top of page

Recent Posts

Archive

Tags

क्या है गायत्री महामंत्र का तत्त्वज्ञान ?PART-01


गायत्री के चौबीस अक्षरों के 24 बीज;-

03 FACTS;- 1-वेदमंत्र का संक्षिप्त रूप बीजमंत्र कहलाता है ।वेद वृक्ष का सार संक्षेप बीज है ।मनुष्य का बीज वीर्य है ।समूचा काम विस्तार बीज में सन्निहित रहता है ।गायत्री के तीन चरण हैं ।इन तीनों का एक- एक बीज (भूः, भुवः, स्वः) है ।इस व्याहृति भाग का भी बीज है- ॐ ।यह समग्र गायत्री मंत्र की बात हुई ।प्रत्येक अक्षर का भी एक- एक बीज है ।उसमें उस अक्षर की सार शक्ति विद्यमान है ।तांत्रिक प्रयोजनों में बीजमंत्र का अत्यधिक महत्त्व है ।इसलिए गायत्री एवं महामृत्युञ्जय जैसे प्रख्यात मंत्रों की भी एक या कई बीजों समेत उपासना की जाती है ।

2-चौबीस अक्षरों के 24 बीज इस प्रकार हैं... (1) ॐ, (2) ह्रीं, (3) श्रीं, (4) क्लीं, (5) हों, (6) जूं, (7) यं, (8) रं, ( 9) लं, (10 ) वं, ( 11) शं, (12) सं, ( 13) ऐं, ( 14) क्रों, ( 15) हुं, ( 16) ह्लीं, ( 17) पं, ( 18) फं, ( 19) टं, (20 ) ठं, (21 ) डं, ( 22) ढं, ( 23) क्षं और ( 24) लृं, ।। 3-यह बीज मंत्र व्याहृतियों के पश्चात् एवं मंत्र भाग से पूर्व लगाये जाते हैं ।भूर्भुवः स्वः के पश्चात् 'तत्सवितुः' से पहले का स्थान ही बीज लगाने का स्थान है ।प्रचोदयात् के पश्चात् भी इन्हें लगाया जाता है ।ऐसी दशा में उसे सम्पुट कहा जाता है ।बीज या सम्पुट में से किसे कहाँ लगाना चाहिए, इसका निर्णय किसी अनुभवी के परामर्श से करना चाहिए ।बीज- विधान, तंत्र- विधान के अन्तर्गत आता है ।इसलिए इनके प्रयोग में विशेष सतर्कता की आवश्यकता रहती है । गायत्री के 24 बीज मंत्रों से सम्बन्धित 24 यंत्र;- प्रत्येक बीज मंत्र का एक यंत्र भी है ।इन्हें अक्षर यंत्र या बीज यंत्र कहते हैं ।तांत्रिक उपासनाओं में पूजा प्रतीक में चित्र- प्रतीक की भाँति किसी धातु पर खोदे हुए यंत्र की भी प्रतिष्ठापना की जाती है और प्रतिमा पूजन की तरह यंत्र का भी पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन किया जाता है ।दक्षिणमार्गी साधनों में प्रतिमा पूजन का जो स्थान है, वही वाममार्गी उपासना उपचार में यंत्र- स्थापना का है।गायत्री यंत्र विख्यात है ।बीजाक्षरों से युक्त 24 यंत्र उसके अतिरिक्त हैं । इन्हें 24 अक्षरों में सन्निहित 24 शक्तियों की प्रतीक- प्रतिमा कहा जा सकता है ।

;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

गायत्री के 24 रहस्य;-

06 FACTS;-

तत्त्वज्ञानियों ने गायत्री मंत्र में अनेकानेक तथ्यों को ढूँढ़ निकाला है और यह समझने- समझाने का प्रयत्न किया है कि गायत्री मंत्र के 24 अक्षर में किन रहस्यों का समावेश है।उनके शोध निष्कर्षों में से कुछ इस प्रकार हैं- (1) ब्रह्म- विज्ञान के 24 महाग्रंथ हैं ।4 वेद, 4 उपवेद, 4 ब्राह्मण, 6 दर्शन, 6 वेदाङ्ग। यह सब मिलाकर 24 होते हैं ।तत्त्वज्ञों का ऐसा मत है कि गायत्री के 24 अक्षरों की व्याख्या के लिए उनका विस्तृत रहस्य समझाने के लिए इन शास्त्रों का निर्माण हुआ है । (2) हृदय को जीव का और ब्रह्मरंध्र को ईश्वर का स्थान माना गया है ।हृदय से ब्रह्मरंध्र की दूरी 24 अंगुल है ।। इस दूरी को पार करने के लिए 24 कदम उठाने पड़ते हैं ।24 सद्गुण अपनाने पड़ते हैं- इन्हीं को 24 योग कहा गया है । (3) विराट् ब्रह्म का शरीर 24 अवयवों वाला है ।मनुष्य शरीर के भी प्रधान अंग 24 ही हैं । (4) सूक्ष्म शरीर की शक्ति प्रवाहिकी नाड़ियों में 24 प्रधान हैं ।ग्रीवा में 7, पीठ में 12, कमर में 5 इन सबको मेरुदण्ड के सुषुम्ना परिवार का अंग माना गया है । (5) गायत्री को अष्टसिद्धि और नवनिद्धियों की अधिष्ठात्री माना गया है ।इन दोनों के समन्वय से शुभ गतियाँ प्राप्त होती हैं ।यह 24 महान् लाभ गायत्री परिवार के अन्तर्गत आते हैं । (6) सांख्य दर्शन के अनुसार यह सारा सृष्टिक्रम 24 तत्त्वों के सहारे चलता है ।उनका प्रतिनिधित्व गायत्री के 24 अक्षर करते हैं ।(1) पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, (3) पाँच कर्मेन्द्रियां, (3) पाँच तत्त्व, (4 ) पाँच तन्मात्राएँ - शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श ।यह 20 हुए ।इनके अतिरिक्त अन्तःकरण चतुष्टय ( मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ) यह 24 हो गये ।परमात्म पुरुष इन सबसे ऊपर 25वाँ है ।

;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; गायत्री के चौबीस अवतार;-

02 FACTS;- 1-चौबीस अवतारों की गणना कई प्रकार से की गई हैं ।पुराणों में उनके जो नाम गिनाये गये हैं उनमें एकरूपता नहीं है ।दस अवतारों के सम्बन्ध में प्रायः जिस प्रकार की सहमान्यता है, वैसी चौबीस अवतारों के संबंध में नहीं है ।

2-किन्तु गायत्री के अक्षरों के अनुसार उनकी संख्या सभी स्थलों में पर 24 ही है ।उनमें से अधिक प्रतिपादनों के आधार पर जिन्हें 24 अवतार ठहराया गया है वे यह हैं- (1) नारायण (विराट), (2) हंस, (3) यज्ञ पुरुष, (4) मत्स्य, (5) कर्म, (6) वाराह, (7) वामन, (8) नृसिंह, (9) परशुराम, (10) नारद,

(11) धन्वतरि, (12) सनत्कुमार, (13) दत्तात्रेय, (14) कपिल, (15) ऋषभदेव, (16) हयग्रीव, (17) मोहनी, (18) हरि, (19) प्रभु,(20) राम, (21) कृष्ण, (22) व्यास, (23) बुद्ध और (24) निष्कलंक -प्रज्ञावतार ।

गायत्री मंत्र IN NUTSHELL;-

07 FACTS;-

1-गायत्री मंत्र के संबंध में समझना होगा कि संस्‍कृत, अरबी जैसी पुरानी भाषाएं बड़ी काव्‍य-भाषाएं है। उनमें एक शब्‍द के अनेक अर्थ होते है। गणित की भाषा में एक बात का एक ही अर्थ होता है। दो अर्थ हों तो भ्रम पैदा होता है। इसलिए गणित की भाषा तो बिलकुल सीमा बांधकर चलती है । संस्‍कृत, अरबी में तो एक-एक के अनेक अर्थ होते है। अब ‘धी’ इसका अर्थ तो बुद्धि होता है। पहली सीढी। और धी से ही बनता है ध्‍यान—वह दूसरा अर्थ, वह दूसरी सीढी। इतनी तरल है संस्‍कृत भाषा। बुद्धि में भी थोड़ी सह धी है। ध्‍यान में बहुत ज्‍यादा। ध्‍यान शब्‍द भी ‘धी’ से ही बनता है। धी का ही विस्‍तार है। इसलिए गायत्री मंत्र को तुम कैसा समझोगे, यह तुम पर निर्भर है, उसका अर्थ कैसा करोगे। 2-गायत्री मंत्र:... ओम भू भुव: स्‍व: तत्‍सवितुर् देवस्‍य वरेण्‍यं भगो: धी माहि: या: प्र चोदयात्।

वह परमात्‍मा सबका रक्षक है—ओम प्राणों से भी अधिक प्रिय है—भू:। दुखों को दूर करने वाला है—भुव:। और सुख रूप है—स्‍व:। सृष्‍टि का पैदा करनेवाला और चलाने वाला है, स्वप्रेरक—तत्‍सवितुर्। और दिव्‍य गुणयुक्‍त परमात्‍मा के –देवस्‍य। उस प्रकार, तेज, ज्‍योति, झलक, प्रकट्य या अभिव्यक्ति का, जो हमें सर्वाधिक प्रिय है—वरेण्‍यं भवो:। धीमहि:--हम ध्‍यान करें। 3-अब इसका तुम दो अर्थ कर सकते हो: धीमहि:--कि हम उसका विचार करें। यह छोटा अर्थ हुआ, खिड़की वाला आकाश। धीमहि:--हम उसका ध्यान करें: यह बड़ा अर्थ हुआ। खिड़की के बाहर पूरा आकाश।तो पहले से शुरू करो, दूसरे पर जाओ। धीमहि: में दोनों है। धीमहि: तो एक लहर है। पहले शुरू होती है खिड़की के भीतर, क्‍योंकि तुम खिड़की के भीतर खड़े हो। इसलिए अगर तुम पंडितों से पुछोगे तो वह कहेंगे धीमहि: का अर्थ होता है विचार करें, सोचें। 4-अगर तुम ध्‍यानी से पुछोगे तो वह कहेगा धीमहि; अर्थ है: ध्‍यान करें। हम उसके साथ एक रूप हो जाएं। अर्थात वह परमात्‍मा—या:, ध्‍यान लगाने की हमारी क्षमताओं को तीव्रता से प्रेरित करे—न धिया: प्र चोदयार्।अब यह तुम पर निर्भर है। इसका तुम फिर वहीं अर्थ कर सकते हो—न धिया: प्र चोदयात्—वह हमारी बुद्धि यों को प्रेरित करे। या तुम अर्थ कर सकते हो कि वह हमारी ध्‍यान को क्षमताओं को उकसाये।दूसरे पर ध्‍यान रखना। पहला बड़ा संकीर्ण अर्थ है, पूरा अर्थ नहीं। 5- यह अर्थ शब्‍द के अनुसार है;फिर इसका एक भाव के अनुसार,अर्थ होता है । जो मस्‍तिष्‍क से सोचेगा ;जो ज्ञान का पथिक है,उसके लिए यह अर्थ है। जो ह्रदय से सोचेगा;जो प्रेम का पथिक है, उसके लिए दूसरा अर्थ है ।यही अरबी लैटिन और ग्रीक की खूबी है की अर्थ बंधा हुआ नहीं है ;ठोस नहीं, तरल है। सुनने वाले के साथ बदलेगा उसके अनुकूल हो जायेगा। जैसे तुम पानी ढालते हो, गिलास में ढाला तो गिलास के रूप का हो गया। लोटे में ढाला तो लोटे के रूप का गया। फर्श पर फैला दिया तो फर्श जैसा फैल गया। जैसे कोई रूप नहीं है। अरूप है, निराकार है। 6-भाव का अर्थ..भक्‍त ऐसा अर्थ करेगा ... ओम,।-मां की गोद में बालक की तरह मैं उस प्रभु की गोद में बैठा हूं मुझे उसकी असीम वात्सल्य प्राप्‍त हो —

भू: ।-मैं पूर्ण निरापद हूं—

भुव:।- मेरे भीतर रिमझिम-रिमझिम सुख की वर्षा हो रही है। और मैं आनंद में गदगद हूं—

स्‍व: ।- उसके रुचिर प्रकाश से , उसके नूर से मेरा रोम-रोम पुलकित है तथा सृष्‍टि के अनंद सौंदर्य से मैं परम मुग्‍ध हूं—

तत्‍स् वितुर, देवस्‍य।।- उदय होता हुआ सूर्य, रंग बिरंगे फूल, टिमटिमाते तारे, रिमझिम वर्षा, कलकलनादिनी नदिया, ऊंचे पर्वत, हिमाच्‍छादित शिखर, झरझर करते झरने, घने जंगल, उमड़ते-घुमड़ते बादल, अनंत लहराता सागर,--

धीमहि:।- ये सब उसका विस्‍तार है। हम इसके ध्‍यान में डूबे। यह सब परमात्‍मा है। उमड़ते-घुमड़ते बादल, झरने फूल, पत्‍ते, पक्षी, पशु—सब तरफ वहीं झाँक रहा है। इस सब तरफ झाँकते परमात्‍मा के ध्‍यान में हम डूबे; भाव में हम डूबे। अपने जीवन की डोर मैंने उस प्रभु के हाथ में सौंप दी—

या: न धिया: प्रचोदयात्।- अब में सब तुम्‍हारे हाथ में सौंपता हूं। प्रभु तुम जहां मुझे ले चलों में चलुंगा। 7-यह नहीं है कि इनमें कोई भी एक अर्थ सच है और कोई दूसरा अर्थ गलत है। ये सभी अर्थ सच है। तुम्‍हारी सीढ़ी पर, तुम जहां हो वैसा अर्थ कर लेना। लेकिन एक खयाल रखना, उससे ऊपर के अर्थ को भूल मत जाना, क्‍योंकि वहां जाना है ,बढना है , यात्रा करनी है।गायत्री मंत्र जैसे, ये संग्रहीत वचन हैं। इनके एक-एक शब्‍द में बड़े गहरे अर्थ भरे हैं।

...SHIVOHAM...

Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page