गणपति साधना का क्या महत्व है?
गणेश चतुर्थी का त्यौहार ;-
हिंदु धर्म में गणेश जी का विशेष स्थान है। गणेश जी को सुखकर्ता, दुखहर्ता, मंगलकर्ता, विघ्नहर्ता, विघ्न-विनाशक, विद्या देने वाला, बुद्धि प्रदान करने वाला, रिद्धि-सिद्धि के दाता, सुख-समृद्धि, शक्ति और सम्मान प्रदान करने वाला माना जाता है। हर माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को “संकष्टी गणेश चतुर्थी” और शुक्लपक्ष की चतुर्थी को “विनायक गणेश चतुर्थी” कहा जाता हैं। इन चतुर्थी पर भी भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं। इन सब चतुर्थी में गणेश चतुर्थी बहुत महत्वपूर्ण और अत्यंत शुभ फलदायी हैं।धार्मिक मान्यता के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था।इस गणेश चौथ को कलंक चौथ भी कहा जाता है। श्रद्धा-भक्ति के साथ विधि अनुसार इस गणेश चतुर्थी का व्रत एवं पूजन करने से धन, बुद्धि, शक्ति, यश, सौभाग्य में वृद्धि और निर्विघ्न कार्यसिद्धि होती है।भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता हैं। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी, कलंक चतुर्थी और ड़ण्का चौथ के नाम से भी जाना जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था।भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय सिंह लग्न में स्वाति नक्षत्र में गणेश जी का जन्म हुआ था।वैदिक काल से गणेश जी की पूजा होती रही हैं।गणेश जी के मंत्रो का उल्लेख हमको ऋग्वेद-यजुर्वेद में भी मिलता हैं।हिन्दू धर्म के पाँच प्रमुख देवताओं में भगवन शिव, भगवान विष्णु, भगवान सूर्य, माता दुर्गा के साथ भगवान गणेश जी भी हैं।गणेश शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, गण + ईश। ‘गण’ शब्द का अर्थ होता है – वृंद, समुदाय, समूह, आदि और ‘ईश’ शब्द का अर्थ होता है – ईश्वर, मालिक, स्वामी, आदि।गणेश जी के पिता शंकर जी, माता पार्वती जी, भाई कार्तिकेय जी, पत्नियाँ ऋद्धि-सिद्धि और पुत्र शुभ और लाभ हैं।महाकाव्य महाभारत के वक्ता वेदव्यास जी थे और उसको लिखा भगवान गणेश ने था।
शास्त्रों में वर्णित भगवान गणेश के 12 नाम ;-
1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लम्बोदर, 6. विकट, 7. विघ्नविनाशन, 8. विनायक, 9. धूमकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।
गणेश चतुर्थी व्रत एवं पूजन की विधि;-
भारत देश में हर स्थान पर गणेश चतुर्थी का पूजन किया जाता हैं। महाराष्ट्र में यह त्यौहार बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता हैं। महाराष्ट्र में गणेशोत्सव में इस दिन घर-घर में गणेश की स्थापना की जाती हैं। यह गणेशोत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है और दस दिनों के बाद अनंत चतुर्दशी की तिथि के दिन गणेश विसर्जन किया जाता हैं। विसर्जन के लिये जाते समय लोग नाचते-गाते, ढोल-नगाड़े के साथ गणेश की सवारी निकालते हैं। फिर उनका जल में विसर्जन कर देते हैं।गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन और व्रत किया जाता हैं। इस दिन घर के पूजास्थान और घर के द्वार पर स्थापित गणेश जी की प्रतिमा की पूजा जाती हैं।यदि गणेश चतुर्थी मंगलवार के दिन हो तो उसे अंगारक चतुर्थी कहा जाता हैं। इस दिन व्रत और पूजन करने जातक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं।और यही गणेश चतुर्थी यदि रविवार के दिन हो तो बहुत ही शुभ और श्रेष्ठ फलदायी मानी जाती हैं।
1. गणेश चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मो से निवृत्त होकर सोने, चाँदी, तांबे, संगमरमर या मिट्टी की गणेश की मूर्ति लें और यदि आपके घर में पूजास्थान पर पहले से ही मूर्ति स्थापित हो तो उसी मूर्ति की पूजा करें।मिट्टी में स्वाभाविक पवित्रता होती है। इसमें भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश के अंश होने से ये पंचतत्वों से बनी होती है।गंगा या किसी भी पवित्र नदी की मिट्टी के साथ शमी या पीपल के जड़ की मिट्टी से मूर्ति बना सकते हैं। जहां से भी मिट्टी लें, वहां ऊपर से चार अंगुल हटाकर, अंदर की मिट्टी इस्तेमाल करें।मिट्टी के अलावा गाय के गोबर, सुपारी, सफेद मदार की जड़, नारियल, हल्दी, चांदी, पीतल, तांबा और स्फटिक से बनी मूर्तियों की भी स्थापना कर सकते हैं।घर में हथेली भर के गणेशजी स्थापित करने चाहिए। ग्रंथों के माप के मुताबिक मूर्ति 12 अंगुल यानी तकरीबन 7 से 9 इंच तक की हो। इससे ऊंची घर में नहीं होनी चाहिए।
2. एक चौकी लेकर उसपर कपड़ा बिछाकर एक कलश में जल भरकर रखें।
3. उस चौकी पर एक छोटे पाटे पर या थाल पर गणेश जी की प्रतिमा को विराजमान करें।
4. गणेश जी के प्रतिमा पर सर्वप्रथम दूध चढायें। फिर जल चढ़ायें।या मिट्टी की गणेश जी की प्रतिमा हो तो उस पर सिंदूर और घी को मिलाकर लेप (चोला चढ़ाये) करें और चाँदी का बर्क लगायें। रोली चावल से तिलक करें। वस्त्र चढ़ायें। और अगर धातु की प्रतिमा हो तो उस पर थोड़ा सा सिंदूर लगाकर रोली चावल से तिलक करके वस्त्र चढ़ायें।
6. गणेश जी को जनेऊ चढ़ायें।
7. तत्पश्चात गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें और पुष्प अर्पित करें।
8. लकड़ी या चाँदी के ड़ण्के गणेश जी को अर्पित करें।
9. फिर गणेशजी को गुड़धानी (गुड़ या चीनी की) और लडडुओं का भोग चढ़ायें।
10. इसके बाद गणेश चतुर्थी की कहानी एवं महात्म्य का पाठ करें या सुनें।
11. तत्पश्चात गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें, गणेश गायत्री मंत्र का जाप करके गणेश जी की आरती गायें।
12. इस सबके बाद भगवान गणेश जी की तीन परिक्रमा लगायें। अगर परिक्रमा करने के लिये जगह ना हो तो अपनी जगह पर ही तीन बार घूम लें।
NOTE;-
इस दिन इस बात का ध्यान रखें कि आप चंद्रमा के दर्शन नही करें। क्योकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से मिथ्या कलंक दोष लगता हैं।गणेश जी पर तुलसी पत्र नही चढ़ाया जाता। इसीलिये इस बात का विशेष रूप से ख्याल रखें और गणेश जी को तुलसी का पत्ता अर्पित ना करें।
गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन के दोष निवारण के उपाय;-
हिंदु मान्यता के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन नहीं करने चाहिए क्योकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने वाला कलंक का भागी होता हैं।चन्द्र दर्शन के दोष के निवारण के लिये स्यमंतक मणि की कहानी भी कही या सुनी जा सकती हैं। ऐसी मान्यता है कि स्यमंतक मणि की कहानी सुनने से गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा देखने से जो दोष लगता है उसका निवारण हो जाता हैं।यदि कोई गलती से चन्द्रमा का दर्शन कर ले तो उसे इस दोष का निवारण करने के लिये इस मंत्र का 54 बार या 108 बार जाप करना चाहिये।
सिंह प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
गणपति साधना का महत्व;-
07 FACTS;-
1-साधना के जरिए ईश्वर की कृपा प्राप्ति और साक्षात्कार के मुमुक्षुओं के लिए गणेश उपासना नितान्त अनिवार्य है। इसके बगैर न तो जीवन में और न ही साधना में कोई सफल हो सकता है। समस्त मांगलिक कार्यों के उद्घाटक एवं ऋद्धि-सिद्धि के अधिष्ठाता भगवान गणेश का महत्व वैदिक एवं पौराणिक काल से सर्वोपरि रहा है।भारतीय संस्कृति में गणेश ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सर्वप्रथम पूजे जाते हैं। उन्हें ‘गणपति-गणनायक’ की पदवी प्राप्त है। ‘ग’ का अर्थ है- जीवात्मा, ‘ण’ का अर्थ है- मुक्तिदशा में ले जाना तथा ‘पति’ का अर्थ है- आदि और अंत से रहित परमात्मदशा में लीन होने तक की कृपा करने वाले देव।
2-'रुद्रयामल तंत्र' में साधना-मार्ग पर बढ़ने वाले साधकों के निमित्त महागणपति साधना नितांत आवश्यक मानी गई है। महागणपति की साधना इष्टसिद्धि, विघ्ननाश एवं द्रव्य प्राप्ति के लिए अत्यंत उपयोगी कही गई है। शास्त्रों में गणपति का सूक्ष्म रूप ‘ओंकार’ है तथा स्वास्तिक चिन्ह को गणपति का प्रतीक माना जाता है अर्थात स्वास्तिक उनका प्रतिरूप है। चूंकि ‘ग’ बीजाक्षर है, अतः यह समूचे स्वास्तिक चिन्ह का संक्षिप्त रूप है। इस प्रकार गणेश जी की मूर्ति अथवा चित्र तथा स्वस्तिक अथवा ‘ग’ बीज- किसी की भी पूजा की जाए, वह गणपति की ही पूजा होगी और उसका पूर्ण फल प्राप्त होगा।
3-गणपति साधना के तीन माध्यम हैं- मूर्ति (प्रतिमा या चित्र), यंत्र और मंत्र।श्रीमहागणपति मन्त्र में गणपति का ” गं ” बीज है और ” ग्लौं ” बीज भी है । गं बीज गणपति तत्व जागृत करता है और ग्लौं बीज …भूमि-वराह का कारक होने से वो जागतिक विश्व विस्तार का प्रतीक है।गणपति साधना
अत्यंत महत्वपूर्ण है।ये एकमेव ऐसी श्रेष्ठ साधना है जो आपको भौतिक कर्मो से मुक्ति देने में सक्षम है। क्योंकि बाकी कोई देवता कर्म नष्ट नही करते ।
साधक को आगे की साधना के पथ पर आरोहण करने के लिए , साधक के जो कुलदोष पितृदोष है ,गणपति उसका निवारण करते हैं।जिससे कुल-पितरो के आशीर्वाद मिलते हैं; बिना इनके आशीर्वाद कोई साधना आगे नही बढ़ती हैं ।
4-श्रीमहागणपति साधना में बहुत सारे साधको को प्रथमतः शरीर के हड्डियों के सन्धियों , जोड़ो में सामान्य दर्द होता हैं ,आलस्य निद्रा भी आनी शुरू होती हैं , एक जड़त्व आना शुरू होता है ,अतः साधना में ये लक्षण शुरू होना आवश्यक हैं।क्योंकि , मनुष्य के शरीर की संधि जोड़ो में ही कुल-पितृदोष की नकारात्मक ऊर्जा समायी रहती हैं ;जिसको वो खींचना शुरू करते हैं।बहुत कम साधको को इसमे हवा में तैरने जैसे अनुभव आते हैं;या चैतन्यता का अनुभव होता हैं ।
5-श्रीमहागणपति को तीन नेत्र है ,ये त्रैलोक्य ज्ञान आधिष्ठता रूप में दिखते है ,जैसे दसमहाविद्या और शिव।हात में अनार है , ये अनार अनेकों ब्रम्हांडो को अपने अंदर दाने दाने की तरह लेकर अपनी प्रतिष्ठा दिखाता है।मस्तक पर जो चन्द्रचूड़ामनी है वो 16 कलाओ युक्त है।दोनों कनपटियों से झरने वाले मद जल को पीने वाले भुंगो को वो अपने लंबे कान हिलाये ,दूर कर रहे हैं ।सूंड में अमृतकलश है , जो आपको मनचाहा वरदान तथा अमरत्व देने योग्य है।ये सब चिन्ह श्रीमहागणपति की उच्चतम श्रेष्ठता दिखाते है।
6-गणेशजी की कृपा प्राप्ति के लिए इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह गणेशजी के किसी भी छोटे से मंत्र या स्तोत्र का अधिक से अधिक जप करे तथा मूलाधार चक्र में गणेशजी के विराजमान होने का स्मरण हमेशा बनाए रखे। इससे कुछ ही दिन में गणेशजी की कृपा का स्वतः अनुभव होने
लगेगा।गणेश प्रतिमाओं का दर्शन विभिन्न मुद्राओं में होता है लेकिन प्रमुख तौर पर वाम एवं दक्षिण सूण्ड वाले गणेश से आमजन परिचित हैं। इनमें सात्विक और सामान्य उपासना की दृष्टि से वाम सूण्ड वाले गणेश और तामसिक एवं असाधारण साधनाओं के लिए दांयी सूण्ड वाले गणेश की पूजा का विधान रहा है।
7-तत्काल सिद्धि प्राप्ति के लिए श्वेतार्क गणपति की साधना भी लाभप्रद है। ऐसी मान्यता है कि रवि पुष्य नक्षत्रा में सफेद आक की जड़ से बनी गणेश प्रतिमा सद्य फलदायी है।देश में गणेश उपासना के कई-कई रंग देखे जा सकते हैं। यहां की प्राचीन एवं चमत्कारिक गणेश प्रतिमाएं व मन्दिर दूर-दूर तक गणेश उपासना की प्राचीन धाराओं का बोध कराते रहे हैं।
भगवान श्री गणेश के चमत्कारिक और तुरंत फल देने वाले मंत्र :-
09 FACTS;-
1-श्री गणेश मूल बीज मंत्र (SRI GANESH MOOL MANTRA);-
गणपतिजी का बीज मंत्र 'गं' है।इनसे युक्त मंत्र-का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
''ॐ गं गणपतये नमः''||
''ॐ श्री विघ्नेश्वराय नमः'' ||
2-श्री महागणपति प्रणव मूलमंत्र:-
''ॐ गं ॐ।महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्''||
3-तांत्रिक क्रिया का असर खत्म करने के लिए;-
किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुंह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है।इस मंत्र का लगातार 10 दिनों तक 1008 बार जप करने से तांत्रिक विद्या का असर खत्म हो जाता है।
''ॐ वक्रतुंडाय हुम्''||
4-सारे विघ्न दूर करने के लिए उच्छिष्ट गणपति का मंत्र;-
''ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा''||
5-आत्मबल, धन- वैभव की प्राप्ति के लिए;-
आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें -
''ॐ गं क्षिप्रप्रसादनाय नम'':||
6.आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति के लिए;-
''ॐ गूँ नमः''||
7- विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने के लिए;-
विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने के लिए वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है-
''ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वर वरद सर्वजनं मं वशमानय स्वाहा''||
8-संकटों का नाश के लिए;-
इस मंत्र के जप से समस्त प्रकार के विध्नों एवं संकटों का नाश हो जाता है।
''ॐ गीः गूँ गणपते नमः स्वाहा''||
9-सर्व मनोकामना पूर्ति मंत्र;-
''ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मं वशमानय स्वाहा''||
श्री गणेश का संकटनाशन स्तोत्र :-
भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं, विद्यादाता हैं, धन-संपत्ति देने वाले हैं. इस तरह गौरीपुत्र गणपति जीवन की हर परेशानी को दूर करने वाले हैं. उनकी उपासना करने से आपके सभी संकट मिट जाते है।मनचाहे धन की प्राप्ति हेतु श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे 'संकटनाशन श्री गणपति स्तोत्र' के 11 पाठ करें।इस गणपति स्तोत्र का जप करे तो छहः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
|| संकटनाशन श्री गणपति स्तोत्र || प्रणम्यं शिरसा देव गौरी-पुत्रं विनायकम। भक्ता-वासं: स्मरै-नित्यंम-आयु:कामार्थ-सिद्धये।।1।। प्रथमं वक्रतुंडं-च एकदंतं द्वितीयकम। तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गज-वक्त्रं चतुर्थकम।।2।। लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्न-राजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथा-अष्टकम् ।।3।। नवमं भाल-चन्द्रं च दशमं तु विनायकम। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।। द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:। न च विघ्न-भयं तस्य सर्वा-सिद्धिकरं प्रभो।।5।। विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।। जपेद्व-गणपति-स्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।। अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत। तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
श्री गणेश का संकटनाशन स्तोत्र का अर्थ:-
1॥ नारद जी बोले – पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्तनिवास का नित्यप्रति स्मरण करें ।।1।।
2॥ पहला वक्रतुण्ड (टेढे मुखवाले), दुसरा एकदन्त (एक दाँतवाले), तीसरा कृष्ण पिंगाक्ष (काली और भूरी आँख वाले), चौथा गजवक्र (हाथी के से मुख वाले) ।।2।।
3॥ पाँचवा लम्बोदरं (बड़े पेट वाला), छठा विकट (विकराल), साँतवा विघ्नराजेन्द्र (विध्नों का शासन करने वाला राजाधिराज) तथा आठवाँ धूम्रवर्ण (धूसर वर्ण वाले) ।।3।।
4॥ नवाँ भालचन्द्र (जिसके ललाट पर चन्द्र सुशोभित है), दसवाँ विनायक, ग्यारवाँ गणपति और बारहवाँ गजानन ।।4।।
5॥ इन बारह नामों का जो मनुष्य तीनों सन्धायों (प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल) में पाठ करता है, हे प्रभु ! उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ देनेवाला है ।।5।।
6॥ इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है ।।6।।
7॥ इस गणपति स्तोत्र का जप करे तो छहः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है – इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।।7।।
8॥ जो मनुष्य इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है ।इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है ।।8।।
.... SHIVOHAM...