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क्या ''त्रिगुण'' ही स्वधर्मरूपी यज्ञ की तलाश है और अंतर्वाणी को सुनने की क्षमता स्वध

क्या हैं स्वधर्मरूपी यज्ञ ?-

02 FACTS;-

1-यह स्वधर्मरूपी यज्ञ बहुत ही गहरी मनोवैज्ञानिक धारणा है। मनुष्य ने अपने इतिहास में जो भी गहरे से गहरे मनोवैज्ञानिक सत्य खोजे हैं, उनमें स्वधर्म का सत्य सर्वाधिक गहरा है।

यह पृथ्वी आज इतने दुख से भरी दिखाई पड़ती है, उसका मौलिक कारण स्वधर्म से च्युत हो जाना है। कोई भी आदमी वही नहीं हो रहा है, जो वह होने को है। हर आदमी कुछ और होने में लगा है! हम सब कुछ और होने में लगे हैं, जो हम नहीं हो सकते हैं।

श्रीकृष्ण कहते हैं, स्वधर्मरूपी यज्ञ बड़े से बड़ा यज्ञ है अर्जुन, अगर तू इतना भी पूरा कर ले, या कोई भी पूरा कर ले, तो भी प्रभु को उपलब्ध हो जाता है, परम अवस्था को उपलब्ध हो जाता है।

2-स्वधर्म कैसे पहचानें, क्या है स्वधर्म? कैसे जानें, मैं क्या होने को पैदा हुआ हूं? कैसे जानें कि मैं कुछ और होने में तो नहीं लगा हूं? कैसे पहचानें कि मैंने किसी परधर्म को ही तो नहीं पकड़ लिया है?लेकिन पहचान हो सकती है और सूक्ष्म होंगे पहचान के सूत्र।पहले हम त्रिगुण को तो जाने कि 'इस भवन का' जिसे हम जीवन कहें,तमस आधार है और सत्व शिखर । तमस बुनियाद है, रजोगुण बीच का भवन है और सत्वगुण मंदिर का शिखर है।यह जीवन की व्यवस्था है।

क्या हैं स्वधर्मरूपी त्रिगुण अथार्त तीन ELEMENT(FIRE,WATER,AIR) ?-

07 FACTS;-

1-प्रकृति त्रिगुणमयी हैं। हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश ... तीनो प्रकृति के तीन गुणों (FIRE,WATER,AIR) का प्रतिनिधित्व करते हैं।वे सी क्यूब हैं ;अथार्त CREATOR,CARING और CONCLUSIVE... ब्रह्मा...FIRE ELEMENT(रजोगुण/

पित्त); विष्णु ..WATER ELEMENT(तमस/कफ ) और महेश... AIR ELEMENT( सत्वगुण/वात)का प्रतिनिधित्व करते हैं।और वे तीनो हीं अर्धनारीश्वर हैं।

2-संसार में WATER-CONTENT 70% है अथार्त WATER-ELEMENT के 70% लोग है।AIR CONTENT 28 % है अथार्त AIR -ELEMENT के 28% लोग है।FIRE CONTENT 2% है अथार्त FIRE -ELEMENT के 2% लोग है।

3-इस तत्वज्ञान से ये सिद्ध होता है....

1-ब्रह्मा;- FIRE ELEMENT/ FUTURE/रजस ,

2-विष्णु;- WATER-ELEMENT/ PAST/तमस

3-महेश;- AIR ELEMENT /PRESENT /सत्वगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

4-त्रिगुण ..जो वर्तमान में हैं, वही भविष्य में है,जो भविष्य में है, वही भूत में भी हैं।ये तीनों ही काल एक दूसरे के विरोधी हैं ,परन्तु आत्मतत्व स्वरुप से एक ही हैं।आकाश, वायु, अग्रि, जल और पृथ्वी, यह पंच महाभूत सारे ब्रह्माण्ड को तो बनाते ही हैं हमारे शरीर की भी रचना करते हैं। आकाश और पृथ्वी तो प्रत्येक प्राणी के आधारभूत तत्व हैं;जिसके असंतुलन से एक सामान्य व्यक्ति होना ही संभव नहीं हैं।इसके बाद मुख्य रूप से तीन गुण प्रत्येक व्यक्ति में हैं।दो गुणों से कोई भी व्यक्ति बन नहीं सकता।एक गुण के साथ किसी व्यक्ति के अस्तित्व की कोई संभावना नहीं है। उन तीनों का जोड़ ही आपको शरीर और मन देता है।जैसे बिना तीन रेखाओं के कोई त्रिकोण न बन सकेगा, वैसे ही बिना तीन गुणों के कोई व्यक्तित्व न बन सकेगा। उसमें एक भी गुण कम होगा, तो व्यक्तित्व बिखर जाएगा।

5-अगर कोई व्यक्ति कितना ही सत्व-प्रधान हो, तो सत्व-प्रधान का इतना ही अर्थ है कि सत्व प्रमुख है, बाकी दो गुण सत्व के नीचे छिप गए हैं, दब गए हैं। लेकिन वे दो गुण मौजूद हैं और उनकी छाया सत्वगुण पर पड़ती रहेगी।प्रधानता उनकी नहीं है, वे गौण हैं।मनुष्य में तीनों प्रकार के त्रिगुण / त्रिदोष होते हैं किन्तु दो प्रधान दोषों के आधार पर उन्हें द्विंदज मान लिया जाता है।आपमें कोई भी गुण प्रकट हो, तब भी दो मौजूद होते हैं।

6-त्रिगुण / त्रिदोष... के अलग-अलग संयोजन हमारे शरीर में वात पित्त और कफ के रूप में रहते हैं।इस प्रकार संसार में केवल 6 प्रकार के मनुष्य होते हैं...

6-1-WATER-FIRE(कफ-पित्त)

6-2-WATER- AIR,(कफ-वात)

6-3-AIR- FIRE(वात-पित्त)

6-4-AIR-WATER(वात-कफ)

6-5-FIRE-AIR( पित्त-वात),

6-6-FIRE-WATER(पित्त-कफ) 7-त्रिगुण/त्रिदोष मानव शरीर की उत्पत्ति के कारक भी हैं।असंतुलन की स्थिति में AIR CONTENT (वात) बढऩे से 80, FIRE CONTENT(पित्त ) से 40 और WATER-CONTENT(कफ )से 20 किस्म की बीमारियां हो सकती हैं।प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में उसकी प्रकृति के अनुसार निश्चित अनुपात में AIR/FIRE/WATER-CONTENT रहेगे। इनमें से एक की शरीर में प्रधानता उस व्यक्ति का प्रकृति तय करती है।

क्या है आपका तत्व(ELEMENT) ?-

02 FACTS;-

1-मनुष्य केवल दृश्य और अदृश्य पदार्थो का मेल है । फिर भी प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव, बर्ताव और कार्य भिन्न भिन्न होते है। इसका कारण है प्रकृति के तीन गुण।सत्व, रजस और तमस के कम और अधिक मात्रा के समन्वय से मनुष्य का स्वभाव बनता है। कोई व्यक्ति जल-तत्व प्रधान है,कोई अग्नि-तत्व प्रधान है,तो कोई वायु-तत्व प्रधान है।हमारे दिमाग रूपी कम्प्यूटर में जो चिप लगायी गयी.. हमारा स्वभाव और बर्ताव वैसा ही होगा जो अपरिवर्तिनीय है।हम इसे केवल विकृत ही कर सकते है...परिवर्तित नही कर सकते।

2-इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने तत्व के अनुसार ही बर्ताव करना चाहिए।यही स्वधर्मरूपी यज्ञ है और तभी हम सफल हो सकते है।6 प्रकार के मनुष्यों में किस तत्व का मनुष्य किस तत्व के लिए फ्रेंडली/ मित्रवत होगा, और किस तत्व के लिए शत्रुवत ..यह ज्ञान हम पोस्ट में दिए हुए चार्ट से कर सकते हैं।परंतु एक उपासक के लिए अनिवार्य है कि वह सभी 3 तत्व के मनुष्यों से अपना संतुलन बनाए। तभी वह शिवत्व तक पहुंच सकता है।

कैसे होते है जल तत्व प्रधान व्यक्ति?...

भावना प्रधान (WATER ELEMENT--EMOTION,REALIZATION);-

02 FACTS;-

1-जब हम तत्व के रूप में जल को जानने की कोशिस करते है तो हम पाते है कि यही वो तत्व है जो की स्रष्टि के निर्माण के बाद जीवन की उत्पत्ति का कारण है। जल में दो तत्व और निहित हैं- देव तत्व और जीवन तत्व। इनके कारण जल का महत्व और भी बढ़ जाता है।जल सामाजिक व्यवहार को दर्शाता हैं |जल-तत्व में ग्रहण करने की क्षमता होती है, इसलिए जल-तत्व प्रधान व्यक्तियों में आत्मविश्लेषण, खोज एवं ग्रहण करने का विशेष गुण होता है।ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होते हैं।

2-यदि जल तत्व के व्यक्तियों में असंतुलन की स्थिति आ जाती है तो

व्यक्ति, अकेला और अलग रहने वाला, भुलक्कड़, बांझ, या नपुंसक हो जाता हैं |

जोड़ो के दर्द, नींद न आना, खराब सपने या हीनता की भावना से ग्रसित हो जाता हैं|जल तत्व की अधिकता से व्यक्ति ज्यादा सक्रिय,सागर की तरह असमीमित, अभिभूत और ज्यादा ताकत दिखाने वाला हो जाता है |उदाहरण के लिए ..जहाँ पर बहता हुआ पानी कम मात्रा में रहता है जैसे कि चट्टानों से टपकता हुआ पानी या फ़व्वारे से निकलता हुआ पानी ..जो निकल तो रहा है पर जा कहीं नहीं जा रहा है |

कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों मे होने वाले लक्षण ;-

02 FACTS;-

1-कफ प्रकृति वाले लोग सामान्य रूप से गोरे वर्ण वाले, सुडौल, चिकना, मोटा शरीर होता है, इन्हें सर्दी अधिक कष्ट देती है ।ये लोग चिकनी त्वचा वाले,घने,घुंघराले,काले

केश वाले होते हैं।मधुर बोलने वाले होते है |भूख कम लगती है, अल्प भोजन से तृप्ति हो जाती है, मन्दागिन रहती है।प्यास कम लगती है,नींद अधिक आती है।ये लोग धीमी, स्थिर (एक जैसी) चाल वाले होते है।

2-सर्दी बुरी लगती है और बहुत कष्ट देती है, धूप और हवा अच्छी लगती है, नम मौसम में भय लगता है, गरमा गरम भोजन और गर्म पदार्थ प्रिय लगते हैं।गर्म चिकने, चरपरे और कड़वे पदार्थों की इच्छा अधिक होती है।कमजोर व कोमल नाड़ी होती है ,नाड़ी की गति -मन्द-मन्द (हंस की चाल वाली)होती है।

PROPERTIES OF WATER ELEMENT..EMOTION,REALIZATION:-

KEY NOTIONS;-

1-The cold, humidity---Feminine, receptive, manager,connected to the emotions, intuition, mysterious, the subconscious, etc.;Good in resource management,Saving etc.

2-People of water element possess a very subtle cast of mind; quite often they demonstrate parapsychological abilities. People of water element are very impressionable and sensitive. People of water element are distinguished by inconstancy, emotionality, and a rather extreme sensitivity.

3-Compatibility:People of water element should choose partners among water element .

INTERNAL ESSENCE OF WATER ELEMENT;-

04 POINTS ;-

1-The water element is an owner and captures everything. Water element may assume colours and paints at the same time hiding things like sugar or salt dissolved in water. Only shoaling water element is transparent, in depths water element is dark. Water element is able to hide only thoughts, but water element is frank in feelings. Therefore, water element frequently becomes a victim of one's own mood, imagination and subjectivity. Water element pays particular attention to trifles, details, surroundings. This basis gives rise to methodicalness.

2-Water excess results in hysterical reactions, pettiness, and psychopathy. However, water element is also merciful, can soothe, protect, pull through, and nurse. Water element is hard-working and endowed with sense of duty and responsibility. Water element is disposed to submission. Since water element is running, her feelings are changeable.

3-The sense of ownership may give rise to greediness and jealousy. The imagination of water element is peculiar and is the ground for romanticism,

subjectivity and idealism.People of water element possess a very subtle cast of mind; quite often they reveal parapsychological abilities. People of water element are very impressionable and sensitive.

4-People of water element are distinguished by inconstancy, emotionality, and a rather extreme sensitivity. But they are more capable of adaptation than it seems. At times it may seem that their condition is hopeless, however they find a way out of a difficult life situations like water that grides its way through rocks.

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कैसे होते है अग्नि तत्व प्रधान व्यक्ति?-

कर्म प्रधान (FIRE ELEMENT--FORCE,ACTION,HEAD);-

04 FACTS;-

1-अग्नि तत्व प्रधान व्यक्तियों में क्रियात्मक शक्ति का समावेश होता है।अग्नि में रूप परिवर्तन की क्षमता होती है।यदि हम अपने वैदिक ध्वज पर ध्यान दे तो उस का रंग और और उसकी आकृति अग्नि का प्रतीक है। हमारा तेज जिसे वैज्ञानिक भाषा में हम अपनी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड भी कहते है अग्नि तत्व पर निर्भर करता है। यह असीम ऊर्जा का स्रोत है.. इसे हम शिव तत्व के नाम से भी जानते है। किसी भी कार्य में...चाहे वो अध्यात्मिक हो या सांसारिक... हमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है।और स्थूल से सूछ्म ऊर्जा अधिक प्रभावी होती है।

2-अग्नि तत्व न सिर्फ हमें प्रभावशाली बनाता है अपितु हमारी अध्यात्मिक और सांसारिक

उन्नति भी करता है।अग्नि में रूप परिवर्तन की क्षमता होती है।हम सतयुग से ही अग्नि के उपासक रहे है। अग्नि में सदैव ऊपर उठने का गुण होता है।जब किसी व्यक्ति की अध्यात्मिक उन्नति होती है, वह उच्चतर स्तर पर कार्य करने लगता है।इस स्तर के आध्यात्मिक उन्नत व्यक्ति से; विशिष्ट रूप का तेज/अग्नि सा प्रक्षेपित होता प्रतीत होता है । जब ऐसा होता है,तो उस जीव की मूलभूत इच्छाएं भी अल्प होती जाती हैं, जैसे अन्न तथा नींद ।इसके अतिरिक्त, बोधगम्यता तथा कार्य करने की क्षमता संख्यात्मक तथा गुणात्मक रूप से प्रचंड मात्रा में बढ जाती है ।

3-अग्नि तत्व की प्रधानता वाले व्यक्ति भावनाओं को उचित रुप से जाहिर कर पाते हैं | इनको किसी प्रकार का बैर नहीं रहता है और दूसरो के प्रति दया भावना रहती हैं |जब अग्नि तत्व में असंतुलन आ जाता है, तो यह अपने आपको जाहिर करने में असमर्थ बना देता है |ऎसा व्यक्ति जो रसोई घर या ऎसे ही गर्म वातावरण में काम करता है या रेगिस्तान में रहता है या त्रिकोणाकार पर्वत के नीचे रहता है तो उसकी भावनाएं निष्क्रिय और निर्जीव तथा उन्मत और अतिक्रियाशील हो जाती हैं ...चरम सीमाओं में प्रकट होती हैं | 4-अग्नि तत्व की कमी से जोड़ो का दर्द,शुष्क त्वचा,नजर की कमजोरी और खराब रक्त संचार की समस्या आती हैं |हम थके हुये महसूस करते हैं, जोश की कमी रहती है भविष्य को लेकर भय और उत्तेजना बनी रहती है |बहुत ज़्यादा अग्नि तत्व का प्रभाव... अस्थिर, आलोचनात्मक और अप्रिय व्यक्तित्व वाला बना देता हैं....जो आसानी से गुस्सा होने वाले और झगड़े में पड़ने वाले होता हैं |

पित्त प्रकृति वाले व्यकित के लक्षण ;-

02 FACTS;- 1-शारीरिक गठन..नाजुक शिथिल शरीर होता है इन्हें गर्मी सहन नहीं होती । त्वचा त्वचा पीली एवं नर्म होती है फुंसियों और तिलों से भरी हुई अंग शिथिल; हथेलियाँ, होठ, जीभ, कान आदि लाल रहते हैं ।बालों का छोटी उम्र में सफेद होना व झड़ना, रोम बहुत कम होना ।कण्ठ सूखता है; स्पष्ट, श्रेष्ठ वक्ता होता है ।मुंह का स्वाद कड़वा रहता है ,

मुंह व जीभ में छाले होते है।भूख अधिक लगती है, बहुत सा भोजन करने वाला होता है,परन्तु पाचन शक्ति अच्छी होती है।प्यास अधिक लगती है।पसीना बहुत कम आता है ,परन्तु गर्म और दुर्गन्धयुक्त पसीना।

2-साधारण किन्तु लक्ष्य की ओर अग्रसर चाल वाला होता है।गर्मी बुरी लगती है और

अत्यधिक सताती है, गर्म प्रकृति वाली चीजें पसंद नहीं आती, धूप और आग पसंद नहीं, शीतल वस्तुयें यथा-ठंडा जल, बर्फ, ठण्डे जल से स्नान, फूलमाला आदि प्रिय लगते हैं, कसैले, चरपरे और मीठे पदार्थ प्रिय लगते हैं । नाड़ी की गति -कूदती हुई

(मेढ़क की चाल वाली), उत्तेजित व भारी नाड़ी होती है।

PROPERTIES OF FIRE ELEMENT...FORCE,ACTION,HEAD :-

KEY NOTIONS;-

1- Warmth and dryness...Energy, activity, idea;Masculine, projective, connected to the will, passion, creativity, etc.;Good in speaking and earning money,owners..

2-People of fire element are characterized by fiery temper, lively wit, and quick intelligence. People of fire element are not predisposed to long explanations, are impatient in trifles, but are smart and capable to grasp quickly the meaning of the main things. People of fire element frequently make thoughtless actions.

3-Compatibility:They should choose friends and beloved ones among the signs of fire element and air.

INTERNAL ESSENCE OF FIRE ELEMENT;-

03 POINTS ;-

1-The internal essence of the fire element is pitilessness - fire element burns mercilessly. The fire element likes to govern, rule over others, order people about. The fire element is very beautiful and bright, aspiring to be handsome and defiant. The basic feature of fire element is demonstrative behaviour.

2-People of fire element are hot and fiery tempered; they possess agile mind and quick wits. People of fire element are not predisposed to long explanations and are impatient in trifles; however, they are bright and capable to grasp the meaning of the main things quickly.

3-People of fire element do everything thoughtlessly and frequently commit rash actions. At the same time they do not regret the results of their own impetuosity. They have a hot blood and a hot head.People of fire element are lusty. Their temperament is explosive. Their warm-heartedness and fervor attract people. As a rule, people of fire element are successful in life, but if they are not lucky, failures follow one another.

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कैसे होते है वायु-तत्व प्रधान व्यक्ति?-

ज्ञान प्रधान (AIR ELEMENT-KNOWLEDGE,UNPREDICTABLE);-

1-इस की महत्ता इस बात से ही समझ में आती है की हमारा सूक्ष्म शरीर... 5 प्रकार की वायु आपान , उदान, व्यान, समान और प्राण में और और 5 उपवायु-नाग,कूर्म, कृकल,देवदत्त और धनंजय में वर्णित है।

2-वायु-तत्व प्रधान व्यक्ति परिवर्तन प्रिय एवं मानसिक रूप से सबल एवं प्रभावशाली होती हैं।इसमें चचंलता, अनिश्चय एवं बुद्धिमता का गुण है।वायु-तत्व की कमी से आप किसी पर

विश्वास नहीं कर पायेंगे |आप हमेशा चिंतित और परेशान रहेंगे |आपका अपना कोई मत नहीं होगा |और आप बहुत आसानी से दूसरों की बातों में आ जायेंगे और कुछ बोल नहीं पायेंगे |

वात प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण 02 FACTS;- 1-शारीरिक गठन - प्राय: शरीर रूखा, फटा-कटा सा दुबला-पतला होता है, इन्हें सर्दी सहन नहीं होती।त्वचा रूखी एवं ठण्डी होती है फटती बहुत है पैरों की बिवाइयां फटती हैं हथेलियाँ और होठ फटते हैं, उनमें चीरे आते हैं अंग सख्त व शरीर पर उभरी हुई बहुत सी नसें होती हैं । शरीर मे बाल रूखे, कड़े, छोटे और कम तथा दाढ़ी-मूंछ रूखी और खुरदरी होती हैं ।अंगुलियों के नाखून रूखे और खुरदरे होते है। जीभ मैली ,आवाज कर्कश व भारी, स्वर गंभीरता रहित तथा अधिक बोलता है ।व्यक्ति में मुंह का स्वाद फीका या खराब मालूम

होता है तथा मुंह अधिक सूखता है। 2-भूख कभी ज्यादा कभी कम, पाचन क्रिया कभी ठीक रहती है तो कभी कब्ज हो जाता है, विषम अग्नि, वायु बहुत बनती है ।व्यक्ति में प्यास कभी कम, कभी ज्यादा कम तथा बिना गन्ध वाला पसीना ।नींद कम आना, ज्यादा जम्हाइयां आना,सोते समय दांत किटकिटाने वाला।ऐसा व्यक्ति अक्सर आकाश में उड़ने के सपने देखता हैं।तेज चलने वाला होता है।

सर्दी बुरी लगती है, शीतल वस्तुयें अप्रिय लगती हैं,गर्म वस्तुओं की इच्छा अधिक होती है मीठे, खटटे, नमकीन पदार्थ विशेष प्रिय लगते हैं।नाड़ी की गति ...टेढ़ी-मेढ़ी (सांप की चाल के समान)चाल वाली प्रतीत होती है, तेज और अनियमित नाड़ी होती है।

PROPERTIES OF AIR ELEMENT...KNOWLEDGEUNPREDICTABLE:-

KEY NOTIONS;-

1- Warmth, humidity--Circulation, communication,speed,service, information;Masculine, projective element connected to rational thought, the mind, intellect, wisdom, communication, etc.; Good artist

2-People of air element are very sociable and are peculiar guides, intermediaries among various people and even groups. Distinctive features of air element are quick-wittedness, cheerful, bright character, loquacity, and sociability. Particularities of air element people are juridical and reasonable arguments.

3-Compatibility:According their air element these people should choose friends and sweethearts belonging to the elements of air and fire .

INTERNAL ESSENCE OF AIR ELEMENT;-

04 POINTS ;-

1-Air element is endowed with the heightened receptivity. This is the leading quality because gases in space can penetrate everywhere. It provides high ability to the interaction, based on observation. Against the internal background of the air element one can notice anxiety, fussiness, nervousness, and increased uneasiness.

2-People of air element will never hurt themselves, they do not feel keenly. Their emotions are not destructive because they calm down quickly. Mind of air element helps to evade destruction.The characteristic features of

air element are attention, changeability, sincerity, and openness. Air element is able to escape without staying too long. Upward movement occurs due to the intellectual superiority.

3-On negative background the air element is garrulous(बातूनी) because of

excessive openness.People of air element are very sociable and are peculiar guides, intermediaries among various people and even groups. Distinctive features of air element are quick-wittedness, cheerful, bright character, loquacity(talkativeness), and sociability.

4-Particularities of air element people are juridical, reasonable arguments and explanations. Therefore air element is associated with thinking and imagination. People of air element live in the world of ideas, thoughts and associations. They like to operate with logic arguments and possess clear, sober judgment.

IN NUTSHELL;WATER IS EMOTION ,FIRE IS ACTION ,AIR IS KNOWLEDGE...And all of them are complement of each other.. Their behaviour is according to their element.Neither try to change yourself nor others. Only,trust on your element and behave accordingly.

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कैसे जाने कि आप स्वधर्म से च्युत हो रहे हैं?-

18 FACTS;-

1-तीन सूत्र है... पहली बात, अगर आप जीवन में दुखी हैं , तो पक्का समझ लेना कि आप स्वधर्म से च्युत हुए हैं, स्वधर्म से च्युत हो रहे हैं। क्योंकि जहां भी स्वधर्म की यात्रा होती है, वहीं

आनंद फलित होता है।अशांत हों यदि, तो जान लेना कि परधर्म के पीछे चल रहे हैं। रुक जाना, पुनः सोच लेना। फिर से विचार कर लेना, रिकंसीडर कर लेना कि जो यात्रा चुनी, जो कर रहे हैं, उससे दुख और पीड़ा, अशांति बढ़ती है, तो निश्चित ही वह मार्ग मेरा नहीं है।

2-जैसे कोई बगीचे के पास जाता हो।अभी बगीचा दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन जैसे-जैसे पास पहुंचता है, ठंडी हवाएं छूने लगती हैं, स्पर्श करने लगती हैं। जानता है कि ठीक रास्ते पर हूं। बगीचा दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन कहीं पास ही होगा। दिशा तो कम से कम ठीक होनी ही चाहिए। और अगर ठंडक हवाओं की बढ़ती जाए एक-एक कदम बढ़ने से, तो निश्चित हुआ जा सकता है कि मैं ठीक दिशा में बढ़ रहा हूं; बगीचा करीब ही आता होगा। फिर और करीब आकर ठंडक के साथ-साथ सुगंध भी मिलने लगती है, तब और भी निश्चय हो जाता है कि मैं और भी पास आ रहा हूं। अभी भी बगीचा दिखाई नहीं पड़ता; अभी भी दूर है; लेकिन दिशा

ठीक है।ऐसे ही टटोलना पड़ता है स्वधर्म को भी,ठंडक, सुगंध… जैसे कोई बगीचे को अंधेरे में खोजता हो। ।

3-अगर ठंडक कम होती जाए, सुगंध क्षीण होती जाए, तो जानना चाहिए कि मैंने कोई विपरीत मार्ग पकड़ लिया। शांति बढ़े, तो स्वधर्म के निकट चल रहे हैं आप। अशांति बढ़े, तो आप

स्वधर्म से च्युत हो रहे हैं । शांति मापदंड है।फिर शांति घनी हो, तो सुवास की तरह आनंद की झलक भी मिलनी शुरू हो जाती है। तब समझना कि मार्ग ठीक है ;अब दौड़ सकते हैं ;निश्चिंत हो नाव को खे सकते हैं। अब बेफिक्र हो हवाओं के रुख में नाव को छोड़ सकते हैं। अब नदी ठीक, अब मार्ग ठीक। अब पहुंच जाएंगे वहां।

4-लेकिन हम जीवन में कभी इसका विचार ही नहीं करते। हम उलटा ही करते हैं। हम जो कर रहे होते हैं, अगर उसमें अशांति मिलती है, तो उसी को और जोर से करते हैं। सोचते हैं, शायद पूरी ताकत से नहीं कर रहे हैं; और ताकत से करेंगे, तो शांति मिल जाएगी। और अशांति मिलती है, तो और सारी ताकत जुटाकर लग जाते हैं। अंततः परिणाम यह होता है कि हम स्वधर्म को पहुंच नहीं पाते। परधर्म को पहुंच नहीं सकते। जीवन एक वर्तुलाकार चक्कर होकर खो जाता है। अवसर मिलता है और नष्ट हो जाता है।तो पहली बात शांति बढ़े, आनंद बढ़े।

5-दूसरी बात , यदि कोई स्वधर्म के साथ-साथ चल रहा हो, तो उसके जीवन में स्वीकार का भाव बढ़ता जाएगा, अस्वीकार का भाव कम होता जाएगा। उसकी एक्सेप्टिबिलिटी बढ़ती जाएगी। वह चीजों को स्वीकार करने लगेगा। क्योंकि जिसके भीतर भी जरा-सा आनंद आया, उसके बाहर स्वीकृति आने लगती है; वह चीजों को स्वीकार करने लगता है अर्थात संतुष्ट होने लगता

है।अगर स्वधर्म के अनुकूल न चलता हो, तो असंतुष्ट होता चला जाता है; अस्वीकार करने लगता है। हर चीज के प्रति दुश्मन की दृष्टि आ जाती है, दोस्त की नहीं। हर चीज के प्रति इनकार, नो; हो जाता है।

6-तो अगर आपकी जिंदगी में यस की जगह नो की संख्या ज्यादा हो; हां कम चीजों को कहते हों, न ज्यादा चीजों को कहते हों; स्वीकार कम को करते हों, अस्वीकार ज्यादा को करते हों; संतोष कम से मिलता हो, असंतोष ज्यादा से मिलता हो–तो ध्यान रखना कि यात्रा स्वधर्म के

अनुकूल नहीं जा रही है ।इस मात्रा को बदलना पड़ेगा। स्वीकार बढ़ाना पड़ेगा, अस्वीकार कम करना पड़ेगा। जैसे-जैसे स्वीकार बढ़ेगा, वैसे-वैसे आस्तिकता बढ़ेगी। जैसे-जैसे अस्वीकार बढ़ेगा, वैसे-वैसे नास्तिकता बढ़ेगी। नास्तिकता का अर्थ है, समस्त अस्तित्व के प्रति नकार का भाव, नो एटीटयूड टुवर्ड्स दि टोटैलिटी । आस्तिकता का अर्थ है, टोटल एक्सेप्टिबिलिटी, समग्र स्वीकार। सब है; और सब से मैं राजी हूं। जो जैसा है, उससे मैं वैसे ही राजी हूं। जैसे-जैसे यह राजीपन बढ़ता जाएगा, भीतर स्वधर्म के अनुकूल यात्रा होगी।

7-तीसरी बात, स्वधर्म के अनुकूल अगर जाना हो, तो सिर्फ बाहर की चीजों में उलझा रहकर कोई व्यक्ति कभी नहीं जा सकता। दैनंदिन कामों में पता ही नहीं चलता कि स्वधर्म क्या है, परधर्म क्या है। दैनंदिन काम तो करीब-करीब एक जैसे हैं; , रोटी-रोजी कमाना तो सबके लिए है। कैसे कोई कमाता है, यह दूसरी बात है। उससे बहुत अंतर नहीं पड़ता। दैनंदिन कामों से

पता नहीं चलेगा कि मेरा स्वधर्म क्या है।जिसे स्वधर्म की खोज करनी हो, उसे बाहर की दुनिया से कम से कम चौबीस घंटे में घंटेभर के लिए बिलकुल छुट्टी ले लेनी चाहिए, और भीतर की दुनिया में डूब जाना चाहिए। बाहर के द्वार बंद कर देने चाहिए। कह देना सब इंद्रियों के द्वार बंद करकेघंटे भर के लिए भीतर डूब जाना चाहिए।

8-वहीं पता चलेगा उस रहस्य का जो स्व है, जो निजता है। वहीं से सूत्र मिलेंगे, ध्वनि सुनाई पड़ेगी, वहीं से इशारे मिलेंगे। और धीरे-धीरे इशारे गहरे होते चले जाते हैं। पहले आवाज बड़ी छोटी होती है। यह आखिरी सूत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इसे ठीक से खयाल में ले लेंगे।

स्वधर्म का पता अंतर की वाणी के अतिरिक्त और कहीं से नहीं चलता है। पहले दो लक्षण से आप पता लगा लेना कि जिंदगी ठीक मार्गों से जा रही है या नहीं। और तीसरे से स्वधर्म के केंद्र को ही छू लेने की सूचना मिलती है ।

9-चौबीस घंटे में,घंटेभर के लिए बाहर की दुनिया को, बंद कर देना ;भूल जाना; छोड़ देना सब बाहर का बाहर; अपने भीतर डुबकी लगा जाना। उस डुबकी में धीरे-धीरे भीतर की अंतर्वाणी सुनाई पड़नी शुरू होगी। सबके भीतर छिपा है वह। 'दि स्टिल स्माल वॉइस,' छोटी है आवाज–धीमी, नाजुक, सूक्ष्म। केवल वे ही सुन सकते हैं, जो उतनी सूक्ष्म आवाज को सुनने के लिए अपने को ट्रेन करते हैं, प्रशिक्षित करते हैं।इसलिए आज आप आंख बंद करके बैठ जाएंगे,

तो भीतर की आवाज नहीं सुनाई पड़ेगी बल्कि बाहर की ही आवाज सुनाई पड़ती रहेगी। जल्दी न करें, तेईस घंटे बाहर की दुनिया को दे दें, एक घंटा अपने को दे दें। बस, आंख बंद करें और भीतर सुनने की कोशिश करें । सुनने की कोशिश, जैसे भीतर कोई बोल रहा है, उसे सुन रहे हैं।

10-जैसे कि भीड़ है और बहुत लोग बातचीत कर रहे हैं ।आपको किसी की बात सुननी है, तो आप सबकी बातों को छोड़कर अपनी पूरी चेतना और एकाग्रता को उस आदमी के ओठों के पास लगा देते हैं। वह फुसफुसाकर /विस्पर भी करता हो, तो भी आप सुनने की कोशिश करते हैं–और सुन पाते हैं। चेतना सिकुड़कर सुनती है, एकाग्र हो जाती है, तो सुन पाती है।

तो जल्दी न करें;स्वधर्म की खोज के लिए ,एक घंटा तय कर लें । आपको नहीं, लेकिन आपकी अंतरात्मा को पता है कि क्या है आपका स्वधर्म। आंख बंद करें। मौन हो जाएं। चुप बैठकर सुनें। मौन, सिर्फ भीतर ध्यान को करके, सुनने की कोशिश करें कि भीतर कोई बोलता है ...कोई आवाज!

11-बहुत-सी आवाजें सुनाई पड़ेंगी।पहचानने में कठिनाई न होगी कि ये बाहर की आवाजें हैं। मित्रों के शब्द याद आएंगे, शत्रुओं के शब्द; दुकान, बाजार, मंदिर, शास्त्र–सब शब्द याद आएंगे।भलीभांति पहचान सकेंगे कि, बाहर के सुने हुए हैं। छोड़ दें ..उन पर ध्यान न दे। और भीतर प्रतीक्षा करते रहें।अगर तीन महीने कोई सिर्फ एक घंटा चुप बैठकर प्रतीक्षा

कर सके धैर्य से, तो उसे भीतर की आवाज का पता चलना शुरू हो जाएगा।और एक बार भीतर का स्वर पकड़ लिया जाए, तो आपको फिर जिंदगी में किसी से सलाह लेने की जरूरत न पड़ेगी।

12-जब भी जरूरत हो, आंख बंद करें और भीतर से सलाह ले लें; पूछ लें भीतर से कि क्या करना है। और स्वधर्म की यात्रा पर आप चल पड़ेंगे। क्योंकि भीतर से स्वधर्म की ही आवाज आती है। भीतर से कभी परधर्म की आवाज नहीं आती। परधर्म की आवाज सदा बाहर से

आती है।जो व्यक्ति अपने भीतर की इनर वॉइस, अंतर्वाणी को नहीं सुन पाता, वह व्यक्ति कभी स्वधर्म के तप को पूरा नहीं कर पाएगा। यह जो स्वधर्मरूपी यज्ञ की बात श्रीकृष्ण ने कही है, यह वही व्यक्ति पूरी कर पाता है, जो अपने भीतर की अंतर्वाणी को सुनने में सक्षम हो जाता है।

13-जीवन में सबके पास ,जन्म के साथ ही वह अंतर्वाणी का स्रोतस्रोत है;बस, हमें उसका कोई स्मरण नहीं है। हमने कभी उसे खटकाया, जगाया भी नहीं। हमने कभी कानों को प्रशिक्षित भी नहीं किया कि वे सूक्ष्म आवाज को पकड़ लें।जीसस या बुद्ध या महावीर भीतर

की आवाज से जीते हैं। इसमें एक बात और महत्वपूर्ण है कि भीतर की आवाज एक बार सुनाई पड़नी शुरू हो जाए, तो आपको अपना गुरु मिल गया। वह गुरु भीतर बैठा हुआ है। लेकिन हम सब बाहर गुरु को खोजते फिरते हैं। गुरु भीतर बैठा हुआ है।परमात्मा ने प्रत्येक को वह विवेक, अंतःकरण,कांसिएंस, अंतर्वाणी दी है, जिससे अगर हम पूछना शुरू कर दें, तो उत्तर मिलने शुरू हो जाते हैं। और वे उत्तर कभी भी गलत नहीं होते। फिर वह भीतर का ही स्वर रास्ता बनाने लगता है, और तब हम स्वधर्म की यात्रा पर निकल जाते हैं।अंतर्वाणी को सुनने की क्षमता ही स्वधर्मरूपी यज्ञ का मूल आधार है।

14-इसलिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि यह तीसरा यज्ञ कि स्वधर्मरूपी यज्ञ को भी यदि कोई पूरा कर ले, तो प्रभु के मंदिर में उसकी पहुंच, सुनवाई हो जाती है; द्वार खुल जाते हैं; वह

प्रवेश कर जाता है।लगेगा कि शायद यह सरल हो, कि ब्राह्मण अपनी पोथी पढ़ता रहे; चंदन, तिलक-टीका लगााता रहे; तो स्वधर्म पूरा कर रहा है। कि क्षत्रिय युद्ध में लड़ता रहे, तो स्वधर्म पूरा कर रहा है।लेकिन यह सब बहुत बाहरी और ऊपरी बात है।स्वधर्म की गहरी बात तो तभी पता चलेगी, जब भीतर की आवाज सुनने की क्षमता हो।अगर स्वाध्यायरूपी यज्ञ को समझना हो, तो कृष्णमूर्ति के विगत चालीस वर्ष का समस्त वक्तव्य स्वाध्यायरूपी यज्ञ के इस छोटे-से शब्द स्वाध्याय में समा जाता है। कृष्णमूर्ति का चालीस साल का सब कहा हुआ, गीता के स्वाध्याय नामी यज्ञ की व्याख्या और भाष्य है, और कुछ भी नहीं।

15-इस तीसरी बात के लिए, अंतर्वाणी के सुनने के लिए भारत के मेहर बाबा ने इस सदी में जितना श्रम किया, उतना किसी दूसरे व्यक्ति ने नहीं किया है।उन्होंने पिछले जीवन के अपने तीस वर्ष अंतर की आवाज को सुनने में ही लगाए। और अंतर्वाणी को सुनने के लिए, स्वधर्म की आवाज को सुनने के लिए जो गहरे से गहरा तप किया जा सकता था, वह यह था कि वाणी ही उन्होंने छोड़ दी, शब्द ही छोड़ दिए; मौन हो रहे बाहर से, ताकि शब्द का लेन-देन बंद हो जाए ;और निपट भीतर की आवाज से जीया जा सके। ताकि भीतर की आवाज और बाहर की आवाज में कहीं भी कोई संदेह ,संभ्रम, कोई कनफ्यूजन पैदा न हो।

16-फिर बहुत-सी घटनाएं उनके जीवन में हैं।उदाहरण के लिए हैदराबाद के पास उन्होंने एक

छोटा-सा आश्रम बनाया था। बनकर तैयार हुआ। बड़ी प्रतीक्षा से बनाया था। फिर उसके द्वार तक गए–प्रवेश का दिन था–और ठीक दरवाजे पर खड़े होकर वापस लौट आए और इशारा कर दिया कि उस मकान में वे प्रवेश नहीं करेंगे। रात वह मकान गिर गया।हिंदुस्तान से वे

यूरोप जा रहे थे। हवाई जहाज से यात्रा। बीच में हवाई जहाज सिर्फ फ्यूल भरने के लिए किसी एअरपोर्ट पर उतरा। फिर हवाई जहाज उड़ने को हुआ। यात्रियों को खबर की गई। मेहर बाबा ने इनकार कर दिया कि वे उस पर सवार नहीं होंगे।उनके शिष्य बड़ी मुश्किल में पड़ जाते

थे।अब यह बड़ी बेहूदगी हो गई! चलती यात्रा में, बीच हवाई जहाज से उतर जाना, फिर कह देना कि नहीं जाएंगे! वह हवाई जहाज पंद्रह मिनट बाद उड़ा और गिर गया और सब यात्री समाप्त हो गए।ऐसा बहुत बार हुआ।

17-मेहर बाबा कब रुक जाएंगे किस काम को करने से ऐन बीच में, नहीं कहा जा सकता था; अनप्रेडिक्टेबल था। वे खुद भी नहीं कह सकते थे, क्योंकि उनको खुद भी पता नहीं था। कब अंतर की आवाज क्या कहेगी, उन्हें भी पता नहीं। जो कहेगी, वही वे करेंगे, जो भी हो। यह भी पता नहीं कि क्या परिणाम होगा। हवाई जहाज से क्यों रोक रहा है अंतर-मन? लेकिन अंतर-मन कहता है, नहीं, तो फिर नहीं। हां, तो हां।मेहर बाबा की जिंदगी स्वधर्म की तलाश

की जिंदगी है। भीतर के स्वर की खोज की जिंदगी है। वह भीतर का स्वर क्या कहता है, उससे ही चलेंगे।

18-कोई भी व्यक्ति अगर तेईस घंटे काम की दुनिया से हटाकर एक घंटा अपने लिए निकाल ले–ज्यादा निकाल सकें, तो और अच्छा। कभी वर्ष में पंद्रह दिन, तीन सप्ताह निकाल सकें इकट्ठे, तो और भी अच्छा। धीरे-धीरे भीतर की आवाज साफ होने लगे, तो आपकी जिंदगी में भूल-चूक बंद हो जाएगी। क्योंकि तब जिंदगी परमात्मा से चलने लगती है, आपसे नहीं चलती। फिर गुलाब का फूल गुलाब ही होता है, फिर कमल होने की कोई आकांक्षा नहीं होती। और जिस दिन भीतर की वाणी से चला हुआ जीवन पूरा खिलता है, उस दिन स्वधर्मरूपी यज्ञ पूरा हो गया–।

....SHIVOHAM....

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