माँशक्ति का हवन विधान एवं मंत्र
क्या है हवन ?-
06 FACTS;-
1-हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुण्ड में अग्नि के माध्यम से ईश्वर की उपासना करने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं)। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए भारत देश में विद्वान लोग यज्ञ किया करते थे और तब हमारे देश में कई तरह के रोग नहीं होते थे। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।वास्तव में, अग्नि किसी भी पदार्थ के गुणों को कई गुना बढ़ा देती है ।
2-हवन कुंड ..
03 POINTS;-
1-हवन कुंड का अर्थ है हवन की अग्नि का निवास-स्थान।लेकिन आजकल हवन की वेदी तैयार भी मिलती है।प्राचीन काल में कुण्ड चौकोर खोदे जाते थे, उनकी लम्बाई, चौड़ाई समान होती थी। यह इसलिए था कि उन दिनों भरपूर समिधाएँ प्रयुक्त होती थीं, घी और सामग्री भी बहुत-बहुत होमी जाती थी, फलस्वरूप अग्नि की प्रचण्डता भी अधिक रहती थी। उसे नियंत्रण में रखने के लिए भूमि के भीतर अधिक जगह रहना आवश्यक था। उस स्थिति में चौकोर कुण्ड ही उपयुक्त थे।
2-पर आज समिधा, घी, सामग्री सभी में अत्यधिक मँहगाई के कारण किफायत करनी पड़ती है। ऐसी दशा में चौकोर कुण्डों में थोड़ी ही अग्नि जल पाती है और वह ऊपर अच्छी तरह दिखाई भी नहीं पड़ती।अतएव आज की स्थिति में कुण्ड इस प्रकार बनने चाहिए कि बाहर से चौकोर रहें, लम्बाई, चौड़ाई गहराई समान हो। पर उन्हें भीतर तिरछा बनाया जाय। लम्बाई, चौड़ाई चौबीच-चौबीस अँगुल हो तो गहराई भी 24 अँगुल तो रखना चाहिये पर उसमें तिरछापन इस तरह देना चाहिये कि पेंदा छः-छः अँगुल लम्बा चौड़ा रह जाय।
3-इस प्रकार के बने हुए कुण्ड समिधाओं से प्रज्ज्वलित रहते हैं, उनमें अग्नि बुझती नहीं। थोड़ी सामग्री से ही कुण्ड ऊपर तक भर जाता है और अग्निदेव के दर्शन सभी को आसानी से होने
लगते हैं।पचास अथवा सौ आहुति देनी हो तो 1 फुट 3 इंच कुण्ड , एक हजार आहुति में 1 फुट 6 इंच का, एक लक्ष आहुति में 6 फुट , दस लक्ष आहुति में 9 फुट का तथा कोटि आहुति में 12 फुट का कुण्ड बनाना चाहिये। भविष्योत्तर पुराण में पचास आहुति के लिये मुष्टिमात्र हवन कुंड का भी र्निदेश है।
3-कितने हवन कुंड बनाये जायें?-
कुण्डों की संख्या अधिक बनाना इसलिए आवश्यक होता है कि अधिक व्यक्तियों को कम समय में निर्धारित आहुतियाँ दे सकना सम्भव हो, एक ही कुण्ड हो तो एक बार में नौ व्यक्ति
बैठते हैं।यदि एक ही कुण्ड होता है, तो पूर्व दिशा में वेदी पर एक कलश की स्थापना होने से शेष तीन दिशाओं में ही याज्ञिक बैठते हैं। प्रत्येक दिशा में तीन व्यक्ति एक बार में बैठ सकते हैं। यदि कुण्डों की संख्या 5 हैं तो प्रमुख कुण्ड को छोड़कर शेष 4 पर 12-12 व्यक्ति भी बिठाये जा सकते हैं।यही क्रम 9 कुण्डों की यज्ञशाला में रह सकता है। प्रमुख कुण्ड पर 9 और शेष 6 पर 12x8 अर्थात 96+ 9 =105 व्यक्ति एक बार में बैठ सकते हैं।
4-समिधा;-
03 POINTS;-
1-समिधा का अर्थ है वह लकड़ी जिसे जलाकर यज्ञ किया जाए अथवा जिसे यज्ञ में डाला जाए। ऋतुओं के अनुसार समिधा के लिए इन वृक्षों की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध होती है।
ऋतुओं के अनुसार समिधा;-
1-1-वसन्त ऋतु-शमी
1-2-ग्रीष्म ऋतु-पीपल
1-3-वर्षा ऋतु-ढाक, बिल्व
1-4-शरदऋतु-पाकर या आम
1-5-हेमन्त ऋतु-खैर
1-6-शिशिर ऋतु-गूलर, बड़
2-नवग्रह(शान्ति) के लिये समिधा;-
सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मंगल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की
कुशा की समिधा कही गई है।मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को
सिद्ध करने वाली होती है।इनके अतिरिक्त देवताओं के लिए पलाश वृक्ष की समिधा कही गई है।
3-यह लकड़ियाँ सड़ी घुनी, गन्दे स्थानों पर पड़ी हुई, कीडे़-मकोड़ों से भरी हुई न हों, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
5-मुद्रा ;-
02 POINTS;-
1-हवन करते समय किन-किन उँगलियों का प्रयोग किया जाय, इसके सम्बन्ध में मृगी और हंसी मुद्रा को शुभ माना गया है। मृगी मुद्रा वह है जिसमें अँगूठा, मध्यमा और अनामिका उँगलियों से सामग्री होमी जाती है। हंसी मुद्रा वह है, जिसमें सबसे छोटी उँगली कनिष्ठका का उपयोग न करके शेष तीन उँगलियों तथा अँगूठे की सहायता से आहुति छोड़ी जाती है।
शान्तिकर्मों में मृगी मुद्रा, पौष्टिक कर्मों में हंसी और अभिचार कर्मों में सूकरी मुद्रा प्रयुक्त होती है।
2-अंगुलियों और अंगूठे को आपस में मिलाने से हाथ का आकार बिल्कुल सूकर की तरह हो जाता है। इसी कारण से इसको सूकरी मुद्रा भी कहा जाता है। इस मुद्रा को मारण, उच्चाटन आदि कामों के लिए किया जाता है।योग में यह बहुत ही शक्तिशाली मुद्रा मानी जाती है।
दैनिक या मासिक होम में सामान्यतः नित्य हवन सामग्री का प्रयोग किया जाता है जिसमें जौ (यव), अक्षत, घी, शहद, तिल, पंचमेवा, एवं ऋतुफलों को काटकर प्रयोग किया जाता है इनकी मात्राएं निर्धारित होती है।
6-विशेष;-
होम- जप आदि करते हुए, अपान वायु निकल पड़ने, हँस पड़ने, मिथ्या भाषण करने, बिल्ली, मूषक आदि के छू जाने, गाली देने और क्रोध के आ जाने पर, हृदय तथा जल का स्पर्श करना ही प्रायश्चित है।
हवन के विज्ञान-सम्मत लाभ ;-
04 FACTS;-
1-शोध संस्थानों के ताजा शोध नतीजे बताते हैं कि हवन वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने के साथ ही अच्छी सेहत के लिए जरूरी है। हवन के धुएँ से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है। पूजा -पाठ और हवन के दौरान उत्पन्न औषधीय धुआं हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करता है जिससे बीमारी फैलने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।लकड़ी
और औषधीय जडी़ बूटियां जिनको आम भाषा में हवन सामग्री कहा जाता है को साथ मिलाकर जलाने से वातावरण में जहां शुद्धता आ जाती है वहीं हानिकारक जीवाणु 94 प्रतिशत तक नष्ट हो जाते हैं।
2-हवन के धुएं का वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के लिए बंद कमरे में प्रयोग किया गया। इस प्रयोग में पांच दजर्न से ज्यादा जड़ी बूटियों के मिश्रण से तैयार हवन सामग्री का इस्तेमाल किया गया। यह हवन सामग्री गुरकुल कांगड़ी हरिद्वार संस्थान से मंगाई गयी थी। हवन के पहले और बाद में कमरे के वातावरण का व्यापक विश्लेषण और परीक्षण किया गया, जिसमें पाया गया कि हवन से उत्पन्न औषधीय धुंए से हवा में मौजूद हानिकारक जीवाणु की मात्र में 94 प्रतिशत तक की कमी आयी।इस औषधीय
धुएं का वातावरण पर असर 30 दिन तक बना रहता है और इस अवधि में जहरीले कीटाणु नहीं पनप पाते।
3-वैज्ञानिको का कहना है कि पहले हुए प्रयोगों में यह पाया गया कि औषधीय हवन के धुएं से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक जीवाणुओं से भी निजात पाई जा सकती है। मनुष्य को दी जाने वाली तमाम तरह की दवाओं की तुलना में अगर औषधीय जड़ी बूटियां और औषधियुक्त हवन के धुएं से कई रोगों में ज्यादा फायदा होता है और इससे कुछ नुकसान नहीं होता जबकि दवाओं का कुछ न कुछ दुष्प्रभाव जरूर होता है।धुआं मनुष्य के शरीर
में सीधे असरकारी होता है और यह पद्वति दवाओं की अपेक्षा सस्ती और टिकाउ भी है।
4-हवन में अधिकतर आम की लकड़ियों का ही प्रयोग किया जाता है।और जब आम की लकड़ियों को गुड़ के साथ जलाया जाता है तो उनमें से एक लाभकारी गैस उत्पन्न होती है जिससे वातावरण में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणु समाप्त हो जाते हैं। इसके साथ ही वातावरण भी
शुद्ध होता है।एक रिसर्च के मुताबिक गुड़ के जलने से भी यह गैस उत्पन्न होती है तथा यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाए और हवन के धुएं का शरीर से सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे जानलेवा रोग फैलाने वाले जीवाणु खत्म हो जाते है और शरीर शुद्ध हो जाता है।हवन के साथ कोई मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ध्वनि तरंगित होती है, शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, अत: कोई भी मंत्र सुविधानुसार बोला जा सकता है।
माँ शक्ति हवन;-
03 FACTS;-
1-नवरात्रि में हवन का विशेष महत्व होता है।इससे शुभता में वृद्धि होने के साथ घर और आसपास में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।हवन सामग्री में जो औषधीय सामग्री उपयोग किए जाते हैं, उनकी आहुति देने से वातावरण स्वच्छ होता है।इस कारण से अक्सर पूजा अनुष्ठान में हवन करने का विधान है। यह एक वैदिक कर्मकांड है।
2-आप स्वयं घर पर हवन कर सकते हैं। महानवमी से एक दिन पूर्व आपको हवन साम्रगी एकत्र करने की आवश्यकता है।हवन कुंड को एक साफ स्थान पर स्थापित कर दें। हवन सामग्री को एक बड़े पात्र में मिलाकर रख लें।
हवन साम्रगी;-
एक सूखा नारियल या गोला, कलावा या लाल रंग का कपड़ा और एक हवन कुंड। इसके अतिरिक्त आम की लकड़ी,हवन साम्रगी का पैकेट, पंचमेवा,बेल, गाय का घी, गुग्गल, इलायची,गुड़,सुपारी ,लौंग,कर्पूर,पान,फूल, आटा,और फल।
हवन की तैयारी ;-
जहां पर कलश स्थापना करना है वहां पर आटे से त्रिकोण बनाएं। और
त्रिकोण के अंदर स्वास्तिक बनाएं। उसी प्रकार हवन कुंड की वेदी में आटे से त्रिकोण बनाएं और त्रिकोण के अंदर स्वास्तिक बनाएं।इसके बाद हवन
कुंड के अंदर लकड़ी के सात खंड बनाएं। प्रत्येक खंड 4 लकड़ियों से बनेगा ।सात खंड सात चक्रों का प्रतीक है।कलश में साढ़े 3 बार कलावा लपेटे जो कुण्डलिनी का प्रतीक है।
पूजन एवं हवन विधि;-
1-शुध्दिकरण;-''ओम सभी वस्तुएं शुद्ध व पवित्र हो'' ऐसा तीन बार कहते हुए सभी सामग्री और सभी लोगों पर जल छिड़क दें।
2-पांच तत्वों के प्रतीक स्वरूप पांच पदार्थों को चढ़ाते हैं। पृथ्वी के प्रतीक स्वरूप सिंदूर आदि; जल का प्रतीक स्वरूप जल और नैवेद्य अथार्त फल, मीठा, अक्षत आदि;अग्नि का प्रतीक स्वरूप दीपक ; वायु का प्रतीक स्वरूप धूप और आकाश का प्रतीक स्वरूप पुष्प।
3-कलश पूजन के लिए दीपक जला लें |हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश में ‘ॐ’ वं वरुणाय नम:’ कहते हुए वरुण देवता का तथा निम्न श्लोक पढ़ते हुए तीर्थों का आवाहन करें...
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति |
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु ||
4-तीन बार कलश में जल चढ़ा दें।कलश को तिलक करें ।अक्षत ,पुष्प, बिल्वपत्र व दूर्वा कलश के सामने चढ़ा दें।धूप व दीप दिखायें।प्रसाद चढायें। |
5-इसी प्रकार हवन कुंड में पूजन करें।तीन बार हवन कुंड में जल चढ़ा दें;तिलक करें;अक्षत ,पुष्प, बिल्वपत्र व दूर्वा हवन कुंड में चढ़ा दें। धूप व दीप दिखायें ;प्रसाद चढायें।
6-संकल्प :-
हाथ में लिए जल को देखते हुये ऐसी भावना करें कि जैसे जल व्यापक हैं, ऐसे ही हमारा संकल्प भी व्यापक हो।संकल्प करने के पहले, मध्य में एवं अंत में भगवान विष्णु (वसुदेव) को समर्पित करने की भावना करते हुये तीन बार भगवान के ‘विष्णु’ नाम का उच्चारण करें । ‘ॐ विष्णु: विष्णु: विष्णु:’...हाथ में 1पान,1सुपारी ,2लौंग, कलावा बंधा सूखा नारियल का गोला लेकर , जल छिड़ककर संकल्प करें।
''हे परमेश्वर,हे परमेश्वरी!आज मैं ...पवित्र .... मास के कृष्ण / शुक्लपक्ष की .... तिथि को ......वार के दिन मंत्र तथा दैवी शक्तियों की वृद्धि और आसुरी शक्तियों के शमन के लिए नवार्ण मंत्र – ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्ये...|’ के हवन का संकल्प करता हूँ |आपकी कृपा से मेरा यह हवन पूर्ण हो यही आपसे प्रार्थना है''।
7-हवन करने से पहले कुंड से फल, फूल हटा दें। इसके बाद
हवन कुंड में आम की सूखी लकड़ी को कर्पूर की मदद से जला लें। इसके बाद अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाए तो नीचे दिए गए मंत्रों से बारी बारी से आहुति देना शुरू करें।
1-ओम आग्नेय नम: स्वाहा>>>>> 3आहुति
2-ओम गं गणपतये नम:गणेशाय नम: स्वाहा>>>>> 3आहुति
3-ओम गौरियाय नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
4-ओम सरस्वती ब्रह्माय नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
5-ओम कमला नारायणः नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
6-ओम शक्ति शिवाय नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
7-ओम श्री गुरुवेः नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
8-ओम हनुमते नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
9-ओम भैरवाय नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
10-ओम कुल देवताय नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
11-ओम स्थान देवताय नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
12-ओम नम: स्वाहा/ओम सत् चित एकं ब्रह्म: >>>>> 1माला कीआहुति
13-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः सच्चिदएकम ब्रह्म: ll >>>>> 1माला कीआहुति
14-ओम नवग्रहाय नम: स्वाहा>>>>>3आहुति
15-ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा >>>>>3आहुति
16-सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के 4 श्लोक+मंत्र+8श्लोक=13 श्लोको की >>>>>3-3आहुति
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समापन;-
अब आप नारियल के गोले में कलावा या फिर लाल कपड़ा बांध दें। उस पर पूरी, खीर, पान, सुपारी, लौंग, बतासा आदि स्थापित करके हवन कुंड में उसे बीचोबीच रख दें। इसके बाद बचे हुए हवन सामग्री को समेट कर पूर्ण आहुति मंत्र का उच्चारण करें- ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा॥ और क्षमा प्रार्थना करके उनको हवन कुंड में डाल दें।
16-क्षमा प्रार्थना ;-
''हे परमेश्वर हे परमेश्वरी! मेरे हवन करने में, मेरे मंत्रों के उच्चारण में ,मेरी श्रद्धा में, मेरे भाव में, मेरी शुद्धता में, जो कुछ भी कमी रह गई हो.. उसके लिए हमें /मुझे क्षमा कीजिए।आपकी जय हो, आपकी जय हो आपकी जय हो''।
अंत में मां शक्ति को दक्षिणा स्वरूप रुपए अर्पित कर दें ।इस प्रकार आपका हवन संपन्न हो जाता है।
NOTE;-
दसमहाविद्या के उपासक भैरव और मां के मंत्रों से आहुति देते है।उदाहरण के लिए..
NOTE;- दसमहाविद्या के उपासक भैरव और मां के मंत्रों से आहुति देते है।उदाहरण के लिए.. दशमहाविद्या >>>भैरव/शिव के रूप 1-मां काली>>> - महाकाल भैरव 2-मां तारा >>>- अक्षोभ्य भैरव 3-मां त्रिपुरसुन्दरी>>> कामेश्वर भैरव 4-मां भुवनेश्वरी >>>सदाशिव भैरव 5-मां त्रिपुरभैरवी>>> - दक्षिणामूर्ती भैरव 6-मां छिन्नमस्ता>>> विकराल भैरव 7-मां धूमावती >>>- कालभैरव 8-मां बगलामुखी>>> -मृत्युंजय भैरव 9-मां मातंगी>>> मातंग भैरव 10-मां कमला >>>-श्रीहरी भैरव
...SHIVOHAM...