साधना मे सप्त चक्र भेदन का क्या रहस्य है ?PART-02
सातों चक्रों में 'निद्रा' की स्थिति ;-
10 FACTS;-
1-निद्रा का अपना एक अलग चक्र नहीं है। लेकिन सूक्ष्म शरीर में सहस्त्रार के अतिरिक्त प्रत्येक चक्र में इसका अपना स्थान है।जैसे-जैसे तुम ऊपर के चक्रों में प्रवेश करते जाओेगे तुम्हारी नींद की गुणवता बेहतर होती जाएगी क्योंकि प्रत्येक चक्र में गहरी विश्रांति का गुण है।
मूलाधार चक्र में जब तुम्हें भूख लगती है तो भूख का चक्र जाग्रत हो जाता है। यदि आपने कभी उपवास किया तो आप चकित हुए होंगे कि शुरू में पहले दो या तीन दिन भूख लगती है और फिर अचानक भूख खो जाती है।लेकिन यदि तुम बेचैन नहीं होते हो तो यह समाप्त हो जायेगी।चक्र सो गया है। दिन में फिर एक समय आएगा जब यह जगेगा। और फिर सो जायेगा।जो व्यक्ति मूलाधार चक्र पर केंद्रित है उसकी नींद गहरी न होगी। उसकी नींद उथली होगी क्योंकि वह दैहिक तल पर ;भौतिक स्तर पर जीता है।
2-स्वाधिष्ठान चक्र/काम केंद्र में भी ऐसा ही होता है।काम-वासना जगती है और संपूर्ण वासना तिरोहित हो जाती है। चक्र सो गया है।यदि तुम काम वासना का दमन न करो और केवल साक्षी रहो....तीन महीने के लिए यह प्रयोग करो कि जब काम वासना उठे, शांत बैठ जाओ। इसे उठने दो। इसे द्वार खटखटाने दो, आवाज सुनो, ध्यान में सुनो लेकिन इसके साथ बह मत जाओ। इसे उठने दो ,इसे दबाओ मत ,इसमें लिप्त मत होओ ;साक्षी बने रहो।और फिर स्वय: ही तिरोहित हो जाएगी। जैसे कभी थी ही नहीं। वह फिर लौटेगी, फिर चली जाएगी।
3-चक्र चलता रहता है और सातवें चक्र के नीचे सब छ: चक्रों में ऐसा ही होता है।जैसे-जैसे
ऊपर जाओगे तुम्हारी नींद गहरी हो जाएगी। और इसका गुणवता बदल जायेगी। जो व्यक्ति भोजन ग्रसित है और केवल खाने के लिए जीता है।उसकी नींद बेचैन रहेगी। उसकी नींद शांत न होगी। उसमें संगीत न होगा। उसकी नींद एक दु:ख स्वप्न होगी। जिस व्यक्ति का रस भोजन में कम होगा और जो वस्तुओं की बजाएं व्यक्तियों में अधिक उत्सुक होगा, लोगों के साथ जुड़ना चाहता है। उसकी नींद गहरी होगी। लेकिन बहुत गहरी नहीं। निम्नतर क्षेत्र में कामुक व्यक्ति की नींद सर्वाधिक गहरी होगी।
4-जब तुम और ऊपर की और जाते हो, चौथे अनाहत चक्र पर तो नींद अत्यंत निष्कंप, शांत, पावन व परिष्कृत हो जाती है। जब तुम किसी से प्रेम करते हो तो तुम अत्यंत अनूठी विश्रांति का अनुभव करते हो। मात्र विचार कि कोई तुम्हें प्रेम करता है और तुम किसी से प्रेम करते हो; तुम्हें विश्रांत कर देता है। सब तनाव मिट जाते है। एक प्रेमी व्यक्ति गहरी निद्रा जानता है।घृणा करो ,क्रोध करो तो तुम न सो पाओगे। तुम नीचे गिर जाओगे। प्रेम करो, करूणा करो तो गहरी नींद आएगी।
5-पांचवें चक्र के साथ नींद लगभग प्रार्थना पूर्ण बन जाती है।यह साधारण नींद नहीं रहती।पांचवां चक्र प्रार्थना है और यदि तुम प्रार्थना कर सकते हो तो अगली सुबह तुम प्रार्थना करते हुए ही उठोगे। तुम्हारा जागना ही एक तरह की प्रार्थना होगी। इसीलिए सब धर्म लगभग आग्रह करते है कि सोने से पहले तुम प्रार्थना करो। प्रार्थना को निद्रा के साथ जोड़ दो। प्रार्थना के बिना कभी मत सोओ। ताकि निद्रा में भी तुम्हें उसके संगीत का स्पंदन हो।
6-प्रार्थना की प्रतिध्वनि तुम्हारी नींद को रूपांतरित कर देती है।तुम निद्रा में
नहीं जा रहे। बल्कि एक सूक्ष्म रूप से परमात्मा में प्रवेश कर रहे हो। निद्रा एक द्वार है जहां तुम अपना अहंकार भूल जाते हो। और परमात्मा में खो जाना आसान होता है ;जो कि जाग्रत अवस्था में नहीं हो पाता। क्योंकि जब तुम जागे हुए होते हो तो अहंकार बहुत शक्तिशाली होता है।
7-जब तुम गहरी निद्रावस्था में प्रवेश कर जाते हो तुम्हारी आरोग्यता प्रदान करने वाली शक्तियों की क्षमता सर्वाधिक होती है। इसीलिए चिकित्सक का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति बीमार है और सो नहीं पाता तो उसके ठीक होने की संभावना कम हो जाती है। क्योंकि आरोग्यता भीतर से आती है। आरोग्यता तब आती है; जब अहंकार का आस्तित्व बिलकुल नहीं बचता।जो व्यक्ति पांचवें चक्र -प्रार्थना के चक्र तक पहुंच गया है। उसका जीवन एक प्रसाद बन जाता है। जब वह चलता है तो उसकी भाव भंगिमाओं में आप एक विश्रांति का गुण पाओगे।
8-आज्ञा चक्र, अंतिम चक्र है जहां नींद श्रेष्ठतम हो जाती है। इसके पार नींद की आवश्यकता नहीं रहती, कार्य समाप्त हुआ। छठे चक्र तक निद्रा की आवश्यकता है। छठे चक्र में निद्रा ।
ध्यान में रूपांतरित हो जाती है... प्रार्थना पूर्ण ही नहीं,ध्यानपूर्ण।क्योंकि प्रार्थना में द्वैत है। मैं और तुम, भक्त और भगवान। छठवें में द्वैत समाप्त हो जाता है। निद्रा गहन हो जाती है। इतनी जितनी की मृत्यु। वास्तव में मृत्यु और कुछ नहीं बल्कि एक गहरी नींद है और गहरी नींद कुछ नहीं बल्कि एक छोटी-सी मृत्यु है। छठे चक्र के साथ नींद अंतस की गहराई तक प्रवेश हो जाती है। और कार्य समाप्त हो जाता है।
9-जब तुम छठे से सातवें तक पहुंचते हो तो निद्रा की आवश्यकता नहीं
रहती।तुम द्वैत के पार चले गए हो। तब तुम कभी थकते ही नहीं। इसलिए निद्रा की आवश्यकता नहीं रहती है।यह सातवीं अवस्था विशुद्ध जागरण की अवस्था है।सातवें चक्र में बोध समग्र होता है।इसीलिए श्रीकृष्ण गीता में कहते है कि योगी सोता नहीं।
10-‘योगी’ का अर्थ है जो अपने अंतिम केंद्र पर पहुंच गया। अपनी परम खिलावट पर जो कमल की भांति खिल गया। वह कभी नहीं सोता। उसका शरीर सोता है। मन सोता है। वह कभी नहीं सोता।गौतम बुद्ध जब सो भी रहे होते है तो अंतस में कहीं गहरे में प्रकाश आलोकित रहता है। सातवें चक्र में निद्रा का कोई स्थान नहीं होता। बाकी छ: चक्रों में यिन और यैंग, शिव और शक्ति, दोनों है। कभी वे जाग्रत होते है और कभी सुषुप्ति में होते है ...उनके दोनों पहलू है।
योग शास्त्रों में चक्र ध्यान का वर्णन;-
02 FACTS;- 1-मनुष्य की शारीरिक एवं मानसिक क्षमता के सही विकास के लिए सप्तचक्र ध्यान का अभ्यास करना आवश्यक है।चक्र ध्यान साधना का अभ्यास सभी व्यक्ति कर सकते हैं।सप्तचक्र ध्यान का अभ्यास करने से ही शरीर में मौजूद पंचतत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश का संतुलन बना रह सकता है। इन शक्तियों के विकास की इच्छा मन में रखकर सप्तचक्र ध्यान साधना का अभ्यास करें। इसके अभ्यास में नियमों, सिद्धान्तों एवं विधियों का पालन करना चाहिए तथा इसकी शक्ति का महत्व और जन-जीवन कल्याण की उपयोगिता को समझाना चाहिए। 2-सप्तचक्र ध्यान साधना एक ऐसी साधना है, जिसमें व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को बाहरी वस्तुओं से हटाकर अपनी आंतरिक आत्मा में लगाता है। इस साधना में मन को नियंत्रित कर उसे किसी एक केन्द्र पर स्थिर किया जाता है। इसमें बाहरी मानसिक विचारों का नाश होकर आंतरिक व आध्यात्मिक मानसिक विचार का विकास होता है। इस ध्यान साधना में दिव्य दृष्टि से शरीर के अलग-अलग स्थानों पर स्थित चक्र पर ध्यान केन्द्रित कर भिन्न-भिन्न रंगों के कमल के फूलों को देखने एवं उससे उत्पन्न सुख का अनुभव किया जाता है। इस योग साधना का
अभ्यास किसी भी रूप, रंग, वर्ग, आयु, धर्म,संस्कृति, राष्ट्रीयता वाले कर सकते हैं।
KEY NOTES;-
1-मानव रूप में, हमें भी यह अद्वितीय अवसर जीवन में मिलता है कि हम परम चेतना जाग्रत कर सकें और दिव्यात्मा का ज्ञान प्राप्त कर सकें।परन्तु अपनी अधोप्रकृति को प्रोत्साहित करने या जाग्रत करने के लिए हमें कभी भी इन तीन चक्रों (मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपुर )पर ध्यान शुरू नहीं करना चाहिए।इस ध्यान क्रिया में अपने ध्यान को सर्वप्रथम आज्ञा चक्र से शुरू किया जाता है।इसके बाद क्रमशः मणिपुर,अनाहत,विशुद्ध और पुन;आज्ञा चक्र पर आ जातेहैं।फिर मूलाधार से सहस्रार चक्र में ध्यान क्रिया शुरू की जाती है।
2-इस आध्यात्मिक पथ पर हमारा सामना हमारे आंतरिक गुणों और विशिष्टताओं से होता है, जब तक कि ये चक्र पूर्णरूप से शुद्ध और परिष्कृत नहीं होते। आज्ञा चक्र में हम आत्मज्ञान को प्राप्त होते हैं।बिन्दुचक्र में हम आत्मा की अमरता का अनुभव करते हैं और सहस्रार चक्र में परम चेतना का प्रगटीकरण और व्यक्ति का परमात्मा से मिलन, अपने आप घटित होता है।चक्रों मे ध्यान के लिए सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए!
3-प्रत्येक चक्र के अनुसार अथार्त मूलाधार में 4 बार, स्वाधिष्ठान में 6 बार, मणिपुर में 10 बार, अनहत में 12 बार, विशुद्ध में 16 बार, आज्ञा नेगटिव में18 बार, आज्ञा पाजिटिव में 20 बार, अन्तःकुम्भक (Fission) और बाह्याकुम्भक(Fusion) कीजिए!प्रत्येक चक्र के अनुसार हस्तमुद्रा बनाये ! कूटस्थ मे दृष्टि रखे!मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखें !मन को जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र पर तनाव डालिए!प्रत्येक चक्र के देवता ,प्रतीक चिन्ह ,रंग ,बीजाक्षर का ज्ञान सहित ध्यान करे!
चक्रों मे ध्यान साधना ;-
07 FACTS;-
1-मूलाधार चक्र मे ध्यान साधना ;-
03 POINTS;-
1-मूलाधार चक्र मे तनाव डालिये!पृथ्वी मुद्रा... अनामिका अंगुलि को अंगुष्ठ से लगायें और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। अब मूलाधार चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अपनी शक्ति के अनुसार 4 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! श्वास को रोकना नही है!मूलाधार चक्र मे
चार पंखडियाँ होती है! मूलाधारचक्र को व्यष्टि मे पाताललोक और समिष्टि मे भूलोक कहते है! जब तक मनुष्य ध्यान नही करता तब तक उस मनुष्य का ह्र्दय काला अर्थात अन्धकारमय है,
कलियुग मे है!जब मनुष्य ध्यान साधना शुरु करता है तब वो क्षत्रिय यानि योद्धा बन जाता है, उसका हृदय 'चालक हृदय' बन जाता है परन्तु वह साधक फिर भी कलियुग मे ही है!
2-मूलाधारचक्र पृथ्वी तत्व का प्रतीक है! पृथ्वी तत्व का अर्थ गंध है!इस चक्र को महाभारत मे सहदेवचक्र कहते है! कुंडलिनी शक्ति को पांडव पत्नी द्रौपदि कहते है! श्री सहदेव का शंख मणिपुष्पक है!श्री सहदेव ध्यान कर रहे साधक को जो नकारात्मक शक्तियाँ रोक रही होती है उन का दमन करते है ! कुंडलिनी शक्ति जो शेष नाग जैसी होती है वह मूलाधारचक्र के नीचे अपना फ़ण नीचे की ओर एवम पूँछ उपर की और करके साढे तीन लपेटे लिये हुए सुषुप्ती अवस्था मे रह्ती है!
3-साधना के कारण ये शेषनाग अब जागना आरंभ करता है! जाग्रत हो रहा शेष नाग मूलाधारचक्र को पार करेगा और स्वाधिस्ठानचक्र की ओर जाना शुरु करेगा! मूलाधारचक्र शेष के उपर होता है, इसी कारण कुंडलिनी को श्री पद्मावति देवी कहते है और मूलाधारचक्र को शेषाद्रि कहते है!यहां जो समाधि मिलती है उस को सविकार संप्रज्ञात समाधि कहते है!
संप्रज्ञात का अर्थ मुझे परमात्मा के दर्शन लभ्य होगे या नही होगे ऐसा संदेह होना! इस चक्र मे ध्यान साधक को इच्छा शक्ति की प्राप्ति कराता है! ध्यान फल को साधक को अपने पास नही रखना चाहिये, इसी कारण ‘’ध्यानफल श्री विघ्नेश्वरार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिये!
2-स्वाधिष्ठान चक्र मे ध्यान साधना ;-
03 POINTS;-
1-अब स्वाधिष्ठान चक्र मे जाए! तनाव डाले! वरुण मुद्रा लगाए! कनिष्ठा अंगुलि को अंगुष्ठ से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।स्वाधिष्ठान चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अपनी शक्ति के अनुसार छः बार लंबी श्वास लेवे और छोडे! श्वास को रोके नही! स्वाधिष्ठान चक्र को व्यष्टि मे महातल लोक और समिष्टि मे भुव लोक कहते है! साधक अब द्वापर युग मे है!
2-स्वाधिस्ठान चक्र मे छः पंखडियाँ होती है! इस चक्र को महाभारत मे श्रीनकुलजी का चक्र कहते है! श्रीनकुलजी का शंख सुघोषक है! यह चक्र ध्यान कर रहे साधक को आध्यात्मिक सहायक शक्तियों की तरफ मन लगा के रखने मे सहायता करता है! स्वाधिस्ठान चक्र मे ध्यान करने से पवित्र बांसुरी वादन की ध्वनी सुनाई देगी! साधक का हृदय पवित्र बांसुरी वादन सुनके स्थिर होने लगता है! यहाँ साधक को द्विज कहते है! द्विज का अर्थ है दुबारा जन्म लेना! क्योकि साधक को पश्चाताप होता है कि मैने इतना समय बिना साधना किए व्यर्थ ही गवाया, इसी कारण द्विज कहते है!
3-सुनाई देने को संस्कृत भाषा मे वेद कहते है! इसी कारण स्वाधिस्ठानचक्र को वेदाद्रि कहते है! इधर जो समाधि मिलती है उस को सविचार संप्रज्ञात समाधि या सामीप्य समाधि कहते है! इस चक्र मे ध्यान करने से साधक को क्रिया शक्ति की प्राप्ति होती है! इस का अर्थ हाथ, पैर, मुख, शिश्न( मूत्रपिडों मे) और गुदा यानि कर्मेंद्रियों को शक्ति प्राप्त होती है!ध्यान फल को साधक को ‘’ध्यानफल श्री ब्रह्मार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिये!
3-मणिपुर चक्र मे ध्यान साधना ;-
03 POINTS;-
1-अब मणिपुर चक्र मे जाए, इस चक्र मे तनाव डाले, अग्नि मुद्रा मे बैठे! अनामिका अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। मणिपुरचक्र मे तनाव डाले! मणिपुरचक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अपनी शक्ति के अनुसार दस बार लंबी श्वास लेवे और छोडे ! श्वास को रोके नही! मणिपुरचक्र को व्यष्टि मे तलातल लोक और समिष्टि मे स्वर लोक कहते है! साधक अब त्रेता युग मे है!
2-मणिपुर चक्र मे दस पंखडियाँ होती है! इसी कारण इसे रावण चक्र भी कहते है!इस चक्र को महाभारत मे श्रीअर्जुनजी का चक्र कहते है! श्रीअर्जुनजी का शंख दैवदत्त है!श्रीअर्जुनजी ध्यान कर रहे साधक को दिव्य आत्मनिग्रह शक्ति लभ्य कराते है ! मणिपुरचक्र मे ध्यान करने से वीणा वादन की ध्वनी सुनाई देगी! साधक का हृदय इस वीणा वाद्य नाद को सुन कर भक्तिवान हृदय बनेगा! साधक विप्र बन जायेगा!
3-इधर जो समाधि मिलती है उस को सानंद संप्रज्ञात समाधि या सायुज्य समाधि कहते है! इस चक्र मे ध्यान साधक को ज्ञान शक्ति की प्राप्ति होती है! इस का अर्थ कान (शब्द), त्वचा (स्पर्श), आँख (रूप), जीब (रस) और नाक (गंध), ये ज्ञानेंद्रियों को शक्ति प्राप्त होती है!इधर ज्ञान(ग) आरूढ(रुड) होता है! इसी कारण मणिपुर चक्र को गरुडाद्रि कहते है!ध्यान फल को साधक को ‘’ध्यानफल श्री श्रीविष्णुदेवार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिये!
4-अनाहत चक्र मे ध्यान साधना ;-
03 POINTS;-
1-अब अनाहत चक्र मे जाए, उस चक्र मे तनाव डाले, वायु मुद्रा मे बैठे! तर्जनी अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।अनाहतचक्र मे तनाव डाले! अनाहतचक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अपनी शक्ति के अनुसार बारह बार लंबी श्वास लेवे और छोडे! अनाहत चक्र को व्यष्टि मे रसातल लोक और समिष्टि मे महर लोक कहते है! साधक अब सत्य युग मे है!
2-अनाहत चक्र मे बारह पंखडियाँ है! श्री भीम और आंजनेय दोनों वायु देवता के पुत्र है! इसी कारण इसे वायु चक्र, आंजनेयचक्र भी कहते है!इस चक्र को महाभारत मे श्रीभीम का चक्र भी कहते है! श्रीभीमजी का शंख पौंड्रं है! ध्यान कर रहे साधक को दिव्य प्राणायाम नियंत्रण शक्ति
का लाभ कराते है!अनाहत चक्र मे ध्यान करने से घंटा वादन की ध्वनी सुनाई देगी! साधक का हृदय इस घंटावाद्य नाद को सुनकर शुद्ध हृदय बनेगा! साधक ब्राह्मण बन जायेगा! कुंडलिनी अनाहत चक्र तक नही आने तक साधक ब्राह्मण नही बन सकता! मनुष्य जन्म से ब्राह्मण नही बनता, प्राणायाम क्रिया करके कुंडलिनी अनाहत चक्र तक आने पर ही ब्राह्मण बनता है!
3-इधर जो समाधि मिलती है उस को सस्मित संप्रज्ञात समाधि या सालोक्य समाधि कहते है! इस चक्र मे ध्यान साधक बीज शक्ति की प्राप्ति कराता है! इधर साधक को वायु मे उड रहा हूँ जैसी भावना आती है! इसी कारण अनाहतचक्र को अंजनाद्रि कहते है!ध्यान फल साधक को “ध्यानफल श्री रुद्रार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिए!
5-विशुद्ध चक्र मे ध्यान साधना ;-
03 POINTS;-
1-अब विशुद्ध चक्र मे जाए, इस चक्र पर तनाव डाले, शून्य यानि आकाश मुद्रा मे बैठे! मध्यमा अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। विशुद्ध चक्र मे तनाव डाले! अनाहत चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अपनी शक्ति के अनुसार सोलह बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! श्वास को रोक्ना नही है!विशुद्धचक्र को व्यष्टि मे सुतल लोक और समिष्टि मे जन लोक कहते है!
2-विशुद्धचक्र मे सोलह पंखडियाँ होती है! कालकूटविष जैसी अति कडवी रुचि होती है! इस चक्र को महाभारत मे श्रीयुधिष्ठिर का चक्र कहते है! श्रीयुधिष्ठिर का शंख अनंतविजय है ;जो ध्यान कर रहे साधक को दिव्य शांति का लाभ कराते है ! विशुद्धचक्र मे ध्यान करने से प्रवाह ध्वनी सुनाई देगी!
3-इधर असंप्रज्ञात समाधि या सारूप्य समाधि लभ्य होती है! असंप्रज्ञात का अर्थ है 'निस्संदेह'! साधक को सगुण रूप मे यानि अपने अपने इष्ट देवता के रूप मे परमात्मा दिखायी देते है! इस चक्र मे ध्यान साधक को आदि शक्ति की प्राप्ति कराता है!असंप्रज्ञात समाधि या सारूप्य समाधि लभ्य होने से संसार चक्रों से विमुक्त हो के साधक सांड के जैसा परमात्मा के तरफ दौड पडता है! इसी कारण विशुद्ध चक्र को वृषभाद्रि कहते है!ध्यान फल को साधक ‘’ध्यानफल श्री आत्मार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिये!
6-आज्ञा चक्र मे ध्यान साधना ;-
03 POINTS;-
1-अब आज्ञा नेगेटिव चक्र मे जाए, इस चक्र मे तनाव डाले, ज्ञान मुद्रा मे बैठे! अंगुठें को तर्जनी अंगुली के सिरे से लगाए! शेष तीन अंगुलिया सीधी रखें। आज्ञा नेगेटिव चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! आज्ञा नेगेटिव चक्र मे दो पंखडियाँ होती है! अपने शक्ति के अनुसार 18 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! श्वास को रोके नही! अब आज्ञा पॉजिटिव चक्र मे जाए, इस चक्र मे तनाव डाले, ज्ञान मुद्रा मे ही बैठे रहे! आज्ञा पॉजिटिव चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अपनी शक्ति के अनुसार 20 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! श्वास को रोके नही!
2-आज्ञा पॉजिटिव को व्यष्टि मे वितल लोक और समिष्टि मे तपो लोक कहते है! श्री विवेकानंद जैसे महापुरुष सूक्ष्म रूपों मे इधर तपस करते है! इसी कारण इस को तपोलोक कहते है! आज्ञा पॉजिटिव चक्र मे दो पंखडियाँ है! आज्ञा पॉजिटिव चक्र मे प्रकाश ही प्रकाश दिखायी देता है!इस को श्रीकृष्ण चक्र कहते है!श्रीकृष्ण का शंख पांचजन्य है!पंचमहाभूतों को कूटस्थ मे
एकत्रीत करके दुनिया रचाते है, इसी कारण इस को पांचजन्य कहते है!
3-सविकल्प समाधि अथवा स्रष्ठ समाधि लभ्य होती है! यहा परमात्मा और साधक आमने सामने है! इस चक्र मे ध्यान साधक को परा शक्ति की प्राप्ति कराता है! ध्यान फल साधक को ‘’ध्यानफल श्री ईश्वरार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिये!इस चक्र से ही द्वंद्व शुरु होता है! केवल एक कदम पीछे जाने से फिर संसार चक्र मे पड़ सकता है साधक! इसी कारण आज्ञा पॉजिटिव चक्र को वेंकटाद्रि कहते है! एक कदम आगे यानि अपने ध्यान को और थोडा करने से अपने लक्ष्य परमात्मा मे लय हो जाता है!
7-सहस्रार चक्र मे ध्यान साधना ;-
साधक अब सहस्रार चक्र मे जाए, इस चक्र मे तनाव डाले, लिंग मुद्रा मे बैठे! मुट्ठी बाँधे और अंदर के अंगुठें को खडा रखे, अन्य अंगुलियों को बंधी हुई रखे। सहस्रार चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अपनी शक्ति के अनुसार 21 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! सहस्रार चक्र को व्यष्टि मे अतल लोक और समिष्टि मे सत्य लोक कहते है! ये एक ही सत्य है बाकी सब मिथ्या है, इसी कारण इस को सत्यलोक कहते है! सहस्रारचक्र मे हजार पंखडियाँ होती है! यहा निर्विकल्प समाधि का लाभ होता है! परमात्मा, ध्यान और साधक एक हो जाते है! इस चक्र मे ध्यान साधक को परमात्म शक्ति की प्राप्ति कराता है!
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03 FACTS;- 1-आँखें बन्द कर तीब्र श्वांस-प्रश्वांस की अनुभूति को आत्मसात करने का नित्य अभ्यास करो ।
महर्षि याज्ञवल्क्य तो कहते हैं कि छः महीने के सतत अभ्यास से नाड़ियां पूर्ण शुद्ध हो जाती हैं,यानि कि फिर सामान्य झाड़न-पोछन से काम चल जाता है।सर्वांगीण नाड़ीशुद्धि के पश्चात् कुछ दिनों के लिए क्रमशः इडादि तीनों प्रधान नाडियों की शुद्धि का अभ्यास करना चाहिए। क्योंकि यही वो मार्ग है,जहां से होकर कुण्डलिनी शक्ति को गुजरना है। यदि ये मार्ग शोधित(जागृत) न हुए,और चक्र पर काम करना शुरु कर दिये,तो इसका परिमाम गलत होगा।
2-अतः, प्रत्येक वैठक में एक से तीन चक्र नाड़ीशोधन आवश्यतानुसार कर लेना चाहिए।
यह ठीक वैसे ही है,जैसे बन-बनाये घर में नित्य झाड़ू-पोछा तो लगाना ही पड़ता है न।अन्यथा गर्दगुब्बार,मकड़ियों के जाले अपना स्थान बना लेंगे।फिर तत्वों की शुद्धि पर आ जाओ,ध्यान रहे प्रत्येक पद्मों पर एक-एक तत्त्व हैं- उन बीजों से स्वांस प्रहार करो।शनैः-शनैः एक-एक पद्मों पर काम करते हुए आगे बढ़ो। तत्त्व,बीज,वाहन,आकृति, वर्ण, मात्रिका आदि सबका चिन्तन होना चाहिए। तुम पाओगे कि धीरे-धीरे सारे वर्ण स्पष्ट हो रहे हैं, और फिर वहां की अन्य चीजें
भी।क्रिया में जल्दबाजी और उत्सुकता जरा भी न हो।बस एक द्रष्टा की भूमिका में रहना है,भोक्ता और कर्ता बनने का प्रयास करोगे तो परेशानी में पड़ोगे। 3-सात चक्रों के सात इमोशनल ब्लॉकेज है...
1-भय 2-ग्लानि 3-लज्जा 4-दर्द 5-असत्य 6-भ्रम 7-सांसारिक आसक्ति
एक-एक पद्मों की शुद्धि पर आ जाओ। मानसिक ध्यान करते हुए एक हवन कुंड बनाओ। और प्रत्येक चक्र के इमोशनल ब्लॉकेज का हवन करो।उदाहरण के लिए मूलाधार चक्र के 'भय' का कम से कम एक माला या तीन माले हवन करो..''ॐ सत् चित् एकम ब्रह्म भय स्वाहा''।प्रत्येक दिन एक एक करके अपने ब्लॉकेज को दूर करो! ध्यान में ,स्वप्न में तुम्हें कुछ ऐसे दृश्य दिखाई देंगे जो तुम्हें तकलीफ दे सकते हैं।उन सब को साक्षी बनकर देखो! बचपन से लेकर आज तक के सभी 'भय,ग्लानि' आदि को सुमिरन करके हवन कर दो।और इसी प्रकार से सभी सातों 'ब्लॉकेज' को हवन कर दो। इन 7 दिनों में आपको तकलीफ होगी परंतु यह समस्याएं हमेशा के लिए दूर हो जाएगी औरपद्मों की शुद्धि हो जाएगी।
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सात चक्रों के इमोशनल ब्लॉकेज को कैसे ओपन किया जाए?-
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चक्रो के नाम(ऑल फाइव सेंसेज।)>>संबंधित>>ब्लॉकेज>>ओपनिंग ऑफ 5 एलिमेंट्स
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1-पृथ्वी चक्र/मूलाधार चक्र(गंध)>अस्तित्व/ सरवाइवल >फियर/भय >फियर को सरेंडर करो.
2-जलचक्र/स्वाधिष्ठान चक्र(स्वाद)>प्लेजर /आनंद>ग्लानि की भावना/गिल्ट फीलिंग>स्वयं को माफ करो,
3-अग्निचक्र/मणिपुर चक्र(देखना)>स्ट्रांग विल >लज्जा/ गहरी निराशा>अग्नि को ऊपर की ओर मोड़ दो.
4-वायुचक्र /अनाहत चक्र(स्पर्श )>लव >ग्रीफ /दर्द >दर्द को जाने दो.
5-आकाश चक्र/ साउंड /विशुद्ध चक्र( सुनना )>सत्य /ट्रुथ>असत्य / लाइज>
स्वीकार करो कि तुम शिव हो.
6-प्रकाश चक्र/लाइट/आज्ञा चक्र>इनसाइट/अंतर्दृष्टि>भ्रम/इल्यूजन ऑफ सिपरेशन>जानो-एवरीवन इज कनेक्टेड.
7- विचार चक्र/सहस्त्रार चक्र>ब्रह्मांडीय ऊर्जा>सांसारिक आसक्ति/अर्थली अटैचमेंट>सभी मोह का त्याग करो.
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.....SHIVOHAM.....
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