क्या श्वास परिवर्तन से व्यक्तित्व में रूपांतरण हो जाता है?क्या ब्रीदिंग एक्सरसाइज से स्ट्रेस मैनेजमे
प्राणायाम के मुख्य तीन भाग :-
प्राणायाम के मुख्य रूप से 3 भाग है ..
03 POINTS;-
1-पूरक
2-कुम्भक
3-रेचक है
1) पूरक;-
अपनी श्वसन क्रिया में श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। सांस को आप नियंत्रण करे | आप तेजी से या धीरे धीरे सांस भर सकते है |
(2) कुंभक;-
प्राणायाम का दूसरा भाग है सांस को अन्दर रोके रहना | इस भाग में ना तो हम सांस लेते है ना ही छोड़ते है |कुंभक के मुख्य रूप से 2 भाग है
(2-1)आभ्यान्तर कुम्भक;-
पूरक करके अर्थात् श्वास को अंदर भरकर रोक लेना इसको आभ्यांतर कुम्भक कहते हैं ।
(2-2-)बहिर्कुम्भक;-
03 POINTS;-
1-रेचक करके अर्थात् श्वास को पूर्णतया बाहर निकाल दिया गया हो, शरीर में बिलकुल श्वास न हो, तब दोनों नथुनों को बंद करके श्वास को बाहर ही रोक देना इसको बहिर्कुम्भक
कहते हैं ।
2-जितना समय रेचक करो उससे आधा समय बहिर्कुम्भक करना चाहिए । इस क्रिया में दोनों नासा छिद्रों से वायु को बाहर छोड़कर जितनी देर तक सांस रोकना संभव हो, रोककर रखा जाता है और फिर सांस को अंदर खींचा जाता है।
3- प्राणायाम का फल है बहिर्कुम्भक।वह जितना बढ़ेगा उतना ही जीवन चमकेगा । तन मन में स्फूर्ति और ताजगी बढ़ेगी ;मनोराज्य न होगा ।
(3) रेचक;-
इस भाग में जो साँसे पहले से ली गयी है उन्हें नियंत्रित रूप से बाहर निकालना हटा है।
मात्रा या अवधि;-
कुम्भक क्रिया का अभ्यास सुबह, दोपहर, शाम और रात को कर सकते हैं।कुम्भक क्रिया का अभ्यास हर 3 घंटे के अंतर पर दिन में 8 बार भी किया जा सकता है।
NOTE;-
04 POINTS;-
1-ध्यान रहे कि कुम्भक की आवृत्तियाँ शुरुआत में 1-2-1 की होनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि श्वास लेने में एक सेकंड लगता है तो उसे दो सेकंड के लिए अंदर रोके और दो सेकंड तक बाहर निकालें।
2-फिर धीरे-धीरे 1-2-2, 1-3-2, 1-4-2 और फिर अभ्यास बढ़ने पर कुम्भक की अवधि और भी बढ़ाई जा सकती है। ॐ के एक उच्चारण में लगने वाले समय को एक मात्रा माना जाता है। सामान्यतया एक सेकंड या पल को मात्रा कहते हैं।
3-पहले आभ्यान्तर कुम्भक और फिर बहिर्कुम्भक करना चाहिए।इन तीनो प्राणायाम की क्रिया का सही रूप और सही आवर्ती से करना ही प्राणायाम है |
4-कुम्भक को अच्छे से रोके रखने के लिए जालंधर, उड्डियान और मूल बंधों का प्रयोग भी किया जाता है। इससे कुम्भक का लाभ बढ़ जाता है। केवली प्राणायाम को कुम्भक प्राणायाम में शामिल किया गया है।
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04 ब्रीदिंग टेक्नीक;-
जब आप स्ट्रेस अर्थात तनाव में होते हैं तो साँस लेने का आपका तरीका बदल जाता है। तनाव की स्थिति में आपका नर्वस सिस्टम और आपका सिम्पथेटिक नर्वस सिस्टम (SNS) इस तरह की भावनाओं के लिए बहुत ज़ोरदार तरीके से प्रतिक्रिया देता है।यही कारण है कि आपके दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं, आपकी पल्स बढ़ जाती हैं और साँस लेने का क्रम बिगड़ जाता है। ये सभी लक्षण आपके हार्ट अटैक, एंजाइन पेक्टोरिस या फिर स्ट्रोक (लकवा) से पीड़ित होने के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।ये ब्रीदिंग टेक्नीक आपकी मदद कर सकती हैं...
1- “स्क्वायर”/बॉक्स ब्रीदिंग (“Square” breathing);-
02 POINTS;-
1-स्क्वायर ब्रीदिंग को बॉक्स ब्रीदिंग,फोर-स्क्वायर ब्रीदिंग या “संवृति प्राणायाम” के रूप में भी जाना जाता है।ब्रीदिंग की यह सबसे आसान तकनीक है जो कि एक स्ट्रेस मैनेजमेंट एक्सरसाइज के रुप में कार्य करती है।यह ना केवल तनाव को कम करने में मदद करती है बल्कि आपके बेहतर फोकस करने में भी मदद करती है।आप इसे सोने से 20 मिनट पहले
बिस्तर पर कर सकते हैं। यह आपको रिलैक्स होने तथा गहरी और आरामदायक नींद लेने में मदद करेगा।
2-बॉक्स श्वास एक तकनीक है जिसके दौरान आप गहरी सांस लेने का अभ्यास करते हैं। यह तनाव से राहत दिलाने के लिए प्रभावी है और साथ ही एकाग्रता को बढाती है। इसे फॉर स्क्वायर ब्रीदिंग भी कहा जाता है।यह तकनीक हर किसी के लिए फायदेमंद हो सकती है, खासतौर पर उनके लिए जो ध्यान करते हैं।बॉक्स ब्रीदिंग करने से कोर्टिसोल का स्तर कम होता है।
“स्क्वायर”/बॉक्स ब्रीदिंग कैसे करें;-
06 POINTS;-
STEP1:-
एक कंफर्टेबल कुर्सी पर बैठ जाएं जिस पर आपकी कमर को सपोर्ट मिल सके।
STEP 2: -
आँखें बंद करें और अपनी नाक से धीरे-धीरे सांस लें साथ ही चार तक गिनें। अपने फेफड़ों में हवा का जाते हुए महसूस करें।
STEP 3:-
चार गिनती तक सांस को रोक कर रखें।
STEP 4:-
इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ना शुरु करें और चार गिनने तक सांस छोड़ें।
STEP 5:-
इसके बाद सांस छोड़कर चार तक गिने।
STEP 6:-
इस तरीके को पांच मिनट तक दोहराएं।
NOTE;-
1-आप इस तकनीक को कई अलग-अलग तरीकों से कर सकते हैं। काउंट की जगह आप ओम मंत्र का सहारा ले सकते हैं। मंत्र का जाप करते हुए सांसो को अंदर ले ;फिर जप तक उसे अंदर रखें। इसका पूरा उद्देश आपके अंदर एक लय और तालमेल पैदा करना है।
2-जिस दिन आप सांस अन्दर लेने, रोकने, बाहर छोड़ने और बाहर छोड़कर रुकने अथार्त चारो में..16 बार ओम का जप कर लेंगे।तो स्क्वायर ब्रीदिंग पूरी तरह से सिद्ध हो जाएगी।यह पूरी तरह से आपके अनुभव और आपकी अपनी क्षमताओं पर निर्भर करता है।
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.2-पेट से सांस लेने की तकनीक (Abdominal breathing techniques);-
आपने स्क्वायर ब्रीदिंग टेक्नीक के दौरान जो किया था वह दरअसल आपने सीने में हवा भरने
के लिए किया था।एब्डोमिनल ब्रीदिंग टेक्नीक में आपका लक्ष्य थोड़ा अलग है: आपनी सांसों को अपने डायफ्राम पर फोकस करना, जो स्ट्रेस, तनाव और एंग्जायटी का इलाज करने का बहुत ही असरदार तरीका है।
एब्डोमिनल ब्रीदिंग का तरीका;-
02 POINTS;-
1-सबसे पहले, अपने बिस्तर या किसी सोफे पर लेट जायें।
फिर एक हाथ को अपने सीने पर और दूसरा हाथ अपने पेट पर रखें।
तीन सेकंड के लिए अपनी नाक से लम्बी सांस लें।ध्यान दें कि कैसे
आपका पेट फूलता है और आपकी ऊपरी छाती में खिंचाव होता है।
2-आखिर में, चार सेकंड के लिए धीरे-धीरे सांस को बाहर छोड़े।सही मायने में, आपको उस “जादुई” हिस्से, डायफ्राम पर ध्यान केंद्रित करते हुए 10 हल्के-हल्के व्यायाम करने होंगे।
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3-“लगातार” साँस लेना (“Consistent” breathing);-
03 POINTS;-
1-यह स्ट्रेस को कम करने वाली सबसे अच्छी ब्रीदिंग टेक्नीकों में एक और तकनीक है जिसमें थोड़े अभ्यास और धैर्य की जरूरत होती है। आप इसे अपनी क्षमताओं और विशेषताओं के
अनुसार आजमा सकते हैं।हालांकि, जैसे ही आप इसे नियंत्रित करने लगते हैं, आपके पूरे शरीर को इसके फायदे मिलने लगेंगे।
2-कंसिस्टेंट ब्रीदिंग टेक्नीक में एक मिनट में पांच बार सांस लेना होता है।
इस तरह, आप अपनी ह्रदय गति में सुधार करते हैं और नर्वस सिस्टम को आराम पहुँचाते हैं। यह स्ट्रेस को दूर करने का एक अद्भुत तरीका है और बहुत मददगार हो सकता है।
3-इसे कैसे करना है ...
3-1-सबसे पहले, कमर सीधी रखते हुए बैठ जायें।
3-2-अपने सामने एक घड़ी रख दें।
आपका लक्ष्य एक मिनट में पांच बार सांस लेना और छोड़ना है।
3-3-पहले अपने श्वास को नियंत्रित करने की क्षमता को परख लेना एक अच्छा विचार है।
3-4-अगर आप अपने आपको एक मिनट में पांच सांसों तक सीमित नहीं
कर पाते हैं, तो छह या सात से शुरूआत करें।फिर भी, लक्ष्य 60 सेकंड में पांच सांसों तक पहुंचने का है। एक बार जब आप ऐसा कर लेते हैं, तो आप बहुत अच्छा महसूस करेंगे।
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4-उज्जायी (“ Victorious” breathing);-
शब्द "उज्जायी" संस्कृत के उपसर्ग "उद्" और "जि" से बना है: उज्जायी (अजय), जिसका अर्थ है "विजय", "जो विजयी है"।इस प्रकार उज्जायी प्राणायाम का अर्थ है "विजयी श्वास "।इस प्राणायाम के अभ्यास से वायु को जीता जाता है। योग में उज्जायी क्रिया और प्राणायाम के माध्यम से बहुत से गंभीर रोगों से बचा जा सकता है।इसका अभ्यास तीन प्रकार से किया जा सकता है- खड़े होकर, लेटकर तथा बैठकर।
उज्जायी प्राणायाम की विधि :-
पहली विधि-
सुखासन में बैठ कर मुंह को बंद करके नाक के दोनों छिद्रों से वायु को तब तक अन्दर खींचें (पूरक करें) जब तक वायु फेफड़े में भर न जाए। फिर कुछ देर आंतरिक कुंभक (वायु को अंदर ही रोकना) करें।
फिर नाक के दाएं छिद्र को बंद करके बाएं छिद्र से वायु को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें (रेचन करें)। वायु को अंदर खींचते व बाहर छोड़ते समय गले से खर्राटें की आवाज निकलनी चाहिए। इस तरह इस क्रिया का पहले 5 बार अभ्यास करें और धीरे-धीरे अभ्यास की संख्या बढ़ाते हुए 20 बार तक ले जाएं।
दूसरी विधि :-
04 POINTS;-
1-कंठ को सिकुड़ कर श्वास इस प्रकार लें व छोड़ें की श्वास नलिका से घर्षण
करते हुए आए और जाए।इसको करने से उसी प्रकार की आवाज उत्पन्न होगी जैसे कबूतर गुटुर-गूं करते हैं। उस दौरान मूलबंध भी लगाएं।पांच से दस बार श्वास इसी प्रकार लें और छोड़ें।
2-फिर इसी प्रकार से श्वास अंदर भरकर जालंधर बंध (कंठ का संकुचन) शिथिल करें और फिर धीरे-धीरे रेचन करें अर्थात श्वास छोड़ दें। अंत में मूलबंध शिथिल करें। ध्यान विशुद्धि चक्र (कंठ के पीछे रीढ़ में) पर रखें।
3-सावधानी : इस प्राणायाम को करते समय कंठ में अंदर खुजलाहट एवं खांसी हो सकती है, बलगम निकल सकता है, लेकिन यदि इससे अधिक कोई समस्या हो तो इस प्राणायाम को न करें।
4-इसके लाभ :-
श्वास नलिका, थॉयराइड, पेराथायराइड, स्वर तंत्र आदि को स्वस्थ व संतुलित करती है। कुंडलिनी का पंचम सोपान है। जल तत्व पर नियंत्रण लाती है। उज्जायी क्रिया :-
06 POINTS;-
यह क्रिया दो प्रकार से की जाती है (1)खड़े रहकर (2)लेटकर। यहां प्रस्तुत है लेटकर की जाने वाली क्रिया ....
1-पीठ के सहारे जमीन पर लेट जाएं शरीर सीधा रखें। हथेलियों को जमीन पर शरीर से सटाकर रखें। एड़ियों को सटा लें तथा पैरों को ढीला रखें। सीधा ऊपर देखें तथा स्वाभाविक श्वास लें। 2-मुंह के द्वारा लगातार तेजी से शरीर की पूरी हवा निकाल दें। हवा निकालने की गति वैसी ही रहनी चाहिए जैसी सीटी बजाने के समय होती है। चेहरे पर से तनाव को हटाते हुए होठों के बीच से हवा निकाल दी जाती है। 3-नाक के दोनों छीद्रों से धीरे-धीरे श्वास खींचना चाहिए। शरीर ढीला रखें, जितना सुखपूर्वक श्वास खींचकर भर सकें, उसे भर लें। तब हवा को भीतर ही रोके और दोनों पैरों के अंगूठे को सटाकर उन्हें आगे की ओर फैला लें, प्रथम सप्ताह केवल तीन चार सेंकड करें। इसे बढ़ाकर आठ सेकंड तक करें या जितनी देर हम आसानी से श्वास रोक सकें, रोकें। 4-फिर मुंह से ठीक उसी प्रकार श्वास निकालें, जैसे प्रथम चरण में किया गया, जल्दबाजी न करें, श्वास छोड़ने के समय मांसपेशियों को ऊपर से नीचे तक ढीला करें अर्थात पहले सीने को तब पेट को जांघों, पैरों और हाथों को पूरी श्वास छोड़ने के बाद, पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। 5-10 सेकंड विश्राम करें। 5-सावधानी :-
प्रथम दिन 3 बार, द्वितीय दिन 4 बार, तृतीय दिन 5 बार इसे करें, इससे अधिक नहीं। इस प्राणायाम का अभ्यास साफ-स्वच्छ हवा बहाव वाले स्थान पर करें। 6-इसके लाभ .. हृदय रोगी, उच्च-निम्न रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए बहुत ही उपयुक्त। श्वास रोग और साइनस में लाभदायक। यह कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने में सहयोग करता है।
...SHIVOHAM....