन हो जाएगा।चेतना मुक्त होनी चाहिए; इसके लिए पीछे को भूलना पड़ता है।
4-सम्मोहन की अवस्था में ..कितने ही गहरे में व्यक्ति को उतारा जा सकता है। लेकिन दूसरा उतारेगा और आप बेहोश होंगे। आपको खुद कुछ पता नहीं चलेगा। सम्मोहन की अवस्था में पिछले जन्मों में भी ले जाया जा सकता है। लेकिन वह आपको मूर्च्छा की ही हालत होगी। जाति-स्मरण और सम्मोहन की प्रक्रिया में इतना ही फर्क है कि जाति-स्मरण में आप होश पूर्वक अपने पिछले जन्म में जाते हो। लेकिन इन दोनों प्रकियाओ का अगर प्रयोग किया जाए, तो वैलिडिटी बहुत बढ़ जाती है। एक व्यक्ति को हम बेहोश करके सम्मोहन की अवस्था में उससे उसके पिछले जन्मों के संबंध में पूँछें और उसे लिख डालें। होश पूर्वक उसे ध्यान में ले जाएं और अगर वही वह ध्यान में भी कह सके,तो हमारे पास ज्यादा इक्ट्ठा प्रमाण हो जाता है ।
5-दो मार्गों से एक ही स्मृति को उठाया जा सकता है। उठाने की जो प्रकिया है, ऐसे सरल है लेकिन उसके अपने खतरे है। इसलिए पूरे सूत्र नहीं कहें जा सकते है। कोई अगर प्रयोग करना चाहता है तो उससे कहे जा सकते है। लेकिन फिर भी पूरी प्रक्रिया कही जा सकती है।हमारी चेतना,
हमारे संकल्प से गतिमान होती है। जब आप ध्यान में बैठे और जब गहरे ध्यान में जाने लगें। तब एक संकल्प करके बैठ जाएं कि मैं ध्यान की अवस्था में पाँच साल का हो जाऊँ और वह जान सकूँ जो पाँच साल में हुआ था। तो आप पायेंगे की गहरे ध्यान में आपकी उम्र पाँच साल की हो गई। और पाँच साल कि उम्र में जो हुआ था उसे आप जान रहे है।
6-अभी आप पहले ही जन्म के प्रयोग को करें। जैसे-जैसे यह प्रयोग साफ और गहरा होने लगे और पीछे लौटना संभव होता चला जाए जो कि कठिन नहीं है। तो मां के गर्भ की स्मृतियां भी जगाई जा सकती है। अगर आप मां के गर्भ में थे और मां गिर पड़ी थी, तो उसके चोट की स्मृति भी आपकी स्मृति बन गई है। क्योंकि मां के गर्भ में आपकी और मां की दो स्थितियाँ नहीं है। संयुक्त स्थितियाँ है। तो जो मां को गहरे में अनुभव हुआ है , वह आपका भी अनुभव बन गया है। वह आपको भी ट्रांसफ़र हो जाता है।
7-चित को भविष्य की दिशा से पूर्णत: तोड़ कर ;ध्यान की शक्ति को अतीत की ओर फोकस करके बहाना चाहिए। प्रक्रिया का क्रम है....
A-पहले पाँच वर्ष की स्मृति में,
B-फिर तीन वर्ष की स्मृति में,
C-फिर जन्म की स्मृति में,
D-फिर गर्भाधान की स्मृति में लौटना,
E-फिर पिछले जन्म की स्थिति में प्रवेश
पिछले जन्म की स्मृतियाँ प्रकृति की ओर से रोकी गई है। जीवन की व्यवस्था में उनके रोकने का प्रयोजन है ।जिसे हम रोज-रोज जानते है, जीते है, उसका भी अधिकतम हिस्सा भूल जाए, यह जरूरी है।
8-इसलिए आप इस जीवन की भी जितनी स्मृतियाँ बनाते है ;उतनी स्मृतियाँ याद नहीं रखते। जो आपको याद नहीं है, वह भी आपकी स्मृति से मिट नहीं जाती। सिर्फ आपकी चेतना और उस स्मृति का संबंध छूट जाता है।
साधारणत: अगर हम होश में बिना ध्यान किए, पीछे लौटें तो जितने हम पीछे लौटगें ..उतनी ही स्मृति धुँधली होगी। कोई कहेगा की मैं पाँच साल से आगे नहीं जा सकता। पाँच साल तक मुझे याद आता है कि ऐसा हुआ था। वह भी एक आध घटना याद आयेगी। जैसे-जैसे हम करीब आयेंगे अपनी उम्र के वैसे-वैसे स्मृति साफ होती चली जाती हे। आज की और साफ होगी। परसों की और कम होगी,वर्ष भर की और कम होगी। पच्चीस साल की और कम होगी, पचास साल की और कम होगी।
9-लेकिन जब ध्यान में आप प्रयोग करेंगे,तो आप बहुत हैरान हो जायेंगे। स्थिति बिलकुल ही उलटी हो जायेगी। जितनी बचपन की स्मृति होगी उतनी साफ होगी। क्योंकि बच्चे के पास जितना साफ स्लेट होता है, उस पर जितनी साफ लिखावट उभरती है ;उतनी कभी नहीं उभरती । जब आप ध्यान में स्मृति पर जाएंगे तो स्मृति उलटी हो जायेगी। जितनी बचपन में जायेंगे उतना साफ मालूम होगा। जितने स्मृति में,बड़े होने लगेंगे उतना धुंधला होने लगेगा।ध्यान में आज का दिन सबसे धुंधला होगा। और आज से पचास साल पहले का दिन, जन्मदिन.. सबसे स्पष्ट होगा क्योंकि ध्यान में हम स्मरण नहीं कर रहे।
10-इस फर्क को समझ ले। जब हम होश में स्मरण करते है तो स्मरण कर रहे है। होश के स्मरण में अगर मैं अपने बचपन को याद कर रहीं हूं , तो मैं तो हुं पचास साल की और स्मरण कर रहीं हूं ..पाँच साल की, दो साल की, एक साल की स्मृति को। यह पचास साल का मेरा मन बीच में खड़ा है। इसलिए वह धुंधला हो जायेगा। क्योंकि पचास साल की परतें बीच में है और उनके पास मैं झांक रहीं हूं।
11-ध्यान की प्रक्रिया में तुम पचास साल के नहीं हो, पाँच ही साल के हो गए। जब तुम ध्यान में स्मरण कर रहे हो, तो तुम पचास साल के होकर पाँच साल की स्मृति को याद नहीं कर रहे हो। तुम पाँच साल की स्मृति में वापस लौट गये हो। इसलिए होश में—उसको हम रिमेंबरिंग कहें, स्मरण कहे; और ध्यान में उसे री-लिविंग कहें। वह पुनर्जीवन है, पुनर्स्मरण नहीं। और इन दोनों में फर्क है। पुनर्स्मरण में बीच में स्मृतियों की बड़ी परत होती है। जो धुंधला कर जाती है। पुनर्जीवन में तुम ध्यान की अवस्था में पाँच साल के हीं हो गये।
12-उदाहरण के लिए, एक कहती है कि ध्यान में उसे अचानक अजीब-अजीब ख्याल आ रहे है कि वह छोटी हो गई है। गुड्डे गुड्डीयों से खेल रही है। और वह ख्याल इतना मजबूत हो जाता है कि एक दम वह डर जाती है। कि कहीं कोई आकर देख न ले। नहीं तो कहेगा की इस उम्र में गुड्डे-गुड्डी से खेल रही है। वह आँख खोल कर देख लेती है, कि कहीं कोई आ तो नहीं गया। उसकी उम्र मिट गई है। उसे यही ख्याल है कि यह स्मृति है, यह री-लिविंग है। यानि वह पाँच साल की हो गई है।अब एक युवक है जो ध्यान करेगा तो अंगूठा मुंह में चला जाएगा। वह छह महीने का हो जा रहा है। वह जैसे ही ध्यान में गया कि उसका अंगूठा मुहँ में गया। वह जब छह महीने का रहा होगा, तब की स्थिति में पहुंच गया।
13-तो स्मरण और पुनर्जीवन,फिर से जीना, इनके फर्क को समझ लेना जरूरी है। तो एक जन्म का पुनर्जीवन तो बहुत कठिन नहीं है।थोड़ी कठिनाई तो होती है। क्योंकि हम सबने अपनी उम्र की आइडेंटिटी बना रखी है। जो आदमी पचास साल का हो गया है, वह पाँच साल पीछे हटने को राजी नहीं होगा। वह पचास साल का सख्ती से रहना चाहता है। इसलिए जिन लोगों को पुनर्जीवन में लौटना है, थोड़ी याद करनी है, उन्हें अपनी बिलकुल फ़िक्स्ड आइडेंटिटी को थोड़ा ढीला करना चाहिए
14-अब जैसे उदाहरण के लिए एक आदमी अपने बचपन को याद करना चाहता है तो अच्छा होगा की वह बच्चों के साथ खेले।एक दिन में घंटा भर निकाल ले और बच्चों के साथ खेले। उसके पचास साल होने का जो फिकसेशन है, जो गंभीर होने की आदत है ;वह थोड़ी छूट जाए।एक घंटे के लिए भी बचपन में होश पूर्वक जीए तो ध्यान में भी उसका लौटना आसान हो जाएगा।
15-और ध्यान रहे चेतना पर सिर्फ फिकसेशन होता है ; चेतना की कोई उम्र नहीं होती .. कि पाँच साल की चेतना की दस साल की चेतना या पचास साल की चेतना। सिर्फ ख्याल है। आँख बंद कर के बताएं की आपकी चेतना की कितनी उम्र है। तो आँख बंद करके आप कुछ भी नहीं बता
पायेंगे।उम्र तो हमारे बाहर के कैलंडर, तारीख दिनों को हम हिसाब लगा कर पता लगा लेते है। अगर भीतर हम झांक कर हम देखें तो वहां कोई उम्र नहीं होती।क्योंकि उम्र बिलकुल बाहरी माप जोख है जो फिकसेशन
बन जाती है।और वहां जाकर हम कीलें ठोकते चले जाते है कि अब में पचास साल का हो गया हूं, अब इक्यावन साल का हो गया हूं।
16-ये सब हम चेतना पर ठोकते चले जाते है। अगर ये बहुत सख्त है तो कठिनाई होगी पीछे लौटने में। इसलिए बहुत गंभीर आदमी/सीरियस बचपन की स्मृति में नहीं लौट सकता।असल में सीरियसनेस एक मानसिक बीमारी है जो बहुत गंभीर है, वे सदा बीमार होते है। उनका पीछे लौट आना बहुत मुश्किल है। थोड़ा सा जिनका चित हलका है ,निर्भार है, जो बच्चों के साथ खेल सकता है ,जो बच्चों के साथ हंस सकता है ;उस को लौटाना बहुत आसान है।
17-तो बाहर की जिंदगी में फिकसेशन को तोड़ने की फ्रिक करे। चौबीस घंटे अपनी उम्र को याद मत रखें। और जब भी अपने बेटे से कहें तो यह मत कहें कि मैं जानता हूं क्योंकि मेरी उम्र इतनी है। उम्र से जानने का कोई संबंध नहीं है। अपने छोटे बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार मत करें कि आपके और उसके बीच पचास साल का फासला है। दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाएं।
तो पहले तो स्मरण करना पड़ेगा जन्म के दिन तक। लेकिन वह असली जन्म-दिन नहीं है। असली जन्मदिन तो उस दिन है। जिस दिन गर्भाधान शुरू हुआ था। जिस को हम जन्मदिन कहते है। वह जन्म के नौ महीने के बाद का दिन है।
18-जिस दिन गर्भ में आत्मा प्रवेश करती है। उस दिन तक स्मृति को गर्भ तक ले जाना कठिन नही है। और न ही इसमें बहुत ही खतरा है। क्योंकि वह इसी जीवन की स्मृति है। और उसे ले जाने के लिए , भविष्य से मन को मोड़ ले।पीछे की तरफ देखें। और अपने मन में धीरे-धीरे क्रमश: संकल्प करते जाये। एक साल लोटे, दो साल लोटे, दस साल लोटे, बीस साल लोटे, पीछे लोटते ही जाएं। और वह बड़ा अजीब अनुभव होगा।
क्या मां नौ महीने तक बच्चे की चेतना को एक विशेष दिशा
दे सकती है?-
07 FACTS;-
1- मां के चित की दशा नौ महीने के गर्भकाल में बच्चे को निर्माण करने में बड़ा भारी काम करती है। और ठीक अर्थों में मां वह नहीं है जिसने सिर्फ बच्चे को पेट में रखा हे, मां वह है जिसने उसे चेतना की भी विशेष दिशा दी है। सिर्फ पेट में रखना तो ..वह तो पशु भी कर लेते है। क्योंकि मां के पेट में जो इंतजाम है वह एक बिजली के यंत्र में भी दिया जा सकता है। उतनी गर्मी,उतना पानी, वह सब दिया जा सकता है। आज नहीं कल, बच्चे मां के पेट से हटा कर मशीन के पेट में रखे जा सकते है। लेकिन इससे मां होने का काम पूरा नहीं होता।
2-शायद मां होने का काम पृथ्वी पर बहुत कम माताओं न किया है। मां होने का काम बहुत बड़ा काम है। वह है नौ महीने तक उस बच्चे की चेतना को एक विशेष दिशा देना। अगर मां उन नौ महीनों में क्रोधित है और फिर कल बच्चा जब क्रोधी पैदा हो,तो दिन रात उसको डाँटती है।और कहेगी कि किसने तुझे बिगाड़ दिया है। पता नहीं किस कुसंग में पड़ गया और सारे बीज उन्होंने ही बोए थे। उसकी सारी चेतना की व्यवस्था उन्होंने की है। बच्चे तो सिर्फ उनको प्रगट कर रहे है। हां, प्रगट करने में और बोने में फर्क है। इसलिए हमें पता नहीं चलता, बीच का अंतराल काफी बड़ा है।
3-उदाहरण के लिए एक मिलिट्री का मेजर, जिसकी पत्नी गर्भवती थी; किताब पढ़ रहा था। उसमें लिखा हुआ था कि मां के मन में जो सुझाव हों, वे बच्चे तक संप्रेषित हो जाते है।उसने अपनी पत्नी को कहा कि मैं इस किताब को पढ़ रहा हूं और इस किताब के लिखने वाले का कहना है कि मां जो सोचती है,जो जीती है, जो भाव करती है ; वह बच्चे तक संप्रेषित हो जाता है। दोनों ने हंसकर ही बात ली।किसी ने उसको गंभीरता से ख्याल नहीं किया।
4-उसी सांझ को वे एक पार्टी में गए। और जिस जनरल के सम्मान में पार्टी दी जा रही थी ;वह मेजर की पत्नी उसके बगल में ही बैठी। उस जनरल का अंगूठा युद्ध में बिलकुल पिचल गया था। उसके अंगूठे को बार-बार देखकर उसे ख्याल आया कि मैं इस अंगूठे को न देखू। कहीं मेरे बच्चे का अंगूठा खराब न हो जाए। दोपहर में उसने बात पढ़ी थी। इसलिए उसने अंगूठे से बचने की पार्टी में भरसक कोशिश की। पर वह उतना ही अधिक बार-बार दिखाई पड़े। उसको जरनल भी भूल गया, उसको पार्टी भी भूल गई, बस
वह अंगूठा ही रह गया।जितनी आंखे बंद करे उतना ही अंगूठा साफ दिखाई पड़ने लगें। वह बहुत घबड़ा गई, बेचैन हो गई। उस पार्टी में दो तीन घंटे अंगूठा ही उसका सत्संग रहा।
5-रात में वह दो-चार दफे चौंक कर उठी। और सुबह उसने अपने पति को कहा कि तुमने वह किताब कहां से पढ़ी,मैं बड़ी मुसीबत में पड़ गई हूं। मुझे यह भय सवार हो गया है कि कहीं मेरे बच्चे का अंगूठा वैसा न हो जाए। उसके पति ने कहा, पागल हो गई हो। इन किताबों में क्या रखा हुआ है। ऐसा किसी ने लिख दिया, तो हो जाएगा? छोड़ो इस बात को। पर वह पत्नी नहीं छोड़ पाई।
6-असल में जिस चीज को भी हमें छोड़ने के लिए कहा जाएं ..उसको छोड़ना मुश्किल हो जाता है।असल में भूलने की कोशिश में भी तो बार-बार याद करना पड़ता है।अगर किसी को भूलना है तो कम से कम याद तो करना ही पड़ेगा.. भूलने के लिए। और जितनी बार भूलने के लिए याद करना पड़ेगा, उतना ही मजबूत होता चला जाएगा।
7-जैसे-जैसे बच्चे का जन्म करीब आने लगा। अंगूठा भारी पड़ने लगा। वह उसे भूलने की कोशिश में लग गई, लेकिन भूलना मुश्किल हो गया। जब उसे प्रसव पीडा हो रही थी ;तब बच्चा उसके ख्याल में नहीं था ..अंगूठा ही था। और इतनी अदभुत घटना घटी कि बच्चा ठीक पिचले अंगूठे का ही पैदा हुआ। और जब बच्चे के और जनरल के अंगूठे के फोटो
मिलाए गए, तो वे एक दूसरे की कापी थे।इस मां ने बच्चे को अंगूठा दे दिया। सब माताएं अपने बच्चों को अंगूठा दे रही है। सबके पास अलग-अलग ढंग के अंगूठे हैं, वह उनको मिल ही जाते है।
पिछला जन्म जानने के प्रयोग ;-IN NUTSHELL..
07 FACTS;-
1-जाति स्मरण का प्रयोग :-
03 POINTS;-
1-जब चित्त स्थिर हो जाए अर्थात मन भटकना छोड़कर ,एकाग्र होकर श्वासों में ही स्थिर रहने लगे, तब जाति स्मरण का प्रयोग करना चाहिए। जाति स्मरण के प्रयोग के लिए ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं तब आंखे बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे, फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं। दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाए।
2-ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मोमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा।ध्यान के अभ्यास में जो पहली क्रिया सम्पन्न होती है वह भूलने की, कचरा स्मृतियों को खाली करने की होती है। जब तक मस्तिष्क कचरा ज्ञान, तर्क और स्मृतियों से खाली नहीं होगा, नीचे दबी हुई मूल प्रज्ञा जाग्रत नहीं होगी। इस प्रज्ञा के जाग्रत होने पर ही जाति स्मरण ज्ञान (पूर्व जन्मों का) होता है। तभी पूर्व जन्मों की स्मृतियां उभरती हैं।
3-सावधानी : सुबह और शाम का 15 से 40 मिनट का विपश्यना ध्यान करना जरूरी है। मन और मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का विकार हो तो जाति स्मरण का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
2-पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग : -
योग में अष्टसिद्धि के अलावा अन्य 40 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से ही एक है पूर्वजन्म ज्ञान सिद्धि योग। इस योग की साधना करने से व्यक्ति को अपने अगले पिछले सारे जन्मों का ज्ञान होने लगता है। यह साधना कठिन जरूर है, लेकिन योगाभ्यासी के लिए सरल है।
3-सम्मोहन क्रिया :-
02 POINTS;-
1-सम्मोहन क्रिया से जाना जा सकता है' पुनर्जन्म'। ब्रिटेन में भी जब कुछ लोगों को सम्मोहित किया गया तो उन्हें अपने पूर्व जन्म की घटनाएं स्मरण हो आईं।माना जाता है कि मनुष्य अगर प्रयास करे वर्तमान जीवन से पहले के 9 जन्मों तक के बारे में जान सकता। हालांकि इसके लिए एक प्रशिक्षित गुरु और कठिन अभ्यास की जरूरत पड़ती है। भारतीय ऋषियों ने सम्मोहन को योगनिद्रा कहा है।
2-सम्मोहन की प्रकिया आप खुद भी कर सकते हैं इसे स्वसम्मोहन कहा जाता है। दूसरों के द्वारा भी आप सम्मोहन की स्थिति में पहुंच सकते हैं इसे परसम्मोहन कहा जाता है और तीसरा तरीका है योग है जिसमें त्राटक द्वारा व्यक्ति सम्मोहन की स्थिति में पहुंच जाता है। सम्मोहन के द्वारा आप गहरी निद्रा में पहुंच जाते हैं और अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों को जाग्रत कर सकते हैं।
4-कायोत्सर्ग विधि :-
सम्मोहन के अलावा कायोत्सर्ग विधि द्वारा भी पुर्वजन्म को जाना जा सकता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को अपनी काया यानी शरीर की चेतना से मुक्त होना पड़ता है। कायोत्सर्ग शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति की शरीर की चंचलता दूर होकर शरीर स्थिर होने लगता है। शरीर का मोह और सांसारिक बंधन ढीला पड़ने लगता है और शरीर एवं आत्मा के अलग होने का एहसास होता है। इसके बाद व्यक्ति पूर्वजन्म की घटनाओं के बीच पहुंच जाता है।
5-अनुप्रेक्षा विधि : -
सम्मोहन और कायोत्सर्ग के अलावा अलाव पूर्वजन्म की स्मृतियों में प्रवेश करने का एक तरीका अनुप्रेक्षा है। जैन परंपरा में बताया गया है कि अनुप्रेक्षा ऐसी प्रक्रिया है जिसके प्रयोग से व्यक्ति स्वतः सुझाव और बार-बार भावना से पूर्वजन्म की स्मृति में प्रवेश कर जाता है। अनुप्रेक्षा से भावधारा निर्मल बनती है। पवित्र चित्त का निर्माण होता है। इसके अभ्यास से व्यक्ति ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि उसे ज्ञात भी नहीं रहता कि वह कहां है।अतीत की घटनाओं का अनुचिंतन करते-करते वे स्मृति पटल पर अंकित होने लगती है और साधक उनका साक्षात्कार करता है।
6-पुनर्जन्म और ज्योतिष; -
02 POINTS;-
1- कुंडली, हस्तरेखा या सामुद्रिक विद्या का जानकार व्यक्ति आपके पिछले जन्म की जानकारी के सूत्र बता सकता है। ज्योतिष के अनुसार जातक के लग्न में उच्च या स्वराशि का बुध या चंद्र स्थिति हो तो यह उसके पूर्व जन्म में सद्गुणी व्यापारी (वैश्य) होने का सूचक है। किसी जातक के जन्म लग्न में मंगल उच्च राशि या स्वराशि में स्थित हो तो इसका अर्थ है कि वह पूर्व जन्म में क्षत्रिय योद्धा था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई जातक पैदा होता है तो वह अपनी भक्ति और भोग्य दशाओं के साथ पिछले जन्म के भी कुछ सूत्र लेकर आता है। ऐसा कोई भी जातक नहीं होता है, जो अपनी भुक्त दशा और भोग्य दशा के शून्य में पैदा हुआ हो।
2-ज्योतिष धारणा के अनुसार मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, उसे पिछले जन्म का प्रारब्ध या भोग्य अंश माना जाता है। पिछले जन्म के अच्छे कर्म इस जन्म में सुख दे रहे हैं या पिछले जन्म के पाप इस जन्म में उदय हो रहे हैं, यह खुद का जीवन देखकर जाना जाता सकता है।कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
7-पुनर्जन्म और स्वप्न :-
2 POINTS;-
1-व्यक्ति के मन या मस्तिष्क में उसके पूर्व जन्म की स्मृति सूक्ष्म रूप में विद्यमान रहती है। यह स्मृति कभी स्वप्न में तो कभी जाग्रत में स्वत: ही प्रकट होती रहती है। व्यक्ति इस पर कभी ध्यान नहीं दे पाता है। कभी वह स्वन्न में किसी ऐसे शहर, गांव, गलियों में घूम रहा होता है जिसे उसने इस जन्म में भले ही नहीं देखा हो। कभी किसी को स्वप्न में बार-बार उफनती नदी का दृश्य, तो किसी को हथकड़ी नजर आती है। यह अकारण नहीं है।
2-कभी किसी जन्म में किसी व्यक्ति ने कोई दुष्कर्म किया होगा जिसकी स्मृति में उसके साथ हथकड़ी चलती रहती है। कहीं किसी जन्म की आत्महत्या की स्मृति व्यक्ति के साथ कभी रस्सी के रूप में तो कभी नदी के रूप में चलती रहती है। इसी तरह कोई स्थान उसे हमेशा दिखाई देता रहता है जिसका संबंध उसके पिछले जन्म से होता है। इसी तरह कभी जाग्रत अवस्था में भी व्यक्ति को कोई अनजाना व्यक्ति जाना-पहचाना लगता है। किसी गांव या शहर में वो कभी गया नहीं होगा, लेकिन वहां पहली बार जाने पर लगता होगा कि शायद वह पहले भी यहां आया था।
...SHIVOHAM...