ध्यान ...IN NUTSHELL
”ध्यान का अर्थ '';- 8 FACTS;-
1-योगसूत्र के अनुसार जहां चित्त को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है, लेकिन ध्यान का अर्थ है जहां भी चित्त ठहरा हुआ है उसमें वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। उसमें जाग्रत रहना ध्यान है।ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च की स्पॉट लाइट की तरह होती है जो किसी एक जगह को ही फोकस करती है, लेकिन ध्यान उस बल्ब की तरह है जो चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाता है। आमतौर पर आम लोगों का ध्यान बहुत कम वॉट का हो सकता है, लेकिन योगियों का ध्यान सूरज के प्रकाश की तरह होता है जिसकी जद में ब्रह्मांड की हर चीज पकड़ में आ जाती है।खुद तक पहुंचने का एक मात्र मार्ग ध्यान ही है। ध्यान को छोड़कर बाकी सारे उपाय प्रपंच मात्र है। यदि आप ध्यान नहीं करते हैं तो आप स्वयं को पाने से चूक रहे हैं।योग का लक्ष्य यह है कि किस तरह वह तुम्हारी तंद्रा को तोड़ दे इसीलिए यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार और धारणा को ध्यान तक पहुँचने की सीढ़ी बनाया है। 2-ध्यान का पहला अर्थ है कि हम अपने शरीर और स्वयं के प्रति जागना शुरु करें। यह जागरण अगर बढ़ सके तो आपका मृत्यु-भय क्षीण हो जाता है।ध्यान के अतिरिक्त मृत्यु का भय कभी भी नहीं काटता। और जो चिकित्सा-शास्त् मनुष्य को मृत्यु के भय से मुक्त नहीं कर सकता, वह बीमारी को कभी भी स्वस्थ नहीं कर सकता….. ”तो ध्यान का पहला अर्थ हैः अवेयरनेस ऑफ वनसेल्फ। उसे भीतर की चेतना का अहसास शुरु हो जाए, भीतर की चेतना की फीलिंग शुरु हो जाए।हमें आमतौर से भीतर की कोई फीलिंग नहीं होती। हमारी सब फीलिंग शरीर की होती है – हाथ की होती है, पैर की होती है, सिर की होती है, ह्दय की होती है। उसकी नहीं होती जो हम है।
3-हमारा सारा बोध, हमारा सारी अवेयरनेस घर की होती है, घर में रहने वाले मालिक की नहीं होती। यह बड़ी खतरनाक स्थिति है। क्योंकि कल अगर मकान गिरने लगेगा, तो मैं समझूंगा – 'मैं 'गिर रहा हूं। वही मेरी बीमारी बनेगी।अगर मैं यह भी जान लूं कि मैं मकान से अलग हूं, मकान के भीतर हूं, मकान गिर भी जाएगा, फिर भी मैं हो सकता हूं; तो बहुत फर्कपड़ेगा, बहुत बुनियादी फर्क पड़ जाएगा। तब मृत्यु का भय क्षीण हो जाएगा।हम कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदल सकते है।सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि तुम बहुत प्रसन्न हो। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें-- आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण-- जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। अपने बिस्तर से बहुत आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा-- कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं। 4-जब रात को तुम सोते हो तो कल्पना करो कि तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो…जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो , तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो। बस एक बात पर निरंतर ध्यान रखना है कि नींद के आने तक तुम्हें कल्पना करते जाना है ताकि कल्पना नींद में प्रवेश कर जाए, वे दोनों एक दूसरे में घुलमिल जाएं।किसी नकारात्मक बात की कल्पना मत करें, क्योंकि जिन व्यक्तियों में निषेधात्मक कल्पना करने की क्षमता होती है, अगर वे ऐसी कल्पना करते हैं तो वह वास्तविकता में बदल जाती है। अगर तुम कल्पना करते हो कि तुम बीमार पड़ोगे तो तुम बीमार पड़ जाते हो। अगर तुम सोचते हो कि कोई तुमसे कठोरता से बात करेगा तो वह करेगा ही। तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी।तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। उसे नकार दें, छोड़ दें उसे,फेंक दें उसे।एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो।
5-ध्यान और विचार ..जब आंखें बंद करके बैठते हैं तो अक्सर यह शिकायत रहती है कि जमाने भर के विचार उसी वक्त आते हैं। अतीत की बातें या भविष्य की योजनाएं, कल्पनाएं आदि सभी विचार मक्खियों की तरह मस्तिष्क के आसपास भिनभिनाते रहते हैं। इससे कैसे निजात पाएं?और जब तक विचार है तब तक ध्यान घटित नहीं हो सकता।ध्यान विचारों की मृत्यु है और निर्विचार भी हुआ जा सकता है।आप तो बस ध्यान करना शुरू कर दें। जहां पहले 24 घंटे में चिंता और चिंतन के 30-40 हजार विचार होते थे वहीं अब उनकी संख्या घटने लगेगी। जब पूरी घट जाए तो बहुत बड़ी घटना घट सकती है।
ध्यान का मार्ग...अकेलापन ,स्वतंत्रता ,प्रेम और आनंद का मार्ग है।ध्यान में पहले अकेलापन आता है, फिर स्वतंत्रता , प्रेम और फिर आनंद आता है।अकेलापन ध्यान का स्वभाव है, यानी अकेले रह गए ,असंबंधित।,असंग;कोई दूसरे की धारणा न रखी। पर को भूल गए, परमात्मा को भी भूल गए, क्योंकि वह भी दूसरा हैं।अकेले , बिलकुल एकात में रह गए।जैन, बौद्ध इस तरह चलते हैं ...बिलकुल अकेले। इसलिए उनके मोक्ष का नाम कैवल्य है। केवल चेतना मात्र बची।कोई भी चुप होता हो, मौन रखता हो, तो दूसरे लोग उसे बाधा न दें, सहयोगी बनें।
6-जितने लोग मौन रहें, उतना अच्छा। कोई तीन दिन पूरा मौन रखे, सबसे बेहतर। उससे बेहतर कुछ भी नहीं होगा। अगर इतना न कर सकते हों तो कम से कम बोलें ..इतना कम, जितना जरूरी हो खयाल रखें कि एक -एक शब्द बहुत महंगा है; क्योंकि ऊर्जारूपी कीमत चुकानी पड़ रही है। जो बिलकुल मौन न रह सकें वे कम से कम शब्द का उपयोग करें और इंद्रियों का भी कम से कम उपयोग करें।जैसे आंख का कम उपयोग करें, नीचे देखें...चार फीट पर नजर रखें -चलते, घूमते, फिरते। आधी आंख खुली रहे, नाक का अगला हिस्सा दिखाई पड़े, इतना देखें। और दूसरों को भी सहयोग दें कि लोग कम देखें,कम सुनें।। सागर को देखें, आकाश को देखें, लोगों को कम देखें। क्योंकि हमारे मन में सारे संबंध /एसोसिएशस लोगों के चेहरों से होते हैं—वृक्षों, बादलों, समुद्रों से नहीं। वहां देखें, वहां से कोई विचार नहीं उठता। लोगों के चेहरे तत्काल विचार उठाना शुरू कर देते हैं। जितना ज्यादा से ज्यादा इंद्रियों को विश्राम दें, उतना शुभ है, उतनी शक्ति इकट्ठी होगी; और उतनी शक्ति ध्यान में लगाई जा सकेगी। अन्यथा हम एग्झास्ट हो जाते हैं।
7-हम करीब—करीब एग्झास्ट हुए लोग हैं, जो बिलकुल, चली हुई कारतूस जैसे हो गए हैं। कुछ बचता नहीं, चौबीस घंटे में सब खर्च कर डालते हैं। रात भर में सोकर थोड़ा—बहुत बचता है, तो सुबह उठकर ही अखबार पढना और मोबाइल ; बस शुरू हो गया उसे खर्च करना। कंजरवेशन ऑफ एनर्जी का हमें कोई खयाल ही नहीं है कि कितनी शक्ति बचाई जा सकती है। और ध्यान में बड़ी शक्ति लगानी पड़ेगी। अगर आप बचाएंगे नहीं तो आप थक
जाएंगे; तो जो अकेला हो गया, उसमें से दूसरी बात निकलेगी ..'स्वतंत्रता'।जब तुम अकेले रह गए तो तुम स्वतंत्र हो गए। अब तुम्हें कोई परतंत्रता न रही, क्योंकि कोई पर ही न रहा। दूसरे पर निर्भरता न रही। तुम मुक्त हो गए, स्वतंत्र हो गए। अब तुम किसी के पीछे नहीं चलते, अब तुम अपने भीतर से, अपने केंद्र से अपने जीवन का रस बहाने लगे। तो स्वतंत्र हुए।
8-तीसरी बात... जो स्वतंत्र हो गया और अकेला हो गया, वही प्रेम देने में सफल हो पाता है। क्योंकि उसी के पास प्रेम देने को होता है।जो प्रेम मांग रहा है ,वो देगा कैसे ?तुम्हारे पास नहीं है, इसीलिए तो मांगते हो।तुम तो चाहते हो, कोई तुम्हें दे दे, तुम्हारे पास ही होता तो तुम मांगते क्यों ?हम वही तो मांगते हैं जो हमारे पास नहीं है।और जो स्वतंत्र हो गया, एकात में डूब गया, अपनी मस्ती में खो गया, उसके पास प्रेम होगा। वह प्रेम बांटेगा। लेकिन उसका प्रेम तुम्हारे जैसा प्रेम नहीं होगा वह देगा ,बांटेगा, उलीचेगा, जैसे एकात में खिला हुआ फूल अपनी सुगंध को हवाओं में बिखेर देता है—किसी को मिल जाए, ठीक, न मिले तो ठीक। किसी के प्रयोजन से नहीं बिखेरता।वह किसी को भी बेशर्त देगा, वह यह भी नहीं कहेगा, किसको दूं, किसको न दूं; उसकी कोई सीमा न होगी। सुगंध में किसी का पता नहीं लिखा होता कि मेरा प्रिय वहां रहता है, वहां जाना।वह बिखेर देता है, जिसको मिल जाए। जो व्यक्ति स्वतंत्र हो गया, उसका प्रेम खिल जाता है, उसका फूल खिल जाता है। और जिसका प्रेमरूपीफूल खिल जाता है उसकी चौथी बात ..आनंद आ जाता है। बिना भीतर के प्रेमरूपी फूल के खिले, कोई आनंदित नहीं होता है।ध्यान योग का महत्वपूर्ण तत्व है जो तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है। ध्यान के द्वारा हमारी उर्जा केन्द्रित होती है। उर्जा केन्द्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल बढ़ता है। आप मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे में वह नहीं पा सकते जो ध्यान आपको दे सकता है। ध्यान ही धर्म का सत्य है बाकी सभी तर्क और दर्शन की बाते हैं । ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
कैसे करें ध्यान की तैयारी?-
04 FACTS;-
1-बेहतर स्थान :-
03 POINTS;-
1-ध्यान की तैयारी से पूर्व आपको ध्यान करने के स्थान का चयन करना चाहिए। ऐसा स्थान जहां शांति हो और बाहर का शोरगुल सुनाई न देता हो। साथ ही वह खुला हुआ और हरा-भरा हो। आप ऐसा माहौल अपने एक रूम में भी बना सकते हो।आपके घर में एक छोटा सा मंदिर या एक छोटा सा कोना या एक छोटा सा ध्यान कक्ष हो तो बहुत हीं उपयोगी होगा| फिर उस स्थान का किसी अन्य ‘परपस’ के किए उपयोग नहीं होना चाहिए| क्योंकि हर काम कि अपनी एक फ्रीक्वेंसी होती हैं| उस स्थान का उपयोग सिर्फ ध्यान के लिए हो तो बहुत अच्छा होगा|
2-रोज- रोज उसी कक्ष में ध्यान करने से वह कक्ष एक फिक्स्ड एनर्जी से चार्ज हो जाएगा| जो अगले दिन आपको ध्यान करते वक्त आप पर बरसेगा और आपके ध्यान में सहयोगी होगा| इससे बड़ी सरलता से आप ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं| पुराने जमाने में यहीं मंदिर का उपयोग था| यहीं कारण है कि हर हिंदू के घर में एक मंदिर होता है| लेकिन आज तो मात्र एक औपचरिकता ..पूजा पाठ के लिए मंदिर होता है, वह ध्यान कक्ष के साइज या शेप में नहीं होता है|
3-जरूरी यह है कि आप शोरगुल और दम घोंटू वातावरण से बचे और शांति तथा सकून देने वाले वातारवण में रहे जहां मन भटकता न हो। यदि यह सब नहीं हैं तो ध्यान किसी ऐसे बंद कमरे में भी कर सकते हैं जहां उमस और मच्छर नहीं हो बल्कि ठंडक हो और वातावरण साफ हो। आप मच्छरदारी आदि का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
2- सुगंधित वातावण :-
02 POINTS;-
1-सुगंधित वातावरण को ध्यान की तैयारी में शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए सुगंध या इत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं या थोड़े से गुड़ में घी तथा कपूर मिलाकर कंडे पर जला दें कुछ देर में ही वातावरण ध्यान लायक बन जाएगा।उस कक्ष में पूरी तरह से अँधेरा होना चाहिए| उस कक्ष में अपनी पसंद के अनुसार आप धूपबत्ती या अगरबत्ती या परफ्यूम का उपयोग करेंगे तो अच्छा रहेगा लेकिन स्ट्रोंग नहीं होना चाहिए...वेरी सफ्ट और रोज- रोज एक हीं तरह का होना चाहिए।आमतौर पर लोगों के मन में यह धारणा है कि अंधेरा खतरनाक है। इसमें नेगेटिव एनर्जी का प्रभाव होता है परंतु अंधेरा अर्थात शिव और प्रकाश अर्थात शक्ति! विज्ञान भैरव तंत्र में कई विधियां अंधेरे की हैं।आप अंधकार में एक दिया जलाकर उसमें त्राटक करें जिससे अर्धनारीश्वर सिद्द हों जाएगा ।
2-एक कलर, एक लम्बाई, एक प्रकार के वस्त्र हों तो अच्छा रहेगा| एक हीं चटाई या दरी या कालीन का उपयोग करें तो ज्यादा लाभ मिलेगा| आप ऐसा नहीं समझें कि इससे ध्यान आपका हो जाएगा लेकिन ये चीजें आपके ध्यान में सहयोगी होती हैं| इससे आपको ध्यान में मदद मिलती हैं।ये सारी व्यवस्था इस लिए जरूरी हैं जिससे ध्यान करते वक्त आपको सुखद स्थिति निर्मित हो सके|और जब हम सुखद स्थिति में प्रतीक्षा करते हैं तो कुछ घटता है जो हम प्रयास से नहीं ला सकते।
3-ध्यान की बैठक :-
02 POINTS;-
1-ध्यान के लिए नर्म और मुलायम आसान होना चाहिए जिस पर बैठकर आराम और सूकुन का अनुभव हो। बहुत देर तक बैठे रहने के बाद भी थकान या अकड़न महसूस न हो। इसके लिए भूमि पर नर्म आसन बिछाकर दीवार के सहारे पीठ टिकाकर भी बैठ सकते हैं अथवा पीछे से सहारा देने वाली आराम कुर्सी पर बैठकर भी ध्यान कर सकते हैं।
2-आसन में बैठने का तरीका ध्यान में काफी महत्व रखता रखता है। ध्यान की क्रिया में हमेशा सीधा तनकर बैठना चाहिए। दोनों पैर एक दूसरे पर क्रास की तरह होना चाहिए या आप सिद्धासन में भी बैठ सकते हैं।
4-समय :-
ध्यान के लिए एक निश्चित समय बना लेना चाहिए इससे कुछ दिनों के अभ्यास से यह दैनिक क्रिया में शामिल हो जाता है फलत ध्यान लगाना आसान हो जाता है।एक नियत समय आपको चुनना होगा जो आपके लिए सुविधाजनक हो| रोज-रोज आप ठीक उसी समय पर ध्यान करेंगे तो अधिक से अधिक आपको ध्यान का लाभ मिलेगा| क्योंकि हमारा शरीर और मन एक यंत्र है| जैसे अगर आप रोज एक नियत समय पर भोजन करते हैं तो आपका शरीर उस समय भोजन कि मांग करने लगता है| अगर आप रोज एक नियत समय पर सोने जाते हैं तो आपका शरीर उस समय सोने का इंतजार करता रहता है।
NOTE;-
ध्यान में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस क्रिया में किसी प्रकार का तनाव नहीं हो और आपकी आंखें बंद, स्थिर और शांत हों तथा ध्यान भृकुटी पर रखें। खास बात है कि आप ध्यान में सोएं नहीं बल्कि साक्षी भाव में रहें।ध्यान में इंद्रियां मन के साथ, मन बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरूप आत्मा में लीन होने लगती है। जिन्हें साक्षी या दृष्टा भाव समझ में नहीं आता उन्हें शुरू में ध्यान का अभ्यास आंख बंद करने करना चाहिए। फिर अभ्यास बढ़ जाने पर आंखें बंद हों या खुली, साधक अपने स्वरूप के साथ ही जुड़ा रहता है और अंतत: वह साक्षी भाव में स्थिति होकर किसी काम को करते हुए भी ध्यान की अवस्था में रह सकता है ।जैसे नींद आपको फिर से जिंदा करती है। उसी तरह ध्यान आपको इस विराट ब्रह्मांड के प्रति सजग करता है। वह आपके आसपास की उर्जा को बढ़ाता है । ध्यान की विधि कैसे चुनें ?-
03 FACTS;-
1-बहुत से लोग क्रियाओं को ध्यान समझने की भूल करते हैं- क्रिया और ध्यान में फर्क है। क्रिया तो साधन है साध्य नहीं।आंख बंद करके बैठ जाना, किसी मूर्ति का स्मरण करना , माला जपना भी ध्यान नहीं है। अक्सर यह कहा जाता है कि पांच मिनट के लिए ईश्वर का ध्यान करो- यह भी ध्यान नहीं, स्मरण है।ध्यान है क्रियाओं से मुक्ति ...विचारों से मुक्ति।
“जो तुझे भाये वो भला”..जो ध्यान आपको रुचिकर लगे उससे आप शुरुआत करें| लालच में न पड़े..क्योंकि विज्ञानं भैरव तंत्र में ध्यान की एक सौ बारह विधियों का जिक्र है|
2-रुचिकर लगने का मतलब है कि उससे आपका तालमेल बैठ रहा है| उस विधि के साथ आप एक ‘हार्मनी’ में हैं| तो सबसे पहले एक विधि चुन लें और उसे कम से कम तीन महीने तक करें जब तक कि उससे आनंद आता है| जब वह मेकैनिकल हो जाए तो उसे तुरन्त छोड़ कर दूसरी विधि का चुनाव करे| जिसमे आपको आनंद आता हो| किसी भी विधि से चिपकना नहीं है| विधि एक नाव कि तरह होती है| एक हीं विधि को दिन में कई बार आप कर सकते है|किसी भी विधि को तभी छोड़ें जब उससे आन्नद आना बंद हो जाए|
3-इसका मतलब है कि अब उस विधि का काम पूरा हो गया| कोई भी अकेली विधि हमें अंत तक नहीं ले जा सकती| हो सकता है आपको कई बार विधियाँ बदलनी पड़ें| लेकिन इस बात को याद रखें कि हर विधि आपको एक और अगले स्टेशन तक ले आई है|मौन जब घटितहोता है तो व्यक्ति में साक्षी भाव का उदय होता है। सोचना शरीर की व्यर्थ क्रिया है और बोध करना मन का स्वभाव है।ध्यान विधि को नियमित 30 दिनों तक करते रहें। 30 दिनों बाद इसकी समय अवधि 5 मिनट से बढ़ाकर अगले 30 दिनों के लिए 10 मिनट और फिर अगले 30 दिनों के लिए 20 मिनट कर दें। शक्ति को संवरक्षित करने के लिए 90 दिन काफी है। इसे जारी रखें।पांच से दस मिनट का ध्यान आपके मस्तिष्क में शुरुआत में तो बीज रूप से रहता है, लेकिन 3 से 4 महिने बाद यह वृक्ष का आकार लेने लगता है और फिर उसके परिणाम आने शुरू हो जाते हैं।
ध्यान के पहले सुरक्षा कवच धारण विधि ;-
04 POINTS;- 1-ध्यान की हालत में आपके हृदय का द्वार खुला हो जाता है। उस वक्त कोई भी प्रवेश कर सकता है। और हमारे चारों तरफ बहुत तरह की आत्माएं निरंतर उपस्थित हैं। यहां आप ही उपस्थित नहीं हैं, और भी कोई उपस्थित हैं। इसलिए सुरक्षा कवच धारण करना हर हालत में जरूरी है।इससे आपका शरीर एक तरह का रेसिस्टेंस, एक तरह की प्रतिरोध की दीवाल खड़ी कर लेता है, उसमें से कोई भी हानिकर चीज आपके भीतर प्रवेश नहीं पा सकती और आपके भीतर से कोई भी शक्ति बाहर नहीं जा सकती, वह दीवाल का काम करने लगती है।
2-जैसे कि हम अपने घर के चारों तरफ बिजली का तार दौड़ा दें, और उसमें करंट दौड़ रही हो, तो चोर भीतर न घुस सके, क्योंकि तार को छुए कि मुश्किल में पड़ जाए। भीतर का आदमी भी बाहर न जा सके, क्योंकि तार को छुए तो मुश्किल में पड़ जाए। ठीक उसी तरह आपके चारों तरफ विद्युत का वर्तुल बनना जरूरी है।अन्यथा ध्यान में एक तरह की वल्नरेबल, एक तरह की ओपनिंग, एक तरह का द्वार खुलता है, उसमें से कुछ भी प्रवेश हो सकता है। और न केवल बीमारी प्रवेश हो सकती है, बल्कि अनेक साधकों को जो बड़ी से बड़ी कठिनाई हुई है वह यह कि कुछ दुष्ट आत्माएं उनमें प्रवेश कर सकती हैं।पहले चरण का यही महत्वपूर्ण काम है कि वह आपके चारों तरफ विद्युत का वर्तुल बना दे। न तो भीतर से बाहर कुछ जा सके, न बाहर से भीतर कुछ आ सके। 3-ध्यान के लिए बैठने में दो-तीन बातें ख्याल में लें।शरीर को सीधा रख कर बैठें..आराम से जितना सीधा हो सके;अकड़ाने की जरूरत नहीं है। रीढ़ सीधी हो, जमीन से नब्बे का कोण बनाती हो।पद्मासन /या सिद्धासन में बैठे । आंखें अधखुली, यानि आधी खुली आधी बंद।
ॐ/इष्टमंत्र/ गुरुमंत्र ..का जप करते हुए यह भावना करे की मेरे इष्ट की कृपा का शक्तिशाली प्रवाह मेरे अंदर प्रवेश कर रहा है और मेरे चारो ओर सुदर्शन चक्र जैसा एक इन्द्रधनुषी घेरा बनाकर घूम रहा है।
4-''इन्द्रधनुषी प्रकाश घना होता जा रहा है।वह अपने दिव्य तेज़ से मेरी रक्षा कर रहा है।दुर्भावनारूपी अंधकार विलीन हो गया है और सात्विक प्रकाश ही प्रकाश छाया है। सूक्ष्म आसुरी शक्तियों से मेरी रक्षा करने के लिए वह चक्र सक्रिय है और मै पूर्णतः निश्चित हूँ ,आश्वस्त हूँ।'' जितनी देर श्वास भीतर रोक सके.. उक्त भावना को दोहराये और मानसिक चित्र
बना ले...''आकाश के अंदर पृथ्वी है।पृथ्वी के अंदर अनेक देश, अनेक समुद्र, अनेक लोग है।उनमे से एक आपका शरीर आसन पर बैठा हुआ है।आप एक शरीर नहीं हो बल्कि अनेक शरीर ,देश,सागर ,पृथ्वी ,सूर्य ,चंद्र , ग्रह एवं पूरे ब्रह्मांड के दृष्टा हो,साक्षी हो।''अब धीरे - धीरे
ॐ का दीर्घ उच्चारण करते हुए श्वास बाहर निकाले।मन ही मन भावना करे कि मेरे सारे दोष विकार बाहर निकल गए है।मन, बुद्धि शुद्ध हो गया है।
ध्यान की शुरुआती विधि :-
प्रारंभ में सिद्धासन में बैठकर आंखें बंद कर लें और दाएं हाथ को दाएं घुटने पर तथा बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखकर, रीढ़ सीधी रखते हुए गहरी श्वास लें और छोड़ें। सिर्फ पांच मिनट श्वासों के इस आवागमन पर ध्यान दें कि कैसे यह श्वास भीतर कहां तक जाती है और फिर कैसे यह श्वास बाहर कहां तक आती है।पूर्णत: भीतर रहकर मौन का मजा लें।
STEP 1 :-
ध्यान शुरू करने से पहले आपका रेचन हो जाना जरूरी है अर्थात आपकी चेतना (होश) पर छाई धूल हट जानी जरूरी है। इसके लिए चाहें तो कैथार्सिस या योग का भस्त्रिका, कपालभाति प्राणायाम कर लें। आप इसके अलावा अपने शरीर को थकाने के लिए और कुछ भी कर सकते हैं।
STEP 2 :-
शुरुआत में शरीर की सभी हलचलों पर ध्यान दें और उसका निरीक्षण करें।बाहर की आवाज सुनें। आपके आस-पास जो भी घटित हो रहा है उस पर गौर करें। उसे ध्यान से सुनें।
STEP 3 :-
फिर धीरे-धीरे मन को भीतर की ओर मोड़े। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर चुपचाप गौर करें। इस गौर करने या ध्यान देने के जरा से प्रयास से ही चित्त स्थिर होकर शांत होने लगेगा। भीतर से मौन होना ध्यान की शुरुआत के लिए जरूरी है।
STEP 4 :-
अब आप सिर्फ देखने और महसूस करने के लिए तैयार हैं। जैसे-जैसे देखना और सुनना गहराएगा आप ध्यान में उतरते जाएंगे।
ध्यान के प्रकार;-
07 FACTS;-
1-ध्यान को प्रत्येक व्यक्ति की मनोदशा के अनुसार ढाला गया है।मूलत: ध्यान को चार
भागों में बांटा जा सकता है–
1.देखना, 2.सुनना, 3.श्वास लेना और 4.आंखें बंदकर मौन होकर सोच पर ध्यान देना। देखने को दृष्टा या साक्षी ध्यान, सुनने को श्रवण ध्यान, श्वास लेने को प्राणायाम ध्यान और आंखें बंदकर सोच पर ध्यान देने को भृकुटी ध्यान कह सकते हैं। उक्त चार तरह के ध्यान के हजारों उप प्रकार हो सकते हैं।
2-उक्त चारों तरह का ध्यान आप लेटकर, बैठकर, खड़े रहकर और चलते-चलते भी कर सकते हैं। उक्त तरीकों को ढालकर ही योग और हिन्दू धर्म में ध्यान के हजारों प्रकार बताएं गए हैं जो प्रत्येक व्यक्ति की मनोदशा अनुसार हैं। भगवान शंकर ने मां पार्वती को ध्यान के 112 प्रकार बताए थे जो ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ में संग्रहित हैं।
3-देखना :-
आप देखते जरूर हैं, लेकिन वर्तमान में नहीं देख पाते हैं। आपके ढेर सारे विचार, तनाव और कल्पना आपको वर्तमान से काटकर रखते हैं। बोधपूर्वक अर्थात होशपूर्वक वर्तमान को देखना और समझना (सोचना नहीं) ही साक्षी या दृष्टा ध्यान है।ऐसे लाखों लोग हैं जो देखकर ही सिद्धि तथा मोक्ष के मार्ग चले गए। इसे दृष्टा भाव या साक्षी भाव में ठहरना कहते हैं।
4-सुनना :-
सुनकर श्रवण बनने वाले बहुत है लेकिन सुनना बहुत कठिन है।ध्यान पूर्वक पास और दूर से आने वाली आवाजें सुने। आंख और कान बंदकर सुने भीतर से उत्पन्न होने वाली आवाजें। जब यह सुनना गहरा होता जाता है तब धीरे-धीरे सुनाई देने लगता है- नाद। अर्थात ॐ का स्वर।
5-श्वास पर ध्यान :-
बंद आंखों से भीतर और बाहर गहरी सांस लें, बलपूर्वक दबाब डाले बिना यथासंभव गहरी सांस लें, आती-जाती सांस के प्रति होशपूर्ण और सजग रहे। बस यही प्राणायाम ध्यान की सरलतम और प्राथमिक विधि है।
6-भृकुटी ध्यान :
आंखें बंद करके दोनों भौहों के बीच स्थित भृकुटी पर ध्यान लगाकर पूर्णत: बाहर और भीतर से मौन रहकर भीतरी शांति का अनुभव करना। होशपूर्वक अंधकार को देखते रहना ही भृकुटी ध्यान है। कुछ दिनों बाद इसी अंधकार में से ज्योति का प्रकटन होता है। पहले काली, फिर पीली और बाद में सफेद होती हुई नीली।
7- ध्यान के तीन पारंपरिक प्रकार हैं...। यह ध्यान तीन प्रकार का होता है- 1.स्थूल ध्यान, 2.ज्योतिर्ध्यान और 3.सूक्ष्म ध्यान।
7- 1.स्थूल ध्यान; -
स्थूल चीजों के ध्यान को स्थूल ध्यान कहते हैं- जैसे सिद्धासन में बैठकर आंख बंदकर किसी देवता, मूर्ति, प्रकृति या शरीर के भीतर स्थित हृदय चक्र पर ध्यान देना ही स्थूल ध्यान है। इस ध्यान में कल्पना का महत्व है।
7- 2.ज्योतिर्ध्यान; –
मूलाधार और लिंगमूल के मध्य स्थान में कुंडलिनी सर्पाकार में स्थित है। इस स्थान पर ज्योतिरूप ब्रह्म का ध्यान करना ही ज्योतिर्ध्यान है।
7- 3.सूक्ष्म ध्यान ;–
कुण्डलिनी जागरण का अनुभव ...साधक शांभवी मुद्रा का अनुष्ठान करते हुए कुंडलिनी का ध्यान करे, इस प्रकार के ध्यान को सूक्ष्म ध्यान कहते हैं।कुण्डलिनी ईश्वर की वह साक्षात् दिव्य शक्ति है जिससे सब जीव जीवन धारण करते हैं, समस्त कार्य करते हैं और फिर परमात्मा में लीन हो जाते हैं।
ध्यान के चमत्कारिक अनुभव;-
03 FACTS;-
1-ध्यान के अनुभव निराले हैं।प्रत्येक ध्यानी को ध्यान के अलग-अलग अनुभव होते हैं। यह उसकी शारीरिक रचना और मानसिक बनावट पर निर्भर करता है कि उसे शुरुआत में किस तरह के अनुभव होंगे। लेकिन ध्यान के एक निश्चित स्तर पर जाने के बाद सभी के अनुभव लगभग समान होने लगते हैं।जब मन मरता है तो वह खुद को बचाने के लिए पूरे प्रयास करता है। जब विचार बंद होने लगते हैं तो मस्तिष्क ढेर सारे विचारों को प्रस्तुत करने लगता है। जो लोग ध्यान के साथ सतत ईमानदारी से रहते हैं वह मन और मस्तिष्क के बहकावे में नहीं आते हैं, लेकिन जो बहकावे में आ जाते हैं वह कभी ध्यानी नहीं बन सकते।
2-शुरुआत में ध्यान करने वालों को ध्यान के दौरान कुछ एक जैसे एवं कुछ अलग प्रकार के अनुभव होते हैं। पहले भौहों के बीच आज्ञा चक्र में ध्यान लगने पर अंधेरा दिखाई देने लगता है। अंधेरे में कहीं नीला और फिर कहीं पीला रंग दिखाई देने लगता है।यह गोलाकार में
दिखाई देने वाले रंग हमारे द्वारा देखे गए दृष्य जगत का रिफ्लेक्शन भी हो सकते हैं और हमारे शरीर और मन की हलचल से निर्मित ऊर्जा भी। गोले के भीतर गोले चलते रहते हैं जो कुछ देर दिखाई देने के बाद अदृश्य हो जाते हैं और उसकी जगह वैसा ही दूसरा बड़ा गोला दिखाई देने लगता है। यह क्रम चलता रहता है।
3-नीला रंग आज्ञा चक्र का एवं जीवात्मा का रंग है। नीले रंग के रूप में जीवात्मा ही दिखाई पड़ती है। पीला रंग जीवात्मा का प्रकाश है। इस प्रकार के गोले दिखना आज्ञा चक्र के जाग्रत होने का लक्षण भी माना जाता है।लगातार भृकुटी पर ध्यान लगाते रहने से कुछ माह बाद व्यक्ति को भूत, भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्ष दिखने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उसकी छठी इंद्री जाग्रत होने लगी है और अब उसे ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।जो व्यक्ति इसका दुरुपयोग करता है उसे योगभ्रष्ट कहा जाता है।
...SHIVOHAM.....