आत्मज्ञान का क्या अर्थ हैं ?क्या हैं DMT ?
क्या होगा आत्मज्ञान प्राप्त करने से?-
05 FACTS;- 1-व्यक्ति खुद को छोड़कर तमाम तरह के ज्ञान को जानने का दंभ करता है। जैसे, ईश्वर, धर्म, देश, विदेश, ज्ञान, विज्ञान, तकनीक, साहित्य, समाज, राजनीति आदि। लेकिन यदि आप खुद को छोड़कर सब कुछ पा भी लेते हैं तो मरने के बाद जो पाया है वह खोने ही वाला है। हालांकि कोई भी खुद को नहीं जानना चाहता, सभी यही चाहते हैं कि लोग उन्हें जानें । खैर...आप यह लेख तो मन मारकर पढ़ ही सकते हैं।
2- सभी जानते हैं कि आत्मज्ञान का अर्थ आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना हैं। लेकिन इसका सही भावार्थ है खुद को देख लेना। आप कांच या दर्पण में जिसे देखते हैं वह आपका शरीर होता है आप नहीं। आपने खुद को कभी नहीं देखा। कब से नहीं देखा ऐसा कहना गलत होगा। दरअसल आपने कभी देखा ही नहीं। इस देख लिए जाने को ही आत्मज्ञान कहते हैं। देखने का एकमात्र तरीका ध्यान ही है। ध्यान कई प्रकार का होता है। इसे बोधपूर्ण जीवन, साक्षीभाव में रहने की आदत कह सकते हैं। यह सारे उपक्रम निर्विचार होकर स्थितप्रज्ञ हो जाने के लिए है। 3-योग ही एक मात्र ऐसा रास्ता है जिसने खुद तक पहुंचने के लिए क्रमवार सीढ़ियां बना रखी है। आप सबसे पहले यम का पालन करें, फिर नियम को अपनाएं, फिर थोड़े बहुत आसन इसलिए करें ताकि खुद के साक्षात्कार करने के मार्ग में आपका शरीर अस्वस्थ न हो। अन्यथा रोड़ा अटक जाएगा। फिर प्राणायाम करते रहें जिससे मस्तिष्क में भरपूर ऑक्सिजन मिलेगी तो यहां स्थित जो छठी इंद्री है उसे जागने में सहयोग मिलेगा। दरअस्ल आप यहीं तो बैठे हैं। फिर प्रत्याहार, धारणा ध्यान और समाधिकी ओर कदम बढ़ाते हुए अंत में खुद को प्राप्त कर लें।
4-समाधि है.. बूंद का सागर में मिल जाना ,सागर का बूंद में उतर जाना और बूंद और सागर का मिट जाना। जहां न बूंद है, न सागर है, वहां समाधि है। जहां न एक है, न अनेक है, वहां समाधि है। जहां न सीमा है, न असीम है, वहां समाधि है। समाधि सत्ता के साथ ऐक्य है। समाधि सत्य है। समाधि चैतन्य, हैसमाधि शांति है।'मैं' समाधि में नहीं होता हूं,
वरन जब 'मैं' नहीं होता हूं, तब जो है, वह समाधि है। शायद, यह 'मैं' जो कि मैं नहीं है, वास्तविक 'मैं' है। 'मैं' की दो सत्ताएं हैं : अहं और ब्रह्मं। अहं वह है, जो मैं नहीं हूं, पर जो 'मैं' जैसा भासता है। ब्रह्मं वह है, जो मैं हूं, लेकिन जो 'मैं' जैसा प्रतीत नहीं होता है।
5-चेतना, शुद्ध चैतन्य ब्रह्मं है। मैं शुद्ध शाक्षि चैतन्य हूं; पर विचार-प्रवाह से तादात्म्य के कारण वह दिखाई नहीं पड़ता है। विचार स्वयं चेतना नहीं है। विचार को जो जानता है, वह चैतन्य है।
विचार विषय है, चेतना विषयी है। विषय से विषयी का तादात्म्य मूर्छा है। विचार विषय के अभाव में जो शेष है, वही चेतना है। इस शेष में ही होना समाधि है। विचार-शून्यता में जागरण सतता के द्वार खोल देता है। सत्ता अर्थात वही 'जो है'। उसमें जागो- यही समस्त जाग्रत पुरुषों की वाणी का सागर है। "
6-आत्म-साक्षात्कार का अर्थ होता है .. इतनी परम शांति जो किसी चीज से बिगाड़ी न जा सके और अहंकार का संपूर्ण तिरोहित हो जाना।अहंकार के साथ , हर चीज तिरोहित हो जाती है। उसमे ऐसा परम अन-आस्तित्व ,मालकियत , महत्वाकांक्षा , ईर्ष्या नही बनी रह सकती है ।अ-मन के साथ न तुम अधिकार जमा सकते हो न ही तुम शासन जमाने की कोशिश कर सकते हो।
7-ध्यान में जल्दी ही गहराई में उतरना चाहते है तो आत्मज्ञान ध्यान की विधि को एक बार जरूर आजमाए।आत्मज्ञान ध्यान की ये विधि कम समय में अच्छे परिणाम देने वाली होती है। क्यों की आत्मज्ञान ध्यान की ये विधि हमारे अंतर की यात्रा को सरल बनाती है और चेतन्यता को बढ़ाती है। आत्मज्ञान के लिए जैसे ऋषि मुनि प्राचीन समय में ध्यान लगाते थे वैसे ही ये विधि है। इस विधि से आपकी आत्मिक चेतना का विकास होता है और कम समय में चेतना का विकास करने वाली एकमात्र विधि जिसे आपको जरूर करना चाहिए।
पुरातन आत्मज्ञान ध्यान की विधि;-
02 FACTS;- 1-क्या आपने कभी अँधेरे कमरे में ध्यान करने के बारे में सुना है। ध्यान की हजारो सालो पुरानी है जब संत मुनि अँधेरी गुफाओं में ध्यान और तपस्या करते थे। माना जाता है की अँधेरे कमरे में गहरे आध्यात्मिक अनुभव की सफलता के chance ज्यादा होते है। आत्म-ज्ञान के लिए अँधेरे कमरे को ज्यादा बेहतर माना गया है। क्यों की आँखों के देखने की क्षमता तक हमारे मन में विचार चलते रहेंगे लेकिन अगर देखने के लिए कुछ ना हो तो जल्दी ही मन एकाग्रता को प्राप्त कर लेता है। पुराने समय में भी आत्मज्ञान के लिए गहरे अँधेरे वाली जगह का चुनाव किया जाता था। इसके विश्वभर से कई उदाहरण मिलते है जैसे की चेतना को आत्मज्ञान द्वारा ब्रह्माण्ड से जोड़ना 2-ये सभी जगह आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए सबसे बढ़िया जगह के रूप में बनाई और इस्तेमाल की गई है। अँधेरे कमरे में ( जगह ) ध्यान करने से हमारे मस्तिष्क के अंदर Di-methamphetamine का उत्सर्जन होता है जो हमारी चेतना को जाग्रत कर उसे ब्रह्मांड से जोड़ता है। और जल्दी ही कम समय में आत्मज्ञान की अवस्था में ले जाता है। अगर देखा जाये तो प्रकाश और अँधेरा हमारे मस्तिष्क में अलग अलग धुन की तरह काम करते है जैसे ही अँधेरा होता है चेतना सुप्त होने लगती है।अँधेरा मस्तिष्क में melatonin कण का उत्सर्जन करता है जिससे हमें नींद आती है। इसकी वजह से नींद में सपने देखे जाते है। ध्यान से जुडी ये विधि सिर्फ 15 दिन की है जिसमे हम निम्न अनुभव करते है।
आत्मज्ञान ध्यान की विधि : ध्यान की इस विधि में आपको एक अँधेरे कमरे का चुनाव करना है। जिसमे आप ध्यान कर सके. ध्यान की विधि सामान्य है जैसा की सुखासन में ध्यान लगाते है। बस ध्यान इस बात का रखे की आपका सारा ध्यान तीसरे नेत्र पर हो। इसके अलावा जिस कमरे में ध्यान लगा रहे है उसमे कोई और न जाये और न ही उसमे कोई सामान हो।वैसे तो 2 से 3 दिन में होने लगते है लेकिन 15 दिन के अभ्यास में अलग अलग अनुभव होते रहते है। दिन के अनुसार ये अनुभव इस तरह हो सकते है।
यानि Darkroom meditation technique ;-
दिन 1-3 अँधेरे कमरे में 3 दिन के अभ्यास के बाद आप देखते है की सपने में जो चेतना आप महसूस करते है वही चेतना आप इसमें अनुभव करते है। कहने का मतलब है की जब शुरू में आप अँधेरे कमरे में ध्यान करते है तो अँधेरे की परत आँखों के सामने रहती है जो कुछ दिन बाद रौशनी में बदल जाती है। इसके कारण आप अँधेरे कमरे में चेतना का अनुभव करते है जैसा आप सपने में करते है। दिन 3-5 शुरू के 3 दिन सिर्फ आपके melatonin level को बढ़ाया जाता है जिससे की आपका पीनियल gland सुपर कंडक्टर pino-lene को जाग्रत करने लगता है। वैसे ये pinolene lucid dream की स्टेज में अपने आप जाग्रत होने लगता है।ये अवस्था कहलाती है बाह्य रूप से जाग्रत होना जिसमे हम अपने मस्तिष्क की कल्पना को साकार रूप दे सकते है।
Clair sentience यानि किसी अनुभव को साक्षात् महसूस करना और सुनने की क्षमता जैसी शक्ति भी इसी अवस्था में जाग्रत होने लगती है। इस अवस्था में कॉस्मिक universal पार्टिकल चेतना, आवाज और प्रकाश इसके अलावा ज्ञान और अनुभव के रूप में बदलने लगता है। इस अवस्था में आप एक कंडक्टर बन जाते है जो ब्रह्मांड से ऊर्जा को प्राप्त करने लगता है।
दिन 6-8 इस अवस्था में आपका पीनियल ग्लैंड न्यूरो हार्मोन 5-MeO-DMT(5-methoxy-dimethyltryptamine). 5-MeO-DMT switches on 40% तक उत्सर्जित करना शुरू कर देता है। जिससे आपकी चेतना और अवचेतन मन की शक्तियां बढ़ जाती है, आपका शरीर पहले से ज्यादा जाग्रत और सूक्ष्म ( समझ ) होने लगता है। इस अवस्था में आपका पीनियल ग्लैंड अँधेरे रूम से एक चमकीला प्रकाश छोड़ने लगता है। इस प्रकाश की अवस्था नए और जाग्रत मानसिकता लिए हुए होती है।
दिन 9-12 जब DMT का लेवल 25 MG से ज्यादा हो जाता है। तब आप दृश्य को ज्यादा स्पस्ट देख सकने लगते है। ये आपके शरीर के ऊर्जा रूप यानि सूक्ष्म शरीर को यात्रा करने में मदद करता है। इसी की वजह से आप तीसरे नेत्र की शक्ति को जाग्रत कर सकते है। जो हमें तीनो लोक में झाँकने की क्षमता प्रदान करती है।
12 वे दिन के आसपास आप इंफ्रा-रेड और अल्ट्रा-वायलेट किरणों को महसूस कर सकते है। इसके अलावा किसी भी इंसान को उसकी किरणों के पैटर्न यानि औरा से पहचान और छू सकते है। NOTE;-
इन दिनों की अलग अलग अवस्थाएं हमारे DNA में बदलाव लाने लगती है और सबसे ज्यादा असर हमारे पीनियल ग्लैंड पर होता है।
....SHIVOHAM..